Wednesday, March 9, 2011

नौकर से चुदाई पार्ट---2

नौकर से चुदाई पार्ट---2
गतान्क से आगे.......
यहा घर के घर में कॉन देखने आएगा बीबीजी. उसने अपनी बाहों का
बंधन सख़्त किया..मैने शरमाते हुए उसकी छोड़ी छाती में मुँह
छुपा लिया..मुन्ना तो है ना..-अरे वो तो अभी छोटा है..वो क्या जानता
है अभी..मैं उसकी बाहों के घेरे में कसमसाई..और जो कुछ रह
गया तो.मैं विधवा क्या करूँगी ?क्या ? वह कुछ समझा नही.यही.मैं
झिझकी..कह ना पाई.रुकी.सास ली. फिर कहा..आररे राम.कही मैं पेट
से रह गयी तो... हरिया के द्वारा गर्भवती होने की बात से ही मुझे
झुरझुरी आ गयी.जिसे उसने साफ महसूस किया..मेरे जवान जिस्म को
बाहों मे जकड़ा और पीठ पर हाथ फिराता हुआ बोला..बीबीजी यदि
ऐसा हो जाए कि बच्चा ना हो तो. मैं उस की बाहों की गरमी महसूस
करती हुई बुदबूदाई.क्या ऐसा हो सकता है ?समझो कि ऐसा हो चुका
है..मैने नज़र उठाई..उसे देखा. वह मूँछो में मुस्करा दिया..अभी
पिछली बार छः महीने पहले जब मैं गाव गया था ना तो मेने
आपरेशन करवा लिया था..मैने उस की छाती में नाक रगड़ी..कैसा
आपरेशन ? यही..बच्चे बंद होने का.-हाय मुझे तो बताया ही
नही.अब आप को क्या बताता बीबीजी...पाँच बच्चे तो हो गये.जब भी
गाव जाता हम एक बच्चा हो जाता है...उस के कहने का ढंग ऐसा था
कि.मुझे हँसी आ गयी. मुझे हँसता पा उसने मुझे ऐसी ज़ोर से
भीचा कि मेरे उरोज उसके सीने से दब उठे..और फिर उसनेबड़ी आतूरता से
मेरे पिछवाड़े पर हाथ लगाया तो मैं चिहुंक कर कह
उठी..हरिया..यहा नही.. मेरा इशारा समझ हरिया मेरा हाथ पकड़
खीचता हुआ मुझे अपने कमरे में ले गया. और मैं उसके साथ
बिना ना नुकुर किए चली गयी. हरिया का कमरा...मेरे ही घर का एक
कमरा था. उस में एक खटिया बिछी थी. एक कोने मे मोरी बनी थी.
और दूसरे कोने में एक आलिया था जिसमें भगवान बिराजे थे.
कमरे में पहुँचकर तो मेरे पाव जैसे जम से गये. मैं एक ही जगह
खड़ी रह गयी. तब उसने वही मुझे अपनी बालिश्ट भुजाओ में बाँध
लिया.मैं चुपचाप उस के सीने से लग गयी..आप बहुत खूबसूरत हो
बीबीजी.वह बड़बड़ा उठा.उसके हाथ स्वतंत्रता से मेरी पीठ पर
घूमने लगे. मैं खड़ी कुछ देर तो उसकी सहलावट का आनंद लेती
रही.मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.सात साल बाद किसी मर्द का
स्पर्श मिला था. फिर मैं कुनमूना के बोली..हरिया दरवाजा लगा
दो..-अरे बीबीजी यहा कॉन आएगा...-उहू.तुम तो लगा दो.. वह जा कर
दरवाजा लगा आया. आके मेरे को पकड़ा.मैं
बिचकी..हरिया..लाइट..-बीबीजी रहने दो ना.अंधेरे में क्या मज़ा
आएगा उसने मुझे बाहों में बाँध लिया.मुझे शरम आती है ना.. उसने मेरी बात नही
सुना. बस पीछे हाथ चलाता रहा. मैं थोड़ी देर बाद फिर
कुनमुनाई..लाइट बंद करो ना. तब उसने बेमन से लाइट बंद की.
कमरे मे अंधेरा हो गया. अंधेरे बंद कमरे मे मैने अभी थोड़ी सी
चेन की सास भी नही ली थी कि उसने मुझे पकड़ कर खटिया पर पटक
दिया.और खुद मेरे साथ आ गया..मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था.
अब फिर से चुदवाने की घड़ी आ गयी थी. वह मेरे साथ गुथम गुथा
हो गया.

उस के हाथ मेरी पीठ और कुल्हों पर घूमने लगे. मैं उस से और वो
मुझसे चिपकेने लगा. मेरे स्तन बार बार उस के सीने से दबाए.
उस की भी सास तेज थी और मेरी भी. मुझे शरम भी बहुत आ रही
थी. मेरा उसके साथ यह दूसरा मोका था. आज मैने ज़्यादा एक्टिव पार्ट
नही लिया. बस चुपचाप पड़ी रही जो किया उसी ने किया और क्या किया ?
अरे भाई वही किया जो आप मर्द लोग हम औरतों के साथ करते हो.
पहले साड़ी उतारी फिर पेटीकोट का नाडा ढूँढा..खीचा..दोनो
चीज़े टागो से बाहर...मैं तो कहती ही रह गयी..अरे क्या करते
हो..-अरे क्या करते हो.. उसने तो सब खीच खांच के निकाल दिया. फिर
बारी आई ब्लाओज की.वो खुला..मैने तो उस का हाथ पकड़
लिया..नही...यह नही.. पर वो क्या सुने ?.उल्टे पकड़ा पकड़ी में उसका
हाथ कई बार मेरे मम्मों से टकराया. अभी तक उसने मेरे मम्मों को
नही पकड़ा था. ब्लाओज उतारने के चक्कर मे उसका हाथ बार बार
मेरे मम्मों से छुआ तो बड़ा ही अच्छा लगा. और फिर जब उसने मेरी
बाड़ी खोली तो मेरी दशा बहुत खराब थी. सास बहुत ज़ोर से चल
रही थी. गाल गुलाबी हो रहे थे. दिल धड़ धड़ करके बज रहा
था. शरीर का सारा रक्ता बह कर नीचे गुप्ताँग की तरफ ही बह
रहा था. उसने मेरे सारे कपड़े खोल डाले. मैं रात के अंधेरे में
नौकर की खटिया पर नंगी पड़ी थी..और फिर अंधेरे मे मुझे
सरसराहट से लगा कि वह भी कपड़े उतार रहा है. फिर दो
मर्दाने हाथों ने मेरी टांगे उठा दी.घुटनो से मोड़ दी. चौड़ा दी.
कुछ गरम सा-कड़क सामर्दाना अंग मेरे गुप्ताँग से आ टीका. और ज़ोर
लगा कर अपना रास्ता मेरे अंदर बनाने लगा. दर्द की एक तीखी
लहर सी मेरे अंदर दौड़ गयी. मैने अपने होठों को ज़ोर से भीच कर
अपनी चीख को बाहर ना निकलने दिया. शरीर ऐथ गया..मैने बिस्तर
की चादर को मुट्ठी में जाकड़ लिया. वह घुसाता गया और मैं उसे अपने
अंदर समाती गयी. शीघ्र ही वह मेरे अंदर पूरा लंड घुसा कर
धक्के लगाने लगा. मर्द था. ताकतवर था. पहाड़ी था. गाव का
था..और सबसे बड़ी बात.पिछले छः महीने से अपनी बीबी से नही
मिला था. उसे शहर की पढ़ी लिखी खूबसूरत मालकिन मिल गयी तो
मस्त हो उठा. जो इकसठ बासठ करी तो मेरे लिए तो संभालना
कठिन हो गया. बहुत ज़ोर ज़ोर से पेला कम्बख़्त ने..मेरे पास और कोई
चारा भी ना था. पड़ी रही पिलावाती रही. हरिया का लंड दूसरी
बार मेरी चूत में गया था. बहुत मोटा सा.कड़ा कड़ा..गरम
गरम..रोज मैं कल्पना करती थी कि मेरा मर्द मुझे ऐसे चोदेगा
वैसे चोदेगा. आज मैं सचमुच चुदवा रही थी.
वास्तविक..सच्ची कि चुदाई.मर्द के लंड की चुदाई..ना तो उसने
मेरे मम्मों को हाथ लगाया. ना हमारे बीच कोई चूमा चॅटी हुई.

बस एक मोटे लंड ने एक विधवा चूत को चोद डाला..और फिर जब
खुशी के पल ख़तम हुए तो वह अलग हुआ. अपना ढेर सा वीर्य उसने
मेरे अंदर छोड़ा था. पता नही क्या होगा मेरा.सोचती मैं उठ
बैठी.और नंगी ही दौड़ कर कमरे से बाहर निकल गयी. बाथरूम
तो मैने जा कर अपने कमरे मे किया. बहुत सा वीर्य मेरे जघो और
झटों पर लग गया था.सब मेने पानी से धो कर साफ किया...

(अगले दिन).सुबह जब मैं उठी तो बदन बुरी तरह टूट रहा था. बीते
कल मेने अपने नौकर हरिया के साथ सुहागरात जो मनाई थी. मैं
रोज की तरह स्कूल गयी. खाना खाया..शाम को पड़ोस की मिसेज़ वर्मा
आ गयी तो उनके साथ बैठी. सारा रूटीन चला बस जो नही चला वो
यह था कि मेने सारा दिन हरिया से नज़रें नही मिलाई. रात को
खाने के बाद जब मैं रसोई मे गयी तो वह वहीं था. मेरा हाथ
पकड़ कर बोला.बीबीजी रात को आओगी ना.. मेरे तो गाल शरम से लाल
हो उठे. हाथ छुड़ा कर चली आई. रात मुन्ना के सो जाने के बाद
भी मेरी आँखों मे नींद नही थी. बस हरिया के बारे मे ही सोचती
रही. करीब एक घंटा बीत गया.उसने इंतज़ार किया होगा. मैं नही
गयी तो वही आया. दरवाजे की कुण्डी क्या बजी मेरा दिल बज उठा.
मैने धड़कते दिल को साड़ी से कस कर दरवाजा खोला.वही
था..बीबीजी..मैं अंदर आउ ?.मैं ना मे गरदन हिलाई तो वह मेरा
हाथ पकड़ कल की तरह खीचता हुआ अपने कमरे की ओर ले चला.
मैं विधवा अपने नौकर के लंड का मज़ा लेने के लिए उसके पीछे
पीछे चल दी. उस रात हरिया के कमरे मे मेरी दो बार चुदाई हुई.
पूरी तरह सारे कपड़े खोल कर...मैं तो ना ना ही करती रह
गयी..उसने मेरी एक ना सुनी. वो भी नंगा भी नंगी. अंधेरा कर के.
नौकर की खटिया पर. वही टांगे उठा कर्कल वाले आसन से..एक बार
से तो जैसे उस का पेट ही नही भरा. एक बार निपटने के थोड़ी देर
बाद ही खड़ा करके दुबारा घुसेड दिया. बहुत सारा वीर्य मेरी चूत
मे छोड़ा. पर ना मेरे मम्मों को हाथ लगाया ना कोई चुम्मा चॅटी
किया. बस एक पहाड़ी लंड शहर की प्यासी चूत को चोदता रहा. जब
चुद ली तो कल की तरह ही उठकर चुपचाप अपने कमरे मे आ गयी
उस रात जब मैं सोई तो मैने मंथन किया..सुख कहा है. तकिया दबा
के काल्पनिक चुदाई मे या हरिया के पहाड़ी मोटे लंड से वास्तविक
चुदाई मे. विधवा हू तो क्या मुझे लंड से चुदवाने का अधिकार
नही है ? जिंदगी भर यूँ ही तड़पति रहू ? नही..मैं हरिया का
हाथ पकड़ लेती हू. नौकर है तो क्या हुआ. क्या उसके मन नही है ?
क्या वह मर्द नही है? उसमे तो ऐसा सब कुछ है जो औरत को चाहिए
क्या फ़र्क पड़ता है. फिर ? नौकर है तो क्या हुआ ? मर्द तो है. स्वाभाव
कितना अच्छा है. पिछले दो साल से मेरे साथ है कभी शिकायत
का मौका नही दिया. अरे यह तो और भी अच्छा है. घर के घर
मे.किसी को मालूम भी ना पड़ेगा. समाज ने शादी की संस्था क्यों
बनाई है? ताकि लंड चूत का मिलन घर के घर मे होता रहे. जब
लंड का मन हो वो चूत को चोद ले और जब चूत का मन आए वो लंड से
चुदवा ले. हर वक्त दोनो एक दूसरे के लिए अवेलेबल रहें. अब मान लो
मैं कोई मर्द बाहर का करती हू तो क्या होगा वो आएगा तो पूरे
मोहल्ले को खबर लग जाएगी कि सीमा के घर कोई आया है. रात भर
तो वो हरगिज़ नही रह सकेगा. उस की खुद की भी फेमिली होगी. हमेशा
एक डर सा बना रहेगा. इस से तो यह कितना अच्छा है. घर के घर मे
पूरा मर्द चाहो तो रात भर मज़ा लो..किसी को क्या पता पड़ता कि तुम
अपने घर मे क्या कर रहे हो. फिर इस की फेमिली भी गाँव मे है. यह
तो गाँव वैसे भी साल छः महीने मे जाता है. उन लोगों को भी क्या
फ़र्क पड़ता है कि हरिया यहाँ किसके साथ मज़े लूट रहा है..तो
मैं क्या करूँ ?.ठीक है- हो गया जो हो गया..भगवान की मरजी
समझ कबूल करती हू..लेकिन हरिया भी क्या इसे कबूल करेगा?.उसे
क्या चाहिए ?.मुझे मालूम है मर्द को क्या चाहिए होता है जो उसे
चाहिए वो मैं उसे दूँगी तो वह क्यों मना करेगा भला?.वह भी तो
बिना औरत के यहाँ रहता है.उस का भी तो मन करता होगा. मन तो
करता ही है तभी तो कल भी चोदा और आज फिर आ गया..यदि मेरे
जैसी सुंदर औरत इस से राज़ी राज़ी से चुदायेगि तो क्यों नही
चोदेगा भला ?.देखते है आगे क्या होता है मेरे भाग्य मे मर्द का
सुख है या नही..

अगला दिन मेरी जिंदगी का खूबसूरत दिन था. मैं फेसला ले चुकी
थी. मैं हरिया से संबंध कायम रखुगी. जवानी के मज़े लूँगी.
सुबह से मेने अपने रोज के काम मे मन लगाया..नहाते मे मेने अपनी
चूत को साबुन लगा लगा कर खूब साफ किया. बाद मे अपनी झांतदार
चूत को खूब पावडर लगाया. चूत पर हाथ लगाते हुए मुझे हरिया
का ही ध्यान आया. अब तक यह चूत हरिया के लंड से दो दिनों मे चार
बार चुद चुकी थी. अब यह चूत हरिया की चूत है..दोपहर मैं स्कूल
गयी. शाम को घर का दूसरा काम किया. खाने के बाद मैं मुन्ना को
लेकर अपने कमरे मे आ गयी. मुझे इंतज़ार था कि मुन्ना सो जाए तो
कुछ हो. मुन्ना सो गया तो सोचा मैं खुद हरिया के पास चली
जाउ.फिर मन मे आया देखु तो सही आज हरिया की क्या रिएक्शन रहती
है.वह इंटरेसटेड होगा तो अपने आप आएगा. मेरे काम सुख का आगे का
भविष्य उसके आने, ना आने पर ही निर्भर रहेगा. मैं इंतज़ार
करती रही... मेरा इंतज़ार व्यर्थ नही गया. भगवान मुझ पर
प्रसन्न था. थोड़ी देर बाद कुंडी खड़की..मेरा मन नाच उठा. मेरी
खुशी का ठिकाना नही था.मैं तो उठ कर सीधी देवी मा के
सिंहासन के पास गयी और उनको हाथ जोड़ कर नमस्कार किया कि हे मा
मेरा सब काम अच्छे से करना.मुझे किसी चीज़ की कमी नही है.घर
है,नौकरी है,बच्चा है...बस मर्द नही हैमर्द का लंड नही
है.सो अब आपने संयोग बनाया है..इसे ठीक से निभाने देना. इतनी
देर मे तो कुण्डी दुबारा खड़क गयी. मेने जा कर दरवाजा
खोला.हरिया सामने था. उसे सामने पा कर मैं ना जाने क्यों शरमा
उठी..सो गयी थी बीबी जी..उसने बड़े प्यार से पूछा..मुझसे तो मुँह
से बोल ही नही फूटा. बस ना मे गर्दन हिला दी. तब...हरिया..मेरा
नौकर..मुझे हाथ पकड़ कल की तरह ही अपने कमरे मे ले गया.
दोस्तो हरिया और सीमा की चुदाई की दास्तान अगले पार्ट मे पढ़े
आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः.........


Noukar se chudaai paart---2
gataank se aage.......
yaha ghar ke ghar mem kon dekhane aayega beebeejee.wah apani baahom ka
bamdhan sakhta kiyaa..mai sharamaate hue usaki chodi chaati mem mumh
chupa lee..munna to hai naa..-are wo to abhi chota hai..wo kya jaanata
hai abhee..mai usaki baahom ke ghere mem kasamasaayee..aur jo kuch rah
gaya to.mai vidhava kya karumgi ?kya ? wah kucha samajha nahi.yahi.mai
jhijhakee..kah na paayee.rukee.sas lee. kahee..arare raam.kahi mai pet
se rah gayi to... hariya ke dwaara garbhavati hone ki baat se hi mujhe
jhurajhuri a gayee.jise usane saaph mahasus kiya..mere jawaan jism ko
baahom me jakada aur peeth par haatha phiraata hua bolaa..bibijee yadi
aisa ho jaaye ki bachcha na hoy to. mai us ki baahom ki garami mahsoos
karati hui budabudaai.kya aisa ho sakata hai ?samajho ki aisa ho chuka
hai..mai nazar uthaai..use dekhee. wah mumcho mem muskara diyaa..abhi
pichali baar chah mahine pahale jab mai gav gaya tha na to mene
aapareshan karava liya thaa..mai us ki chaati mem naak ragadee..kaisa
aapareshan ? yahi..bachche bamd hone kaa.-haay mujhe to bataaya hi
nahi.ab aap ko kya bataata beebeejee...pach bachche to ho gaye.jab bhi
gav jaata hum ek bachcha ho jaata hai...us ke kahane ka dhmg aisa tha
ki.mujhe hmsi a gayee. mujhe hamsata pa usane mujhe aisi jor se
bheecha ki mere uroj usake seene se dab uthe..aur phir wah aaturata se
mere pichawaade par haath lagaaya to mai chihumk kar kah
uthee..hariya..yaha nahi.. mera ishaara samajh hariya mera haath pakad
kheechata hua mujhe apane kamare mem le gayaa. aur mai usake saath
bina na nukur kiye chali gayee. hariya ka kamaraa...mere hi ghar ka ek
kamara thaa. us mem ek khatiya bichi thee. ek kone me mori bani thi.
aur dusare kone mem ek aaliya tha jisamem bhagawaan biraaje the.
kamare mem pahumchakar to mere pav jaise jam se gaye. mai ek hi jagah
khadi rah gayee. tab wah wahi mujhe apani balishta bhujaao mem badha
liyaa.mai chupachaap us ke seene se lag gayee..aap bahut khubasurat ho
beebeejee.wah badabada uthaa.usake haath swatantrata se meri peeth par
ghumane lage. mai khadi kuch der to usaki sahalaawat ka aanand leti
rahee.mujhe bahut achcha lag raha thaa.saat saal baad kisi mard ka
sparsha mila thaa. phir mai kunamuna ke bolee..hariya darawaaja laga
do..-are bibijee yaha kon aayega...-uhum.tum to laga do.. wah ja kar
darawaja laga aayaa. aake mere ko pakadaa.mai
bichakee..hariya..laait..-bibijee rahane do na.andhere mem kya maja
aayega.wah mujhe baahom mem badhaa.mujhe sharam aati hai naa.. wah na
sunaa. bas peeche haath chalaata raha. mai thodi der baad phir
kunamunaaee..laait bamd karo naa. tab wah beman se laait band kiyaa.
kamare me andhera ho gayaa. andhere band kamare me mai abhi thodi si
chen ki sas bhi na li thi ki wah mujhe pakad kar khatiya par patak
diyaa.aur khud mere saath a gayaa..mera dil jorom se dhadak raha thaa.
ab phir se chudane ki ghadi a gayi thee. wah mere saath gutham gutha
ho gayaa.

us ke haath meri peeth aur kulhom par ghumane lage. mai us se aur wo
mujhase chipakane lagaa. mere stan baar baar us ke seene se dabaaye.
us ki bhi sas tej thi aur meri bhee. mujhe sharam bhi bahut a rahi
thee. mera usake saath yah dusara moka thaa. ath mai jyada ektiv paart
na lee. bas chupachaap padi rahee jo kiya usi ne kiyaa aur kya kiya ?
are bhaaiwahi kiya jo aap mard log ham auratom ke saath karate ho.
pahale saadi utaaree phir peteekot ka naada dhumdhaa..kheecha..dono
cheeje tago se baahar...mai to kahati hi rah gayee..are kya karate
ho..-are kya karate ho.. wo to sab kheech khach ke nikaal diyaa. phir
baari aayi blaauj kee.wo khula..mai to us ka haath pakad
lee..nahi...yah nahi.. par wah kya sune ?.ulte pakada pakadi mem usaka
haath kai baar mere mammom se takaraayaa. abhi tak wah mere mammom ko
nahi pakada thaa. blaauj utaarane ke chakkar me usaka haath baar baar
mere mammom se chua to bada hi achcha lagaa. aur phir jab usne meri
baadi kholi to meri dasha bahut kharaab thee. sas bahut jor se chal
rahi thee. gaal gulaabi ho rahe the. dil dhad dhad karake baj raha
thaa. shareer ka saara rakta bah kar neeche guptag ki taraph hi bah
raha thaa. usane mere saare kapade khol daale. mai raat ke andhere mem
naukar ki khatiya par namgi padi thee..aur phir andhere me mujhe
sarasaraahat se laga ki wah bhi kapade utaar raha hai. phir do
mardaane haathom ne meri tage utha dee.ghutano se mod dee. choda dee.
kuch garam saa-kadak samardaana amg mere guptag se a tikaa. aur jor
laga kar apana raasta mere andar banaane lagaa. dard ki ek teekhi
lahar si mere andar daud gayee. mai apane hothom ko jor se bheech kar
apani cheekh ko baahar na nikalane dee. shareer aith gayaa..mai bistar
ki chaadar ko mutthi mem jakad lee. wah ghusata gaya aur mai use apane
andar samaati gayee. sheeghra hi wah mere andar pura land ghusa kar
dhakke lagaane lagaa. mard thaa. taakatawar thaa. pahaadi thaa. gav ka
thaa..aur sabase badi baat.pichale chah mahine se apani beebi se nahi
mila thaa. use shahar ki padhi likhi khubasurat malakin mil gayi to
mast ho uthaa. jo iksath baasatha kari to mere liye to sambhaalana
kathin ho gayaa. bahut jor jor se pela kambakta ne..mere paasa aur koi
chaara bhi na thaa. padi rahi pelawaati rahee. hariya ka land dusari
baar meri chut mem gaya thaa. bahut mota sa.kada kada..garam
garam..roj mai kalpana karati thi ki mera mard mujhe aise chodega
waise chodegaa. aaj mai sachamuch chudawa rahi thee.
vaastavik..sachchi ki chudaayee.mard ke land ki chudaayee..na to wah
mere mammom ko haath lagaayaa. na hamaare beech koi chuma chaati huee.

bas ek mote land lund ne ek vidhawa chut ko chod daalaa..aur phir jab
khushi ke pal khatam hue to wah alag huaa. apana dher sa veerya vah
mere amdar choda thaa. pata nahi kya hoga meraa.sochati mai utha
baithee.aur namgi hi daud kar kamare se baahar nikal gayee. baatharum
to mai ja kar mene apane kamare me kee. bahut sa veerya mere jagho aur
jhatom par lag gaya thaa.sab mene paani se dho kar saaph kiyaa...

(Agale Din).subah jab mai uthi to badan buri tarah tut raha tha. beete
kal mene apane naukar hariya ke saath suhaagaraat jo manaayi thi. mai
roj ki tarah skool gayi. khaana khaaya..shaam ko pados ki misej varma
a gayi to unake saath baithi. saara ruteen chalabas jo nahi chala wo
yah tha ki mene saara din hariya se nazarem nahi milaayi. raat ko
khaane ke baad jab mai rasoyi me gayi to wah vaheem tha. mera haath
pakad kar bola.bibijee raat ko aaogi na.. mere to gaal sharam se laal
ho uthe. haath chuda kar chali aayi. raat munna ke so jaane ke baad
bhi meri aamkhom me neemd nahi thi. bas hariya ke baare me hi sochati
rahi. kareeb ek ghanta beet gaya.usane intazaar kiya hoga. mai nahi
gayi to wahi aaya. darawaaje ki kundi kya baji mera dil baj utha.
maine dhadakate dil ko saadi se kas kar darawaaja khola.wahi
tha..bibijee..mai andar aaum ?.mai na me garadan hilaayi to wah mera
haath pakad kal ki tarah kheechata hua apane kamare ki or le chala.
mai vidhava apane naukar ke land ka maja lene ke liye usake peeche
peeche chal di. us raat hariya ke kamare me meri do baar chudaai hui.
puri tarah saare kapade khol kar...mai to na na hi karati rah
gayi..wah meri ek na suna. wo bhi nmgamai bhi namgi. andhera kar ke.
naukar ki khatiya par. wahi taamge utha karkal vaale aasan se..ek baar
se to jaise us ka pet hi nahi bhara. ek baar nipatane ke thodi der
baad hi khada karake dubaara ghused diya. bahut saara veerya meri chut
me choda. par na mere mammom ko haath lagaaya na koi chumma chaati
kiya. bas ek pahaadi land shahar ki pyaasi chut ko chodata raha. jab
chud li to kal ki tarah hi uthakar chupachaap apane kamare me a gayi
us raat jab mai soi to maine manthan kiya..sukh kaha hai. takiya daba
ke kalpanik chudaayi me yaa hariya ke pahaadi mote land se vaastavik
chudaayi me. vidhava hu to kya mujhe land se chudawaane ka adhikaar
nahi hai ? jindagi bhar yum hi tadapati rahu ? nahi..mai hariya ka
haath pakad leti hu. naukar he to kya hua. kya usake man nahi hai ?
kya wah mard nahi hai? usame to aisa sab kuch hai jo aurat ko chaahiye
padata hai. phir ? naukar hai to kya hua ? mard to hai. swaabhaav
kitana achcha hai. pichale do saal se mere saath hai kabhi shikaayat
ka mauka nahi diya. are yah to aur bhi achcha hai. ghar ke ghar
me.kisi ko maalum bhi na padega. samaaj ne shaadi ki samstha kyom
banaayi hai? taakiland chut ka milan ghar ke ghar me hota rahe. jab
land ka man ho wo chut ko chod le aur jab chut ka man aaye wo land se
chuda le. har wakt dono ek dusare ke liye avelebal rahem. ab maan lo
mai koi mard baahar ka karati hu to kya hogaa wo aayega to pure
mohalle ko khabar lag jaayegi ki Seema ke ghar koi aaya hai. raat bhar
to wo haragij nahi rah sakega. us ki khud ki bhi femili hogi. hamesha
ek dar sa bana rahega. is se to yah kitana achcha hai. ghar ke ghar me
pura mard chaaho to raat bhar maja lo..kisi ko kya pata padata ki tum
apane ghar me kya kar rahe ho. phir is ki femili bhi gaamv me hai. yah
to gaamv vese bhi saal chah maheene me jaata hai. un logom ko bhi kya
phark padata hai ki hariya yahaam kisake saath maje lut raha hai..to
mai kya karum ?.theek hai- ho gaya jo ho gaya..bhagawaan ki maraji
samajh kabul karati hu..lekin hariya bhi kya ise kabul karegaa?.use
kya chaahiye ?.mujhe maalum hai mard ko kya chaahiye hota hai jo use
chaahiye wo mai use dumgi to wah kyom mana karega bhalaa?.wah bhi to
bina aurat ke yahaam rahata hai.us ka bhi to man karata hoga. man to
karata hi hai tabhi to kal bhi choda aur aaj phir a gaya..yadi mere
jaisi sundar aurat is se raaji raaji se chudaayegi to kyom nahi
chodega bhala ?.dekhate hai aage kya hota hai mere bhaagya me mard ka
sukh hai ya nahi..

agala din meri jindagi ka khubasurat din tha. mai phesala le chuki
thi. mai hariya se sambandh kaayam rakhugi. jawaani ke maje lumgi.
subah se mene apane roj ke kaam me man lagaaya..nahaate me mene apani
chut ko saabun laga laga kar khub saaf kiya. baad me apani jhaamtadaar
chut ko khub paavadar lagaaya. chut par haath lagaate hue mujhe hariya
ka hi dhyaan aaya. ab tak yah chut hariya ke lund se do dinom me chaar
baar chud chuki thi. ab yah chut hariya ki chut hai..dopahar mai skool
gayi. shaam ko ghar ka dusara kaam kiya. khaane ke baadmai munna ko
lekar apane kamare me a gayi. mujhe intazaara tha ki munna so jaaye to
kuch ho. munna so gaya to socha mai khud hariya ke paas chali
jaaum.phir man me aayadekhu to sahi aaj hariya ki kya riekshan rahati
hai.wah intarested hoga to apane aap aayega. mere kaam sukh ka aage ka
bhavishya usake aane, na aane par hi nirbhar rahega. mai intazaar
karati rahi... mera intazaar vyarth nahi gaya. bhagawaan mujh par
prasanna tha. thodi der baad kumdi khadaki..mera man naach utha. meri
khushi ka thikaana nahi tha.mai to utha kar seedhi devi ma ke
simhaasan ke paas gayi aur unako haath jod kar namaskaar ki ki he ma
mera sab kaam achche se karana.mujhe kisi cheej ki kami nahi hai.ghar
hai,naukari hai,bachcha hai...bas mard nahi haimard ka land nahi
hai.so ab aapane samyog banaaya hai..ise theek se nibhaane dena. itani
der me to kundi dubaara khadak gayi. mene ja kar darawaaja
khola.hariya saamane tha. use saamane pa kar mai na jaane kyom sharama
uthi..so gayi thi beebi ji..usane bade pyaar se pucha..mujhase to mumh
se bol hi nahi phuta. bas na me gardan hila di. tab...hariya..mera
naukar..mujhe haath pakad kal ki tarah hi apane kamare me le gaya.
kramashah.........


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