Sunday, February 22, 2015

FUN-MAZA-MASTI नई जिन्दगी--4

FUN-MAZA-MASTI

नई जिन्दगी--4


 सुनिल- सुनिल बेटा क्या है आंखे खोल ना मेरी

सुनिल- रुक तो सही

सुनिल ने जेब से एक डीबीया निकाली और सरला की नरम हाथेली पे रख दी और

हाथ हटाया

सरला- हमम डीबीया क्या है इसमे

सुनिल- अरे खोलके देख तो सही, खोल ना

सरला ने बडी उत्सुकता से डीबीया खोली

बीजली सी चमक सरला की आखों मे दौड गई और चेहरे पर खुशी की लहर आ

गई ।

सरला- हाय पायल, कीतनी सुंदर है रे

सुनिल- तो, मेरी सुंदर मां के लिए सुंदर पायल अब छन-छन करते बजेगी तेरे पैरो

मे दीनभर

सरला- इसकी क्या जरूरत थी बेटा

सुनिल- नही चाहीये ला मै वापस कर देता हूं , क्या मां तू भी बापू के जाने के बाद

एक नया गहना नही पहनी है तू । मेरी भी तो कुछ जीम्मेदारी बनती है तुझे खुश

रखने की ।

सुनिल के मुह से इतनी प्यारभरी बाते सुन कर सरला की आंखे नम हो गई

सरला- कीतना प्यार करता है तू मुझे

सुनिल- अरे मां तेरे और रवी के सिवाय और कौन है मेरा ईस दुनिया मे अब,

इसके बदले मे तु भी मुझे प्यार कीया कर मेरे लिए यही काफी है ।

सरला का सुनिल के लिए प्यार बहने लगा था मर्यादा तोडने लगा था ।

सरला ने सुनिल को गले लगाया सुनिल ने भी सरला को भींच लिया उसके छाती पे

सरला की नरम चुचिंया दब ने लगी इतने दीनों बाद औरत के बदन के अहसास से

सुनिल पागल होने लगा । उसके हाथ सरला के चुत्तरों को छुने लगे सुनिल के पंजे

सरला को अपने चुत्तरों पे महसूस होने लगे सरला तुरंत हरकत मे आ गई ।

सरला तुरंत पीछे हट गई और शरमाती रसोई भाग गई ।

रात को सुनिल हीम्मत कीये सरला के पास सो गया ।

सुनिल- मां निंद नही आ रही है

सरला- अच्छा मेरा प्यारे बेटे को निंद नही आ रही है

सुनिल- मां मुझे एक बार प्यार से गले लगा ना

सरला- इतनी सी बात आ गले मिलले

सुनिल ने फीर एक बार सरला को कस के अपने आपसे सटा लिया इसबार बडी

मजबूती से उसने सरला को भींच लिया, सरला चुचिंया दब ने लगी वो उसके चुत्तर

मसलने लगा सरला कुछ विरोध नही कर पा रही थी ।

सरला- आहहहह बब...बस बेटा अब सो जा

सुनिल ने उसे छोड दीया

सुनिय- मां एक चुम्मा देना गाल पे बचपन जैसा

सरला ने हल्के अपने होंट सुनिल के गाल पर टीकाए और सुनिल सरला को बाहो

मे भरे सो गया ।

दुसरे दीन कविता रोज की तरह गप्पे मारने आ गई उसकी नजर सरला के पायल पे गीरी

कविता- हाय हाय दीदी कीतनी सुंदर पायल है कब खरीदी

सरला बडी दुविधा मे पड गई अब क्या जवाब दे कविता को सरला ने नाटक जारी

रखा

सरला- व वो.. कल वो लाए मेरे लिए

कविता- हाये दीदी क्या कह रही हो सच मे कीतना प्यार करते है वो आपको

प्यार सुनते ही सरला रात का कीस्सा याद कीये मुस्कुराई

कविता- आ आ आ बडी शरमा रही हो आप लगता है कल रात बडा प्यार कीया है

आप दोनो ने सही है ना , लगता है जल्द छोटू को नई बहन या भाई मिलने वाला

है ।
सरला की तो बोलती ही बंद हो गई चेहरे पर कोई भाव नही थे

कविता- अरे दीदी पता है वो पिछले गली वाले समिर ने उसकी मौसी से शादी करली ।


 सरला- हाय क्या कह रही है

कविता- अरे दीदी उसके पती की मौत हो गई थी ना और दोनो का प्यार था

सरला- पर कविता ये तो गलत है ना

कविता- अरे दीदी सही और गलत का जमाना कहा रहा है ।

सरला- तेरी बात सही है

कविता- दीदी आप ना बडी चुप चुप रहती हो गांव की आदत गई नही आपकी

लगता है , अरे ये शहर है यहां आपका कोई पहचान वाला तो है नही तो बिनदास

रहो और भाईसाब के साथ मौज मजे करो ।

शाम को सरला को भी कविता के बताई सलाह सही लगी वो दोनो तो सब छोड के

शहर मे नई जिन्दगी ही तो शुरू करने आये थे , यहा शहर मे कोई नही था उनके

पहचान वाला वो, दोनो आझाद पंछी की जिन्दगी गुजार सकते थे ।

दो दीन गुजर गये शाम को दरवाजे पर दस्तक हुई । सरलाने छोटे रवी को गोद से

उठाकर निचे रख दीया ।

सरला ने दरवाजा खोला और सुनिल अंदर आया सुनिल ने सरला के हथेली पर

सोने के छुमके रख दीये

सरला- ये क्या है सुनिल उस दीन पायल और आज छुमके इतना खर्चा क्यू कर

रहा है बेटा मै ठहरी विधवा मुझे ये सब की क्या जरूरत पहले इसे लौटा दे ।

तभी सुनिल के मुह से निकल पडा

सुनिल- पर यहां तो तू मेरी बी.....

सुनिल के मुह से यह बात सुनते ही सरला पथ्थर की तरह जम गई , उसे जिस

बात का डर था वही बात सुनिल के मुह से निकल गई उसे पता चल गया सुनिल

उसके बारे मे क्या सोचता है वो गुस्से मे लाल होकर छुमके खटीये पर रखे रसोई

गई ।

सुनिल उसके पीछे-पीछे गया और सरला के पीछे खडा हुआ

सरला की आंखे लाल थी । सरलाने पीछे मुडकर तक नही देखा बडे कडे शब्दों मे

सरला गुस्से मे बोल पडी ।

सरला- सुनिल तुझे जैसा लग रहा है वैसा कुछ भी नही है हमारे बीच दुनिया नही

जानती हो पर हमे सच्चाई पता है के हम एक दुसरे के रीश्ते मे क्या लगते है ।

सुनिल- मां मां मां अरे मै मेरी प्यारी मां के लिए लाया हूं मुझे पता है मुझसे

गलती हो गई बस, तेरे प्यार मे मै भुल गया था मेरे साथ जो हुआ है तुझे ही मै

अपना सबकुछ मानने लगा था माफ कर दे आगे से एसा नही होगा ।

और सुनिल वहां से रोते हुऐ निकल पडता है और घर से निकल जाता है ।

सुनिल को रोते देख सरला तुट जाती है । उसका गुस्सा पलभर मे पिघल जाता है

। अपने माथे पर हाथ लगाए सदमे मे बैठ गई जीस अतित को भुलाने सरला ने

इतने दीन मेहनत की उसकी एक गलती ने सब बीगाड दीया ।

सरला फूट-फूट के रोने लगी खुद को कोसने लगी। रोते हुए बडबडाने लगी ।

सरला- अरी करम जली क्या जरूरत थी उसे दुखाने की इतना अच्छा वो सब भुल

चुका था तुने वापस उसके जख्मो पे नमक रगड दीया । क्या बीगडता उसके मन

जैसा करने मे तू कहा नई नवेली दुल्हन है । कीसको पता चलने वाला था यहा

अंजाने शहर मे की हम दोनो क्या लगते है । नही नही अब मै उसे नही रोकूंगी

माफ करदे बेटा मुझे।







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