Wednesday, March 9, 2011

नौकर से चुदाई पार्ट---1

नौकर से चुदाई पार्ट---1


मेरा नाम सीमा गुप्ता है. मैं अभी 35 साल की हूँ. मैं देखने मे
ठीक ठाक सुंदर हू. गोरा रंग. बड़ा बदन. आकर्षक चेहरा. बड़े
बड़े तने हुए उरोज. मांसल जांघे. उभरे हुए कूल्हे. यानी कि मर्द
को प्रिय लगाने वाली हर चीज़ मेरे पास हे. लेकिन मैं विधवा हूँ.
मेरे पास मर्द ही नही है. मेरे पति का देहांत हुए सात साल हुए
हैं. मेरा एक लड़का है.उसके जन्म के समय ही मेरे पति चल बसे
थे.अब मुन्ने की उमर सात साल की है. पिछले सात साल से मैं
विधवा का जीवन गुज़ार रही हू. मेरा घर का बड़ा सा मकान है.
उसमे मेरे अलावा किरायेदार भी रहते हैं. मैं स्कूल मे टीचर
हू..ये मेरे जीवन की सच्ची कहानी है. आप से कुछ नही
छुपाउंगी. दर-असल सेक्स को लेकर मेरी हालत खराब थी. मेने पति
के गुजरने के बाद किसी मर्द से संभोग नही किया. सात साल हो गये.
दिन तो गुजर जाता है पर रात को बड़ी बैचेनी रहती है. मैं ठीक
से सो भी नही पाती हू मन भटकता रहता है. रात को अपनी
जांघों के बीच तकिया लगा कर रगड़ती हूँ. कई बार कल्पना मे
किसी मर्द को बसा कर उससे संभोग करती हूँ...और तकिया रगड़ती
हूँ. मन मे सदा यही होता रहता है कि कोई मर्द मुझे अपनी बाहों
मे ले कर पीस डाले.मुझे चूमे...मुझे सहलाए.मुझे दबाए.मेरे
साथ नाना प्रकार की क्रियाए करे. पर ऐसा कोई मोका नही है.
मेर विधवा होने की वजह से पति का प्यार मेरी किस्मत मे नही
है..यू तो मोहल्ले के बहुत से मर्द मेरे पीछे पड़े रहते है पर
मेरा मन किसी पर नही आता. मैं डरती हू. एक तो समाज से कि
दूसरों को मालूम पड़ेगा तो लोग क्या कहेंगे ? पास पड़ोस
है...रिश्तेदार है..स्कूल है..दूसरे खुद से कि अगर कही बच्चा
ठहर गया तो क्या करूँगी ? इसलिए मैं खुद ही तड़पति रहती हू.
मुझे तो शर्म भी बहुत आती है कि अब किसी से क्या कहूँ कि मेरे पास
मर्द नही है आओ मुझे चोदो...आप से मन की बात कही है. मेरे दिन
इन्ही परिस्थितियों मे निकल रहे थे..इन्ही मनोदशा के बीच एक दिन
मेरे संबंध मेरे नौकर से बन गये..हरिया, मेरा नौकर.उम्र, 30-35
की है. गाव का है. पहाड़ी ताकतवर कसरती देह फॉलदी बदन
थोड़ा काला रंग बड़ी बड़ी मूँछे यूँ रहता साफ सुथरा है. पिछले
दो साल से मेरे पास नौकर है. मैने उसे अपने ही घर मे एक कमरा
दे रखा है. इस प्रकार वो हमारे साथ ही रहता है. उसकी बीबी
गाँव मे रहती है. बच्चे है-पाँच ! साल मे एक दो बार छुट्टी
लेकर गाँव जाता है...बाकी समय हमारे साथ ही रहता है.मैं
स्कूल जाती हू अतः उसके रहने से मुझे बड़ी सहूलियत रहती है.
वह बीड़ी बहुत पीता है. एक तरह से वह हमारे घर का सदस्य ही
है..एक औरत की द्रस्टी से देखूं तो वह पूरा मर्द है और उसमे वो
सब खूबीयाँ है जो एक मर्द मे होना चाहिए...बस ज़रा काला है
और बीड़ी बहुत पीता है..यह कहानी हरिया और मेरे संबंध की
है..उस दिन. शाम का समय था. मुन्ना घर से बाहर खेलने गया
था. मैं और हरिया घर मे अकेले थे. मैं गिर पड़ी...गिरी तो ज़ोर से
चीखी...घबरा गयी. हरिया दौड़ कर आया..और मुझे गोद मे उठा
कर पलंग पर लिटाया..बीबीजी..कहा लगी.डॉक्टर को बुलाओ
?नही..नही.डॉक्टर की क्या ज़रूरत है..वैसे ही ठीक हो
जाओगी.तब.आयोडेक्सा लगा दू.


वह दौड़ कर गया और आयोडेक्स की शीशी ले आया..कहा लगी है
बताओ..बीबीजी. उसका व्यवहार देख मैने कह दिया.यहाँ..पीछे लगी
है..पीठ पर.. वह मुझे उल्टा कर के लिटा दिया. और मेरी पीठ पर
अपने हाथ लगा कर देखने लगा. सच कहूँ तो उसकी हरकतें
मुझे अच्छी लग रही थी. आज दो साल से वो मेरे साथ है कभी उसने
मेरे साथ कोई ग़लत हरकत नही की है. आज इस तरह उसका मुझे
पहले गोद मे उठाना फिर अभी उलट कर पीठ सहलाना..वो तो मेरी
चोट देखने के बहाने मेरी पीठ को सहलाने ही लग गया था. लेकिन
उसका हाथ,उसका स्पर्श मुझे अच्छा ही लग रहा था. इसलिए मैं
चुप पड़ी रही. उसने पहले तो बैठ कर मेरी साड़ी पर से पीठ को
सहलाया-फिर कमर पर मलम लगाया. मलम लगाते लगाते
बोला बीबीजी तनिक साड़ी ढीली कर लो..नीचे तक लगा देता हू.साड़ी
खराब हो जाएगी.मुझे तो दर्द हो रहा था और उसका स्पर्श अच्छा
भी लग रहा था मेने तुनकते हुए हाथ नीचे ले जा कर पेटीकोट
का नाडा खीच दिया..और साड़ी पेटीकोट ढीला कर दिया..मैं तो उल्टी
पड़ी थी हरिया ने जब काँपते हाथों से मेरे कपड़े नीचे करके
मेरे चूतर पहली बार देखे तो जनाब की सीटी निकल गयी...मुँह से
निकला.बीबीजी..आप तो बहुत गोरी हैं.आप के जैसा तो हमारे गाँव
मे एक भी नही है. अपनी तारीफ़ सुन मैं शरमा गयी. वो तो अच्छा
था कि मैं औंधी पड़ी थी..अकेले बंद कमरे मे जवान मालकिन के
साथ उस की भी हालत खराब थी.करीब छः महीने से वह अपनी
बीबी के पास नही गया था. मैरे गोरे गोरे चूतर देख कर उसकी
धड़कने बढ़ गयी,हाथ काँपने लगा. पर मर्द हो कर इतना अच्छा
मौका कैसे छोड़ देता ?.मेरे गोरे गोरे मांसल नितंबपर दवाई लगाने
के बहाने सहलाने लगा. दवा कम लगाई हाथ ज़्यादा फेरा..जब
सहलाते सहलाते थोड़ी देर हो गयी और उसने देखा कि मैं विरोध
नही कर रही हू तो आगे बढ़ गया.खुलेपन से मेरे दोनो कुल्हों पर
हाथ चलाने लगा. पहले एक..फिर दूसरा..जहाँ चॉंट नही लगी
थी वहाँ भी..फिर दोनो कुल्हों के बीच की गहरी घाटी भी..जब उसने
मैरे दोनो कुल्हों को हाथ से चोडा करके बीच की जगह देखी तो मैं
तो साँस लेना ही भूल गयी. उसने चौड़ा कर के मेरे गुदा द्वार और
पीछे की ओर से मेरी चूत तक को देख लिया था. अब आपको क्या बताउ उस
के हाथ के स्पर्श से ही मैं कामुक हो उठी थी. और मेरी चूत की
जगह गीली गीली हो चली थी. मेरी चूत पर काफ़ी बड़े बड़े बाल
थे..मेने अपनी झांतें कई महीनों से नही बनाई थी. मुझ विधवा
का था भी कौन..जिस के लिए मैं अपनी चूत को सज़ा सवार कर
रखती ? कमरे मे शाम का ढूंधालका तो था पर अभी अंधेरा नही
हुआ था. मैं एक अनोखे दौर से गुजर रही थी..मेरा नौकर सहला रहा
था और मैं पड़ी पड़ी सहलवा रही थी. मेरा नौकर मेरे गुप्ताँग को
पीछे से देख रहा था और मैं पड़ी पड़ी दिखा रही थी. यहाँ तक
तो था पर जब उसने जानबूझ कर या अंजाने में मेरे गुदा द्वार को
अपनी उंगली से टच किया तो मैं उचक पड़ी. शरीर मे जैसे करेंट
लगा हो..एक दम से उसका हाथ पकड़ के हटा दिया और कह
उठी हरिया ये..क्या..करते..हो..साथ ही हाथ झटक कर उठ बैठी. मैं
घबरा गयी थी और मुझ से ज़्यादा वो घबराया हुआ था. मैं उसका
इरादा नेक ना समझ कर पलंग से उतर पड़ी. परंतु मेरा वो उठ
कर खड़े होना गजब हो गया. क्यों कि मेरी साड़ी तो खुली हुई थी.
खड़ी हुई तो साड़ी और पेटीकोट दोनो ढलककर पाओं मे जा गिरे...

और मैं कमर के नीचे नंगी हो गयी. इस प्रकार अपने नौकर के आगे
नंगे होने मे मेरी शरम का पारावार ना था. मेरी तो साँस ही अटक
गयी. मैं घबराहट में वही ज़मीन पर बैठ गयी.. तब उसने मुझे
एक बार फिर गोद मे उठा कर पलंग पर डाल दिया. और अगले पल जो
किया उस की तो मैने कल्पना तक नही की थी-कि आज मेरे साथ ऐसा
भी होगा. उसने मुझे पलंग पर पटका और खुद मेरे उपर चढ़ता
चला गया. एक पल को मैं नीचे थी वो उपर..दूसरे पल मेरी टांगे
उठी हुई थी..तीसरे पल वो मेरी टाँगों के बीच था..चोथे पल
उसने अपनी धोती की एक ओर से अपना लंड बाहर कर लिया
था..पाँचवे पल उसने हाथ मे पकड़ कर अपना लंड मेरी चूत से
अड़ा दिया था..और...छठे पल...तो एक मोटी सी..गरम सी..कड़क
सी.चीज़ मेरे अंदर थी. और...बस.फिर क्या था.कमरे में शाम के
समय नौकर मालकिन...औरत और मर्द बन गये थे. मेरी तो साँस बंद
हो गयी थी. शरीर ऐथ गया था. धड़कने रुक गयी थी. आँखे
पथरा गयी थी. जीभ सूख गयी थी. मैं अपने होश मे नही थी कि
मेरे साथ क्या हो रहा है. जो कर रहा था वो वह कर रहा था. मैं
तो बस चुप पड़ी थी. ना मैने कोई सहयोग दिया.ना मैने कोई विरोध
किया. बस...जो उसने किया वो करवा लिया. सात साल बाद..घर के
नौकर से...पता नही क्या हुआ मैं तो कोई विरोध ही ना कर सकी.
बस.उसने घुसेड़ा...और चॉड दिया...मेरे मुँह से उफ़ भी ना निकली. मैं
पड़ी रही टाँगों को उठायेवरवो धक्के पे धक्के मारता गया...पता
नही कितनी देर.पता नही कितनी देर..उसका मोटा सा लंड मेरी चूत को
रौंदता रहा. रगड़ता रहा मैं बेहोश सी पड़ी करवाती
रही.फिर...अंत आया..वो मेरे अंदर ढेर सा पानी छोड़ दिया...मैं
अपने नौकर के वीर्य से तरबतर हो उठी.. जब वह अलग हुआ तो मैं
काँपति हुई उठी और नंगी ही बाथरूम चली गयी. मेरे मन मे यह
बोध था कि यह मेने क्या कर डाला..एक विधवा हो कर चुदवा लिया..वो
भी एक नौकर से.अपने नौकर से..हाय यह क्या हो गया.यह ग़लत
है...यह नही होना चाहिए था. अब क्या होगा ???????.मैं बाथरूम
गयी. वहाँ बैठा कर मूति. मुझे बड़ी ज़ोर की पिशाब लगी थी.
मेने झुक कर देखा..मेरी झातें उसके वीर्य से चिपचिपा रही थी.
मेने सब पानी से साफ किया. इतने मे और पिशाब आ गयी. और मूति.
फिर टावल लपेट कर बाहर निकली तो सामने हरिया खड़ा था.मुझ
से तो नज़र भी ना मिलाई गई.और मैं बगल से निकल के अपने कमरे
मे चली गयी..

(दूसरी बार ).उस शाम मैं बाथरूम से निकल कर बिस्तर पर जा
गिरी. लेटते ही मुझे खुमारी की गहरी नींद आई.करीब सात साल
बाद मैने किसी मर्द का लंड लिया था. चुदाई अंजाने में हुई
थी.बेमन से हुई थी,फिर भी चुदाई तो चुदाई थी.मैं तो ऐसी
पड़ी कि मुन्ना ने ही आ कर जगाया..रात खाने की मेज पर मैं हरिया
से आखे नही मिला पा रही थी.बड़ी मुश्किल से मैने खाना
खाया...बार बार दिल में यही ख्याल आता कि मैने यह क्या कर
डाला-अपने नौकर से चुदवा लिया..विधवा होकर..कैसा पाप कर
डाला..रात मे खाने के बाद भी हरिया से कुछ नही बोली.बस
चुपचाप मुन्ना के साथ जा कर अपने कमरे में सो गयी. सो तो
गयी...पर मेरी आखों में नींद ना थी.मैं दो भागों में बँट गयी
थी-दिल और दिमाग़. दिल आज की घटना को अच्छा कह रहा था.और
दिमाग़ बुरा. मेरा दिल कहता था मैं विधवा का जीवन जी रही
थी.अगर भगवान ने मेरी सुनकर एक लंड का इंतज़ाम कर दिया तो
क्या खराबी है.पर मेरा दिमाग़ इसे पाप मान रहा था..क्या
करूँ..क्या ना करूँ...सोचते सोचते मैं मुन्ना के साथ लेटी थी.
मुन्ना अबोध को मेरी मनोदशा का ग्यान नही था. वह आराम से सो गया
था..मैं जाग रही थी. की दरवाजे की कुण्डी बजी. कोन हो सकता
है.? घर में हरिया के अलावा कोई नही था. वही होगा. क्यों आया
है अब ? मैं चुप रही तो कुण्डी फिर बजी. तब मैं उठ कर गयी और
दरवाजा खोला. वही था. उसे देख मैं झेंप सी गयी..क्यों आए हो
यहा ?बीबीजी अंदर आ जाउ ?नही तुम जाओ यहाँ से और मेने दरवाजा
बंद कर लिया..मेरी सास तेज हो गयी. हाई राम.यह तो अंदर ही आना
चाह रहा था. क्या करता अंदर आ कर ? ऑफ.क्या फिर
से..चुदाई.?????? मा..मुन्ना है यहा..दुबारा ? ना बाबा ना..तो क्या
हो गया इस में.सब तो करते है..एक बार तो करवा लिया अब और क्या है ?
अगर दुबारा भी करवा लेगी तो क्या बिगड़ जाएगा ? भगवान ने एक
मोका दिया है तो उसका मज़ा ले.बार बार ऐसे मोके कहा मिलते है.
सात साल से तरस रही हू..मैं पड़ी रही..सोचती रही. मोका मिला
है तो रुकमत उस का फ़ायदा उठा.जवानी यूँ ही तो निकल गयी
है.बाकी भी निकल जाएगी.अच्छा भला आया था बेचारा..भगा
दिया. उसे तो कोई दूसरी मिल जाएगी.उस की तो औरत भी है.तेरा कोन
है.तुझे कॉन मिलेगा ? पाप है..पाप है..मे ही सारी जिंदगी निकल
गयी.. थोड़ी देर हो गयी तो मुझे पछतावा होने लगा कि बेकार मेएक
मज़ा लेने का चास खो दिया. तब मैं उठी और जा कर कुण्डी
खोली.दरवाजे के बाहर निकल कर देखा..हाई राम..हरिया तो वही
दीवार से सटा बैठा था.और बीड़ी पी रहा था.मुझे आया देखकर
वह बीड़ी फेककर उठ खड़ा हुआ. मेरे पास आया.मैं झिझकती सी
हाथ में साड़ी का पल्लू लपेटती हुई बोली...गये नही अब तक.. उसने
मेरा हाथ पकड़ कर अपने हाथ मे ले लिया.अपना नरम नरम नाज़ुक
सा हाथ उसके मर्दाना हाथ में जाते ही मुझपर नशा सा छा
गया..मुझे विशवास था कि आप ज़रूर आओगी. कह कर उसने मुझे
अपनी तरफ खीचा तो मैं निर्विरोध उसकी तरफ खीची चली
गयी. उसने मुझे अपनी बाहों में बाँध लिया.उसके चौड़े सीने से लग
कर मैं जवानी का अनोखा सुख पा गयी. मैं उस के सीने में अपना
चेहरा छुपा बोल पड़ी..हरिया मुझे डर लगता है...-डर कैसा
बीबीजी. उसने मेरी पीठ पर बाहों का बंधन सख़्त कर दिया..मैं
कसमसाई..एक मर्दाने बदन में बंधना बड़ा ही सुखद लग रहा
था..कोई देख लेगा ना.. तो दोस्तो आगे की कहानी अगले भाग मे
पढ़ते रहिए आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः.........


Noukar se chudaai paart---1


mera naam Seema gupta hai. mai abhi 35 saal ki hoom. mai dekhane me
theek thaak sundar hu. gora ramg. bara badan. aakarshak chehara. bade
bade tane hue uroj. maamsal jaanghe. ubhare hue koolhe. yaani ki mard
ko priy lagane waali har cheej mere paas he. lekin mai vidhava hoom.
mere paas mard hi nahi hai. mere pati ka dehaant hue saat saal hue
hem. mere ek ladaka hai.usake janm ke samay hi mere pati chal base
the.ab munne ki umar saat saal ki hai. pichale saat saal se mai
vidhava ka jeevan gujaar rahi hum. mera ghar ka bada sa makaan he.
usame mere alaawa kiraayedaar bhi rahate hem. me skool me teechar
hum..ye mere jeevan ki sachchi kahaani hai. aap se kuch nahi
chupaaugi. dara-asal seks ko lekar meri haalat kharaab thi. mene pati
ke gujarane ke baad kisi mard se sambhog nahi kiya. saat saal ho gaye.
din to gujar jaata hai par raat ko badi baicheni rahati hai. mai theek
se so bhi nahi paati hu man bhatakata rahata hai. raat ko apani
jaamghom ke beech takiya laga kar ragadati hoom. kai baar kalpana me
kisi mard ko basa kar usase sambhog karati hoom...aur takiya ragadati
hoom. man me sada yahi hota rahata hai ki koi mard mujhe apani baahom
me le kar pees daale.mujhe choome...mujhe sahalaaye.mujhe dabaaye.mere
saath naana prakaar ki kriyaaye kare. par aisa koi moka nahi hai.
maire vidhava hone ki vajah se pati ka pyaar meri kismat me nahi
hai..yu to mohalle ke bahut se mard mere peeche pade rahate hai par
mera man kisi par nahi aata. mai darati hum. ek to samaaj se ki
doosarom ko maalum padega to log kya kahemge ? paas pados
hai...rishtedaar hai..skool hai..dusare khud se ki agar kahi bachcha
thahar gaya to kya karumgi ? isaliye mai khud hi tadapati rahati hum.
mujhe to sharm bhi bahut aati hai ki ab kisi se kya kahum ki mere paas
mard nahi hai aao mujhe chodo...aap se man ki baat kahi hai. mere din
inhi paristhitiyom me nikal rahe the..inhi manodasha ke beech ek din
mere sambandh mere naukar se ban gaye..hariya, mera naukar.umra, 30-35
ki hai. gaav ka hai. pahaadi taakatawar kasarati deh pholadi badan
thoda kaala ramg badi badi mumche yum rahata saaf suthara hai. pichale
do saal se mere paas naukar hai. maine use apane hi ghar me ek kamara
de rakha hai. is prakaar wo hamaare saath hi rahata hai. usaki beebi
gaamv me rahati hai. bachche hai-paamch ! saal me ek do baar chutti
lekar gaamv jaata hai...baaki samay hamaare saath hi rahata hai.mai
skool jaati hum atah usake rahane se mujhe badi sahooliyat rahati hai.
wah beedi bahut peeta hai. ek tarah se wah hamaare ghar ka sadasya hi
hai..ek aurat ki drashti se dekhum to wah pura mard hai aur usame wo
sab khubeeyaam hai jo ek mard me hona chaahiye...bas jara kaala hai
aur beedi bahut peeta hai..yah kahaani hariya aur mere sambandh ki
hai..us din. shaam ka samay tha. munna ghar se baahar khelane gaya
tha. mai aur hariya ghar me akele the. mai gir padi...giri to jor se
cheekhi...ghabara gayi. hariya daud kar aaya..aur mujhe god me utha
kar palamg par litaaya..bibijee..kaha lagi.doctor ko bulaau
?nahi..nahi.doctor ki kya jarurat hai..wese hi theek ho
jaaugi.tab.aayodeksa laga dum.


wah daud kar gaya aur aayodeks ki sheeshi le aaya..kaha lagi hai
bataao..bibijee. usaka vyavahaar dekh mai kah di.yahaam..peeche lagi
he..pomd par.. wah mujhe ulta kar ke lita diya. aur mere pomd par
apane haath laga kar dekhane laga. sacha kahum to usaki harakatem
mujhe achchi lag rahi thi. aaj do saal se wo mere saath haikabhi usane
mere saath koi galat harakat nahi kiya hai. aaj is tarah usaka mujhe
pahale god me uthaanaphir abhi ulat kar pomd sahalaana..wo to meri
chomt dekhane ke bahaane mere pomd ko sahalaane hi lag gaya tha. lekin
usaka haath,usaka sparsha mujhe achcha hi lag raha tha. isaliye mai
chup padi rahi. wah pahale to baitha kar meri saadi par se pomd
sahalaayaa-phir kamar par malham lagaaya. malham lagaate lagaate
bolabibijee tanik saadi dheeli kar lo..neeche tak laga deta hum.saadi
kharaab ho jaayegi.mujhe to dard ho raha tha aur usaka sparsha achcha
bhi lag raha thaath mene thunakate hue haath neeche le ja kar peteekot
ka naada kheech diya..aur saadi peteekot dheela kar diya..mai to ulti
padi thihariya ne jab kaampate haathom se mere kapade neeche karake
mere pomd pahali baar dekhe to janaab ki seeti nikal gayi...mumh se
nikala.bibijee..aap to bahut gori haim.aap ke jaisa to hamaare gaamv
me ek bhi nahi hai. apani taareef sun mai sharama gayi. wo to achcha
tha ki mai aumdhi padi thi..akele bamd kamare me jawaan maalakin ke
saath us ki bhi haalat kharaab thi.kareeb chah mahine se wah apani
beebi ke paas nahi gaya tha. maire gore gore pomd dekh kar usaki
dhadakane badh gayee,haath kaampane laga. par mard ho kar itana achcha
mauka kaise chod deta ?.mere gore gore maamsal nitamb dawaai lagaane
ke bahaane sahalaane laga. dawa kam lagaaihaath jyaada phera..jab
sahalaate sahalaate thodi der ho gayi aur usane dekha ki mai virodh
nahi kar rahi hum to aage badh gaya.khulepan se mere dono kulhom par
haath chalaane laga. pahale ek..phir dusara..jahaam chomt nahi lagi
thi vahaam bhi..phir dono kulhom ke beech ki gahari ghaati bhi..jab wo
maire dono kulhom ko haath se choda karake beech ki jagah dekha to mai
to saams lena hi bhool gayi. wah choda kar ke mera guda dwaar aur
peeche ki or se meri chut tak dekh liya tha. ab aapako kya bataau us
ke haath ke sparsh se hi mai kaamuk ho uthi thi. aur meri chut ki
jagah geeli geeli ho chali thi. meri chut par kaaphi bade bade baal
the..mene apani jhaamtem kai maheenom se nahi banaai thi. mujh vidhava
ka tha bhi kaun..jis ke liye mai apani chut ko saja sawaamr kar
rakhati ? kamare me shaam ka dhumdhalaka to tha par abhi andhera nahi
hua tha. mai ek anokhe daur se gujar rahi thi..mera naukar sahala raha
tha aur mai padi padi sahalawa rahi thi. mera naukar mere guptaamg ko
peeche se dekh raha tha aur mai padi padi dikha rahi thi. yahaam tak
to theekpar jab usane jaanabujh kar ya anjaane mem mere guda dwaar ko
apani umgali se tch kiya to mai uchak padi. shareer me jaise karent
laga ho..ek dam se usaka haath pakad ke hata di aur kah
uthihaay..kya..karate..ho..saath hi haath jhatak kar utha baithi. mai
ghabara gayi thi aur mujh se jyada wo ghabaraaya hua tha. mai usaka
iraada nek na samajha kar palamg se utara padi. parantu mera wo utha
kar khade hona gajab ho gaya. kyom ki meri saadi to khuli hui thi.
khadi hui to saadi aur peteekot dono dhalakakar paavom me ja gire...

aur mai kamar ke neeche namgi ho gayi. is prakaar apane naukar ke aage
namge hone me mere sharam ka paaraawaar na tha. meri to saams hi atak
gayi. mai ghabaraahat mem vahi jamin par baitha gayi.. tab vah mujhe
ek baar phir god me utha kar palamg par daal diya. aur agale pal jo
kiya us ki to maine kalpana tak nahi ki thee-ki aaj mere saath aisa
bhi hoga. usane mujhe palamg par patakaa aur khud mere upar chadhata
chala gaya. ek pal ko mai neeche thi wo upar..doosare pal meri taamge
uthi hui thi..teesare pal wo meri taamgom ke beech tha..chothe pal
usane apani dhoti ke ek aur se apana lund baahar kar liya
tha..paamchawe pal usane haath me pakad kar apana lund meri chut se
ada diya tha..aur...chathe pal...to ek moti si..garam si..kadak
si.cheej mere andar thi. aur...bas.phir kya tha.kamare mem shaam ke
samay naukarmaalakin...aurat aur mard ban gaye the. meri to saams bamd
ho gayi thi. shareer aith gaya tha. dhadakane ruk gayi thi. aamkhe
pathara gayi thi. jeebh sookh gayi thi. mai apane hosh me nahi thi ki
mere saath kya ho raha hai. jo kar raha tha wo wah kar raha tha. mai
to bas chup padi thi. na maine koi sahayog diya.na maine koi virodh
kiya. bas...jo usane kiya wo karawa liya. saat saal baad..ghar ke
naukar se...pata nahi kya hua mai to koi virodh hi na kar saki.
bas.usane ghuseda...aur chod diya...mere mumh se uf bhi na nikali. mai
padi rahi taamgom ko uthaayeaurwo dhakke pe dhakke maarata gaya...pata
nahi kitani der.pata nahi kitani der..usaka mota sa lund meri chut ko
raumdata raha. ragadta rahaa mai behosh si padi karawaati
rahi.phir...ant aaya..wo mere andar dher sa paani chod diya...mai
apane naukar ke veerya se tarabatar ho uthi.. jab wah alag hua to mai
kaampati hui uthi aur namgi hi baatharum chali gayi. mere man me yah
bodh tha ki yah mene kya kar daala..ek vidhava ho kar chudawa li..wo
bhi ek naukar se.apane naukar se..haay yah kya ho gaya.yah galat
hai...yah nahi hona chaahiye tha. ab kya hoga ???????.mai baatharum
gayi. wahaam baitha kar mooti. mujhe badi jor ki pishaab lagi thi.
mene jhuk kar dekha..meri jhaatem usake veerya se chipachipa rahi thi.
mene sab paani se saaf kiya. itane me aur pishaab a gayi. aur mooti.
phir taawel lapet kar baahar nikali to saamane hariya khada tha.mujh
se to nazar bhi na milaayi gai.aur mai bagal se nikal ke apane kamare
me chali gayi..

(dusari baar ).us shaam mai baatharoom se nikal kar bistar par ja
giree. letate hi mujhe khumaari ki gahari Nind aayee.kareeb saat saal
baad maine kisi mard ka land liya thaa. chudaayi anjaane mem hui
thee.beman se hui thee,phir bhi chudaayi to chudaayi thee.mai to aisi
padi ki munna ne hi a kar jagaayaa..raat khaane ki mej par mai hariya
se akhe nahi mila pa rahi thee.badi mushkil se maine khaana
khaayaa...baar baar dil mem yahi khyaal aata ki memne yah kya kar
daalaa-apane naukar se chudawa li..vidhava hokar..kaisa paap kar
daalaa..raat mai khaane ke baad bhi hariya se kuch na bolee.bas
chupachaap munna ke saath ja kar apane kamare mem so gayee. so to
gayi...par meri akhom mem Nind na thi.mai do bhaagom mem bat gayi
thee-dil aur dimaag. dil aaj ki ghatana ko achcha kah raha tha.aur
dimaag buraa. mera dil kahata tha mai vidhava ka jeevan ji rahi
thee.agar bhagawaan ne meri sunakar ek land ka intajaam kar diya to
kya kharaabi hai.par mera dimaag ise paap maan raha thaa..kya
karum..kya na karum...sochate sochate mai munna ke saath leti thee.
munnaabodhko meri manodasha ka gyaan nahi thaa. wah aaraam se so gaya
tha..mai jaag rahi thee. ki darawaaje ki kundi bajee. kon ho sakata
hai.? ghar mem hariya ke alaawa koi nahi thaa. wahi hogaa. kyom aaya
hai ab ? mai chup rahi to kundi phir bajee. tab mai utha kar gayi aur
darawaaja kholaa. wahi thaa. use dekh mai jhemp si gayee..kyom aaye ho
yaha ?bibijeeandar a jaaum ?nahitum jaaoyaha se aur mene darawaaja
band kar liyaa..meri sas tej ho gayee. ma ree.yah to andar hi aana
chaah raha thaa. kya karata andar a kar ? off.kya phir
se..chudaayi.?????? ma..munna hai yaha..dubaara ? na baaba na..to kya
ho gaya is mem.sab to karate hai..ek baar to karawa li ab or kya hai ?
agar dubaara bhi karawa legi to kya bigad jaayega ? bhagawaan ne ek
moka diya hai to usaka maja le.baar baar aise moke kaha milate hai.
saat saal se taras rahi hum..mai padi rahi..sochati rahee. moka mila
hai to rukama us ka phaayada uthaa.jawaani yum hi to nikal gayi
hai.baaki bhi nikal jaayegi.achcha bhala aaya tha bechaaraa..bhaga
diyaa. use to koi dusari mil jaayegee.us ki to aurat bhi hai.tera kon
hai.tujhe kon milega ? paap he..paap he..me hi saari jindagi nikal
gayee.. thodi der ho gayi to mujhe pachataawa hone laga ki bekaar ek
maja lene ka chas kho diyaa. tab mai uthi aur ja kar kundi
kholee.darawaaje ke baahar nikal kar dekhi..o ma..hariya to wahi
deewaar se sata baitha thaa.aur beedi pi raha thaa.mujhe aaya dekhakar
wah beedi phekakar utha khada huaa. mere paas aayaa.mai jhijhakati si
haath mem saadi ka pallu lapetati hui boli...gaye nahi ab tak.. wah
mera haath pakad kar apane haath me le liyaa.apana naram naram naajuk
sa haath usake mardaana haath mem jaate hi mujhapar nasha sa cha
gayaa..mujhe vishawaasa tha ki aap jaroor aaogee. kah kar wah mujhe
apani taraf kheecha to mai nirvirodha usaki taraf khichi chali
gayee.wah mujhe apani baahom mem badh liyaa.usake chode seene se lag
kar mai jawaani ka anokha sukh pa gayee. mai us ke seene mem apana
chehara chupa bol padee..hariya mujhe dar lagata hai...-dar kaisa
beebeejee. wah meri peeth par baahom ka bandhan sakht kar diyaa..mai
kasamasaaee..ek mardaane badan mem bamdhana bada hi sukhad laga raha
thaa..koi dekh lega na..
kramashah.........

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