FUN-MAZA-MASTI
नई जिन्दगी--2
सरला- नही बेटा, मेरा फर्ज है ये तो, हमारा नसिब ही खराब है बेटा सरीता जैसी डायन से तुने शादी कर
ली कमीनी ने तो छोटे रवी की तक परवाह नही की, कैसे कलेजे की औरत है वो, बेचारे रवी की बुरी हालत हो रही है । और आज तो......
सुनिल- आज, आज क्या मां....
सरला- कुछ नही बेटा...
सुनिल- मां सच सच बता क्या हुआ कीसी ने कुछ कहा तुझे
सरला- बेटा वो पडोस की एक औरत घर आई थी
सुनिल- क्या कह रही है, उसे कुछ पता तो नही चला ना
सरला- बेटा पता तो नही चला पर बडी गडबड हो गई है
सुनिल- वो क्या मां
सरला- बेटा व व वो औरत मुझे रवी की मां समझ ने लगी है
सरला अपने पल्लू को मुह पे रखे रोती है । सुनिल सब सुनकर हैरानी से अपने माथे पर हाथ रखता है और माथे पर हाथ पटकने लगता है । और सुनिल के आंखे नम हो जाती
है ।
सुनिल- हे भगवान ये क्या हो गया, कैसी कीस्मत है मेरी, त त त तू चिंता मत कर मां अगर यहां हमारी यही पहचान हुई है तो ठीक है । लोग जो समझ ते है वो समझे,
हमारा असल रीश्ता तो हम जानते है । थोडा दीन सह ले मां । कुछ पैसे जुटाने दे मुझे । कुछ साल बाद हम यहां से दूर चले जाएगें । मेरा वादा है तुझ से । फीर रवी भी बडा हो
जाएगा तो कोई ऐसी परेशानी नही होगी ।
सरला- नही बेटा वो बात नही है । मै तो सह लूंगी बेटा । पर रवी की भी तो सोच, बेचारा कबतक बीना मां के रह पाएगा । तू जल्द से जल्द कोई लडकी देख के शादी कर ले ।
सुनिल- मां मेरा अब प्यार-वार से विश्वास उड चुका है । मुझे कोई शादी वादी नही करनी है ।
सरला- अरे बेटा सारी औरते सरीता की जैसी नही होती सुन मेरी बात....
सुनिल- नही मां मैने जो कहां वो मेरा आखरी जवाब है, और हां आज के बाद ईस घर मे सरीता की बात नही निकलेगी । मर चुकी है वो हम सब के लिए अब ।
सुनिल ने जेब से शराब की बोतल निकाली और मुह से लगाके गटकने लगा
सरला- शराब, ये क्या कर रहा है बेटा तू मै कहती हूं फेंक ईसे मत पी बेटा
सुनिल- पीने दे मां, यही है जो मुझे समझती है ,मेरा अतीत भुलाने मे मदत करती है । तुझे मेरी कसम आज रात पीने दे मुझे नही तो निंद नही आएगी रातभर मुझे
सरला तो बेचारी ना चाहते हुए भी चुप हो गई ,सरीता के बारे मे बोलने से सुनिल कीतना दुखी हो जाता है ये सरला ने देख लिया । वो अपने बेटे की ये हालत होते नही देख
सकती थी पर कर भी कुछ नही पा रही थी।
दो दीन बाद एक शाम पडोसी कवीता घर आई
सुनिल खटीये पे बैठे चाय पी रहा था ।
कविता- अरे सरला दीदी क्या चल रहा है
सरला रसोई से बाहर आती है ।
कविता सुनिल को खटीये पे देख कर
कविता- नमस्ते भाईसाब
सरला- अ..हा ब..बोल कविता क्या हुआ
कविता- अरे दीदी वो आज आपने सब्जी बनाई है क्या, मुझे थोडी चाहीये
सरला- हां है ना पालक की बनाई है, अभी लाती हूं
सरला ने कटोरी मे पालक की सब्जी भर के ले आई
कविता- अरे रवी बेटा खेल रहा है ओ ले ले ले, भाईसाब रवी पुरा आप पे गया है हां ।
सुनिल ने हल्की सी मुस्कुराहट दीखाई
सरला- ये लो कविता
कविता- चलती हूं दीदी बडे काम पडे है घर पे
रात को रवी सरला की गोद मे लेटा था सरला की एक चुची रवी मुंह मे लीए चुस रहा था दुध तो नही था पर
नन्हे बच्चे को कौन समझाये सरला रवी को साडी के पल्लू से ढक कर बैठी थी सामने सुनिल का
ध्यान फोन पे था पर औरत की नजर सब समझ लेती है। नायलोन की साडी के जालीदार पल्लू से सरला की
मोटी- मोटी गोरी चमकती अधनंगी चुचीं पे ना जाने क्यू सुनिल की नजरे मिनट दो मिनट बाद घूर रही थी
ईसका अंदाजा नजरे झुकाई बैठी सरला को हो चुका था।
उस रात सुनिल बडे आनंद से बुरी यादें भुलकर सरला के साथ हसी मजाक कीये सो गया ।
कुछ दीन बाद एक सुबह सरला नहा रही थी उस समय भी सुनिल की नजरे बाथरूम के हवा से थोडे हीलते हुए
परदे के अंदर झाकने की कोशीश कर रही थी । और जब सरला बाथरूम से पेटीकोट और चोली मे बाहर आई तो,
फीर एकबार वही कोशिश नाजाने ये कैसी चाहत थी की सुनिल की आंखे सरला के गोल-गोल चुत्तरो मे फसा
पेटीकोट और मोटी-मोटी चुचींयो जो सरला बाल पोछते समय हील रही थी उसका रसपान कर रही थी ।
ये सब नजरे सरला पहचान ती थी पर समझती थी । पर ना रोक सकती थी ना कुछ कर सकती थी । वो अच्छी
तरह जानती थी । उसके जवान बेटे को औरत के जीस्म की जरूरत थी पर वो कर भी क्या सकती थी । दुसरी
शादी की बात से सुनिल की सरता के बारे मे यादें ताजा हो उठती और वो दुखी हो जाता । सरला ने ठान ली वो
सुनिल की अतित की बुरी यादे मिटायेगी । और शायद वो शुरूवात कहां से करनी है वो समझ चुकी थी ।
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सरला- नही बेटा, मेरा फर्ज है ये तो, हमारा नसिब ही खराब है बेटा सरीता जैसी डायन से तुने शादी कर
ली कमीनी ने तो छोटे रवी की तक परवाह नही की, कैसे कलेजे की औरत है वो, बेचारे रवी की बुरी हालत हो रही है । और आज तो......
सुनिल- आज, आज क्या मां....
सरला- कुछ नही बेटा...
सुनिल- मां सच सच बता क्या हुआ कीसी ने कुछ कहा तुझे
सरला- बेटा वो पडोस की एक औरत घर आई थी
सुनिल- क्या कह रही है, उसे कुछ पता तो नही चला ना
सरला- बेटा पता तो नही चला पर बडी गडबड हो गई है
सुनिल- वो क्या मां
सरला- बेटा व व वो औरत मुझे रवी की मां समझ ने लगी है
सरला अपने पल्लू को मुह पे रखे रोती है । सुनिल सब सुनकर हैरानी से अपने माथे पर हाथ रखता है और माथे पर हाथ पटकने लगता है । और सुनिल के आंखे नम हो जाती
है ।
सुनिल- हे भगवान ये क्या हो गया, कैसी कीस्मत है मेरी, त त त तू चिंता मत कर मां अगर यहां हमारी यही पहचान हुई है तो ठीक है । लोग जो समझ ते है वो समझे,
हमारा असल रीश्ता तो हम जानते है । थोडा दीन सह ले मां । कुछ पैसे जुटाने दे मुझे । कुछ साल बाद हम यहां से दूर चले जाएगें । मेरा वादा है तुझ से । फीर रवी भी बडा हो
जाएगा तो कोई ऐसी परेशानी नही होगी ।
सरला- नही बेटा वो बात नही है । मै तो सह लूंगी बेटा । पर रवी की भी तो सोच, बेचारा कबतक बीना मां के रह पाएगा । तू जल्द से जल्द कोई लडकी देख के शादी कर ले ।
सुनिल- मां मेरा अब प्यार-वार से विश्वास उड चुका है । मुझे कोई शादी वादी नही करनी है ।
सरला- अरे बेटा सारी औरते सरीता की जैसी नही होती सुन मेरी बात....
सुनिल- नही मां मैने जो कहां वो मेरा आखरी जवाब है, और हां आज के बाद ईस घर मे सरीता की बात नही निकलेगी । मर चुकी है वो हम सब के लिए अब ।
सुनिल ने जेब से शराब की बोतल निकाली और मुह से लगाके गटकने लगा
सरला- शराब, ये क्या कर रहा है बेटा तू मै कहती हूं फेंक ईसे मत पी बेटा
सुनिल- पीने दे मां, यही है जो मुझे समझती है ,मेरा अतीत भुलाने मे मदत करती है । तुझे मेरी कसम आज रात पीने दे मुझे नही तो निंद नही आएगी रातभर मुझे
सरला तो बेचारी ना चाहते हुए भी चुप हो गई ,सरीता के बारे मे बोलने से सुनिल कीतना दुखी हो जाता है ये सरला ने देख लिया । वो अपने बेटे की ये हालत होते नही देख
सकती थी पर कर भी कुछ नही पा रही थी।
दो दीन बाद एक शाम पडोसी कवीता घर आई
सुनिल खटीये पे बैठे चाय पी रहा था ।
कविता- अरे सरला दीदी क्या चल रहा है
सरला रसोई से बाहर आती है ।
कविता सुनिल को खटीये पे देख कर
कविता- नमस्ते भाईसाब
सरला- अ..हा ब..बोल कविता क्या हुआ
कविता- अरे दीदी वो आज आपने सब्जी बनाई है क्या, मुझे थोडी चाहीये
सरला- हां है ना पालक की बनाई है, अभी लाती हूं
सरला ने कटोरी मे पालक की सब्जी भर के ले आई
कविता- अरे रवी बेटा खेल रहा है ओ ले ले ले, भाईसाब रवी पुरा आप पे गया है हां ।
सुनिल ने हल्की सी मुस्कुराहट दीखाई
सरला- ये लो कविता
कविता- चलती हूं दीदी बडे काम पडे है घर पे
रात को रवी सरला की गोद मे लेटा था सरला की एक चुची रवी मुंह मे लीए चुस रहा था दुध तो नही था पर
नन्हे बच्चे को कौन समझाये सरला रवी को साडी के पल्लू से ढक कर बैठी थी सामने सुनिल का
ध्यान फोन पे था पर औरत की नजर सब समझ लेती है। नायलोन की साडी के जालीदार पल्लू से सरला की
मोटी- मोटी गोरी चमकती अधनंगी चुचीं पे ना जाने क्यू सुनिल की नजरे मिनट दो मिनट बाद घूर रही थी
ईसका अंदाजा नजरे झुकाई बैठी सरला को हो चुका था।
उस रात सुनिल बडे आनंद से बुरी यादें भुलकर सरला के साथ हसी मजाक कीये सो गया ।
कुछ दीन बाद एक सुबह सरला नहा रही थी उस समय भी सुनिल की नजरे बाथरूम के हवा से थोडे हीलते हुए
परदे के अंदर झाकने की कोशीश कर रही थी । और जब सरला बाथरूम से पेटीकोट और चोली मे बाहर आई तो,
फीर एकबार वही कोशिश नाजाने ये कैसी चाहत थी की सुनिल की आंखे सरला के गोल-गोल चुत्तरो मे फसा
पेटीकोट और मोटी-मोटी चुचींयो जो सरला बाल पोछते समय हील रही थी उसका रसपान कर रही थी ।
ये सब नजरे सरला पहचान ती थी पर समझती थी । पर ना रोक सकती थी ना कुछ कर सकती थी । वो अच्छी
तरह जानती थी । उसके जवान बेटे को औरत के जीस्म की जरूरत थी पर वो कर भी क्या सकती थी । दुसरी
शादी की बात से सुनिल की सरता के बारे मे यादें ताजा हो उठती और वो दुखी हो जाता । सरला ने ठान ली वो
सुनिल की अतित की बुरी यादे मिटायेगी । और शायद वो शुरूवात कहां से करनी है वो समझ चुकी थी ।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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