Sunday, February 22, 2015

FUN-MAZA-MASTI नई जिन्दगी--3

FUN-MAZA-MASTI

नई जिन्दगी--3

 दोपहर कविता घर पे गप्पे लडाने आ गई बोलते बोलते वो कह गई

कविता- दीदी बुरा ना मानो तो एक बात बोलूं

सरला- कौनसी बात

कविता- दीदी शायद आप भैया से उमर मे बडी हो है ना

सरला ने नजर झुकाई

कविता- अरे देखो आप नाराज हो गई आपकी लव मैरेज है ना

सरला ने मजबूरी मे हां मे सीर हीलाया

कविता- अरे दीदी प्यार मे उमर थोडी देखी जाती है, आप दोनो का जोडा ना बहोत सुंदर है । पर बहोत दीनों से

देख रही हूं भाईसाब उदास-उदास रहते है । कीसी गहरी सोच मे डुबे हुए लगते है । माफ कीजीएगा पर मुझे

लगता है । शायद आप उनको खुष नही रख पाती आप समझ गई ना मै कौनसी खुषी की बात कर रही हूं ।

सरला गालो ही गालों मे हस पडी

कविता की नजर सरला की पहनी हुई चोली पर थी, कवीता ने सरला की चोली के ओर देखे बोला

कविता- क्या दीदी आप भी ना ये कौन से जमाने के ब्लाउज पहनती हो पुरे ढके-ढके । भला भैया आप पे लट्टू

कैसे होंगे आज कल खुले और बडे गले के ब्लाउज पहनने का फैशन है । कल हम मेरे वाले टेलर के पास चलेंगे



सरला को तो ये सब सुन कर बडा बुरा लग रहा था, ये क्या दीन उस पे आन पडे है वो अपने बदन की नुमाईश

अपने ही बेटे को करने वाली थी । पर कविता और बस्ती के लोगों को शक ना हो इसीलीए अच्छा यही था की ईस

नाटक को आगे बढाया जाए सरला ने भी नाटक करने की सोच ली

कविता- दीदी आप भी ना, भाईसाब का नाम लेते ही नई दुल्हन की तरह शरमाती हो, ये शहर है आपका गाव

नही ये शरमाना छोडीये कुछ तो बोलो दीदी कबसे मैं ही बकबक कीये जा रही हूं ।

सरला- कविता म म मेरे पती और मै , हम दोनो तुम्हे बराबर तो लगते है ना

कविता- बराबर मतलब

सरला- वो मुझसे १० साल उमर मे कम है ना

कविता- क्या दीदी आप कहा बडी लगती हो भाईसाब से, दोनो सुंदर जोडा लगते हो बिल्कूल एक-दुसरे के लिए

बने हो आप दोनो ।

सरला- स...स सच मे

कविता- क्या दीदी आप भी कीतना डरती हो जैसे कोई पाप कर रही हो । अरे दीदी दोनो खुलके प्यार करो बाकी

दुनिया गई तेल लेने, पर हां रात मे प्यार जरा धीरे से करो हां नही तो छोटू की निंद तुट जाएगी ।

और फीर कविता जोर-जोर से हसने लगी

सरला बेचारी मां बेटे के रीश्ते की धज्जीया उडते सह रही थी पर आखिर वो मां थी बेटे के लिए कुछ भी सहने को

तैयार थी ।

सरला- कविता तेरे भाईसाब को पुराने लोगों की बडी याद सताती है और वो दुखी हो जाते है तू बता ना क्या करू

कविता- ईतनी सी बात, दीदी एसे वक्त बीवी ही पती का सहारा होती है । एक काम करो आप रोज उनका

खयाल रखा करो काम पे जाने पर उनकी हर कुछ घंटो बाद फोन करके हालचाल पुछा करा, बाकी उन्हे कैसे खुष

रखना है ये तो आपको अच्छी तरह पता होगा । मेरे पती भी उनके बापू गुजरने के बाद बडे सदमे मे रहते थे

मैने ही उन्हे जल्द उससे बाहर निकाला ।

सरला बडी गौर से कविता की सलाह सुन रही थी ।

सुनिल अब धीरे-धीरे अपने बुरे अतित से बाहर आ रहा था पर जब कभी सरीता के यादों से जुडी कोई चीज देख

लेता तो फीर दुखी हो जाता था । इसलिए सरला ने सरीता की यादों से जुडी हर चिज को घर से दुर कर दीया ।

कुछ दीन गुजर गये सरला ने एक दीन कविता की साडी और खुले गले की चोली पहन ली शाम को सुनिल थका

हारा घर लौटा सरला ने दरवाजा खोला सरला को देख कर सुनिल की आंखे फटी की फटी रह गई ।


सरला एकदम अप्सरा लग रही थी तंग चोली मे उसकी भरी हुई छाती फुल कर दोनो मादक चुचियां शिफोन की

साडी मे उभार बनाये सरला की सालों से छुपी जवानी सुनिल को दीखा रहे थे और उसके गदराये उठे हुये पेट पे

गहरी नाभी कहर ढा रही थी जब सरला पलटी तो उसके गोल मटोल मटकते गदराये चुत्तर देख के तो सुनिल

पागल हो गया सुनिल सरला को हवस से भरी निगाहों से घुरे जा रहा था उसका मुह खुला का खुला ही रह गया

लग रहा था मानो कुछ देर मे सुनिल लार टपकाने लगेगा और सरला को गोद मे खिंच लेगा ।

सुनिल- म म मां आज कोई त्योहार है क्या

सरला- नही तो बेटा पर क्यू पुछ रहा है

सुनिल- आज तुने नई साडी पहनी है ना इसलिए मुझे लगा

सरला- वैसी बात नही है बेटा, वो कविता जीद करने लगी दीदी कबतक पुराने गांव के कपडे पहनोगी ये नये

जमाने की साडी पहनो इस लिए पहन ली, बेटा मुझ पर ये जचती नही है ना

सुनिल- ननन....नही मां क्या बोल रही हो तुम बडी सुंदर लग रही हो

सरला मंद-मंद मुस्कुराई

सरला- चल कुछ भी, बडा अच्छा मजाक कर लेता है । मै ठहरी में ठहरी गांव की सीधी साधी औरत ये शहर की

चीजे मुझे क्या जचेंगी और मेरी उमर भी हो चली

सुनिल- तेरी कसम मां झुट नही बोल रहा हूं

सरला- अच्छा बाबा मान लिया बस, वैसे तेरे लिए ही पहनी थी मैने, एक बात पुछू क्या मै एक ऐसी साडी ले

लूं

सुनिल- अरे क्यू नही एक क्यू दो ले ले

सरला ने सुनिल को चाय ला कर दी और निचे झुकते समय गलती से या पता नही कैसे उसका पल्लू गीर गया

जीसे सरला ने तुरंत संभाल लिया । पर सुनिल के लिए सरला की कुछ पल के लिये ही सही नजरों के सामने

तंग चोली मे बेरहमी से कसी हुई लटकती मोटी चुचिया जो सुनिल के सामने आझाद होने के लिए मानो तडप

रही थी ऊन गोरी-गोरी टरबूज सी चुचिंयो के दर्शन ने उसके दीनभर की थकान मीटा दी पर उसे बडा अजीब

लगने लगा । सुनिल बडा खुष था सरला के साथ बडे गप्पे लडा रहा था । सरला तो सुनिल की एक मुस्कान

देखने के लिए कुछ भी कर सकती थी । कविता ने बताया हुआ उपाय सरला को कामयाब होता दीख रहा था ।

दोनो मां बेटा हकीकत से अंजान थे, जो वो दोनो कर रहे है वो क्या है उसका अंजाम क्या होगा ईसबात से बेखौफ

थे दोनो । सुनिल तो अपनी ही मां के प्यार मे मदहोश हुए जा रहा था । और ईस को बढावा दे रही सरला को तो

सुनिल को सरीता की बुरी यादों से बाहर निकालना था बस यही उसका मकसद था ।

सरला तो अब आंख मुंद के कविता ने बताई हुई बातों पे अमल करने लगी वो अब सुंदर साडी और बडे खुले

गले की ब्लाउज पहनने लगी । कभी कभी तो फेर एन लवली या लीपस्टीक और आंखो मे काजल भी भरने लगी

। हर रोज वो एकदम नई नवेली दुल्हन की तरह वो सुनिल के लिए सजने सरवने लगी ।

रोज सरला को देखने सुनिल दौडा-दौडा काम से आता था । अब घर मे उदासी नही उमंग भर गई थी । सरला

सुनिल को खुष देख कर बडा अच्छा महसूस करती । सुनिल सरला के पास आने लगा दोनो लाड प्यार मे एक

दुसरे को बाहों मे लेने लगे। पर इस प्यार का अंजाम कुछ और ही लिखा था उनके नसिब मे । ये नजदीकी सिर्फ

मां बेटे की नही रही बल्की औरत- मर्द की होने लगी हालांकी सरला तो सुनिल को एक लाडले बेटे के हीसाब से

प्यार कर रही थी ।

उस दीन सुनिल काम पे कुछ सोच ही ना पाया उसे बस सरला का प्यार जीतना था । सुनिल जरा देर से घर

पहूंचा । सरला बडी देर से दरवाजे पे टकटकी लगाए सुनिल की राह देख रही थी एसी बेचैनी उसे पहली बार हो

रही थी वो सुनिल से दूर रहना ज्यादा देर बरदाश्त नही कर पा रही थी । सुनिल ने दरवाजा खटखटाया सरला

दौडी-दौडी गई और दरवाजा खोला

सरला- बडी देर लगा दी बेटा आने मे

सुनिल कुछ ना बोला सरला रसोई की ओर पलटी सुनिल सरला के पिछे गया और उसने सरला की आंखे हाथों

से बंद कर दी ।










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