FUN-MAZA-MASTI
घर का बिजनिस --3
मैंने कहा- लेकिन अम्मी, इस तरह तो मुझे आपकी शलवार को भी थोड़ा नीचे करना पड़ेगा। कर दूँ क्या?
अम्मी के मुँह से बस एक होन्न की आवाज ही निकल सकी और कुछ नहीं।
मैंने अम्मी की इसी हूँ को इकरार समझा और थोड़ा सा पीछे हट गया और अम्मी की एलास्टिक वाली शलवार को घुटनों तक नीचे कर दिया। जिससे अम्मी की सफेद और नरम गाण्ड मेरी आँखों के सामने नंगी हो गई। ये नजारा देखकर मैं पागल होने के करीब हो गया और मजे की शिद्दत से मेरा लण्ड भी झटके खाने लगा था। अब मैंने अम्मी की गाण्ड पे हल्का सा तेल गिरा दिया और थोड़ा सा तेल जानबूझकर अम्मी की गाण्ड की दरार में भी गिरा दिया और अम्मी के गोल और नरम चूतड़ों को मसलने लगा।
कुछ देर इसी तरह मालिश करने के बाद मैंने आहिस्ता से हाथ घुमाते हुये अम्मी की गाण्ड के सुराख की तरफ अपने हाथ का अंगूठा ले गया और वहीं रोक लिया और दूसरे हाथ से मालिश करने लगा। फिर मैंने अपने हाथ के अंगूठे को आहिस्ता से अम्मी के गाण्ड के सुराख पे लगा दिया और वहीं घुमाने लगा।
जिससे अम्मी आअहह की हल्की आवाज भी करने लगी।
जिससे मैं समझ गया कि लाइन क्लियर है। अब मैं अम्मी की रानों से थोड़ा ऊपर को उठा और अम्मी की रानों को थोड़ा खोल दिया जिससे मुझे अम्मी की फुद्दी भी हल्की सी नजर आने लगी जो कि अम्मी की फुद्दी से रिसने वाले पानी से बुरी तरह गीली हो रही थी।
मैंने अपना एक हाथ जो कि अम्मी की गाण्ड के सुराख को सहला रहा था वहीं रहने दिया और दूसरा हाथ अम्मी की रानों में घुसा दिया और मालिश करने लगा और साथ ही अम्मी की गीली फुद्दी को भी हल्का सा छूने लगा।
मेरे इस तरह करने से अम्मी के मुँह से आअहह… उन्म्मह… की आवाज के साथ ही- “हाँ बेटा तुम्हारे हाथ में तो जादू है। सच में मालिश का मजा आ रहा है आअहह…”
अम्मी की मुँह से निकालने वाली आवाज़ों और अल्फ़ाज को सुनकर मुझे भी थोड़ा हौसला हुआ और मैंने अपने हाथ को अचानक अम्मी की फुद्दी के ऊपर रखकर मसल दिया।
जिससे अम्मी तड़प उठी- “आअहह… आलोक उन्म्मह… ऊओ… हाँ बेटा, बड़ा आराम मिल रहा है…”
मैंने अम्मी की फुद्दी और गाण्ड से हाथ हटा लिया क्योंकि अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था और मेरा लण्ड भी फटने के करीब ही था। मैं अब थोड़ा आगे हो गया जिससे कि मेरा लण्ड अम्मी की नंगी गाण्ड तक आ गया तो मैंने जो चादर बँधी हुई थी उसे लण्ड के ऊपर से हटाकर नंगा किया और अम्मी की गाण्ड पे रखा और आगे को झुक गया कि जैसे कंधों की मालिश करने लगा हूँ।
अब मैं अम्मी के कंधों को मलने के साथ-साथ अपने लण्ड को अम्मी की तेल से चिकनी गाण्ड पे रगड़ने लगा और फिर थोड़ा सा ऊपर हो गया और अपने लण्ड को अम्मी की रानों की तरफ दबा दिया।
अम्मी समझ गई कि मैं क्या चाहता हूँ और इसके साथ ही अम्मी ने अपनी टाँगों को थोड़ा खोल दिया जिससे मेरा लण्ड स्लिप होकर अम्मी की फुद्दी के मुँह से जा लगा।
अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने अपने एक हाथ से लण्ड को अम्मी की फुद्दी पे सेट किया और आराम से जोर लगाने लगा। अम्मी की फुद्दी क्योंकि पहले ही काफी गीली थी और ऊपर से तेल भी लगा हुआ था जिसकी वजह से मेरा लण्ड अम्मी की फुद्दी में आराम से जाने लगा।
जैसे ही मेरे लण्ड का सुपाड़ा अम्मी की फुद्दी में घुसा अम्मी के मुँह से- “आअहह आलोक उन्हं… तुम बड़ी अच्छी मालिश करते हो मेरी जान ऊओ…”
अब मैं थोड़ा ऊपर को हुआ और अपने लण्ड पे दबाव बढ़ा दिया जिससे मेरा लण्ड अम्मी की फुद्दी में घुसता चला गया। जैसे-जैसे मेरा लण्ड अम्मी की फुद्दी में जा रहा था मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा लण्ड किसी गरम और गीले तंदूर में घुसता जा रहा हो, जिससे मुझे मजा भी ज्यादा आ रहा था।
अब मैंने अम्मी की चूचियों की तरफ हाथ बढ़ाया और जितना भी हाथ में आया उन्हें पकड़कर मसलने लगा और साथ ही अपने लण्ड को भी अम्मी की फुद्दी में अंदर-बाहर करने लगा।
जिससे अम्मी भी अब पूरी तरह मजा ले रही थी। अम्मी भी अब थोड़ा सा खुल गई और- “हाँ आलोक, अब बहुत अच्छा लग रहा है… हाँ यहाँ से ही मसलो… उन्म्मह…”
कुछ तो इतनी देर से मैं उत्तेजित हो रहा था और कुछ अपनी माँ की फुद्दी मारने से ही मेरा बुरा हाल था जिसकी वजह से मैं जल्दी ही अम्मी की फुद्दी में ही फारिग़ हो गया।
मेरे फारिग़ होते ही अम्मी बोली- “आलोक बेटा, इसी तरह मेरे ऊपर लेटे रहो, हटना नहीं… उन्हं…” और इसके साथ ही अम्मी अपनी फुद्दी को कभी टाइट करती और कभी ढीला और फिर कुछ ही देर में मुझे अम्मी की फुद्दी में कुछ गरम महसूस हुआ और मैं समझ गया कि अम्मी भी फारिग़ हो गयीं।
फारिग़ होने के बाद हम माँ बेटा कुछ देर तक इसी तरह एक दूसरे के ऊपर ही लेटे रहे। मेरा लण्ड अब अम्मी की फुद्दी में ही सिकुड़ना शुरू हो गया था लेकिन अब मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं उठकर अम्मी का सामना कर सकूं।
अम्मी ने भी ये बात महसूस कर ली थी। तभी अम्मी ने कहा- “आलोक, अब बस करो हो गई मालिश चलो अभी मुझे घर का काम भी करना है…”
मैं अम्मी के ऊपर से हटा जिससे मेरा लण्ड अम्मी की फुद्दी से बाहर आ गया और मैंने देखा कि अम्मी की फुद्दी में से मेरा सफेद पानी निकालने लगा था।
मेरे बाद अम्मी ने भी थोड़ा सा अपपनी गाण्ड को ऊपर की तरफ उठाया और बेड पे बिछी पुरानी चादर को खींच लिया और अपनी फुद्दी को उसके साथ अच्छी तरह साफ किया और फिर अपनी शलवार को भी ऊपर की तरफ खींच लिया। अब अम्मी उठकर बैठ गई और अपनी कमीज जो कि कंधों तक ऊपर थी उसे भी नीचे कर लिया और चादर को उठाकर बाहर चली गई।
उस वक़्त ना तो अम्मी ने मेरे साथ कोई बात की और ना ही मैंने अम्मी के साथ कोई बात की।
अम्मी के जाने के बाद मैंने चादर खोली और अपने कपड़े पहन लिए और फिर से बेड पे लेट गया और आँखें बंद करके कल से अब तक होने वाले वाकियात के बारे में सोचने लगा कि क्या था और क्या हो गया है? इन्हीं सोचों के बीच कब मेरी आँख लगी पता ही नहीं चला।
और जब मेरी आँख खुली तो बुआ मुझे उठा रही थी।
मैं उठा तो बुआ ने हँसते हुये कहा- “क्यों आलोक, अपनी अम्मी की मालिश करने से थक गये हो क्या?
मैं सिर्फ़ मुश्कुराकर रह गया और कुछ नहीं बोला।
तो बुआ ने कहा- चल अब उठकर नहा ले और खाना भी खा ले।
मैं उठ गया और बुआ से पूछा- क्या बाकी लोग भी घर आ चुके हैं?
बुआ ने कहा- “हाँ, तेरी बहनें भी आ गई हैं, अब ज्यादा टाइम खराब ना कर और चल खाना खा ले…”
मैंने कहा- नहीं बुआ, अभी दिल नहीं है अब टाइम भी काफी हो गया है रात का खाना ही खाऊँगा। हाँ, अभी नहा लेता हूँ…” और उठकर नहाने चला गया।
जैसे ही मैं नहाकर बाहर आया तो सामने अम्मी और दीदी बैठी हुई थी। मुझे देखते ही अम्मी ने कहा- “आलोक, यहाँ आ जरा…”
मैंने कहा- “जी अम्मी, बोलें क्या बात है…” और इसके साथ ही मैं अम्मी के पास चला गया।
अम्मी ने दीदी की तरफ देखा और कहा- “तेरी बहन ने कुछ सामान मंगवाना है। बेटा, मुझसे तो इस वक़्त जाया नहीं जायेगा तू ही ला दे इसे जो भी चाहिये है…”
मैंने दीदी की तरफ देखा और कहा- “जी दीदी, क्या मंगवाना है बताओ मुझे? मैं ला आपको दूँगा…”
दीदी जो कि अम्मी की बात सुनकर पहले ही काफी घबरा गई थी और भी घबरा गई औरबोली- “न…नहीं भ…भाई, अभी कुछ नहीं चाहिए है, अगर जरूरत हुई तो मैं आपको बता दूँगी…”
अम्मी ने कहा- “भाई है तुम्हारा, डर क्यों रही हो? बताओ जो भी मंगवाना है…”
दीदी वहाँ से उठ गई और जाते हुये बोली- “नहीं, अम्मी नहीं… मैं बाद में मंगवा लूँगी…”
मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर ऐसी कौन सी चीजेंन हैं जो कि बाजी को मंगवाना हैं लेकिन वो मुझे नहीं बता पा रही है? दीदी के जाने के बाद मैंने अम्मी की तरफ देखा और कहा- क्यों अम्मी? क्या चाहिए है दीदी को?
अम्मी हल्का सा हँस पड़ी और बोली- “बेटा, उसे डेट आने वाली है और उसे पैडस चाहिये हैं। जाओ लाकर अपनी बहन को दे दो…”
मैं अब समझा कि दीदी इतना शर्मा क्यों रही थी। मैं घर से निकला और अपनी दुकान पे चला गया और वहाँ से ही दीदी के लिए दो पैकेट ले आया और घर आकर अम्मी को देने लगा।
तो अम्मी ने कहा- “जाकर अपनी बहन को दे दो, उसे ही चाहिए हैं मुझे नहीं…” अम्मी ये बोलते हुये मुश्कुरा रही थीं।
मैं अम्मी के पास से दीदी की तरफ चला गया। दीदी उस वक़्त मेरे रूम की सफाई कर रही थीं। मैंने दीदी को देखते हुये कहा- “ये लो दीदी, आपका सामान आ गया है जो मँगवाते हुये आप इतना शर्मा रही थी…”
दीदी ने मेरे हाथ में पैड देखे तो दीदी का चेहरा एकदम लाल हो गया और दीदी ने मेरी तरफ देखे बिना पैड मुझसे छीन लिए और मेरे रूम से भाग गई।
मैं दीदी की इस हरकत पे हल्का सा मुश्कुरा दिया। दीदी के जाने के बाद मैं बेड पे लेट गया और अपने घर और यहाँ हो रहे काम के बारे में सोचने लगा कि तभी अचानक मेरे दिमाग में ख्याल आया कि कहीं दीदी भी तो अम्मी और बुआ की तरह गश्ती नहीं बन चुकी हैं? ये ख्याल आते ही मैं उठ बैठा और सोचने लगा कि दीदी के बारे में किस तरह पता चलाऊँ कि तभी मुझे याद आया कि आज रात बुआ ने तो आना ही है तो क्यों ना आज बुआ से पूछ लिया जाये।
ये ख्याल आते ही मैं फिर से लेट गया और अम्मी और बुआ की मस्त फुद्दियां, जिनकी मैं चुदाई कर चुका था, सोचने लगा और इसी तरह से टाइम गुजर गया और पता ही नहीं चला कि रात के 8:00 बज गये। रात के खाने के लिए स्वीटी मुझे बुलाने आई।
तो मैंने कहा- “यहाँ ही खाना दे जाओ…”
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घर का बिजनिस --3
मैंने कहा- लेकिन अम्मी, इस तरह तो मुझे आपकी शलवार को भी थोड़ा नीचे करना पड़ेगा। कर दूँ क्या?
अम्मी के मुँह से बस एक होन्न की आवाज ही निकल सकी और कुछ नहीं।
मैंने अम्मी की इसी हूँ को इकरार समझा और थोड़ा सा पीछे हट गया और अम्मी की एलास्टिक वाली शलवार को घुटनों तक नीचे कर दिया। जिससे अम्मी की सफेद और नरम गाण्ड मेरी आँखों के सामने नंगी हो गई। ये नजारा देखकर मैं पागल होने के करीब हो गया और मजे की शिद्दत से मेरा लण्ड भी झटके खाने लगा था। अब मैंने अम्मी की गाण्ड पे हल्का सा तेल गिरा दिया और थोड़ा सा तेल जानबूझकर अम्मी की गाण्ड की दरार में भी गिरा दिया और अम्मी के गोल और नरम चूतड़ों को मसलने लगा।
कुछ देर इसी तरह मालिश करने के बाद मैंने आहिस्ता से हाथ घुमाते हुये अम्मी की गाण्ड के सुराख की तरफ अपने हाथ का अंगूठा ले गया और वहीं रोक लिया और दूसरे हाथ से मालिश करने लगा। फिर मैंने अपने हाथ के अंगूठे को आहिस्ता से अम्मी के गाण्ड के सुराख पे लगा दिया और वहीं घुमाने लगा।
जिससे अम्मी आअहह की हल्की आवाज भी करने लगी।
जिससे मैं समझ गया कि लाइन क्लियर है। अब मैं अम्मी की रानों से थोड़ा ऊपर को उठा और अम्मी की रानों को थोड़ा खोल दिया जिससे मुझे अम्मी की फुद्दी भी हल्की सी नजर आने लगी जो कि अम्मी की फुद्दी से रिसने वाले पानी से बुरी तरह गीली हो रही थी।
मैंने अपना एक हाथ जो कि अम्मी की गाण्ड के सुराख को सहला रहा था वहीं रहने दिया और दूसरा हाथ अम्मी की रानों में घुसा दिया और मालिश करने लगा और साथ ही अम्मी की गीली फुद्दी को भी हल्का सा छूने लगा।
मेरे इस तरह करने से अम्मी के मुँह से आअहह… उन्म्मह… की आवाज के साथ ही- “हाँ बेटा तुम्हारे हाथ में तो जादू है। सच में मालिश का मजा आ रहा है आअहह…”
अम्मी की मुँह से निकालने वाली आवाज़ों और अल्फ़ाज को सुनकर मुझे भी थोड़ा हौसला हुआ और मैंने अपने हाथ को अचानक अम्मी की फुद्दी के ऊपर रखकर मसल दिया।
जिससे अम्मी तड़प उठी- “आअहह… आलोक उन्म्मह… ऊओ… हाँ बेटा, बड़ा आराम मिल रहा है…”
मैंने अम्मी की फुद्दी और गाण्ड से हाथ हटा लिया क्योंकि अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था और मेरा लण्ड भी फटने के करीब ही था। मैं अब थोड़ा आगे हो गया जिससे कि मेरा लण्ड अम्मी की नंगी गाण्ड तक आ गया तो मैंने जो चादर बँधी हुई थी उसे लण्ड के ऊपर से हटाकर नंगा किया और अम्मी की गाण्ड पे रखा और आगे को झुक गया कि जैसे कंधों की मालिश करने लगा हूँ।
अब मैं अम्मी के कंधों को मलने के साथ-साथ अपने लण्ड को अम्मी की तेल से चिकनी गाण्ड पे रगड़ने लगा और फिर थोड़ा सा ऊपर हो गया और अपने लण्ड को अम्मी की रानों की तरफ दबा दिया।
अम्मी समझ गई कि मैं क्या चाहता हूँ और इसके साथ ही अम्मी ने अपनी टाँगों को थोड़ा खोल दिया जिससे मेरा लण्ड स्लिप होकर अम्मी की फुद्दी के मुँह से जा लगा।
अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने अपने एक हाथ से लण्ड को अम्मी की फुद्दी पे सेट किया और आराम से जोर लगाने लगा। अम्मी की फुद्दी क्योंकि पहले ही काफी गीली थी और ऊपर से तेल भी लगा हुआ था जिसकी वजह से मेरा लण्ड अम्मी की फुद्दी में आराम से जाने लगा।
जैसे ही मेरे लण्ड का सुपाड़ा अम्मी की फुद्दी में घुसा अम्मी के मुँह से- “आअहह आलोक उन्हं… तुम बड़ी अच्छी मालिश करते हो मेरी जान ऊओ…”
अब मैं थोड़ा ऊपर को हुआ और अपने लण्ड पे दबाव बढ़ा दिया जिससे मेरा लण्ड अम्मी की फुद्दी में घुसता चला गया। जैसे-जैसे मेरा लण्ड अम्मी की फुद्दी में जा रहा था मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा लण्ड किसी गरम और गीले तंदूर में घुसता जा रहा हो, जिससे मुझे मजा भी ज्यादा आ रहा था।
अब मैंने अम्मी की चूचियों की तरफ हाथ बढ़ाया और जितना भी हाथ में आया उन्हें पकड़कर मसलने लगा और साथ ही अपने लण्ड को भी अम्मी की फुद्दी में अंदर-बाहर करने लगा।
जिससे अम्मी भी अब पूरी तरह मजा ले रही थी। अम्मी भी अब थोड़ा सा खुल गई और- “हाँ आलोक, अब बहुत अच्छा लग रहा है… हाँ यहाँ से ही मसलो… उन्म्मह…”
कुछ तो इतनी देर से मैं उत्तेजित हो रहा था और कुछ अपनी माँ की फुद्दी मारने से ही मेरा बुरा हाल था जिसकी वजह से मैं जल्दी ही अम्मी की फुद्दी में ही फारिग़ हो गया।
मेरे फारिग़ होते ही अम्मी बोली- “आलोक बेटा, इसी तरह मेरे ऊपर लेटे रहो, हटना नहीं… उन्हं…” और इसके साथ ही अम्मी अपनी फुद्दी को कभी टाइट करती और कभी ढीला और फिर कुछ ही देर में मुझे अम्मी की फुद्दी में कुछ गरम महसूस हुआ और मैं समझ गया कि अम्मी भी फारिग़ हो गयीं।
फारिग़ होने के बाद हम माँ बेटा कुछ देर तक इसी तरह एक दूसरे के ऊपर ही लेटे रहे। मेरा लण्ड अब अम्मी की फुद्दी में ही सिकुड़ना शुरू हो गया था लेकिन अब मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं उठकर अम्मी का सामना कर सकूं।
अम्मी ने भी ये बात महसूस कर ली थी। तभी अम्मी ने कहा- “आलोक, अब बस करो हो गई मालिश चलो अभी मुझे घर का काम भी करना है…”
मैं अम्मी के ऊपर से हटा जिससे मेरा लण्ड अम्मी की फुद्दी से बाहर आ गया और मैंने देखा कि अम्मी की फुद्दी में से मेरा सफेद पानी निकालने लगा था।
मेरे बाद अम्मी ने भी थोड़ा सा अपपनी गाण्ड को ऊपर की तरफ उठाया और बेड पे बिछी पुरानी चादर को खींच लिया और अपनी फुद्दी को उसके साथ अच्छी तरह साफ किया और फिर अपनी शलवार को भी ऊपर की तरफ खींच लिया। अब अम्मी उठकर बैठ गई और अपनी कमीज जो कि कंधों तक ऊपर थी उसे भी नीचे कर लिया और चादर को उठाकर बाहर चली गई।
उस वक़्त ना तो अम्मी ने मेरे साथ कोई बात की और ना ही मैंने अम्मी के साथ कोई बात की।
अम्मी के जाने के बाद मैंने चादर खोली और अपने कपड़े पहन लिए और फिर से बेड पे लेट गया और आँखें बंद करके कल से अब तक होने वाले वाकियात के बारे में सोचने लगा कि क्या था और क्या हो गया है? इन्हीं सोचों के बीच कब मेरी आँख लगी पता ही नहीं चला।
और जब मेरी आँख खुली तो बुआ मुझे उठा रही थी।
मैं उठा तो बुआ ने हँसते हुये कहा- “क्यों आलोक, अपनी अम्मी की मालिश करने से थक गये हो क्या?
मैं सिर्फ़ मुश्कुराकर रह गया और कुछ नहीं बोला।
तो बुआ ने कहा- चल अब उठकर नहा ले और खाना भी खा ले।
मैं उठ गया और बुआ से पूछा- क्या बाकी लोग भी घर आ चुके हैं?
बुआ ने कहा- “हाँ, तेरी बहनें भी आ गई हैं, अब ज्यादा टाइम खराब ना कर और चल खाना खा ले…”
मैंने कहा- नहीं बुआ, अभी दिल नहीं है अब टाइम भी काफी हो गया है रात का खाना ही खाऊँगा। हाँ, अभी नहा लेता हूँ…” और उठकर नहाने चला गया।
जैसे ही मैं नहाकर बाहर आया तो सामने अम्मी और दीदी बैठी हुई थी। मुझे देखते ही अम्मी ने कहा- “आलोक, यहाँ आ जरा…”
मैंने कहा- “जी अम्मी, बोलें क्या बात है…” और इसके साथ ही मैं अम्मी के पास चला गया।
अम्मी ने दीदी की तरफ देखा और कहा- “तेरी बहन ने कुछ सामान मंगवाना है। बेटा, मुझसे तो इस वक़्त जाया नहीं जायेगा तू ही ला दे इसे जो भी चाहिये है…”
मैंने दीदी की तरफ देखा और कहा- “जी दीदी, क्या मंगवाना है बताओ मुझे? मैं ला आपको दूँगा…”
दीदी जो कि अम्मी की बात सुनकर पहले ही काफी घबरा गई थी और भी घबरा गई औरबोली- “न…नहीं भ…भाई, अभी कुछ नहीं चाहिए है, अगर जरूरत हुई तो मैं आपको बता दूँगी…”
अम्मी ने कहा- “भाई है तुम्हारा, डर क्यों रही हो? बताओ जो भी मंगवाना है…”
दीदी वहाँ से उठ गई और जाते हुये बोली- “नहीं, अम्मी नहीं… मैं बाद में मंगवा लूँगी…”
मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर ऐसी कौन सी चीजेंन हैं जो कि बाजी को मंगवाना हैं लेकिन वो मुझे नहीं बता पा रही है? दीदी के जाने के बाद मैंने अम्मी की तरफ देखा और कहा- क्यों अम्मी? क्या चाहिए है दीदी को?
अम्मी हल्का सा हँस पड़ी और बोली- “बेटा, उसे डेट आने वाली है और उसे पैडस चाहिये हैं। जाओ लाकर अपनी बहन को दे दो…”
मैं अब समझा कि दीदी इतना शर्मा क्यों रही थी। मैं घर से निकला और अपनी दुकान पे चला गया और वहाँ से ही दीदी के लिए दो पैकेट ले आया और घर आकर अम्मी को देने लगा।
तो अम्मी ने कहा- “जाकर अपनी बहन को दे दो, उसे ही चाहिए हैं मुझे नहीं…” अम्मी ये बोलते हुये मुश्कुरा रही थीं।
मैं अम्मी के पास से दीदी की तरफ चला गया। दीदी उस वक़्त मेरे रूम की सफाई कर रही थीं। मैंने दीदी को देखते हुये कहा- “ये लो दीदी, आपका सामान आ गया है जो मँगवाते हुये आप इतना शर्मा रही थी…”
दीदी ने मेरे हाथ में पैड देखे तो दीदी का चेहरा एकदम लाल हो गया और दीदी ने मेरी तरफ देखे बिना पैड मुझसे छीन लिए और मेरे रूम से भाग गई।
मैं दीदी की इस हरकत पे हल्का सा मुश्कुरा दिया। दीदी के जाने के बाद मैं बेड पे लेट गया और अपने घर और यहाँ हो रहे काम के बारे में सोचने लगा कि तभी अचानक मेरे दिमाग में ख्याल आया कि कहीं दीदी भी तो अम्मी और बुआ की तरह गश्ती नहीं बन चुकी हैं? ये ख्याल आते ही मैं उठ बैठा और सोचने लगा कि दीदी के बारे में किस तरह पता चलाऊँ कि तभी मुझे याद आया कि आज रात बुआ ने तो आना ही है तो क्यों ना आज बुआ से पूछ लिया जाये।
ये ख्याल आते ही मैं फिर से लेट गया और अम्मी और बुआ की मस्त फुद्दियां, जिनकी मैं चुदाई कर चुका था, सोचने लगा और इसी तरह से टाइम गुजर गया और पता ही नहीं चला कि रात के 8:00 बज गये। रात के खाने के लिए स्वीटी मुझे बुलाने आई।
तो मैंने कहा- “यहाँ ही खाना दे जाओ…”
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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