Saturday, December 13, 2014

हिंदी सेक्सी कहानिया अधूरा प्यार--1 एक होरर लव स्टोरी

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अधूरा प्यार--1 एक होरर लव स्टोरी


दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....
कुच्छ ऐसा ही रोहन के साथ कहानी में हुआ.. हमेशा अपनी मस्ती में ही मस्त रहने वाला एक करोड़पति बाप का बेटा अचानक अपने आपको गहरी आसमनझास में घिरा महसूस करता है जब कोई अंजान सुंदरी उसके सपनों में आकर उसको प्यार की दुहाई देकर अपने पास बुलाती है.. और जब ये सिलसिला हर रोज़ का बन जाता है तो अपनी बिगड़ती मनोदशा की वजह से मजबूर होकर निकलना ही पड़ता है.. उसकी तलाश में.. उसके बताए आधे अधूरे रास्ते पर.. लड़की उसको आख़िरकार मिलती भी है, पर तब तक उसको अहसास हो चुका होता है कि 'वो' लड़की कोई और है.. और फिर से मजबूरन उसकी तलाश शुरू होती है, एक अनदेखी अंजानी लड़की के लिए.. जो ना जाने कैसी है...
इस अंजानी डगर पर चला रोहन जाने कितनी ही बार हताश होकर उसके सपने में आने वाली लड़की से सवाल करता है," मैं विस्वाश क्यूँ करूँ?" .. तो उसकी चाहत में तड़प रही लड़की का हमेशा एक ही जवाब होता है:

"मरने के बाद भी जीवन है "


नीचे महफ़िल जम चुकी थी.. कुच्छ देर रवि का इंतजार करने के बाद अमन ने वहीं प्रोग्राम जमा लिया.. गिलासों को खड़खड़ाते अब करीब आधा घंटा हो चुका था.. शराब के नशे में रोहन वो सब कुच्छ बोलने लगा था जिसको बताने में अब तक वो हिचक रहा था...

"ओह तेरी.. फिर क्या हुआ?" अमन जिगयासू होकर आगे झुक गया...
"छ्चोड़ो यार.. क्यूँ टाइम खोटा कर रहे हो.. आइ डॉन'ट बिलीव इन ऑल दीज़ फूलिश थिंग्स.. एक सपने को लेकर इतना सीरीयस और एमोशनल होने की ज़रूरत नही है.. " शेखर सूपरस्टिशस किस्म की बातों में विस्वाश नही कर पा रहा था...

"पूरी बात तो सुन ले डमरू... रोहन ने शेखर को डांटा और कहानी सुनाने लगा....

"कौन डमरू.. मैं.. हा हा हा...!" शेखर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा...," डमरू.. हा हा हा!"

"तुझे नही सुन'नि ना.. चल.. जाकर सामने बैठ.. और अपना मुँह बंद रख.. मैं मानता हूँ.. और मुझे सुन'नि हैं..." अमन आकर सामने वाले सोफे पर शेखर और रोहन के बीच में फँस गया.. शेखर उठा और बड़बड़ाता हुआ सामने चला गया," डमरू.. हा हा हा!"

बातें अभी चल ही रही थी की मुस्कुराते हुए रवि ने कमरे में प्रवेश किया..," अच्च्छा.. अकेले अकेले..!"

शेखर उसके आते ही खड़ा हो गया," साले डमरू! अकेले अकेले तू फोड़ के आया है या हम.. ? बात करता है...

"भाई तू मेरे को डमरू कैसे बोल रहा है.. वो तो रोहन बोलता है..." रवि ने उसके पास बैठते हुए कहा...

"क्यूंकी मेरे अंदर रोहन का भूत घुस आया है.. हे हे हा हा हो हो!" शेखर ने भूतों वाली बात का मज़ाक बना लिया....

"चुप कर ओये जॅलील इंसान.. ऐसी बातों को मज़ाक में नही लेते.. किसी के साथ भी कुच्छ भी हो सकता है..." अमन ने प्यार से उसको दुतकारा...

"किस के साथ क्या हो गया भाई? मुझे भी तो बता दो.." रवि ने अपना गिलास उठाया और सबके साथ चियर्स किया...

"वो बात बाद में शुरू से शुरू करेंगे.. अब सबको सीरीयस होकर सुन'नि हैं.. पहले तू बता.. दी भी या नही.. मुझे तो उसकी चीख सुनकर ऐसा लगा जैसे तू अपना हाथ में पकड़े उसके पिछे दौड़ रहा है.. और वो बचने के लिए चिल्लाती हुई कमरे में इधर उधर भाग रही है...हा हा हा.. साली ने नखरे बहुत किए थे पहले दिन... मैं ऐसी नही हूँ.. मैं वैसी नही हूँ.. पर डालने के बाद पता लगा वो तो पकई पकाई है..." अमन ने अपना अनुभव सुनाया....

रवि ने छाती चौड़ी करके अपने कॉलर उपर कर लिए," देती कैसे नही... !"

"अरे... सच में.. चल आ गले लग जा.. बधाई हो बधाई.." अमन आकर उसके गले लग गया..," हां.. यार.. बात तो तू सही कह रहा है.. सलमा की खुश्बू आ रही है तेरे में से.... पर वो चिल्लाई क्यूँ यार.. साली एक नंबर. की नौटंकी है.. तुझे भी यही कह रही थी क्या कि पहली बार मरवा रही हूँ.." अमन ने वापस रोहन के पास बैठते हुए कहा...

" नही यार.. वो तो साना की चीख थी... उसकी पहली बार फटी है ना आज!" रवि ने अपनी बात भी पूरी नही की थी कि अमन ने गिलास रखा और उच्छल कर खड़ा हो गया..," तूने साना की मार ली????"

"हां.. कुच्छ ग़लत हो गया क्या?" रवि ने मरा सा मुँह बनाकर कहा...

"ग़लत क्या यार..? ये तो कमाल हो गया.. साली को तीन बार बुला चुका हूँ.. सलमा के हाथों.. पर वो तो हाथ ही नही लगाने देती थी यार.. तूने किया कैसे.. अब तो ज़ोर की पार्टी होनी चाहिए यार.. ज़ोर की.. तूने मेरा काम आसान कर दिया...!" अमन जोश में पूरा पैग एक साथ पी गया...

"वो कैसे? " रवि की समझ में नही आई बात....

"क्या बताउ यार.. तुझे तो पता होगा.. वो और सलमा दोनो सग़ी बेहन हैं..!"

अमन को रवि ने बीच में ही टोक दिया," क्या? सग़ी बेहन हैं.. ?"

"हां.. चल छ्चोड़ यार.. लंबी कहानी है.. उसके बारे में बाद में बात करेंगे... पहले रोहन भाई की सुनते हैं.. चल भाई रोहन.. अब सब इकट्ठे हो गये हैं.. शुरू से शुरू करके आख़िर तक सुना दे.. पहले बोल रहा हूँ शेखर.. बीच में नही बोलेगा.. देख ले नही तो...!" अमन शेखर को चेतावनी सी देते हुए बोला..

"नही बोलूँगा यार... चलो सूनाओ!" कहकर शेखर भी रोहन की और देखने लगा....

रोहन ने कहानी सुननी शुरू कर दी.....



"आबे, ये क्या था?" रोहन अचानक ही आसपास की घनी झाड़ियों से अपनी और उच्छल कर आए गिलहरी नुमा जानवर को देखकर उच्छल कर तीव्रता से एक और हट गया.. जानवर की उछाल में जिस प्रकार की तीव्रता थी, उस'से यही प्रतीत हुआ की उसने उन्न पर हमला करने का प्रयास किया था...," तूने इसके दाँत देखे?"

करीब 10 - 10 फीट की लंबी छलान्ग लगाता हुआ वो उस उबड़ खाबड़ रास्ते के दूसरी तरफ की झाड़ियों में खो गया..
दोनो 2 पल वहीं खड़े होकर उस अजीबोगरीब गिलहरी को आँखों से औझल होते देखते रहे.. और फिर से अपनी अंजान मंज़िल की और बढ़ चले..

"अफ.. कहाँ ले आया यार...? कितना सन्नाटा है यहाँ? यहाँ पर तो आदमी की जात भी नज़र नही आती... कितना अजीब सा लग रहा है यहाँ सब कुच्छ... तुझे लगता है यहाँ तुझे तेरी नीरू मिल जाएगी..? ... देख मुझे तो लगता है किसी ने तेरा उल्लू बनाया है.. क्यूँ बेवजह अपनी रात बर्बाद कर रहा है... और मेरी भी.. चल वापस चल!" नितिन ने बोलते हुए सावधानी बरत'ने के इरादे से रिवॉल्वेर निकाल कर अपने हाथ में ले ली..

"ऐसी बात नही है यार.. वो यहीं रहती है.. आसपास, देखना! कोशिश करेंगे तो वो हमें ज़रूर मिलेगी.. वो अगर नही मिली तो मैं पागल हो जाउन्गा यार!" रोहन ने आगे चलते चलते ही बात कही...

नितिन आगे आगे बहुत चौकन्ना होकर चल रहा था.. चौकन्ना होना लाजिमी भी था.. जहाँ इस समय वो थे, उस जगह के आसपास कोई शहर या गाँव नही था.. हर तरफ सन्नाटे की भयावह सी चादर पसरी हुई थी... आवाज़ें अगर आ रही थी तो मैंधको के टर्रने की, और रह रह कर झाड़ियों के झुरपुट में कुच्छ रेंगते होने की...दूर दूर तक कृत्रिम रोशनी का नामोनिशान तक नही था.. बस आधे चाँद और टिमटिमाते हुए तारों की हुल्की फुल्की रोशनी ही थी जो उनको रास्ता दिखा रही थी.. रास्ता भी ऐसा जो ना होने के ही बराबर था.. कहीं उँचा, कहीं नीचा.. बीच बीच में गहरे गहरे गड्ढे.. इतने गहरे की ध्यान से ना चला जाए तो अचानक पूरा आदमी ही उनमें गायब हो जाए.. दोनो और करीब 4 - 4 फीट ऊँची झाड़ियाँ थी...

"अब रास्ता सॉफ होता तो गाड़ी ही ले आते.. तुझे क्या लगता है..? यहाँ पर कोई इंसान रहता होगा.. और वो भी लड़की.. सच बताना, खुद तुझे डर नही लग रहा, यहाँ का माहौल देख कर..." नितिन ने चलते चलते रोहन से सवाल किया...

"डर लग रहा है तभी तो तुम्हे लेकर आया हूँ भाई.. नही तो मैं अकेले ही ना चला आता.." रोहन ने जवाब दिया..और अचानक ही उच्छल पड़ा," नितिन देख.. आगे पक्की सड़क दिखाई दे रही है.. मैं ना कहता था.. हम ज़रूर कामयाब होंगे... आगे ज़रूर कोई बस्ती मिलेगी... देख लेना!"

"आबे बस्ती के बच्चे.. उस'से कोई ढंग का रास्ता भी तो पूच्छ सकता था तू.. आख़िर वो लोग भी तो शहर जाते होंगे..?" नितिन को भी आगे का रास्ता पिच्छले रास्ते के मुक़ाबले बेहतर देख कर कुच्छ उम्मीद बँधी....
"यार, क्या करूँ, जब यही एक रास्ता बताया उसने...!" रोहन ने तेज़ी से चलना शुरू कर चुके नितिन के कदमों से कदम मिलाते हुए कहा....

"अजीब प्रेमिका है तेरी.. एक तो रात में मिलने की ज़िद करी और उपर से रास्ता ऐसा बताया.. चल देख.. लगता है हम पहुँचने ही वाले हैं.. उधर लाइट दिखाई दे रही है.." नितिन ने अपनी बाई तरफ हाथ उठा कर इशारा करते हुए कहा...

दोनो बाई तरफ मुड़े ही थे की अचानक ठिठक गये..," यहाँ तो पानी है..यार!" रोहन ने अपने कदम वापस खींचते हुए कहा..
"हुम्म.. कोई तालाब लगता है..चल.. आगे से रास्ता होगा... !" नितिन ने रोहन से कहा और दोनो फिर से सीधे रास्ते पर चल पड़े..

कुच्छ आगे जाकर उनको एक पगडंडी सी बाई और जाती दिखाई दी.. दोनो ने आँखों ही आँखों में उस रास्ते पर सहमति जताई और उस और बढ़ चले...

"ओह तेरी मा की आँख.. यहाँ तो कीचड़ है..! चल वापस चल.. ये रास्ता नही है.." मन ही मन नितिन उस लड़की को कोस रहा था जिसके प्यार में पागल रोहन अपने साथ साथ उसकी भी दुर्गति कर रहा था...

"यार, आधे रास्ते तो आ ही चुके हैं... आगे चलकर तलब में धो लेंगे पैर.. अब वो लाइट भी नज़दीक ही दिखाई दे रही है..." रोहन ने मायूसी से नितिन को देखते हुए कहा..

"चल साले.. अगर फिर भी लड़की नही मिली तो देख लेना... ऐसी बकवास जगह मैने आज तक नही देखी" बड़बड़ाता हुआ नितिन फिर से रोहन के आगे आगे चलने लगा...
"देखी क्यूँ नही है? तू तो मास्टर है ऐसे ठिकानो का... आधी जिंदगी तो तूने जंगलों में गुज़ार दी.. मुझ पर अहसान करने के लिए बोल रहा है क्या?" रोहन ने उस पर मजाकिया व्यंग्य किया...

"हां.. गुज़ारी है.. मगर ऐसे थोड़े ही.. पूरे बंदोबस्त के साथ चलना पड़ता है.. तू तो मुझे ऐसे ले आया जैसे हम उनके जन्वाइ हैं और हमारे इंतज़ार में वो किसी एरपोर्ट पर पलकें बिच्छाए बैठे होंगे.. राम जाने किस घड़ी कौन जानवर बाहर निकल आए? वो तो अच्च्छा हुआ में कम से कम अपनी रिवॉल्वेर साथ रखता हूँ.. कोई भरोसा है ऐसी बीहड़ सुनसान जगह का.." नितिन ने संभाल संभाल कर पैर रखते हुए बोला... दोनो की पेंट कीचड़ के छ्चींटों से घुटनो तक सन गयी थी..

उसके बाद ज़्यादा देर उनको चलना नही पड़ा.. कुच्छ दूर और चलने पर वो एक सॉफ सुथरे रास्ते पर पहुँच गये.. रास्ता पुराने जमाने की छ्होटी छ्होटी ईंटों से बना हुआ था.. वो जगह कोई चौराहा लग रही थी.... पानी का 'वो' तालाब यहाँ तक भी फैला हुआ था.. " चल, अपने पैर सॉफ करके आगे चलते हैं.. अब वो घर भी ज़्यादा दूर नही लगता..." रोहन ने गहरी साँस लेते हुए कहा..

दोनो ने वहाँ पानी में अपने पैर धोए और फिर से आगे बढ़ गये...

"यार, यहाँ गलियाँ और दीवारें तो इतनी दिखाई दे रही हैं.. पर घर कहाँ हैं.. ? क्या इस गाँव में वो एक ही घर है जहाँ लाइट जल रही है...?" नितिन ने हैरानी से रोहन की और देखा...

"मैने पूचछा नही यार.. क्या पता एक ही हो.. चल.. तू चलता रह!" रोहन ने खिसियाई हुई बिल्ली की तरह से बेतुका सा तर्क दिया और अपने प्यार को पाने की उम्मीद में आगे बढ़ता रहा.. नितिन के साथ साथ..

बड़े ही विस्मयकारी अनुभव का सामना दोनो को करना पड़ रहा था.. काफ़ी देर तक चलने के बाद भी वो 'रोशनी' उनसे अभी भी उतना ही दूर लग रही थी.. उन्होने गलियाँ भी बदली, पर हर बार कुच्छ दूर चलते ही फिर से वो रोशनी ठीक उनके सामने आ जाती.. और फिर से उनको उसी रास्ते पर चलते रहने का अहसास होता...

"धात तेरे की... देख.. रोहन.. मुझे तो सब कुच्छ गड़बड़ लग रहा है.. भला ऐसी जगह पर भी आजकल कोई घर बनाता है.. 'वो' लड़की सच में यहाँ होगी ना...?" नितिन थक हार कर खड़ा हो गया...

"है ना भाई.. तू मेरा.. अरे.. देख बच्चा!" रोहन एक दम उच्छल पड़ा..

रोहन की बात सुनते ही नितिन का दिल उसकी बल्लियों पर आ गया..," बच्चा.. रात के 11 बजे.. घर से बाहर, वो भी ऐसी सुनसान जगह पर? आख़िर तू मुझे बात क्लियर क्यूँ नही कर रहा.. कौन है वो लड़की.. यहाँ आख़िर करते क्या होंगे उसके घर वाले..!" नितिन का दिमाग़ चकराने लगा था.. जिस तरह सी परिस्थितियाँ वहाँ उत्पन्न हो रही थी.. ऐसा होना लाजिमी ही था...

रोहन ने बिना कुच्छ बोले नितिन का हाथ पकड़ा और उस 'बच्चे' की और लपका..

दीवार के साथ खड़ा वो बच्चा झुक कर कुच्छ कर रहा था.. जैसे ही वो दोनो उसके करीब पहुँचे.. वो पलट कर मुस्कुराया...
बड़ा ही मासूम सा बच्चा था.. करीब 8 साल की ही उमर होगी.. दोनो उसकी शकल देखते ही हैरान रह गये.. उसके मुँह पर ऐसा लगता था जैसे किसी चोट का घाव बना हुआ हो.. ताज़ा घाव.. उसके होंटो के पास से खून रिस रहा था.. उसकी आँखों में गहरी चमक थी.. और चेहरे पर अजीब सा मैलापन...

दोनो उस'से कुच्छ दूरी पर ठिठक गये.. बच्चा उनकी और लगातार, बिना पलकें झपकाए देख रहा था.. उसकी आँखों में ना तो आसचार्य का भाव था.. ना ही किसी तरह के भय का.. पर आँखों की तेज चमक में भी अजीब से सूनेपन ने उनको चौंका दिया...
नितिन ने उस'से फासला बनाए हुए ही सवाल किया," यहाँ क्या कर रहे हो, बेटा.. इतनी रात को...?"

"अपने पैरों का कीचड़ सॉफ कर रहा हूँ अंकल.." बड़ी ही मासूमियत से बच्चे ने जवाब दिया.. उसकी आवाज़ और बात करने के ढंग से उनको कहीं से भी ये अहसास नही हुआ की उसकी उमर 4 साल से उपर होगी.. हालाँकि कद काठी से पहले उन्होने उसके 7-8 साल का होने का अनुमान लगाया था...

"यहाँ कोई नीरू रहती है.. ? बता सकते हो उसका घर कौनसा है?" रोहन का दिल बैठने लगा था.. यहाँ तो सब कुच्छ अजीब ही हो रहा था.. उसने जल्दी से वहाँ से टलने में ही भलाई समझी...

लड़के ने उंगली उठा कर रोशनी की और इशारा कर दिया..," वहाँ! हम सब वहीं रहते हैं.. उस हवेली में!"

"मतलब... मतलब तुम.. तुम्हारी कुच्छ लगती है क्या वो?" रोहन को रह रह कर झटके से लग रहे थे....

"पर उस 'हवेली' का रास्ता किधर से है.. हम तो ढूँढते ढूँढते थक गये.. और तुम घर क्यूँ नही गये अभी तक.. यहाँ क्या कर रहे हो..?" नितिन ने बच्चे से सवाल किया..

"मैं खो गया हूँ अंकल.. मुझे भी रास्ता नही मिल रहा.. इतने दीनो से ढूँढ रहा हूँ.." लड़के ने उतनी ही मासूमियत से जवाब दिया..

"क्क्कितने दीनो से..?" लड़के के हर जवाब के साथ दोनो के दिल की गति बढ़ती जा रही थी..

" 74 साल से....?"

"भाग नितिन.. भाग.. हम फँस गये नही तो.. समझ ले मारे गये.." रोहन ने नितिन का हाथ पकड़ कर अपनी और खींचा.. भागने के लिए.. पर जाने क्यूँ नितिन वहाँ से हिल नही पाया...शायद उत्सुकतावश," क्यूँ मज़ाक कर रहे हो यार? क्यूँ झूठ बोल रहे हो..?"
इस बार लड़के के चेहरे पर शिकन और शदियो पुरानी तड़प उभर आई," मैं मज़ाक क्यूँ करूँगा अंकल? मरे हुए लोग झूठ नही बोलते!"



रोहन की वहीं खड़े खड़े घिघी बाँध गयी.. जिस तरह की अजीबोगरीब परिस्थितियाँ वहाँ उत्पन्न हो रही थी, जिस तरह से वो बच्चा उन्हे मिला और जो कुच्छ उसने बोला.. दोनो के कलेजे बाहर निकल आने पर उतारू हो गये.. रोहन को अहसास हो रहा था की उसने यूँ पागलपन में यहाँ आकर कितनी बड़ी भूल की है.. वो खड़े पैर वहाँ से भागना चाहता था, पर नितिन को वहाँ छ्चोड़कर कैसे भागे.. वो बस नितिन के इशारा करने का इंतज़ार कर रहा था, जिसने घबराहट में अपनी रिवॉल्वेर उस बच्चे पर तान दी," गेट आउट फ्रॉम हियर?"

"क्या अंकल?" नन्हे से बच्चे के चेहरे से नादानी और मासूमियत छू छू कर टपक रही थी..

"दफ़ा हो जाओ यहाँ से! भाग जाओ..."

" पर मुझे एक बार घर छ्चोड़ आओ ना.. मुझे घर नही मिल रहा है..!" बच्चे ने विनम्रता से प्रार्थना की...

सिर्फ़ उस लड़के की वो प्यारी सी आवाज़ ही थी जो अब तक उन्हे पैरों पर खड़े रहने लायक साहस दे रही थी.. पर आगे बढ़ने की तो बात सोचना भी अब दुश्वार था.. नितिन ने रोहन की आँखों में देखा और वो उल्टे पाँव हो लिए.. कुच्छ दूर तक यूँही सावधानी पूर्वक पिछे देखते देखते जब वो उस बच्चे की आँखों से औझल हो गये तब जाकर रोहन की आवाज़ निकली," रास्ता याद है ना भाई...?"

"सीधा चलता रह.. अब अपनी बकबक बंद रख थोड़ी देर" नितिन ने गुस्से से उसको झिड़क दिया..

उसके बाद तो उन्होने कीचड़ वाले रास्ते से होते हुए सड़क पर जाकर ही दम लिया.. तब तक तो शायद साँस भी गिन गिन कर ले रहे थे... दोनो तेज़ी से एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए आगे बढ़ने लगे.. अब मेंधकों का टर्राना उनको किसी भूत नगरी में चल रहे रहस्यमयी संगीत से कम नही लग रहा था.. झाड़ियों में ज़रा सी भी सरसराहट होते ही दोनो की साँसे जम जाती थी.. राम का नाम जप्ते जप्ते आख़िरकार वो अपनी गाड़ी तक पहुँच ही गये... पर जहाँ पैदल जाने में उनको एक घंटे से भी ज़्यादा का समय लगा था.. वापस आने में आधा घंटा भी नही लगा...

"साले, कहाँ मौत के मुँह में ले गया था तू मुझे..?" नितिन ने गाड़ी स्टार्ट करके बे-इंतहा पसीने से सना अपना चेहरा पौच्छा..

"सॉरी भाई.. मुझे नही पता था कि...." रोहन भी अब ढंग से साँसे ले पा रहा था..

"आबे सॉरी के बच्चे.. ये बता आख़िर नीरू है कौन? क्या लॅफाडा है तेरा उस'से.. और उसने तुझे यहाँ क्यूँ बुलाया था..." नितिन ने बनावटी गुस्से से कहा.. उसको इस बात का सुखद अहसास था कि वो सकुशल वापस लौट आए.. 'वहाँ से'
गाड़ी ने जैसे ही रफ़्तार पकड़ी.. उसको अहसास हो गया की कुच्छ ना कुच्छ गड़बड़ ज़रूर है," गाड़ी पंक्चर हो गयी है.. शायद.. अब क्या करें?" कहकर नितिन ने गाड़ी की रफ़्तार धीमी करते हुए उसको साइड में रोक दिया...

रोहन सहमी हुई नज़रों से नितिन को देखने लगा," सॉरी यार.. मेरी वजह से..."
नितिन उसकी बात पर ध्यान दिए बिना गाड़ी से उतरा और टाइयर चेक किए.. चारों टाइयर ज़मीन में धाँसे हुए से थे.. सबकी हवा गायब थी.. नितिन वापस गाड़ी में आया और अपना सिर पकड़ कर बैठ गया...," अब क्या करें.. एक में पंक्चर होता तो.."

"अगला गाँव कितनी दूर है भाई.." रोहन खुद की नासमझी से नितिन को भी परेशानी में डाल देने के कारण शर्मिंदा था..

"होगा कोई 5-7 काइलामीटर और.. क्यूँ?" नितिन अब सामान्य हो चुका था.. जो होना था वह तो हो ही चुका था.. गनीमत थी जो हो सकता था, वह नही हुआ..

"वहाँ तक ले चलो किसी तरह.. शायद वहाँ कोई पंक्चर लगाने वाला मिल जाए.."
और कोई चारा भी नही था.. नितिन ने गाड़ी धीरे धीरे लुढ़कानी शुरू की...

गाँव आते ही उन्होने पहले ही घर के सामने गाड़ी रोक दी.. ये घर गाँव से बाहर था.. कुच्छ अलग हटकर," यहाँ पूछ्ते हैं.. गाँव में कोई पंक्चर लगाने वाला हो तो..."

दोनो गाड़ी से उतरे और दरवाजे के सामने जाकर उस पर थपकी लगाई..

"कौन?" घर के अंदर से आई निहायत ही मीठी आवाज़ ने उनके कानो में मिशरी सी घोल दी... आवाज़ किसी नवयौवना की लगती थी..

"जी.. हम बाहर से आए हैं.. थोड़ी मदद चाहिए..!" नितिन ने रोहन के बोलने से पहले ही जवाब दे दिया...

"बापू! वो आ गये.." अंदर से लड़की की वही सुरीली आवाज़ बाहर तक आ रही थी..
यहाँ तो रह रह कर झटके लग रहे थे.. नितिन ने रोहन की और देखा और धीरे से बोला," ये तो इस तरह से कह रही है जैसे ये हमारा इंतजार ही कर रहे थे.." कहकर दोनो सावधान हो गये....

'छर्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर..' दरवाजा पुराना था.. इसी आवाज़ के साथ खुला.. एक बार को तो इस आवाज़ ने भी उनको डरा दिया था.. कहते हैं ना 'दूध का जला छाछ को भी फूँक फूँक कर पीता है...

करीब 60 साल के अधेड़ आदमी ने दरवाजा खोला.. उसकी आवाज़ में भी उतनी ही मधुरता थी.. उपर से नीचे तक दोनो को देखा और बोला," पुराने टीले से आए हो ना...?"

"ज्जई.. क्या मतलब? पुराना टीला? हम कुच्छ समझे नही..." दोनो की हालत देखने लायक थी.. रोहन मन ही मन सोच रहा था.. ये रात किसी तरह से गुजर जाए..

"तुम्हारे पैरों में ये चिपचिपा सा कीचड़ लगा है ना.. इसीलिए पूचछा.. ये वहीं का कीचड़ है!" बुड्ढे ने बिना किसी शंका के उनसे कहा..

दोनो ने जैसे ही नीचे झुक कर देखा..," हां पर..?"

"तुमने खूनी तलब के पास से गुज़रे होगे बेटा... आ जाओ.. अंदर आ जाओ!" बुद्धा कहकर पिछे घूमने लगा...

"ज्जिई.. जी.. नही.. धन्यवाद.. वो.. हमें बस.. यही पूच्छना था कि.. यहाँ पंक्चर कोई लगाता हो तो.. हमारी गाड़ी.." रोहन के लिए पल पल काटना मुश्किल हो रहा था...

"हे हे हे हे.. आ जाओ.. अंदर आ जाओ..!" बुड्ढे ने बड़े प्यार से रोहन की बाँह पकड़ी और हौले से अंदर खींच लिया... रोहन में जैसे प्रतिरोध करने की ताक़त बची ही ना हो.. कठपुतली की तरह वो अंदर उसके साथ घुस गया...

अब नितिन के पास भी कोई चारा नही बचा.. रोहन को यूँ छ्चोड़कर भागता कैसे? नही तो हालत अब तक उसकी भी पतली हो चुकी थी.... वो भी पिछे पिछे हो लिया....
"आओ बैठो! यहाँ आ जाओ..अर्रे भाई शर्मा क्यूँ रहे हो? आओ बैठो ना!" बुड्ढे ने उनको कमरे में ले जाते हुए पूरी शराफ़त के साथ उन्न पर हक़ जताते हुए बात कही.. पर शराफ़त और मासूमियत के पिछे छिपि भयावहता को उन्होने घंटा भर पहले ही महसूस किया था.. इसीलिए दोनो के मन में उथलपुथल जारी थी.. दोनो ने एक दूसरे की आँखों में देखा और पूरी सतर्कता बरत'ते हुए दीवार के साथ बिछे पलंग पर जा बैठे.. उनकी कमर के पिछे सिर्फ़ एक सपाट दीवार थी.. वो वहाँ इसीलिए बैठे ताकि कमरे में होने वाली हर गतिविधि पर नज़र रख सकें...

" श्रुति बेटा.. ज़रा कुच्छ पानी वानी ले आओ.. इतनी देर क्यूँ लगा रही हो..?" बुड्ढे ने उन्न दोनो के सामने बैठते हुए बाहर मुँह करके आवाज़ लगाई...

"लाई बापू..!" बाहर से वही सुरीली आवाज़ दोनो के कानो में पड़ी...

"तो.. वहाँ क्या करने गये थे तुम लोग? शहरी मालूम होते हो..!" बुड्ढे ने बड़ी ही आत्मीयता से दोनो से पूचछा..

"ज्जई.. हम रास्ता भटक गये थे..!" नितिन ने बात को गोलमोल करते हुए जवाब दिया.. ये कहना उनको कतयि मुनासिब नही लगा की वो किसी लड़की की तलाश में वहाँ अपनी ऐसी तैसी करने गये थे...

"हुम्म.. तुम दो ही गये थे या कोई वहीं रह गया...?" बुड्ढे ने सहजता से बात कही...

"जी.. क्या मतलब?.. हम दो ही थे बस..!" इस बार भी नितिन ने ही जवाब दिया.. रोहन तो चुपचाप ही उनकी बातें सुन रहा था.. वो इसी उधेड़बुन में था की यहाँ से निकलेंगे कब...

"शुक्र है.. दोनो ठीक ताक वापस आ गये..!" बुड्ढे ने गहरी लंबी साँस लेते हुए बीड़ी सुलगा ली," पीते हो क्या?" कहकर बुड्ढे ने बीडीयों का बंड्ल उनकी और बढ़ाया..

"जी नही.. शुक्रिया...!" नितिन ने विनम्रता से मना कर दिया..

तभी रोहन पलंग से लगभग उच्छल कर खड़ा हो गया," नी...?"

नितिन ने चौंकते हुए पहले रोहन की और देखा और फिर उसकी नज़रों का अनुसरण करते हुए निगाहें दरवाजे पर जमा दी..
"क्या हुआ बेटा? तुम खड़े क्यूँ हो गये...?" बुड्ढे ने भी रोहन से बात कहकर दरवाजे की और देखा," ये मेरी बेटी है.. श्रुति.. आ जाओ बेटी.. "

रोहन की साँसें उसके हलक में ही अटकी हुई थी अभी तक.. दरवाजे से अंदर आने वाली लड़की नीरू ही तो थी.. वही नीरू जिसके लिए रोहन पागल हुआ जा रहा था.. सुंदरता की अद्भुत मिशाल थी वो.. सिर से लेकर पाँव तक.. छर्हरा लंबा बदन, हल्की सी लंबाई लिए हुए लगभग गोलाकार गोरे चेहरे पर अद्भुत कशिश लिए हुए लंबी कजरारी आँखें.. हल्का गुलबीपन लिए हुए रसीले होंठ, सुरहिदार लुंबी गर्दन.. और..

खैर यूँ कहें की सौंदर्या रस उसके बदन में सिर्फ़ दिख ही नही रहा था.. मानो टपक रहा हो.. उसकी मासूमियत से, उसके शर्मीले पन से, उसके यौवन से.. उसकी हर अदा से..

बिना एक बार भी पलकें उठाए उसने उनके सामने टेबल पर पानी रखा और वापस चलने लगी..

"बेटी.. खाना बना देना.. जाने कब से भूखे होंगे बेचारे..!"

"जी बापू.. मैने सब्जी रख दी है.." नज़रें झुकाए हुए ही उसने मुड़कर अपने लरजते होंटो से बात कही और बाहर निकल गयी..
"जी नही.. हमें भूख नही है.. हम अब बस निकलेंगे.. आप बस किसी टाइयर पंक्चर वाले का घर बता दें" नितिन ने खड़ा होते हुए कहा.. दरअसल रोहन को इस तरह चौंकते देख नितिन के मन में अनेक सवाल खड़े हो गये थे.. और वह जल्द से जल्द बाहर निकल कर सब क्लियर करना चाहता था...

"नही भाई.. ऐसे कैसे जाने दूँगा तुम्हे? ये भी कोई जाने का टाइम है.. और इस गाँव में कोई पंक्चर लगाने वाला भी नही है.. अभी आराम से खाना खाकर सो जाओ.. सुबह देख लेना.." बुड्ढे ने नितिन का हाथ पकड़ कर उसको वापस चारपाई पर बैठा दिया...

नितिन ने रोहन की और देखा.. उसकी आँखों की चमक बता रही थी की उसको अपनी मंज़िल मिल गयी है..

" ठीक है अंकल जी.. जब आप इतना दबाव डाल रहे हैं तो यही सही.. आपका बड़ा अहसान होगा.." रोहन को मानो मुँह माँगा मिल गया...

"इसमें अहसान की क्या बात है बेटा..! आदमी ही आदमी के काम आता है.. और फिर मेहमान तो भगवान होता है अपने देश में.. किसी बात की चिंता मत करो.. इसे अपना ही घर समझो!" बुड्ढे ने बड़ी आत्मीयता से मुस्कुराते हुए कहा...

बुड्ढे की बातों ने दोनो को तसल्ली सी दी.. कम से कम यहाँ अब तक कुच्छ वैसा नही हुआ था, जिसस'से उन्हे यहाँ भी कुच्छ अजीबोगरीब होने का डर रहे..

"अंकल जी.. ये खूनी तालाब का क्या चक्कर है?" नितिन ने हिचकिचाते हुए बात चला ही दी...

नितिन के ज़िक्र करते ही बुड्ढे की आँखें अतीत का कुच्छ याद सा करने के अंदाज में सिकुड सी गयी," उसके बारे में हम गाँव के लोग किसी को बताते नही बेटा.. बस इतना ख़याल रखना की दोबारा कभी उस तरफ भूल कर भी मत जाना.. और ना ही किसी से इसका जिकर करना.. तुम सही सलामत वापस आ गये, इसके लिए भगवान का धन्यवाद करो..!"

" हम किसी से नही कहेंगे.. पर बताने में हर्ज़ क्या है? कुच्छ तो बताइए..!" नितिन और रोहन दोनो उत्सुकता से कुच्छ बताने का मूड बना रहे बुड्ढे की और देख रहे थे...

"हूंम्म.. किसी से भूल कर भी जिकर मत करना.. हमारे बड़े कहते थे कि पुराने टीले की 'आत्मायें' बाहर के लोगों से नफ़रत करती हैं.. एक बार कोई अंग्रेज तुम्हारी ही तरह भटक कर वहाँ चला गया था.. सुबह उसकी लाश तालाब के किनारे पर मिली थी.. इतने बड़े बड़े कीड़े चल रहे थे उसकी आधी खाई हुई लाश में.." बुड्ढे ने कीड़ों का साइज़ बताने के लिए अपनी उंगली को लंबा कर दिया.. लाश का सिर तो बिल्कुल ही गायब था.. उसके पेट को चीर सा दिया गया था.. और दिल छाती से बाहर लटक रहा था.. बस फिर क्या था.. उसकी मौत का कारण जान'ने के लिए अँग्रेज़ों ने वहाँ डेरा डाल लिया... बहुत कोशिश की पर किसी को कुच्छ हासिल ना हुआ.. पर उसके बाद मौत बहुत हुई.. पर सारी बाहर के लोगों की.. इसीलिए अब हम किसी को कुच्छ नही बताते.. पढ़े लिखे लोग इन्न बातों में विस्वाश नही करते ना.. फिर कोई वहाँ का 'राज' जान'ने जाएगा और खम्खा मारा जाएगा.. क्या फायडा..?" कहकर बुद्धा अपने चेहरे पर पीड़ा के भाव लिए चुप हो गया..

"हम ऐसी ग़लती नही करेंगे अंकल जी.. किसी से कुच्छ कहेंगे भी नही.. बताइए ना.. और.. ऐसा क्या है वहाँ? और वो खूनी तालाब..?" नितिन की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी...

"तुम अब मानोगे नही पूच्छे बिना.. दरअसल वो तालाब बहुत पुराना है.. हज़ारों साल पुराना.. उसका पानी कभी नही सूखता.. पर जो वहाँ से तुम्हारी तरह बचकर वापस आ जाते हैं.. वो बताते हैं कि रात को तालाब का पानी लाल हो जाता है.. खून के जैसा.. इसीलिए हम उसको खूनी तालाब कहते हैं... 'आत्मा' के प्रकोप से बचने के लिए गाँव वाले वहाँ खड़े पीपल के पेड़ की पूजा करते हैं.. देखने वाले बताते हैं की रात भर पेड़ पर रोशनी रहती है.. पर रात में आज तक कोई उसके पास पहुँच नही पाया.. या जो पहुँचा होगा.. मरा गया होगा.. सुना है वहाँ एक छ्होटे बच्चे की आत्मा भी भटकती रहती है.."

"हाँ.." रोहन बच्चे के बारे में बोलने ही वाला था की नितिन ने उसका हाथ दबा दिया और उसने अपनी बात पलट दी," हां.. आत्मा होती हैं.. मैने भी सुना है!"

"सुना क्या है बेटा.. गाँव वालों ने तो उस बच्चे को देखा भी है.. बताते हैं की 'वो' बच्चा वहाँ जाने वाले लोगों को उसके घर छ्चोड़ आने को कहता है.. पीपल के पेड़ पर....

" पर वो आत्मायें आख़िर हैं कौन? और बाहर वाले लोगों से ही नफ़रत क्यूँ करती हैं वो?" बुड्ढे के हर खुलासे के साथ नितिन की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी.. सब कुच्छ जान लेने के लिए.. हालाँकि वो 'आत्मा' के चक्कर को नही मानता था.. पर आज रात का अनुभव उसको उनके बारे में और सुन'ने को विवश कर रहा था...

"अब सच्चाई तो भगवान ही जानता है बेटा.. हुमारे पास तो सुनी सुनाई बाते हैं.. कहते हैं कि उस पीपल के पेड़ की जगह पहले किसी राजा का महल हुआ करता था.. तीन रानियाँ थी उसकी.. तीनो एक से एक सुंदर.. फिर किसी मुघल स्म्रात ने उस राजा को हरा कर रानियों के सामने ही उस पर चकला (रोलर) चलवा कर मरवा दिया और उस महल को अपना 'हरम' बना लिया.. तीनो रानियों समेत महल की सभी औरतों को अपना बंदी बनाकर रखा... जो कुच्छ 'वो' उन्न रानियों और औरतों के साथ करता था वो बताने लायक है नही.. तुम मेरे बेटों के जैसे हो.. पर हां.. हर सुबह एक अर्थी उठती थी महल से.. ये सिलसिला तब तक जारी रहा जब तक की महल में एक भी औरत बची... कहते हैं की ये 'आत्मायें' उसी राजा और उन्ही रानियों की हैं..."

"ऑश..!" नितिन ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा...

तभी श्रुति खाना ले आई और उसको टेबल पर सजाने लगी.. रोहन लगातार उसकी आँखों की और देख रहा था.. इस ताक में की श्रुति उसकी और देखे और वो उसकी आँखों में अपने लिए 'अपनापन' ढूँढ सके.. पर बदक़िस्मती से ऐसा हुआ नही.. श्रुति ने नज़रें उपर ही नही उठाई और खाना लगाकर बोली," आपके लिए भी ले आउ बापू?" आवाज़ में इतनी मिठास थी की रोहन उसके मुँह से अपना नाम सुन'ने को तरस गया.. अगर बापू ना होता तो वो कब का उसको टोक चुका होता...

"नही बेटी.. थोड़ी देर पहले ही तो खाया था.. तुम जाओ.. जाकर सो जाओ.. मैं आता हूँ थोड़ी देर में..."

"अच्च्छा बापू.. मैं कुण्डी नही लगाउन्गी.. आप आकर बंद कर लेना.." श्रुति ने अपने पिता की और देखते हुए कहा और फिर वापस मूड गयी...

"आपके घर में और कौन कौन हैं अंकल जी?" रोहन का इंटेरेस्ट सिर्फ़ नीरू के बारे में जान'ने को ही था..

"बस हम दो जान ही हैं बेटा.. बीवी इसको जनम देते ही गुजर गयी थी.. सो और कोई औलाद नही है.. कुच्छ दिन बाद तो मैं अकेला ही रह जाउन्गा.." बुड्ढे ने जवाब दिया..

"वो क्यूँ?" खाना खाते हुए ही रोहन ने उसकी और देखा...

" शादी नही करूँगा क्या बेटा.. लड़की तो पराया धन होती है.."

रोटी का टुकड़ा रोहन के हलक में ही अटक गया," कब.. कब कर रहे हैं शादी..?"

"अभी तो ये मान ही नही रही.. कहती है पढ़ाई पूरी करने के बाद सोचूँगी... नादान और भोली है पर जिद्दी भी बहुत है.. जो सोच लिया वो सोच लिया.. फिर किसी की नही सुनती ये.."

"श.. " रोहन की जान में जान आई.. पहले उसको लगा था कि कहीं शादी पक्की ना हो गयी हो इसकी..

खाना खाने के बाद बुड्ढे ने बर्तन उठाए और उनको सुबह मिलने को कहकर चला गया..

उसके जाते ही रोहन ने आँखें मटकाते हुए नितिन की और देखा," क्यूँ..? कैसी लगी..?"

"यही है वो?" नितिन को शक तो था.. पर ताज्जुब उस'से कहीं ज़्यादा...

"हुम्म.." रोहन खुशी से फूला नही समा रहा था.. अजीब सी खुमारी में उसने तकिये को अपनी छाती के नीचे दबाया और पेट के बल लेट गया..

"पर इसका नाम तो श्रुति है.. तू तो नीरू कह रहा था..?" नितिन ने दूसरे पलंग पर लेट'ते हुए दूसरा सवाल किया...

"नाम में क्या रखा है यार.. बस.. इतना जान ले, जिसके लिए मैं आया था.. मुझे मिल गया है.. मैं तेरे इस अहसान का बदला कभी नही चुका पाउन्गा.. मैं ना कहता था.. मेरी नीरू मुझे ज़रूर मिलेगी.." रोहन पर प्यार का भूत सवार था..
"आबे साले.. इसने तेरे को देखा तक नही और तू ऐसे उच्छल रहा है.. कहीं तुझे भूल ना गयी हो... कितने टाइम पहले मिली थी..?" नितिन उठकर बैठ गया..

"वो सब मैं तेरे को बाद में बताउन्गा.. पर तू ये तो बता की लगी कैसी तुझे..?"

"बहुत प्यारी है.. सच बोलूं तो.. इसके जैसी कोई लड़की मैने आज तक नही देखी.. अगर ये नीरू ना होती तो मैं इसके बारे में अपने लिए सोच रहा था.. और अब भी क्या पता.. ये श्रुति ही हो.. तेरी नीरू की हमशकाल.. तेरी नीरू तो तुझे वहीं मिलेगी.. पुराने टीले पर... हे हे हे" नितिन ने शरारती मुस्कान अपने चेहरे पर लाते हुए कहा...

" ऐसी बात मत कर यार.. मुझे अच्च्छा नही लगता.." रोहन ने मुँह बनाकर कहा..

"मज़ाक कर रहा हूँ बे.. पर एक बात मेरी समझ में नही आई...!" नितिन ने को जैसे कुच्छ अचानक याद आ गया हो..

"वो क्या?" रोहन भी उठकर बैठ गया..

"इसने तेरे को वहाँ क्यूँ बुलाया..? और बुलाया भी तो वहाँ मिलना चाहिए था.. अब किसको पता था कि हुमारी गाड़ी में पंक्चर हो जाएगा और हम वापस आकर इसी घर का दरवाजा खटखटाएंगे.. अगर हम सीधे निकल जाते तो शायद ही कभी दोबारा आते.. यहाँ पर.." नितिन की बात में दम था...

"हां यार.. वो तो है.. जब बात करेगी तो ज़रूर पूछोन्गा ये बात..." रोहन ने जवाब दिया...

" पर अब तो बता दे ये तुझे कहाँ मिली? कैसे मिली.. और कैसे पाटी?" नितिन जान'ने के लिए उत्सुक था...

"एक बार बात हो जाने दे.. फिर सब कुच्छ बताउन्गा.. हमारा मिलना अंकल जी की भूतो वाली कहानी से कम दिलचस्प नही है.. मुझे खुद विस्वास नही था कि मैं इस'से मिल पाउन्गा..."

"अभी बता दे ना.. अभी क्या दिक्कत है..?" नितिन ने इस बार ज़ोर देकर कहा था..
"ना.. अभी नही.. बहुत दिलचस्प बात है.. पर अभी कुच्छ नही कह सकता.. पहले इस'से बात कर लूँ...!" रोहन ने कहा और वापस लेट गया," चल अब सो जाते हैं.. सुबह जल्दी उठना है.."

"ठीक है बेटा.. लोग मतलब निकल जाने के बाद किस कदर रंग बदलते हैं.. ये मैं देख रहा हूँ.. चल अच्च्छा है.. मैं इंतजार करूँगा, तेरी इस'से बात होने की.. गुड नाइट!"

"गुड नाइट भाई गुड नाइट!" रोहन ने कहा और सिर के नीचे से तकिया निकाल कर सीने पर रख लिया.. दोनो हाथों में दबोच कर.....
कहानी अभी बाकी है फिर मिलेंगे अगले पार्ट के साथ
दोस्तो ये कहानी आपको कैसी लगी बताना मत भूलना
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

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