Wednesday, July 16, 2014

FUN-MAZA-MASTI मेरी पत्नी का राज

FUN-MAZA-MASTI

 मेरी पत्नी का राज

 विनय पाठक ने आणन्द, गुजरात से अपनी आप बीती को एक लेख के रूप में मुझे भेजी है। वैसे तो यह आम सी बात है और बहुतों की जिंदगी आपसी समझ की कमी से कुछ इसी तरह की हो जाती है और अलगाव बढ़ जाता है। पर फिर जिंदगी में कोई आ जाता है तो दुनिया महक उठती है रंगीन हो जाती है।मेरी उमर अब लगभग 46 वर्ष की हो चुकी है। मैं अपना एक छोटा सा बिजनेस चलाता हूँ। 20 साल की उम्र में शादी के बाद मेरी जिंदगी बहुत खूबसूरत रही थी, ऐसा लगता था कि जैसे यह रोमान्स भरी जिंदगी यूं ही चलती रहेगी। उन दिनों जब देखो तब हम दोनों खूब चुदाई करते थे। मेरी पत्नी सुमन बहुत ही सेक्सी युवती थी। फिर समय आया कि मैं एक लड़के का बाप बना। उसके लगभग एक साल बीत जाने के बाद सुमन ने फिर से कॉलेज जॉयन करने की सोच ली। वो ग्रेजुएट होना चाहती थी। नये सेशन में जुलाई से उसने एडमिशन ले लिया... फिर चला एक खालीपन का दौर... सुमन कॉलेज जाती और आकर बस बच्चे में खो जाती। मुझे कभी चोदने की इच्छा होती तो वो बहाना कर के टाल देती थी। एक बार तो मैंने वासना में आकर उसे खींच कर बाहों में भर लिया... नतीजा ... गालियाँ और चिड़चिड़ापन।मुझे कुछ भी समझ में नहीं आता था कि हम दोनों में ऐसा क्या हो गया है कि छूना तक उसे बुरा लगने लगा था। इस तरह सालों बीत गये। उसकी इच्छा के बिना मैं सुमन को छूता भी नहीं था, उसके गुस्से से मुझे डर लगता था। मेरा लड़का भी 21 वर्ष का हो गया और उसने अपने लिये बहुत ही सुन्दर सी लड़की भी चुन ली। उसका नाम कोमल था। बी कॉम करने के बाद उसने मेरे बिजनेस में हाथ बंटाना चालू कर दिया था। मेरी पत्नी के व्यवहार से दुखी हो कर मेरे लड़के विजय ने अपना अलग घर ले लिया था। घर में अधिक अलगाव होने से अब मैं और मेरी पत्नी अलग अलग कमरे में सोते थे। एकदम अकेलापन ... सुमन एक प्राईवेट स्कूल में नौकरी करने लगी थी। उसकी अपनी सहेलियाँ और दोस्त बन गये थे। तब से उसके एक स्कूल के टीचर के साथ उसकी अफ़वाहें उड़ने लगी थी... मैंने भी उन्हें होटल में, सिनेमा में, गार्डन में कितनी ही बार देखा था। पर मजबूर था... कुछ नहीं कह सकता था। मेरे बेटे की पत्नी कोमल दिन को अक्सर मुझसे बात करने मेरे पास आ जाती थी। मेरा मन इन दिनों भटकने लगा था। मैं दिनभर या तो सेक्सी कहानियाँ पढ़ता रहता था या फिर पोर्न साईट पर चुदाई के वीडियो देखता रहता था। फिर मुठ मार कर सन्तोष कर लेता था। कोमल ही एक स्त्री के रूप में मेरे सामने थी, वही धीरे धीरे मेरे मन में छाने लगी थी। उसे देख कर मैं अपनी काम भावनायें बुनने लगता था। इस बात से कोसों दूर कि कि वो मेरे घर की बहू है। कोमल को देख कर मुझे लगता था कि काश यह मुझे मिल जाती और मैं उसे खूब चोदता ... पर फिर मुझे लगता कि यह पाप है... पर क्या करता... पुरुष मन था... और स्त्री के नाम पर कोमल ही थी जो कि मेरे पास थी। एक दिन कोमल ने मुझे कुछ खास बात बताई। उससे दो चीज़ें खुल कर सामने आ गई। एक तो मेरी पत्नी का राज खुल गया और दूसरे कोमल खुद ही चुदने तैयार हो गई। कोमल के बताये अनुसार मैंने रात को एक बजे सुमन को उसके कमरे में खिड़की से झांक कर देखा तो... सब कुछ समझ में आ गया... वो अपना कमरा क्यों बंद रखती थी, यह राज़ भी खुल गया। एक व्यक्ति उसे घोड़ी बना कर चोद रहा था। सुमन वासना में बेसुध थी और अपने चूतड़ हिला हिला कर उसका पूरा लण्ड ले रही थी। उस व्यक्ति को मैं पहचान गया वो उसके कॉलेज टाईम का दोस्त था और उसी के स्कूल में टीचर था। मैंने यह बात कोमल को बताई तो उसने कहा- मैंने कहा था ना, मां जी का सुरेश के साथ चक्कर है और रात को वो अक्सर घर पर आता है। "हाँ कोमल... आज रात को तू यहीं रह जा और देखना... तेरी सासू मां क्या करती है।" "जी , मैं विजय को बोल कर रात को आ जाऊंगी..." शाम को ही कोमल घर आ गई, साथ में अपना नाईट सूट भी ले आई... उसका नाईट सूट क्या था कि बस... छोटे से टॉप में उसके स्तन उसमे आधे बाहर छलक पड़ रहे थे। उसका पजामा नीचे उसके चूतड़ों की दरार तक के दर्शन करा रहा था। पर वो सब उसके लिये सामान्य था। उसे देख कर तो मेरा लौड़ा कुलांचे भरने लगा था। मैं कब तक अपने लण्ड को छुपाता। कोमल की तेज नजरों से मेरा लण्ड बच ना पाया। वो मुस्करा उठी। कोमल ने मेरी वासना को और बाहर निकाला- पापा... मम्मी से दूर रहते हुए कितना समय हो गया... ? "बेटी, यही करीब 16-17 साल हो चुके हैं !" "क्या ?? इतना समय... साथ भी नहीं सोये...??" "साथ सोये ? हाथ भी नहीं लगाया...!" "तभी... !" "क्या तभी...?" मैंने आश्चर्य से पूछा। "पापा... कभी कोई इच्छा नहीं होती है क्या?" "होती तो है... पर क्या कर सकता हूँ... सुमन तो छूने पर ही गन्दी गालिया देती है।" "तू नहीं और सही...। पापा प्यार की मारी औरतें तो बहुत हैं..." "चल छोड़ !!! अब आराम कर ले... अभी तो उसे आने में एक घण्टा है...चल लाईट बंद कर दे !" "एक बात कहूँ पापा, आपका बेटा तो मुझे घास ही नहीं डालता है... वो भी मेरे साथ ऐसे ही करता है !" कोमल ने दुखी मन से कहा। "क्या तो ... तू भी... ऐसे ही...?" "हाँ पापा... मेरे मन में भी तो इच्छा होती है ना !" "देखो तुम भी दुखी, मैं भी दुखी..." मैंने उसके मन की बात समझ ली... उसे भी चुदाई चाहिये थी... पर किससे चुदाती... बदनाम हो जाती... कहीं ???... कहीं इसे मुझसे चुदना तो नहीं है... नहीं... नहीं... मैं तो इसका बाप की तरह हूँ... छी:... पर मन के किसी कोने में एक हूक उठ रही थी कि इसे चुदना ही है। कोमल ने बत्ती बन्द कर दी। मैंने बिस्तर पर लेते लेटे कोमल की तरफ़ देखा। उसकी बड़ी बड़ी प्यासी आँखें मुझे ही घूर रही थी। मैंने भी उसकी आँखों से आँखें मिला दी। कोमल बिना पलक झपकाये मुझे प्यार से देखे जा रही थी। वो मुझे देखती और आह भरती... मेरे मुख से भी आह निकल जाती। आँखों से आँखें चुद रही थी। चक्षु-चोदन काफ़ी देर तक चलता रहा... पर जरूरत तो लण्ड और चूत की थी। आधे घण्टे बाद ही सुमन के कमरे में रोशनी हो उठी। कोमल उठ गई। उसकी वासना भरी निगाहें मैं पहचान गया। "पापा वो लाईट देखो... आओ देखें..." हम दोनों दबे पांव खिड़की पर आ गये। कल की तरह ही खिड़की का पट थोड़ा सा खुला था। कोमल और मैंने एक साथ अन्दर झांका। सुरेश ने अपने कपड़े उतार रखे थे और सुमन के कपड़े उतार रहा था। नंगे हो कर अब दोनों एक दूसरे के अंगों को सहला रहे थे। अचानक मुझे लगा कि कोमल ने अपनी गाण्ड हिला कर मेरे से चिपका ली है। अन्दर का दृश्य और कोमल की हरकत ने मेरा लौड़ा खड़ा कर दिया... मेरा खड़ा लण्ड उसकी चूतड़ों की दरार में रगड़ खाने लगा। उधर सुमन ने लण्ड पकड़ कर उसे मसलना चालू कर दिया था और बार-बार उसे अपनी चूत में घुसाने का प्रयत्न कर रही थी। अनायास ही मेरा हाथ कोमल की चूचियों पर गया और मैंने उसकी चूचियाँ दबा दी। उसके मुँह से एक आह निकल गई। मुझे पता था कि कोमल का मन भी बेचैन हो रहा था। मैंने नीचे लण्ड और गड़ा दिया। उसने अपने चूतड़ों को और खोल दिया और लण्ड को दरार में फ़िट कर लिया। कोमल ने मुझे मुड़ कर देखा। फ़ुसफ़ुसाती हुई बोली,"पापा... प्लीज... अपने कमरे में !" मैं धीरे से पीछे हट गया। उसने मेरा हाथ पकड़ा... और कमरे में ले चली। "पापा... शर्म छोड़ो... और अपने मन की प्यास बुझा लो... और मेरी खुजली भी मिटा दो !" उसकी विनती मुझे वासना में बहा ले जा रही थी। "पर तुम मेरी बहू हो... बेटी समान हो..." मेरा धर्म मुझे रोक रहा था पर मेरा लौड़ा... वो तो सर उठा चुका था, बेकाबू हो रहा था। मन तो कह रहा था प्यारी सी कोमल को चोद डालूँ... "ना पापा... ऐसा क्यों सोच रहे हैं आप? नहीं... अब मैं एक सम्पूर्ण औरत हूँ और आप एक सम्पूर्ण मर्द... हम वही कर रहे हैं जो एक मर्द और औरत के बीच में होता है।" कोमल ने मेरा लण्ड थाम लिया और मसलने लगी। मेरी आह निकल पड़ी। जवानी लण्ड मांग रही थी। मेरा सारा शरीर जैसे कांप उठा,"देखा कैसा तन्ना रहा है... बहू !" "बहू घुस गई गाण्ड में पापा...रसीली चूत का आनन्द लो पापा...!" कोमल पूरी तरह से वासना में डूब चुकी थी। मेरा पजामा उसने नीचे खींच दिया। मेरा लौड़ा फ़ुफ़कार उठा। "सच है कोमल... आजा अब जी भर के चुदाई कर ले... जाने ऐसा मौका फिर मिले ना मिले। " मैं कोमल को चोदने के लिये बताब हो उठा। "मेरा पजामा उतार दो ना और ये टॉप... खीच दो ऊपर... मुझे नंगी करके चोद दो ... हाय..." मैंने उसका पजामा जो पहले ही चूतड़ों तक था उसे पूरा उतार दिया और टॉप ऊपर से उतार दिया। उसका सेक्सी शरीर भोगने लिये मेरा लौड़ा तैयार था। मैं बहू बेटी का रिश्ता भूल चुका था। बस लण्ड चूत का रिश्ता समझ में आ रहा था। हम दोनों आपस में लिपट पड़े और बिस्तर पर कूद पड़े। उसने मेरे शरीर को नोचना और दबाना चालू कर दिया और और अपने होंठों को मेरे चेहरे पर बुरी तरह रगड़ने लगी। उसके दांत जैसे मेरे गालों पर गड़ गये। उसकी नई बेताब जवानी, मुझ पर भारी पड़ रही थी। उसके इस कदर नोचने खरोंचने से मेरे मुख एक धीमी सी चीख निकल पड़ी। मेरा लण्ड उफ़ान पर आ गया। वो मेरे ऊपर सवार थी, उसकी चूत मेरे लण्ड पर बार बार पटकनी खा रही थी। मुझसे सहा नहीं जा रहा था। "कोमल... चुदवा ले ना अब... देख मेरी क्या हालत हो गई है।" उसने प्यार से मेरे लण्ड को दबा लिया और चूत को ऊपर उठा कर सेट कर लिया और लौड़ा चूत में समा लिया। मुझे लगा जैसे बरसों की इच्छा पूरी हो गई हो। जो चीज़ मुश्किल से मिलती है वो अनमोल होती है। इसलिये मुझे लगा कि कोमल को नाराज नहीं करना चाहिये, वर्ना मेरा लण्ड फिर से लटका ही रह जायेगा। मैं उसकी चूत में लण्ड धीरे-धीरे अन्दर बाहर करने लगा। पर उसकी जवानी तो तेजी मांग रही थी। उसने अपनी चूत कस ली और ऊपर से कस-कस के चोदने लगी... और... मेरी मुश्किल हो गई। सालों बाद चुदाई को लण्ड सह नहीं पाया और वीर्य छूट पड़ा। उसकी ताजा जवानी सच में मुझसे कुछ अधिक ही मांग रही थी। "कोमल... हाय निकल गया मेरा माल तो...""पापा... निकाल दो प्लीज... पूरा निकाल दो...फिर से जमेंगे... निकाल दो..." कोमल ने मुझे प्यार से सहारा दिया। मैं ढीला पड़ गया, लण्ड बाहर निकल आया था। मुझे यह सब बहुत ही सुहाना लग रहा था। कोमल ने वापस धीरे-धीरे मुझे चूमना चाटना शुरू कर दिया। मेरे लण्ड से खेलने लगी। प्यार से अपनी अपनी चूत मेरे मुख पर लगा दी और गीली चूत का रस पिलाने लगी। अपने बोबे पर मेरे हाथ रख कर दबाने लगी। अपनी गाण्ड को मेरे मुख पर रख दिया... मैंने भी शौक से जवान गाण्ड के छेद में जीभ घुसा कर चाट डाला। इतनी देर में मेरा लण्ड फिर से तन्ना उठा। "पापा मुझे घोड़ी बना कर चोदो।" "हां ऐसे मजा तो आयेगा... देखा नहीं सुमन कैसे चुदवाती है..." मैं बिस्तर से उतर कर उसके पीछे आ गया। उसने अपने चूतड़ों को पीछे उभार लिया। सामने मुझे उसकी चिकनी गाण्ड और उसका प्यारा सा छेद दिख गया। "कोमल गाण्ड से शुरु करें...?" "गाण्ड के बहुत शौकीन लगते हैं आप पापा ..?" "वो मर्द ही क्या जिसने गाण्ड ही न मारी !" "हाँ पापा... फिर गाण्ड कोमल की हो तो क्या बात है ... लण्ड गाण्ड मारे बिना छोड़ेगा नहीं... है ना... हाय पापा... गया अन्दर ..." "अब देख दूसरे दौर में मेरे लण्ड का कमाल... तेरी गाण्ड अब गेटवे ऑफ़ इन्डिया बनने वाली है... और चूत भोसड़ा बनने वाली है" मैंने जोश में कहा और कोमल हंस पड़ी... और सिसकारियाँ भरने लगी। "पापा मार दो गाण्ड ... जरा जोर से मारना... मेरी गाण्ड भी बहुत प्यासी है...अह्ह्ह्ह्ह" मैंने लण्ड खींच के निकाला और दबा कर अन्दर तक घुसा डाला... कोमल ने अपने होंठ भींच लिये... उसे दर्द हुआ था... "हाय राम... मर गई... जरा नरमाई से ना..." "ना अब यह जोश में आ गया है... मत रोको इसे... मरवा लो ठीक से अब !" दूसरा झटका और तेज था। उसने आँखें बंद कर ली और दर्द के मारे अपने होंठ काट लिये। मैंने लण्ड निकाल कर उसकी गाण्ड की छेद पर थूक का लौन्दा लगाया और फिर से लण्ड घुसा डाला। इस बार उसे नहीं लगी और लण्ड ने पूरी गहराई ले ली। उसकी गाण्ड की दीवारें मेरे लण्ड से रगड़ खा रही थी। मुझे मजा आने लगा था। उसकी सीत्कार भरी हाय नहीं रुकी थी। पर शायद दर्द तो था। मुझे गाण्ड मारने का मजा पूरा आ चुका था, मैंने उसे और तकलीफ़ ना देकर चूत चोदना ही बेहतर समझा। जैसे ही लण्ड गाण्ड से बाहर निकाला, कोमल ने जैसे चैन की सांस ली। "कोमल... चल टांगें और खोल दे... अब चूत का मजा लें..." कोमल ने आंसू भरे चहरे से मुझे देखा और हंस पड़ी। "बहुत रुलाया पापा... अब मस्ती दे दो ना..." मुझे उसकी हालात नहीं देखी गई। "सॉरी कोमल... आगे से ध्यान रखूंगा !" "नहीं पापा... यही तो गाण्ड मराने का मजा है... दर्द और चुदाई... न तो फिर क्या गाण्ड मराई..." उसकी हंसी ने महौल फिर से वासनामय बना दिया। मैंने उसकी चूत के पट खोल डाले और अन्दर गुलाबी चूत में लण्ड को घिसा... उसका दाना लण्ड के सुपाड़े से रगड़ दिया। वो कुछ ही पलों में किलकारियाँ भरने लगी। चूत की गुदगुदी से खिलखिला कर हंस पड़ी। ये वासना भरी किलकारियाँ और हंसी मुझे और उत्तेजित कर रही थी। उसकी गुलाबी चूत पर लण्ड का घिसना उसे भी सुहा रहा था और मुझे भी सुहा रहा था। बीच-बीच में मैं अपना लण्ड धक्का दे कर जड़ तक चोद देता था। फिर वापस निकाल कर उसकी रस भरी चूत को लण्ड से घिसने लगता था। उसकी चूत से पानी टपकने लगा था। उसने मेरा लौड़ा पकड़ पर अपने दाने पर कई बार रगड़ा मारा और फिर मस्त हो उठती थी। वो मेरे लण्ड के पास मेरे टट्टों को भी सहला देती थी। टट्टों को वो धीरे धीरे सहलाती थी। अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था। मै अब चूत में अपना लण्ड अन्दर दबाने लगा, और पूरा जड़ तक पहुंचा दिया। लगा कि अभी और घुस सकता है। मैंने थोड़ा सा लण्ड बाहर निकाला और जोर से पूरा दम लगा कर लण्ड को घुसेड़ मारा। उसके मुँह से फिर एक चीख निकल पड़ी," आय हाय पापा... फ़ाड़ ही डालोगे क्या?" "सॉरी... पर लण्ड तो पूरा घुसाये बिना मजा नहीं आता है ना" "सॉरी... चोदो पापा... आपका लण्ड तो पुराना पापी लगता है..." और हंस पड़ी। चुदाई जोरों से चालू हो गई... कोमल मस्ती में तड़प उठी। वो घोड़ी की तरह हिनहिनाने लगी... सिसकारियाँ भरने लगी। मेरी भी सीत्कारें निकल रही थी। "हाय बिटिया... चूत है या भोसड़ी... साली है मजे की... क्या मजा आ रहा है...चला गाण्ड... जोर से..." "पापा... जोर से चोद डालो ना... दे लण्ड... फ़ोड़ दो चूत को... माईईइ रे...आह्ह्ह्ह्ह्...ऊईईईइ" उसकी कठोर हुई नरम चूचियाँ मसल मसल कर लाल कर दी थी। चुचूक कठोर हो गये थे...। दोनों स्तनों को भींच कर चुदाई चल रही थी। चूचियों को मलने से वो अति उत्तेजित हो चुकी थी। दांत भीच कर कस कर कमर हिला कर चुदवा रही थी। "पापा... मैं गई... अरे रे... चुद गई... वो... वो... निकला... हाय रे... माऽऽऽऽऽऽऽ" कहते हुए कोमल ने अपना रस छोड़ दिया। वो झड़ने लगी। मैंने उसके बोबे छोड़ दिये और लण्ड पर ध्यान केन्द्रित किया। लण्ड को जड़ तक घुसा कर दबाव डाला... और दबाते ही गया। उसे अन्दर लगने लगी। "पापा...बस ना... अब नहीं..." "चुप हो जा रे... मेरा निकलने वाला है..." "पर मेरी तो फ़ट जायेगी ना..." "आह आअह्ह्ह रे... मैं आया... आह्ह्ह्ह्... निकल रहा है... कोमलीईईईइ" मैंने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया। "कोमल... कोमल... इधर...आ..." मैंने कोमल के बाल पकड़ कर जल्दी से उसके मुँह को मेरे लण्ड पर रख दिया। कोमल तब तक समझ गई थी। उसने वीर्य छूटते ही मुँह में लौड़ा घुसा लिया। मेरा रस पिचकारी के रूप में निकल पड़ा। कोमल वीर्य को गटागट निगलने लगी। फिर अन्त में गाय का दूध निकालने की तरह से लण्ड दुहने लगी और बचा हुआ माल भी निकाल कर चट कर गई। "पापा... आपके रस से तो पेट ही भर गया।" मैंने उसे नंगी ही लिपटा लिया...। "कोमल बेटी... शुक्रिया... तूने मेरे मन को समझा... मेरी आग बुझा दी।" "पापा... मैं तो बहुत पहले से आपकी इच्छा को जानती थी... आपके पी सी में नंगी तस्वीरें और डाऊनलोड की गई
 
" "सच ...तो पहले क्यों नहीं बताया..." "शरम और धरम के मारे... आज तो बस सब कुछ अपने आप ही हो गया और मैं आपसे चुद बैठी।" कोमल के और मेरे होंठ आपस में मिल गये... उमर का तकाजा था... मुझे थकान चढ़ गई और मैं सो गया। सुबह उठते ही कोमल ने चाय बनाई... मैंने उसे समझाया,"कोमल देखो, आपस में चोदा-चादी करने से घर की बात घर में ही रहती है... प्लीज किसी सहेली से भी इस बात का जिक्र नहीं करना। सब कुछ ठीक चलता रहे तो ऐसे गुप्त रिश्ते मस्ती से भरे होते हैं।" "पापा, मेरी एक आण्टी को चोदोगे... बेचारी का मर्द बहुत पहले ही शांत हो गया था।" "ठीक है तू माल ला और मुझे मस्त कर दे... बस..." हम दोनों एक दूसरे का राज लिये मुस्कुरा उठे। अब मैं उसे मेरे दोस्तो से चुदवाता हूँ और वो मेरे लिये नई नई आण्टियाँ चोदने के लिये दोस्ती कराती है।







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