FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--7
नेहा बड़े चाव से आइस-क्रीम खाने लगी, मेरा नेहा के प्रति प्यार देख भाभी ने मुझसे कहा:
"मानु.. मैं तुम्हें एक बात बताना चाहती हूँ|"
मैं: हाँ बोलो ...
भाभी: पता नहीं तुम विश्वास करोगे या नहीं.. तुम्हें तो याद ही होगा उस रात जब हम दोनों हंसी-मजाक कर रहे थे... (इतना कहते हुए भाभी रुक गईं|)
मैं: भौजी मैं आपकी कही हर बात का विश्वास करूँगा.... आप बोलो तो सही ... अपने अंदर कुछ मत छुपाओ....
भाभी: मैंने उस रात के बाद तुम्हारे भैया के साथ कभी भी शारीरिक सम्बन्ध स्थापित नहीं किये!!!
ये सुनते ही मैं दंग रह गया.... भाभी ने अपनी बात पूरी करते हुए आगे कहा ...
भाभी: यही कारन है की अब तुम्हारे भैया ओर मेरे बीच में पटती नहीं है| वे ना तो मुझे अब इस बारे में कुछ कहते हैं .. न ही मैं उनसे इस बारे में कुछ कहती हूँ| हमारे बीच केवल मौखिक रूप से ही बातचीत होती है| यही कारन है की वो अब मेरे साथ कहीं आते-जाते भी नहीं| जब मैंने दिल्ली आने की जिद्द की तो वे बिगड़ गए .. इसीलिए मैंने नेहा को पढ़ाया की वो ससुर जी से जिद्द करे तुम से मिलने की, तुम्हारे भैया ससुर जी का कहना हमेशा मानते हैं|
अब मेरी समझ में आया की आखिर भैया क्यों नहीं आये...
आगे मैं कुछ कह पता इतने में चन्दर भैया मुझे आते हुए नजर आये| भैया मुझसे गले मिले ओर हाल-चाल लिया, जब मैंने उनसे घर ना आने का रन पूछा तो उन्होंने बात टाल दी| भाभी की बात सुन के अब मुझे उनके लिए डर सताने लगा की कहीं भैया भाभी पर हाथ तो नहीं उठाते? मैं इसी उधेड़-बन में था की भैया ने विदा ली और मैं अपनी कश्मकश से बहार आया और कहा की मैं आपको बस में बिठा देता हूँ| बस खचा-खच भरी हुई थी मुझे दो औरतों के बीच एक जगह मिली और मैंने वहां भाभी को बैठा दिया, भैया अभी भी खड़े थे| मैंने भैया को बहार बुलाया और कंडक्टर से बात कराई की जैसे ही जगह मिले मेरे भैया को सीट सबसे पहले दें इसके लिए मैंने कंडक्टर को एक हरी पत्ती भी दे दी| कंडक्टर खुश हो गया और बोला:
" सहब आप चिंता मत करो भाईसाहब को मैं अपनी सीट पर बैठा देता हूँ|"
भैया ये सब देख के खुश थे उन्होंने टिकट के पैसे देने के लिए पैसे आगे बढ़ाये तो मैंने उन्हें मन कर दिया और कहा:
"भैया पिताजी ने कहा था की टिकट मैं ही खरीदूं| आप ये लो टिकट और अंदर कंडक्टर साहब की सीट पे बैठो|"
कंडक्टर से निपट के मैं अंदर आया और भैया से पूछा की आप कुछ खाने के लिए लोगे तो उन्होंने मना कर दिया... मैं भाभी की ओर बढ़ा ओर भाभी से पूछा तो उन्होंने भी मना कर दिया पर मैं मानने वाला कहाँ था मैं झट से नीचे उतरा और दो पैकेट चिप्स और दो ठंडी कोका कोला की बोतल ले आया और एक बोतल और चिप्स भैया को थम दिया और दूसरी बोतल और चिप्स भाभी को दे दी| भाभी न-नकुर करने लगी पर मैंने उन्हें अपनी कसम दे कर जबरदस्ती की| आखिर भाभी मान गईं फिर नेहा की एक पप्पी ले कर भाभी को इशारे में कहा की मैं जल्दी आऊंगा कहके मैं उतर गया|
समय का चक्का एक बार फिर घुमा! मेरी परीक्षा खत्म हुई और मैं पिताजी के पीछे पड़ गया की इस साल गांव जाना है और साथ ही साथ मंदिरों की यात्रा भी करनी है| मैं यूँ ही कभी पिताजी से मांग नहीं करता था और इस बार तो ग्यारहवीं के पेपर वैसे ही बहुत अच्छे हुए थे तो इनाम स्वरुप पिताजी भी तैयार हो गए और उन्होंने गांंव जाने की टिकट निकाल ली| गाँव जाने में अभी केवल दस दिन रह गए थे और मैं मन ही मन अपनी इच्छाओं की लिस्ट बना रहा था|अचानक खबर आई की मेरे दूर के रिश्तेदारी में एक भैया जो गुजरात रहते हैं और वो आज हमसे मिलने दिल्ली आ रहे हैं| मैं और भैया बचपन में एक साथ खेले थे, लड़े थे, झगडे थे... और हमारे बीच में दोस्तों और भाइयों जैसा प्यार था| उनके आने की खबर सुन के थोड़ा सा अचम्भा जर्रूर लगा की यूँ अचानक वो क्यों आ रहे हैं ... और एक डर सताने लगा की कहीं पिताजी इस चक्कर में गांव जाना रद्द न कर दें| मेरा मन एक अजीब सी दुविधा में फंस गया क्योंकि एक तरफ भैया हैं जिनसे मेरी अच्छी पटती है और दूसरी तरफ भाभी हैं जो शायद मेरा कौमार्य भांग कर दें| खेर मेरे हाथ में कुछ नहीं था, इसलिए उन्हें लेने स्वयं पिताजी स्टेशन पहुंचे और वे दोनों घर आ गए| मैंने उनका स्वागत किया और हम बैठके गप्पें मारने लगे| मैं बहुत ही सामान्य तरीके से बात कर रहा था और अपने अंदर उमड़ रहे तूफ़ान को थामे हुए था|
बातों ही बातों में पता चला की वे ज्यादा दिन नहीं रुकेंगे, उनका प्लान केवल 2-4 दिन का ही है| ये सुन के मेरी जान में जान आई की काम से काम गांव जाने का प्लान तो रद्द नहीं होगा| उनके जाने से ठीक एक दिन पहले की बात. मैं और भैया कमरे में बैठे पुराने दिन याद कर रहे थे और खाना खा रहे थे| तभी बातों ही बातों में भैया के मुख से कुछ ऐसा निकला जिससे सुन के मन सन्न रह गया|
भैया: मानु अब तुम बड़े हो गए हो ... मैं तुम्हें एक बात बताना चाहता हूँ| जिंदगी में ऐसे बहुत से क्षण आते हैं जब मनुष्य गलत फैसले लेता है| वो ऐसी रह चुनता है जिसके बारे में वो जानता है की उसे बुराई की और ले जायेगी| तुम ऐसी बुराई से दूर रहना क्योंकि बुराई एक ऐसा दलदल है जिस में जो भी गिरता है वो फंस के रह जाता है|
मैं: आपने बिलकुल सही कहा भैया और मैं ये ध्यान रखूँगा की मैं ऐसा कोई गलत फैसला न लूँ|
उस समय तो मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, परन्तु रात्रि भोज के बाद जब मैं छत पर सैर कर रहा था तब उनकी कही बात के बारे में सोचने लगा| मन असमन्झस स्थिति में पड़ चूका था और दिमाग भैया की बात को सही मान कर मुझे भाभी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने से रोक रहा था| मित्रों मन पे काबू करना इतना आसन होता तो मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल कभी न करता| यही कारन था की मैंने मन की बात मानी और फिर से भाभी और अपने सुहाने सपने सजोने लग पड़ा|
आखिर वो दिन आ ही गया जिस दिन हम गांव पहुंचे|
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मैं: हाँ बोलो ...
भाभी: पता नहीं तुम विश्वास करोगे या नहीं.. तुम्हें तो याद ही होगा उस रात जब हम दोनों हंसी-मजाक कर रहे थे... (इतना कहते हुए भाभी रुक गईं|)
मैं: भौजी मैं आपकी कही हर बात का विश्वास करूँगा.... आप बोलो तो सही ... अपने अंदर कुछ मत छुपाओ....
भाभी: मैंने उस रात के बाद तुम्हारे भैया के साथ कभी भी शारीरिक सम्बन्ध स्थापित नहीं किये!!!
ये सुनते ही मैं दंग रह गया.... भाभी ने अपनी बात पूरी करते हुए आगे कहा ...
भाभी: यही कारन है की अब तुम्हारे भैया ओर मेरे बीच में पटती नहीं है| वे ना तो मुझे अब इस बारे में कुछ कहते हैं .. न ही मैं उनसे इस बारे में कुछ कहती हूँ| हमारे बीच केवल मौखिक रूप से ही बातचीत होती है| यही कारन है की वो अब मेरे साथ कहीं आते-जाते भी नहीं| जब मैंने दिल्ली आने की जिद्द की तो वे बिगड़ गए .. इसीलिए मैंने नेहा को पढ़ाया की वो ससुर जी से जिद्द करे तुम से मिलने की, तुम्हारे भैया ससुर जी का कहना हमेशा मानते हैं|
अब मेरी समझ में आया की आखिर भैया क्यों नहीं आये...
आगे मैं कुछ कह पता इतने में चन्दर भैया मुझे आते हुए नजर आये| भैया मुझसे गले मिले ओर हाल-चाल लिया, जब मैंने उनसे घर ना आने का रन पूछा तो उन्होंने बात टाल दी| भाभी की बात सुन के अब मुझे उनके लिए डर सताने लगा की कहीं भैया भाभी पर हाथ तो नहीं उठाते? मैं इसी उधेड़-बन में था की भैया ने विदा ली और मैं अपनी कश्मकश से बहार आया और कहा की मैं आपको बस में बिठा देता हूँ| बस खचा-खच भरी हुई थी मुझे दो औरतों के बीच एक जगह मिली और मैंने वहां भाभी को बैठा दिया, भैया अभी भी खड़े थे| मैंने भैया को बहार बुलाया और कंडक्टर से बात कराई की जैसे ही जगह मिले मेरे भैया को सीट सबसे पहले दें इसके लिए मैंने कंडक्टर को एक हरी पत्ती भी दे दी| कंडक्टर खुश हो गया और बोला:
" सहब आप चिंता मत करो भाईसाहब को मैं अपनी सीट पर बैठा देता हूँ|"
भैया ये सब देख के खुश थे उन्होंने टिकट के पैसे देने के लिए पैसे आगे बढ़ाये तो मैंने उन्हें मन कर दिया और कहा:
"भैया पिताजी ने कहा था की टिकट मैं ही खरीदूं| आप ये लो टिकट और अंदर कंडक्टर साहब की सीट पे बैठो|"
कंडक्टर से निपट के मैं अंदर आया और भैया से पूछा की आप कुछ खाने के लिए लोगे तो उन्होंने मना कर दिया... मैं भाभी की ओर बढ़ा ओर भाभी से पूछा तो उन्होंने भी मना कर दिया पर मैं मानने वाला कहाँ था मैं झट से नीचे उतरा और दो पैकेट चिप्स और दो ठंडी कोका कोला की बोतल ले आया और एक बोतल और चिप्स भैया को थम दिया और दूसरी बोतल और चिप्स भाभी को दे दी| भाभी न-नकुर करने लगी पर मैंने उन्हें अपनी कसम दे कर जबरदस्ती की| आखिर भाभी मान गईं फिर नेहा की एक पप्पी ले कर भाभी को इशारे में कहा की मैं जल्दी आऊंगा कहके मैं उतर गया|
समय का चक्का एक बार फिर घुमा! मेरी परीक्षा खत्म हुई और मैं पिताजी के पीछे पड़ गया की इस साल गांव जाना है और साथ ही साथ मंदिरों की यात्रा भी करनी है| मैं यूँ ही कभी पिताजी से मांग नहीं करता था और इस बार तो ग्यारहवीं के पेपर वैसे ही बहुत अच्छे हुए थे तो इनाम स्वरुप पिताजी भी तैयार हो गए और उन्होंने गांंव जाने की टिकट निकाल ली| गाँव जाने में अभी केवल दस दिन रह गए थे और मैं मन ही मन अपनी इच्छाओं की लिस्ट बना रहा था|अचानक खबर आई की मेरे दूर के रिश्तेदारी में एक भैया जो गुजरात रहते हैं और वो आज हमसे मिलने दिल्ली आ रहे हैं| मैं और भैया बचपन में एक साथ खेले थे, लड़े थे, झगडे थे... और हमारे बीच में दोस्तों और भाइयों जैसा प्यार था| उनके आने की खबर सुन के थोड़ा सा अचम्भा जर्रूर लगा की यूँ अचानक वो क्यों आ रहे हैं ... और एक डर सताने लगा की कहीं पिताजी इस चक्कर में गांव जाना रद्द न कर दें| मेरा मन एक अजीब सी दुविधा में फंस गया क्योंकि एक तरफ भैया हैं जिनसे मेरी अच्छी पटती है और दूसरी तरफ भाभी हैं जो शायद मेरा कौमार्य भांग कर दें| खेर मेरे हाथ में कुछ नहीं था, इसलिए उन्हें लेने स्वयं पिताजी स्टेशन पहुंचे और वे दोनों घर आ गए| मैंने उनका स्वागत किया और हम बैठके गप्पें मारने लगे| मैं बहुत ही सामान्य तरीके से बात कर रहा था और अपने अंदर उमड़ रहे तूफ़ान को थामे हुए था|
बातों ही बातों में पता चला की वे ज्यादा दिन नहीं रुकेंगे, उनका प्लान केवल 2-4 दिन का ही है| ये सुन के मेरी जान में जान आई की काम से काम गांव जाने का प्लान तो रद्द नहीं होगा| उनके जाने से ठीक एक दिन पहले की बात. मैं और भैया कमरे में बैठे पुराने दिन याद कर रहे थे और खाना खा रहे थे| तभी बातों ही बातों में भैया के मुख से कुछ ऐसा निकला जिससे सुन के मन सन्न रह गया|
भैया: मानु अब तुम बड़े हो गए हो ... मैं तुम्हें एक बात बताना चाहता हूँ| जिंदगी में ऐसे बहुत से क्षण आते हैं जब मनुष्य गलत फैसले लेता है| वो ऐसी रह चुनता है जिसके बारे में वो जानता है की उसे बुराई की और ले जायेगी| तुम ऐसी बुराई से दूर रहना क्योंकि बुराई एक ऐसा दलदल है जिस में जो भी गिरता है वो फंस के रह जाता है|
मैं: आपने बिलकुल सही कहा भैया और मैं ये ध्यान रखूँगा की मैं ऐसा कोई गलत फैसला न लूँ|
उस समय तो मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, परन्तु रात्रि भोज के बाद जब मैं छत पर सैर कर रहा था तब उनकी कही बात के बारे में सोचने लगा| मन असमन्झस स्थिति में पड़ चूका था और दिमाग भैया की बात को सही मान कर मुझे भाभी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने से रोक रहा था| मित्रों मन पे काबू करना इतना आसन होता तो मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल कभी न करता| यही कारन था की मैंने मन की बात मानी और फिर से भाभी और अपने सुहाने सपने सजोने लग पड़ा|
आखिर वो दिन आ ही गया जिस दिन हम गांव पहुंचे|
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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