Monday, June 2, 2014

FUN-MAZA-MASTI मेरी कहानी मेरी जुबानी --2

FUN-MAZA-MASTI

 मेरी कहानी मेरी जुबानी --2


कुछ देर तक मैं आँखें बन्द करके ऐसे ही पड़ी रही और महेश जी के सर को भी अपनी जाँघों के बीच दबाए रखा मगर जब महेश जी अपने आप को छुड़वाने के लिये हिले तो मेरी तन्द्रा टूटी, मैंने महेश जी के सर को छोड़ दिया और धीरे से आँखें खोलकर उनकी तरफ़ देखा !
वो मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरा रहे थे उनका मुँह मेरी योनि से निकले पानी से गीला हो रहा था जिसे वो अपनी जीभ होंठों पर फ़िरा कर चाट रहे थे।
मैंने फ़िर से अपनी आँखें बन्द कर ली।
कुछ देर बाद फ़िर से मैंने आँखें खोल कर उनकी तरफ़ देखा, वो अब भी मुस्करा रहे थे मगर इस बार वो मेरी नंगी योनि और जाँघों की तरफ़ देख रहे थे, तभी मुझे अपने कपड़ों का ख्याल आया जो कि अस्त-व्यस्त हो चुके थे।
मैं जल्दी से अपनी साड़ी और पेटिकोट को ठीक करने लगी मगर जल्दी में मेरी पेन्टी नहीं मिल पाई शायद महेश जी ने बिस्तर से नीचे गिरा दी थी इसलिये मैं पेन्टी पहने बिना ही कम्बल लेकर सोने लगी मगर महेश जी ने कम्बल को पकड लिया और कहने लगे- अकेले ही मजा लेकर सोने का इरादा है क्या?
मैंने फ़िर से अपनी आँखें बन्द कर ली और बिना कुछ बोले ही करवट बदल कर सो गई क्योंकि अभी जो कुछ हमारे बीच हुआ, उससे मुझे बहुत शर्म आ रही थी और अपने आप पर गुस्सा भी आ रहा था।
महेश जी भी मेरे पास मेरी बगल में लेट गये और फ़िर से कहने लगे- कुछ हमारे बारे में भी तो सोचो !
उन्होंने कम्बल को खींच कर मुझ से अलग कर दिया और मेरी गर्दन व गालों पर चुम्बन करने लगे, उनके मुँह से मेरी योनि से निकले पानी की खुशबू आ रही थी। मैं अपने आपको छुड़वाने की कोशिश करने लगीं मगर महेश जी के आगे मेरा कहाँ जोर चलने वाला था, उन्होंने मेरे दोनों हाथों को मोड़ कर बिस्तर से सटा कर पकड़ लिया और मुझे सीधा करके जबरदस्ती मेरे गालों को चूमते चाटते रहे। कुछ देर बाद महेश जी ने मेरे होंठों को अपने मुँह में भर लिया और बुरी तरह से चूसने लगे जैसे कि मेरे होंठों में से कोई रस आ रहा हो।
मुझे फ़िर से कुछ होने लगा था जैसे मुझे कोई नशा चढ़ने लगा हो, मैं अपनी सुध बुध खोने लगी यहाँ तक कि मैं महेश जी का विरोध करना भी भूल गई, कभी कभी जब वो मेरे होंठों में अपने दाँत गड़ा देते तो मैं कराह उठती और छ्टपटाने लगती।
इसी बीच महेश जी ने अपना पायजामा और अण्डरवियर निकाल लिया और पता नहीं कब उन्होंने अपने लिंग पर मेरा हाथ रखवा दिया। जैसे ही मुझे इस बात का अहसास हुआ कि मेरा हाथ कहाँ पर रखा है तो मेरा दिल धक से रह गया, साँसें तेज हो गई और मैंने जल्दी से अपना हाथ खींच कर वहाँ से हटा लिया क्योंकि आज से पहले सिर्फ़ एक बार मैंने अपने भैया का लिंग देखा था, आज पहली बार किसी के लिंग को स्पर्श करके मैं घबरा गई। मेरी आँखें बन्द थी फ़िर भी मुझे महेश जी के लिंग के विशाल आकार का अहसास हो गया।
एक बार फ़िर से महेश जी ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रखवा दिया मगर शर्म के करण मैंने फ़िर से अपना हाथ खींच लिया पता नहीं क्यों उनके लिंग को छूने के बाद मेरे शरीर में एक अजीब सी सरसराहट होने लगी और मन में गुदगुदी सी होने लगी।इसके बाद महेश जी ने मेरे ब्लाउज के बटन खोल दिये और मेरी ब्रा को ऊपर खिसका कर मेरे छोटे छोटे उरोजों को मसलने लगे, इससे मुझे दर्द भी हो रहा था और मज़ा भी आ रहा था। पता नहीं क्यों मैं उनका कोई विरोध नहीं कर रही थी।
कुछ देर बाद महेश जी मेरे एक निप्पल को अपने मुँह में भरने लगे, मगर एक बड़े नींबू से बस कुछ ही बडे आकार के मेरे उरोज थे इसलिये पूरा का पूरा उरोज ही उनके मुँह में समा गया और वो किसी छोटे बच्चे की तरह से उसे चूसने लगे। उनकी इस हरकत ने मेरे तन-बदन में आग लगा दी और मैं फ़िर से उत्तेजित हो गई।
इसके साथ साथ महेश जी एक हाथ से मेरे दूसरे उरोज को मसलने लगे और एक हाथ से कपड़ों के ऊपर से ही मेरी योनि को सहलाने लगे, मेरे मुँह से फ़िर से सिसकारियाँ फ़ूटने लगी। उत्तेजना का मुझ पर एक नशा सा हो गया और पता नहीं कब महेश जी ने मेरी साड़ी और पेटीकोट को उतार दिया। अब मैं नीचे से बिल्कुल नँगी हो गई थी क्योंकि पेंटी तो मैंने ना मिलने के कारण पहनी ही नहीं थी इसलिये शर्म के कारण मैं अपने दोनों हाथों से अपनी योनि को छुपा लिया।
इसके बाद महेश जी ने मेरे उरोजों को छोड़ दिया और मेरे बदन को चूमते हुए धीरे धीरे मेरे पेट की तरफ़ बढने लगे। मैं शर्म और उत्तेजना से दोहरी हो रही थी। जब महेश जी मेरी नाभि से नीचे की तरफ़ बढ़ने लगे तो पूरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ने लगी इसलिये मैंने अपने घुटने मोड़ लिये। महेश जी ने उन्हें सीधा करना चाहा मगर मैंने नहीं किये इसलिये वो उठ कर मेरे घुटनों के पास आ गये और मेरी जाँघों को चूमते हुए मेरी योनि की तरफ़ बढ़ने लगे।मगर मैंने अपनी जाँघों को भींच रखा था इसलिये महेश जी ने अपने हाथों से दबाकर फ़िर से मेरे घुटनों को सीधा कर दिया और मेरी योनि को चूमने लगे। मेरे पूरे बदन में एक आग सी भड़क उठी और मेरी योनि तो भट्टी की तरह से तपती महसूस हो रही थी। इसके बाद महेश जी अपनी जीभ को निकाल कर मेरी योनि के ऊपर के हिस्से को जीभ से सहलाने लगे।
मैंने अपनी जाँघों को भींच रखा था इसलिये उनकी जीभ ठीक से मेरी योनि तक नहीं पहुँच रही थी मगर फ़िर भी जब महेश जी अपनी जीभ को नीचे मेरी योनि तक पहुँचाने की कोशिश करते तो मेरी जाँघों में कंपकंपी सी होने लगी और उत्तेजना के कारण अपने आप ही मेरी जाँघें खुल गई। अब महेश जी की जीभ मेरी पूरी योनि पर घूमने लगी। मेरी योनि फ़िर से पानी से लबालब हो गई जिसे महेश जी अपनी जीभ से चाट चाट कर साफ़ करने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे और कभी कभी तो वो मेरी छोटी सी योनि को साबुत ही अपने मुँह में भर कर इतनी जोर से चूस लेते कि मैं छटपटाने लगती और मेरे मुँह से ईइइइशशश…अआआहहहह… की जोर से आवाज निकल जाती।
महेश जी अपनी जीभ को मेरे दाने पर और योनि द्वार के चारो तरफ़ घुमा रहे थे जिससे मेरे रोम रोम सुलग उठा और मेरी योनि से पानी रिस रिस कर बाहर आने लगा। उत्तेजना से मेरी हालत खराब हो रही थी इसलिये मैं जोर जोर से सिसकारियाँ भरने लगी। मैं चाह रही थी कि उनकी जीभ मेरी योनि में प्रवेश कर जाये और पहले की तरह ही वो अपनी जीभ से मेरी इस आग को शांत कर दें मगर महेश जी ऐसा नहीं चाहते थे वो तो जानबूझ कर मुझे तरसा रहे थे। जब कभी महेश जी मेरी योनि के प्रवेश द्वार में हल्का सा डालते तो मेरे मुँह से इईशश..श… श… अआआ..ह…ह.. की आवाज निकल जाती और अपने आप मेरे कूल्हे ऊपर उठ जाते ताकि उनकी जीभ मेरी योनि में गहराई तक समा जाये मगर महेश जी तुरंत अपना मुँह मेरी योनि पर से हटा लेते और मुस्कुराने लगते।
कुछ देर ऐसे ही तड़फाने के बाद महेश जी ने मेरी योनि को छोड़ दिया और अपनी टी-शर्ट उतार कर मेरे ऊपर लेट गये।

 अब महेश जी बिल्कुल नंगे थे उनके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। महेश जी का भार 70-75 किलोग्राम से ज्यादा ही होगा और मेरा मुश्किल से 40 किलोग्राम था, उनके विशाल शरीर के नीचे मेरा नाजुक कली सा पूरा बदन ढक गया था पता नहीं कैसे मैं उनका भार सहन कर पा रही थी। मेरा यह पहला अवसर था जब मेरा नंगा बदन किसी पुरुष के नंगे बदन का स्पर्श पा रहा था जो कि बड़ा ही सुखद था।
महेश जी की बालो से भरी नंगी छाती से मेरे छोटे छोटे उरोज दब रहे थे और उनके लिंग की गरमाहट को मैं अपनी योनि पर महसूस कर रही थी। इसके बाद महेश जी मेरी गर्दन व गालों पर चुम्बन करने लगे और साथ ही अपने शरीर को भी आगे पीछे हिलाने लगे जिससे मुझे बहुत मजा आ रहा था क्योंकि उनकी नंगी छाती से मेरे उरोज मसले जा रहे थे और उनका गर्म लिंग मेरी योनि पर रगड़ खा रहा था। मैं बस आँखें बँद करके सिसकारियाँ भर रही थी।
जब महेश जी क़ो लगा कि मैं पूरी तरह से मस्त हो गई हूँ तो महेश जी ने एक हाथ से मेरी गर्दन को थोड़ा सा ऊपर उठा कर मेरे होंठों को अपने मुँह में ले लिया और अपने घुटनों से मेरी जाँघें फैला कर दूसरे हाथ से अपने लिंग को मेरी योनि के प्रवेश द्वार पर लगा के एक जोर का झटका मारा जिससे उनके मोटे लिंग का एक चौथाई भाग मेरी छोटी सी योनि को चीरता हुआ अन्दर चला गया।
यह सब इतना अचानक हुआ कि मैं कुछ समझ ही नहीं पाई। मेरे मुँह से बस घुटी हुई उऊऊँऊँ..ऊँ…ऊँ… हहुहु हुँहुँ..हुँ…हुँ… उउउउ..उ…उ…ह… की आवाज निकली व दर्द से मेरी आँखें बाहर उबल पड़ी, उनमें आँसू भर आये और मेरी योनि से खून का फव्वारा निकल पड़ा। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी योनि में जबरदस्ती कोई मोटी लोहे की जलती हुई छड़ घुसा दी हो। मेरे होंठ महेश जी के मुँह में थे इसलिये मेरा मुँह बँद था नहीं तो मेरे मुँह से इतनी जोर से चीख निकलती की सारे घरवाले जाग जाते। मैं बस उँहह..ह… उँघुँघुँ..घुँ… करके रह गई। मेरी सारी उत्तेजना गायब हो गई और मैं दर्द से तड़पने लगी, मैंने महेश जी की कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और उन्हें पीछे धकेलने लगी ताकि उनका लिंग मेरी योनि से बाहर निकल जाये मगर महेश जी ने अपनी कमर को छुड़वा लिया और मेरे दोनों हाथों की कलाइयों को मेरी गर्दन के पास अपने दोनों हाथों से इस तरह दबा लिया कि अब मैं ना तो अपने हाथ हिला सकती थी और ना ही अपनी गर्दन को हिला पा रही थी।
इसके बाद महेश जी ने अपने लिंग को थोड़ा सा बाहर खींच लिया जिससे मुझे कुछ राहत मिली मगर फिर से उन्होंने जोरदार झटका मारा। अब की बार उनका आधे से ज्यादा लिंग मेरी योनि में चला गया, मैं दर्द से बिलबिलाने लगी और अपने आप को छुड़ाने का प्रयास करने लगी मगर सफल नहीं हो पा रही थी।
कुछ देर रुक कर फिर से उन्होंने लिंग को बाहर खींचा और एक बार फिर से जोरदार झटका मारा इस बार उनका पूरा लिंग मेरी योनि में समा गया। मेरी आँखों के आगे अँधेरा सा छा गया और मैं दर्द से बुरी तरह तड़पने लगी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे महेश जी का लिंग मेरी योनि को चीरकर मेरे पेट तक पहुँच गया है और मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी क्योंकि मेरे दोनों हाथों को महेश जी ने अपने हाथों से दबा रखा था जिनको मैं हिला भी नहीं पा रही थी और मेरे होंठ भी उनके मुँह में थे जिससे मैं चिल्ला भी नहीं सकती और अगर गर्दन को थोड़ा सा भी हिलाती तो महेश जी मेरे होंठों को दाँत से काट लेते जिससे भी मुझे बहुत दर्द हो रहा था।
मैं बिल्कुल विवश और लाचार हो गई, बस मेरे पैर ही आजाद थे जिनको मैं जोर जोर से बेड पर पटकने लगी। 
इसके बाद महेश जी अपनी कमर को धीरे धीरे आगे पीछे हिलाने लगे जिससे उनका लिंग मेरी योनि में अन्दर बाहर होने लगा, जब उनका लिंग बाहर जाता तो मुझे कुछ राहत मिलती मगर जब वो अन्दर जाता तो मुझे ऐसा लगता कि जैसे उनका लिंग मेरी योनि व पेट को फाड़ कर पीछे मेरी कमर से बाहर निकल जायेगा। दर्द के कारण मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मैं कुछ बोल तो नहीं पा रही थी मगर अपनी गीली आँखों से महेश जी से अपने आप को छोड़ देने की भीख माँग रही थी और जोर जोर से अपने पैर बेड पर पटक रही थी मगर महेश जी पर ना तो मेरी आँसुओं से भरी आँखों का और ना ही मेरे पैर पटकने का कोई असर हो रहा था, वो तो बस मेरी योनि पर वार पर वार किये जा रहे थे, उनका एक एक वार मेरी योनि को तहस नहस कर रहा था और मैं दर्द से तड़प रही थी।
कुछ देर बाद असहनीय दर्द के कारण मेरा शरीर जैसे संज्ञा-शून्य सा हो गया क्योंकि मेरे पेट के नीचे के भाग पर मुझे कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे मेरी नाभि के नीचे कुछ है ही नहीं। मगर महेश जी लगातार धीरे धीरे धक्के लगाते रहे।
कुछ देर तक मैं ऐसे ही जड़ सी होकर पड़ी रही और अपने आप धीरे धीरे फिर से मेरे शरीर में चेतना आने लगी मगर अब मुझे इतना अधिक दर्द नहीं हो रहा था। कुछ देर बाद तो मेरा दर्द गायब ही हो गया और धीरे धीरे दर्द की जगह आनन्द ने ले ली, मैं फिर से उत्तेजित हो गई, अब महेश जी के झटकों से मुझे दर्द नहीं हो रहा था बल्कि सुख मिल रहा था इसलिये मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और बिल्कुल शाँत सी हो गई।
महेश जी धक्के लगाते हुए मेरे होंठों को बुरी तरह चूस रहे थे। मेरे होंठों को महेश जी ने अपने मुँह में लेकर बँद कर रखा था मगर फिर भी उत्तेजना के कारण मेरे मुँह से उँहु…हुँ…हुँ.. उँह…हुँ…हुँ… उँह…हुँ…हुँ… की आवाज निकलने लगी। कुछ देर बाद जब महेश जी को लगा कि मैं शांत हो गई हूँ तो उन्होंने मेरे हाथों को छोड़ दिया और एक हाथ से मेरे उरोजों को सहलाने लगे और मेरी गर्दन व गालों पर चुम्बन करने लगे।
अब मेरे होंठ और हाथ दोनों आजाद हो गये थे इसलिये मैंने अपने दोनों हाथों से महेश जी के कँधों को पकड़ लिया और अपने आप ही उत्तेजना के कारण मेरे मुँह से इईशश..श…श… अआआहहा..हाँ…हाँ… इईशश..श…श… अआहहा..हम्म…हाँ… की मादक सिसकारियाँ निकलने लगी जिससे महेश जी का जोश दोगुना हो गया और वो तेजी से धक्का लगाने लगे।
मेरी भी साँसें तेज हो गई और सिसकारियों की आवाज बढ़ गई। सर्दी का मौसम था फिर भी हम दोनों के शरीर पसीने से पूरे गीले हो गये और साँसें उखड़ने लगी। पूरा कमरा मेरी सिसकारियों और हम दोनों की साँसों की आवाजों से गूंजने लगा।
धीरे धीरे मेरा मजा बढ़ता गया और कुछ देर बाद मेरे पूरे शरीर में आनन्द की एक लहर दौड़ गई, मेरे हाथ-पैर महेश जी की कमर से लिपट गये और मेरे कूल्हे अपने आप ऊपर उठ गये, मेरे मुँह से इईशश..श…श… अआहह..ह…ह… की जोर से आवाज निकली और मैं अपनी योनि से ढेर सारा पानी छोड़ते हुए शाँत हो गई।
कुछ देर बाद महेश जी भी चरम पर पहुँच गये उन्होंने मेरे शरीर को कश कर पकड़ लिया और अआह.प..आ…य…अ…ल.. इईशशश.. श…श… मेरी ज.आ..न… कहा और उनका लिंग ढेर सारा गर्म वीर्य मेरी योनि में उगलने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी योनि में कोई गर्म लावा फ़ूट पड़ा हो जो मेरी योनि से रिस कर मेरी गुदा छिद्र पर भी बहने लगा और वो शाँत हो गये।
अब पूरे कमरे में सन्नाटा सा छा गया था, बस हम दोनों की उखड़ी हुई साँसों की ही आवाज आ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कमरे में कोई तूफान आ गया था और अब वो गुजर गया है।
कुछ देर महेश जी मेरे ऊपर ऐसे ही पड़े रहे और जब वो उठने लगे तो मेरा ध्यान उनके लिंग व जाँघों पर चला गया जिन पर खून लगा हुआ था। कमरे में इतनी अधिक रोशनी तो नहीं थी मगर महेश जी की जाँघों और लिंग पर लगे खून को देखने के लिये पर्याप्त थी। मैं तुरन्त अपनी योनि को देखने के लिये उठी तो मुझे योनि में बहुत पीड़ा महसूस हुई मगर मैं फिर भी उठ कर बैठ गई और अपनी योनि को देखने लगी।
मेरी योनि से अब भी खून और वीर्य रिस रिस कर बाहर आ रहा था और मेरी जाँघें व योनि खून से लथपथ थी, चादर पर भी काफ़ी खून गिरा हुआ था, इतना खून देखकर मैं घबरा गई। मैं खड़ी होकर लाईट जलाने लगी तो असहनीय दर्द के कारण मेरी आँखों में फिर से आँसू भर आए और मैं बेड से नीचे गिर पड़ी।
महेश जी ने मुझे उठाया और गोद में उठा कर बाथरुम में ले गये, मेरी योनि व जाँघो को साफ किया और मुझे दर्द की एक दवा भी खिला दी। इसके बाद महेश जी ने बिस्तर की चादर को बदली करके मुझे कम्बल औढ़ाकर सुला दिया और कुछ देर बाद मुझे नींद आ गई।
यह मेरा पहला सहवास था जो कि बहुत ही दर्द भरा मगर आन्नदायक भी था।
सुबह करीब ग्यारह बजे मेरी नींद खुली। वैसे भी छुट्टियाँ चल रही थी इसलिये मैं रोजाना ही देर तक सोती रहती थी, यह सोचकर किसी ने मुझे जगाया भी नहीं।
जब मैं उठी तो मेरा पूरा बदन दर्द कर रहा था और मेरे होंठ भी कुछ भारी भारी से लग रहे थे। जब बाथरुम जाने लगी तो मेरे पैर लड़खड़ाने लगे मेरी योनि तो इतना दर्द कर रही थी कि मैं ठीक से चल भी नहीं सकती थी।
बाहर भैया भाभी खड़े हुए थे, भैया ने पूछा- बड़ी देर तक सोती हो?
मैंने चेहरे पर झूठी मुस्कान लाकर कहा- वो भैया मेरी छुट्टियाँ चल रही है ना इसलिये !
और जल्दी से बाथरुम में घुस गई। जब मैं शौच करने लगी तो मेरे योनि द्वार में इतनी जलन हुई कि मेरी आँखों से आँसू निकल आये क्योंकि रात को महेश जी के लिंग से मेरी योनि जख्मी हो गई थी और जब उसमें मेरा नमकीन पेशाब लग रहा था तो वो जलन करने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे मूत्र द्वार से पेशाब नहीं बल्कि तेजाब निकल रहा है जो मेरी योनि को जला रहा है।









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