FUN-MAZA-MASTI
पत्थर के आगे बीन--3
दिव्या के मुंह जैसे ही उसके गर्म हलवे का स्वाद लगा वो बावली हो गयी, इतना टेस्टी तो मनीष का भी नहीं था , उसने चटर-पटर करते हुए सारा वीर्य इकठ्ठा करके अपने मुंह के अन्दर धकेल लिया ..और कुछ ही देर में उसका रस से भीगा चेहरा चमचमा रहा था ..
और अब बारी थी घनशाम की, वो आगे आया और अपने लंड को फिर से दिव्या के मुंह के अन्दर डाल कर हिलाने लगा ..
दिव्या ने भी एक हाथ अपनी चूत पर और दुसरे से उसके लंड को रगड़ते हुए इतनी तेजी से उसे आगे पीछे किया की एक मिनट के अन्दर ही उसके लंड की सूंड से सफ़ेद पानी की बोचारें फिर से उसके गुलाबी चेहरे को भिगोकर सफ़ेद चादर में ढकने लगी ..
और तभी दिव्या के अन्दर का तूफ़ान भी बाहर निकल आया और वो पूरी तरह से तृप्त होकर अपने ऊपर हो रही बरखा का स्वाद मुंह खोलकर लेने लगी ..
और अपनी पत्नी को किसी रंडी की तरह बिहेव करते देखकर मनीष के लंड ने भी पिचकारियों की लाईन लगा दी और जंगल की जमीन पर उसने भी अपने बीज बो दिए ..
दिव्या का मन तो कर रहा था की घनशाम को वहीँ दबोचे और चढ़ जाए उसके ऊपर और डाल ले उसके लंड को अपने अन्दर ..पर वो इन्स्पेक्टर और हवालदार तो अपना काम निकलते ही चलने की तय्यारी करने लगे ..शायद उन्हें यों संक्रमण का खतरा था ..क्योंकि वो तो दिव्या को एक रंडी ही समझ रहे थे ..
उन्होंने अपने -२ कपडे ठीक किये और जीप में जा बैठे और जाते-२ इन्स्पेक्टर मनीष से
बोला : "रात होने वाली है ...मेडम को लेकर जल्दी से निकल ले अब ..''
और उन्होंने अपनी जीप वापिस मोड़ी और आँखों से ओझल हो गए ..दिव्या बेचारी निराश सी हो गयी ..
दिव्या ने भी अपना हुलिया सही किया और हाथ मुंह धोकर अपने कपडे पहन कर कार में जाकर बैठ गयी, मनीष भी बिना कुछ बोले अन्दर आया और दोनों फिर से अपने गाँव की तरफ चल दिए ..
पुरे रास्ते दोनों ने उस घटना के बारे में कोई बात नहीं की .
गाँव पहुँचते -२ शाम हो चुकी थी ..और दिव्या बुरी तरह से थक गयी थी ..वो आराम करना चाहती थी .
पर उसे अभी पता नहीं था की अब उसकी जिन्दगी में आराम इतनी आसानी से नहीं मिलने वाला .
मनीष के पिताजी ने गाँव में फ़ोन करके पहले से ही हवेली कि साफ़ सफाई करवा दी थी , ताकि उन्हें सोने में कोई परेशानी न हो ..वहाँ उनका पुराना वफादार नौकर हरिया जो करीब 50 साल का था उसने पहले से ही खाना भी तैयार करवा कर रख दिया था ....
मनीष और दिव्या फ्रेश होकर बैठ गए और हरिया ने खाना लगा दिया .खाने के बाद जैसे ही दिव्या ने कपडे बदले ही थे कि मनीष पीछे से आया और उसे अपनी बाहीं में पकड़ कर बेतहाशा चूमने लगा ..
''हटिये न ...मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी ..आज जो आपने किया है उसके लिए मैं आपको कभी माफ़ नहीं करुँगी ..'' उसने गुस्से में मनीष से कहा, पर वो अंदर से जानती थी कि उसे कितना मज़ा आया था वो सब करने में ..
मनीष : "मुझे माफ़ कर दो स्वीटहार्ट ..तुमने देखा था न, वो कमीने कैसे पैसों के पीछे पड़े थे ..तुम अगर आज न होती तो वो पुरे 5 लाख हमारे हाथ से चले जाते और पिताजी जो मुझे पहले से ही नाकारा समझते हैं उन्हें मुझे गालियां देने का एक और मौका मिल जाता ..मैं तो तुम्हे बस थेंक्स कह रहा था ..''
दिव्या मनीष कि तरफ घूमी और बिल्ली जैसा फेस बना कर अपने होंठों को फेला कर बड़े ही प्यार से बोली : "ऐसे थेंक्स कहते हो तुम ..''
मनीष : "तो कैसे कहूं ...तुम ही बता दो ..''
दिव्या ने होले से मुस्कुराते हुए मनीष के सर के ऊपर हाथ रखा और उसे नीचे कि तरफ धकेलने लगी ..और तब तक नीचे करती रही जब तक वो अपने घुटनों के बल नीचे नहीं बैठ गया ..और फिर दिव्या ने अपनी एक टांग उठा कर एक दम से उसके कंधे पर रख दी ..और धीरे -2 अपना गाउन ऊपर खिसकाते हुए अपनी टांगो को नंगा करने लगी ..और जल्द ही उसका गाउन कमर से भी ऊपर उठ गया ..जिसे उसने अपने सर से घुमा कर फेंक दिया ..
उसने ब्लेक कलर कि ब्रा-पेंटी पहनी हुई थी ..जिसमे उसका सफ़ेद शरीर बड़ा ही सेक्सी लग रहा था ..
मनीष समझ गया कि वो क्या चाहती है ..उसकी चूत से निकल रही महक उसे साफ़ महसूस हो रही थी ..और वहाँ का गीलापन भी उसे दिखायी दे रहा था ..उसने आज तक दिव्या कि चूत को चखा नहीं था ..और आज दिव्या मनीष कि गलती कि सजा के रूप में उससे अपनी चूत चुस्वाने का इंतजाम कर रही थी ..और मनीष मना भी नहीं कर सकता था .
दिव्या ने एक ही झटके में आगे होकर अपनी चूत वाला हिस्सा मनीष के मुंह पर लगा दिया ..और उसके बालों को पकड़ कर ऊपर मुंह करके सियार कि तरह हुंकारने लगी ..
''अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह .........उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म .......सक्क्क मीईsssssssssssssss ......''
आज तो दिव्या कि कमांड उसके लिए आदेश कि तरह था ..उसने बिना देरी किये उसकी चूत को कपडे समेत अपने मुंह में भरा और बर्फ वाली आइसक्रीम कि तरह चूसने लगा ...उसमे से मीठा रस छनकर उसके मुंह में जाने लगा जो उसे काफी अच्छा लगा ..वो सोचने लगा कि पहले क्यों नहीं चूसा उसने अपनी बीबी कि चूत को ..
मनीष ने अपने हाथ ऊपर किये और उसके कूल्हों पर फंसी हुई कच्छी को पकड़ कर फाड़ दिया ..और उसकी संतरें कि फांकों को अपने मुंह में लेकर ऑस्ट्रेलियन किस्स करने लगा ..
इतना रस तो असली के संतरे में से भी नहीं निकलता जितना इन संतरों में से निकल रहा था ..दिव्या ने एक टांग को मनीष के कंधे के पीछे और दूसरी उसके सामने नीचे टिका रखी थी ..बड़ा ही परफेक्ट आसान था ये चूत चुसाई का ..
और जल्द ही दिव्या के अंदर एक ओर्गास्म जन्म लेने लगा ..और उसने मनीष के सर के बालों को पकड़ कर जोर-२ से अपनी चूत पर मारना शुरू कर दिया ..
''अह्ह्ह्हह्ह्ह .....चूसो .......खा जाओ ......ईट मी .......सक्क्क मी .......अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह .......''
मनीष भी उसके जंगलीपन में उसका साथ देने लगा ..और जल्द ही उसकी चूत कि दरारों में से ठंडा नारियल पानी निकल कर झरने कि तरह कलकलता हुआ उसके मुंह में जाने लगा ..मनीष ने भी बिना कोई बूँद गिराए वो सब अपने मुंह के अंदर समेट लिया ..
दिव्या का शरीर निढाल सा होकर उसके ऊपर गिर गया ..जिसे उसने बड़े ही प्यार से नीचे लिटाया और खुद उसके ऊपर आ गया ...और एक मिनट के अंदर ही उसने अपने सारे कपडे निकाल फेंके ..जमीन पर पड़ी हुई दिव्या मदहोश आँखों से अपनी टाँगे फेला कर मनीष के लंड का इन्तजार कर रही थी ..और जैसे ही मनीष ने उसकी चूत के अंदर अपना गर्म लंड लगाया वो फिर से सजग हो उठी ..और उसने अपनी ब्रा के स्ट्रेप्स को नीचे करके अपनी ब्रेस्ट नंगी कि और मनीष के सर को पकड़ कर वहाँ दबा दिया .
मनीष ने उसका दूध पीते हुए अपना दूध निकालने का काम जारी रखा ..नीचे से मिल रहे झटकों और ऊपर से मिल रही चुसाई कि वजह से उसके अंदर एक और तूफ़ान जन्म लेने लगा ...शाम कि घटना को मिलाकर वो करीब 3 घंटों में तीसरी बार झड़ने वाली थी ..इतना स्टेमिना है उसके अंदर ये उसे आज ही पता चला ..उसके बड़े-२ थन बुरी तरह से हिल रहे थे और हर झटके से ऊपर नीचे हो रहे थे ..
मनीष के झटके भी आज कुछ ज्यादा ही तेज थे ..उसने आँखे बंद कि तो वहाँ उसे वही सीन दिखा जब वो इन्स्पेक्टर और हवलदार अपने लंड कि पिचकारियों से उसकी बीबी को नहला रहे थे ..और अब वो उन्ही छातियों को चूस रहा था जिनपर उनका रस गिरा था ...
इतना बहुत था उसके ओर्गास्म को चरम सीमा तक पहुंचाने के लिए ...उसने दो-चार तेज झटके मारे और तेज गर्जना के साथ अपनी लस्सी उसकी मटकी में भर दी ..
''अह्ह्ह्हह्ह्ह .......ओह्ह्ह .....दिव्याा .....उम्म्म्म्म्म्म्म ......मेरी जान .......''
और वहीँ जमीन पर उसके ऊपर लेट कर गहरी साँसे लेने लगा ..
उसकी गर्म रोड के अंदर कि सप्लाई अपनी चूत के अंदर महसूस करते ही उसके ओर्गास्म का गुब्बारा भी फूट गया और उसके अंदर का लावा निकलकर मनीष कि लस्सी में घुलने-मिलने लगा ..
ऐसा लगा जैसे कमरे के अंदर एक तूफ़ान आकर गुजर गया ..
पर तूफ़ान सिर्फ कमरे में ही नहीं बाहर भी आया था ..
हरिया काका अपनी धोती में से लंड को निकाल कर , अंदर से आ रही तेज आवाजों को सुनते हुए
जोर-२ से मसल रहे थे ..क्योंकि जब से उन्होंने छोटी मालकिन को देखा था तब से उनका लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था ..और इसलिए वो उनके कमरे के बाहर आकर खड़ा हुआ था ताकि कुछ मजेदार मसाला मिल सके ..और अंदर से आ रही सिस्कारियों से उसे पता चल गया था कि कार्यकर्म शुरू हो चूका है , इसलिए वो अपने लंड को निकालकर वहीँ मसलने लगा ..
और दिव्या - मनीष के साथ-२ उनके लंड ने भी जब तेज धार जमीन पर गिरानी शुरू कि तो वहाँ सफ़ेद पानी का इतना ढेर लग गया जैसे किसी ने कटोरी में से दहीं गिरा दी हो वहाँ ...
वो भागकर किचन कि तरफ गए ताकि किसी कपडे से वो सब साफ़ कर सके ..और इसी बीच दिव्या ने अपना गाउन पहना और बाहर कि तरफ निकलकर बाथरूम में जाने लगी ..क्योंकि पुराने टाइम के अनुसार बनी कोठी में बाथरूम अटेच नहीं था ..और जैसे ही बाहर निकलते हुए उसका पैर हरिया काका द्वारा बनायी हुई झील पर पड़ा , वो ठिठक कर रुक गयी ..और नीचे बैठ कर, अपनी उँगलियों से उठा कर जब उसने देखा कि वो है क्या, तो उसे समझते हुए देर नहीं लगी कि कोई उनके कमरे के बाहर कोई सब देख या सुन रहा था ..और इस समय पूरी कोठी में हरिया काका के अलावा कोई और तो है नहीं ..ये सोचते ही उसके पुरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गयी कि एक पचास साले के बुड्डे नौकर ने उसकी चुदाई वाली आवाजें सुनी होगी ..और वो सोचने लगी कि चलो अच्छा हुआ, उनकी वजह से बूढ़े का भला हो गया ..और अपनी ही बात पर मुस्कुराती हुई वो बाथरूम कि तरफ भाग गयी ..और वाश करके वो जब वापिस आयी तो हरिया जमीन पर बैठा हुआ अपनी करतूत पर पोचा लगा रहा था ..
दिव्या भी बेशर्मों कि तरह उसकी बगल से होती हुई अंदर चली गयी ..और जाकर सो गयी ..
अगले दिन सुबह उठकर वो जब नीचे गयी तो हरिया उससे नजरें भी नहीं मिला रहा था ..और ये देखकर दिव्या मन ही मन मुस्कुरा रही थी ..
तभी बाहर का दरवाजा खडका और हरिया ने दरवाजा खोल दिया ..सामने चार लोग खड़े थे ..जिन्हे देखते ही हरिया ने बुरा सा मुंह बनाया और बोला : "आ गए तुम मनहूसों ...खुशबु आ गयी होगी अपने यार कि ...''
ये चारों थे मनीष के बचपन के दोस्त ..
राजेश , हर्षित , बिल्लू और थापा ..
येही चारों थे जिनकी वजह से आज मनीष जुवारी बन चुका था .
बिल्लू : "अरे बुड्डे ....तू अभी तक जिन्दा है ...हा हा ..सेंचुरी मारेगा क्या ..''
थापा : "अरे नहीं यार ..ये अब क्या सेंचुरी मारेगा ..इसका तो सर्किट ही खराब हो चुका है ...ही ही ..''
थापा ने हरिया काका के लंड कि तरफ इशारा करते हुए उनका मजाक उड़ाया ..
ये उन सबका हर बार का नाटक था ..वो हरिया काका को बहुत सताते थे ..और हरिया उनकी बाते सुनकर कुछ नहीं कर पाता था ..उसकी इतनी औकात ही नहीं थी ..उनके सामने बोलने का मतलब था अपने सर पर मुसीबत बुलाना ..
पर जितना लाचार वो बनता था वो उतना था भी नहीं ..क्योंकि उसके पठानी लंड ने पिछले बीस सालों से गाँव कि ना जाने कितनी चूतों का कल्याण किया था ..और उनमे से बिल्लू और थापा कि माँ भी थी ..और थापा कि माँ तो उससे मिलने अभी तक आती थी ..छुप -२ कर ..
पर अपने ''सर्किट'' का बखान वो अभी इन बच्चो के सामने नहीं करना चाहता था ..
राजेश : "काका ...जल्दी से मनीष को बुलाओ ...''
और उनकी बगल से निकलते हुए सभी अंदर आकर सोफे पर बैठ गए ..
हरिया ने मनीष को जाकर बता दिया कि उसके दोस्त मिलने आये हैं ..मनीष भी ख़ुशी -२ भागता हुआ नीचे आया और उनसे लिपट गया ..
हर्षित : "साले ...तू तो हम लोगो को भूल ही गया है ...इतना बड़ा आदमी हो गया है कि अपने दोस्तों से मिलने का टाइम भी नहीं है ..''
थापा : "अरे अब हमे लिए इसके पास टाइम कहा से आएगा ..अभी तो भाभीजी के पल्लू से बाहर निकलने का टाइम ही नहीं मिलता होगा ..हा हा ..''
बिल्लू : "यार ...भाभीजी से याद आया, सुना है तेरी बीबी एकदम पटाखा है ...भेन चोद ....मिलवायेगा नहीं क्या ...हम उठा कर थोड़े ही ले जायेंगे उसको ..''
मनीष उसकी बात सुनकर झेंप सा गया ...वैसे तो मनीष भी इनकी तरह ही था ...ऐसे ही गालियां देकर बाते करने वाला ..दोस्तों कि बीबी पर भद्दी कमेंट करने वाला ..पर आज जब अपने ऊपर ऐसी परिस्थिति आयी तो उसे एहसास हुआ कि सामने वाले कितने गलत होते हैं ..
मनीष अपनी झेंप मिटाते हुए बोला : "अरे यारो ..तुम भी ना ...रुको ..मैं मिलवाता हु ..''
और उसने ऊपर मुंह करके दिव्या को बुलाया : "दिव्याआआ ...........ओ दिव्या ......नीचे आओ जल्दी ..''
वो उस वक़्त नहा रही थी ..उसने बाथरूम का दरवाजा खोला और बोली : "रुकिए ...दस मिनट में आयी ...''
उसके दोस्त ये सुनकर हंसने लगे ...जैसे उसका मजाक उड़ा रहे हो कि तेरी बीबी तो तेरी बात मानती ही नहीं है ..
ये देखकर मनीष को गुस्सा आ गया ..वो और जोर से चिल्लाया ..: "दस मिनट नहीं ...अभी के अभी ...जल्दी आओ ...''
ये सुनते ही दिव्या के शरीर के रोंगटे खड़े हो गए ...क्योंकि इतनी तेज आवाज से आज तक मनीष ने उसे नहीं पुकारा था ..उसने जल्दबाजी में अपना शरीर तोलिये से सुखाया और बाथरूम में लटकी अपनी रात वाली ड्रेस जो कि उसकी जाँघों तक ही आ पा रही थी पहन कर नीचे भागती चली गयी ..और वो भी बिना ब्रा के ..
अब उस बेचारी को क्या पता था कि मनीष उसे क्यों बुला रहा है ..
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पत्थर के आगे बीन--3
दिव्या के मुंह जैसे ही उसके गर्म हलवे का स्वाद लगा वो बावली हो गयी, इतना टेस्टी तो मनीष का भी नहीं था , उसने चटर-पटर करते हुए सारा वीर्य इकठ्ठा करके अपने मुंह के अन्दर धकेल लिया ..और कुछ ही देर में उसका रस से भीगा चेहरा चमचमा रहा था ..
और अब बारी थी घनशाम की, वो आगे आया और अपने लंड को फिर से दिव्या के मुंह के अन्दर डाल कर हिलाने लगा ..
दिव्या ने भी एक हाथ अपनी चूत पर और दुसरे से उसके लंड को रगड़ते हुए इतनी तेजी से उसे आगे पीछे किया की एक मिनट के अन्दर ही उसके लंड की सूंड से सफ़ेद पानी की बोचारें फिर से उसके गुलाबी चेहरे को भिगोकर सफ़ेद चादर में ढकने लगी ..
और तभी दिव्या के अन्दर का तूफ़ान भी बाहर निकल आया और वो पूरी तरह से तृप्त होकर अपने ऊपर हो रही बरखा का स्वाद मुंह खोलकर लेने लगी ..
और अपनी पत्नी को किसी रंडी की तरह बिहेव करते देखकर मनीष के लंड ने भी पिचकारियों की लाईन लगा दी और जंगल की जमीन पर उसने भी अपने बीज बो दिए ..
दिव्या का मन तो कर रहा था की घनशाम को वहीँ दबोचे और चढ़ जाए उसके ऊपर और डाल ले उसके लंड को अपने अन्दर ..पर वो इन्स्पेक्टर और हवालदार तो अपना काम निकलते ही चलने की तय्यारी करने लगे ..शायद उन्हें यों संक्रमण का खतरा था ..क्योंकि वो तो दिव्या को एक रंडी ही समझ रहे थे ..
उन्होंने अपने -२ कपडे ठीक किये और जीप में जा बैठे और जाते-२ इन्स्पेक्टर मनीष से
बोला : "रात होने वाली है ...मेडम को लेकर जल्दी से निकल ले अब ..''
और उन्होंने अपनी जीप वापिस मोड़ी और आँखों से ओझल हो गए ..दिव्या बेचारी निराश सी हो गयी ..
दिव्या ने भी अपना हुलिया सही किया और हाथ मुंह धोकर अपने कपडे पहन कर कार में जाकर बैठ गयी, मनीष भी बिना कुछ बोले अन्दर आया और दोनों फिर से अपने गाँव की तरफ चल दिए ..
पुरे रास्ते दोनों ने उस घटना के बारे में कोई बात नहीं की .
गाँव पहुँचते -२ शाम हो चुकी थी ..और दिव्या बुरी तरह से थक गयी थी ..वो आराम करना चाहती थी .
पर उसे अभी पता नहीं था की अब उसकी जिन्दगी में आराम इतनी आसानी से नहीं मिलने वाला .
मनीष के पिताजी ने गाँव में फ़ोन करके पहले से ही हवेली कि साफ़ सफाई करवा दी थी , ताकि उन्हें सोने में कोई परेशानी न हो ..वहाँ उनका पुराना वफादार नौकर हरिया जो करीब 50 साल का था उसने पहले से ही खाना भी तैयार करवा कर रख दिया था ....
मनीष और दिव्या फ्रेश होकर बैठ गए और हरिया ने खाना लगा दिया .खाने के बाद जैसे ही दिव्या ने कपडे बदले ही थे कि मनीष पीछे से आया और उसे अपनी बाहीं में पकड़ कर बेतहाशा चूमने लगा ..
''हटिये न ...मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी ..आज जो आपने किया है उसके लिए मैं आपको कभी माफ़ नहीं करुँगी ..'' उसने गुस्से में मनीष से कहा, पर वो अंदर से जानती थी कि उसे कितना मज़ा आया था वो सब करने में ..
मनीष : "मुझे माफ़ कर दो स्वीटहार्ट ..तुमने देखा था न, वो कमीने कैसे पैसों के पीछे पड़े थे ..तुम अगर आज न होती तो वो पुरे 5 लाख हमारे हाथ से चले जाते और पिताजी जो मुझे पहले से ही नाकारा समझते हैं उन्हें मुझे गालियां देने का एक और मौका मिल जाता ..मैं तो तुम्हे बस थेंक्स कह रहा था ..''
दिव्या मनीष कि तरफ घूमी और बिल्ली जैसा फेस बना कर अपने होंठों को फेला कर बड़े ही प्यार से बोली : "ऐसे थेंक्स कहते हो तुम ..''
मनीष : "तो कैसे कहूं ...तुम ही बता दो ..''
दिव्या ने होले से मुस्कुराते हुए मनीष के सर के ऊपर हाथ रखा और उसे नीचे कि तरफ धकेलने लगी ..और तब तक नीचे करती रही जब तक वो अपने घुटनों के बल नीचे नहीं बैठ गया ..और फिर दिव्या ने अपनी एक टांग उठा कर एक दम से उसके कंधे पर रख दी ..और धीरे -2 अपना गाउन ऊपर खिसकाते हुए अपनी टांगो को नंगा करने लगी ..और जल्द ही उसका गाउन कमर से भी ऊपर उठ गया ..जिसे उसने अपने सर से घुमा कर फेंक दिया ..
उसने ब्लेक कलर कि ब्रा-पेंटी पहनी हुई थी ..जिसमे उसका सफ़ेद शरीर बड़ा ही सेक्सी लग रहा था ..
मनीष समझ गया कि वो क्या चाहती है ..उसकी चूत से निकल रही महक उसे साफ़ महसूस हो रही थी ..और वहाँ का गीलापन भी उसे दिखायी दे रहा था ..उसने आज तक दिव्या कि चूत को चखा नहीं था ..और आज दिव्या मनीष कि गलती कि सजा के रूप में उससे अपनी चूत चुस्वाने का इंतजाम कर रही थी ..और मनीष मना भी नहीं कर सकता था .
दिव्या ने एक ही झटके में आगे होकर अपनी चूत वाला हिस्सा मनीष के मुंह पर लगा दिया ..और उसके बालों को पकड़ कर ऊपर मुंह करके सियार कि तरह हुंकारने लगी ..
''अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह .........उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म .......सक्क्क मीईsssssssssssssss ......''
आज तो दिव्या कि कमांड उसके लिए आदेश कि तरह था ..उसने बिना देरी किये उसकी चूत को कपडे समेत अपने मुंह में भरा और बर्फ वाली आइसक्रीम कि तरह चूसने लगा ...उसमे से मीठा रस छनकर उसके मुंह में जाने लगा जो उसे काफी अच्छा लगा ..वो सोचने लगा कि पहले क्यों नहीं चूसा उसने अपनी बीबी कि चूत को ..
मनीष ने अपने हाथ ऊपर किये और उसके कूल्हों पर फंसी हुई कच्छी को पकड़ कर फाड़ दिया ..और उसकी संतरें कि फांकों को अपने मुंह में लेकर ऑस्ट्रेलियन किस्स करने लगा ..
इतना रस तो असली के संतरे में से भी नहीं निकलता जितना इन संतरों में से निकल रहा था ..दिव्या ने एक टांग को मनीष के कंधे के पीछे और दूसरी उसके सामने नीचे टिका रखी थी ..बड़ा ही परफेक्ट आसान था ये चूत चुसाई का ..
और जल्द ही दिव्या के अंदर एक ओर्गास्म जन्म लेने लगा ..और उसने मनीष के सर के बालों को पकड़ कर जोर-२ से अपनी चूत पर मारना शुरू कर दिया ..
''अह्ह्ह्हह्ह्ह .....चूसो .......खा जाओ ......ईट मी .......सक्क्क मी .......अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह .......''
मनीष भी उसके जंगलीपन में उसका साथ देने लगा ..और जल्द ही उसकी चूत कि दरारों में से ठंडा नारियल पानी निकल कर झरने कि तरह कलकलता हुआ उसके मुंह में जाने लगा ..मनीष ने भी बिना कोई बूँद गिराए वो सब अपने मुंह के अंदर समेट लिया ..
दिव्या का शरीर निढाल सा होकर उसके ऊपर गिर गया ..जिसे उसने बड़े ही प्यार से नीचे लिटाया और खुद उसके ऊपर आ गया ...और एक मिनट के अंदर ही उसने अपने सारे कपडे निकाल फेंके ..जमीन पर पड़ी हुई दिव्या मदहोश आँखों से अपनी टाँगे फेला कर मनीष के लंड का इन्तजार कर रही थी ..और जैसे ही मनीष ने उसकी चूत के अंदर अपना गर्म लंड लगाया वो फिर से सजग हो उठी ..और उसने अपनी ब्रा के स्ट्रेप्स को नीचे करके अपनी ब्रेस्ट नंगी कि और मनीष के सर को पकड़ कर वहाँ दबा दिया .
मनीष ने उसका दूध पीते हुए अपना दूध निकालने का काम जारी रखा ..नीचे से मिल रहे झटकों और ऊपर से मिल रही चुसाई कि वजह से उसके अंदर एक और तूफ़ान जन्म लेने लगा ...शाम कि घटना को मिलाकर वो करीब 3 घंटों में तीसरी बार झड़ने वाली थी ..इतना स्टेमिना है उसके अंदर ये उसे आज ही पता चला ..उसके बड़े-२ थन बुरी तरह से हिल रहे थे और हर झटके से ऊपर नीचे हो रहे थे ..
मनीष के झटके भी आज कुछ ज्यादा ही तेज थे ..उसने आँखे बंद कि तो वहाँ उसे वही सीन दिखा जब वो इन्स्पेक्टर और हवलदार अपने लंड कि पिचकारियों से उसकी बीबी को नहला रहे थे ..और अब वो उन्ही छातियों को चूस रहा था जिनपर उनका रस गिरा था ...
इतना बहुत था उसके ओर्गास्म को चरम सीमा तक पहुंचाने के लिए ...उसने दो-चार तेज झटके मारे और तेज गर्जना के साथ अपनी लस्सी उसकी मटकी में भर दी ..
''अह्ह्ह्हह्ह्ह .......ओह्ह्ह .....दिव्याा .....उम्म्म्म्म्म्म्म ......मेरी जान .......''
और वहीँ जमीन पर उसके ऊपर लेट कर गहरी साँसे लेने लगा ..
उसकी गर्म रोड के अंदर कि सप्लाई अपनी चूत के अंदर महसूस करते ही उसके ओर्गास्म का गुब्बारा भी फूट गया और उसके अंदर का लावा निकलकर मनीष कि लस्सी में घुलने-मिलने लगा ..
ऐसा लगा जैसे कमरे के अंदर एक तूफ़ान आकर गुजर गया ..
पर तूफ़ान सिर्फ कमरे में ही नहीं बाहर भी आया था ..
हरिया काका अपनी धोती में से लंड को निकाल कर , अंदर से आ रही तेज आवाजों को सुनते हुए
जोर-२ से मसल रहे थे ..क्योंकि जब से उन्होंने छोटी मालकिन को देखा था तब से उनका लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था ..और इसलिए वो उनके कमरे के बाहर आकर खड़ा हुआ था ताकि कुछ मजेदार मसाला मिल सके ..और अंदर से आ रही सिस्कारियों से उसे पता चल गया था कि कार्यकर्म शुरू हो चूका है , इसलिए वो अपने लंड को निकालकर वहीँ मसलने लगा ..
और दिव्या - मनीष के साथ-२ उनके लंड ने भी जब तेज धार जमीन पर गिरानी शुरू कि तो वहाँ सफ़ेद पानी का इतना ढेर लग गया जैसे किसी ने कटोरी में से दहीं गिरा दी हो वहाँ ...
वो भागकर किचन कि तरफ गए ताकि किसी कपडे से वो सब साफ़ कर सके ..और इसी बीच दिव्या ने अपना गाउन पहना और बाहर कि तरफ निकलकर बाथरूम में जाने लगी ..क्योंकि पुराने टाइम के अनुसार बनी कोठी में बाथरूम अटेच नहीं था ..और जैसे ही बाहर निकलते हुए उसका पैर हरिया काका द्वारा बनायी हुई झील पर पड़ा , वो ठिठक कर रुक गयी ..और नीचे बैठ कर, अपनी उँगलियों से उठा कर जब उसने देखा कि वो है क्या, तो उसे समझते हुए देर नहीं लगी कि कोई उनके कमरे के बाहर कोई सब देख या सुन रहा था ..और इस समय पूरी कोठी में हरिया काका के अलावा कोई और तो है नहीं ..ये सोचते ही उसके पुरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गयी कि एक पचास साले के बुड्डे नौकर ने उसकी चुदाई वाली आवाजें सुनी होगी ..और वो सोचने लगी कि चलो अच्छा हुआ, उनकी वजह से बूढ़े का भला हो गया ..और अपनी ही बात पर मुस्कुराती हुई वो बाथरूम कि तरफ भाग गयी ..और वाश करके वो जब वापिस आयी तो हरिया जमीन पर बैठा हुआ अपनी करतूत पर पोचा लगा रहा था ..
दिव्या भी बेशर्मों कि तरह उसकी बगल से होती हुई अंदर चली गयी ..और जाकर सो गयी ..
अगले दिन सुबह उठकर वो जब नीचे गयी तो हरिया उससे नजरें भी नहीं मिला रहा था ..और ये देखकर दिव्या मन ही मन मुस्कुरा रही थी ..
तभी बाहर का दरवाजा खडका और हरिया ने दरवाजा खोल दिया ..सामने चार लोग खड़े थे ..जिन्हे देखते ही हरिया ने बुरा सा मुंह बनाया और बोला : "आ गए तुम मनहूसों ...खुशबु आ गयी होगी अपने यार कि ...''
ये चारों थे मनीष के बचपन के दोस्त ..
राजेश , हर्षित , बिल्लू और थापा ..
येही चारों थे जिनकी वजह से आज मनीष जुवारी बन चुका था .
बिल्लू : "अरे बुड्डे ....तू अभी तक जिन्दा है ...हा हा ..सेंचुरी मारेगा क्या ..''
थापा : "अरे नहीं यार ..ये अब क्या सेंचुरी मारेगा ..इसका तो सर्किट ही खराब हो चुका है ...ही ही ..''
थापा ने हरिया काका के लंड कि तरफ इशारा करते हुए उनका मजाक उड़ाया ..
ये उन सबका हर बार का नाटक था ..वो हरिया काका को बहुत सताते थे ..और हरिया उनकी बाते सुनकर कुछ नहीं कर पाता था ..उसकी इतनी औकात ही नहीं थी ..उनके सामने बोलने का मतलब था अपने सर पर मुसीबत बुलाना ..
पर जितना लाचार वो बनता था वो उतना था भी नहीं ..क्योंकि उसके पठानी लंड ने पिछले बीस सालों से गाँव कि ना जाने कितनी चूतों का कल्याण किया था ..और उनमे से बिल्लू और थापा कि माँ भी थी ..और थापा कि माँ तो उससे मिलने अभी तक आती थी ..छुप -२ कर ..
पर अपने ''सर्किट'' का बखान वो अभी इन बच्चो के सामने नहीं करना चाहता था ..
राजेश : "काका ...जल्दी से मनीष को बुलाओ ...''
और उनकी बगल से निकलते हुए सभी अंदर आकर सोफे पर बैठ गए ..
हरिया ने मनीष को जाकर बता दिया कि उसके दोस्त मिलने आये हैं ..मनीष भी ख़ुशी -२ भागता हुआ नीचे आया और उनसे लिपट गया ..
हर्षित : "साले ...तू तो हम लोगो को भूल ही गया है ...इतना बड़ा आदमी हो गया है कि अपने दोस्तों से मिलने का टाइम भी नहीं है ..''
थापा : "अरे अब हमे लिए इसके पास टाइम कहा से आएगा ..अभी तो भाभीजी के पल्लू से बाहर निकलने का टाइम ही नहीं मिलता होगा ..हा हा ..''
बिल्लू : "यार ...भाभीजी से याद आया, सुना है तेरी बीबी एकदम पटाखा है ...भेन चोद ....मिलवायेगा नहीं क्या ...हम उठा कर थोड़े ही ले जायेंगे उसको ..''
मनीष उसकी बात सुनकर झेंप सा गया ...वैसे तो मनीष भी इनकी तरह ही था ...ऐसे ही गालियां देकर बाते करने वाला ..दोस्तों कि बीबी पर भद्दी कमेंट करने वाला ..पर आज जब अपने ऊपर ऐसी परिस्थिति आयी तो उसे एहसास हुआ कि सामने वाले कितने गलत होते हैं ..
मनीष अपनी झेंप मिटाते हुए बोला : "अरे यारो ..तुम भी ना ...रुको ..मैं मिलवाता हु ..''
और उसने ऊपर मुंह करके दिव्या को बुलाया : "दिव्याआआ ...........ओ दिव्या ......नीचे आओ जल्दी ..''
वो उस वक़्त नहा रही थी ..उसने बाथरूम का दरवाजा खोला और बोली : "रुकिए ...दस मिनट में आयी ...''
उसके दोस्त ये सुनकर हंसने लगे ...जैसे उसका मजाक उड़ा रहे हो कि तेरी बीबी तो तेरी बात मानती ही नहीं है ..
ये देखकर मनीष को गुस्सा आ गया ..वो और जोर से चिल्लाया ..: "दस मिनट नहीं ...अभी के अभी ...जल्दी आओ ...''
ये सुनते ही दिव्या के शरीर के रोंगटे खड़े हो गए ...क्योंकि इतनी तेज आवाज से आज तक मनीष ने उसे नहीं पुकारा था ..उसने जल्दबाजी में अपना शरीर तोलिये से सुखाया और बाथरूम में लटकी अपनी रात वाली ड्रेस जो कि उसकी जाँघों तक ही आ पा रही थी पहन कर नीचे भागती चली गयी ..और वो भी बिना ब्रा के ..
अब उस बेचारी को क्या पता था कि मनीष उसे क्यों बुला रहा है ..
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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