Sunday, December 14, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--73

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--73

 इस सवाल-जवाब से बेखबर अजय भैया ने हमारी नजरों की बातें काटते हुए कहा;

अजय भैया: खा लो ना भाभी...वरना नेहा भी नहीं खायेगी और मानु भैया भी नहीं खाएंगे| कम से कम उनके लिए ही खा लो!

तब जाके भौजी ने उनके हाथ से प्लेट ली और पहला चम्मच खाया| फिर भैया ने दूसरी प्लेट मुझे दी और मैं उन्हें देखते हुए खाने लगा| अजय भैया चले गए... अब बस मैं, नेहा और भौजी ही बचे थे| जब खाना-पीना हो गया तब मैंने नेहा को गोद में लिया और निश्चय किया की अब मैं नेहा को सब बता दूँगा|

मैं: बेटा...अब ..मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ| आपक दुःख तो होगा...पर ....

मेरे पास शब्द नहीं थे...की आखिर कैसे मैं उस फूल जैसी नाजुक सी लड़की को समझाऊँ की मैं उसे छोड़ के जा रहा हूँ| इधर भौजी की नजरें अब मुझ पे टिकीं थीं और वो उम्मीद कर रहीं थीं की मैं ये कड़वी बात नेहा के सामने हर हालत में रखूँ|

मैं: बेटा... इस Sunday को ...मैं शहर वापस जा रहा हूँ!

नेहा: तो आप वापस कब आओगे? (उसने बड़े भोलेपन से सवाल पूछा)

मैं: बेटा... (मेरी बात भौजी ने बीच में काट दी)

भौजी: कभी नहीं|

इतना सुनते ही नेहा ने अपना सर मेरे कंधे पे रख दिया और रो पड़ी|

मैं: ये आप क्या कह रहे हो? किसने कहा मैं कभी नहीं आऊँगा? मैं जर्रूर आऊँगा? बेटा चुप हो जाओ...मैं आऊँगा...जर्रूर आऊँगा!

पर नेहा चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी| उसने अपनी बाँहों से मेरे गले के इर्द-गिर्द फंडा बन लिया ...जैसे मैं अभी उसे छोड़ के जा रहा हूँ|

मैं: बेटा बस...बस...चुप हो जाओ...मम्मी जूठ कह रहीं है...मैं आऊँगा...अपनी लाड़ली बेटी को ऐसे ही थोड़े छोड़ दूँगा| और मैं जब आऊँगा ना तो आपके लिए ढेर सारी फ्रॉक्स लाऊंगा... और चिप्स....और खिलोने...और ...और.... Barbie डॉल लाऊंगा| फिर हम मिलके खूब खेलेंगे..खूब घूमेंगे...

इतने लालच देने के बाद भी उसका रोना बंद नहीं हुआ...जैसे वो ये सब चाहती ही नहीं! उसे सिर्फ एक चीज चाहिए...सिर्फ मैं!

मैं: आप भी ना...क्या जर्रूरत थी ये बोलने की?

भौजी: और आपको क्या जर्रूरत है उसे जूठा दिलासा देने की? (भौजी ने शिकायत की)

मैं: मैंने कब कहा की मैं अब कभी नहीं आऊँगा.... चार महीने बाद दसहरे की छुटियाँ हैं...उन छुटियों में मैं आऊँगा...उसके बाद सर्दियों की छुटियाँ हैं... फिर अगले साल फरवरी पूरा छुट्टी है!

भौजी: और Exams का क्या? फरवरी की छुटियाँ आप हमारे साथ बिठाओगे या Exams की तैयारी करोगे? और यहाँ रह के तो हो गई आपकी तैयारी! रही बात दसहरे और सर्दी की छितियों की तो, दसहरे की छुटियाँ दस दिन की होती हैं...दो दिन आने-जाने में लग गए और बाकी के आठ दिन में क्या? सर्दी की छुटियों के ठीक बाद आपके Pre Boards हैं..उनके लिए नहीं पढोगे?

अब मेरे पास उनकी किसी भी बात का जवाब नहीं था| मैं नेहा को थप-थपाते हुए उसे चुप कराने लगा|करीब आधे घंटे बाद नेहा चुप हुई...और सो गई| मैं उसे गोद में लिए हुए आँगन के चक्कर लगाता रहा| 


तभी वहाँ माँ आ गईं और भौजी से उनका हाल-चाल पूछा|

माँ: बहु, क्या हाल है? और तू..तू वहाँ क्या चक्क्र लगा रहा है? अभी तो नेहा ने कुछ खाया भी नहीं..और तू उसे सुला रहा है?

भौजी: माँ...वो नेहा बहुत रो रही थी...और अभी रोते-रोते सो गई?

माँ: रो रही थी...मतलब?

मैं: मैंने सुई अपने जाने की बात बताई तो वो रो पड़ी!

माँ: तू ना.... दे इधर बेटी को| (माँ ने नही को अपनी गोद में ले लिया) क्या जर्रूरत थी तुझे इसे कुछ बताने की| अपने आप एक दो दिन बाद सब भूल जाती|

अब मैं माँ को कैसे बताता की ये वो रिश्ता नहीं जो एक-दो दिन में भुलाया जा सके! खेर रात हुई और अब भी भौजी बहुत उखड़ी हुईं थी और मुझे अब इसका इलाज करना था वरना.... कुछ गलत हो सकता था| जब अम्मा खाने के लिए बोलने आईं तो मैंने उन्हें अलग ले जा के बात की;

मैं: अम्मा ...मुझे एक बात करनी थी आपसे| आज दिनभर इन्होने मुझसे ठीक से बात नहीं की है...मेरा मन बहुत घबरा रहा है... जब से ये अचानक बेहोश हुईं हैं तब से मेरी जान निकल रही है.... इसलिए मैं आपसे विनती करता हूँ ...की आज रात मैं इनके घर में सो जाऊँ?

अम्मा: (कुछ सोचते हुए) ठीक है बेटा| मुझे तुम पे पूरा विश्वास है|

फिर मैं अम्मा के साथ भोजन लेने रसोई पहुँच गया...भोजन माँ और आम्मा ने मिल के बनाया था| मैंने आस-पास नजर दौड़ाई तो देखा की रसिका भाभी छप्पर के नीचे चारपाई पे पड़ी थी|
मैंने एक थाली में तीनों का भोजन लिया और वापस आ गया|

मैं: चलो खाना खा लो?

भौजी: पर मुझे भूख नहीं है ....

मैं: जानता हूँ...मुझे भी नहीं है... पर अगर दोनों नहीं खाएंगे तो नेहा भी नहीं खायेगी|

इतने में माँ नेहा को लेके आ गई;

माँ: ले संभाल अपनी लाड़ली को....जब से उठी है तब से तेरे पास आने को मचल रही है|

मैंने नेहा को गोद में लिया और उसके माथे को चूमा| माँ ने देखा की खाना चारपाई पे रखा है और हम दोनों में से कोई भी उसे हाथ नहीं लगा रहा|

माँ: बहु...ऐसी हालत में कभी भूखे नहीं रहना चाहिए...इसलिए खाना जर्रूर खा लेना वरना ये नालायक भी नहीं खायेगा|

भौजी: जी माँ !

इतना कह के माँ चलीं गईं| मैंने पहला कौर भौजी को खिलाया और दूसरा नेहा को...और इधर भौजी ने पहला कौर मुझे खिलाया और मेरी आँखों में देखते हुए उनकी आँखें फिर छलछला गई| मैंने बाएं हाथ सेउनके आँसूं पोछे और फिर हम तीनों ने खाना खत्म किया|

भौजी: अब तो अपनी कसम से आजाद कर दो|

मैं: ठीक है...कर दिया!

भौजी उठीं और हाथ मुँह धोया...फिर मैंने थाली रसोई के पास धोने को रखी और भौजी के घर में पहुँच गया| आँगन में मैंने दो चारपाई दूर-दूर बिछाई और एक पे भौजी लेट गई और दूसरी पे मैं और नेहा|


 इतने में वहाँ चन्दर भैया आ गए;

चन्दर भैया: तो आज मानु भैया यहीं सोयेंगे?

मैं: क्यों ....पहली बार तो नहीं है| जब भौजी की तबियत खराब थी तब भी मैं यहीं सोया था और वैसे भी मैंने अम्मा से पूछ लिया है|

जवाब सीधा था और वो अपना इतना सा मुँह लेके चले गए| भौजी हैरान हो के मेरी ओर देखने लगीं;

भौजी: आप बहार ही सो जाओ...सब बातें करेंगे?

मैं: करने दो... अम्मा को सब पता है|

अब नेहा ओर भौजी तो अपनी-अपनी नन्द दिन में ले चुके थे ...एक मैं था जो कल रात से उल्लू की तरह जाग रहा था| तो मुझे सबसे पहले नींद आना सेभविक था| नेहा को कहानी सुनाते -सुनाते मेरी आँख लग गई| रात के दो बजे मेरी आँख अचानक खुली ...मन बेचैन होने लगा| मैंने सबसे पहले नेहा को देखा...वो मुझसे चिपकी हुई सो रही थी| फिर मैंने भौजी की तरफ देखा तो वो अपने बिस्तर पे नहीं थी| अब मेरी हवा गुल हो गई..की इतनी रात गए वो गईं कहाँ| Main दरवाजा तो मैंने खुला ही छोड़ा हुआ था ताकि कोई शक न करे!

मैंने पलट के अपने पीछे देखा तो भौजी खड़ीं थीं..ओर उनकी पीठ मेरी तरफ थी| मैं एकदम से उठ बैठा और मैंने भौजी के कंधे पे हाथ रख के उन्हें अपनी तरफ घुमाया| आगे जो देखा उसे देखते ही मेरे होश उड़ गए| उनके हाथ में चाक़ू था ओर वो अपनी कलाई की नस काटने जा रहीं थीं| मैंने तुरंत उनके हाथ से चाक़ू छें लिया और उसे घर के बहार हवा में फेंक दिया| भौजी का सर झुक गया और वो आके मेरे गले लग गईं ओर फूट-फूट के रोने लगीं;

मैं: ये आप क्या करने जा रहे थे? मेरे बारे में जरा भी ख़याल नहीं आया आपको? और मुझे तो छोडो...मुझसे तो आप वैसे भी सुबह से बात नहीं कर रहे....पर नेहा...उस बेचारी का क्या कसूर है? और ये नन्ही सी जान जो अभी इस दुनिया में आई भी नहीं है और आप उसे भी..... क्या हो गया है आपको? समझ सकता हूँ की आपके मन में कितना गुबार है ...कितना दर्द है...पर उसका ये हल तो नहीं!!

भौजी को रोता देख अब मुझसे भी कंट्रोल नहीं हुआ और मेरे आँसूं बहते हुए उनकी पीठ पे जा गिरे|

भौजी: प्लीज...आप मत रोओ!

मैं: कैसा न रोओं... सुबह से खुद को रोक रहा था की मैं आपके सामने इस तरह ...पर आप....अपने तो अभी हद्द पार कर दी! अगर आपको कुछ हो जाता तो? क्या जवाब देता मैं सब को? और नेहा पूछती तो, क्या कहता उसे की कहाँ है उसकी मम्मी?

भौजी: (रोते हुए) मुझे माफ़ कर दो..... मैं होश में नहीं थी| कुछ सूझ नहीं रहा था....मैं आपके बिना नहीं जी सकती.... (और भौजी फिर से फूट-फूट के रोने लगीं|)

मैं: नहीं..नहीं...ऐसा मत बोलो! देखो...आपने कहा था न की आपको मेरी निशानी चाहिए? (मैंने उनकी कोख पे हाथ रखा) तो फिर? उसके लिए तो जीना होगा ना आपको?

हमारी आवाज सुन के नेहा भी उठ बैठी और हमें रोता हुआ देख मेरी टांगों से लिपट गई|


 मैं दोनों को भौजी की चारपाई के पास ले आया और भौजी को लेटने को बोला| फिर मैं उनकी बगल में पाँव ऊपर कर के और पीठ दिवार से लगा के बैठ गया| इधर नेहा मेरी बायीं तरफ लेट गई और उसका सर मेरी छाती पे था| भौजी ने भी अपना सर मेरी छाती पे रख लिया पर उनका सुबकना और रोना बंद नहीं हुआ था| उनके आँसूं अब मेरी टी-शर्ट भीगा रहे थे|

नेहा: पापा...मम्मी को क्या हुआ? आप दोनों क्यों रो रहे हो?

भौजी: बेटा वो आपके पापा ....

मैं: (मैंने भौजी की बात काट दी) बेटा...हमने बुरा सपना देखा था...तो इसलिए... (बात को घुमाते हुए) अच्छा बेटा आप बताओ...पिछले कुछ दिनों से आपको बुरे सपने आते हैं? आप क्या देखते हो सपने में?

नेहा: मैं है न...सपना देखती हूँ ..की आप मुझे अकेला छोड़ के जा रहे हो? (अब मई नहीं जानता की ये बात सच थी भी की नहीं ...पर मन ने इस बात को बिना किसी विरोध के मान लिया था|)

मैं: बेटा...वो सिर्फ सपना था...और बुरे सपने कभी सच नहीं होते!

नेहा आगे कुछ नहीं बोली बस आपने बाएं हाथ को मेरी कमर के इर्द-गिर्द रख के सो गई|

मैं: अब आप बताओ.... क्यों मेरी जान लेने पे आमादा हो? जो भी है आपके मन में बोल दो...उसके बाद मैं बोलता हूँ!

भौजी: इन कुछ दिनों में मैंने...बहुत से सपने सजो लिए थे| कल्पनायें करने लगी थी....की आप और मैं ...हम हमेशा साथ रहेंगे| इसी तरह ... प्यार से.... और फिर वो नन्ही सी जान आएगी... जिसकी डिलिवरी के समय आप मेरे पास होगे...बल्कि मेरे साथ होगे... सबसे पहले आप उसे अपनी गोद में लोगे...उसका नाम भी आप ही रखोगे! उसे लाड-प्यार करोगे.... बस कल रात से मैंने इन्हीं ख़्वाबों में जी रही थी| परन्तु आज...आज मेरे सारे ख्वाब चकना-चूर हो गए! हम कभी भी एक साथ नहीं रह पाएंगे... आप मुझसे दूर चले जाओगे...बहुत दूर...इतना दूर की मुझे भूल ही जाओगे| फिर न मैं आपको याद रहूंगी और ना ही ये बच्चा! सब ख़त्म हो जायेगा! सब.....

मैं: ऐसा कुछ नहीं होगा... जब आपकी डिलिवरी होगी...मैं आपके पास हूँगा|

भौजी: ऐसा कभी नहीं हो सकता?

मैं: क्यों?

भौजी: डॉक्टर ने फरवरी की date दी है? और तब आप Board के exams की तैयारी में लगे होगे!

मैं: (एक ठंडी आह भरते हुए) आपने सही कहा...पर आप जानते हो ना, की मैं कभी हार नहीं मानता| डिलीवरी के समय मैं आपके साथ हूँगा...चाहे कुछ भी हो!

भौजी: तो अब क्या आप भाग के यहाँ आओगे?

मैं: नहीं... आप मेरे साथ आओगे!

भौजी: नहीं...मैंने आपको पहले ही कहा था की मैं आपके साथ नहीं भाग सकती और अब तो बिलकुल भी नहीं!

मैं: किसने कहा हम भाग रहे हैं?

भौजी: मतलब?..मैं समझी नहीं|

मैं: मैं पिताजी और माँ से मिन्नत कर के आपको आपने साथ ले जाऊँगा| मैं उन्हें ये कहूँगा की इस बीहड़ में आपकी देख-रेख कोई नहीं कर सकता.... और दिल्ली से अच्छा शहर कौन सा है जहाँ हर तरह की Medical सेवा बस एक फ़ोन कॉल जितना दूर है| ऊपर से हमारे घर के पास ही हॉस्पिटल है...वो भी ज्यादा नहीं बीस मिनट की दूरी पर| तो मुझे पूरा भरोसा है की कोई मना नहीं करेगा| सब मान जायेंगे|

भौजी: नहीं.... आप ऐसा कुछ भी नहीं कहेंगे?

मैं: पर क्यों?

भौजी: अम्मा तो पहले से ही सब जानती हैं.... और उनकी नजर में ये बस लगाव है...पर असल में तो ये अलग ही बंधन है| आप क्यों चाहते हो की आपके आस-पास के लोग इस रिश्ते को गन्दी नज़रों से देखें!?

मैं: पर ऐसा कुछ नहीं होगा?

भौजी: होगा...आप आगे की नहीं सोच रहे! मैं नहीं चाहती की मेरे कारन आप पर या माँ-पिताजी पर कोई भी ऊँगली उठाये| और वैसे भी .... आपके board exams भी तो हैं...आपको अब उनपर focus करना चाहिए|

मैं" मैं सब संभाल लूँगा...पर

भौजी: (मेरी बात काटते हुए) पर-वर कुछ नहीं... आपको मेरी कसम है..आप किसी से भी मेरे आपके साथ जाने की बात नहीं करोगे! Promise me?

मैं: Promise पर फिर आप मेरे बिना कैसे रहोगे? और कौन है जो आपका ध्यान रखेगा?

भौजी: (अपनी कोख पर हाथ रखते हुए) ये है ना ... और फिर नेहा भी तो है|

मैं: ठीक है...मैं अब इस मुद्दे पर आपसे कोई बहस नहीं करूँगा पर आपको भी एक वादा करना होगा?

भौजी: बोलो?

मैं: जब तक डिलिवरी नहीं हो जाती आप यहाँ नहीं रहोगे? आप आपने मायके में ही रहोगे? एक तो आपका मायका Main रोड के पास है ऊपर से यहाँ दो-दो शैतान हैं जो इस बच्चे को शारीरिक नहीं तो मानसिक रूप से कष्ट अवश्य देंगे!

भौजी: कौन-कौन?

मैं: एक तो चन्दर भैया...जो आपको ताने मार-मार के मानसिक पीड़ा देंगे| और दूसरी वो चुडेल रसिका ...मुझे उस पे तो कोई भरोसा नहीं...वो आपके साथ कभी भी कुछ भी गलत कर सकती है!

भौजी: ठीक है...मैं भी इस मुद्दे पे आपसे बहंस नहीं करुँगी और वादा करती हूँ की डिलिवरी होने तक मैं आपने मायके ही रहूँगी| और हाँ एक और वादा करती हूँ... की कल का आखरी दिन मैं ऐसे जीऊँगी की आपकी सारी यादें उसी एक दिन में पिरो के आपने दिल में बसा लूँ|

मैं: I LOVE YOU !!

भौजी: I LOVE YOU TOO जानू!!!!

इन वादों के बाद, भौजी ने मुझे कस के गले लगाया और मुस्कुराईं| ये वही मुस्कराहट थी जिसे देखने को मैं मारा जा रहा था| मैंने उनके होंठों पे Kiss किया और फिर मैं दिवार का सहारा लिए हुए ही सो गए और भौजी और नेहा मेरे अगल-बगल सो गए| दोनों के हाथ मेरी कमर के इर्द-गिर्द थे| जब सुबह आँख खुली तो अम्मा चुप-चाप आईं थीं और नेहा को उठा के ले जाने लगीं| मैंने जानबूझ के कुछ नहीं कहा और आँख बंद कर के सोता रहा|



सुबह छः बजे मुझे उठाया गया..वो भी भौजी द्वारा| उन्होंने मेरे मस्तक को चूमा और तब मेरी आँख खुली|

भौजी: Good Morning जानू!

मैं: हाय...कान तरस गए थे आपसे "जानू" सुनने को!

भौजी: अच्छा जी? चलो उठो...आज का दिन सिर्फ मेरे नाम है!

मैं: हमने तो जिंदगी आपके नाम कर दी!

मैंने लेटे-लेटे अंगड़ाई लेने को बाहें फैलाईं और भौजी का हाथ पकड़ के अपने पास खींच लिया|

मैं: Aren't you forgetting something?

भौजी: याद है...

फिर उन्होंने मेरे होठों को Kiss किया और उठ के जाने लगीं| जाते-जाते मुझसे पूछने लगीं;

भौजी: आपको खाना बनाना अच्छा लगता है ना?

मैं: हाँ...पर क्यों पूछा?

भौजी: ऐसे ही...जल्दी से उठो और बाहर आना मत|

मैं: पर क्यों?

भौजी: मैं अभी आई|

मैं उनके चेहरे पे मुस्कान देख के खुश था...और आज चाहे मुझसे वो कुछ भी करवा लें...भले ही गोबर के ओपले बनवा लें (जिससे मुझे घिन्न आती है) पर उनकी इस मुस्कान के लिए कुछ भी करूँगा! पर वैसे उन्होंने खाना बनाने के बारे में क्यों पूछा? मैं उठ के बैठा ही था की मुझे स्नानघर के पास मेरा टॉवल और टूथब्रश दिखा? मई सोचा उन्होंने ही रखा होगा तो मैं ब्रश करने लगा| ब्रश समाप्त ही हुआ था की भौजी आ गईं और उनके हाथ में पानी की बाल्टी थी| मैंने दौड़ के उनके हाथ से बाल्टी ले ली|








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