FUN-MAZA-MASTI
फाड़ डालो मेरे राजा
मुझे चुदाई बेहद पसन्द है। मैं चुदाई बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती। मैंने कई तरीके के लंड डलवाए, चूसे और चाटे हैं, लेकिन जब बारी आई मुझे लाईसेंस प्राप्त लंड मिलने की.. तो रब ने मेरे साथ अन्याय किया।
मेरे पति का लंड ना बड़ा था ना मोटा था और वो ना ही चुदाई से पहले खुलकर खेल खेलते। बस पहली रात जब उन्होने शुरुआत की थी तो मुझे पूरी-पूरी उम्मीद थी कि मुझे सही बंदा मिल गया है।
लेकिन धीरे-धीरे उनका जोश सामान्य होने लगा था। उनके पास काफी पैसा था लेकिन एक औरत को पैसे के अलावा ऐसा मर्द चाहिए होता है, जो दिन भर की थकान को उतार कर औरत को फूल जैसी हल्की करके ही सुलाए। लेकिन हाय..! मुझे कहाँ नसीब था यह कि पति मसल कर हल्की करके, मुझे नंगी अपनी बाँहों में सुलाए।
मैंने कई बार कुछ सोचा था। पहली रात आई पति देखने में ठीक-ठाक थे।
मैं रात को ग्यारह बजे के करीब रूम में बैठी हुई थी। वो कमरे में आए, दरवाज़ा बंद किया, मुझे देखा मुस्कुरा कर, मैंने चेहरा झुका लिया। मुझे एक डर था कहीं शादी की पहले की गलतियाँ पकड़ी ना जाएँ।
वे लाईट बंद करके मेरे करीब बैड पर बैठे- कैसी हो जान… इंतज़ार कर रही थी..!
मैंने चुप्पी साधी रखी।
वे मेरे होंठ को धीरे-धीरे चूमने लगे- बोलो न जान.. खाना नहीं खाया क्या..!
अब क्या कहूँ उन्हें.. खैर फिर उन्होंने ही चोली की डोरी खींची, हाथों से अलग किया।
काली ब्रा में मेरा दूध सा सफ़ेद रंग का चिकना पेट.. उन्होने मेरे पेट को चूमा। पहले तो लहंगे में हाथ घुसा दिया, फिर लहंगे को खोल दिया।
मैं बड़ी खुश थी कि शायद जो मर्द मुझे चाहिए था, मिल गया। मैंने शर्म का खूब नाटक किया।
इन्होंने मुझे पलटा और मेरे चूतड़ों पर हाथ फेरा, मेरे ऊपर लेट गए।
मुझे कुछ हार्ड-हार्ड चीज़ फील हुई, मैं खुश थी कि लंड खड़ा था, हाय घुस जाए.. जल्दी से.. लेकिन मैं वैसा कुछ नहीं कर पा रही थी।
अचानक पैंटी के ऊपर से मेरी चूत पर हाथ फेरा, मुझको आग लगा डाली और जांघें सहलाने लगे, मेरी ब्रा खोल डाली, मेरे सेक्सी सोफ्ट-सोफ्ट बेहद उत्तेजक बड़े-बड़े मम्मे नंगे हो गए। वो दबाने लगे।
कई हाथों से दब चुके थे मेरे मम्मे..। अब नहीं रहा गया, मैंने भी धीरे से उनकी उसकी तरफ हाथ बढ़ाया। उससे पहले ही वे खड़े हुए, अपना पजामा उतार दिया और अंडरवियर भी उतार दिया। मेरा हाथ अपने लंड पर रख दिया। मैंने आंखें बंद कर रखी थीं।
“लो पकड़ो.. मेरी जान.. सहलाओ।”
मेरा दिल सा टूट गया, मैंने आंखें खोलीं। तोंद निकली हुई थी। नीचे छोटा ‘पुच्चू’ सा लंड था।
“सहलाओ मेरी जान..”
और फिर मेरी टांगें खोलने लगे, वो लंड घुसाना चाहते थे। मैंने भी रास्ता दे दिया और उन्होने अपना लंड घुसा दिया और चोदने लगे। मैंने उनका साथ दिया ‘आहें’ भर-भर कर चुदवाया और पांच मिनट में लुड़क गए, हांफने लगे, लेट गए..।
मैं आधी अधूरी सी उनके बगल में लेट गई और नाईटी पहन ली। बस रोज़ ऐसे होता अब तो वो चूमते-चामते भी कम थे। निकाला और डालते.. हिलाते.. निकालते.. धुस्स.. और सो जाते थे।
खैर ऐसे समय बीता, एक दिन इनके मौसा जी ने हमें खाने पर बुलाया। वो अकेले रहते थे, मौसी कनाडा में बेटे के पास रहती थीं।
मौसा जी ने खुद को खूब मेंटेन कर रखा था।
मैंने खुले गले का सूट, ऊपर से कसा हुआ था, पहन लिया। मेरा क्लीवेज बेहद कामुक नजर आ रही थी।
वो अकेले थे इसलिए मैं खुद सब सर्व कर रही थी, सब होटल से मंगवाया था।
मैंने नोट किया मौसा जी की तिरछी नजर मेरे वक्ष पर थी। उधर पटियाला सलवार में मेरे चूतड़ उभर कर सेक्सी दिख रहे थे।
मौसा जी बोले- तुम टी.वी. देखो, हम थोड़ी महफ़िल सजा लें।
दोनों दारु पीने लगे। मैं उनको कुछ न कुछ देने तो जाती ही जाती थी। मौसा जी की तिरछी नज़र ने मेरे जिस्म में भी कुछ पल के लिए हलचल की थी।
मेरे देवता जी जल्दी टल्ली होते थे।
तभी मुझे माँ का फ़ोन आया, मैं सुनने के लिए बाहर पोर्च में खड़ी बात कर रही थी, तभी किसी ने पीछे से मेरी उभरी गांड को सहलाया। मैं चौंकी और घूमी.. सीधी मेरी कड़क छाती.. मौसा जी के सीने से सट गई।
वे बोले- सॉरी.. सॉरी.. हमने सोचा ना जाने तू कहाँ चली गई। चलो खाना खाते हैं, तेरे पति को काफी हो गई है।
“बस अभी आती हूँ मौसा जी।”
उन्होंने बेहद ललचाई नज़रों से मुझे देखा और बोले- अगर कहो तो यहीं कुछ खिला दूँ !
मैं कुछ नहीं बोल पाई और अन्दर चली गई सोफे पर बैठे बैठे ही मेरे देवता जी झूल रहे थे।
मैं रसोई में गई और माइक्रोवेव में सब्जी वगैरह गर्म करने लगी।
मौसा जी फिर से आए, बोले- चलो मैं मदद कर देता हूँ।
मैंने कुछ नहीं कहा, जहाँ मैं खड़ी थी वो वहीं ऊपर से डिब्बा उतारने के लिए बढ़े, तो उनका निशाना शायद मेरी गांड थी। बहाने से उनका लंड वहाँ मुझे छूने लगा। मुझे अजीब सा सुख मिला। उनका लंड काफी कड़क था। मदद के बहाने कई बार मुझे जगह-जगह पर हाथ लगाया।
बोले- तुम कितनी गुणी और खूबसूरत हो, तुझे तो कोई हैण्डसम लड़का मिलना चाहिए था। कहाँ यहाँ आकर बंध सी गई हो !
मैंने कहा- छोड़िये मौसा जी.. मैं बहुत खुश हूँ।
“वो तो कहोगी ही।”
मुझे लगा शायद आज कुछ न कुछ होने वाला है, तभी मौसा जी लॉबी से गिलास उठा लाए। उसमें शराब थी।
बोले- पी लो थोड़ी सी.. तुझे भी मस्त नींद आएगी।
“नहीं.. मौसा जी, मैंने कभी नहीं पी..”
“आज पी लो.. देखो मैंने तुम दोनों को दावत पर बुलाया है। पहली बार आई हो.. मेरा दिल रखने के लिए दो घूँट खींच डालो।”
उनके जोर देने पर मैंने वो पैग खींचा। तब तक मैंने पूरा खाना गर्म कर दिया था, टेबल पर लगाने लगी मेरा सर घूमने लगा था। मस्त दुनिया दिख रही थी, मानो पाँव ज़मीन पर नहीं लग रहे थे।
मैं सलाद काटने रसोई में गई, तभी मौसा जी आए। मेरे पीछे खड़े हो गए, मेरा ध्यान सामने था। जब मैं मुड़ी.. फिर से मौसा जी के सीने से मेरे मम्मे दब गए।
“आप..!”
“हाँ.. सोचा तुझे रसोई में कंपनी दे दूँ। यह तो खाना खाने वाला नहीं और शायद आज रात तुम दोनों यही रुक लो। ऐसी हालत में यह ड्राईव नहीं कर पाएगा। आज तुम हमारे यहाँ सो जाओ।”
मुझे अब नशा सा था मैंने भी डबल मीनिंग बातें शुरू कर दीं।
“कोई बात नहीं.. यह नहीं जा सकते तो इनके बगल में सो जाऊँगी। जैसे रोज़ रात को इनके साथ लेटती हूँ।”
बोले- कभी-कभी जगह बदल लेनी चाहिए, चेंज बहुत ज़रूरी है।
“वैसे आप कितने अकेले से हो.. अकेले लेटते हो है..ना.. मौसा जी !”
“तभी तो तुम दोनों को यहीं रुकने के लिए कह रहा हूँ।”
“लेकिन फिर भी लेटोगे तो अकेले।”
“तुम दूसरे रूम में होगी.. यही सोच कर सो जाऊँगा, पर होगी तो तुम भी एक किस्म की अकेली ही शराब में मस्त…!”
“हो गया है.. चलो खाना खाएं.. कट गया सलाद।”
“अगर चाहो तो तुम कुछ भी काट सकती हो।”
मैं चुप रही, फिर खाना खाया।
“चलो इसको कमरे में लिटा देता हूँ, जरा मेरा साथ देना।”
उनको छोड़ने.. पकड़ने.. के बहाने मुझे छू रहे थे। उनको लिटाते-लिटाते मौसा जी मुझे लेकर बैड पर गिर गए। यह उनकी सोची समझी चाल थी।
“मुझे तो इन कपड़ों में नींद नहीं आएगी.. ना ही कोई कपड़ा लाई हूँ।”
“क्या हुआ रूम बंद कर लेना और आराम से लेटना। समझ गई ना.. मैं क्या कह रहा हूँ?”
“हाँ.. समझ गई हूँ।”
“मैं अभी आया.. जब तक तुम वो बाथरूम में फ्रेश हो लो।”
थोड़ी देर में लौटे तो उनके हाथ में पैग था।
“फिर से..!”
“हाँ.. खाना हजम हो जाता है.. पी लो थोड़ी..।”
उनके कहने पर आधा पैग खींचा।
बोले- यह लो तेरी आंटी की नाईटी, गुड नाईट कह कर चले गए। मैंने सलवार-कमीज़ उतार दी, लेकिन नाईटी नहीं पहनी। दरवाज़ा भी बंद नहीं किया था।
तभी अचानक से वो कंबल देने आए, लाईट जलाई, मैं हाथों से अपने जिस्म को ढकने लगी।
“सॉरी.. सॉरी.. मुझे नहीं मालूम था कि नाईटी नहीं पहनी।”
“मैंने सोचा कि सुबह उठकर ही पहन कर निकलूँगी।”
“एक बार पहन कर दिखा दो।” वो बाहर निकले, मैंने दरवाज़े को हल्का सा बंद किया उठकर पहनने लगी। अचानक मौसा जी अन्दर आए। मुझे बाँहों में भर लिया और जगह-जगह मेरे जिस्म को चूमने लगे।
“अह अह उह उह !” कर मैं उनकी हर हरकत का आनन्द उठाने लगी। ऐसे प्यार के लिए मचल रही थी।
“जानेमन चाहे कुछ भी मत पहनो.. तेरा अपना ही घर है।”
“ओह आप भी ना..!”
उन्होंने मुझे पकड़ा, कमरे का दरवाज़ा बाहर से बंद किया। मुझे उठा कर अपने बिस्तर में ले गए। मेरे मम्मों के दीवाने होकर रह गए।
“वाह मेरी लाडो.. क्या मस्त यौवन पाया है.. लंगूर के हाथ हूर लग गई… हम क्या मर गए हैं।”
मैंने उनके लंड को पकड़ लिया, उनका पजामा उतारा और अंडरवियर खींच दिया।
उनका भयंकर सा लटकता लंड देख कर मेरी चूत में आग लग गई, मैंने जल्दी से मुँह में भर लिया और चूसने लगी।
“हाय.. आपका कितना बड़ा है..!”
“क्यूँ.. क्या हुआ..! तेरे देवता का बड़ा नहीं है क्या..!”
मैं पागलों की तरह उनका लंड को अपने थूक से भिड़ा कर के उसको चाट रही थी। मौसा जी मेरे इस अंदाज़ से पागल हुए जा रहे थे।
“अह.. बेबी और चूस बेबी.. सक इट.. यस कम ऑन बेबी चूस ..साली माँ की लौड़ी.. तेरी बहन की चूत.. कुतिया कमीनी साली कितनी गर्म है और इतनी देर से भोली बन-बन कर दिखा रही थी..!”
“साले मौसा हरामी.. तेरे रिश्ते और उम्र की शर्म मार रही थी, मैं तो कब से तेरे नीचे पिसना चाहती थी। आ… खाजा मेरे इस जिस्म को फाड़ डाल मेरी फुद्दी धज्जियाँ उड़ा दे.. मेरी चूत की.. आज तेरी बहू तुझे पूरा-पूरा सुख देगी अह.. अह..!”
अब मौसा जी का लंड इतना बड़ा हो चुका था कि अब उसको चूसना कठिन था। इसलिए सिर्फ सुपाड़े को चूसती.. बाकी उसको जड़ तक जुबान बाहर निकाल-निकाल कर लपर-लपर चाटने लगी।
“हाय कितनी प्यारी दिखती हो.. लंड खाती हुई..!”
“तेरा लंड है ही बेहद मस्त..!”
मौसा बोले- राकेश कह कर बोल न !
“हाय राकेश जानू.. तेरा लंड कितना बड़ा है..! मेरी चूत मचलने लगी है..!”
“साली देख तुझे कितना मजा दूँगा। बस तू टांगें खोल दे.. मेरी रानी।” वो नीचे की तरफ सरके और मेरी चूत पर ऊँगली फेरी, दाने को छेड़ा, मैं तड़प उठी। ऊँगली से चूत के होंठों को अलग किया और जुबान रख दी।
“हाय राकेश.. मुझे तेरी मर्दानगी बहुत ज़बरदस्त दिख रही है..!”
उसने अपनी जुबान के करतब दिखा-दिखा कर मेरा पानी निकलवा दिया। कई दिन से मेरी चूत ढंग से चुद नहीं पाई थी। मौसा जी के लंड का माल बहुत टेस्टी था।
मैंने उनके लंड को माल निकलने के बाद भी नहीं छोड़ा। क्यूंकि मैं दुबारा जल्दी से खड़ा करवा कर चुदना चाहती थी।
वो बैड को ओट लगा, मेरा चुदाई के प्रति पागलपन को देख रहे थे।
“साली तुम तो बहुत कमीनी औरत निकलीं..!”
“राकेश आपके लंड ने मुझे कमीनी कर दिया है और अब तो मैं साले को अपनी फुद्दी में डलवा कर पूरा-पूरा सुख भोगना चाहती हूँ।” मैंने उनके टट्टे मतलब उनकी गोलियों को मुँह में डाल लिया।
वो पागल होने लगे और उनका लंड और मेरी मेहनत सफल हुई, पर कसम खुदा की मैंने इतनी जल्दी कोई लंड दुबारा तैयार होते नहीं देखा था।
“ले साली तेरी अमानत..!” मैं उनकी तरफ गांड करके घोड़ी बन गई। उन्होनें मेरी फुद्दी पर थूका और पहले ऊँगली घुसाई, दूसरी ऊँगली मेरी गांड के छेद में घुसी और ‘फच-फच’ की मधुर आवाज़ सुनने लगी।
“राकेश कमीना बनकर उतार डालो अपनी बहू की फुद्दी में अपना मूसल जैसा लंड..!”
“ले साली..!” कह मेरी फुद्दी को चीरता हुआ उनका मूसल मेरे अन्दर हलचल करने लगा करने लगा।
हाय कसम खुदा की.. मेरी तो खुजली ख़तम कर डाली.. कितने दिन हो गए थे.., ढंग से चुदी भी नहीं थी।
“फाड़ डालो मेरे राजा हाय… मर गई कितना बड़ा लंड है..”
मौसा नीचे से घोड़ी की लगाम की तरह मेरे हिल रहे मम्मे पकड़ दबाने लगे और झटके पर झटके लगाने लगे। फिर मुझे लिटाया एक टांग उठाई अपने कंधे पर रख कर मेरे बिल्कुल पीछे लेते हुए लंड घुसा दिया।
अब क्या बताऊँ..! ऐसी चुदाई को मैं बयान भी नहीं कर सकती। रात भर हम दोनों कमरे में बंद रहे। मेरी पूरी मेरी गांड मारना चाहते थे, लेकिन जब घुसा तो मुझे दर्द हुआ।
वो बोले- मैं तुझे ऐसा दर्द नहीं दूँगा।
फिर कभी सही.. क्यूंकि उनका घर हमारे से आठ किलोमीटर था। तीन बजे उठी अटैच बाथरूम था.. नाईटी पहन कर मैं पति के रूम में उनके बगल में लेट गई। हल्की होकर कितनी मस्त नींद आई। पूरा आनंद उठाया।
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फाड़ डालो मेरे राजा
मुझे चुदाई बेहद पसन्द है। मैं चुदाई बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती। मैंने कई तरीके के लंड डलवाए, चूसे और चाटे हैं, लेकिन जब बारी आई मुझे लाईसेंस प्राप्त लंड मिलने की.. तो रब ने मेरे साथ अन्याय किया।
मेरे पति का लंड ना बड़ा था ना मोटा था और वो ना ही चुदाई से पहले खुलकर खेल खेलते। बस पहली रात जब उन्होने शुरुआत की थी तो मुझे पूरी-पूरी उम्मीद थी कि मुझे सही बंदा मिल गया है।
लेकिन धीरे-धीरे उनका जोश सामान्य होने लगा था। उनके पास काफी पैसा था लेकिन एक औरत को पैसे के अलावा ऐसा मर्द चाहिए होता है, जो दिन भर की थकान को उतार कर औरत को फूल जैसी हल्की करके ही सुलाए। लेकिन हाय..! मुझे कहाँ नसीब था यह कि पति मसल कर हल्की करके, मुझे नंगी अपनी बाँहों में सुलाए।
मैंने कई बार कुछ सोचा था। पहली रात आई पति देखने में ठीक-ठाक थे।
मैं रात को ग्यारह बजे के करीब रूम में बैठी हुई थी। वो कमरे में आए, दरवाज़ा बंद किया, मुझे देखा मुस्कुरा कर, मैंने चेहरा झुका लिया। मुझे एक डर था कहीं शादी की पहले की गलतियाँ पकड़ी ना जाएँ।
वे लाईट बंद करके मेरे करीब बैड पर बैठे- कैसी हो जान… इंतज़ार कर रही थी..!
मैंने चुप्पी साधी रखी।
वे मेरे होंठ को धीरे-धीरे चूमने लगे- बोलो न जान.. खाना नहीं खाया क्या..!
अब क्या कहूँ उन्हें.. खैर फिर उन्होंने ही चोली की डोरी खींची, हाथों से अलग किया।
काली ब्रा में मेरा दूध सा सफ़ेद रंग का चिकना पेट.. उन्होने मेरे पेट को चूमा। पहले तो लहंगे में हाथ घुसा दिया, फिर लहंगे को खोल दिया।
मैं बड़ी खुश थी कि शायद जो मर्द मुझे चाहिए था, मिल गया। मैंने शर्म का खूब नाटक किया।
इन्होंने मुझे पलटा और मेरे चूतड़ों पर हाथ फेरा, मेरे ऊपर लेट गए।
मुझे कुछ हार्ड-हार्ड चीज़ फील हुई, मैं खुश थी कि लंड खड़ा था, हाय घुस जाए.. जल्दी से.. लेकिन मैं वैसा कुछ नहीं कर पा रही थी।
अचानक पैंटी के ऊपर से मेरी चूत पर हाथ फेरा, मुझको आग लगा डाली और जांघें सहलाने लगे, मेरी ब्रा खोल डाली, मेरे सेक्सी सोफ्ट-सोफ्ट बेहद उत्तेजक बड़े-बड़े मम्मे नंगे हो गए। वो दबाने लगे।
कई हाथों से दब चुके थे मेरे मम्मे..। अब नहीं रहा गया, मैंने भी धीरे से उनकी उसकी तरफ हाथ बढ़ाया। उससे पहले ही वे खड़े हुए, अपना पजामा उतार दिया और अंडरवियर भी उतार दिया। मेरा हाथ अपने लंड पर रख दिया। मैंने आंखें बंद कर रखी थीं।
“लो पकड़ो.. मेरी जान.. सहलाओ।”
मेरा दिल सा टूट गया, मैंने आंखें खोलीं। तोंद निकली हुई थी। नीचे छोटा ‘पुच्चू’ सा लंड था।
“सहलाओ मेरी जान..”
और फिर मेरी टांगें खोलने लगे, वो लंड घुसाना चाहते थे। मैंने भी रास्ता दे दिया और उन्होने अपना लंड घुसा दिया और चोदने लगे। मैंने उनका साथ दिया ‘आहें’ भर-भर कर चुदवाया और पांच मिनट में लुड़क गए, हांफने लगे, लेट गए..।
मैं आधी अधूरी सी उनके बगल में लेट गई और नाईटी पहन ली। बस रोज़ ऐसे होता अब तो वो चूमते-चामते भी कम थे। निकाला और डालते.. हिलाते.. निकालते.. धुस्स.. और सो जाते थे।
खैर ऐसे समय बीता, एक दिन इनके मौसा जी ने हमें खाने पर बुलाया। वो अकेले रहते थे, मौसी कनाडा में बेटे के पास रहती थीं।
मौसा जी ने खुद को खूब मेंटेन कर रखा था।
मैंने खुले गले का सूट, ऊपर से कसा हुआ था, पहन लिया। मेरा क्लीवेज बेहद कामुक नजर आ रही थी।
वो अकेले थे इसलिए मैं खुद सब सर्व कर रही थी, सब होटल से मंगवाया था।
मैंने नोट किया मौसा जी की तिरछी नजर मेरे वक्ष पर थी। उधर पटियाला सलवार में मेरे चूतड़ उभर कर सेक्सी दिख रहे थे।
मौसा जी बोले- तुम टी.वी. देखो, हम थोड़ी महफ़िल सजा लें।
दोनों दारु पीने लगे। मैं उनको कुछ न कुछ देने तो जाती ही जाती थी। मौसा जी की तिरछी नज़र ने मेरे जिस्म में भी कुछ पल के लिए हलचल की थी।
मेरे देवता जी जल्दी टल्ली होते थे।
तभी मुझे माँ का फ़ोन आया, मैं सुनने के लिए बाहर पोर्च में खड़ी बात कर रही थी, तभी किसी ने पीछे से मेरी उभरी गांड को सहलाया। मैं चौंकी और घूमी.. सीधी मेरी कड़क छाती.. मौसा जी के सीने से सट गई।
वे बोले- सॉरी.. सॉरी.. हमने सोचा ना जाने तू कहाँ चली गई। चलो खाना खाते हैं, तेरे पति को काफी हो गई है।
“बस अभी आती हूँ मौसा जी।”
उन्होंने बेहद ललचाई नज़रों से मुझे देखा और बोले- अगर कहो तो यहीं कुछ खिला दूँ !
मैं कुछ नहीं बोल पाई और अन्दर चली गई सोफे पर बैठे बैठे ही मेरे देवता जी झूल रहे थे।
मैं रसोई में गई और माइक्रोवेव में सब्जी वगैरह गर्म करने लगी।
मौसा जी फिर से आए, बोले- चलो मैं मदद कर देता हूँ।
मैंने कुछ नहीं कहा, जहाँ मैं खड़ी थी वो वहीं ऊपर से डिब्बा उतारने के लिए बढ़े, तो उनका निशाना शायद मेरी गांड थी। बहाने से उनका लंड वहाँ मुझे छूने लगा। मुझे अजीब सा सुख मिला। उनका लंड काफी कड़क था। मदद के बहाने कई बार मुझे जगह-जगह पर हाथ लगाया।
बोले- तुम कितनी गुणी और खूबसूरत हो, तुझे तो कोई हैण्डसम लड़का मिलना चाहिए था। कहाँ यहाँ आकर बंध सी गई हो !
मैंने कहा- छोड़िये मौसा जी.. मैं बहुत खुश हूँ।
“वो तो कहोगी ही।”
मुझे लगा शायद आज कुछ न कुछ होने वाला है, तभी मौसा जी लॉबी से गिलास उठा लाए। उसमें शराब थी।
बोले- पी लो थोड़ी सी.. तुझे भी मस्त नींद आएगी।
“नहीं.. मौसा जी, मैंने कभी नहीं पी..”
“आज पी लो.. देखो मैंने तुम दोनों को दावत पर बुलाया है। पहली बार आई हो.. मेरा दिल रखने के लिए दो घूँट खींच डालो।”
उनके जोर देने पर मैंने वो पैग खींचा। तब तक मैंने पूरा खाना गर्म कर दिया था, टेबल पर लगाने लगी मेरा सर घूमने लगा था। मस्त दुनिया दिख रही थी, मानो पाँव ज़मीन पर नहीं लग रहे थे।
मैं सलाद काटने रसोई में गई, तभी मौसा जी आए। मेरे पीछे खड़े हो गए, मेरा ध्यान सामने था। जब मैं मुड़ी.. फिर से मौसा जी के सीने से मेरे मम्मे दब गए।
“आप..!”
“हाँ.. सोचा तुझे रसोई में कंपनी दे दूँ। यह तो खाना खाने वाला नहीं और शायद आज रात तुम दोनों यही रुक लो। ऐसी हालत में यह ड्राईव नहीं कर पाएगा। आज तुम हमारे यहाँ सो जाओ।”
मुझे अब नशा सा था मैंने भी डबल मीनिंग बातें शुरू कर दीं।
“कोई बात नहीं.. यह नहीं जा सकते तो इनके बगल में सो जाऊँगी। जैसे रोज़ रात को इनके साथ लेटती हूँ।”
बोले- कभी-कभी जगह बदल लेनी चाहिए, चेंज बहुत ज़रूरी है।
“वैसे आप कितने अकेले से हो.. अकेले लेटते हो है..ना.. मौसा जी !”
“तभी तो तुम दोनों को यहीं रुकने के लिए कह रहा हूँ।”
“लेकिन फिर भी लेटोगे तो अकेले।”
“तुम दूसरे रूम में होगी.. यही सोच कर सो जाऊँगा, पर होगी तो तुम भी एक किस्म की अकेली ही शराब में मस्त…!”
“हो गया है.. चलो खाना खाएं.. कट गया सलाद।”
“अगर चाहो तो तुम कुछ भी काट सकती हो।”
मैं चुप रही, फिर खाना खाया।
“चलो इसको कमरे में लिटा देता हूँ, जरा मेरा साथ देना।”
उनको छोड़ने.. पकड़ने.. के बहाने मुझे छू रहे थे। उनको लिटाते-लिटाते मौसा जी मुझे लेकर बैड पर गिर गए। यह उनकी सोची समझी चाल थी।
“मुझे तो इन कपड़ों में नींद नहीं आएगी.. ना ही कोई कपड़ा लाई हूँ।”
“क्या हुआ रूम बंद कर लेना और आराम से लेटना। समझ गई ना.. मैं क्या कह रहा हूँ?”
“हाँ.. समझ गई हूँ।”
“मैं अभी आया.. जब तक तुम वो बाथरूम में फ्रेश हो लो।”
थोड़ी देर में लौटे तो उनके हाथ में पैग था।
“फिर से..!”
“हाँ.. खाना हजम हो जाता है.. पी लो थोड़ी..।”
उनके कहने पर आधा पैग खींचा।
बोले- यह लो तेरी आंटी की नाईटी, गुड नाईट कह कर चले गए। मैंने सलवार-कमीज़ उतार दी, लेकिन नाईटी नहीं पहनी। दरवाज़ा भी बंद नहीं किया था।
तभी अचानक से वो कंबल देने आए, लाईट जलाई, मैं हाथों से अपने जिस्म को ढकने लगी।
“सॉरी.. सॉरी.. मुझे नहीं मालूम था कि नाईटी नहीं पहनी।”
“मैंने सोचा कि सुबह उठकर ही पहन कर निकलूँगी।”
“एक बार पहन कर दिखा दो।” वो बाहर निकले, मैंने दरवाज़े को हल्का सा बंद किया उठकर पहनने लगी। अचानक मौसा जी अन्दर आए। मुझे बाँहों में भर लिया और जगह-जगह मेरे जिस्म को चूमने लगे।
“अह अह उह उह !” कर मैं उनकी हर हरकत का आनन्द उठाने लगी। ऐसे प्यार के लिए मचल रही थी।
“जानेमन चाहे कुछ भी मत पहनो.. तेरा अपना ही घर है।”
“ओह आप भी ना..!”
उन्होंने मुझे पकड़ा, कमरे का दरवाज़ा बाहर से बंद किया। मुझे उठा कर अपने बिस्तर में ले गए। मेरे मम्मों के दीवाने होकर रह गए।
“वाह मेरी लाडो.. क्या मस्त यौवन पाया है.. लंगूर के हाथ हूर लग गई… हम क्या मर गए हैं।”
मैंने उनके लंड को पकड़ लिया, उनका पजामा उतारा और अंडरवियर खींच दिया।
उनका भयंकर सा लटकता लंड देख कर मेरी चूत में आग लग गई, मैंने जल्दी से मुँह में भर लिया और चूसने लगी।
“हाय.. आपका कितना बड़ा है..!”
“क्यूँ.. क्या हुआ..! तेरे देवता का बड़ा नहीं है क्या..!”
मैं पागलों की तरह उनका लंड को अपने थूक से भिड़ा कर के उसको चाट रही थी। मौसा जी मेरे इस अंदाज़ से पागल हुए जा रहे थे।
“अह.. बेबी और चूस बेबी.. सक इट.. यस कम ऑन बेबी चूस ..साली माँ की लौड़ी.. तेरी बहन की चूत.. कुतिया कमीनी साली कितनी गर्म है और इतनी देर से भोली बन-बन कर दिखा रही थी..!”
“साले मौसा हरामी.. तेरे रिश्ते और उम्र की शर्म मार रही थी, मैं तो कब से तेरे नीचे पिसना चाहती थी। आ… खाजा मेरे इस जिस्म को फाड़ डाल मेरी फुद्दी धज्जियाँ उड़ा दे.. मेरी चूत की.. आज तेरी बहू तुझे पूरा-पूरा सुख देगी अह.. अह..!”
अब मौसा जी का लंड इतना बड़ा हो चुका था कि अब उसको चूसना कठिन था। इसलिए सिर्फ सुपाड़े को चूसती.. बाकी उसको जड़ तक जुबान बाहर निकाल-निकाल कर लपर-लपर चाटने लगी।
“हाय कितनी प्यारी दिखती हो.. लंड खाती हुई..!”
“तेरा लंड है ही बेहद मस्त..!”
मौसा बोले- राकेश कह कर बोल न !
“हाय राकेश जानू.. तेरा लंड कितना बड़ा है..! मेरी चूत मचलने लगी है..!”
“साली देख तुझे कितना मजा दूँगा। बस तू टांगें खोल दे.. मेरी रानी।” वो नीचे की तरफ सरके और मेरी चूत पर ऊँगली फेरी, दाने को छेड़ा, मैं तड़प उठी। ऊँगली से चूत के होंठों को अलग किया और जुबान रख दी।
“हाय राकेश.. मुझे तेरी मर्दानगी बहुत ज़बरदस्त दिख रही है..!”
उसने अपनी जुबान के करतब दिखा-दिखा कर मेरा पानी निकलवा दिया। कई दिन से मेरी चूत ढंग से चुद नहीं पाई थी। मौसा जी के लंड का माल बहुत टेस्टी था।
मैंने उनके लंड को माल निकलने के बाद भी नहीं छोड़ा। क्यूंकि मैं दुबारा जल्दी से खड़ा करवा कर चुदना चाहती थी।
वो बैड को ओट लगा, मेरा चुदाई के प्रति पागलपन को देख रहे थे।
“साली तुम तो बहुत कमीनी औरत निकलीं..!”
“राकेश आपके लंड ने मुझे कमीनी कर दिया है और अब तो मैं साले को अपनी फुद्दी में डलवा कर पूरा-पूरा सुख भोगना चाहती हूँ।” मैंने उनके टट्टे मतलब उनकी गोलियों को मुँह में डाल लिया।
वो पागल होने लगे और उनका लंड और मेरी मेहनत सफल हुई, पर कसम खुदा की मैंने इतनी जल्दी कोई लंड दुबारा तैयार होते नहीं देखा था।
“ले साली तेरी अमानत..!” मैं उनकी तरफ गांड करके घोड़ी बन गई। उन्होनें मेरी फुद्दी पर थूका और पहले ऊँगली घुसाई, दूसरी ऊँगली मेरी गांड के छेद में घुसी और ‘फच-फच’ की मधुर आवाज़ सुनने लगी।
“राकेश कमीना बनकर उतार डालो अपनी बहू की फुद्दी में अपना मूसल जैसा लंड..!”
“ले साली..!” कह मेरी फुद्दी को चीरता हुआ उनका मूसल मेरे अन्दर हलचल करने लगा करने लगा।
हाय कसम खुदा की.. मेरी तो खुजली ख़तम कर डाली.. कितने दिन हो गए थे.., ढंग से चुदी भी नहीं थी।
“फाड़ डालो मेरे राजा हाय… मर गई कितना बड़ा लंड है..”
मौसा नीचे से घोड़ी की लगाम की तरह मेरे हिल रहे मम्मे पकड़ दबाने लगे और झटके पर झटके लगाने लगे। फिर मुझे लिटाया एक टांग उठाई अपने कंधे पर रख कर मेरे बिल्कुल पीछे लेते हुए लंड घुसा दिया।
अब क्या बताऊँ..! ऐसी चुदाई को मैं बयान भी नहीं कर सकती। रात भर हम दोनों कमरे में बंद रहे। मेरी पूरी मेरी गांड मारना चाहते थे, लेकिन जब घुसा तो मुझे दर्द हुआ।
वो बोले- मैं तुझे ऐसा दर्द नहीं दूँगा।
फिर कभी सही.. क्यूंकि उनका घर हमारे से आठ किलोमीटर था। तीन बजे उठी अटैच बाथरूम था.. नाईटी पहन कर मैं पति के रूम में उनके बगल में लेट गई। हल्की होकर कितनी मस्त नींद आई। पूरा आनंद उठाया।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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