Sunday, February 22, 2015

FUN-MAZA-MASTI नई जिन्दगी--6

FUN-MAZA-MASTI

नई जिन्दगी--6

 उसकी नजरे सरला की मांसल चुत्तरो पे पडती है । जो फुले हुए बाहर की ओर

निकले थे । साडी कमर से थोडी निचे सरकी थी उस वजह से दो चुत्तरो के बीच

की गोरी-गोरी दरार सुनिल को दीखाई पडी । सुनिल साडी के पीछे से वो हल्केसे

हाथ उसके चुत्तरो पे फेरने लगता है वो बडे ही नरम मुलायम थे । उसने औरत के

ईतने बडे फैले चुत्तर देखे जरूर थे पर वो इतने मुलायम होते है ये अनुभव पहली

बार कर रहा था ।

सरीता के चुत्तर सरला के सामने कुछ भी नही थे । सुनिल अपना हाथ दो चुत्तरो

की दरार मे फेरने लगता है । फीर अपना हाथ सरला के गदराये उठे हुए पेट पे

फेरने लगता है और उसकी उंगली सरला की एक इंचगहरी नाभी मे चली जाती है

वो मजे से उंगली अंदर बाहर करने लगता है । सरला हडबडाती जाग जाती है ।

सरला- ससससुनिल बेटा यययये तू क्या कर रहा है सोया नही

सुनिल- सोया था मां पर ये बाहर की आवाजो ने निंद ही तोड दी मेरी

सरला को भी आवाजे सुनाई पडती है

सरला- उफफ ये कविता भी ना

सुनिल- कविता कौन बाजू वाली ना लगता है उसका पती बडा प्यार करता है उसे

ना मां

सरला- हुमम सोजा बेटा बडी रात हो गई है सुबह पानी भरने भी उठना है मुझे

सुनिल- हां मां

सुनिल उठ के खटीये पे जा कर सो जाता है

दुसरे दीन दोपहर कविता लडखडाती सरला के घर आती है

सरला- अरे कविता क्या हुआ तेरी चाल बडी बीघड गई है

कविता- कहा दीदी

सरला- मुझे तो बडी कहती फीरती है और कल रात जो तू जागरन कर रही थी वो

कविता- क्या बताउ दीदी कल रात वो बडे मुड मे थे ऐसी कुटाई की है मेरी ये देखो

सुज के लाल हो गई है

कविता साडी पेट तक उपर कीये लाल हुई चुत सरला को दीखाती है ।

सरला- उई मां हा रे पुरी छील गई है मलहम लगाया नही

कविता- वो लगाएंगे ना रात को

सरला- तूने तो उनकी निंद ही बीगाडदी कल रात

कविता- तो भैया ने आपको रात को प्यार कीया की नही

सरला- चल हट पगली हरबार उसी पे लगी रहती है कुछ दुसरा सुचता है की नही

कविता- उसमे बुरा क्या है लोग शादी करते ही इसलिये है और ये तो सब औरत

और मर्द रात को करते है ।

और शाम होते होते सुनिल घर आ जाता है

सरला- आ गया बबब , आ गये आप, आज जल्दी आ गये

सरला भुल जाती है सामने कविता बैठी है पर संभाल लेती है

सुनिल- वो आज जल्दी आ गया

कविता- अच्छा कीया भाईसाब आपने जल्दी आगये दीदी को भी बडी याद आ रही

थी आपकी

सुनिल- सच मे

सरला- चल छुटी कुछ भी

कविता- क्या भाईसाब आप भी दीदी को शहर आये इतने दीन हो गये आप उसे

शहर दीखाने तक नही ले गये बेचारी उब जाती है घर बैठ बैठ रवी को एक दीन

मेरे पास छोड जाओ और दीदी को शहर दीखा लाओ कोई मस्त सी पिक्चर

दीखाईये मजे कराईये दीदी को आप प्यार नही करते आप दीदी को

सुनिल- प्यार तो बहोत करता हू, मै तो तैयार हू शहर घुमाने को पर आप दीदी से

पुछो वो तैयार है अगर है तो जल्द कीसी दीन जाने का प्रोग्राम बनाता हूं ।



 कविता- दीदी भला क्यू मना करेंगी है ना दीदी

सरला और सुनिल की नजरे मिल गई और सरला ने होंट दातो से काटते शरमाये

नजरे झुका ली सुनिल उसका ईशारा समझ गया ।

कुछ देर बाद कविता गई सरीता रसोई मे खाना बना रही थी सुनिल उसके पिछे

खडा हुआ और उसके कमर पे हाथ रख दीया

सुनिल- तोहहह मेरी सुंदर मां को नया शहर देखना है, है ना

सरला हल्के मुस्कुराई

सुनिल- इतने दीन बोल देती हम कई बार जाते घुमने मेरे साथ घुमने फीरने मे

शरम आती है

सरला- ननन नही बेटा

सुनिल- तो फीर कल रवीवार है कल पक्का हां

सरला- परररर बेटा

सुनिल- पररर मतलब

सरला- बेटा वो तू और मै

सुनिल- तू और मै मतलब तेरा क्या कहना है

सरला- बेटटटा तू जवान है और मै.....

सुनिल- ओह मैडम कभी आईने मे देखा है खुदको आज भी कोई भी मर्द तुझसे

प्यार कर बैठेगा

सरला- क्यू बेचारी तेरी मां को झुटे सपने दीखा रहा है मै ऐसी गदराई अधेड औरत

और तू जवान लडका हमे ये सब नही जचता बेटा

सरला अच्छी तैयार थी सुनिल के साथ जाने को पर औरत जो ठहरी सुनिल का

मन जानने वो नखरे कर रही थी ।

सुनिल- अरे अब तो हद हो गई तुझे तो खूश होना चाहीये एक जवान लडका तूझे

इतना चाहता है और तू है की बहाने बना रही है कल तैयारी कर लेना हमे दोपहर

निकलना है हां ।

सुनिल के मुंह से उसे वो चाहता है ये बात सुन कर उसे बडा सुकुन मिला उसे

उसका बेटा कीतना चाहता है ये सोचके

सुनिल बाहर जाकर कुछ देर बाद पिक्चर की टीकटे ले आया

दुसरे दीन दोपहर को वो घर से निकल पडे कुछ देर बाद थियेटर पहूंचे शाम हो

चुकी थी ।

सरला शहर के लोगों को घुर-घुर के देख रही थी उसकी नजर दुसरी औरतों पे पडी

जो की टाईट जीन्स पेंट स्कर्ट और तरह तरह के अधनंगे कपडे पहने हुई उसके

आजूबाजू थी सरला तो उन्हे देख कर भौचक्की रह गई ।

कई अधेड उमर की औरते अपने बच्चो की उमर के लडको के साथ बाहों मे बांहे

डाली खडी थी और लडके उन औरतो को तरह तरह के इशारे कर रहे थे हस रहे

थे गप्पे मार रहे थे कई सरला एक बार गांव के थियेटर मे सुनिल के बापू के साथ

गई थी ।

पर वहां के लोग और यहां का नजारा जमिन आसमान का फरक था । सरला

लोगों को देख सुनिल से चिपकी चिपकी रह रही थी । पोपकोन समोसे ले कर

थियेटर मे दाखिल हुए पिक्चर शूरू हो रही थी इतना बडा थियेटर देख कर सरला

तो दंग रह गई । सुनिल बडा खुश था ।

सुनिल ने जानबुझ कर पिछली सीट निकाली थी वो उसे ले गया और सीट पर

उसके साथ चिपक कर बैठ गया. पिक्चर शूरू हुई “दो दीलों का मिलन” पिक्चर

रोमेंटीक थी तो कुछ मिनट बाद चुम्मा चाटी के सिन आने लगे ।

सरला ने देखा पिछे की सब सीट खाली थी आगे लोग चुम्माचाटी करने लगे थे पर

पिछे वाली सीट पे वही अधेड औरते लडके के साथ चुम्माचाटी कर रही थी ।

लडके का हाथ तो औरत चोली मे था । सरला तो देख के ही सन्न रह गई । वो

छुपती नजरों से पिक्चर देखने लगी ।










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