FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--63
भौजी: अच्छा ये बताओ की मूड क्यों खराब है आपका?
मैं: क्या? मेरा मूड बिलकुल ठीक है!
भौजी: हुंह...जिस तरह से आपने मुझे नेहा के कपडे बदलने नहीं दिए उससे साफ़ जाहिर है की कोई बात तो है जो आप छुपा रहे हो|
मैं: छुपा नहीं रहा! बस अभी नहीं कहना चाहता| अभी आप खुश हो... अपने मायके जा रहे हो और ऐसे मैं अगर कोई बेकार का टॉपिक नहीं छेड़ना चाहता|
भौजी चलते-चलते रुक गईं|
भौजी: I Wanna Know…नहीं तो मैं कहीं नहीं जाऊँगी|
मैं: (अब मैं भी दो कदम चल के रुक गया|) क्यों अपना मूड ख़राब करना चाहते हो?
भौजी: आपको मेरी कसम!
अब कसम दी थी...बाँध दिया मुझे ... तो बोलना ही पड़ा और मैंने उन्हें सारी कहानी सुनाई| नेहा आगे भाग के आम के पेड़ पे पत्थर मार रही थी| मेरी बात सुन के भौजी अपनी कमर पे हाथ धार के कड़ी हो गईं और अपने माथे को पीटते हुए बोलीं;
भौजी: हाय राम! ये चुडेल.... काश मैं इसे कोई गाली दे सकती!
मैं: क्यों अपना मुंह गन्दा करते हो| छोडो उसे! चलो चलते हैं..माँ-पिताजी इन्तेजार कर रहे हैं|
भौजी: अब मूड नहीं है मेरा| आप ही चले जाओ!
मैं: इसीलिए नहीं बता रहा था आपको| आपका मन नहीं है तो ना सही पर मेरा और न एह का मन बहुत है माँ-पिताजी से मिलने का| तो हम तो जायेंगे ...आप घर लौट जाओ|
भौजी: मुझे तो लगा की आप मुझे मनाओगे....पर आपने एक भी बार मुझे नहीं मनाया|
मैं: क्योंकि मैं जानता हूँ की आप मेरे बिना वापस जाओगे ही नहीं| अब चलो....वापस भी आना है|
खेर जैसे तैसे मैंने भौजी का मन हल्का किया और हँसी-मजाक करते हुए हम भौजी के मायके पहुँचे|
उनके घर के आँगन में ही भौजी के माँ-पिताजी अर्थात मेरे सास-ससुर चारपाई डाले बैठे थे| हमें देख के ससुर जी खड़े हुए, इधर भौजी जाके सासु जी से गले मिलीं| मैंने सास-ससुर के पाँव हाथ लगाये और उन्होंने बड़े प्यार से मुझे बिठाया| नेहा भी भाग के अपने नानू और नानी के पाँव-हाथ लगा के वापस मेरी गोदी में बैठ गई| ससुर जी की नजरों से लग रहा था की वो मेरे कपडे पहनने के ढंग से बहुत खुश हैं और मन ही मन मेरी तारीफ कर रहे हैं|
ससुर जी: बेटा हमारी बड़ी दिली तमन्ना था की एक बार तुम से भेंट हो| तुमने तो हमारी बेटी पे जादू कर दिया है| जब से इसने होश संभाला है ये अपने आगे किसी की नहीं सुनती और तुमने....तुमने इसे बिलकुल सीधा कर दिया|जब छोटी थी तो इसे भेड़ की तरह जहाँ हाँक दो चुप-चाप चली जाती थी, पर चार किताबें क्या पढ़ीं हमसे बहंस करने लगी| अपने चरण काका के लड़की शादी में आने से मन कर दिया! दो बार लड़के को दौड़ाया तब भी नहीं मानी...पर तुमने इससे पता नहीं क्या कहा, की मान गई|
मैं: जी पिताजी.... आपको बुरा तो नहीं लगा मैंने आपको पिताजी कहा?
ससुर जी: हाँ..हाँ.. बेटा... तुम हमें पिताजी ही कहो|
मैं: जी पिताजी... दरअसल हम दोनों पढ़े लिखे हैं...मतलब मैं तो अभी पढ़ ही रहा हूँ ... तो हम में अच्छा तालमेल है| हम दोनों अच्छे दोस्त हैं...और दोस्ती में दोस्त का कहा तो मन्ना ही पड़ता है ना? रही बात बहस की तो... बुरा मत मानियेगा पर मैंने ये देखा है की यहाँ गाँव में लोग लड़कियों को दबाया जाता है| जब इंसान पढ़-लिख जाता है तो उसमें अन्याय से लड़ने की हिम्मत आ जाती है और वो किसी के भी विरुद्ध खड़ा हो सकता है|हाँ मैं ये मानता हूँ की उन्हें (भौजी को) चरण काका की लड़की की शादी के ले आने से मना नहीं करना चाहिए था| दरसल आपको याद होगा की आज से कुछ साल पहले आपके यहाँ हवन था और उसमें उन्हें यहाँ आन था| उस समय मैं छोटा था...और वो काफी दिन यहाँ रूक गईं| मुझे उस बात पे बहुत गुस्सा आया और मैंने शहर वापस जाने का मन बना लिया| हम लोग यहीं से होक गए थे पर मैं रिक्शे से नहीं उतरा और अपनी अकड़ दिखा रहा था| इसी दर से की कहीं मैं फिर से ना बुरा मान जाऊँ उन्होंने आने से मना कर दिया| पर वो ये भूल गईं की मैं अब छोटा नहीं रहा|
पिताजी: यहाँ गाँव में हम काम पढ़े-लिखे लोग नियम-कानून बनाते रहते हैं और तुम्हारी बात पूरी तरह से सही है| पर अगर तुम्हारे जैसे लोग इस गाँव में रहे और हमें शिक्षित करें तो ये सोच बदली जा सकती है| पर इस बीहड़ में कौन आना चाहेगा?
मैं: आपने बिलकुल सही कहा| पर जब यहाँ भी विकास होगा तो पढ़े-लिखे लोग यहाँ अवश्य आएंगे और ये सोच अवश्य बदलेगी|
(घबराइये मत मित्रों मैं यहाँ "मोदी सरकार" के बारे में कुछ नहीं कहूँगा!!! ही..ही..ही..ही..)
इतने में भौजी और उनकी माँ भी हमारे पास चारपाई डाले बैठ गए|
ससुर जी: वैसे कहना पड़ेगा में बेटा तुम किसी वयस्क की तरह बात करते हो| तुमने जिस तरह से अपनी बात को पेश किया है वो काबिले तारीफ है| ना कोई घमंड...न कोई अकड़...एक दम सरल शब्दों में बात करते हो! और तो और हम तो तुम्हारे ऋणी हैं| जिस तरह तुमने हमारी बेटी और पोती की रक्षा की!
मैं: नहीं पिताजी...मैंने आप पर कोई एहसान नहीं किया! आखिर मेरा भी उनसे कोई रिश्ता है|
मैंने ससुर जी को प्रसाद दिया ...चाय पी और चलने की अनुमति माँगी, तभी वहाँ भौजी की छोटी बहन अपने पति के साथ आ गई!
पिताजी: अरे बेटा रुको... अभी तो आये हो| कम से कम एक दिन तो रुको हमारे साथ| देखो तुम्हारी भौजी की बहन भी आ गई कुछ दिन दोनों बहने भी मिल लेंगी?
मैं: पिताजी अवश्य रुकता परन्तु कल क्या हुआ आप तो जानते ही हैं| ऐसे में माँ-पिताजी कल घबरा गए थे| तो उन्होंने कहा की बेटा रात होने से पहले लौट आना| फिर कभी अवश्य आऊँगा!
(भौजी की ओर देखते हुए) आप एक-दो दिन रुक जाओ...सबसे मिल लो ... मैं घर निकलता हूँ|
पर भौजी का अपनी बहन को देखते ही मुँह बन गया था| यहाँ तक की दोनों गले मिले तो भौजी ने बड़े उखड़े तरीके से व्यवहार किया|
भौजी: नहीं... कल नेहा का स्कूल है|
मैं: कल तो Sunday है|
भौजी: (मुझे घूरते हुए) नहीं..पर नेहा का होमवर्क भी तो है...पहले ही दो दिन छुट्टी मार चुकी है ये|
ससुर जी: बेटी अब तो तुम्हारे "मानु जी" ने भी कह दिया की रूक जाओ, अब तो रुक जा!
भौजी: नहीं पिताजी... आपको तो पता ही है की वहाँ भी सब मुझे ही सम्भालना है| शहर से माँ-पिताजी (मतलब मेरे माँ-पिताजी) भी आये हैं तो उनका ख्याल भी मुझे ही रखना है|
ससुर जी: बेटी रूक जाती तो अच्छा होता|
मैं: (प्यार से) रूक जाओ ना... प्लीज!
भौजी: बोला ना नहीं| (उन्होंने बड़े उखड़े तरीके से जवाब दिया)
मैं: ये नहीं मानने वाली पिताजी| हम चलते हैं! पायलागी!!! पायलागी माँ!
सासु जी: खुश रहो बेटा!
ससुर जी: खुश रहो बेटा!
हम वहाँ से चल पड़े और भौजी की बेरुखी तो देखो, उन्होंने अपनी बहन को बाय तक नहीं कहा ना ही गले मिलीं...और तो और नेहा को भी उनके पास जाने नहीं दिया|
हम घर से कुछ दूर आ गए थे पर हम दोनों में बातचीत बंद थी| मैं नेहा को गोद में उठाय उनके साथ-साथ चल रहा था, आखिर भौजी स्वयं ही मुझ से बोलीं;
भौजी: मुझे माफ़ कर दो| (और भौजी एकदम से रुक गईं)
मैं: ठीक है!
भौजी: नहीं आपने मुझे माफ़ नहीं किया|
मैं: कर दिया|
भौजी: नहीं किया.. (मैं उनसे करीब चार कदम दूर था)
मैं: ये सब क्या हो रहा था? रसिका भाभी का गुस्सा अपने घरवालों पे क्यों उतार रहे थे? और यहाँ तक की मेरी बात भी अनसुनी कर दी!
भौजी: मैं उस बात से परेशान नहीं थी!
मैं: तो किस बात से आपका मुँह फीका पड़ गया?
भौजी की आँखों में आँसू छलक आये! मैंने तुरंत नेहा को गोद से उतरा और उनहीं जाके गले से लगा लिया| मेरी छाती से सर लगा के वो रोने लगीं|
मैं: क्या हुआ...? प्लीज बताओ!
भौजी: उसे देखते ही वो सब बातें याद आ गईं?
मैं: किसे?
भौजी: शगुन...मेरी छोटी बहन!
तब मुझे भौजी की सारी बात याद आई की ये उनकी वही बहन है जिसके साथ चन्दर भैया ने......!!!
मैं: ओह्ह! चुप हो जाओ! मुझे नहीं पता था की ये वही है... मैं सब समझ गया| उसे देखते ही आपके सारे जख्म हरे हो गए| इसीलिए आपका व्यवहार उखड़ा हुआ था|
तब जाके भौजी शांत हुई और हम उसी तरह से सड़क के एक किनारे पे एक दूसरे से लिपटे खड़े थे| दूर से एक साइकल सवार की घंटी की आवाज सुनाई दी तब हम अलग हुए| भौजी का सुबकना बंद था|
मैं: अच्छा मेरी तरफ देखो और भूल जाओ उन बातों को| जो हो गया सो हो गया| मैं हूँ आ आपके लिए अब! तो फिर?
भौजी: जी...अब आपका ही तो सहारा है वरना मैं कब की मर चुकी होती|
मैं: यार आप फिरसे मरने की बात कर रहे हो! कम से कम नेहा के बारे में तो सोचो|
भौजी: सॉरी!
फिर उन्होंने ही बात बदल दी और हम चलते-चलते बातें करने लगे|
भौजी: अच्छा आप रुके क्यों नहीं घर पे?
मैं: वहाँ रुकते तो रात को हम मिलते कैसे? अब तो हाल ये है की बिना आपसे मिले चैन नहीं आता...रात को सोना दुश्वार हो जाता है| नींद ही नहीं आती!
भौजी: मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल है| वो दिन (चरण काका की लड़की की शादी वाला समय) मैंने कैसे निकाले ये मैं ही जानती हूँ| रात को तकिये को अपने सीने से चिपका के सोती थी...ये मान लेती थी की आप मेरे साथ सो रहे हो| जब आँख खुलती तो तकिये को ही Kiss कर लेती पर वो कभी सामने से जवाब नहीं देता था| और कल रात के बाद तो अब जैसे आज आपके बिना नींद ही नहीं आने वाली!
मैं: कम से कम आप सो तो रहे थे... मेरा तो हाल ही बुरा था| ऐसा था मानो मुझे एक जानवर के साथ एक कमरे में बंद कर दिया हो, वो भी ऐसा जनवार जो मुझे नोच के खाने को तैयार हो| इधर मेरी आँख बंद हुई और वो जानवर मेरी छाती पे बैठ मुझे खाने लगा!
भौजी: जानती हूँ.... अगर मैं आपकी जांघ होती तो मर ही जाती...
मैं: फिर आपने.....
भौजी: सॉरी..सॉरी ... अब कभी नहीं बोलूंगी! आपकी कसम !!!
ये समझ लो दोस्तों की हमारे घर से भौजी के घर का रास्ता हद्द से हद्द बीस मिनट का होगा जिसे हमने आधा घंटे का बना दिया बातों-बातों में|हम घर पहुँचे...कपडे बदले मैंने पिताजी को सारा हाल सुनाया और खाना खाने बैठ गए| खाना अम्मा और माँ ने मिलके बनाया था और खाना वाकई में बहुत स्वादिष्ट था| सब इन माँ और अम्मा की बहुत तारीफ की और खास कर मैंने| खाने के बाद सोने का प्रोग्राम वही था पर मन आज जानबूझ के अपनी पुरानी जगह सोना चाहता था पर भौजी मान नहीं रही थी|
मैं: यार प्लीज मान जाओ...जब से आया हूँ आपके साथ ही सो रहा हूँ| और ऐसा नहीं है की मेरा मन नहीं है आपके पास रहने का परन्तु घर में लोग क्या सोचते होंगे? की मैं हमेशा आपके पास ही रहता हूँ|
भौजी: ठीक है पर एक शर्त है?
मैं: बोलो
भौजी: आप मुझे सुलाने के बाद सोने जाओगे वरना मैं सारी रात यहीं तड़पती रहूँगी|
मैं: ठीक है, इतना तो मैं अपनी जानेमन के लिए कर ही सकता हूँ|
भौजी: क्या कहा आपने?
मैं: जानेमन!
भौजी: हाय...दिल खुश कर दिया आपने! अब से मैं आपको जानू कह के बुलाऊंगी|
मैं: ठीक है पर सब के सामने नहीं|
भौजी: Done!
अच्छा जानू, अब मुझे सुलाओ!
मैं: सुलाऊँ? अब क्या आपको गोद में ले के सुलाऊँ?
भौजी: मैं नहीं जानती...जबतक सुलाओगे नहीं मैं नहीं जाने दूँगी!
मैं: अच्छा बाबा!
(मैंने नेहा को आवाज मारी, वो दूसरी चारपाई पे लेटी थी और वरुण उसके पास बैठा था| दोनों खेल रहे थे| )
नेहा: जी पापाजी!
मैं: बेटा आपको कहानी सुननी है?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया|
मैं: चलो आप मेरी गोदी में आ जाओ|
नेहा उचक के मेरी गोदी में लेट गई| मेरे सीधे हाथ को उसने अपना तकिया बना लिया और बाएं हाथ पे उसकी टांगें थी| भुजी ने अपना हाथ नीचे से ले जाके मेरा बाहिना हाथ पकड़ लिया और उसे प्यार से मसलने लगीं| मैं कहानी सुनाता रहा और दोनों सुनती रहीं| नेहा तो सो गई पर भौजी की मस्ती जारी थी| उन्होंने अपना हाथ ले जाके मेरे लंड के ऊपर रख दिया और अब उसे दबाने लगीं| इतने में वहां बड़की अम्मा, माँ और रसिका भाभी आ गईं| उन्हें देख भौजी ने अपना हाथ धीरे से सरका लिया| रसिका भाभी डरी हुई लग रहीं थीं और उन्हें देख भौजी ने ऐसे मुँह बना लिया जैसे वो अभी गुर्राने वाली हैं|
माँ: तू सोया नहीं अभी तक?
मैं: जी नेहा को कहानी सुना रहा था|
माँ: चल जल्दी सो जा...सुबह बिना किसी के उठाये उठता नहीं है|
मैं: जी पर मैं आज पिताजी के पास सोऊँगा|
भौजी ने मुझे आँख बड़ी कर के दिखाई और बिना आवाज निकाले होठों को हिलाते हे कहा; "पहले मुझे तो सुला दो|" मैं कुछ बोला नहीं बस हाँ में सर हिलाया| अब तक माँ और बड़की अम्मा लेट चुके थे और कुछ बात कर रहे थे| रसिका भाभी तो चादर सर तक ओढ़ के भौजी के डर के मारे सो गईं थीं| अब हम बातें तो नहीं कर सकते थे बस खुसफुसा रहे थे;
भौजी: बहुत मन कर रहा है...
मैं: मेरा भी...पर जगह कहाँ है?
भौजी: आप ही कुछ सोचो? घर के पीछे चलें?
मैं: माँ और अम्मा से क्या कहोगे की हम कहाँ जा रहे हैं?
भौजी:प्लीज ...
मैं: अभी कुछ नहीं हो सकता! आप सो जाओ!
भौजी: ठीक है...तो मेरी Good Night Kiss?
मैं: कैसी Good Night Kiss? ये तो कभी तय नहीं हुआ हमारे बीच?
भौजी: अब हो गया|
मैं: आप ना... बहुत बदमाश हो... सो जाओ! Good Night !
और मैंने नेहा को उनकी बगल में सुलाया और मैं उठ के चला आया| भौजी भी उठ के मेरे साथ चल पड़ीं और मैं फिर से खुसफुसाया;
मैं: आप कहाँ जा रहे हो?
भौजी: (मुँह बनाते हुए) दरवाजा बंद करने!
जैसे ही भौजी ने दरवाजा बंद करने को दोनों हाथ दरवाजे पे रखे मैंने मौके का फायदा उठाया और अपने दोनों हाथों से उनका चेहरा थाम और उनके होठों पे जोर दार Kiss किया!
मैं: Good Night जानेमन!
भौजी: Good Night जानू!!!
मैं आके अपनी चारपाई पे लेट गया| समय देखा तो रात के नौ बजे थे| करीब दस बजे मेरी नींद खुली तो देखा भौजी मेरे सामने खड़ीं थीं!
मुझे आँख बंद किये ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरी ओर टकटकी बांधे देख रहा हो, जब आँखें खुलीं और भौजी के देखा तो मैं सकपका के उठा|देखा तो भौजी की गोद में नेहा थी और वो सुबक रही थी|
मैं: (खुसफुसाते हुए) क्या हुआ? सब ठीक तो है ना?
मुझे उठ के बैठे देख नेहा उनकी गोद से मेरी तरफ आने को मचलने लगी| इतने में बड़के दादा की नींद नेहा की आवाज सुन के खुल गई और उन्होंने पूछा;
बड़के दादा: कौन है वहाँ?
भौजी: मैं हूँ पिताजी|
बड़के दादा: क्या हुआ? और ये लड़की क्यों रो रही है|
भौजी: वो पिताजी.... नेहा रो रही थी और इनके (मेरे पास) पास आन के जिद्द कर रही थी तो उसे यहाँ ले आई|
बड़के दादा: कम से कम मुन्ना को चैन से सोने तो दो| जब देखो उसके पीछे पड़े रहते हो दोनों के दोनों!
भौजी को ये बात छुभि...और चुभनी भी थी, क्योंकि जिस तरह से बड़के दादा ने उन्हें झिड़का था वो ठीक नहीं था| मैंने नेहा को गोद में लेने के लिए हाथ आगे बढाए और नेहा भी मेरी गोद में आना चाहती थी परन्तु भौजी उसे जाने नहीं दे रही थीं|
मैं: Aww मेरा बच्चा!!!
भौजी: नहीं रहने दो...मैं इसे सुला दूंगी| आप सो जाओ!
मैं: दो! (मैंने हक़ जताते हुए कहा|)
मैंने खुद ही आगे बढ़ के जबरदस्ती उनकी गोद से नेहा को ले लिया| फिर मैं उसकी पीठ थपथपाते हुए उसे सुलाने लगा| नेहा का सुबकना जारी था... फिर मैं उसे अपनी छाती से चिपकाए लेट गया|
मैं: Aww मेरी गुड़िया ने बुरा सपना देखा?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया|
मैं: बेटा... सपने तो सपने होते हैं..वो सच थोड़े ही होते हैं| चलो छोडो उन बातों को... आप कहानी सुनोगे?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया और उसका सुबकना कुछ कम हुआ| मैंने उसे हलकी सी हसने वाली कहानी सूना दी और वो सुनते-सुनते सो गई| कुछ देर बाद मुझे नींद सी आने लगी पर सोचा की एक बार मूत आऊँ|मैं मूत के हाथ धो के लौटा तो मन में एक अजीब सा एहसास हुआ...जैसे कोई मेरे बिना उदास है| मन ने कहा की एक बार भौजी को देख आऊँ, इसलिए मैं दबे पाँव बड़े घर की ओर चल दिया|वहाँ पहुँच के देखा तो भौजी दरवाजे की दहलीज पे बैठी हुईं थीं|
Tags = Tags = Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | पेलने लगा | उत्तेजक | कहानी | कामुक कथा | सुपाड़ा |उत्तेजना मराठी जोक्स | कथा | गान्ड | ट्रैनिंग | हिन्दी कहानियाँ | मराठी | .blogspot.com | जोक्स | चुटकले | kali | rani ki | kali | boor | हिन्दी कहानी | पेलता | कहानियाँ | सच | स्टोरी | bhikaran ki | sexi haveli | haveli ka such | हवेली का सच | मराठी स्टोरी | हिंदी | bhut | gandi | कहानियाँ | की कहानियाँ | मराठी कथा | बकरी की | kahaniya | bhikaran ko choda | छातियाँ | kutiya | आँटी की | एक कहानी | मस्त राम | chehre ki dekhbhal | | pehli bar merane ke khaniya hindi mein | चुटकले | चुटकले व्यस्कों के लिए | pajami kese banate hain | मारो | मराठी रसभरी कथा | | ढीली पड़ गयी | चुची | स्टोरीज | गंदी कहानी | शायरी | lagwana hai | payal ne apni | haweli | ritu ki hindhi me | संभोग कहानियाँ | haveli ki gand | apni chuchiyon ka size batao | kamuk | vasna | raj sharma | www. भिगा बदन | अडल्ट | story | अनोखी कहानियाँ | कामरस कहानी | मराठी | मादक | कथा | नाईट | chachi | chachiyan | bhabhi | bhabhiyan | bahu | mami | mamiyan | tai | bua | bahan | maa | bhabhi ki chachi ki | mami ki | bahan ki | bharat | india | japan |यौन, यौन-शोषण, यौनजीवन, यौन-शिक्षा, यौनाचार, यौनाकर्षण, यौनशिक्षा, यौनांग, यौनरोगों, यौनरोग, यौनिक, यौनोत्तेजना, aunty,stories,bhabhi, nangi,stories,desi,aunty,bhabhi,erotic stories, hindi stories,urdu stories,bhabi,desi stories,desi aunty,bhabhi ki,bhabhi maa ,desi bhabhi,desi ,hindi bhabhi,aunty ki,aunty story, kahaniyan,aunty ,bahan ,behan ,bhabhi ko,hindi story sali ,urdu , ladki, हिंदी कहानिया,ज़िप खोल,यौनोत्तेजना,मा बेटा,नगी,यौवन की प्या,एक फूल दो कलियां,घुसेड,ज़ोर ज़ोर,घुसाने की कोशिश,मौसी उसकी माँ,मस्ती कोठे की,पूनम कि रात,सहलाने लगे,लंबा और मोटा,भाई और बहन,अंकल की प्यास,अदला बदली काम,फाड़ देगा,कुवारी,देवर दीवाना,कमसीन,बहनों की अदला बदली,कोठे की मस्ती,raj sharma stories ,पेलने लगा ,चाचियाँ ,असली मजा ,तेल लगाया ,सहलाते हुए कहा ,पेन्टी ,तेरी बहन ,गन्दी कहानी,छोटी सी भूल,राज शर्मा ,चचेरी बहन ,आण्टी , kahaniya ,सिसकने लगी ,कामासूत्र ,नहा रही थी , ,raj-sharma-stories कामवाली ,लोवे स्टोरी याद आ रही है ,फूलने लगी ,रात की बाँहों ,बहू की कहानियों ,छोटी बहू ,बहनों की अदला ,चिकनी करवा दूँगा ,बाली उमर की प्यास ,काम वाली ,चूमा फिर,पेलता ,प्यास बुझाई ,झड़ गयी ,सहला रही थी ,mastani bhabhi,कसमसा रही थी ,सहलाने लग ,गन्दी गालियाँ ,कुंवारा बदन ,एक रात अचानक ,ममेरी बहन ,मराठी जोक्स ,ज़ोर लगाया ,मेरी प्यारी दीदी निशा ,पी गयी ,फाड़ दे ,मोटी थी ,मुठ मारने ,टाँगों के बीच ,कस के पकड़ ,भीगा बदन , ,लड़कियां आपस ,raj sharma blog ,हूक खोल ,कहानियाँ हिन्दी , ,जीजू , ,स्कूल में मस्ती ,रसीले होठों ,लंड ,पेलो ,नंदोई ,पेटिकोट ,मालिश करवा ,रंडियों ,पापा को हरा दो ,लस्त हो गयी ,हचक कर ,ब्लाऊज ,होट होट प्यार हो गया ,पिशाब ,चूमा चाटी ,पेलने ,दबाना शुरु किया ,छातियाँ ,गदराई ,पति के तीन दोस्तों के नीचे लेटी,मैं और मेरी बुआ ,पुसी ,ननद ,बड़ा लंबा ,ब्लूफिल्म, सलहज ,बीवियों के शौहर ,लौडा ,मैं हूँ हसीना गजब की, कामासूत्र video ,ब्लाउज ,கூதி ,गरमा गयी ,बेड पर लेटे ,கசக்கிக் கொண்டு ,तड़प उठी ,फट गयी ,भोसडा ,मुठ मार ,sambhog ,फूली हुई थी ,ब्रा पहनी ,چوت , . bhatt_ank, xossip, exbii, कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ रेप कहानिया ,सेक्सी कहानिया , कलयुग की कहानियाँ , मराठी स्टोरीज , ,स्कूल में मस्ती ,रसीले होठों ,लंड ,पेलो ,नंदोई ,पेटिकोट ,मालिश करवा ,रंडियों ,पापा को हरा दो ,लस्त हो गयी ,हचक कर ,ब्लाऊज ,होट होट प्यार हो गया ,पिशाब ,चूमा चाटी ,पेलने ,दबाना शुरु किया ,छातियाँ ,गदराई ,पति के तीन दोस्तों के नीचे लेटी,मैं और मेरी बुआ ,पुसी ,ननद ,बड़ा लंबा ,ब्लूफिल्म, सलहज ,बीवियों के शौहर ,लौडा ,मैं हूँ हसीना गजब की, कामासूत्र video ,ब्लाउज ,கூதி ,गरमा गयी ,बेड पर लेटे ,கசக்கிக் கொண்டு ,तड़प उठी ,फट गयी ,फूली हुई थी ,ब्रा पहनी
बदलाव के बीज--63
भौजी: अच्छा ये बताओ की मूड क्यों खराब है आपका?
मैं: क्या? मेरा मूड बिलकुल ठीक है!
भौजी: हुंह...जिस तरह से आपने मुझे नेहा के कपडे बदलने नहीं दिए उससे साफ़ जाहिर है की कोई बात तो है जो आप छुपा रहे हो|
मैं: छुपा नहीं रहा! बस अभी नहीं कहना चाहता| अभी आप खुश हो... अपने मायके जा रहे हो और ऐसे मैं अगर कोई बेकार का टॉपिक नहीं छेड़ना चाहता|
भौजी चलते-चलते रुक गईं|
भौजी: I Wanna Know…नहीं तो मैं कहीं नहीं जाऊँगी|
मैं: (अब मैं भी दो कदम चल के रुक गया|) क्यों अपना मूड ख़राब करना चाहते हो?
भौजी: आपको मेरी कसम!
अब कसम दी थी...बाँध दिया मुझे ... तो बोलना ही पड़ा और मैंने उन्हें सारी कहानी सुनाई| नेहा आगे भाग के आम के पेड़ पे पत्थर मार रही थी| मेरी बात सुन के भौजी अपनी कमर पे हाथ धार के कड़ी हो गईं और अपने माथे को पीटते हुए बोलीं;
भौजी: हाय राम! ये चुडेल.... काश मैं इसे कोई गाली दे सकती!
मैं: क्यों अपना मुंह गन्दा करते हो| छोडो उसे! चलो चलते हैं..माँ-पिताजी इन्तेजार कर रहे हैं|
भौजी: अब मूड नहीं है मेरा| आप ही चले जाओ!
मैं: इसीलिए नहीं बता रहा था आपको| आपका मन नहीं है तो ना सही पर मेरा और न एह का मन बहुत है माँ-पिताजी से मिलने का| तो हम तो जायेंगे ...आप घर लौट जाओ|
भौजी: मुझे तो लगा की आप मुझे मनाओगे....पर आपने एक भी बार मुझे नहीं मनाया|
मैं: क्योंकि मैं जानता हूँ की आप मेरे बिना वापस जाओगे ही नहीं| अब चलो....वापस भी आना है|
खेर जैसे तैसे मैंने भौजी का मन हल्का किया और हँसी-मजाक करते हुए हम भौजी के मायके पहुँचे|
उनके घर के आँगन में ही भौजी के माँ-पिताजी अर्थात मेरे सास-ससुर चारपाई डाले बैठे थे| हमें देख के ससुर जी खड़े हुए, इधर भौजी जाके सासु जी से गले मिलीं| मैंने सास-ससुर के पाँव हाथ लगाये और उन्होंने बड़े प्यार से मुझे बिठाया| नेहा भी भाग के अपने नानू और नानी के पाँव-हाथ लगा के वापस मेरी गोदी में बैठ गई| ससुर जी की नजरों से लग रहा था की वो मेरे कपडे पहनने के ढंग से बहुत खुश हैं और मन ही मन मेरी तारीफ कर रहे हैं|
ससुर जी: बेटा हमारी बड़ी दिली तमन्ना था की एक बार तुम से भेंट हो| तुमने तो हमारी बेटी पे जादू कर दिया है| जब से इसने होश संभाला है ये अपने आगे किसी की नहीं सुनती और तुमने....तुमने इसे बिलकुल सीधा कर दिया|जब छोटी थी तो इसे भेड़ की तरह जहाँ हाँक दो चुप-चाप चली जाती थी, पर चार किताबें क्या पढ़ीं हमसे बहंस करने लगी| अपने चरण काका के लड़की शादी में आने से मन कर दिया! दो बार लड़के को दौड़ाया तब भी नहीं मानी...पर तुमने इससे पता नहीं क्या कहा, की मान गई|
मैं: जी पिताजी.... आपको बुरा तो नहीं लगा मैंने आपको पिताजी कहा?
ससुर जी: हाँ..हाँ.. बेटा... तुम हमें पिताजी ही कहो|
मैं: जी पिताजी... दरअसल हम दोनों पढ़े लिखे हैं...मतलब मैं तो अभी पढ़ ही रहा हूँ ... तो हम में अच्छा तालमेल है| हम दोनों अच्छे दोस्त हैं...और दोस्ती में दोस्त का कहा तो मन्ना ही पड़ता है ना? रही बात बहस की तो... बुरा मत मानियेगा पर मैंने ये देखा है की यहाँ गाँव में लोग लड़कियों को दबाया जाता है| जब इंसान पढ़-लिख जाता है तो उसमें अन्याय से लड़ने की हिम्मत आ जाती है और वो किसी के भी विरुद्ध खड़ा हो सकता है|हाँ मैं ये मानता हूँ की उन्हें (भौजी को) चरण काका की लड़की की शादी के ले आने से मना नहीं करना चाहिए था| दरसल आपको याद होगा की आज से कुछ साल पहले आपके यहाँ हवन था और उसमें उन्हें यहाँ आन था| उस समय मैं छोटा था...और वो काफी दिन यहाँ रूक गईं| मुझे उस बात पे बहुत गुस्सा आया और मैंने शहर वापस जाने का मन बना लिया| हम लोग यहीं से होक गए थे पर मैं रिक्शे से नहीं उतरा और अपनी अकड़ दिखा रहा था| इसी दर से की कहीं मैं फिर से ना बुरा मान जाऊँ उन्होंने आने से मना कर दिया| पर वो ये भूल गईं की मैं अब छोटा नहीं रहा|
पिताजी: यहाँ गाँव में हम काम पढ़े-लिखे लोग नियम-कानून बनाते रहते हैं और तुम्हारी बात पूरी तरह से सही है| पर अगर तुम्हारे जैसे लोग इस गाँव में रहे और हमें शिक्षित करें तो ये सोच बदली जा सकती है| पर इस बीहड़ में कौन आना चाहेगा?
मैं: आपने बिलकुल सही कहा| पर जब यहाँ भी विकास होगा तो पढ़े-लिखे लोग यहाँ अवश्य आएंगे और ये सोच अवश्य बदलेगी|
(घबराइये मत मित्रों मैं यहाँ "मोदी सरकार" के बारे में कुछ नहीं कहूँगा!!! ही..ही..ही..ही..)
इतने में भौजी और उनकी माँ भी हमारे पास चारपाई डाले बैठ गए|
ससुर जी: वैसे कहना पड़ेगा में बेटा तुम किसी वयस्क की तरह बात करते हो| तुमने जिस तरह से अपनी बात को पेश किया है वो काबिले तारीफ है| ना कोई घमंड...न कोई अकड़...एक दम सरल शब्दों में बात करते हो! और तो और हम तो तुम्हारे ऋणी हैं| जिस तरह तुमने हमारी बेटी और पोती की रक्षा की!
मैं: नहीं पिताजी...मैंने आप पर कोई एहसान नहीं किया! आखिर मेरा भी उनसे कोई रिश्ता है|
मैंने ससुर जी को प्रसाद दिया ...चाय पी और चलने की अनुमति माँगी, तभी वहाँ भौजी की छोटी बहन अपने पति के साथ आ गई!
पिताजी: अरे बेटा रुको... अभी तो आये हो| कम से कम एक दिन तो रुको हमारे साथ| देखो तुम्हारी भौजी की बहन भी आ गई कुछ दिन दोनों बहने भी मिल लेंगी?
मैं: पिताजी अवश्य रुकता परन्तु कल क्या हुआ आप तो जानते ही हैं| ऐसे में माँ-पिताजी कल घबरा गए थे| तो उन्होंने कहा की बेटा रात होने से पहले लौट आना| फिर कभी अवश्य आऊँगा!
(भौजी की ओर देखते हुए) आप एक-दो दिन रुक जाओ...सबसे मिल लो ... मैं घर निकलता हूँ|
पर भौजी का अपनी बहन को देखते ही मुँह बन गया था| यहाँ तक की दोनों गले मिले तो भौजी ने बड़े उखड़े तरीके से व्यवहार किया|
भौजी: नहीं... कल नेहा का स्कूल है|
मैं: कल तो Sunday है|
भौजी: (मुझे घूरते हुए) नहीं..पर नेहा का होमवर्क भी तो है...पहले ही दो दिन छुट्टी मार चुकी है ये|
ससुर जी: बेटी अब तो तुम्हारे "मानु जी" ने भी कह दिया की रूक जाओ, अब तो रुक जा!
भौजी: नहीं पिताजी... आपको तो पता ही है की वहाँ भी सब मुझे ही सम्भालना है| शहर से माँ-पिताजी (मतलब मेरे माँ-पिताजी) भी आये हैं तो उनका ख्याल भी मुझे ही रखना है|
ससुर जी: बेटी रूक जाती तो अच्छा होता|
मैं: (प्यार से) रूक जाओ ना... प्लीज!
भौजी: बोला ना नहीं| (उन्होंने बड़े उखड़े तरीके से जवाब दिया)
मैं: ये नहीं मानने वाली पिताजी| हम चलते हैं! पायलागी!!! पायलागी माँ!
सासु जी: खुश रहो बेटा!
ससुर जी: खुश रहो बेटा!
हम वहाँ से चल पड़े और भौजी की बेरुखी तो देखो, उन्होंने अपनी बहन को बाय तक नहीं कहा ना ही गले मिलीं...और तो और नेहा को भी उनके पास जाने नहीं दिया|
हम घर से कुछ दूर आ गए थे पर हम दोनों में बातचीत बंद थी| मैं नेहा को गोद में उठाय उनके साथ-साथ चल रहा था, आखिर भौजी स्वयं ही मुझ से बोलीं;
भौजी: मुझे माफ़ कर दो| (और भौजी एकदम से रुक गईं)
मैं: ठीक है!
भौजी: नहीं आपने मुझे माफ़ नहीं किया|
मैं: कर दिया|
भौजी: नहीं किया.. (मैं उनसे करीब चार कदम दूर था)
मैं: ये सब क्या हो रहा था? रसिका भाभी का गुस्सा अपने घरवालों पे क्यों उतार रहे थे? और यहाँ तक की मेरी बात भी अनसुनी कर दी!
भौजी: मैं उस बात से परेशान नहीं थी!
मैं: तो किस बात से आपका मुँह फीका पड़ गया?
भौजी की आँखों में आँसू छलक आये! मैंने तुरंत नेहा को गोद से उतरा और उनहीं जाके गले से लगा लिया| मेरी छाती से सर लगा के वो रोने लगीं|
मैं: क्या हुआ...? प्लीज बताओ!
भौजी: उसे देखते ही वो सब बातें याद आ गईं?
मैं: किसे?
भौजी: शगुन...मेरी छोटी बहन!
तब मुझे भौजी की सारी बात याद आई की ये उनकी वही बहन है जिसके साथ चन्दर भैया ने......!!!
मैं: ओह्ह! चुप हो जाओ! मुझे नहीं पता था की ये वही है... मैं सब समझ गया| उसे देखते ही आपके सारे जख्म हरे हो गए| इसीलिए आपका व्यवहार उखड़ा हुआ था|
तब जाके भौजी शांत हुई और हम उसी तरह से सड़क के एक किनारे पे एक दूसरे से लिपटे खड़े थे| दूर से एक साइकल सवार की घंटी की आवाज सुनाई दी तब हम अलग हुए| भौजी का सुबकना बंद था|
मैं: अच्छा मेरी तरफ देखो और भूल जाओ उन बातों को| जो हो गया सो हो गया| मैं हूँ आ आपके लिए अब! तो फिर?
भौजी: जी...अब आपका ही तो सहारा है वरना मैं कब की मर चुकी होती|
मैं: यार आप फिरसे मरने की बात कर रहे हो! कम से कम नेहा के बारे में तो सोचो|
भौजी: सॉरी!
फिर उन्होंने ही बात बदल दी और हम चलते-चलते बातें करने लगे|
भौजी: अच्छा आप रुके क्यों नहीं घर पे?
मैं: वहाँ रुकते तो रात को हम मिलते कैसे? अब तो हाल ये है की बिना आपसे मिले चैन नहीं आता...रात को सोना दुश्वार हो जाता है| नींद ही नहीं आती!
भौजी: मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल है| वो दिन (चरण काका की लड़की की शादी वाला समय) मैंने कैसे निकाले ये मैं ही जानती हूँ| रात को तकिये को अपने सीने से चिपका के सोती थी...ये मान लेती थी की आप मेरे साथ सो रहे हो| जब आँख खुलती तो तकिये को ही Kiss कर लेती पर वो कभी सामने से जवाब नहीं देता था| और कल रात के बाद तो अब जैसे आज आपके बिना नींद ही नहीं आने वाली!
मैं: कम से कम आप सो तो रहे थे... मेरा तो हाल ही बुरा था| ऐसा था मानो मुझे एक जानवर के साथ एक कमरे में बंद कर दिया हो, वो भी ऐसा जनवार जो मुझे नोच के खाने को तैयार हो| इधर मेरी आँख बंद हुई और वो जानवर मेरी छाती पे बैठ मुझे खाने लगा!
भौजी: जानती हूँ.... अगर मैं आपकी जांघ होती तो मर ही जाती...
मैं: फिर आपने.....
भौजी: सॉरी..सॉरी ... अब कभी नहीं बोलूंगी! आपकी कसम !!!
ये समझ लो दोस्तों की हमारे घर से भौजी के घर का रास्ता हद्द से हद्द बीस मिनट का होगा जिसे हमने आधा घंटे का बना दिया बातों-बातों में|हम घर पहुँचे...कपडे बदले मैंने पिताजी को सारा हाल सुनाया और खाना खाने बैठ गए| खाना अम्मा और माँ ने मिलके बनाया था और खाना वाकई में बहुत स्वादिष्ट था| सब इन माँ और अम्मा की बहुत तारीफ की और खास कर मैंने| खाने के बाद सोने का प्रोग्राम वही था पर मन आज जानबूझ के अपनी पुरानी जगह सोना चाहता था पर भौजी मान नहीं रही थी|
मैं: यार प्लीज मान जाओ...जब से आया हूँ आपके साथ ही सो रहा हूँ| और ऐसा नहीं है की मेरा मन नहीं है आपके पास रहने का परन्तु घर में लोग क्या सोचते होंगे? की मैं हमेशा आपके पास ही रहता हूँ|
भौजी: ठीक है पर एक शर्त है?
मैं: बोलो
भौजी: आप मुझे सुलाने के बाद सोने जाओगे वरना मैं सारी रात यहीं तड़पती रहूँगी|
मैं: ठीक है, इतना तो मैं अपनी जानेमन के लिए कर ही सकता हूँ|
भौजी: क्या कहा आपने?
मैं: जानेमन!
भौजी: हाय...दिल खुश कर दिया आपने! अब से मैं आपको जानू कह के बुलाऊंगी|
मैं: ठीक है पर सब के सामने नहीं|
भौजी: Done!
अच्छा जानू, अब मुझे सुलाओ!
मैं: सुलाऊँ? अब क्या आपको गोद में ले के सुलाऊँ?
भौजी: मैं नहीं जानती...जबतक सुलाओगे नहीं मैं नहीं जाने दूँगी!
मैं: अच्छा बाबा!
(मैंने नेहा को आवाज मारी, वो दूसरी चारपाई पे लेटी थी और वरुण उसके पास बैठा था| दोनों खेल रहे थे| )
नेहा: जी पापाजी!
मैं: बेटा आपको कहानी सुननी है?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया|
मैं: चलो आप मेरी गोदी में आ जाओ|
नेहा उचक के मेरी गोदी में लेट गई| मेरे सीधे हाथ को उसने अपना तकिया बना लिया और बाएं हाथ पे उसकी टांगें थी| भुजी ने अपना हाथ नीचे से ले जाके मेरा बाहिना हाथ पकड़ लिया और उसे प्यार से मसलने लगीं| मैं कहानी सुनाता रहा और दोनों सुनती रहीं| नेहा तो सो गई पर भौजी की मस्ती जारी थी| उन्होंने अपना हाथ ले जाके मेरे लंड के ऊपर रख दिया और अब उसे दबाने लगीं| इतने में वहां बड़की अम्मा, माँ और रसिका भाभी आ गईं| उन्हें देख भौजी ने अपना हाथ धीरे से सरका लिया| रसिका भाभी डरी हुई लग रहीं थीं और उन्हें देख भौजी ने ऐसे मुँह बना लिया जैसे वो अभी गुर्राने वाली हैं|
माँ: तू सोया नहीं अभी तक?
मैं: जी नेहा को कहानी सुना रहा था|
माँ: चल जल्दी सो जा...सुबह बिना किसी के उठाये उठता नहीं है|
मैं: जी पर मैं आज पिताजी के पास सोऊँगा|
भौजी ने मुझे आँख बड़ी कर के दिखाई और बिना आवाज निकाले होठों को हिलाते हे कहा; "पहले मुझे तो सुला दो|" मैं कुछ बोला नहीं बस हाँ में सर हिलाया| अब तक माँ और बड़की अम्मा लेट चुके थे और कुछ बात कर रहे थे| रसिका भाभी तो चादर सर तक ओढ़ के भौजी के डर के मारे सो गईं थीं| अब हम बातें तो नहीं कर सकते थे बस खुसफुसा रहे थे;
भौजी: बहुत मन कर रहा है...
मैं: मेरा भी...पर जगह कहाँ है?
भौजी: आप ही कुछ सोचो? घर के पीछे चलें?
मैं: माँ और अम्मा से क्या कहोगे की हम कहाँ जा रहे हैं?
भौजी:प्लीज ...
मैं: अभी कुछ नहीं हो सकता! आप सो जाओ!
भौजी: ठीक है...तो मेरी Good Night Kiss?
मैं: कैसी Good Night Kiss? ये तो कभी तय नहीं हुआ हमारे बीच?
भौजी: अब हो गया|
मैं: आप ना... बहुत बदमाश हो... सो जाओ! Good Night !
और मैंने नेहा को उनकी बगल में सुलाया और मैं उठ के चला आया| भौजी भी उठ के मेरे साथ चल पड़ीं और मैं फिर से खुसफुसाया;
मैं: आप कहाँ जा रहे हो?
भौजी: (मुँह बनाते हुए) दरवाजा बंद करने!
जैसे ही भौजी ने दरवाजा बंद करने को दोनों हाथ दरवाजे पे रखे मैंने मौके का फायदा उठाया और अपने दोनों हाथों से उनका चेहरा थाम और उनके होठों पे जोर दार Kiss किया!
मैं: Good Night जानेमन!
भौजी: Good Night जानू!!!
मैं आके अपनी चारपाई पे लेट गया| समय देखा तो रात के नौ बजे थे| करीब दस बजे मेरी नींद खुली तो देखा भौजी मेरे सामने खड़ीं थीं!
मुझे आँख बंद किये ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरी ओर टकटकी बांधे देख रहा हो, जब आँखें खुलीं और भौजी के देखा तो मैं सकपका के उठा|देखा तो भौजी की गोद में नेहा थी और वो सुबक रही थी|
मैं: (खुसफुसाते हुए) क्या हुआ? सब ठीक तो है ना?
मुझे उठ के बैठे देख नेहा उनकी गोद से मेरी तरफ आने को मचलने लगी| इतने में बड़के दादा की नींद नेहा की आवाज सुन के खुल गई और उन्होंने पूछा;
बड़के दादा: कौन है वहाँ?
भौजी: मैं हूँ पिताजी|
बड़के दादा: क्या हुआ? और ये लड़की क्यों रो रही है|
भौजी: वो पिताजी.... नेहा रो रही थी और इनके (मेरे पास) पास आन के जिद्द कर रही थी तो उसे यहाँ ले आई|
बड़के दादा: कम से कम मुन्ना को चैन से सोने तो दो| जब देखो उसके पीछे पड़े रहते हो दोनों के दोनों!
भौजी को ये बात छुभि...और चुभनी भी थी, क्योंकि जिस तरह से बड़के दादा ने उन्हें झिड़का था वो ठीक नहीं था| मैंने नेहा को गोद में लेने के लिए हाथ आगे बढाए और नेहा भी मेरी गोद में आना चाहती थी परन्तु भौजी उसे जाने नहीं दे रही थीं|
मैं: Aww मेरा बच्चा!!!
भौजी: नहीं रहने दो...मैं इसे सुला दूंगी| आप सो जाओ!
मैं: दो! (मैंने हक़ जताते हुए कहा|)
मैंने खुद ही आगे बढ़ के जबरदस्ती उनकी गोद से नेहा को ले लिया| फिर मैं उसकी पीठ थपथपाते हुए उसे सुलाने लगा| नेहा का सुबकना जारी था... फिर मैं उसे अपनी छाती से चिपकाए लेट गया|
मैं: Aww मेरी गुड़िया ने बुरा सपना देखा?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया|
मैं: बेटा... सपने तो सपने होते हैं..वो सच थोड़े ही होते हैं| चलो छोडो उन बातों को... आप कहानी सुनोगे?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया और उसका सुबकना कुछ कम हुआ| मैंने उसे हलकी सी हसने वाली कहानी सूना दी और वो सुनते-सुनते सो गई| कुछ देर बाद मुझे नींद सी आने लगी पर सोचा की एक बार मूत आऊँ|मैं मूत के हाथ धो के लौटा तो मन में एक अजीब सा एहसास हुआ...जैसे कोई मेरे बिना उदास है| मन ने कहा की एक बार भौजी को देख आऊँ, इसलिए मैं दबे पाँव बड़े घर की ओर चल दिया|वहाँ पहुँच के देखा तो भौजी दरवाजे की दहलीज पे बैठी हुईं थीं|
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
No comments:
Post a Comment