FUN-MAZA-MASTI
माँ बेटे की अगन --4
शाम को विजय अपने बाप को अस्पताल से घर लेकर आया । सरला बनावटी खूषी जाहीर करने लगी पर मन मे
भीतर बडी उदास थी उसकी खूशी कुछ दीन की ही रही उसका तन मन पूरा विजय का हो चुका था । रात मे
सरला विजय के बापू के पास बैठे उसकी सेवा कर रही थी । सरला रातभर जागती रही तडपती रही वहा दुसरे
कमरे मे विजय की भी यही हालत थी । दुसरे दीन विजय सरला को जाते जाते बाप से छुपते-छुपाते रसोई मे
बाहों मे भरकर चुम सका
सरला की आंखे नम थी वो बोली
सरला- अजी जल्दी आना वापीस, आपके बीना यहा रहा नही जाएगा
विजय- अरे मेरी परी रो मत, मुझे भी रहा नही जाएगा तेरे बीना।
दील पे पथ्थर रखे सुबह की ट्रेन से विजय शहर की ओर चल पडा
शहर मे दुसरे दीन शनिवार को विजय का फोन बज पडा विजयने फोन उठाया
विजय- हॅलो कमला हा बोलो।
कमला- कैसे हो विजय बाबू बहोत दीन हुए हमारी याद नही आई आपको कोई दुसरी मिल गई क्या
विजय- नही कमलाबाई वैसी बात नही है गांव गया था कल ही लौटा हूं
कमला- तभी सोचू दो शनिवार गुजर गये बाबूजी को कमला की याद नही आई आज शनिवार है आज आपकी
ईतने दीन की सारी भडास उतार दूंगी। आ जाईए दोपहर को कमला आपके लिए चुत खोल कर बैठी है। रातभर
मस्ती करेंगे।
विजय- नही कमला मै नही आ सकता
कमला- अरे क्यू मेरे सरकार आपकी ईस रखेल का कुछ तो खयाल कीजीए
विजय- अरे कमलाबाई डाक्टर ने मुझे कुछ दीन आराम करने को कहा है।
और विजयने कमला का फोन काट दीया, कमला वही औरत थी जीसकेपास विजय शनिवार को मजे करने जाता
था पर सरला को चोदने के बाद उसके सामने कीसी दुसरी औरत का खयाल तक नही आता था।
दीन गुजरते गये तीन महीने हो गये विजय और सरला रोज रात अपनी अगन मे जलते रहे दोनो बदन हवस की
आग मे जल रहे थे । एक दीन विजय हवस के मारे कमलाबाई के पास निकलने जा रहा था तभी अचानक
विजय का मोबईल बज उठा। सरला गांव के फोन बुथ से विजय को फोन करने लगी।
विजय - हॅलो
सरला – विजय बेटा जल्दी गांव आजा तेरे बापू को फीर एकबार दील का दौरा पडा है ।
विजय – तू चिंता मत कर मै तुरंत ट्रेन पकड कर गांव आ जाता हूं।
और उसने फोन रख दीया
असल मे सरला के मन मे लड्डू फूटने लगे क्यू के उसे महीनो से तडपती प्यास मिटाने विजय को बुलाने का
मौका मीला था। शहर मे विजय के कदम भी कमला के पास जाने से रूके बस एक रात की बात थी कल वो
उसकी प्यारी रखेल को गोद मे लेके खेलने वाला था।
दुसरे दीन सुबह सरला ने विजय के नाम का सिंदूर अपने मांग मे भर दीया
दोपहर विजय घर पहूंचा दबे पाव घर मे दाखिल हुआ उसने दरवाजा बंद कीया रसोई मे सरला गाना गुनगुनाती
खाना बना रही थी, विजय गुपचुप उसके पिछे गया और उसने दोनो हाथ सरला के चुचों पे रख दीये और कस के
उसे अपने ओर खिंच लिया सरला चिंखी बडी खबराई उसने तुरंत मुड के देखा विजय को देख कर बोली
सरला- हाय मेरी मां मजाक की भी हद होती है तूने तो मुझे डरा ही दीया।
विजय- हाय मेरी जान जब तक मै हूं तुझे कीस बात का डर।
उसकी चुचींया जोर जोर से उपर निचे हो रही थी गांड की दरार मे विजय का मोटा लौडा उसे महसूस हो रहा था ।
वो सरला का हाथ पकड़ कर सीधे कमरे में ले गया और उसके
दोनों मस्त मस्त गोल मटोल चुचिंयो को अपने दोनों हाथो में पकड़ कर मसलते हुए सरला से बोला
विजय - “ मेरी जान बहुत महीने हो गए है चुदाई किये, चल मां फटाफट कपडे खोल के नंगी होजा, आज रूका
नही जाता, आज तेरी तबियत से तूफानी चुदाई करूँगा मेरा लंड बहुत तड़प रहा है तेरी मखमली रसदार चूत के
लिए ”
सरला अपना एक हाथ आगे बढ़ा उसके तने लंड को पकड़ हलके हाथो से सहलाते हुए बोली
सरला- अरे बेटा, मेरे पागल आशिक तडपी तो मै भी हर रात हूं तेरे लिए
पर अभी कुछ खालो खाना तय्यार है भुक लगी होगी ना बाद में हम मस्त चुदाई करेंगे जी भर के चोदते रहना
मेरे लाडले..
विजय – अरे मेरी बुलबुल पेट की भुक से कही ज्यादा बदन की भुक लगी है मुझे पहले वो मीटा दे।
विजयने पैंट की चैन खोली और अपना खड़ा लंड सरला के हाथ में दीया
सरला उसके लंड को अपनी साडी के ऊपर से ही अपनी चूत में लगया
विजय ने सरला को कस के लंड पे खिंच लिया और उसकी गांड मसलने लगा विजयने सरला की गांड की दरार
में साडी के उपर से उन्गली चलाते हुए, उसके गाल पर दांत गडा उसकी एक चुचीं पकडी और कस के मसलना
शुरू कीया।
सरला- “आह बेटा आआआअ उईईई क्या कर रहा है धीरे ना”
विजय- हममममम प्यार कर रहा हू मां
सरला- हाय माई रे तेरा प्यार तो बहोत कडक और बेरहम है रे
विजय ने सरला को बिस्तर पर पटक दिया। दोनो एक दुसरे से गुत्थम-गुत्था हो कर बिस्तर पर लुढकने लगे।
विजय होठों को चुसते हुए कभी गाल कटता कभी गरदन पर चुम्म लेता। विजय सरला की चुची को पुरी ताकत
से मसल रहा था। चुत्तड दबोच कर गांड की दरार में साडी के उपर से ऐसे उन्गली कर रहा था, जैसे पुरी साडी
उसके गांड के छेद मे घुसा देगा।
सरला के मुंह से “आ हा अह,,,,,,,,उईईईईईइ, हाय .." निकल रहा था. फिर विजय ने जल्दी से सरला को पुरा
नंगा कर दिया।
विजय का आठ इंच लंबा लंड देख । सरला ने लपक कर अपने हाथो में थाम लिया,
सरला- हाय रे मेरा छोटू तुझे देखने मेरी आंखे तरस गई थी रे
और मसलने लगी। विजय ने दो उंगलियोको थुक लगाई और सरला के फुली हुई चुत मे डाली और अंदर बाहर
करने लगा
विजय -“छोटू भी तो तेरी मुनिया से मिलने तडप रहा था।"
सरला बैठ कर सुपाडे की चमडी हटा, जीभ फिराने लगी,
सरला ने विजय का लंड पकड हिलाते हुए कहा,
सरला-“हाय मेरी कीस्मत कीतनी अच्छी है !?, मां देख रही है तू उपर से मेरे बेटे का लंड,,,,एकदम घोडे के जैसा है
ना,,,,,ऐसा पुरे गांव में किसी का नही, बापू का भी नही था ना मेरे पती का,,,,,,,।"
और फिर से चुसने लगी। विजय सरला की बीना बालो वाली चुत देख रहा था, सरला दीखावी शरमाने लगी ।
विजय ने सरला की चुत अपनी मुठ्ठी मे भरली और थपथपाने लगा,
विजय-“शरमाती क्यों है मां ? आराम से चुस,,,,,,,आज तो बडी सुन्दर लग रही है तेरी चुत,,,,,,,,,।”
सरला ने शरमा कर गरदन झुका ली। उसे बचपन का घर मे दौडता नंगा १इंच की लूली वाला विजय याद आ रहा
था तब का विजय और आज का विजय में उसे जमीन आसमान का अन्तर नजर आया। तब विजय को सरला
उसकी छोटी लूली हीला-हीला कर सू-सू करवाती थी. और आज विजय उसका ८इंच मोटा लंड सरला की चुत मे
डालकर उसको मुतने पर मजबूर कर देता है, और आज सरला विजय को अपना सबकुछ सौप चुकी थी । वो
इसलिये क्योंकी. आज वो उसे अपना पती मान चुकी थी।
विजय सरला की चुंची दबाते कहने लगा
विजय- “अरे मां, अब तैयार हो जा तेरे तडपने के दीन खत्म हुए, हमारी शादी तो हो ही गई है. बापू के बाद
हमारा गौना हो होगा फीर तू मेरे साथ शहर जायेगी, तो फिर रोज मजे करेगी ,,,,,,,”
सरला- “धत् बेशरम कही का,,,,,,,,,,”
विजय-“शहर से तेरे लिए नई साडी भी लाया हु,,,,,,,,,,,,वो हमारे सुहागरात के दिन पहनना,,,,,,,,”
कह कर अपने पास खींच कर, उसकी चुचीं को मसलने लगा। सरला शरमा कर विजय के बाहों मे सीमट गई।
विजय ने हाथ से पकड कर उसका चेहरा उपर उठाते हुए कहा,
विजय-“मां एक चुम्मा दे ना,,,,,,,,बडे नशीले लग रहे है तेरे होंट.”
सरला- ये भी कोई पुछने वाली बात है। खुद ही ले ले।
और विजय उसके होठों से अपने होंठ सटा कर चुसने लगा। सरला की आंखे मुंद गई। विजय ने उसके होटों को
चुसते हुए, उसकी चुंची को पकड लिया और खुब जोर जोर से दबाने लगा सरला एकदम से छटपटा गई।
सरला-“उईईईइ मां, सीईई,,,,,,,”
उसकी लटकती हुई चुंची को पकड दबाते हुए विजय बोला,
विजय-“देखो ,अब कैसे शरमा रही है ?,,,,,,,,पहले तो तडप रही थी, अब कुछ करने नही दे रही,,,,,,,,,”
सरला-“जालिम कही का ईतना प्यार करेगा तो शर्म तो आयेगी ना”
विजय-“जीस औरत को आप चाहते हो उसे बेशरम हो कर प्यार करने मे क्या बुराई है भला,,,,,,,,”
सरला- “हाय मेरे मालिक बुराई तेरे प्यार में नही, तेरे ईस सांड जैसे लंड में है,,,,,,,इसे देख कर मेरी मुनिया
डर जाती है.”
विजय ने एक चुंची को हल्के से थाम लिया।
विजय- “हाय क्या रसिली चुंची है, पके हुए आम की तरह !!,,,,,मुंह में डाल कर पिने लायक,,,,,,”
और चुंची पर अपना मुंह टीकाया, जीभ निकाल कर निप्पल को छेडते हुए चारों तरफ घुमाने लगा। सरला सिहर
उठी।
सिसकते हुए सरला के मुंह से निकला, “उईई मां ससस,,,,,,”
विजय ने उसका हाथ पकड कर लंड पर रख दिया, और उसके होठों को चुमते बोला,
विजय- “ले पकड और जी भर के प्यार कर अपने छोटू को,,,,,,,,ये शहर मे तेरे मुलायम हाथ के लिए तरस
रहा था.”
विजय दोनो चुचियों को बारी बारी से चुसने लगा। बडा मजा आ रहा था उसको महीनो बाद दो नंगे जीस्म आग
मिटाने एक दुसरे को चिपके थे।
कुछ देर बाद उसने सरला को अपनी गोद में खींच लिया, और अपने लंड पर उसको बैठा लिया.
विजय-“आओ रानी, छोटू को मुनिया के साथ मस्ती करवा दे,,,,,,,,मुनिया को डर कैसा,,,,,,,,रोज खेलेगी तो आदत
पड जाएगी मुनिया को”
विजय का खडा लंड सरला की गांड में चुभने लगा। विजय ठीक गांड की दरार के बीच में लंड रगड रहा था
सरला- “हाय मेरे मालिक, मुनिया भी छोटू के लिए तरसती थी बस शरमाती है, बडा सताता है छोटू उसको”
विजय-“आज शरम मीटा देता हूं मुनिया की बस छोटू से मिल तो ले रस छोडने लगेगी”
विजय तो जन्नत में था. जोश मे विजयने दोनो चुचियों को मसल-मसल कर लाल कर दी। चुंची मसलवा कर
सरला एकदम गरम हो गई. अपने हाथ से अपनी चुत को रगडने लगी। विजय ने देखा तो मुस्कुराया
बोला,-“देखो तो. मां बेटे के लंड के लिए कैसे गरमा गई है,,,,,,,,,,आज तो बडे मजे करेगी।”
सरला शरमा कर. “धत् बदमाश,,,,,,,तू भी तो तेरी इस मां को तडपते छोड शहर गया था,,,,,,,,इतने महीनो
बाद मीली हूं मेरे आशिक बेटे से तो क्या गरम नही होउंगी”
सरला बहुत खुल चुकी थी, चुदाई की अब बिनधास्त बातें करती थी।
विजय- “माफ करदो मेरी जान अब ये गलती नही करूंगा ”
विजय ने अपना फनफनाता हुआ लंड उसकी चुत से सटा, जोर का धक्का मरा. एक ही झटके में कच से पुरा
लंड उतार दिया।
सरला कराह उठी-“हाये मां,मर गई रे, एक ही बार में पुरा …!!… सीएएएएए,,,”
विजय-“चल झुटी साली. कीतना नाटक करती है? आज तक तीस बार चोद चुका होउंगा अब तक अभी भी तेरे
को दर्द होता है …??”
सरला-“हाये बेटा, तेरा गन्ने जैसा बडा है दर्द तो होगा ही ना कोई लौंडीया होती तो मर ही जाती…!।”
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माँ बेटे की अगन --4
शाम को विजय अपने बाप को अस्पताल से घर लेकर आया । सरला बनावटी खूषी जाहीर करने लगी पर मन मे
भीतर बडी उदास थी उसकी खूशी कुछ दीन की ही रही उसका तन मन पूरा विजय का हो चुका था । रात मे
सरला विजय के बापू के पास बैठे उसकी सेवा कर रही थी । सरला रातभर जागती रही तडपती रही वहा दुसरे
कमरे मे विजय की भी यही हालत थी । दुसरे दीन विजय सरला को जाते जाते बाप से छुपते-छुपाते रसोई मे
बाहों मे भरकर चुम सका
सरला की आंखे नम थी वो बोली
सरला- अजी जल्दी आना वापीस, आपके बीना यहा रहा नही जाएगा
विजय- अरे मेरी परी रो मत, मुझे भी रहा नही जाएगा तेरे बीना।
दील पे पथ्थर रखे सुबह की ट्रेन से विजय शहर की ओर चल पडा
शहर मे दुसरे दीन शनिवार को विजय का फोन बज पडा विजयने फोन उठाया
विजय- हॅलो कमला हा बोलो।
कमला- कैसे हो विजय बाबू बहोत दीन हुए हमारी याद नही आई आपको कोई दुसरी मिल गई क्या
विजय- नही कमलाबाई वैसी बात नही है गांव गया था कल ही लौटा हूं
कमला- तभी सोचू दो शनिवार गुजर गये बाबूजी को कमला की याद नही आई आज शनिवार है आज आपकी
ईतने दीन की सारी भडास उतार दूंगी। आ जाईए दोपहर को कमला आपके लिए चुत खोल कर बैठी है। रातभर
मस्ती करेंगे।
विजय- नही कमला मै नही आ सकता
कमला- अरे क्यू मेरे सरकार आपकी ईस रखेल का कुछ तो खयाल कीजीए
विजय- अरे कमलाबाई डाक्टर ने मुझे कुछ दीन आराम करने को कहा है।
और विजयने कमला का फोन काट दीया, कमला वही औरत थी जीसकेपास विजय शनिवार को मजे करने जाता
था पर सरला को चोदने के बाद उसके सामने कीसी दुसरी औरत का खयाल तक नही आता था।
दीन गुजरते गये तीन महीने हो गये विजय और सरला रोज रात अपनी अगन मे जलते रहे दोनो बदन हवस की
आग मे जल रहे थे । एक दीन विजय हवस के मारे कमलाबाई के पास निकलने जा रहा था तभी अचानक
विजय का मोबईल बज उठा। सरला गांव के फोन बुथ से विजय को फोन करने लगी।
विजय - हॅलो
सरला – विजय बेटा जल्दी गांव आजा तेरे बापू को फीर एकबार दील का दौरा पडा है ।
विजय – तू चिंता मत कर मै तुरंत ट्रेन पकड कर गांव आ जाता हूं।
और उसने फोन रख दीया
असल मे सरला के मन मे लड्डू फूटने लगे क्यू के उसे महीनो से तडपती प्यास मिटाने विजय को बुलाने का
मौका मीला था। शहर मे विजय के कदम भी कमला के पास जाने से रूके बस एक रात की बात थी कल वो
उसकी प्यारी रखेल को गोद मे लेके खेलने वाला था।
दुसरे दीन सुबह सरला ने विजय के नाम का सिंदूर अपने मांग मे भर दीया
दोपहर विजय घर पहूंचा दबे पाव घर मे दाखिल हुआ उसने दरवाजा बंद कीया रसोई मे सरला गाना गुनगुनाती
खाना बना रही थी, विजय गुपचुप उसके पिछे गया और उसने दोनो हाथ सरला के चुचों पे रख दीये और कस के
उसे अपने ओर खिंच लिया सरला चिंखी बडी खबराई उसने तुरंत मुड के देखा विजय को देख कर बोली
सरला- हाय मेरी मां मजाक की भी हद होती है तूने तो मुझे डरा ही दीया।
विजय- हाय मेरी जान जब तक मै हूं तुझे कीस बात का डर।
उसकी चुचींया जोर जोर से उपर निचे हो रही थी गांड की दरार मे विजय का मोटा लौडा उसे महसूस हो रहा था ।
वो सरला का हाथ पकड़ कर सीधे कमरे में ले गया और उसके
दोनों मस्त मस्त गोल मटोल चुचिंयो को अपने दोनों हाथो में पकड़ कर मसलते हुए सरला से बोला
विजय - “ मेरी जान बहुत महीने हो गए है चुदाई किये, चल मां फटाफट कपडे खोल के नंगी होजा, आज रूका
नही जाता, आज तेरी तबियत से तूफानी चुदाई करूँगा मेरा लंड बहुत तड़प रहा है तेरी मखमली रसदार चूत के
लिए ”
सरला अपना एक हाथ आगे बढ़ा उसके तने लंड को पकड़ हलके हाथो से सहलाते हुए बोली
सरला- अरे बेटा, मेरे पागल आशिक तडपी तो मै भी हर रात हूं तेरे लिए
पर अभी कुछ खालो खाना तय्यार है भुक लगी होगी ना बाद में हम मस्त चुदाई करेंगे जी भर के चोदते रहना
मेरे लाडले..
विजय – अरे मेरी बुलबुल पेट की भुक से कही ज्यादा बदन की भुक लगी है मुझे पहले वो मीटा दे।
विजयने पैंट की चैन खोली और अपना खड़ा लंड सरला के हाथ में दीया
सरला उसके लंड को अपनी साडी के ऊपर से ही अपनी चूत में लगया
विजय ने सरला को कस के लंड पे खिंच लिया और उसकी गांड मसलने लगा विजयने सरला की गांड की दरार
में साडी के उपर से उन्गली चलाते हुए, उसके गाल पर दांत गडा उसकी एक चुचीं पकडी और कस के मसलना
शुरू कीया।
सरला- “आह बेटा आआआअ उईईई क्या कर रहा है धीरे ना”
विजय- हममममम प्यार कर रहा हू मां
सरला- हाय माई रे तेरा प्यार तो बहोत कडक और बेरहम है रे
विजय ने सरला को बिस्तर पर पटक दिया। दोनो एक दुसरे से गुत्थम-गुत्था हो कर बिस्तर पर लुढकने लगे।
विजय होठों को चुसते हुए कभी गाल कटता कभी गरदन पर चुम्म लेता। विजय सरला की चुची को पुरी ताकत
से मसल रहा था। चुत्तड दबोच कर गांड की दरार में साडी के उपर से ऐसे उन्गली कर रहा था, जैसे पुरी साडी
उसके गांड के छेद मे घुसा देगा।
सरला के मुंह से “आ हा अह,,,,,,,,उईईईईईइ, हाय .." निकल रहा था. फिर विजय ने जल्दी से सरला को पुरा
नंगा कर दिया।
विजय का आठ इंच लंबा लंड देख । सरला ने लपक कर अपने हाथो में थाम लिया,
सरला- हाय रे मेरा छोटू तुझे देखने मेरी आंखे तरस गई थी रे
और मसलने लगी। विजय ने दो उंगलियोको थुक लगाई और सरला के फुली हुई चुत मे डाली और अंदर बाहर
करने लगा
विजय -“छोटू भी तो तेरी मुनिया से मिलने तडप रहा था।"
सरला बैठ कर सुपाडे की चमडी हटा, जीभ फिराने लगी,
सरला ने विजय का लंड पकड हिलाते हुए कहा,
सरला-“हाय मेरी कीस्मत कीतनी अच्छी है !?, मां देख रही है तू उपर से मेरे बेटे का लंड,,,,एकदम घोडे के जैसा है
ना,,,,,ऐसा पुरे गांव में किसी का नही, बापू का भी नही था ना मेरे पती का,,,,,,,।"
और फिर से चुसने लगी। विजय सरला की बीना बालो वाली चुत देख रहा था, सरला दीखावी शरमाने लगी ।
विजय ने सरला की चुत अपनी मुठ्ठी मे भरली और थपथपाने लगा,
विजय-“शरमाती क्यों है मां ? आराम से चुस,,,,,,,आज तो बडी सुन्दर लग रही है तेरी चुत,,,,,,,,,।”
सरला ने शरमा कर गरदन झुका ली। उसे बचपन का घर मे दौडता नंगा १इंच की लूली वाला विजय याद आ रहा
था तब का विजय और आज का विजय में उसे जमीन आसमान का अन्तर नजर आया। तब विजय को सरला
उसकी छोटी लूली हीला-हीला कर सू-सू करवाती थी. और आज विजय उसका ८इंच मोटा लंड सरला की चुत मे
डालकर उसको मुतने पर मजबूर कर देता है, और आज सरला विजय को अपना सबकुछ सौप चुकी थी । वो
इसलिये क्योंकी. आज वो उसे अपना पती मान चुकी थी।
विजय सरला की चुंची दबाते कहने लगा
विजय- “अरे मां, अब तैयार हो जा तेरे तडपने के दीन खत्म हुए, हमारी शादी तो हो ही गई है. बापू के बाद
हमारा गौना हो होगा फीर तू मेरे साथ शहर जायेगी, तो फिर रोज मजे करेगी ,,,,,,,”
सरला- “धत् बेशरम कही का,,,,,,,,,,”
विजय-“शहर से तेरे लिए नई साडी भी लाया हु,,,,,,,,,,,,वो हमारे सुहागरात के दिन पहनना,,,,,,,,”
कह कर अपने पास खींच कर, उसकी चुचीं को मसलने लगा। सरला शरमा कर विजय के बाहों मे सीमट गई।
विजय ने हाथ से पकड कर उसका चेहरा उपर उठाते हुए कहा,
विजय-“मां एक चुम्मा दे ना,,,,,,,,बडे नशीले लग रहे है तेरे होंट.”
सरला- ये भी कोई पुछने वाली बात है। खुद ही ले ले।
और विजय उसके होठों से अपने होंठ सटा कर चुसने लगा। सरला की आंखे मुंद गई। विजय ने उसके होटों को
चुसते हुए, उसकी चुंची को पकड लिया और खुब जोर जोर से दबाने लगा सरला एकदम से छटपटा गई।
सरला-“उईईईइ मां, सीईई,,,,,,,”
उसकी लटकती हुई चुंची को पकड दबाते हुए विजय बोला,
विजय-“देखो ,अब कैसे शरमा रही है ?,,,,,,,,पहले तो तडप रही थी, अब कुछ करने नही दे रही,,,,,,,,,”
सरला-“जालिम कही का ईतना प्यार करेगा तो शर्म तो आयेगी ना”
विजय-“जीस औरत को आप चाहते हो उसे बेशरम हो कर प्यार करने मे क्या बुराई है भला,,,,,,,,”
सरला- “हाय मेरे मालिक बुराई तेरे प्यार में नही, तेरे ईस सांड जैसे लंड में है,,,,,,,इसे देख कर मेरी मुनिया
डर जाती है.”
विजय ने एक चुंची को हल्के से थाम लिया।
विजय- “हाय क्या रसिली चुंची है, पके हुए आम की तरह !!,,,,,मुंह में डाल कर पिने लायक,,,,,,”
और चुंची पर अपना मुंह टीकाया, जीभ निकाल कर निप्पल को छेडते हुए चारों तरफ घुमाने लगा। सरला सिहर
उठी।
सिसकते हुए सरला के मुंह से निकला, “उईई मां ससस,,,,,,”
विजय ने उसका हाथ पकड कर लंड पर रख दिया, और उसके होठों को चुमते बोला,
विजय- “ले पकड और जी भर के प्यार कर अपने छोटू को,,,,,,,,ये शहर मे तेरे मुलायम हाथ के लिए तरस
रहा था.”
विजय दोनो चुचियों को बारी बारी से चुसने लगा। बडा मजा आ रहा था उसको महीनो बाद दो नंगे जीस्म आग
मिटाने एक दुसरे को चिपके थे।
कुछ देर बाद उसने सरला को अपनी गोद में खींच लिया, और अपने लंड पर उसको बैठा लिया.
विजय-“आओ रानी, छोटू को मुनिया के साथ मस्ती करवा दे,,,,,,,,मुनिया को डर कैसा,,,,,,,,रोज खेलेगी तो आदत
पड जाएगी मुनिया को”
विजय का खडा लंड सरला की गांड में चुभने लगा। विजय ठीक गांड की दरार के बीच में लंड रगड रहा था
सरला- “हाय मेरे मालिक, मुनिया भी छोटू के लिए तरसती थी बस शरमाती है, बडा सताता है छोटू उसको”
विजय-“आज शरम मीटा देता हूं मुनिया की बस छोटू से मिल तो ले रस छोडने लगेगी”
विजय तो जन्नत में था. जोश मे विजयने दोनो चुचियों को मसल-मसल कर लाल कर दी। चुंची मसलवा कर
सरला एकदम गरम हो गई. अपने हाथ से अपनी चुत को रगडने लगी। विजय ने देखा तो मुस्कुराया
बोला,-“देखो तो. मां बेटे के लंड के लिए कैसे गरमा गई है,,,,,,,,,,आज तो बडे मजे करेगी।”
सरला शरमा कर. “धत् बदमाश,,,,,,,तू भी तो तेरी इस मां को तडपते छोड शहर गया था,,,,,,,,इतने महीनो
बाद मीली हूं मेरे आशिक बेटे से तो क्या गरम नही होउंगी”
सरला बहुत खुल चुकी थी, चुदाई की अब बिनधास्त बातें करती थी।
विजय- “माफ करदो मेरी जान अब ये गलती नही करूंगा ”
विजय ने अपना फनफनाता हुआ लंड उसकी चुत से सटा, जोर का धक्का मरा. एक ही झटके में कच से पुरा
लंड उतार दिया।
सरला कराह उठी-“हाये मां,मर गई रे, एक ही बार में पुरा …!!… सीएएएएए,,,”
विजय-“चल झुटी साली. कीतना नाटक करती है? आज तक तीस बार चोद चुका होउंगा अब तक अभी भी तेरे
को दर्द होता है …??”
सरला-“हाये बेटा, तेरा गन्ने जैसा बडा है दर्द तो होगा ही ना कोई लौंडीया होती तो मर ही जाती…!।”
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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