FUN-MAZA-MASTI
मैं कानपुर में MBBS की पढ़ाई करने के लिए आया हुआ था।
प्रथम वर्ष के छात्रों को रैगिंग से बचाने के लिए कॉलेज प्रशासन ने हम लोगों को हॉस्टल न देने का फैसला किया था क्योंकि सीनियर्स हॉस्टल आकर जूनियर छात्रों को परेशान किया करते थे।
इसलिए मजबूरन मुझे भी बाहर कमरा लेना पड़ा।
मेरी किसी से दोस्ती नहीं हुई थी इसलिए अकेले ही रहना था।
कानपुर के काकादेव मोहल्ले में मेरा एक पुराना दोस्त रहता था, मैंने उसे ही कमरा देखने का कार्यभार सौंपा, जब तक कमरा नहीं मिला तब तक मैं उसी के यहाँ रुका रहा।
एक दिन हम लोगों को एक अच्छा कमरा मिल गया, कमरा दूसरी मंजिल पर था, मकान मालिक एक बुजुर्ग दम्पति थे, ऊपर का कमरा होने की वजह से शान्ति थी और सुविधा भी अच्छी थी, लिहाज़ा मैंने वह कमरा ले लिया।
मैं अपने मकान मालिक को बाबूजी कहता था क्योंकि वे उम्र में मेरे पापा से भी बड़े थे।
अगले दो दिन तक पूरे घर में सिवाय उन लोगों के मैंने और किसी को नहीं देखा।
एक दिन वो इलेक्ट्रीशियन को लेकर मेरे कमरे में आये, क्योंकि मेरा पंखा नहीं चल रहा था।
जुलाई का महीना था और उमस भरी गर्मी पड़ रही थी।
जब इलेक्ट्रीशियन चला गया तो वे मेरे कमरे में बैठ गए और मेरे घर के बारे में पूछने लगे।
मैंने भी उनसे बातों बातों में पूछ लिया कि क्या वो घर में अकेले ही रहते हैं।
इस पर उन्होंने बताया कि उनके तीन बच्चे हैं, सबसे बड़ा बेटा और बहू भुवनेश्वर में रहते हैं, उससे छोटा बेटा और बहू उनके पास रहते हैं, छोटा बेटा नगर निगम में काम करता था, सबसे छोटी बेटी गाजियाबाद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी।
उन्होंने बताया की इस समय छोटा बेटा और बहू लखनऊ छोटी बहू के भाई की शादी में गए हैं।
थोड़ी बहुत बातचीत के बाद वो चले गए।
दो तीन दिनों के बाद की बात है, मैं शाम को साढ़े पाँच बजे कॉलेज से वापस आया, मैंने गेट खुलवाने के लिए घण्टी बजाई।
रोज आंटी जी गेट खोलती थीं लेकिन उस दिन ज्यों ही गेट खुला मैं दंग रह गया।
क्या बला की खूबसूरत आकृति थी सामने!!
एकदम दूध सा सफ़ेद रंग, गुलाबी होंठ, बड़ी बड़ी भूरी आँखें, माथे से लेकर नीचे गले तक लटकती घुंघराली लटें…
मैं मंत्रमुग्ध सा बस उसे ही देखता रहा।
मैं समझ गया कि यही इनकी छोटी बहू है, खैर मेरी तंद्रा तब टूटी जब उसने कहा- कहिये, क्या काम है?
मैंने कहा- जी मैं यहीं रहता हूँ ऊपर!
‘ओह ! सॉरी, अन्दर आ जाइये।’ उसने कहा।
मैं सीढ़ियाँ चढ़ते हुए बस उसी के बारे में सोचता रहा, कितनी खूबसूरत थी वो !! उसने दुपट्टा सिर पर ले रखा था जिससे उसकी चूचियों के उभार साफ़ दिख रहे थे, बहुत बड़े थे उसके उरोज, और क्या मस्त दरार थी !
सच में अभी भी वो दृश्य याद करके लण्ड खड़ा हो जाता है।
मैं मन ही मन खुश हो रहा था की चलो अब यदा कदा आँख सेंकने का जुगाड़ हो गया, उस रात को मैंने उसी के नाम का सड़का मारा और सो गया।
अगले दिन सुबह नहाने के बाद मैं कपड़े फैलाने लगा तो मैंने दखा कि 32-35 साल का एक आदमी फ़ोन पर बात कर रहा है, मैं समझ गया कि यही मकान मालिक का छोटा लड़का है।
मैं कपड़े फैलाकर जाने लगा तो पीछे से आवाज आई- अरे सुनो यार!
मैं उसकी ओर मुड़ा तो उसने पूछा- आप ही नए किरायेदार हो?
मैंने कहा- जी हाँ! आप कौन?
उसने कहा- मैं आपका मकान मालिक हूँ।
फिर उसने मेरे बारे में पूछा, मसलन मैं क्या करता हूँ और कहाँ से हूँ वगैरह।
फिर उसके बाद थोड़ी बहुत बातचीत हुई फिर वो नीचे चला गया और मैं कॉलेज के लिए तैयार होने लगा।
दोस्तो, भाभी जितनी हसीं थी, उतना ही बेकार उसका पति था, बिल्कुल पतला दुबला, हाँ लम्बाई ठीक थी, गालों में गड्ढे पड़ चुके थे, आँखों के चारों और काले घेरे, कुल मिलाकर यह तो उसका नौकर भी नहीं लगता था।
मुझे मन ही मन भाभी पर तरस आया।
उसका नाम विनोद था, तथा भाभी का नाम शर्मिष्ठा था, उनके सास ससुर उन्हें शमीं बुलाते थे।
दो दिन बाद रविवार था और मेरी छुट्टी थी, मैं फ्री था, जुलाई का महीना था उमस भरी गर्मी पड़ रही थी, शाम का वक्त था और लाइट भी चली गई थी इसलिए घर के सारे लोग छत पर आ गए थे।
मैं भी बाहर निकला, विनोद ने मुझे हाय किया और मुझसे बातें करने लगा लेकिन मेरी आँखें तो बस शर्मिष्ठा को ढूंढ रहीं थी, उसका कहीं पता न था।
वो शायद नीचे ही थी, खैर थोड़ी देर में रात हो गई और सब लोग घर में नीचे चले गए, मैं भी कमरे में चला आया।
अगले दिन सुबह मैं ब्रश कर रहा था तो भाभी छत पर कपड़े डालने आई, वो नहाकर आई थी, उसकी सलवार उसके चूतड़ों से चिपकी थी और कमीज चूतड़ों की दरार में घुसी थी।
मैं पागल हो रहा था।
उसके बाल खुले थे, मैं उसे देख रहा था, फिर वो अचानक पलटी और बोली- यह वाश बेसिन जाम हो जाता है, पापा से बोलकर सही करा लीजिये..
मैं हड़बड़ा गया मेरे मुँह से निकला- अररे !! हाँ, वो बोला था भाभी।
मेरे ऐसे बोलने से वो मुस्कुराने लगी।
हाय ! मेरी तो जैसे जान ही निकल गई..
फिर वो बोली- आप क्या कर रहे हैं?
मैंने कहा- भाभी मैं MBBS कर रहा हूँ GSVM मेडिकल कॉलेज से..
वो बोली- अच्छा तो आप डॉक्टर साहब हैं।
मैंने कहा- अरे नहीं भाभी, अभी तो साढ़े पाँच साल पढ़ना है।
फिर मेरे बारे में थोड़ा बहुत पूछकर वो चली गई, मेरी ख़ुशी का ठिकाना न था मैं तो मानो सातवें आसमान पर था, मैं ख़ुशी ख़ुशी कॉलेज गया।
फिर तो यह रोज का सिलसिला हो गया, वो सुबह छत पर आती और हम दोनों खूब बातें करते, मैं उसे कॉलेज की बातें बताता, जोक सुनाता मिमिक्री करता, वो खूब हंसती।
दोस्तो, उसके चेहरे पर हमेशा एक उदासी सी रहती थी, अपने सास ससुर से ज्यादा बोलती भी नहीं थी।
हाँ मुझसे काफी बातें करती थी।
उसने मुझे बताया कि वो भी डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन किसी कारण से वो पढ़ाई आगे जारी नहीं रख सकी, इसी कारण से वो मुझसे ज्यादा से ज्यादा मेडिकल कॉलेज की लाइफ के बारे में जान लेने चाहती थी।
उसे हंसाने के लिए मैं जोकर बना रहता।
हाँ वो अपने घर वालों और पति से डरती बहुत थी इसलिए बहुत धीरे बोलती और वो लोग जैसे ही बुलाते थे वैसे ही भाग कर जाती थी।
एक दिन मैंने पूछ ही लिया- भाभी, बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?
उसने मुस्कुरा कर कहा- हाँ, बुरा मान जाऊँगी।
मैंने कहा- तो मैं नहीं पूछूँगा।
उसने कहा- अरे नहीं भई, पूछो न।
‘आप हमेशा उदास सी क्यूँ रहती हैं? मैंने आपको कभी भी आपके घर वालों के साथ खुश नहीं देखा?’
वो बात को टाल गई, उसने कहा- खुश तो हूँ, देखो अभी कितना हंस रही थी।
इसके बाद वो थोड़ा देर और रुकी फिर चली गई।
उसी दिन शाम को मुझे घर जाना था, जन्माष्टमी की छुट्टी थी, मैंने सोचा दो तीन दिन के लिए घर हो आऊँ, मैं बैग लेकर नीचे उतरा और सोचा कि बाबूजी को बता दूँ।
मैंने नीचे के दरवाजे की बेल बजाई, दरवाजा शमी ने खोला।
मैंने कहा- भाभी, मैं घर जा रहा हूँ, दो तीन दिन में आऊँगा।
शमी का चेहरा उदास हो गया, वो बोली- दो दिन या तीन?
मैंने कहा- अच्छा जी, दो दिन!
इतना कहकर मैं घर चला आया लेकिन मेरा मन बिल्कुल नहीं लगा।
घर आने पर मुझे मलेरिया हो गया जिससे मैं 10 दिन तक रुक गया, इस बीच मुझे शमी की बहुत याद आती थी, मुझे लगा कि मैं उससे प्यार करने लगा हूँ, उसका वो गोल प्यारा चेहरा, बड़ी बड़ी आँखे, बार बार याद आते।
मैं अकेले में उसके विरह में खूब रोता।
आखिर वो घड़ी आ गई जब मैं ठीक होकर कानपुर पहुँचा, मैंने धड़कते दिल के साथ घण्टी बजाई, मैंने मन ही मन प्रार्थना की कि शमी ही दरवाजा खोले, लेकिन दरवाजा आंटी जी ने खोला।
वे बोली- आओ बेटा, बहुत दिन रुक गए?
मैंने कहा- हाँ आंटी, मलेरिया हो गया था।
मेरी आँखें उस वक्त शमी को ही ढूंढ रहीं थीं लेकिन वो नहीं दिखी।
शायद अन्दर ही थी।
उसकी एक झलक का इंतज़ार करते करते शाम हो गई लेकिन मेरी तरसती आँखों को मेरी जान का दीदार नहीं हुआ।
तभी शाम को 6 बजे नीचे से आंटी की आवाज आई- उदित, चाय पियोगे?
मैंने कहा- हाँ आंटी, अभी आता हूँ।
आंटी ने कहा- रुको, वहीं भिजवाती हूँ।
मेरा दिल जोर से धड़कने लगा, मैं मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि ‘हे भगवान… शमी ही आये चाय लेकर, पैरों की आवाज सीढ़ियों पर सुनाई देने लगी, मैं अपना दिल थामे दरवाजे पर खड़ा हो गया।
फिर अगले पल मुझे लगा कि खुदा जैसे मुझ पर मेहरबान है, मेरे सामने चाय का कप लेकर शमी खड़ी थी।
हमेशा की ही तरह शांत… उदास…
मैंने कहा- आइये भाभी!
वो बिना कुछ बोले सिर झुकाकर अन्दर आ गई, मैंने उसके हाथ से कप और प्लेट ले लिया, जैसे ही मैंने कप मेज पर रखा, वो फफककर रो पड़ी।
मैं उसकी और दौड़ा, उसे छूकर सान्त्वना देने का साहस मुझमें न था, मैंने पूछा- क्या हुआ? क्यूँ रो रही हैं आप?
वो बोली- तुम कहाँ चले गए थे मुझसे बिना बताये?
मैंने कहा- घर गया था, मलेरिया हो गया था इसलिए ज्यादा दिन रुकना पड़ गया।
वो बोली- तुम ठीक तो हो ना?
मैंने कहा- हाँ, लेकिन आप रो क्यूँ रही हैं?
उसने कहा- बस ऐसे ही!
मैंने कहा- नहीं आपको बताना होगा।
उसने कहा- मुझे जाना है खाना बनाना है अभी।
पता नहीं कहाँ से मेरा साहस बढ़ गया, मैंने उसके झुके हुए चेहरे को ठोढ़ी से पकड़कर ऊपर उठाते हुए कहा- आपको मेरी कसम!
उसने कहा- मैं 11 बजे आऊँगी।
फिर वो चली गई।
यारो, उसके चेहरे का स्पर्श कितना मधुर और सुखद था, मैं तो खाना पीना छोड़ बस उसी के बारे में सोचता रहा और बेसब्री से 11 बजने का इंतज़ार करने लगा।
जैसे तैसे मैंने वो 4-5 घंटे काटे।
11 बज चुके थे, आसमान साफ़ था, पानी बरसकर थम चुका था, हल्की हल्की हवा चल रही थी, मैं बेसब्री से दरवाजा खोले अपने कमरे में चहलकदमी कर रहा था, किसी के कदमों की आहट मुझे सीढ़ियों पर सुनाई देने लगी, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा।
शर्मिष्ठा मेरे सामने आकर खड़ी हो गई, मैं अपलक उसे ही देखता रहा और वो मुझे…
करीब 2 मिनट बाद मैंने चुप्पी तोड़ी- अब बताओ न भाभी, क्यूँ रो रही थी आप?
उसने कहा- अन्दर तो आने दो!
हम दोनों अन्दर आ गए मैंने अन्दर से दरवाजा बंद कर लिया।
उसने कहा- डॉक्टर साहब, पहले मुझे भाभी कहना बंद करो, मैं तुमसे 2-3 साल ही बड़ी हूँ।
मैंने कहा- आप कितने साल की हो?
उसने कहा- 23 साल की!
दोस्तो, वो तो 23 से भी कम की लगती थी।
मैंने कहा- अच्छा शमी बताओ, क्यूँ दुखी थी आज तुम?
वो हंसने लगी और बोली- तुम बहुत भोले हो उदित, मुझे बैठने को भी नहीं बोला और सवालों की झड़ी लगा दी?
मैंने कहा- ओह सॉरी!
अपनी इस मूर्खता पर खुद मुझे भी हंसी आ गई।
मेरे कमरे में एक कालीन था, मैंने दीवार के सहारे उसे बिछाया और हम दोनों दीवार के सहारे टेक लेकर बैठ गए।
शमी ने कहा- शादी को 4 साल हो गए लेकिन खुल कर कभी हंसने लायक मौक़ा कभी नहीं आया इस घर में, तुमसे मिली तो लगा जैसे किसी अपने से दुबारा मिली हूँ, तुम्हारी सारी बातें मुझे बहुत सुकून देती हैं, फिर उस दिन तुम अचानक चले गए और 10 दिन तक नहीं आये तो मेरे मन में तरह-तरह के बुरे ख्याल आने लगे, और जब तुम आये तो बस ऐसे ही आँखों में आँसू आ गए।
‘मैंने भी तुम्हे बहुत मिस किया शमी!’ मैंने कहा।
फिर हम दोनों चुप हो गए, वो शून्य में देखने लगी।
मैंने कहा- भैया कहाँ है शमी?
उसने कहा- ननद के कॉलेज की फीस जमा करने गाज़ियाबाद गए हैं, परसों आयेंगे।
‘और अंकल-आंटी?’ मैंने सशंकित स्वर में कहा।
‘सो गए हैं।’ उसने कहा।
फिर थोड़ी देर की चुप्पी के बाद उसने कहना आरम्भ किया- उदित मैं एक गरीब घर से हूँ, हम 4 बहने हैं, मैं सबसे बड़ी हूँ, पापा की कपड़े की दुकान थी मलीहाबाद में, उसमें आग लग गई, तब मैं हाई स्कूल में पढ़ती थी, सब कुछ जल गया, उसी के इन्श्योरेन्स के पैसे लेने पापा एक दिन जा रहे थे तो उन्हें जीप ने टक्कर मार दी, जिससे उनका देहांत हो गया। मम्मी ने सिलाई करके और घर किराए पर देकर हम 4 बहनों को पाला, मैंने भी किसी तरह b.sc. में दाखिला लिया। फिर एक दिन एक रिश्तेदार ने मेरी शादी के लिए मम्मी को यह परिवार बताया।
‘फिर?’ मैंने पूछा।
शमी बोली- उन्होंने बताया कि लड़का उम्र में थोड़ा ज्यादा है बाकी सब ठीक ठाक है, नौकरी भी करता है। तब मैं 19 साल की थी और ये 30 के थे, मैंने जब पहले दिन शादी के बाद इन्हें देखा तो बहुत रोई, लगा कि जैसे मेरा सब कुछ छिन गया हो, धीरे-धीरे वक्त गुजरता रहा, विनोद और मेरा स्वभाव एकदम विपरीत निकला, हमेशा मेरे ऊपर शक करना, बात बात पर मुझे टोकना इनकी आदत सी हो गई, हम दोनों में बहुत दूरियाँ हैं, मैंने कभी भी इन्हें दिल से नहीं चाहा।
मैंने उसे टोका- लेकिन भैया की शादी इतनी लेट क्यूँ हुई?
शमी ने कहा- इनको एक एंडोक्राइन बीमारी है, जो कि इन्हें बचपन में सिर पर चोट लगने के कारण हुई थी, इनकी पिट्यूटरी ग्रंथि का फंक्शन खराब है, सारे हर्मोन कम मात्रा में निकलते हैं, इनकी हड्डियाँ तो बढ़ गई हैं लेकिन शारीरिक विकास नहीं हुआ है, इनको ग्रोथ हर्मोन, थाइरोइड हर्मोन तथा टेस्टोस्टेरोन बाहर से दिए जाते रहे हैं, जिसके कारण इनका शारीरिक विकास थोड़ा बहुत हो गया है।
चूंकि मैंने इसके बारे में पढ़ा था इसलिए मुझे तुरंत पता चल गया कि विनोद को secondary hypopituitarism नामक बीमारी है। इसमें आदमी का सेक्सुअल विकास बहुत कम हो जाता है जिसके कारण इरेक्टाइल डिसफंक्शन या लिंग के खड़ा न होने की बीमारी हो जाती है।
‘इसी कारण इनकी शादी नहीं हो रही थी, मैं कोई खिलौना हूँ क्या उदित?’ कह कर शमी सुबकने लगी।
उसने मेरे कंधे पर अपना सिर रख लिया, मैं उसका सिर सहलाने लगा।
दोस्तो, वह पल मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत क्षण था, उसके बालों से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी, उसके नर्म मुलायम रेशमी बालों का एहसास मुझे पागल बना रहा था।
करीब आधे घंटे हम दोनों एक दूसरे के पास यूँ ही बैठे रहे, फिर वो चली गई।
अगले दिन फिर वो 11 बजे आई, हमने एक दूसरे के साथ वक्त गुजारा और वो चली गई।
अब तक हमने एक दूसरे से प्यार का इजहार नहीं किया था।
दो दिन बाद विनोद वापस आ गया, अब मिलने में समस्या होने लगी, दो दिन तक हम बातें नहीं कर सके।
एक दिन वो सुबह छत पर आई और बोली- मैं शाम को नहीं आ सकती लेकिन दोपहर को आ सकती हूँ, उस वक्त विनोद ऑफिस में होते हैं और सास ससुर सो रहे होते हैं।
मैंने थोड़ा गुस्से में कहा- आने की जरूरत ही क्या है? मैं हूँ कौन? क्यूँ आती हो मेरे पास?
उसने उदास होकर कहा- तुम नाराज़ मत हो प्लीज!
फिर थोड़ा सा रूककर बोली- मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ उदित, बहुत चाहती हूँ तुम्हें!
इतना कहकर उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे।
मैंने कहा- ठीक है, मैं आज लंच के बाद कॉलेज से वापस आ जाऊँगा, मैं एक बजे आऊँगा।
उसने कहा- नाराज़ तो नहीं हो ना?
मैंने कहा- कैसे नाराज़ हो सकता हूँ अपने प्यार से!
वो खुश होकर नीचे चली गई, मैं एक बजे कॉलेज से आ गया।
करीब एक घंटे के इंतज़ार के बाद वो आई, मैंने गुस्से में कहा- जाओ मुझे कोई बात नहीं करनी !
उसने मुस्कुराते हुए कहा- अरे! मेरा बेबी गुस्सा है?
यह कहकर वो मेरे सीने से लिपट गई, मैंने उसे बेड पर बैठा दिया तथा खुद भी बैठ गया।
मैंने उससे कहा- शमी, मेरी जान मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।
वो अब और मेरे सीने से लिपट गई।
दोस्तो, उसके स्तन मेरे सीने से दबे हुए थे, उसका सिर मेरी ठोढ़ी के नीचे था, उसके बालों से बहुत ही अच्छी खुशबू आ रही थी, करीब 5 मिनट बाद मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और उसका माथा चूम लिया, उसने मेरे गाल चूम लिए, मेरा साहस बढ़ गया, मैंने अपने होंठ उसके निचले होंठों पर रख दिए और चूसने लगा।
वो तो जैसे जन्मो की प्यासी थी, आँखें बंद करके मेरे होंठों को बेतहाशा चूसने लगी, उसकी गरम साँसें मेरे चेहरे से टकराकर मुझे रोमांचित कर रही थी।
मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में ले रखा था।
फिर मैं खड़ा हो गया तथा उसे भी अपने सामने खड़ा कर दिया, वो मेरे गले से लग गई।
मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरना शुरू कर दिया, उसके ब्रा के हुक मेरे हाथों से बार बार टकरा रहे थे, उसके बाल काफी लम्बे थे, उसकी चोटी उसके चूतड़ों तक लम्बी थी, मैंने उसके बालों के साथ-साथ उसके चूतड़ों पर भी हाथ फेरना शुरू कर दिया।
पहली बार मैंने किसी औरत के चूतड़ों को छुआ था, उफ़… क्या नरम और गुदाज़ कूल्हे थे उसके !
मैंने उससे धीरे से पूछा- शमी, तुम्हारी सेक्सुअल लाइफ कैसी है?
उसने कहा- मत पूछो, विनोद का इरेक्शन ही नहीं होता, बहुत मुश्किल से कभी-कभी बस थोड़ा सा सेक्स हो पाता है।
‘तो क्या तुम्हारी hymen अभी तक intact है?’ मैंने पूछा।
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कसक-1
दोस्तो, यह घटना करीब 9 साल पहले की है, उस समय मेरी उम्र 20 साल की थी, मेरा कद 5’10’, रंग गेहुआं तथा शरीर मजबूत है, उस समय तक मैंने कभी भी सेक्स नहीं किया था, हाँ ब्लू फ़िल्में काफी देखीं थीं और मुट्ठ मारकर अपने लण्ड को शांत किया करता था।मैं कानपुर में MBBS की पढ़ाई करने के लिए आया हुआ था।
प्रथम वर्ष के छात्रों को रैगिंग से बचाने के लिए कॉलेज प्रशासन ने हम लोगों को हॉस्टल न देने का फैसला किया था क्योंकि सीनियर्स हॉस्टल आकर जूनियर छात्रों को परेशान किया करते थे।
इसलिए मजबूरन मुझे भी बाहर कमरा लेना पड़ा।
मेरी किसी से दोस्ती नहीं हुई थी इसलिए अकेले ही रहना था।
कानपुर के काकादेव मोहल्ले में मेरा एक पुराना दोस्त रहता था, मैंने उसे ही कमरा देखने का कार्यभार सौंपा, जब तक कमरा नहीं मिला तब तक मैं उसी के यहाँ रुका रहा।
एक दिन हम लोगों को एक अच्छा कमरा मिल गया, कमरा दूसरी मंजिल पर था, मकान मालिक एक बुजुर्ग दम्पति थे, ऊपर का कमरा होने की वजह से शान्ति थी और सुविधा भी अच्छी थी, लिहाज़ा मैंने वह कमरा ले लिया।
मैं अपने मकान मालिक को बाबूजी कहता था क्योंकि वे उम्र में मेरे पापा से भी बड़े थे।
अगले दो दिन तक पूरे घर में सिवाय उन लोगों के मैंने और किसी को नहीं देखा।
जुलाई का महीना था और उमस भरी गर्मी पड़ रही थी।
जब इलेक्ट्रीशियन चला गया तो वे मेरे कमरे में बैठ गए और मेरे घर के बारे में पूछने लगे।
मैंने भी उनसे बातों बातों में पूछ लिया कि क्या वो घर में अकेले ही रहते हैं।
इस पर उन्होंने बताया कि उनके तीन बच्चे हैं, सबसे बड़ा बेटा और बहू भुवनेश्वर में रहते हैं, उससे छोटा बेटा और बहू उनके पास रहते हैं, छोटा बेटा नगर निगम में काम करता था, सबसे छोटी बेटी गाजियाबाद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी।
उन्होंने बताया की इस समय छोटा बेटा और बहू लखनऊ छोटी बहू के भाई की शादी में गए हैं।
थोड़ी बहुत बातचीत के बाद वो चले गए।
दो तीन दिनों के बाद की बात है, मैं शाम को साढ़े पाँच बजे कॉलेज से वापस आया, मैंने गेट खुलवाने के लिए घण्टी बजाई।
रोज आंटी जी गेट खोलती थीं लेकिन उस दिन ज्यों ही गेट खुला मैं दंग रह गया।
क्या बला की खूबसूरत आकृति थी सामने!!
एकदम दूध सा सफ़ेद रंग, गुलाबी होंठ, बड़ी बड़ी भूरी आँखें, माथे से लेकर नीचे गले तक लटकती घुंघराली लटें…
मैं मंत्रमुग्ध सा बस उसे ही देखता रहा।
मैं समझ गया कि यही इनकी छोटी बहू है, खैर मेरी तंद्रा तब टूटी जब उसने कहा- कहिये, क्या काम है?
मैंने कहा- जी मैं यहीं रहता हूँ ऊपर!
‘ओह ! सॉरी, अन्दर आ जाइये।’ उसने कहा।
मैं सीढ़ियाँ चढ़ते हुए बस उसी के बारे में सोचता रहा, कितनी खूबसूरत थी वो !! उसने दुपट्टा सिर पर ले रखा था जिससे उसकी चूचियों के उभार साफ़ दिख रहे थे, बहुत बड़े थे उसके उरोज, और क्या मस्त दरार थी !
सच में अभी भी वो दृश्य याद करके लण्ड खड़ा हो जाता है।
मैं मन ही मन खुश हो रहा था की चलो अब यदा कदा आँख सेंकने का जुगाड़ हो गया, उस रात को मैंने उसी के नाम का सड़का मारा और सो गया।
अगले दिन सुबह नहाने के बाद मैं कपड़े फैलाने लगा तो मैंने दखा कि 32-35 साल का एक आदमी फ़ोन पर बात कर रहा है, मैं समझ गया कि यही मकान मालिक का छोटा लड़का है।
मैं कपड़े फैलाकर जाने लगा तो पीछे से आवाज आई- अरे सुनो यार!
मैं उसकी ओर मुड़ा तो उसने पूछा- आप ही नए किरायेदार हो?
मैंने कहा- जी हाँ! आप कौन?
उसने कहा- मैं आपका मकान मालिक हूँ।
फिर उसने मेरे बारे में पूछा, मसलन मैं क्या करता हूँ और कहाँ से हूँ वगैरह।
फिर उसके बाद थोड़ी बहुत बातचीत हुई फिर वो नीचे चला गया और मैं कॉलेज के लिए तैयार होने लगा।
दोस्तो, भाभी जितनी हसीं थी, उतना ही बेकार उसका पति था, बिल्कुल पतला दुबला, हाँ लम्बाई ठीक थी, गालों में गड्ढे पड़ चुके थे, आँखों के चारों और काले घेरे, कुल मिलाकर यह तो उसका नौकर भी नहीं लगता था।
मुझे मन ही मन भाभी पर तरस आया।
उसका नाम विनोद था, तथा भाभी का नाम शर्मिष्ठा था, उनके सास ससुर उन्हें शमीं बुलाते थे।
दो दिन बाद रविवार था और मेरी छुट्टी थी, मैं फ्री था, जुलाई का महीना था उमस भरी गर्मी पड़ रही थी, शाम का वक्त था और लाइट भी चली गई थी इसलिए घर के सारे लोग छत पर आ गए थे।
मैं भी बाहर निकला, विनोद ने मुझे हाय किया और मुझसे बातें करने लगा लेकिन मेरी आँखें तो बस शर्मिष्ठा को ढूंढ रहीं थी, उसका कहीं पता न था।
वो शायद नीचे ही थी, खैर थोड़ी देर में रात हो गई और सब लोग घर में नीचे चले गए, मैं भी कमरे में चला आया।
अगले दिन सुबह मैं ब्रश कर रहा था तो भाभी छत पर कपड़े डालने आई, वो नहाकर आई थी, उसकी सलवार उसके चूतड़ों से चिपकी थी और कमीज चूतड़ों की दरार में घुसी थी।
मैं पागल हो रहा था।
उसके बाल खुले थे, मैं उसे देख रहा था, फिर वो अचानक पलटी और बोली- यह वाश बेसिन जाम हो जाता है, पापा से बोलकर सही करा लीजिये..
मैं हड़बड़ा गया मेरे मुँह से निकला- अररे !! हाँ, वो बोला था भाभी।
मेरे ऐसे बोलने से वो मुस्कुराने लगी।
हाय ! मेरी तो जैसे जान ही निकल गई..
फिर वो बोली- आप क्या कर रहे हैं?
मैंने कहा- भाभी मैं MBBS कर रहा हूँ GSVM मेडिकल कॉलेज से..
वो बोली- अच्छा तो आप डॉक्टर साहब हैं।
मैंने कहा- अरे नहीं भाभी, अभी तो साढ़े पाँच साल पढ़ना है।
फिर मेरे बारे में थोड़ा बहुत पूछकर वो चली गई, मेरी ख़ुशी का ठिकाना न था मैं तो मानो सातवें आसमान पर था, मैं ख़ुशी ख़ुशी कॉलेज गया।
फिर तो यह रोज का सिलसिला हो गया, वो सुबह छत पर आती और हम दोनों खूब बातें करते, मैं उसे कॉलेज की बातें बताता, जोक सुनाता मिमिक्री करता, वो खूब हंसती।
दोस्तो, उसके चेहरे पर हमेशा एक उदासी सी रहती थी, अपने सास ससुर से ज्यादा बोलती भी नहीं थी।
हाँ मुझसे काफी बातें करती थी।
उसने मुझे बताया कि वो भी डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन किसी कारण से वो पढ़ाई आगे जारी नहीं रख सकी, इसी कारण से वो मुझसे ज्यादा से ज्यादा मेडिकल कॉलेज की लाइफ के बारे में जान लेने चाहती थी।
उसे हंसाने के लिए मैं जोकर बना रहता।
हाँ वो अपने घर वालों और पति से डरती बहुत थी इसलिए बहुत धीरे बोलती और वो लोग जैसे ही बुलाते थे वैसे ही भाग कर जाती थी।
एक दिन मैंने पूछ ही लिया- भाभी, बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?
उसने मुस्कुरा कर कहा- हाँ, बुरा मान जाऊँगी।
मैंने कहा- तो मैं नहीं पूछूँगा।
उसने कहा- अरे नहीं भई, पूछो न।
‘आप हमेशा उदास सी क्यूँ रहती हैं? मैंने आपको कभी भी आपके घर वालों के साथ खुश नहीं देखा?’
वो बात को टाल गई, उसने कहा- खुश तो हूँ, देखो अभी कितना हंस रही थी।
इसके बाद वो थोड़ा देर और रुकी फिर चली गई।
उसी दिन शाम को मुझे घर जाना था, जन्माष्टमी की छुट्टी थी, मैंने सोचा दो तीन दिन के लिए घर हो आऊँ, मैं बैग लेकर नीचे उतरा और सोचा कि बाबूजी को बता दूँ।
मैंने नीचे के दरवाजे की बेल बजाई, दरवाजा शमी ने खोला।
मैंने कहा- भाभी, मैं घर जा रहा हूँ, दो तीन दिन में आऊँगा।
शमी का चेहरा उदास हो गया, वो बोली- दो दिन या तीन?
मैंने कहा- अच्छा जी, दो दिन!
इतना कहकर मैं घर चला आया लेकिन मेरा मन बिल्कुल नहीं लगा।
घर आने पर मुझे मलेरिया हो गया जिससे मैं 10 दिन तक रुक गया, इस बीच मुझे शमी की बहुत याद आती थी, मुझे लगा कि मैं उससे प्यार करने लगा हूँ, उसका वो गोल प्यारा चेहरा, बड़ी बड़ी आँखे, बार बार याद आते।
मैं अकेले में उसके विरह में खूब रोता।
आखिर वो घड़ी आ गई जब मैं ठीक होकर कानपुर पहुँचा, मैंने धड़कते दिल के साथ घण्टी बजाई, मैंने मन ही मन प्रार्थना की कि शमी ही दरवाजा खोले, लेकिन दरवाजा आंटी जी ने खोला।
वे बोली- आओ बेटा, बहुत दिन रुक गए?
मैंने कहा- हाँ आंटी, मलेरिया हो गया था।
मेरी आँखें उस वक्त शमी को ही ढूंढ रहीं थीं लेकिन वो नहीं दिखी।
शायद अन्दर ही थी।
उसकी एक झलक का इंतज़ार करते करते शाम हो गई लेकिन मेरी तरसती आँखों को मेरी जान का दीदार नहीं हुआ।
तभी शाम को 6 बजे नीचे से आंटी की आवाज आई- उदित, चाय पियोगे?
मैंने कहा- हाँ आंटी, अभी आता हूँ।
आंटी ने कहा- रुको, वहीं भिजवाती हूँ।
मेरा दिल जोर से धड़कने लगा, मैं मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि ‘हे भगवान… शमी ही आये चाय लेकर, पैरों की आवाज सीढ़ियों पर सुनाई देने लगी, मैं अपना दिल थामे दरवाजे पर खड़ा हो गया।
हमेशा की ही तरह शांत… उदास…
मैंने कहा- आइये भाभी!
वो बिना कुछ बोले सिर झुकाकर अन्दर आ गई, मैंने उसके हाथ से कप और प्लेट ले लिया, जैसे ही मैंने कप मेज पर रखा, वो फफककर रो पड़ी।
मैं उसकी और दौड़ा, उसे छूकर सान्त्वना देने का साहस मुझमें न था, मैंने पूछा- क्या हुआ? क्यूँ रो रही हैं आप?
वो बोली- तुम कहाँ चले गए थे मुझसे बिना बताये?
मैंने कहा- घर गया था, मलेरिया हो गया था इसलिए ज्यादा दिन रुकना पड़ गया।
वो बोली- तुम ठीक तो हो ना?
मैंने कहा- हाँ, लेकिन आप रो क्यूँ रही हैं?
उसने कहा- बस ऐसे ही!
मैंने कहा- नहीं आपको बताना होगा।
उसने कहा- मुझे जाना है खाना बनाना है अभी।
पता नहीं कहाँ से मेरा साहस बढ़ गया, मैंने उसके झुके हुए चेहरे को ठोढ़ी से पकड़कर ऊपर उठाते हुए कहा- आपको मेरी कसम!
उसने कहा- मैं 11 बजे आऊँगी।
फिर वो चली गई।
यारो, उसके चेहरे का स्पर्श कितना मधुर और सुखद था, मैं तो खाना पीना छोड़ बस उसी के बारे में सोचता रहा और बेसब्री से 11 बजने का इंतज़ार करने लगा।
जैसे तैसे मैंने वो 4-5 घंटे काटे।
11 बज चुके थे, आसमान साफ़ था, पानी बरसकर थम चुका था, हल्की हल्की हवा चल रही थी, मैं बेसब्री से दरवाजा खोले अपने कमरे में चहलकदमी कर रहा था, किसी के कदमों की आहट मुझे सीढ़ियों पर सुनाई देने लगी, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा।
शर्मिष्ठा मेरे सामने आकर खड़ी हो गई, मैं अपलक उसे ही देखता रहा और वो मुझे…
करीब 2 मिनट बाद मैंने चुप्पी तोड़ी- अब बताओ न भाभी, क्यूँ रो रही थी आप?
उसने कहा- अन्दर तो आने दो!
हम दोनों अन्दर आ गए मैंने अन्दर से दरवाजा बंद कर लिया।
उसने कहा- डॉक्टर साहब, पहले मुझे भाभी कहना बंद करो, मैं तुमसे 2-3 साल ही बड़ी हूँ।
मैंने कहा- आप कितने साल की हो?
उसने कहा- 23 साल की!
दोस्तो, वो तो 23 से भी कम की लगती थी।
मैंने कहा- अच्छा शमी बताओ, क्यूँ दुखी थी आज तुम?
वो हंसने लगी और बोली- तुम बहुत भोले हो उदित, मुझे बैठने को भी नहीं बोला और सवालों की झड़ी लगा दी?
मैंने कहा- ओह सॉरी!
अपनी इस मूर्खता पर खुद मुझे भी हंसी आ गई।
मेरे कमरे में एक कालीन था, मैंने दीवार के सहारे उसे बिछाया और हम दोनों दीवार के सहारे टेक लेकर बैठ गए।
शमी ने कहा- शादी को 4 साल हो गए लेकिन खुल कर कभी हंसने लायक मौक़ा कभी नहीं आया इस घर में, तुमसे मिली तो लगा जैसे किसी अपने से दुबारा मिली हूँ, तुम्हारी सारी बातें मुझे बहुत सुकून देती हैं, फिर उस दिन तुम अचानक चले गए और 10 दिन तक नहीं आये तो मेरे मन में तरह-तरह के बुरे ख्याल आने लगे, और जब तुम आये तो बस ऐसे ही आँखों में आँसू आ गए।
‘मैंने भी तुम्हे बहुत मिस किया शमी!’ मैंने कहा।
फिर हम दोनों चुप हो गए, वो शून्य में देखने लगी।
मैंने कहा- भैया कहाँ है शमी?
उसने कहा- ननद के कॉलेज की फीस जमा करने गाज़ियाबाद गए हैं, परसों आयेंगे।
‘और अंकल-आंटी?’ मैंने सशंकित स्वर में कहा।
‘सो गए हैं।’ उसने कहा।
फिर थोड़ी देर की चुप्पी के बाद उसने कहना आरम्भ किया- उदित मैं एक गरीब घर से हूँ, हम 4 बहने हैं, मैं सबसे बड़ी हूँ, पापा की कपड़े की दुकान थी मलीहाबाद में, उसमें आग लग गई, तब मैं हाई स्कूल में पढ़ती थी, सब कुछ जल गया, उसी के इन्श्योरेन्स के पैसे लेने पापा एक दिन जा रहे थे तो उन्हें जीप ने टक्कर मार दी, जिससे उनका देहांत हो गया। मम्मी ने सिलाई करके और घर किराए पर देकर हम 4 बहनों को पाला, मैंने भी किसी तरह b.sc. में दाखिला लिया। फिर एक दिन एक रिश्तेदार ने मेरी शादी के लिए मम्मी को यह परिवार बताया।
‘फिर?’ मैंने पूछा।
शमी बोली- उन्होंने बताया कि लड़का उम्र में थोड़ा ज्यादा है बाकी सब ठीक ठाक है, नौकरी भी करता है। तब मैं 19 साल की थी और ये 30 के थे, मैंने जब पहले दिन शादी के बाद इन्हें देखा तो बहुत रोई, लगा कि जैसे मेरा सब कुछ छिन गया हो, धीरे-धीरे वक्त गुजरता रहा, विनोद और मेरा स्वभाव एकदम विपरीत निकला, हमेशा मेरे ऊपर शक करना, बात बात पर मुझे टोकना इनकी आदत सी हो गई, हम दोनों में बहुत दूरियाँ हैं, मैंने कभी भी इन्हें दिल से नहीं चाहा।
मैंने उसे टोका- लेकिन भैया की शादी इतनी लेट क्यूँ हुई?
शमी ने कहा- इनको एक एंडोक्राइन बीमारी है, जो कि इन्हें बचपन में सिर पर चोट लगने के कारण हुई थी, इनकी पिट्यूटरी ग्रंथि का फंक्शन खराब है, सारे हर्मोन कम मात्रा में निकलते हैं, इनकी हड्डियाँ तो बढ़ गई हैं लेकिन शारीरिक विकास नहीं हुआ है, इनको ग्रोथ हर्मोन, थाइरोइड हर्मोन तथा टेस्टोस्टेरोन बाहर से दिए जाते रहे हैं, जिसके कारण इनका शारीरिक विकास थोड़ा बहुत हो गया है।
चूंकि मैंने इसके बारे में पढ़ा था इसलिए मुझे तुरंत पता चल गया कि विनोद को secondary hypopituitarism नामक बीमारी है। इसमें आदमी का सेक्सुअल विकास बहुत कम हो जाता है जिसके कारण इरेक्टाइल डिसफंक्शन या लिंग के खड़ा न होने की बीमारी हो जाती है।
‘इसी कारण इनकी शादी नहीं हो रही थी, मैं कोई खिलौना हूँ क्या उदित?’ कह कर शमी सुबकने लगी।
उसने मेरे कंधे पर अपना सिर रख लिया, मैं उसका सिर सहलाने लगा।
दोस्तो, वह पल मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत क्षण था, उसके बालों से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी, उसके नर्म मुलायम रेशमी बालों का एहसास मुझे पागल बना रहा था।
करीब आधे घंटे हम दोनों एक दूसरे के पास यूँ ही बैठे रहे, फिर वो चली गई।
अगले दिन फिर वो 11 बजे आई, हमने एक दूसरे के साथ वक्त गुजारा और वो चली गई।
अब तक हमने एक दूसरे से प्यार का इजहार नहीं किया था।
दो दिन बाद विनोद वापस आ गया, अब मिलने में समस्या होने लगी, दो दिन तक हम बातें नहीं कर सके।
एक दिन वो सुबह छत पर आई और बोली- मैं शाम को नहीं आ सकती लेकिन दोपहर को आ सकती हूँ, उस वक्त विनोद ऑफिस में होते हैं और सास ससुर सो रहे होते हैं।
मैंने थोड़ा गुस्से में कहा- आने की जरूरत ही क्या है? मैं हूँ कौन? क्यूँ आती हो मेरे पास?
उसने उदास होकर कहा- तुम नाराज़ मत हो प्लीज!
फिर थोड़ा सा रूककर बोली- मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ उदित, बहुत चाहती हूँ तुम्हें!
इतना कहकर उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे।
मैंने कहा- ठीक है, मैं आज लंच के बाद कॉलेज से वापस आ जाऊँगा, मैं एक बजे आऊँगा।
उसने कहा- नाराज़ तो नहीं हो ना?
मैंने कहा- कैसे नाराज़ हो सकता हूँ अपने प्यार से!
वो खुश होकर नीचे चली गई, मैं एक बजे कॉलेज से आ गया।
करीब एक घंटे के इंतज़ार के बाद वो आई, मैंने गुस्से में कहा- जाओ मुझे कोई बात नहीं करनी !
उसने मुस्कुराते हुए कहा- अरे! मेरा बेबी गुस्सा है?
यह कहकर वो मेरे सीने से लिपट गई, मैंने उसे बेड पर बैठा दिया तथा खुद भी बैठ गया।
मैंने उससे कहा- शमी, मेरी जान मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।
वो अब और मेरे सीने से लिपट गई।
दोस्तो, उसके स्तन मेरे सीने से दबे हुए थे, उसका सिर मेरी ठोढ़ी के नीचे था, उसके बालों से बहुत ही अच्छी खुशबू आ रही थी, करीब 5 मिनट बाद मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और उसका माथा चूम लिया, उसने मेरे गाल चूम लिए, मेरा साहस बढ़ गया, मैंने अपने होंठ उसके निचले होंठों पर रख दिए और चूसने लगा।
वो तो जैसे जन्मो की प्यासी थी, आँखें बंद करके मेरे होंठों को बेतहाशा चूसने लगी, उसकी गरम साँसें मेरे चेहरे से टकराकर मुझे रोमांचित कर रही थी।
मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में ले रखा था।
फिर मैं खड़ा हो गया तथा उसे भी अपने सामने खड़ा कर दिया, वो मेरे गले से लग गई।
मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरना शुरू कर दिया, उसके ब्रा के हुक मेरे हाथों से बार बार टकरा रहे थे, उसके बाल काफी लम्बे थे, उसकी चोटी उसके चूतड़ों तक लम्बी थी, मैंने उसके बालों के साथ-साथ उसके चूतड़ों पर भी हाथ फेरना शुरू कर दिया।
पहली बार मैंने किसी औरत के चूतड़ों को छुआ था, उफ़… क्या नरम और गुदाज़ कूल्हे थे उसके !
मैंने उससे धीरे से पूछा- शमी, तुम्हारी सेक्सुअल लाइफ कैसी है?
उसने कहा- मत पूछो, विनोद का इरेक्शन ही नहीं होता, बहुत मुश्किल से कभी-कभी बस थोड़ा सा सेक्स हो पाता है।
‘तो क्या तुम्हारी hymen अभी तक intact है?’ मैंने पूछा।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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