FUN-MAZA-MASTI
एक यादगार और मादक रात--2
गंगा उतरे. उन का आठ इंच लंबा गीला लंड देख माधवी शरमाई. उस ने मुस्कुराते हुए मुँह फेर लिया. परेश का लंड पकड़ कर मेने पूछा : परेश, चोदना है ना ?
बिन बोले वो मेरी जाँघो के बीच आ गया. लंड पकड़ कर धक्के मार ने लगा.
वो इतना जल्दी में था कि लंड भोस पर इधर उधर टकराया लेकिन उसे चूत का मुँह ना मिला. बाहर ही भोस पर झाड़ जाय उस से पहले मेने लंड पकड़ कर चूत पर धर दिया. एक ही धक्के से पूरा लंड चूत में उतर गया. आगे सिखाने की ज़रूरत ना रही/ धना धन, घचा घच्छ धक्के से वो मुझे चोदने लगा.
उधर गंगा माधवी लो गोद में लिए बैठे थे. माधवी ने अपना मुँह उस के सीने में छुपा दिया था. गंगा का एक हाथ स्तन सहला रहा था और दूसरा निक्केर में घुसा हुआ था. बार बार माधवी छटपटा जाती थी और गंगा का निक्केर वाला हाथ पकड़ लेती. मेरे ख़याल से गंगा उस की क्लाइटॉरिस छेड़ रहे थे. इतने में गंगा ने माधवी का हाथ पकड़ कर लंड पर रख दिया. पहले तो झटके से माधवी ने हाथ हटा लिया लेकिन जब गंगा ने फिर पकड़ाया तब मात्र उंगलियों से च्छुआ, पकड़ा नहीं. गंगा बोले : माधो, मुट्ठी में पकड़, मीठा लगेगा.
कुच्छ आनाकानी के बाद माधवी ने मुट्ठी मे लंड पकड़ लिया. गंगा के दिखाने मुताबिक वो होले होले मूठ मार ने लगी.
माधवी का चाहेरा उठा कर गंगा ने मुँह पर चुंबन किया. में देख सकती थी कि गंगा ने अपनी जीभ से माधवी के होठ चाते औट खोले. मेने परेश को ये नज़ारा दिखाया. अपनी बहन के स्तन पर गंगा का हाथ और बहन के हाथ में गंगा का लंड देख परेश की उत्तेजना बढ़ गयी. घच घच्छ, घचक घच्छ तेज धक्के से चोदने लगा. अचानक में झाड़ गयी.
गंगाधर का कम मुश्किल था लेकिन वो सब्र से काम लेते थे. माधवी अब शरमाये बिना लंड पकड़े मूठ मार रही थी. उस के मुँह से सिसकारियाँ निकल पड़ती थी और नितंब डोलने लगे थे.
इधर तेज रफ़्तार से धक्के दे कर परेश झाड़ा. थोड़ी देर तक वो मुझ पर पड़ा रहा और बाद में उतरा. उस का लंड अभी भी टाइट था. में माधवी के पास गयी. गंगा को हटा कर मेने माधवी को गोद में लिया. में पलंग की धार पर बैठी और मेने माधवी की जांघें चौड़ी पकड़ रखी. उस की गीली गीली भोस खुली हुई.
माधवी सोलह साल की थी लेकिन उस की भोस मेरी भोस जैसी बड़ी थी. उँची मोन्स पर और बड़े होठ के बाहरी हिस्से पर काले घुंघराले झाँत थे. बड़े होठ मोटे थे, बड़े संतरे की फाड़ जैसे और एक दूजे से सटे हुए. बीच की दरार चार इंच लंबी होगी. क्लाइटॉरिस एक इंच लंबी और मोटी थी. उस वक्त वो कड़ी हुई थी और बड़े होठ के अगले कोने में से बाहर निकल आई थी. गंगा फर्श पर बैठ गये. दोनो हाथ के अंगूठे से उस ने भोस के बड़े होठ चौड़े किए और भोस खोली. अंदर का कोमल गुलाबी हिस्सा नज़र अंदाज हुआ. छोटे होठ पतले थे लेकिन सूजे हुए थे. चूत का मुँह सिकुदा हुआ था और काम रस से गीला था. गंगा की उंगली जब क्लाइटॉरिस पर लगी तब माधवी कूद पड़ी. मेने पिछे से उस के स्तन थाम लिए और निपल्स मसल डाली. गंगा अब भोस चाटने लगे. भोस के होठ चौड़े पकड़े हुए उसने क्लाइटॉरिस को जीभ से रगड़ा. साथ साथ जा सके इतनी एक उंगली चूत में डाल कर अंदर बाहर करने लगे. माधवी को ऑर्गॅज़म होने में देर ना लगी. उस का सारा बदन अकड़ गया, रोएँ खड़े हो गये, आँखें मिच गई और मुँहसे और चूत से पानी निकल पड़ा. हलकी सी कंपन बदन में फैल गयी. ऑर्गॅज़म बीस सेकेंड चला. माधवी बेहोश सी हो गयी.
मेने उसे पलंग पर सुलाया. थोड़ी देर बाद वो होश में आई . वो बोली : भाभी, क्या हो गया मुझे ?
गंगाधर : बिटिया, जो हुआ इसे अँग्रेज़ी में ऑर्गॅज़म कहते हैं. मज़ा आया कि नहीं ?
माधवी : बहुत मज़ा आया, अभी भी आ रहा है. नीचे पिंकी में फट फट हो रहा है. क्या तुमने मुझे चोदा ?
गंगाधर : ना, चोदा नहीं है, तुम अभी कंवारी ही हो. अब में कुच्छ नहीं सुनना चाहता. तुम दोनो चुप चाप सो जाओ और आराम करो.
परेश : आप क्या करेंगे ?
में : हमारी बाकी रही चुदाई पूरी करेंगे.
परेश : में देखूँगा.ये मुझे सोने नहीं देगा.
परेश ने अपना लंड दिखाया जो वाकई पूरा तन गया था. माधवी लेटिरही और करवट बदल कर हमें देख ने लगी.
में फर्श पर चित लेट गयी. गंगा ने मेरी जंघें इतनी उठाई कि मेरे घुटने मेरे कानों से लग गये. घच्छ सा एक धक्के से उस ने पूरा लंड चूत में घुसेड दिया. हम दोनो काफ़ी उत्तेजित हो गये थे. घचा घच्छ, घचा घच्छ धक्के से वो चोदने लगे. चूत सिकोड कर में लंड को भींचती रही. बीस पचीस भकको के बाद गंगा उतरे और ज़्झट पट मुझे चारो हाथ पाँव के बल कर दिया, घोड़ी की तरह. वो पिछे से चढ़े. जैसे ही उस ने लंड चूत में डाला कि मुझे ऑर्गॅज़म हो गया. वो लेकिन रुके नहीं, धक्के मारते रहे. दस बारह धक्के के बाद मेरी कमर पकड़ कर उस ने लंड को चूत की गहराई में घुसेड दिया और पक्फ, पक्फ पिचकारियाँ लगा कर झाडे. मुझे दूसरा ऑर्गॅज़म हुआ. मेरी योनि उन के वीर्य से छलक गयी. में फर्श पर चपत हो गयी. थोड़ी देर तक हम पड़े रहे, बाद में जा कर सफाई कर आए.
माधवी बैठ गई थी वो बोली : भाभी, परेश ने मेरी पिंकी देख ली पर अपना लंड देखने नहीं देता.
गंगाधर : कोई बात नहीं,बेटा, मेरा देख ले. कैलाश, तू ही दिखा.
गंगा लेट गये. एक ओर में बैठी दूसरी ओर माधवी. परेश बगल में खड़ा देखने लगा.
एक हाथ में लॉडा पकड़ कर मेने कहा :ये है दंडी, ये है मत्था. यूँ तो मत्था टोपी से ढका रहता है. चूत में घुसते वक्त टोपी उपर चढ़ जाती है और नंगा मत्था चूत की दीवारों साथ घिस पाता है. ये जगह जहाँ टोपी मत्थे से चिपकी हुई है उस को फ्रेनम बोलते हैं. लड़की की क्लाइटॉरिस की तरह फ्रेनम भी बहुत सेन्सिटिव है. ये है लंड का मुँह जहाँ से पिसाब और वीर्य निकल पाता है.
लंड की टोपी उपर नीचे कर के में आगे बोली : मूठ मारते वक्त टोपी से काम लेते हैं. लंड मुँह में भी लिया जाता है. देख, ऐसे.....
मेने लंड का मत्था मुँह में लिया और चूसा. तुरंत वो अकड़ ने लगा.
माधवी : में पकडू ?
गंगाधर : ज़रूर पकडो. दिल चाहे तो मुँह में भी ले सकती हो.
आधा तना हुआ लंड माधवी ने हाथ में लिया कि वो पूरा तन गया. उस की अकड़ाई देख माधवी को हसी आ गयी. वो बोली : मेरे हाथ में गुदगुदी होती है.
मेने लंड मुँह से निकाला और कहा : मुँह में ले, मज़ा आएगा.
सर झुका कर डरते डरते माधवी ने लंड मुँह में लिया. मेने कहा : कुच्छ करना नहीं, जीभ और ताल्लू के बीच मत्था दबाए रक्ख. जब वो ठुमक लगाए तब चूसना शुरू कर देना.
माधवी स्थिर हो गयी.
परेश ये सब देख रहा था और मूठ मार रहा था. वो बोला : भाभी, में माधो की चुचियाँ पकडू ? मुझे बहुत अच्छि लगती है.
गंगाधर : हलके हाथ से पकड़ और धीरे से सहला, दाबना मत. स्तन अभी कच्चे हैं, दबाने से दर्द होगा.
माधवी गंगा का लंड मुँह में लिए आगे झुकी थी. परेश उस के पिछे खड़ा हो गया. हथेलिओं में दोनो स्तन भर के सहलाने लगा. वो बोला : भाभी, माधो के स्तन कड़े हैं और निपल्स भी छ्होटी छ्होटी है. तेरे स्तन इन से बड़े हैं और निपल्स भी बड़ी हैं.
में बगल में खड़ी थी. मेरा एक हाथ परेश का लंड पकड़े मूठ मार रहा था. दूसरा हाथ माधवी की क्लाइटॉरिस से खेल रहा था. क्लाइटॉरिस के स्पंदन से मुझे पता चला कि माधवी बहुत उत्तेजित हो गयी थी और दूसरे ऑर्गॅज़म के लिए तैयार थी अचानक मुँह से लन्ड़ निकाल कर वो खड़ी हो गयी. अपने हाथ से भोस रगड़ती हुई बोली : बड़े भैया, चोद डालो मुझे, वारना में मर जाउन्गि.
गंगा : पगली, तू अभी कम उमर की है.
माधवी : देखिए, में सोलह साल की हूँ लेकिन मेरी चूत पूरी विकसित है और लंड लेने के काबिल है. भाभी, तुम ने पहली बार चुदवाया तब तुम भी सोलह साल की ही थी ना ?
गंगा : फिर भी, तू मेरी छ्होटी बहन है
माधवी : सही, लेकिन आप चाहते हैं कि में किसी ऑर के पास जाउ और चुदवाउ ?
गंगा : बेटे, चाहे कुच्छ कहो, तेरे माई बाप क्या कहेंगे हमें ?
माधवी ने गुस्से में पाँव पतके और बोली : अच्च्छा, तो में चलती हूँ घर को. परेश, चल. घर जा के तू मुझे चोद लेना.
गंगा : अरी पगली, ज़रा सोच विचार कर आगे चल.
मुँह लटकाए वो बोली : भाभी ने परेश को चोदने दिया क्यूँ कि वो लड़का है. मेरा क्या कसूर ? मुझ से अब रहा नहीं जाता. परेश ना बोलेगा तो किसी नौकर से चुदवा लूँगी.
माधवी रोने लगी. मेने उसे शांत किया और कहा : घर जाने की ज़रूरत नहीं है इतनी रात को. तेरे भैया तुम्हे ज़रूर चोदेन्गे
इतने में फिर से दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आई. फटा फट ताश खेलते हों ऐसा महॉल बना दिया. मेने जा कर दरवाजा खोला. सामने चाची खड़ी थी. अंदर आ कर उस ने दरवाजा बंद किया और बोली : सब ठीक तो है ना ?
में : वो आ गये हैं. उन दोनो ने काफ़ी कुच्छ देख लिया है. एक मुसीबत है लेकिन.
चाची : क्या मुसीबत है ?
में : परेश से तो वो...वो...करवा लिया, समझ गयी ना ? अब माधवी भी माँग रही है.
चाची : तो परेशानी किस बात की है ? तुझे तो मालूम होगा कि गंगाधर झिल्ली तोड़ने में कैसा है.
में : उन की हुशियारी की बात ही ना करें. कौन जाने कहाँ से सीख आए है तकनीक.
चाची : बस तो में चलती हूँ. गंगाधर से कहना कि सब्र से काम ले.
चाची चली गयी. में अंदर आई तो देखा कि माधवी गंगा से लिपटी हुई लेटी थी. उस की एक जाँघ सीधी थी, दूसरी गंगा के पेट पर पड़ी थी. उस की भोस गंगा के लंड साथ सटी हुई थी. उन के मुँह फ्रेंच किस मे जुड़ गये थे. गंगा का हाथ माधवी की पीठ और नितंब सहला रहा था. कुर्सी में बैठा परेश देख रहा था और मूठ मार रहा था. अब निश्चित था कि क्या होनेवाला था. मेने इशारे से गंगा को आगे बढ़ने का संकेत दे दिया. में परेश के पास गयी. उस को उठा कर में कुर्सी में बैठ गयी और उस को गोद में ऐसे बिठाया कि हम गंगा और माधवी को देख सके. परेश का लंड मेने जंघें चौड़ी कर चूत में ले लिया.
उधर चित लेटे हुए गंगा पर माधवी सवार हो गयी थी, जैसे घोड़े पर. गंगा का लंड सीधा पेट पर पड़ा था. चौड़ी की हुई जांघों के बीच माधवी की भोस लंड के साथ सॅट गयी थी. चूत में पैठे बिना लंड भोस की दरार में फिट बैठ गया था. अपने नितंब आगे पिछे कर के माधवी अपनी भोस लंड से घिस रही थी. माधवी के हर धक्के पर उस की क्लाइटॉरिस लंड से रगड़ी जा रही थी और लंड की टोपी चढ़ उतर होती रहती थी. भोस और लंड काम रस से तर-ब-तर हो गये थे. वो गंगा के सीने पर बाहें टिका कर आगे झुकी हुई थी और आँखें बंद किए सिसकारियाँ ले रही थी. गंगा उस के स्तन सहला रहे थे और कड़ी निपल्स को मसल रहे थे.
थोड़ी देर में वो थक गयी. गंगा के सीने पर गिर पड़ी. अपनी बाहों में उसे जाकड़ कर गंगा पलटे और उपर आ गये. माधवी ने जांघें चौड़ी कर अपने पाँव गंगा की कमर से लिपटाए, बाहें गले से लिपताई. भोस की दरार में सीधा लंड रख कर गंगा धक्के देने लगे, चूत में लंड डाले बिना. माधवी की क्लाइटॉरिस अच्छि तरह रगड़ी गयी तब वो छटपटाने लगी.
गंगा बोले : माधवी बिटिया, ये आखरी घड़ी है. अभी भी समय है. ना कहे तो उतर जाउ.
माधवी बोली नहीं. गंगा को जोरों से जाकड़ लिया. वो समझ गये. गंगा अब बैठ गये. टोपी उतार कर लंड का मत्था धक दिया. एक हाथ से भोस के होठ चौड़े किए और दूसरे हाथ से लंड पकड़ कर चूत के मुँह पर रख दिया. एक हलका दबाव दिया तो मत्था सरकता हुआ चूत में घुसा और योनि पटल तक जा कर रुक गया. गंगा रुके. लंड पकड़ कर गोल गोल घुमाया, हो सके इतना अंदर बाहर किया. चूत का मुँह ज़रा खुला और लंड का मत्था आसानी से अंदर आने जाने लगा. अब लंड को चूत के मुँह में फसा कर गंगा ने लंड छ्चोड़ दिया और वो माधवी उपर लेट गये. उस ने महावी का मुँह फ्रेंच किस से सील कर दिया, दोनो हाथ से नितंब पकड़े और कमर का एक झटका ऐसा मारा कि झिल्ली तोड़ आधा लंड चूत में घुस गया. दर्द से माधवी छ्टपटाई और उस के मुँह से चीख निकल पड़ी जो गंगा ने अपने मुँह मे झेल ली. गंगा रुक गये.
गंगा को देख परेश भी धक्का लगा ने लगा. हम कुर्सी में थे इसी लिए आधा लंड ही चूत में जा सकता था. परेश को हटा कर में फर्श पर आ गयी और जांघें फैला कर उसे फिर मेरे उपर ले लिया. तेज रफ़्तार से परेश मुझे चोदने लगा.
उधर माधवी शांत हुई तब गंगा ने पुछा : कैसा है अब दर्द? माधवी ने गंगा के कान में कुच्छ कहा जो में सुन नहीं पाई. गंगा ने लेकिन अपनी कमर से उस के पाँव च्छुड़ाए और इतने उपर उठा लिए कि घुटनें कान तक जा पहुँचे. माधवी के नितंब अधर हुए. गंगा की चौड़ी जांघें बीच से माधवी की भोस और उस में फसा हुआ गंगा का लंड साफ दिखने लगे. आधा लंड अब तक बाहर था जो गंगा धीरे धीरे चूत में पेल ने लगे. थोड़ा अंदर थोड़ा बाहर ऐसे करते करते दो चार इंच ज़्यादा अंदर घुस पाया लेकिन पूरा नहीं. अब गंगा ने वो तकनीक आज़माई जो मेरे साथ सुहाग रात को आज़माई थी.
उस ने होल से लंड बाहर खींचा स..र..र..र..र कर के. अकेला मत्था जब अंदर रह गया तब वो रुके. लंड ने ठुमका लगाया तो मत्थे ने ऑर मोटा हो कर चूत का मुँह ज़्यादा चौड़ा कर रक्खा. माधवी को ज़रा दर्द हुआ और उस के मुँह से सिसकारी निकल पड़ी. इस बार गंगा रुके नहीं. स..र.र..र..र..र.र कर के उस ने लंड फिर से चूत में डाला. आखरी दो इंच तो बाकी ही रह गया, जा ना सका. बाद में गंगा ने बताया कि माधवी की चूत पूरा लंड ले सके इतनी गहरी नहीं थी. उस को ज़्यादा दर्द ना लग जाय इसीलिए सावधानी से चोदना ज़रूरी था. ये तो अच्छा हुआ कि माधवी की पहली चुदाई गंगा ने की, वरना चाची की दहशत हक़ीकत में बदल जाती.
यहाँ परेश और में झाड़ चुके थे, परेश का लंड नर्म होता चला था. गंगा हलके, धीर्रे और गहरे धक्के से माधवी को चोदने लगे. माधवी के नितंब डोल ने लगे थे. लंड चूत की पक्फ पुच्च आवाज़ के साथ माधवी की सिसकारियाँ और गंगा की आहें गूँज रही थी.
परेश : भाभी, देख, भोस के होठ कैसे लंड से चिपक गये हैं ? बड़े भैया का लंड मोटा है ना ?
में : देवर्जी, तुम्हारा भी कुच्छ कम नहीं है.
गंगा के धक्के अब अनियमित होते चले थे. स..र..र..र.र की आवाज़ के कभी कभी घच्छ से लंड घुसेड देते थे. लगता था कि गंगा झड़ने के नज़दीक आ गये थे. माधवी लेकिन इतनी तैयार नहीं थी. उस ने खुद रास्ता निकाल लिया. अपने ही हाथ से क्लाइटॉरिस रगड़ डाली और छ्टपटाती हुई झड़ी . गंगा स्थिर थे लेकिन माधवी के चूतड़ ऐसे हिलाते थे कि लंड चूत में आया जाया करता था. माधवी का ऑर्गॅज़म शांत हुआ इस के बाद तेज रफ़्तार से धक्के मार कर गंगा झड़े और उतरे. करवट बदल कर माधवी सो गई. सफाई के बाद हम सब सो गये.
दूसरे दिन जागे तब परेश ने एक ओर चुदाई मागी मूह से. गंगा ने भी अनुरोध किया. में क्या करती ? दस मिनिट की मस्त चुदाई हो गई. परेश की खुशी छुपाए नही छुपति थी . शर्म की मारी माधवी किसी से नज़र मिला नहीं पाती थी. फिर भी गंगा ने उसे बुलाया तो उस के पास चली गयी. गले में बाहें डाल गोद में बैठ गयी. गंगा ने चूम कर पुछा : कैसा है दर्द ? नींद आई बराबर ?
शरमा कर उस ने अपना मुँह छुपा दिया गंगा के सीने में. कान में कुच्छ बोली.
गंगा : ना, अभी नहीं. दो दिन तक कुच्छ नहीं. चूत का घाव ठीक हो जाय इस के बाद.
लेकिन माधवी जैसी हठीली लड़की कहाँ किसी का सुनती है ? वो गंगा का मुँह चूमती रही और लंड टटोलती रही. गंगा भी रहे जवान आदमी, क्या करे बेचारा ? उठा कर वो माधवी को अंदर ले गये और आधे घंटे तक चोदा.
उस रात के बाद वो भाई बहन अक्सर हमारे घर आते रहे और चुदाई का मज़ा लेते रहे. जब स्कूल खुले तब उन्हें शहर में जाना पड़ा. मैं और गंगाधर इंतेज़ार कर रहे हैं कि कब वाकेशन पड़े और वो दोनो घर आए. आख़िर नये नये लंड से चुदवाने में और नयी नयी चूत को चोदने में कोई अनोखा आनंद आता है. है ना ? तो दोस्तो ये कहानी यही ख़तम होती है फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ तब तक के लिए विदा आपका दोस्त राज शर्मा
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एक यादगार और मादक रात--2
गंगा उतरे. उन का आठ इंच लंबा गीला लंड देख माधवी शरमाई. उस ने मुस्कुराते हुए मुँह फेर लिया. परेश का लंड पकड़ कर मेने पूछा : परेश, चोदना है ना ?
बिन बोले वो मेरी जाँघो के बीच आ गया. लंड पकड़ कर धक्के मार ने लगा.
वो इतना जल्दी में था कि लंड भोस पर इधर उधर टकराया लेकिन उसे चूत का मुँह ना मिला. बाहर ही भोस पर झाड़ जाय उस से पहले मेने लंड पकड़ कर चूत पर धर दिया. एक ही धक्के से पूरा लंड चूत में उतर गया. आगे सिखाने की ज़रूरत ना रही/ धना धन, घचा घच्छ धक्के से वो मुझे चोदने लगा.
उधर गंगा माधवी लो गोद में लिए बैठे थे. माधवी ने अपना मुँह उस के सीने में छुपा दिया था. गंगा का एक हाथ स्तन सहला रहा था और दूसरा निक्केर में घुसा हुआ था. बार बार माधवी छटपटा जाती थी और गंगा का निक्केर वाला हाथ पकड़ लेती. मेरे ख़याल से गंगा उस की क्लाइटॉरिस छेड़ रहे थे. इतने में गंगा ने माधवी का हाथ पकड़ कर लंड पर रख दिया. पहले तो झटके से माधवी ने हाथ हटा लिया लेकिन जब गंगा ने फिर पकड़ाया तब मात्र उंगलियों से च्छुआ, पकड़ा नहीं. गंगा बोले : माधो, मुट्ठी में पकड़, मीठा लगेगा.
कुच्छ आनाकानी के बाद माधवी ने मुट्ठी मे लंड पकड़ लिया. गंगा के दिखाने मुताबिक वो होले होले मूठ मार ने लगी.
माधवी का चाहेरा उठा कर गंगा ने मुँह पर चुंबन किया. में देख सकती थी कि गंगा ने अपनी जीभ से माधवी के होठ चाते औट खोले. मेने परेश को ये नज़ारा दिखाया. अपनी बहन के स्तन पर गंगा का हाथ और बहन के हाथ में गंगा का लंड देख परेश की उत्तेजना बढ़ गयी. घच घच्छ, घचक घच्छ तेज धक्के से चोदने लगा. अचानक में झाड़ गयी.
गंगाधर का कम मुश्किल था लेकिन वो सब्र से काम लेते थे. माधवी अब शरमाये बिना लंड पकड़े मूठ मार रही थी. उस के मुँह से सिसकारियाँ निकल पड़ती थी और नितंब डोलने लगे थे.
इधर तेज रफ़्तार से धक्के दे कर परेश झाड़ा. थोड़ी देर तक वो मुझ पर पड़ा रहा और बाद में उतरा. उस का लंड अभी भी टाइट था. में माधवी के पास गयी. गंगा को हटा कर मेने माधवी को गोद में लिया. में पलंग की धार पर बैठी और मेने माधवी की जांघें चौड़ी पकड़ रखी. उस की गीली गीली भोस खुली हुई.
माधवी सोलह साल की थी लेकिन उस की भोस मेरी भोस जैसी बड़ी थी. उँची मोन्स पर और बड़े होठ के बाहरी हिस्से पर काले घुंघराले झाँत थे. बड़े होठ मोटे थे, बड़े संतरे की फाड़ जैसे और एक दूजे से सटे हुए. बीच की दरार चार इंच लंबी होगी. क्लाइटॉरिस एक इंच लंबी और मोटी थी. उस वक्त वो कड़ी हुई थी और बड़े होठ के अगले कोने में से बाहर निकल आई थी. गंगा फर्श पर बैठ गये. दोनो हाथ के अंगूठे से उस ने भोस के बड़े होठ चौड़े किए और भोस खोली. अंदर का कोमल गुलाबी हिस्सा नज़र अंदाज हुआ. छोटे होठ पतले थे लेकिन सूजे हुए थे. चूत का मुँह सिकुदा हुआ था और काम रस से गीला था. गंगा की उंगली जब क्लाइटॉरिस पर लगी तब माधवी कूद पड़ी. मेने पिछे से उस के स्तन थाम लिए और निपल्स मसल डाली. गंगा अब भोस चाटने लगे. भोस के होठ चौड़े पकड़े हुए उसने क्लाइटॉरिस को जीभ से रगड़ा. साथ साथ जा सके इतनी एक उंगली चूत में डाल कर अंदर बाहर करने लगे. माधवी को ऑर्गॅज़म होने में देर ना लगी. उस का सारा बदन अकड़ गया, रोएँ खड़े हो गये, आँखें मिच गई और मुँहसे और चूत से पानी निकल पड़ा. हलकी सी कंपन बदन में फैल गयी. ऑर्गॅज़म बीस सेकेंड चला. माधवी बेहोश सी हो गयी.
मेने उसे पलंग पर सुलाया. थोड़ी देर बाद वो होश में आई . वो बोली : भाभी, क्या हो गया मुझे ?
गंगाधर : बिटिया, जो हुआ इसे अँग्रेज़ी में ऑर्गॅज़म कहते हैं. मज़ा आया कि नहीं ?
माधवी : बहुत मज़ा आया, अभी भी आ रहा है. नीचे पिंकी में फट फट हो रहा है. क्या तुमने मुझे चोदा ?
गंगाधर : ना, चोदा नहीं है, तुम अभी कंवारी ही हो. अब में कुच्छ नहीं सुनना चाहता. तुम दोनो चुप चाप सो जाओ और आराम करो.
परेश : आप क्या करेंगे ?
में : हमारी बाकी रही चुदाई पूरी करेंगे.
परेश : में देखूँगा.ये मुझे सोने नहीं देगा.
परेश ने अपना लंड दिखाया जो वाकई पूरा तन गया था. माधवी लेटिरही और करवट बदल कर हमें देख ने लगी.
में फर्श पर चित लेट गयी. गंगा ने मेरी जंघें इतनी उठाई कि मेरे घुटने मेरे कानों से लग गये. घच्छ सा एक धक्के से उस ने पूरा लंड चूत में घुसेड दिया. हम दोनो काफ़ी उत्तेजित हो गये थे. घचा घच्छ, घचा घच्छ धक्के से वो चोदने लगे. चूत सिकोड कर में लंड को भींचती रही. बीस पचीस भकको के बाद गंगा उतरे और ज़्झट पट मुझे चारो हाथ पाँव के बल कर दिया, घोड़ी की तरह. वो पिछे से चढ़े. जैसे ही उस ने लंड चूत में डाला कि मुझे ऑर्गॅज़म हो गया. वो लेकिन रुके नहीं, धक्के मारते रहे. दस बारह धक्के के बाद मेरी कमर पकड़ कर उस ने लंड को चूत की गहराई में घुसेड दिया और पक्फ, पक्फ पिचकारियाँ लगा कर झाडे. मुझे दूसरा ऑर्गॅज़म हुआ. मेरी योनि उन के वीर्य से छलक गयी. में फर्श पर चपत हो गयी. थोड़ी देर तक हम पड़े रहे, बाद में जा कर सफाई कर आए.
माधवी बैठ गई थी वो बोली : भाभी, परेश ने मेरी पिंकी देख ली पर अपना लंड देखने नहीं देता.
गंगाधर : कोई बात नहीं,बेटा, मेरा देख ले. कैलाश, तू ही दिखा.
गंगा लेट गये. एक ओर में बैठी दूसरी ओर माधवी. परेश बगल में खड़ा देखने लगा.
एक हाथ में लॉडा पकड़ कर मेने कहा :ये है दंडी, ये है मत्था. यूँ तो मत्था टोपी से ढका रहता है. चूत में घुसते वक्त टोपी उपर चढ़ जाती है और नंगा मत्था चूत की दीवारों साथ घिस पाता है. ये जगह जहाँ टोपी मत्थे से चिपकी हुई है उस को फ्रेनम बोलते हैं. लड़की की क्लाइटॉरिस की तरह फ्रेनम भी बहुत सेन्सिटिव है. ये है लंड का मुँह जहाँ से पिसाब और वीर्य निकल पाता है.
लंड की टोपी उपर नीचे कर के में आगे बोली : मूठ मारते वक्त टोपी से काम लेते हैं. लंड मुँह में भी लिया जाता है. देख, ऐसे.....
मेने लंड का मत्था मुँह में लिया और चूसा. तुरंत वो अकड़ ने लगा.
माधवी : में पकडू ?
गंगाधर : ज़रूर पकडो. दिल चाहे तो मुँह में भी ले सकती हो.
आधा तना हुआ लंड माधवी ने हाथ में लिया कि वो पूरा तन गया. उस की अकड़ाई देख माधवी को हसी आ गयी. वो बोली : मेरे हाथ में गुदगुदी होती है.
मेने लंड मुँह से निकाला और कहा : मुँह में ले, मज़ा आएगा.
सर झुका कर डरते डरते माधवी ने लंड मुँह में लिया. मेने कहा : कुच्छ करना नहीं, जीभ और ताल्लू के बीच मत्था दबाए रक्ख. जब वो ठुमक लगाए तब चूसना शुरू कर देना.
माधवी स्थिर हो गयी.
परेश ये सब देख रहा था और मूठ मार रहा था. वो बोला : भाभी, में माधो की चुचियाँ पकडू ? मुझे बहुत अच्छि लगती है.
गंगाधर : हलके हाथ से पकड़ और धीरे से सहला, दाबना मत. स्तन अभी कच्चे हैं, दबाने से दर्द होगा.
माधवी गंगा का लंड मुँह में लिए आगे झुकी थी. परेश उस के पिछे खड़ा हो गया. हथेलिओं में दोनो स्तन भर के सहलाने लगा. वो बोला : भाभी, माधो के स्तन कड़े हैं और निपल्स भी छ्होटी छ्होटी है. तेरे स्तन इन से बड़े हैं और निपल्स भी बड़ी हैं.
में बगल में खड़ी थी. मेरा एक हाथ परेश का लंड पकड़े मूठ मार रहा था. दूसरा हाथ माधवी की क्लाइटॉरिस से खेल रहा था. क्लाइटॉरिस के स्पंदन से मुझे पता चला कि माधवी बहुत उत्तेजित हो गयी थी और दूसरे ऑर्गॅज़म के लिए तैयार थी अचानक मुँह से लन्ड़ निकाल कर वो खड़ी हो गयी. अपने हाथ से भोस रगड़ती हुई बोली : बड़े भैया, चोद डालो मुझे, वारना में मर जाउन्गि.
गंगा : पगली, तू अभी कम उमर की है.
माधवी : देखिए, में सोलह साल की हूँ लेकिन मेरी चूत पूरी विकसित है और लंड लेने के काबिल है. भाभी, तुम ने पहली बार चुदवाया तब तुम भी सोलह साल की ही थी ना ?
गंगा : फिर भी, तू मेरी छ्होटी बहन है
माधवी : सही, लेकिन आप चाहते हैं कि में किसी ऑर के पास जाउ और चुदवाउ ?
गंगा : बेटे, चाहे कुच्छ कहो, तेरे माई बाप क्या कहेंगे हमें ?
माधवी ने गुस्से में पाँव पतके और बोली : अच्च्छा, तो में चलती हूँ घर को. परेश, चल. घर जा के तू मुझे चोद लेना.
गंगा : अरी पगली, ज़रा सोच विचार कर आगे चल.
मुँह लटकाए वो बोली : भाभी ने परेश को चोदने दिया क्यूँ कि वो लड़का है. मेरा क्या कसूर ? मुझ से अब रहा नहीं जाता. परेश ना बोलेगा तो किसी नौकर से चुदवा लूँगी.
माधवी रोने लगी. मेने उसे शांत किया और कहा : घर जाने की ज़रूरत नहीं है इतनी रात को. तेरे भैया तुम्हे ज़रूर चोदेन्गे
इतने में फिर से दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आई. फटा फट ताश खेलते हों ऐसा महॉल बना दिया. मेने जा कर दरवाजा खोला. सामने चाची खड़ी थी. अंदर आ कर उस ने दरवाजा बंद किया और बोली : सब ठीक तो है ना ?
में : वो आ गये हैं. उन दोनो ने काफ़ी कुच्छ देख लिया है. एक मुसीबत है लेकिन.
चाची : क्या मुसीबत है ?
में : परेश से तो वो...वो...करवा लिया, समझ गयी ना ? अब माधवी भी माँग रही है.
चाची : तो परेशानी किस बात की है ? तुझे तो मालूम होगा कि गंगाधर झिल्ली तोड़ने में कैसा है.
में : उन की हुशियारी की बात ही ना करें. कौन जाने कहाँ से सीख आए है तकनीक.
चाची : बस तो में चलती हूँ. गंगाधर से कहना कि सब्र से काम ले.
चाची चली गयी. में अंदर आई तो देखा कि माधवी गंगा से लिपटी हुई लेटी थी. उस की एक जाँघ सीधी थी, दूसरी गंगा के पेट पर पड़ी थी. उस की भोस गंगा के लंड साथ सटी हुई थी. उन के मुँह फ्रेंच किस मे जुड़ गये थे. गंगा का हाथ माधवी की पीठ और नितंब सहला रहा था. कुर्सी में बैठा परेश देख रहा था और मूठ मार रहा था. अब निश्चित था कि क्या होनेवाला था. मेने इशारे से गंगा को आगे बढ़ने का संकेत दे दिया. में परेश के पास गयी. उस को उठा कर में कुर्सी में बैठ गयी और उस को गोद में ऐसे बिठाया कि हम गंगा और माधवी को देख सके. परेश का लंड मेने जंघें चौड़ी कर चूत में ले लिया.
उधर चित लेटे हुए गंगा पर माधवी सवार हो गयी थी, जैसे घोड़े पर. गंगा का लंड सीधा पेट पर पड़ा था. चौड़ी की हुई जांघों के बीच माधवी की भोस लंड के साथ सॅट गयी थी. चूत में पैठे बिना लंड भोस की दरार में फिट बैठ गया था. अपने नितंब आगे पिछे कर के माधवी अपनी भोस लंड से घिस रही थी. माधवी के हर धक्के पर उस की क्लाइटॉरिस लंड से रगड़ी जा रही थी और लंड की टोपी चढ़ उतर होती रहती थी. भोस और लंड काम रस से तर-ब-तर हो गये थे. वो गंगा के सीने पर बाहें टिका कर आगे झुकी हुई थी और आँखें बंद किए सिसकारियाँ ले रही थी. गंगा उस के स्तन सहला रहे थे और कड़ी निपल्स को मसल रहे थे.
थोड़ी देर में वो थक गयी. गंगा के सीने पर गिर पड़ी. अपनी बाहों में उसे जाकड़ कर गंगा पलटे और उपर आ गये. माधवी ने जांघें चौड़ी कर अपने पाँव गंगा की कमर से लिपटाए, बाहें गले से लिपताई. भोस की दरार में सीधा लंड रख कर गंगा धक्के देने लगे, चूत में लंड डाले बिना. माधवी की क्लाइटॉरिस अच्छि तरह रगड़ी गयी तब वो छटपटाने लगी.
गंगा बोले : माधवी बिटिया, ये आखरी घड़ी है. अभी भी समय है. ना कहे तो उतर जाउ.
माधवी बोली नहीं. गंगा को जोरों से जाकड़ लिया. वो समझ गये. गंगा अब बैठ गये. टोपी उतार कर लंड का मत्था धक दिया. एक हाथ से भोस के होठ चौड़े किए और दूसरे हाथ से लंड पकड़ कर चूत के मुँह पर रख दिया. एक हलका दबाव दिया तो मत्था सरकता हुआ चूत में घुसा और योनि पटल तक जा कर रुक गया. गंगा रुके. लंड पकड़ कर गोल गोल घुमाया, हो सके इतना अंदर बाहर किया. चूत का मुँह ज़रा खुला और लंड का मत्था आसानी से अंदर आने जाने लगा. अब लंड को चूत के मुँह में फसा कर गंगा ने लंड छ्चोड़ दिया और वो माधवी उपर लेट गये. उस ने महावी का मुँह फ्रेंच किस से सील कर दिया, दोनो हाथ से नितंब पकड़े और कमर का एक झटका ऐसा मारा कि झिल्ली तोड़ आधा लंड चूत में घुस गया. दर्द से माधवी छ्टपटाई और उस के मुँह से चीख निकल पड़ी जो गंगा ने अपने मुँह मे झेल ली. गंगा रुक गये.
गंगा को देख परेश भी धक्का लगा ने लगा. हम कुर्सी में थे इसी लिए आधा लंड ही चूत में जा सकता था. परेश को हटा कर में फर्श पर आ गयी और जांघें फैला कर उसे फिर मेरे उपर ले लिया. तेज रफ़्तार से परेश मुझे चोदने लगा.
उधर माधवी शांत हुई तब गंगा ने पुछा : कैसा है अब दर्द? माधवी ने गंगा के कान में कुच्छ कहा जो में सुन नहीं पाई. गंगा ने लेकिन अपनी कमर से उस के पाँव च्छुड़ाए और इतने उपर उठा लिए कि घुटनें कान तक जा पहुँचे. माधवी के नितंब अधर हुए. गंगा की चौड़ी जांघें बीच से माधवी की भोस और उस में फसा हुआ गंगा का लंड साफ दिखने लगे. आधा लंड अब तक बाहर था जो गंगा धीरे धीरे चूत में पेल ने लगे. थोड़ा अंदर थोड़ा बाहर ऐसे करते करते दो चार इंच ज़्यादा अंदर घुस पाया लेकिन पूरा नहीं. अब गंगा ने वो तकनीक आज़माई जो मेरे साथ सुहाग रात को आज़माई थी.
उस ने होल से लंड बाहर खींचा स..र..र..र..र कर के. अकेला मत्था जब अंदर रह गया तब वो रुके. लंड ने ठुमका लगाया तो मत्थे ने ऑर मोटा हो कर चूत का मुँह ज़्यादा चौड़ा कर रक्खा. माधवी को ज़रा दर्द हुआ और उस के मुँह से सिसकारी निकल पड़ी. इस बार गंगा रुके नहीं. स..र.र..र..र..र.र कर के उस ने लंड फिर से चूत में डाला. आखरी दो इंच तो बाकी ही रह गया, जा ना सका. बाद में गंगा ने बताया कि माधवी की चूत पूरा लंड ले सके इतनी गहरी नहीं थी. उस को ज़्यादा दर्द ना लग जाय इसीलिए सावधानी से चोदना ज़रूरी था. ये तो अच्छा हुआ कि माधवी की पहली चुदाई गंगा ने की, वरना चाची की दहशत हक़ीकत में बदल जाती.
यहाँ परेश और में झाड़ चुके थे, परेश का लंड नर्म होता चला था. गंगा हलके, धीर्रे और गहरे धक्के से माधवी को चोदने लगे. माधवी के नितंब डोल ने लगे थे. लंड चूत की पक्फ पुच्च आवाज़ के साथ माधवी की सिसकारियाँ और गंगा की आहें गूँज रही थी.
परेश : भाभी, देख, भोस के होठ कैसे लंड से चिपक गये हैं ? बड़े भैया का लंड मोटा है ना ?
में : देवर्जी, तुम्हारा भी कुच्छ कम नहीं है.
गंगा के धक्के अब अनियमित होते चले थे. स..र..र..र.र की आवाज़ के कभी कभी घच्छ से लंड घुसेड देते थे. लगता था कि गंगा झड़ने के नज़दीक आ गये थे. माधवी लेकिन इतनी तैयार नहीं थी. उस ने खुद रास्ता निकाल लिया. अपने ही हाथ से क्लाइटॉरिस रगड़ डाली और छ्टपटाती हुई झड़ी . गंगा स्थिर थे लेकिन माधवी के चूतड़ ऐसे हिलाते थे कि लंड चूत में आया जाया करता था. माधवी का ऑर्गॅज़म शांत हुआ इस के बाद तेज रफ़्तार से धक्के मार कर गंगा झड़े और उतरे. करवट बदल कर माधवी सो गई. सफाई के बाद हम सब सो गये.
दूसरे दिन जागे तब परेश ने एक ओर चुदाई मागी मूह से. गंगा ने भी अनुरोध किया. में क्या करती ? दस मिनिट की मस्त चुदाई हो गई. परेश की खुशी छुपाए नही छुपति थी . शर्म की मारी माधवी किसी से नज़र मिला नहीं पाती थी. फिर भी गंगा ने उसे बुलाया तो उस के पास चली गयी. गले में बाहें डाल गोद में बैठ गयी. गंगा ने चूम कर पुछा : कैसा है दर्द ? नींद आई बराबर ?
शरमा कर उस ने अपना मुँह छुपा दिया गंगा के सीने में. कान में कुच्छ बोली.
गंगा : ना, अभी नहीं. दो दिन तक कुच्छ नहीं. चूत का घाव ठीक हो जाय इस के बाद.
लेकिन माधवी जैसी हठीली लड़की कहाँ किसी का सुनती है ? वो गंगा का मुँह चूमती रही और लंड टटोलती रही. गंगा भी रहे जवान आदमी, क्या करे बेचारा ? उठा कर वो माधवी को अंदर ले गये और आधे घंटे तक चोदा.
उस रात के बाद वो भाई बहन अक्सर हमारे घर आते रहे और चुदाई का मज़ा लेते रहे. जब स्कूल खुले तब उन्हें शहर में जाना पड़ा. मैं और गंगाधर इंतेज़ार कर रहे हैं कि कब वाकेशन पड़े और वो दोनो घर आए. आख़िर नये नये लंड से चुदवाने में और नयी नयी चूत को चोदने में कोई अनोखा आनंद आता है. है ना ? तो दोस्तो ये कहानी यही ख़तम होती है फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ तब तक के लिए विदा आपका दोस्त राज शर्मा
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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