FUN-MAZA-MASTI
माँ-बेटे की चाँदी--1
मैं २२ साल का युवक एक छोटे से गावं का रहने वाला हूँ. मेरे घर में मेरे अलावा मेरी माँ और पापा है. मान गृहणी है पापा बाहर मुंबई रहते हैं. मेरा गावं बहोत ही पिछरा हूवा है. यहाँ के ९९% लोग रोजी-रोटी के लिए घर छोड़ कर बाहर ही जाते हैं. मेरे पापा साल भर बाद या साल भर ६ महीने बाद घर आते रहते हैं. २५-३० दिन रुकते हैं फिर चले जाते है. मैं बी. ए. अंतिम साल में हूँ. गावं मेरे मेरे जितना पढ़ा अभी तक कोई नहीं है. ज्यादातर लोग १०वि या १२वि करके बाहर चले जाते हैं.
मैं माँ पापा का अकेला संतान हूँ इस लिए मुझे पढ़ा रहे हैं. पढ़ने में भी अच्छा हूँ. हर इम्तेहान में ७०% से ज्यादा ही अंक अर्जित किये हैं. अरे मैं आपको इन बातो से क्यूँ पकाने लगा. मैं आपको एक सच्ची, आपबीती और बहोत ही हसीन हादसा सुसने जा रहा हूँ.
बात २ महिना पुरानी उससे पहले मैंने कई सारे चुदाई की कहानियां पढ़े थे जिसमे से कई सारे कहानियां बहन-भाई की चुदाई की थी तो कई सारे माँ-बेटे की चुदाई की और कई सारे तो बाप-बेटी की भी थी. इन कहानियो को पढ़-पढ़ कर मेरा भी रौड की तरह तन कर खड़ा हो जाता था. पर बूर न मिलने की वजह से मुझे मुठ मर कर ही काम चलाना पड़ता था. इन कहानियो को पढ़कर मेरा भी मन अब अपनी माँ को छोड़ने का करता था. पर मैं उसे चोदता कैसे? वो मेरी माँ थी कह भी नहीं सकता था, कभी-कभी मन करता सीधा रेप कर देना चाहिए! शर्म के मारे किसी को बोलेगी भी नहीं. पर मुझे उन्हें राजी करके चोदना था ताकि कभी भी बूर की जरूरत पड़े तो आसानी से मुझे मिल जाए. पर कैसे होता ये सब...? कैसे में माँ को राजी करता....? कुछ समझ में नहीं आ रहा था. इधर मेरा मुठ मार-मार कर बूरा हाल था. कितने मिन्नते किये भगवान् से कितनी पूजा की. आख़िरकार भगवन ने मेरी सुन ली. मेरा घर कच्छा है मिटटी का घर है. एक में ईंट का पाया (खम्भा) है. उसके छत पे खपरा है. और एक घर में बाम्बू का खम्भा है, उसके छत पे खर-पतवार है. उसी में मैं रहता हूँ. माँ दुसरे घर में रहती है.
कुछ और लिखू इससे पहले थोडा माँ के बारे में बता दूं. ३८ साल की उम्र गोरी चिट्टी काया, जूसी लिप्स, फिगर तो कभी मापा नहीं पर अंदाजन ३४ चूची, २८ कमर, ३४ हिप्स. अभी भी १८ साल की लड़की को पानी पिला दे अपनी खुबसूरत सेक्सी शरीर से. मेरा तो देख देख कर बूरा हाल हो जाता था पहले. पर उस रात ने सब कुछ बदल दिया. उसके बाद तो मानो हम दोनों माँ-बेटे की चंडी ही हो गयी. मुझे तो अभी भी यकीन नहीं होता की मैं ऐसा करता हूँ.
चलिए मैं आपको और ना पकाते हूवे सीधा मुद्दे पे आते है! हम लोग वैसे ९ बजे तक सो जाते हैं. गावं में बिजली है नहीं हर जगह अँधेरा ही अँधेरा रहता है. ९:३० हो रहा होगा मैं भी सो रहा था माँ भी सो रही थी. गावं के लोग भी सो रहे होंगे. तभी अचानक मुझे लगा जैसे मैं भीग रहा हूँ! जब में टौर्च देखा तो पानी चाट से आ रता था. अरे ये क्या बाहर बारिस हो रही है आंधी-तूफ़ान के साथ. मैंने बिस्तर हटाये और माँ को बोला "माँ ये घर पानी से भर गया है. दरवाजा खोलो" २-३ आवाज लगाने के बाद माँ ने दरवाजा खोला, मैं देखता ही रह गया. मैं माँ को आज पहली बार पेटीकोट और ब्रा में देख रहा था. तभी माँ बोल पारी "बारिस तो बहोत तेज हो रही है." फिर मैं अपने-आप पे काबू किया. और बोला "मेरा सारा बिस्तर भीग गया अब मैं कहाँ सोऊंगा? अभी तो ९:४५ ही हूवा है." तो माँ बोली "लगता है अब उसको फिर से रिपेयर करवाना परेगा. पैसा भी नहीं है कैसे होगा ये सब?" तो मैं बोला "माँ वो सब बाद में सोचेंगे. अभी मैं कहाँ सोंऊ? "चलो मेरे बिस्तर पे ही सो जाओ " मैं ये सुनते ही मन-ही-मन इतना खुश हूवा की मैं क्या बताऊँ.?
मेरा लण्ड तो फुफकार मार रहा था पर मैं सब्र कर रहा था. वैसे भी किसी ने कहा है सब्र का फल मीठा होता है. फिर मैं माँ के कमरे में घुसा माँ भी दरवाजा बंद करके अन्दर आ गयी. मैंने माँ को बोला "माँ तुम दिवार के साइड जाओ". मेरा प्लान तो कुख्ह और ही था. मुझे इस मौके को किसी भी हाल में गवाना नहीं था चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े. माँ दीवाल साइड चली गयी. मैं भी बनियान और अंडर बीयर पहना था वैसे ही बिस्तर पर लेट गया. ओढने के लिए एक ही कम्बल था. इसलिए हम दोनों ने एक कम्बल में ही ढक गए. फिर मैं बोला "बारिस बहोत तेज हो रही है, कहीं वो घर गिर ना जाए!" तो माँ बोली "उसको जितना जल्दी हो सके रिपेयर करवाना होगा. पर पैसे कहाँ से आयेंगे? लगता है फिर से कर्ज लेना होगा" तो मैं बोला "छोरो ना माँ...!!! इतनी चिंता क्यूँ कर रही हो? जो होगा देखा जायेगा". ऐसे ही काफी देर तक बात करता रहा. लगभग ११:०० बजने वाले थे. मैं बात करते-करते माँ की तरफ खिसकता चला जा रहा था. माँ दीवाल से बिलकुल चिपक चुकी थी.
अब मैं अपना मकसद पूरा करना चाहता था. इसी लिए मैंने टॉपिक चेंज किया. और बोला "माँ तुमपे ये ब्रा बहोत अच्छा लगता हैं" माँ को अपनी तारीफ सुनने में बहोत अच्छा लगता था. २-४ तारीफ़ की पूल बाँध देने से माँ उसके प्रति भाऊक हो जाती थी. इसीलिए मैंने यही सही समझा. तो माँ बोली "ऐसी बाते मत करो तुम." तो मैं माँ को बांहों में लेते हूए बोला "माँ मैं झूठ थोरे ना बोल रहा हूँ. पापा ने कभी बताया नहीं क्या की आप कितनी खूबसूरत हैं...?" "ये क्या कर रहे हो तुम? मुझे छोरो बेटा...!!" कहते हुवे मुझसे छूटने की कोशिश करने लगी. तो मैं भी छोरते हूवे कहा "माँ मुझे ठंढ लग रही है इसलिए सोचा आपके बदन की गर्मि से....!" माँ बात को काटते हूवे बोली " क्या मैं कोई आग हूँ जो मुझसे तुम्हारे ठंढ दूर हो जाएगा..?" तो मैं बोला "आप आग तो नहीं है पर उससे कम भी तो नहीं हैं."
और मैं उनसे एकदम चिपक गया. दर भी रहा था और ये मौका भी नहीं गवाना चाहता था. हम दोनों करोट सोये हुए थे, माँ का दया हाथ निचे था और मेरा बायाँ हाथ निचे था. मैं अपने पैर से उनके पैर को भी रगर रहा था. तभी माँ बोली "आज तुझे क्या हूवा है? ऐसा क्यूँ कर रहा है? मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता." शायद माँ को समझ आ रहा था की मै क्या चाहता था? इससे मेरा भी हौसला बढ़ गया. तो मैं उनके बदन पे अपना हाथ फेरते हुवे कहा "मैं तो बस आपको प्यार करना चाहता हूँ. मैं अच्छी तरह जनता हूँ की आप पापा की कमी हमेशा महसूस करते हैं" तो माँ एक लम्बा सांस लेकर बोली "वो तो मैं हमेशा महसूस करती हूँ पर कर भी क्या सकती हूँ. अगर वो बहार नहीं जायेंगे तो पैसा कहाँ से आएगा?" तभी मैं बात काटते हुवे बोला "इसी लिए तो मैं बोल रहा हूँ आप मुझे प्यार करने का मौका दिजिये, मैं आपको हमेशा खुश रखूंगा. मैं आपको इस तरह तडपते हूवे नहीं देख सकता"
और मैं उनके होठ पे किस्स करने लगा तो माँ मुझे हटाते हुवे बोली " तुम्हे शर्म नहीं आती अपनी माँ के साथ ऐसा करते हूवे. जब लोगो को पता चलेगा तो क्या होगा? तुमने ने कभी सोचा है?" तो मैं माँ को फिर से जोर से बांहों में कसते हूवे कहा "लोगो का क्या माँ? लोगो को कैसे पता चलेगा? जब हम दोनों मेसे कोई किसी को बोलेगा ही नहीं तो लोगो को क्या पता होगा माँ? बस तुम एक बार हाँ कर दो बंकि सब मुझ पर छोड़ दो." मैं माँ को दोनों पैरो से और हाथो से कास के पकड़ रखा था. माँ मुझसे छूटने की कोशिश करते हूवे बोली "ये गलत है ये पाप है. तुम समझते क्यूँ नहीं मैं तुम्हारी माँ हूँ तुम्हारी बीबी नहीं बेटा" तो मैं बोला "हाँ माँ मैं जानता हूँ की तुम मेरी सेक्सी माँ हो और मैं तुम्हारा बेटा. पर तुम ये मत्त सोचो तुम ये सोंचो तुम एक औरत हो जिसको मर्द की जरूरत है, और मैं एक मर्द हूँ जिसे एक औरत की जरूरत है. इससे हम दोनों एक दुसरे का प्यास बूझा सकते हैं." तो फिर माँ बोली "पर ये सही नहीं है बेटा, ये गलत है" तो फिर मैं बोला "कुछ गलत नहीं है माँ, इससे दो फाईदे ही हैं." तो माँ बोली "क्या क्या?" मुझे ये सुन कर लगा की अब माँ पटती जा रही है. फिर मैं बोला "ऐसा करने से तुम्हारी भी प्यास बूझ जाएगी और मेरी भी. और घर की इज्ज़त घर में"
तो फिर माँ बोली "पर बेटा अगर किसी को पता चल गया तो क्या होगा. हम किसी को समाज में मूह दिखने लायक नहीं रहेंगे. हमारी नो नाक कट जाएगी." तो फिर मैं उनके ऊपर आ कर एक जोरदार किस्स लिया और कहा "माँ तुम्हे अपने बेटे पे भरोसा नहीं है. ये बात किसी को मालूम नहीं होगी, यहाँ तक की पापा को भी नहीं. जब पापा घर पर होंगे तो आप पापा से प्यार करवाना. और जब चले जाएंगे तो फिर मैं आपको प्यार करूंगा. इससे आपको पापा की कमी कभी नहीं महसूस होगी." और फिर मैं अपनी माँ ले होठो पर अपना होठ रख कर चूमने लगा! माँ अब कुछ नहीं बोल रही थी. शायद अब उनको मुझ पर भरोशा हो गया. बहार बारिस बहोत तेज हो रही थी और अंडर मेरी और माँ की गर्मी बढ़ रही थी. माँ को मैं बेतहासा चूम रहा था. अब माँ भी मेरा साथ देने लगी! अब वो भी मेरे होठो को चूम रही थी. मैं मन-ही-मन इतना खुश हुवा की मैं आपको शब्दों मैं बता नहीं सकता.
ये वही समझ सकता है जो अपनी माँ को चोदता है. अब मैं माँ की गाल को चूम रहा था एक-दो बार दांत भी गारा दिया जिससे माँ के मूंह से आह्ह्हह्ह!!! निकल जाता था! अब मैं उनके कंधो और गर्दन को चूम रहा था और माँ मेरे शरीर पर अपना हाथ फेर रही थी. मैं इतनी जोश में आ चूका था की कह नहीं सकता बस मैं इस मौके को भूनाना चाहता था. इस लिए माँ को मैं होश में नहीं आने देना चाहता था. फिर मैं माँ की चूची को ब्रा के ऊपर से दवाते हूवे कहा "आह..!! माँ क्या मस्त चूची है तुम्हारे. जरा इसकी दर्शन करवाओ माँ. अपनी ब्रा को हटा दो." तो माँ ने अपनी छाती को ऊपर उठाया और बोली "निचे से हूक खोल ले. मैं हूक खोलने की कोशिश की पर खुल नहीं रहा था! इसके बारे में मुझे मालूम भी नहीं था की कैसे खुलता है. मैं इतना समय बर्बाद नहीं करना चाहता था इसीलिए मैं ब्रा के दोनों तरफ पाकर के खीचा जिससे ब्रा की हूक टूट गयी. तो माँ बोल पड़ी "मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ तुम इतनी जल्दी में क्यूँ हो. मालूम है ना जल्दी का काम सैतान का" तो मैं बोला "मुझसे खुल नहीं रहा था माँ तो मैं क्या करता?" कहते हूवे ब्रा को एक तरफ फेक दिया! माँ की चुचिया देख कर मेरी आँखे चौंधिया गया था. क्या मध्य प्रकार की गोरी-गोरी मखमल से भी मुलायम कासी-कासी चुचिया थी. मैं माँ की चूची पर पर टूट पड़ा! कभी मसलता को कभी चूसता! माँ के मूंह से "सीईईई....... सीईईईई...!!" की आवाजे आने लगी थी. चुचिया धीरे-धीरे शख्त होते जा रहे थे. माँ को शायद अब जब मैं चुचियों को मसलता तो दर्द होने लगा था.
शायद इसी लिए जब भी मैं माँ की चुचियो को मसलता तो वो मेरे हाथ को हटाने की कोशिश करती. पर मैं नहीं हटाता! आखिर कार माँ से रहा नहीं गया और बोली " चूची पे ही लगा रहेगा क्या? निचे नहीं जाएगा?" बस मैं तो यही चाहता था की माँ खुद बोले. तब मैंने २-४ बार जोर से चूची मसल दिया! माँ दर्द से छटपटाते हूवे बोली "आह्ह्ह्हह्ह......!!! मर्रर्रर्र गयीईईईई.....!!!"
फिर मैंने उनके चूची को छोड़ कर अब उनके पेटीकोट खोलने लगा! पेटीकोट का नाडा खोला और पेटीकोट को निचे की ओर ले गया मैंने देखा माँ निचे पिंक कलर का चड्डी पहन रखी थी जो पूरी तरह से भींग चूका था! जब मैंने माँ की चड्डी को निकला तो मेरे मूंह से बरबस निकल गया "वाहह..! क्या बूर है! बूर पूरी तरह से बाल से भरा हुवा था और पानी निकल रहा था! मैं अपना समय ख़राब ना करते हूवे एक तकिया लिया और माँ की कमर के निचे रख दिया! जिससे माँ की बूर और ऊपर उठ गया. फिर क्या था मैंने अपना मूंह उस बूर पर रख दिया! और कुत्ते कीतरह चाटने गला! मेरा मूंह अपने बूर पर पाते ही माँ के मूह से आह्ह्ह..!! निकल गयी.
मैं उनके उस चूत के रस के को पि रहा था पहले तो कुछ अजीब सा लगा. थोडा सा नमकीन, पर थोड़ी देर बाद अच्छा लगने लगा! मैं खूब मस्ती में चाट रहा था. माँ को भी मज़ा आ रहा था उनके मूंह से लगातार सीईईईईई....!!! सीईईईईइ............!!!! का आवाज़ आ रहा था. और अपने जांघों के बिच मेरे सर को दबा रही थी. मैं कुत्ते की तरह माँ के चूत को चाटे जा रहा था. अब सब रस मैं चाट चूका था. फिर मैंने उनके छुट में अपना जीभ डाल दिया. माँ तरप उठी "आह्ह्ह..!! क्या पेल दिया बेटा." मैं कुछ नहीं बोला और अपनी जीभ को अन्दर-बहार करने लगा. क्या मज़ा आ रहा था. जब भी जीभ अंडर जाता माँ आह्ह्ह्ह!!! कर बैठती. मस्ती से माँ की बूर को अपने जीभ से चोदे जा रहा था. माँ भी मस्ती में थी उसे भी मज़ा आ रहा था. करीब १० मिनट के बाद माँ बोली "बेटा अब मैं नहीं रोक सकती मेरा आ रहा है" माँ के इतना कहते ही मुझे महसूस हुवा की माँ के चूत से कुछ गरमा-गरम पानी जैसा लस्से दर द्रव निकल रहा था. माँ अपने शरीर को पूरी तरह टाईट का रखी थी! मैंने अपने दोनों होठ से माँ के चूत के छेद पर कब्ज़ा जमाया और सारा द्रव पिता चला गया. ये पीते ही जैसे मेरे लंड में और ताकत आ गया! लंड और मोटा और टाईट हो गया. मैं तब-तक माँ के चूत को चाटता रहा जब-तक एक-एक कतरा ना पि गया.
माँ अब बिलकुल ढीली पर चुकी थी. तब मैंने माँ से पूछा " कैसा लगा माँ? मेरी मेहनत काम आया या नहीं. अब कैसा लग रहा है तुमको? मजा आया." तो माँ बोली "मैं तो जन्नत की सैर करके चली आई बेटा. ऐसा लग रहा था जैसे मैं जन्नत में हूँ. आज १ साल और ४ महीने बाद मैं झड़ी हूँ. दिल खुश कर दिया तुने मेरे लाल." अब मुझसे भी रहा नहीं जा रहा था. मेरा भी लंड माँ की बूर में हलचल मचने के लिए तैयार था. मैंने पलंग परसे सारे एक्स्ट्रा कपडे हटा दिए माँ की पेटीकोट और चड्डी भी निकाल कर एक तरफ फेक दिया जो अभी तक माँ की पैसे में था. रजाई तोशक भी हटा दिए. अब केवल मैं था मेरी पूरी तरह नंगी माँ थी. क्या लग रही थी गजब की फिगर गोरी-गोरी बदाग बदन मखमल से भी मुलायम स्किन, त्वचा. जूसी होठ.
मुझसे रहा नहीं गया मैं फिर से माँ को बांहों में लेकर चूमने लगा. माँ भी साथ देने लगी. करीब ५ मिनट तक एक-दुसरे को चूमने-चाटने के बाद मैं बोला " माँ अब मुझसे नहीं रहा जायेगा बस अब पीठ के बल सो जावो." तो माँ बोली "सोती हूँ बेटा, पर तूं अपना चड्डी तो खोल जरा मैं भी तो देखू की मेरे बेटे ला लंड कितना बड़ा है..? जो आज अपनी माँ को ही छोड़ने जा रहा है. जरा खोल तो इसे." तो फिर मैं को कहा "माँ तुम खुद ही खोल कर देख लो ना. मैं तो रोज खोलता हूँ. आज तुम खोल दो." तो फिर माँ बोली "कोई बात नहीं लाओ मैं ही खोल दूँ." तो मैं पलंग पर खड़ा हो गया माँ बैठे हूवे ही मेरे चड्डी को निचे की ओर खिंच दी. ज्यूँ ही लंड चड्डी के कैद से आजाद हुवा नाग की भांति माँ को ललकारने लगा. माँ मेरा ९ इंच लम्बा और ४ इंच मोटा लंड देखते ही डर गयी. "ये तो तुम्हारे बाप के लंड से बहोत बड़ा है. मेरी बूर तो फट जाएगी इससे." माँ बोली! तो मैं उनको हौसला देते हूवे कहा "अरे माँ! ऐसा कुछ नहीं होता. बूर बने हैं लंड के लिए, और लंड बने हैं बूर के लिए! तो फिर बूर कैसे फट जायेगा. तुम चिंता मत्त करो तुम्हे कुछ नहीं होगा." मैं ये कहते हूवे अपने लंड को माँ के मूंह पे सता दिया औ कहा "माँ जरा चुसो इसे." तो माँ बोली "छिं मैं लंड को अपने मूंह से कैसे चुसू. ये अछि बात नहीं है. मुझे घृणा होती है." तो मैं बोला "माँ मैं जैसा कहता हूँ वैसा करो बहोत मज़ा आएगा. बस जैसा-जैसा कहती हूँ वैसा-वैसा करती जाओ." पहले तो नहीं मान रही थी पर कितना कहने के बाद चूसने के लिए राजी हो गयी.
माँ का कोमल हाथ जैसे ही मेरे लंड पर पड़ा लंड और फूल गया. माँ के कितनी दिक्कत से मान की मूंह में गया. माँ का मूंह मेरे लंड से पूरी तरह भर चूका था. वो चूसने लगी हाय! क्या मजा आने लगा. मुझे ऐसी ख़ुशी कभी नहीं मिली थी. और उसमे माँ से चुस्बाने की तो मजा ही कुछ और था. मैं आनंदित हो रहा था. मैंने कई किताबो में सुना था. जब मर्द पहली बार सेक्स करता है तो वो जल्दी झड जाता है. माँ पिछले ५-७ मिनट से चूस रही थी. तो मैं माँ को बोला " माँ झड जाऊं तो मेरा लंड फिर से चाटना. चाट-चाट कर इसे फिर से खड़ा करना." माँ ने ओके! के इशारे में सर हिलाया. तभी मुझे एक इडिया आया क्यूँ ना अभी माँ की मूंह को छोड़ा जाए. फिर मैं माँ को दीवार की ओर ले गया और उनके सर के पीछे तकिया रखा और उनको दीवार में सटाते हूवे कहा "माँ अब तुम चुसना मत्त मैं तुम्हे एक दूसरा मजा देता हूँ. बस मूंह खोले रखना. और ढीला रखना."
वैसे लंड तो उनके मूंह में भरा हुवा पहले से ही था. फिर मैंने लंड को थोडा बाहर निकला. सुपाडा मूंह में ही था. फिर धीरे से लंड को अंडर की ओर धक्का दिया! अभी ३-४ इंच लंड से माँ के मूंह को छोड़ रहा था. धीरे-धीरे अन्दर-बाहर करने लगा! करते-करते धीरे-धीरे रफ़्तार बढ़ता गया. जब रफ़्तार तेज पकड़ लिया तो मैंने अचानक एक बहोत ही जोरदार धक्का माँ के मूंह में मार दिया. लगभग ७ इंच लंड माँ के मूंह में घुस गया! वो तड़पने लगी. माँ सांस नहीं ले पा रही थी. मैंने ४०-४५ सेकेण्ड लंड को माँ की मूंह में रखा फिर बाहर निकल दिया. माँ जोरजोर से सांस लेने और छोड़ने लगी. जब नॉर्मल हुवा तो बोली " ये क्या किया था तुमने मेरी सासे रुक गयी थी."
फिर मैंने अपना लंड उनके मूंह में डालते हूवे कहा "अब ऐसा नहीं करूंगा." और फिर मैं माँ के मूंह को छोड़ने लगा इस बार ५-६ इंच लंड से! करीब ८-१० मिनट तक की मूंह चुदाई के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे लंड से अब वीर्य निकलने वाला है तो मैं माँ को बोला "माँ मैं अब झाड़ने वाला हूँ अब तुम चूसो. और फिर खड़ा करो मेरे लंड को." इतना कहते ही मैंने अपने लंड से माँ के मूंह में एक पिचकारी छोड़ दी. माँ का मूंह वीर्य से लबा-लब भर गया. पर मैं लंड को माँ के मूंह से नहीं निकाल रहा था क्यूंकि मैं चाहता था माँ मेरा वीर्य पि जाए! आखिर कार उसे पीना पड़ा. मैं क्या बताऊँ की कितना मजा आया. मजे की कोई सीमा नहीं थी. कुछ देर बाद मैंने अपना लंड को माँ के मूंह से बाहर निकला. अभी भी कुछ कम नहीं लग रहा था मेरा लंड. माँ मेरे लंड की तरफ देख कर बोली "ये तुम्हारा लंड है या किसी घोड़े का..?" तो मैं बोला "तुमने अगर घोड़े को जनम दिया है तो घोड़े का ही है" माँ हस्ते हूवे फिर से मेरा लंड चाटने लगी.
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माँ-बेटे की चाँदी--1
मैं २२ साल का युवक एक छोटे से गावं का रहने वाला हूँ. मेरे घर में मेरे अलावा मेरी माँ और पापा है. मान गृहणी है पापा बाहर मुंबई रहते हैं. मेरा गावं बहोत ही पिछरा हूवा है. यहाँ के ९९% लोग रोजी-रोटी के लिए घर छोड़ कर बाहर ही जाते हैं. मेरे पापा साल भर बाद या साल भर ६ महीने बाद घर आते रहते हैं. २५-३० दिन रुकते हैं फिर चले जाते है. मैं बी. ए. अंतिम साल में हूँ. गावं मेरे मेरे जितना पढ़ा अभी तक कोई नहीं है. ज्यादातर लोग १०वि या १२वि करके बाहर चले जाते हैं.
मैं माँ पापा का अकेला संतान हूँ इस लिए मुझे पढ़ा रहे हैं. पढ़ने में भी अच्छा हूँ. हर इम्तेहान में ७०% से ज्यादा ही अंक अर्जित किये हैं. अरे मैं आपको इन बातो से क्यूँ पकाने लगा. मैं आपको एक सच्ची, आपबीती और बहोत ही हसीन हादसा सुसने जा रहा हूँ.
बात २ महिना पुरानी उससे पहले मैंने कई सारे चुदाई की कहानियां पढ़े थे जिसमे से कई सारे कहानियां बहन-भाई की चुदाई की थी तो कई सारे माँ-बेटे की चुदाई की और कई सारे तो बाप-बेटी की भी थी. इन कहानियो को पढ़-पढ़ कर मेरा भी रौड की तरह तन कर खड़ा हो जाता था. पर बूर न मिलने की वजह से मुझे मुठ मर कर ही काम चलाना पड़ता था. इन कहानियो को पढ़कर मेरा भी मन अब अपनी माँ को छोड़ने का करता था. पर मैं उसे चोदता कैसे? वो मेरी माँ थी कह भी नहीं सकता था, कभी-कभी मन करता सीधा रेप कर देना चाहिए! शर्म के मारे किसी को बोलेगी भी नहीं. पर मुझे उन्हें राजी करके चोदना था ताकि कभी भी बूर की जरूरत पड़े तो आसानी से मुझे मिल जाए. पर कैसे होता ये सब...? कैसे में माँ को राजी करता....? कुछ समझ में नहीं आ रहा था. इधर मेरा मुठ मार-मार कर बूरा हाल था. कितने मिन्नते किये भगवान् से कितनी पूजा की. आख़िरकार भगवन ने मेरी सुन ली. मेरा घर कच्छा है मिटटी का घर है. एक में ईंट का पाया (खम्भा) है. उसके छत पे खपरा है. और एक घर में बाम्बू का खम्भा है, उसके छत पे खर-पतवार है. उसी में मैं रहता हूँ. माँ दुसरे घर में रहती है.
कुछ और लिखू इससे पहले थोडा माँ के बारे में बता दूं. ३८ साल की उम्र गोरी चिट्टी काया, जूसी लिप्स, फिगर तो कभी मापा नहीं पर अंदाजन ३४ चूची, २८ कमर, ३४ हिप्स. अभी भी १८ साल की लड़की को पानी पिला दे अपनी खुबसूरत सेक्सी शरीर से. मेरा तो देख देख कर बूरा हाल हो जाता था पहले. पर उस रात ने सब कुछ बदल दिया. उसके बाद तो मानो हम दोनों माँ-बेटे की चंडी ही हो गयी. मुझे तो अभी भी यकीन नहीं होता की मैं ऐसा करता हूँ.
चलिए मैं आपको और ना पकाते हूवे सीधा मुद्दे पे आते है! हम लोग वैसे ९ बजे तक सो जाते हैं. गावं में बिजली है नहीं हर जगह अँधेरा ही अँधेरा रहता है. ९:३० हो रहा होगा मैं भी सो रहा था माँ भी सो रही थी. गावं के लोग भी सो रहे होंगे. तभी अचानक मुझे लगा जैसे मैं भीग रहा हूँ! जब में टौर्च देखा तो पानी चाट से आ रता था. अरे ये क्या बाहर बारिस हो रही है आंधी-तूफ़ान के साथ. मैंने बिस्तर हटाये और माँ को बोला "माँ ये घर पानी से भर गया है. दरवाजा खोलो" २-३ आवाज लगाने के बाद माँ ने दरवाजा खोला, मैं देखता ही रह गया. मैं माँ को आज पहली बार पेटीकोट और ब्रा में देख रहा था. तभी माँ बोल पारी "बारिस तो बहोत तेज हो रही है." फिर मैं अपने-आप पे काबू किया. और बोला "मेरा सारा बिस्तर भीग गया अब मैं कहाँ सोऊंगा? अभी तो ९:४५ ही हूवा है." तो माँ बोली "लगता है अब उसको फिर से रिपेयर करवाना परेगा. पैसा भी नहीं है कैसे होगा ये सब?" तो मैं बोला "माँ वो सब बाद में सोचेंगे. अभी मैं कहाँ सोंऊ? "चलो मेरे बिस्तर पे ही सो जाओ " मैं ये सुनते ही मन-ही-मन इतना खुश हूवा की मैं क्या बताऊँ.?
मेरा लण्ड तो फुफकार मार रहा था पर मैं सब्र कर रहा था. वैसे भी किसी ने कहा है सब्र का फल मीठा होता है. फिर मैं माँ के कमरे में घुसा माँ भी दरवाजा बंद करके अन्दर आ गयी. मैंने माँ को बोला "माँ तुम दिवार के साइड जाओ". मेरा प्लान तो कुख्ह और ही था. मुझे इस मौके को किसी भी हाल में गवाना नहीं था चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े. माँ दीवाल साइड चली गयी. मैं भी बनियान और अंडर बीयर पहना था वैसे ही बिस्तर पर लेट गया. ओढने के लिए एक ही कम्बल था. इसलिए हम दोनों ने एक कम्बल में ही ढक गए. फिर मैं बोला "बारिस बहोत तेज हो रही है, कहीं वो घर गिर ना जाए!" तो माँ बोली "उसको जितना जल्दी हो सके रिपेयर करवाना होगा. पर पैसे कहाँ से आयेंगे? लगता है फिर से कर्ज लेना होगा" तो मैं बोला "छोरो ना माँ...!!! इतनी चिंता क्यूँ कर रही हो? जो होगा देखा जायेगा". ऐसे ही काफी देर तक बात करता रहा. लगभग ११:०० बजने वाले थे. मैं बात करते-करते माँ की तरफ खिसकता चला जा रहा था. माँ दीवाल से बिलकुल चिपक चुकी थी.
अब मैं अपना मकसद पूरा करना चाहता था. इसी लिए मैंने टॉपिक चेंज किया. और बोला "माँ तुमपे ये ब्रा बहोत अच्छा लगता हैं" माँ को अपनी तारीफ सुनने में बहोत अच्छा लगता था. २-४ तारीफ़ की पूल बाँध देने से माँ उसके प्रति भाऊक हो जाती थी. इसीलिए मैंने यही सही समझा. तो माँ बोली "ऐसी बाते मत करो तुम." तो मैं माँ को बांहों में लेते हूए बोला "माँ मैं झूठ थोरे ना बोल रहा हूँ. पापा ने कभी बताया नहीं क्या की आप कितनी खूबसूरत हैं...?" "ये क्या कर रहे हो तुम? मुझे छोरो बेटा...!!" कहते हुवे मुझसे छूटने की कोशिश करने लगी. तो मैं भी छोरते हूवे कहा "माँ मुझे ठंढ लग रही है इसलिए सोचा आपके बदन की गर्मि से....!" माँ बात को काटते हूवे बोली " क्या मैं कोई आग हूँ जो मुझसे तुम्हारे ठंढ दूर हो जाएगा..?" तो मैं बोला "आप आग तो नहीं है पर उससे कम भी तो नहीं हैं."
और मैं उनसे एकदम चिपक गया. दर भी रहा था और ये मौका भी नहीं गवाना चाहता था. हम दोनों करोट सोये हुए थे, माँ का दया हाथ निचे था और मेरा बायाँ हाथ निचे था. मैं अपने पैर से उनके पैर को भी रगर रहा था. तभी माँ बोली "आज तुझे क्या हूवा है? ऐसा क्यूँ कर रहा है? मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता." शायद माँ को समझ आ रहा था की मै क्या चाहता था? इससे मेरा भी हौसला बढ़ गया. तो मैं उनके बदन पे अपना हाथ फेरते हुवे कहा "मैं तो बस आपको प्यार करना चाहता हूँ. मैं अच्छी तरह जनता हूँ की आप पापा की कमी हमेशा महसूस करते हैं" तो माँ एक लम्बा सांस लेकर बोली "वो तो मैं हमेशा महसूस करती हूँ पर कर भी क्या सकती हूँ. अगर वो बहार नहीं जायेंगे तो पैसा कहाँ से आएगा?" तभी मैं बात काटते हुवे बोला "इसी लिए तो मैं बोल रहा हूँ आप मुझे प्यार करने का मौका दिजिये, मैं आपको हमेशा खुश रखूंगा. मैं आपको इस तरह तडपते हूवे नहीं देख सकता"
और मैं उनके होठ पे किस्स करने लगा तो माँ मुझे हटाते हुवे बोली " तुम्हे शर्म नहीं आती अपनी माँ के साथ ऐसा करते हूवे. जब लोगो को पता चलेगा तो क्या होगा? तुमने ने कभी सोचा है?" तो मैं माँ को फिर से जोर से बांहों में कसते हूवे कहा "लोगो का क्या माँ? लोगो को कैसे पता चलेगा? जब हम दोनों मेसे कोई किसी को बोलेगा ही नहीं तो लोगो को क्या पता होगा माँ? बस तुम एक बार हाँ कर दो बंकि सब मुझ पर छोड़ दो." मैं माँ को दोनों पैरो से और हाथो से कास के पकड़ रखा था. माँ मुझसे छूटने की कोशिश करते हूवे बोली "ये गलत है ये पाप है. तुम समझते क्यूँ नहीं मैं तुम्हारी माँ हूँ तुम्हारी बीबी नहीं बेटा" तो मैं बोला "हाँ माँ मैं जानता हूँ की तुम मेरी सेक्सी माँ हो और मैं तुम्हारा बेटा. पर तुम ये मत्त सोचो तुम ये सोंचो तुम एक औरत हो जिसको मर्द की जरूरत है, और मैं एक मर्द हूँ जिसे एक औरत की जरूरत है. इससे हम दोनों एक दुसरे का प्यास बूझा सकते हैं." तो फिर माँ बोली "पर ये सही नहीं है बेटा, ये गलत है" तो फिर मैं बोला "कुछ गलत नहीं है माँ, इससे दो फाईदे ही हैं." तो माँ बोली "क्या क्या?" मुझे ये सुन कर लगा की अब माँ पटती जा रही है. फिर मैं बोला "ऐसा करने से तुम्हारी भी प्यास बूझ जाएगी और मेरी भी. और घर की इज्ज़त घर में"
तो फिर माँ बोली "पर बेटा अगर किसी को पता चल गया तो क्या होगा. हम किसी को समाज में मूह दिखने लायक नहीं रहेंगे. हमारी नो नाक कट जाएगी." तो फिर मैं उनके ऊपर आ कर एक जोरदार किस्स लिया और कहा "माँ तुम्हे अपने बेटे पे भरोसा नहीं है. ये बात किसी को मालूम नहीं होगी, यहाँ तक की पापा को भी नहीं. जब पापा घर पर होंगे तो आप पापा से प्यार करवाना. और जब चले जाएंगे तो फिर मैं आपको प्यार करूंगा. इससे आपको पापा की कमी कभी नहीं महसूस होगी." और फिर मैं अपनी माँ ले होठो पर अपना होठ रख कर चूमने लगा! माँ अब कुछ नहीं बोल रही थी. शायद अब उनको मुझ पर भरोशा हो गया. बहार बारिस बहोत तेज हो रही थी और अंडर मेरी और माँ की गर्मी बढ़ रही थी. माँ को मैं बेतहासा चूम रहा था. अब माँ भी मेरा साथ देने लगी! अब वो भी मेरे होठो को चूम रही थी. मैं मन-ही-मन इतना खुश हुवा की मैं आपको शब्दों मैं बता नहीं सकता.
ये वही समझ सकता है जो अपनी माँ को चोदता है. अब मैं माँ की गाल को चूम रहा था एक-दो बार दांत भी गारा दिया जिससे माँ के मूंह से आह्ह्हह्ह!!! निकल जाता था! अब मैं उनके कंधो और गर्दन को चूम रहा था और माँ मेरे शरीर पर अपना हाथ फेर रही थी. मैं इतनी जोश में आ चूका था की कह नहीं सकता बस मैं इस मौके को भूनाना चाहता था. इस लिए माँ को मैं होश में नहीं आने देना चाहता था. फिर मैं माँ की चूची को ब्रा के ऊपर से दवाते हूवे कहा "आह..!! माँ क्या मस्त चूची है तुम्हारे. जरा इसकी दर्शन करवाओ माँ. अपनी ब्रा को हटा दो." तो माँ ने अपनी छाती को ऊपर उठाया और बोली "निचे से हूक खोल ले. मैं हूक खोलने की कोशिश की पर खुल नहीं रहा था! इसके बारे में मुझे मालूम भी नहीं था की कैसे खुलता है. मैं इतना समय बर्बाद नहीं करना चाहता था इसीलिए मैं ब्रा के दोनों तरफ पाकर के खीचा जिससे ब्रा की हूक टूट गयी. तो माँ बोल पड़ी "मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ तुम इतनी जल्दी में क्यूँ हो. मालूम है ना जल्दी का काम सैतान का" तो मैं बोला "मुझसे खुल नहीं रहा था माँ तो मैं क्या करता?" कहते हूवे ब्रा को एक तरफ फेक दिया! माँ की चुचिया देख कर मेरी आँखे चौंधिया गया था. क्या मध्य प्रकार की गोरी-गोरी मखमल से भी मुलायम कासी-कासी चुचिया थी. मैं माँ की चूची पर पर टूट पड़ा! कभी मसलता को कभी चूसता! माँ के मूंह से "सीईईई....... सीईईईई...!!" की आवाजे आने लगी थी. चुचिया धीरे-धीरे शख्त होते जा रहे थे. माँ को शायद अब जब मैं चुचियों को मसलता तो दर्द होने लगा था.
शायद इसी लिए जब भी मैं माँ की चुचियो को मसलता तो वो मेरे हाथ को हटाने की कोशिश करती. पर मैं नहीं हटाता! आखिर कार माँ से रहा नहीं गया और बोली " चूची पे ही लगा रहेगा क्या? निचे नहीं जाएगा?" बस मैं तो यही चाहता था की माँ खुद बोले. तब मैंने २-४ बार जोर से चूची मसल दिया! माँ दर्द से छटपटाते हूवे बोली "आह्ह्ह्हह्ह......!!! मर्रर्रर्र गयीईईईई.....!!!"
फिर मैंने उनके चूची को छोड़ कर अब उनके पेटीकोट खोलने लगा! पेटीकोट का नाडा खोला और पेटीकोट को निचे की ओर ले गया मैंने देखा माँ निचे पिंक कलर का चड्डी पहन रखी थी जो पूरी तरह से भींग चूका था! जब मैंने माँ की चड्डी को निकला तो मेरे मूंह से बरबस निकल गया "वाहह..! क्या बूर है! बूर पूरी तरह से बाल से भरा हुवा था और पानी निकल रहा था! मैं अपना समय ख़राब ना करते हूवे एक तकिया लिया और माँ की कमर के निचे रख दिया! जिससे माँ की बूर और ऊपर उठ गया. फिर क्या था मैंने अपना मूंह उस बूर पर रख दिया! और कुत्ते कीतरह चाटने गला! मेरा मूंह अपने बूर पर पाते ही माँ के मूह से आह्ह्ह..!! निकल गयी.
मैं उनके उस चूत के रस के को पि रहा था पहले तो कुछ अजीब सा लगा. थोडा सा नमकीन, पर थोड़ी देर बाद अच्छा लगने लगा! मैं खूब मस्ती में चाट रहा था. माँ को भी मज़ा आ रहा था उनके मूंह से लगातार सीईईईईई....!!! सीईईईईइ............!!!! का आवाज़ आ रहा था. और अपने जांघों के बिच मेरे सर को दबा रही थी. मैं कुत्ते की तरह माँ के चूत को चाटे जा रहा था. अब सब रस मैं चाट चूका था. फिर मैंने उनके छुट में अपना जीभ डाल दिया. माँ तरप उठी "आह्ह्ह..!! क्या पेल दिया बेटा." मैं कुछ नहीं बोला और अपनी जीभ को अन्दर-बहार करने लगा. क्या मज़ा आ रहा था. जब भी जीभ अंडर जाता माँ आह्ह्ह्ह!!! कर बैठती. मस्ती से माँ की बूर को अपने जीभ से चोदे जा रहा था. माँ भी मस्ती में थी उसे भी मज़ा आ रहा था. करीब १० मिनट के बाद माँ बोली "बेटा अब मैं नहीं रोक सकती मेरा आ रहा है" माँ के इतना कहते ही मुझे महसूस हुवा की माँ के चूत से कुछ गरमा-गरम पानी जैसा लस्से दर द्रव निकल रहा था. माँ अपने शरीर को पूरी तरह टाईट का रखी थी! मैंने अपने दोनों होठ से माँ के चूत के छेद पर कब्ज़ा जमाया और सारा द्रव पिता चला गया. ये पीते ही जैसे मेरे लंड में और ताकत आ गया! लंड और मोटा और टाईट हो गया. मैं तब-तक माँ के चूत को चाटता रहा जब-तक एक-एक कतरा ना पि गया.
माँ अब बिलकुल ढीली पर चुकी थी. तब मैंने माँ से पूछा " कैसा लगा माँ? मेरी मेहनत काम आया या नहीं. अब कैसा लग रहा है तुमको? मजा आया." तो माँ बोली "मैं तो जन्नत की सैर करके चली आई बेटा. ऐसा लग रहा था जैसे मैं जन्नत में हूँ. आज १ साल और ४ महीने बाद मैं झड़ी हूँ. दिल खुश कर दिया तुने मेरे लाल." अब मुझसे भी रहा नहीं जा रहा था. मेरा भी लंड माँ की बूर में हलचल मचने के लिए तैयार था. मैंने पलंग परसे सारे एक्स्ट्रा कपडे हटा दिए माँ की पेटीकोट और चड्डी भी निकाल कर एक तरफ फेक दिया जो अभी तक माँ की पैसे में था. रजाई तोशक भी हटा दिए. अब केवल मैं था मेरी पूरी तरह नंगी माँ थी. क्या लग रही थी गजब की फिगर गोरी-गोरी बदाग बदन मखमल से भी मुलायम स्किन, त्वचा. जूसी होठ.
मुझसे रहा नहीं गया मैं फिर से माँ को बांहों में लेकर चूमने लगा. माँ भी साथ देने लगी. करीब ५ मिनट तक एक-दुसरे को चूमने-चाटने के बाद मैं बोला " माँ अब मुझसे नहीं रहा जायेगा बस अब पीठ के बल सो जावो." तो माँ बोली "सोती हूँ बेटा, पर तूं अपना चड्डी तो खोल जरा मैं भी तो देखू की मेरे बेटे ला लंड कितना बड़ा है..? जो आज अपनी माँ को ही छोड़ने जा रहा है. जरा खोल तो इसे." तो फिर मैं को कहा "माँ तुम खुद ही खोल कर देख लो ना. मैं तो रोज खोलता हूँ. आज तुम खोल दो." तो फिर माँ बोली "कोई बात नहीं लाओ मैं ही खोल दूँ." तो मैं पलंग पर खड़ा हो गया माँ बैठे हूवे ही मेरे चड्डी को निचे की ओर खिंच दी. ज्यूँ ही लंड चड्डी के कैद से आजाद हुवा नाग की भांति माँ को ललकारने लगा. माँ मेरा ९ इंच लम्बा और ४ इंच मोटा लंड देखते ही डर गयी. "ये तो तुम्हारे बाप के लंड से बहोत बड़ा है. मेरी बूर तो फट जाएगी इससे." माँ बोली! तो मैं उनको हौसला देते हूवे कहा "अरे माँ! ऐसा कुछ नहीं होता. बूर बने हैं लंड के लिए, और लंड बने हैं बूर के लिए! तो फिर बूर कैसे फट जायेगा. तुम चिंता मत्त करो तुम्हे कुछ नहीं होगा." मैं ये कहते हूवे अपने लंड को माँ के मूंह पे सता दिया औ कहा "माँ जरा चुसो इसे." तो माँ बोली "छिं मैं लंड को अपने मूंह से कैसे चुसू. ये अछि बात नहीं है. मुझे घृणा होती है." तो मैं बोला "माँ मैं जैसा कहता हूँ वैसा करो बहोत मज़ा आएगा. बस जैसा-जैसा कहती हूँ वैसा-वैसा करती जाओ." पहले तो नहीं मान रही थी पर कितना कहने के बाद चूसने के लिए राजी हो गयी.
माँ का कोमल हाथ जैसे ही मेरे लंड पर पड़ा लंड और फूल गया. माँ के कितनी दिक्कत से मान की मूंह में गया. माँ का मूंह मेरे लंड से पूरी तरह भर चूका था. वो चूसने लगी हाय! क्या मजा आने लगा. मुझे ऐसी ख़ुशी कभी नहीं मिली थी. और उसमे माँ से चुस्बाने की तो मजा ही कुछ और था. मैं आनंदित हो रहा था. मैंने कई किताबो में सुना था. जब मर्द पहली बार सेक्स करता है तो वो जल्दी झड जाता है. माँ पिछले ५-७ मिनट से चूस रही थी. तो मैं माँ को बोला " माँ झड जाऊं तो मेरा लंड फिर से चाटना. चाट-चाट कर इसे फिर से खड़ा करना." माँ ने ओके! के इशारे में सर हिलाया. तभी मुझे एक इडिया आया क्यूँ ना अभी माँ की मूंह को छोड़ा जाए. फिर मैं माँ को दीवार की ओर ले गया और उनके सर के पीछे तकिया रखा और उनको दीवार में सटाते हूवे कहा "माँ अब तुम चुसना मत्त मैं तुम्हे एक दूसरा मजा देता हूँ. बस मूंह खोले रखना. और ढीला रखना."
वैसे लंड तो उनके मूंह में भरा हुवा पहले से ही था. फिर मैंने लंड को थोडा बाहर निकला. सुपाडा मूंह में ही था. फिर धीरे से लंड को अंडर की ओर धक्का दिया! अभी ३-४ इंच लंड से माँ के मूंह को छोड़ रहा था. धीरे-धीरे अन्दर-बाहर करने लगा! करते-करते धीरे-धीरे रफ़्तार बढ़ता गया. जब रफ़्तार तेज पकड़ लिया तो मैंने अचानक एक बहोत ही जोरदार धक्का माँ के मूंह में मार दिया. लगभग ७ इंच लंड माँ के मूंह में घुस गया! वो तड़पने लगी. माँ सांस नहीं ले पा रही थी. मैंने ४०-४५ सेकेण्ड लंड को माँ की मूंह में रखा फिर बाहर निकल दिया. माँ जोरजोर से सांस लेने और छोड़ने लगी. जब नॉर्मल हुवा तो बोली " ये क्या किया था तुमने मेरी सासे रुक गयी थी."
फिर मैंने अपना लंड उनके मूंह में डालते हूवे कहा "अब ऐसा नहीं करूंगा." और फिर मैं माँ के मूंह को छोड़ने लगा इस बार ५-६ इंच लंड से! करीब ८-१० मिनट तक की मूंह चुदाई के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे लंड से अब वीर्य निकलने वाला है तो मैं माँ को बोला "माँ मैं अब झाड़ने वाला हूँ अब तुम चूसो. और फिर खड़ा करो मेरे लंड को." इतना कहते ही मैंने अपने लंड से माँ के मूंह में एक पिचकारी छोड़ दी. माँ का मूंह वीर्य से लबा-लब भर गया. पर मैं लंड को माँ के मूंह से नहीं निकाल रहा था क्यूंकि मैं चाहता था माँ मेरा वीर्य पि जाए! आखिर कार उसे पीना पड़ा. मैं क्या बताऊँ की कितना मजा आया. मजे की कोई सीमा नहीं थी. कुछ देर बाद मैंने अपना लंड को माँ के मूंह से बाहर निकला. अभी भी कुछ कम नहीं लग रहा था मेरा लंड. माँ मेरे लंड की तरफ देख कर बोली "ये तुम्हारा लंड है या किसी घोड़े का..?" तो मैं बोला "तुमने अगर घोड़े को जनम दिया है तो घोड़े का ही है" माँ हस्ते हूवे फिर से मेरा लंड चाटने लगी.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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