FUN-MAZA-MASTI
पराये मर्द से सम्भोग-1
नमस्कार मेरा नाम सारिका है। मेरे 3 बच्चे हैं, जिनमें से तीसरा बच्चा अभी 5 साल का है।
शादी के बाद मेरी जिन्दगी में नाम मात्र का सम्भोग और रतिक्रिया रह गई थी। दूसरे बच्चे के बाद तो स्थिति और भी खराब हो गई है इसलिए मुझे जब मौका मिला, तो मैंने दूसरों के साथ सम्भोग कर लिया।
यh इसलिए मुमकिन हुआ, क्योंकि मैं उड़ीसा में थी और मेरे पति काम पर चले जाते थे। उसी दौरान मुझे मौका मिल जाया करता था। उड़ीसा में मैं 13 साल रही और इस दौरान मैंने अपने पति के अलावा 4 और लोगों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए जिनमें से अमर के साथ लम्बे समय तक सहवास किया।
बाकी में से एक के साथ 2 साल तक, एक के साथ 7 महीने और एक के साथ 3 दिन तक शारीरिक सम्बन्ध रखे, पर मेरे लिए मुसीबत तब हो गई, जब पति का तबादला झारखण्ड हो गया।
मेरे पति ने मुझे बच्चों के साथ गांव मे रहने को कहा क्योंकि रांची से एक या दो दिन में घर आ-जा सकते थे।
उनका आना मेरी रात्रि के अकेलेपन को दूर नहीं करता था।
मेरी उमर अब 39 वर्ष की होने को थी और पता नहीं क्यों, मेरी काम वासना और भी ज्यादा होने लगी थी।
उसी बीच पति ने बच्चों के लिए एक कंप्यूटर खरीदा। मेरा एक भतीजा आया हुआ था, तो उसने मुझे इंटरनेट पर बात करना सिखा दिया।
फ़िर मेरी एक सहेली जिसका नाम सुधा है, जो बैंगलोर में रहती है, उससे मैं बात करने लगी।
बच्चे जब स्कूल चले जाते, तो हम दोनों खूब लिख-लिख कर बातें करते।
हम बचपन की सहेलियाँ हैं इसलिए हम खुल कर बातें करते थे। इसलिए मैंने उसे ये सब बातें बता दीं।
उसने मुझे बताया कि शायद मैं रजोनिवृति की तरफ़ जा रही हूँ इसलिए मुझे काम की इच्छा अधिक हो रही है। रजोनिवृति 45 से 50 के बीच हो जाता है, पर मेरी उमर 39 साल ही थी।
मैं और मेरे पति के घरवाले एक और बच्चा चाहते थे क्योंकि दो लड़के थे और हम एक लड़की चाहते थे पर पति का सहयोग नहीं मिल रहा था।
मैंने पति से बात भी की कि अगर बच्चा चाहिए तो जल्दी करना होगा क्योंकि ये उमर बच्चे पैदा करने के हिसाब से स्त्री के लिए खतरनाक होता है।
पर पति ने कह दिया कि इसमें ज्यादा जोर नहीं देना है, अगर हुआ तो ठीक और नहीं हुआ तो कोई बात नहीं और जरुरी नहीं कि बच्ची ही पैदा हो।
तब मैंने यह बात अपनी सहेली को बताई।
हम यूँ ही कुछ दिन ऐसे ही बातें करते रहे। फ़िर एक दिन उसने मुझे बताया कि अगर ऐसी बात है, तो किसी का वीर्य ले लो।
मुझे यह बात समझ नहीं आई, तब उसने मुझे बताया कि जैसे ब्लड-बैंक होता है, वैसे ही वीर्य बैंक होता है जहाँ से किसी मर्द का वीर्य चिकित्सक सुनिश्चित कर के देता है कि बच्चा कैसा होगा, फ़िमेल होगा या मेल होगा, इस तरह अधिक गुंजायश के साथ आपकी योनि में कृत्रिम रूप से गर्भ धारण करवाते हैं।
मुझे यह तरकीब अच्छी लगी, पर पति को नहीं तो फ़िर मैंने उम्मीद करना ही बन्द कर दिया।
तभी एक दिन सहेली से बात करते हुए हम अपने सम्भोग के बारे में बात करने लगे।
उसने मुझे बताया कि बैंगलोर जैसे शहरों में सम्भोग बड़ी बात नहीं है, वहाँ आसानी से कोई भी किसी के साथ सेक्स कर सकता है क्योंकि वहाँ लोग आपस में काफी व्यस्त रहते हैं।
किसी को दूसरों के जिन्दगी में झाँकने का समय ही नहीं है। इसलिए लोग छुप कर कहीं भी किसी के साथ सम्भोग कर लेते हैं।
तभी उसने मुझे अपना राज बताया कि उसके पति काम के सिलसिले में पार्टियों में जाते हैं वहाँ तरह-तरह के लोगों से उसकी मुलाकात करवाते हैं इसलिए उसकी दोस्ती बहुत से मर्दों के साथ है और उनमें से कुछ लोगों के साथ अक्सर बाहर घूमने-फ़िरने जाती है तथा उनके साथ सम्भोग भी करती है।
इसके अलावा अगर उसे किसी दूसरे मर्द से सम्भोग करना हो तो उसका भी इन्तजाम हो जाता है।
क्योंकि ये लोग आपस में एक-दूसरे को जानते हैं इसलिए अगर इनमें से कोई साथी बदलना चाहे, तो बदल लेते हैं।
खैर.. यह तो रही उसकी बात, अब मैं अपने पर आती हूँ, इन सारी बातों को जानने के बाद मेरी सहेली ने मुझे एक तरकीब बताई।
उसने मुझसे कहा कि नेट पर देखो, बहुत से मर्द मिल सकते हैं जो सम्भोग करना चाहते हैं और सब कुछ राज रखते हैं।
पहले तो मैंने नखरे दिखाए, तब उसने कहा कि ऐसा पहली बार तो नहीं कि पराये मर्द से सम्भोग करोगी।
तब मैंने भी ‘हाँ’ कर दी, पर मुसीबत यह थी कि अब पहले की तरह मैं आजाद नहीं थी। यहाँ हर कोई मुझे जानता था, मैं किसी दूसरे मर्द से मिली, तो मेरी बदनामी होती, इसलिए मैंने मना कर दिया।
पर कुछ दिनों के बाद उसने मुझसे कहा- अगर मैं कुछ दिनों के लिए अपने पिता के घर चली जाऊँ तो काम बन सकता है।
मुझे भी पिताजी से मिले काफ़ी समय हो चुका था, सो मेरे लिए यह आसान था। तब मैंने अपनी सहेली से बात की, “कैसे होगा ये सब और किसके साथ..!”
तब उसने मुझे बताया कि उसका एक समाज सेवा केंद्र में एक दोस्त है, जो यह कर सकता है। वो दोनों हफ़्ते में एक दिन मिलते हैं। और सम्भोग भी करते हैं।
मैं उसको सुनती रही।
उसने आगे बताया- उसका भी किसी दूसरी औरत के साथ सम्भोग का मन है, इसलिए तुमसे यह बात कही। संयोग की बात यह है कि वो इस बार हमारे गांव आना चाह रहे हैं क्योंकि वो एक किताब लिख रहे हैं, जो भारत के गांवों पर है इसलिए कुछ दिन यहीं रहेंगे।
तब हमने भी समय तय कर लिया, दो हफ़्ते के बाद मेरी सहेली और उसका दोस्त आ गए मैं भी पति से कह कर पिता के घर चली गई।
बच्चों के स्कूल की वजह से उनको घर पर ही रहने दिया उनकी बड़ी माँ के साथ।
मेरे दिल में अब एक ही चीज थी कि वो कैसा होगा, क्या उसके साथ सब कुछ सहज होगा या नहीं, क्योंकि ये पहली बार था जब मैं बिना किसी को जाने सम्भोग के लिए राजी थी।
मैं पहले दिन पिताज़ी के साथ ही रही, क्योंकि बहुत दिनों के बाद मिली थी। घर पर भाई और भाभी थे, जो रात होते ही अपने कमरों में चले जाते थे।
क्योंकि गाँवों में लोग जल्दी सो जाते थे, पर पिताजी उस दिन मुझसे करीब 10 बजे तक बातें करते रहे, तो उस दिन देर से सोये।
अगले दिन मेरी सहेली अपने दोस्त के साथ मुझसे मिलने आई, उसने मुझसे मुलाकात करवाई, उसका नाम विजय था।
कद काफी लम्बा करीब 6 फिट से ज्यादा, काफी गोरा, चौड़ा सीना, मजबूत बाजू देख कर लगता नहीं था कि उम्र 54 की होगी।
बाकी मेरे घरवालों से भी मिलवाया। मैंने उनको नास्ता पानी दिया फ़िर इधर-उधर की बातें करने लगे।
कुछ देर बाद विजय ने कहा- मुझे गाँव देखना है।
इस पर मेरी सहेली ने मुझे साथ चलने को कहा, मैंने मना किया पर मेरी भाभी और भाई के कहने पर कि मेहमान हैं वो.. मैं चलने को तैयार हो गई।
जाते समय भाभी ने कहा- खाना हमारे घर पर ही खाना।
मैंने साड़ी पहन रखी थी, पर मेरी सहेली ने सलवार-कमीज। रास्ते में हम गाँव वालों से मिलते गए और सबको बताया कि वो एक समाजसेवक हैं और हमारे गाँव को देखने आए है। गाँव वालों और मेरे घरवालों को बात-व्यवहार से मुझे अब यकीन हो चला था कि हमारे साथ घूमने-फ़िरने से किसी को हम पर शक नहीं होने वाला था।
पर मेरे दिमाग में यह ख्याल था कि कहीं ये लोग मुझे अभी सम्भोग के लिए तो साथ नहीं ले जा रहे, पर मैं शर्म के मारे कुछ नहीं कह रही थी।
फ़िर सुधा ने विजय से कहा- नदी किनारे चलते हैं।
इस पर विजय बहुत खुश हुआ और अपना कैमरा निकाल कर इधर-उधर की तस्वीरें लेने लगा।
मैं बता दूँ कि हमारे गाँव की नदी चट्टानों वाली है। हम जब नदी के पास पहुँचे तो विजय रुक गया और कहा- मुझे पेशाब लगी है।
यह सुन मैंने अपना मुँह दूसरी तरफ़ कर लिया।
उसके पेशाब करने की जब आवाज आई तो मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो हैरान रह गई। वो बस एक हाथ मुझसे दूर था और अपना लिंग बाहर निकाले पेशाब कर रहा था और मेरी सहेली उसको देख कर अपने गाँव के बारे में बता रही थी। वो उससे ऐसे बात कर रही थी जैसे वो पेशाब नहीं कर रहा, बल्कि यूँ ही खड़ा है।
तभी उन दोनों ने मेरी तरफ़ देखा और मुस्कुराए और फ़िर उसने अपना लिंग हिला कर पेशाब की आखिरी बूँद गिराई और लिंग अन्दर कर लिया और हम चलने लगे।
उसी दौरान मैंने उसका लिंग देखा। पेशाब के दौरान उसने अपने लिंग के ऊपर के चमड़े को खींच लिया था, जिससे उसका सुपारा लाल और गोल दिख रहा था।
मैं अब यह सोचने पर मजबूर हो गई कि आखिर इसका ‘ये’ उत्तेजित होने पर कितना विशाल हो जाता होगा।
वे लोग आपस में बातें करते जा रहे थे। मैं ज्यादा कुछ नहीं बोल रही थी, मेरे दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था। तभी हम नदी के किनारे पहुँच गए। अब हम उसको अपने बचपन की कहानियाँ सुनाने लगे।
मेरी सहेली ने तभी उसको बताया- हम लोग बचपन में इस नदी में नंगी होकर भी नहाती थी।
इस पर विजय ने कहा- कितना मजा आएगा अगर अभी तुम दोनों नंगी होकर मेरे सामने नहाओ…हाहा…हाहा…! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
सुधा भी हँसने लगी, पर मैं तो शर्म से कुछ नहीं बोली।
अब विजय मेरी तरफ़ देखता हुआ बोला- सारिका तुम बहुत खूबसूरत हो, तुम अगर कुछ अपना ध्यान रखो तो और भी सुन्दर दिखोगी।
मैंने कहा- इस उम्र में अब क्या ध्यान रखना.. कौन है.. जो अब मुझे देखेगा !
तब सुधा ने मुझसे कहा- क्या जरूरी है कि हम दूसरों के लिए ही अपना ख्याल रखें, तुम बिल्कुल गँवारों की तरह बातें करती हो, लोग अपना ख्याल खुद के लिए भी रखते हैं !
विजय- देखो सारिका, तुममें अभी बहुत कुछ है, तुम्हारी खूबसूरती तो लाखों मर्दों को पागल कर देगी !
मेरी सहेली- हाँ.. बस अपना ये पेट अन्दर कर लो तो !”
यह कह कर वो लोग हँसने लगे, पर मुझे ये अजीब लगा क्योंकि ऐसा मुझे पहले किसी ने नहीं कहा था।
फ़िर उन लोगों ने मुझसे माफ़ी माँगी और कहा कि बस मजाक कर रहे थे।
मैं भी उनकी बातों को ज्यादा दिमाग में न लेते हुए बातें करने लगी। इधर-उधर की बातें करते काफी समय हो चुका था, तो मैंने वापस चलने को कहा।
तब विजय ने कहा- कुछ देर और रुकते हैं.. काफ़ी रोमाँटिक मौसम है।
फ़िर बात चलने लगी कि खुले में सेक्स करने का अलग ही मजा होता है।
विजय ने कहा- अगर मुझे ऐसी जगह मिले तो मैं घर के बिस्तर पर नहीं बल्कि यहीं खुले में सेक्स करूँगा !
तब मेरी सहेली ने कहा- सोचते क्या हो, सारिका तो यहीं है, कर लो इसके साथ !
तब मैंने शर्माते हुए कहा- पागल है क्या तू.. जो मन में आता है बक देती है !
उसने कहा- इसमें शर्माना क्या.. तुम दोनों को मिलवाया ही इसीलिए है !
तब विजय मेरी तरफ़ मुस्कुराते हुए देखने लगा। उसकी मुस्कुराहट में वासना झलक रही थी और मेरा सिर शर्म से झुक गया।
अब मेरी सहेली ने कहा- मौका अच्छा है.. मैं पहरेदारी करूँगी.. तुम दोनों मजे करो।
पर मैं सिर झुकाये थी, तब विजय मेरे पास आया और उसने मेरी कमर पर हाथ रख कर, मुझे चूम लिया।
मेरा पूरा बदन सिहर गया। जब मेरा कोई विरोध नहीं देखा तो उसने मेरी कमर को कस लिया और मेरे मुँह से मुँह लगा कर मुझे चूमने लगा।
मुझे तो जैसे होश ही नहीं रहा था।
पर कुछ देर बाद मैंने उससे खुद को आजाद कराया और कहा- यह जगह सही नहीं है, कहीं और करेंगे।
पर विजय ने जोर दिया- सुधा देख रही है, कोई आएगा तो हमें कह देगी !
पर मैंने उसको मना कर दिया।
तब मेरी सहेली ने कहा- रहने दो, अगर वो नहीं चाहती यहाँ.. तो कहीं और करना.. अभी अपने पास कुछ दिन भरपूर समय है।
विजय ने कहा- मेरा अब बहुत मन कर रहा है, मैं अभी सेक्स करना चाहता हूँ !
पर मैंने साफ़ मना कर दिया।
इस पर विजय ने कहा कि अब वो सुधा के साथ करेगा। इसलिए हम वहाँ से चल कर एक ऐसी जगह गए जहाँ छुपा जा सकता था।
मेरी सहेली ने मुझसे कहा- यहीं पास में रहो और अगर कोई आए तो बता देना।
अब मेरी सहेली ने अपना पजामे का नाड़ा खोला और उसे नीचे सरका कर बैठ गई। मैंने सोचा ये कौन सा तरीका है, फ़िर देखा कि वो पेशाब कर रही है और वहीं विजय अपनी पतलून नीचे करके लिंग बाहर निकाल कर अपने हाथ से हिला रहा था। मैंने जैसा देखा था अब उसका लिंग वैसा नहीं था।
अब वह काफी सख्त और लम्बा हो चुका था, करीब 8 इन्च लम्बा।
मैं हैरान थी, उसके लिंग के आकार को देख कर और अब मुझे भी कुछ होने लगा था, पर मैंने खुद पर काबू किया।
सुधा पेशाब कर रही थी, तब विजय ने झुक कर हाथ से उसके पेशाब को उसकी योनि में फ़ैला दिया। मुझे ये देख कुछ अजीब लगा पर मैं खामोशी से देख रही थी।
अब विजय ने अपने लिंग को मेरी सहेली के मुँह के आगे किया, तो उसने पहले उसके लिंग को अच्छे से चूमा, फ़िर मुँह में भर कर चूसने लगी।
विजय उसके बालों को हटा कर उसके मुख में अपना लिंग अन्दर-बाहर करने लगा।
कुछ देर बाद सुधा खड़ी हो गई और विजय ने उसको आगे की तरफ झुकने को कहा। फ़िर विजय ने झुक कर उसकी योनि को कुछ देर प्यार किया, इस दौरान सुधा भी गर्म हो चुकी थी।
कुछ देर के मुख-मैथुन के बाद विजय सीधा हो गया, पर मेरी सहेली उसी तरह एक पत्थर के सहारे झुकी रही।
विजय ने उसके दोनों पैरों को फ़ैला दिया, फ़िर अपने लिंग पर थूक लगा कर अच्छे से फ़ैला दिया और उसकी योनि में अपना लिंग लगा दिया, कुछ देर लिंग से योनि को रगड़ने के बाद धक्का दिया, लिंग अन्दर योनि में चला गया और मेरी सहेली के मुँह से एक मादक आवाज निकली- म्म्म्म्म्स्स्स्स्स्ष्ह्ह्ह्ह् !
विजय ने अब पीछे से उसके दोनों स्तनों को दबोचा और धक्के लगाने लगा।
वो लगातार 15-20 धक्के लगाता तेजी में फ़िर उसकी योनि में पूरी ताकत से पूरा लिंग घुसा देता और अपनी कमर को गोल-गोल घुमाने लगता।
सुधा भी सिसकारी लेते हुए अपने विशाल कूल्हों को उसी तरह घुमाते हुए उसका साथ देती। उनकी कामुकता धक्कों के साथ और अधिक होती जा रही थी।
अब वे लोग आपस में बातें कर रहे थे।
सुधा कह रही थी- विजय ऊपर और ऊपर हाँ.. वही… वही.. एक बार और जानू प्लीज़ एक और जोर से… आह !
विजय भी उसकी कहने के अनुसार धक्के लगा रहा था, उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं। वो हाँफ़ रहा था, पर इससे उसके धक्कों में कोई बदलाव नहीं आ रहा था।
वो तो मस्ती में उसे धक्के मार रहा था और सुधा भी उसका साथ दे रही थी।
अब विजय ने उसको कहा- चलो कुतिया बन जाओ !
तब सुधा पूरी तरह जमीन पर झुक गई और दोनों हाथ जमीन पर रख दिए।
विजय अब उसके ऊपर चला गया और उसके कमर के दोनों तरफ़ अपने पैर फ़ैला कर झुक गया और लिंग को उसकी योनि में घुसा दिया और सम्भोग करने लगा।
दोनों काफी गर्म हो चुके थे। इस बार दोनों इस तरह मेरे सामने थे कि उनके कूल्हे मेरे सामने थे। मुझे विजय का लिंग उसकी योनि में साफ़ साफ़ घुसता निकलता दिख रहा था।
अब तो उसकी योनि से चिपचिपा पानी भी दिख रहा था जो उसकी जाँघों से बहता हुआ नीचे जा रहा था।
दोनों के मुँह से अब सिसकारियाँ निकलनी तेज़ हो गई थीं।
मेरी सहेली बार-बार कह रही थी- जानू सीधे-सीधे बुर में.. ह्ह्ह्ह्ह्म और अन्दर !
करीब 30 मिनट के इस खेल के साथ विजय 10-12 जोरदार धक्कों के साथ शांत हो गया और उसके ऊपर ही हाँफता रहा, फ़िर अलगहुआ।
जब उससे अलग हुआ तो उसकी योनि से विजय का वीर्य बह निकला, जिसे बाद में उसने साफ़ किया और पजामा पहन लिया। अब हम वापस आने लगे।
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नमस्कार मेरा नाम सारिका है। मेरे 3 बच्चे हैं, जिनमें से तीसरा बच्चा अभी 5 साल का है।
शादी के बाद मेरी जिन्दगी में नाम मात्र का सम्भोग और रतिक्रिया रह गई थी। दूसरे बच्चे के बाद तो स्थिति और भी खराब हो गई है इसलिए मुझे जब मौका मिला, तो मैंने दूसरों के साथ सम्भोग कर लिया।
यh इसलिए मुमकिन हुआ, क्योंकि मैं उड़ीसा में थी और मेरे पति काम पर चले जाते थे। उसी दौरान मुझे मौका मिल जाया करता था। उड़ीसा में मैं 13 साल रही और इस दौरान मैंने अपने पति के अलावा 4 और लोगों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए जिनमें से अमर के साथ लम्बे समय तक सहवास किया।
बाकी में से एक के साथ 2 साल तक, एक के साथ 7 महीने और एक के साथ 3 दिन तक शारीरिक सम्बन्ध रखे, पर मेरे लिए मुसीबत तब हो गई, जब पति का तबादला झारखण्ड हो गया।
मेरे पति ने मुझे बच्चों के साथ गांव मे रहने को कहा क्योंकि रांची से एक या दो दिन में घर आ-जा सकते थे।
उनका आना मेरी रात्रि के अकेलेपन को दूर नहीं करता था।
मेरी उमर अब 39 वर्ष की होने को थी और पता नहीं क्यों, मेरी काम वासना और भी ज्यादा होने लगी थी।
उसी बीच पति ने बच्चों के लिए एक कंप्यूटर खरीदा। मेरा एक भतीजा आया हुआ था, तो उसने मुझे इंटरनेट पर बात करना सिखा दिया।
फ़िर मेरी एक सहेली जिसका नाम सुधा है, जो बैंगलोर में रहती है, उससे मैं बात करने लगी।
बच्चे जब स्कूल चले जाते, तो हम दोनों खूब लिख-लिख कर बातें करते।
हम बचपन की सहेलियाँ हैं इसलिए हम खुल कर बातें करते थे। इसलिए मैंने उसे ये सब बातें बता दीं।
उसने मुझे बताया कि शायद मैं रजोनिवृति की तरफ़ जा रही हूँ इसलिए मुझे काम की इच्छा अधिक हो रही है। रजोनिवृति 45 से 50 के बीच हो जाता है, पर मेरी उमर 39 साल ही थी।
मैं और मेरे पति के घरवाले एक और बच्चा चाहते थे क्योंकि दो लड़के थे और हम एक लड़की चाहते थे पर पति का सहयोग नहीं मिल रहा था।
मैंने पति से बात भी की कि अगर बच्चा चाहिए तो जल्दी करना होगा क्योंकि ये उमर बच्चे पैदा करने के हिसाब से स्त्री के लिए खतरनाक होता है।
पर पति ने कह दिया कि इसमें ज्यादा जोर नहीं देना है, अगर हुआ तो ठीक और नहीं हुआ तो कोई बात नहीं और जरुरी नहीं कि बच्ची ही पैदा हो।
तब मैंने यह बात अपनी सहेली को बताई।
हम यूँ ही कुछ दिन ऐसे ही बातें करते रहे। फ़िर एक दिन उसने मुझे बताया कि अगर ऐसी बात है, तो किसी का वीर्य ले लो।
मुझे यह बात समझ नहीं आई, तब उसने मुझे बताया कि जैसे ब्लड-बैंक होता है, वैसे ही वीर्य बैंक होता है जहाँ से किसी मर्द का वीर्य चिकित्सक सुनिश्चित कर के देता है कि बच्चा कैसा होगा, फ़िमेल होगा या मेल होगा, इस तरह अधिक गुंजायश के साथ आपकी योनि में कृत्रिम रूप से गर्भ धारण करवाते हैं।
मुझे यह तरकीब अच्छी लगी, पर पति को नहीं तो फ़िर मैंने उम्मीद करना ही बन्द कर दिया।
तभी एक दिन सहेली से बात करते हुए हम अपने सम्भोग के बारे में बात करने लगे।
उसने मुझे बताया कि बैंगलोर जैसे शहरों में सम्भोग बड़ी बात नहीं है, वहाँ आसानी से कोई भी किसी के साथ सेक्स कर सकता है क्योंकि वहाँ लोग आपस में काफी व्यस्त रहते हैं।
किसी को दूसरों के जिन्दगी में झाँकने का समय ही नहीं है। इसलिए लोग छुप कर कहीं भी किसी के साथ सम्भोग कर लेते हैं।
तभी उसने मुझे अपना राज बताया कि उसके पति काम के सिलसिले में पार्टियों में जाते हैं वहाँ तरह-तरह के लोगों से उसकी मुलाकात करवाते हैं इसलिए उसकी दोस्ती बहुत से मर्दों के साथ है और उनमें से कुछ लोगों के साथ अक्सर बाहर घूमने-फ़िरने जाती है तथा उनके साथ सम्भोग भी करती है।
इसके अलावा अगर उसे किसी दूसरे मर्द से सम्भोग करना हो तो उसका भी इन्तजाम हो जाता है।
क्योंकि ये लोग आपस में एक-दूसरे को जानते हैं इसलिए अगर इनमें से कोई साथी बदलना चाहे, तो बदल लेते हैं।
खैर.. यह तो रही उसकी बात, अब मैं अपने पर आती हूँ, इन सारी बातों को जानने के बाद मेरी सहेली ने मुझे एक तरकीब बताई।
उसने मुझसे कहा कि नेट पर देखो, बहुत से मर्द मिल सकते हैं जो सम्भोग करना चाहते हैं और सब कुछ राज रखते हैं।
पहले तो मैंने नखरे दिखाए, तब उसने कहा कि ऐसा पहली बार तो नहीं कि पराये मर्द से सम्भोग करोगी।
तब मैंने भी ‘हाँ’ कर दी, पर मुसीबत यह थी कि अब पहले की तरह मैं आजाद नहीं थी। यहाँ हर कोई मुझे जानता था, मैं किसी दूसरे मर्द से मिली, तो मेरी बदनामी होती, इसलिए मैंने मना कर दिया।
पर कुछ दिनों के बाद उसने मुझसे कहा- अगर मैं कुछ दिनों के लिए अपने पिता के घर चली जाऊँ तो काम बन सकता है।
मुझे भी पिताजी से मिले काफ़ी समय हो चुका था, सो मेरे लिए यह आसान था। तब मैंने अपनी सहेली से बात की, “कैसे होगा ये सब और किसके साथ..!”
तब उसने मुझे बताया कि उसका एक समाज सेवा केंद्र में एक दोस्त है, जो यह कर सकता है। वो दोनों हफ़्ते में एक दिन मिलते हैं। और सम्भोग भी करते हैं।
मैं उसको सुनती रही।
उसने आगे बताया- उसका भी किसी दूसरी औरत के साथ सम्भोग का मन है, इसलिए तुमसे यह बात कही। संयोग की बात यह है कि वो इस बार हमारे गांव आना चाह रहे हैं क्योंकि वो एक किताब लिख रहे हैं, जो भारत के गांवों पर है इसलिए कुछ दिन यहीं रहेंगे।
तब हमने भी समय तय कर लिया, दो हफ़्ते के बाद मेरी सहेली और उसका दोस्त आ गए मैं भी पति से कह कर पिता के घर चली गई।
बच्चों के स्कूल की वजह से उनको घर पर ही रहने दिया उनकी बड़ी माँ के साथ।
मेरे दिल में अब एक ही चीज थी कि वो कैसा होगा, क्या उसके साथ सब कुछ सहज होगा या नहीं, क्योंकि ये पहली बार था जब मैं बिना किसी को जाने सम्भोग के लिए राजी थी।
मैं पहले दिन पिताज़ी के साथ ही रही, क्योंकि बहुत दिनों के बाद मिली थी। घर पर भाई और भाभी थे, जो रात होते ही अपने कमरों में चले जाते थे।
क्योंकि गाँवों में लोग जल्दी सो जाते थे, पर पिताजी उस दिन मुझसे करीब 10 बजे तक बातें करते रहे, तो उस दिन देर से सोये।
अगले दिन मेरी सहेली अपने दोस्त के साथ मुझसे मिलने आई, उसने मुझसे मुलाकात करवाई, उसका नाम विजय था।
कद काफी लम्बा करीब 6 फिट से ज्यादा, काफी गोरा, चौड़ा सीना, मजबूत बाजू देख कर लगता नहीं था कि उम्र 54 की होगी।
बाकी मेरे घरवालों से भी मिलवाया। मैंने उनको नास्ता पानी दिया फ़िर इधर-उधर की बातें करने लगे।
कुछ देर बाद विजय ने कहा- मुझे गाँव देखना है।
इस पर मेरी सहेली ने मुझे साथ चलने को कहा, मैंने मना किया पर मेरी भाभी और भाई के कहने पर कि मेहमान हैं वो.. मैं चलने को तैयार हो गई।
जाते समय भाभी ने कहा- खाना हमारे घर पर ही खाना।
मैंने साड़ी पहन रखी थी, पर मेरी सहेली ने सलवार-कमीज। रास्ते में हम गाँव वालों से मिलते गए और सबको बताया कि वो एक समाजसेवक हैं और हमारे गाँव को देखने आए है। गाँव वालों और मेरे घरवालों को बात-व्यवहार से मुझे अब यकीन हो चला था कि हमारे साथ घूमने-फ़िरने से किसी को हम पर शक नहीं होने वाला था।
पर मेरे दिमाग में यह ख्याल था कि कहीं ये लोग मुझे अभी सम्भोग के लिए तो साथ नहीं ले जा रहे, पर मैं शर्म के मारे कुछ नहीं कह रही थी।
फ़िर सुधा ने विजय से कहा- नदी किनारे चलते हैं।
इस पर विजय बहुत खुश हुआ और अपना कैमरा निकाल कर इधर-उधर की तस्वीरें लेने लगा।
मैं बता दूँ कि हमारे गाँव की नदी चट्टानों वाली है। हम जब नदी के पास पहुँचे तो विजय रुक गया और कहा- मुझे पेशाब लगी है।
यह सुन मैंने अपना मुँह दूसरी तरफ़ कर लिया।
उसके पेशाब करने की जब आवाज आई तो मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो हैरान रह गई। वो बस एक हाथ मुझसे दूर था और अपना लिंग बाहर निकाले पेशाब कर रहा था और मेरी सहेली उसको देख कर अपने गाँव के बारे में बता रही थी। वो उससे ऐसे बात कर रही थी जैसे वो पेशाब नहीं कर रहा, बल्कि यूँ ही खड़ा है।
तभी उन दोनों ने मेरी तरफ़ देखा और मुस्कुराए और फ़िर उसने अपना लिंग हिला कर पेशाब की आखिरी बूँद गिराई और लिंग अन्दर कर लिया और हम चलने लगे।
उसी दौरान मैंने उसका लिंग देखा। पेशाब के दौरान उसने अपने लिंग के ऊपर के चमड़े को खींच लिया था, जिससे उसका सुपारा लाल और गोल दिख रहा था।
मैं अब यह सोचने पर मजबूर हो गई कि आखिर इसका ‘ये’ उत्तेजित होने पर कितना विशाल हो जाता होगा।
वे लोग आपस में बातें करते जा रहे थे। मैं ज्यादा कुछ नहीं बोल रही थी, मेरे दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था। तभी हम नदी के किनारे पहुँच गए। अब हम उसको अपने बचपन की कहानियाँ सुनाने लगे।
मेरी सहेली ने तभी उसको बताया- हम लोग बचपन में इस नदी में नंगी होकर भी नहाती थी।
इस पर विजय ने कहा- कितना मजा आएगा अगर अभी तुम दोनों नंगी होकर मेरे सामने नहाओ…हाहा…हाहा…! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
सुधा भी हँसने लगी, पर मैं तो शर्म से कुछ नहीं बोली।
अब विजय मेरी तरफ़ देखता हुआ बोला- सारिका तुम बहुत खूबसूरत हो, तुम अगर कुछ अपना ध्यान रखो तो और भी सुन्दर दिखोगी।
मैंने कहा- इस उम्र में अब क्या ध्यान रखना.. कौन है.. जो अब मुझे देखेगा !
तब सुधा ने मुझसे कहा- क्या जरूरी है कि हम दूसरों के लिए ही अपना ख्याल रखें, तुम बिल्कुल गँवारों की तरह बातें करती हो, लोग अपना ख्याल खुद के लिए भी रखते हैं !
विजय- देखो सारिका, तुममें अभी बहुत कुछ है, तुम्हारी खूबसूरती तो लाखों मर्दों को पागल कर देगी !
मेरी सहेली- हाँ.. बस अपना ये पेट अन्दर कर लो तो !”
यह कह कर वो लोग हँसने लगे, पर मुझे ये अजीब लगा क्योंकि ऐसा मुझे पहले किसी ने नहीं कहा था।
फ़िर उन लोगों ने मुझसे माफ़ी माँगी और कहा कि बस मजाक कर रहे थे।
मैं भी उनकी बातों को ज्यादा दिमाग में न लेते हुए बातें करने लगी। इधर-उधर की बातें करते काफी समय हो चुका था, तो मैंने वापस चलने को कहा।
तब विजय ने कहा- कुछ देर और रुकते हैं.. काफ़ी रोमाँटिक मौसम है।
फ़िर बात चलने लगी कि खुले में सेक्स करने का अलग ही मजा होता है।
विजय ने कहा- अगर मुझे ऐसी जगह मिले तो मैं घर के बिस्तर पर नहीं बल्कि यहीं खुले में सेक्स करूँगा !
तब मेरी सहेली ने कहा- सोचते क्या हो, सारिका तो यहीं है, कर लो इसके साथ !
तब मैंने शर्माते हुए कहा- पागल है क्या तू.. जो मन में आता है बक देती है !
उसने कहा- इसमें शर्माना क्या.. तुम दोनों को मिलवाया ही इसीलिए है !
तब विजय मेरी तरफ़ मुस्कुराते हुए देखने लगा। उसकी मुस्कुराहट में वासना झलक रही थी और मेरा सिर शर्म से झुक गया।
अब मेरी सहेली ने कहा- मौका अच्छा है.. मैं पहरेदारी करूँगी.. तुम दोनों मजे करो।
पर मैं सिर झुकाये थी, तब विजय मेरे पास आया और उसने मेरी कमर पर हाथ रख कर, मुझे चूम लिया।
मेरा पूरा बदन सिहर गया। जब मेरा कोई विरोध नहीं देखा तो उसने मेरी कमर को कस लिया और मेरे मुँह से मुँह लगा कर मुझे चूमने लगा।
मुझे तो जैसे होश ही नहीं रहा था।
पर कुछ देर बाद मैंने उससे खुद को आजाद कराया और कहा- यह जगह सही नहीं है, कहीं और करेंगे।
पर विजय ने जोर दिया- सुधा देख रही है, कोई आएगा तो हमें कह देगी !
पर मैंने उसको मना कर दिया।
तब मेरी सहेली ने कहा- रहने दो, अगर वो नहीं चाहती यहाँ.. तो कहीं और करना.. अभी अपने पास कुछ दिन भरपूर समय है।
विजय ने कहा- मेरा अब बहुत मन कर रहा है, मैं अभी सेक्स करना चाहता हूँ !
पर मैंने साफ़ मना कर दिया।
इस पर विजय ने कहा कि अब वो सुधा के साथ करेगा। इसलिए हम वहाँ से चल कर एक ऐसी जगह गए जहाँ छुपा जा सकता था।
मेरी सहेली ने मुझसे कहा- यहीं पास में रहो और अगर कोई आए तो बता देना।
अब मेरी सहेली ने अपना पजामे का नाड़ा खोला और उसे नीचे सरका कर बैठ गई। मैंने सोचा ये कौन सा तरीका है, फ़िर देखा कि वो पेशाब कर रही है और वहीं विजय अपनी पतलून नीचे करके लिंग बाहर निकाल कर अपने हाथ से हिला रहा था। मैंने जैसा देखा था अब उसका लिंग वैसा नहीं था।
अब वह काफी सख्त और लम्बा हो चुका था, करीब 8 इन्च लम्बा।
मैं हैरान थी, उसके लिंग के आकार को देख कर और अब मुझे भी कुछ होने लगा था, पर मैंने खुद पर काबू किया।
सुधा पेशाब कर रही थी, तब विजय ने झुक कर हाथ से उसके पेशाब को उसकी योनि में फ़ैला दिया। मुझे ये देख कुछ अजीब लगा पर मैं खामोशी से देख रही थी।
अब विजय ने अपने लिंग को मेरी सहेली के मुँह के आगे किया, तो उसने पहले उसके लिंग को अच्छे से चूमा, फ़िर मुँह में भर कर चूसने लगी।
विजय उसके बालों को हटा कर उसके मुख में अपना लिंग अन्दर-बाहर करने लगा।
कुछ देर बाद सुधा खड़ी हो गई और विजय ने उसको आगे की तरफ झुकने को कहा। फ़िर विजय ने झुक कर उसकी योनि को कुछ देर प्यार किया, इस दौरान सुधा भी गर्म हो चुकी थी।
कुछ देर के मुख-मैथुन के बाद विजय सीधा हो गया, पर मेरी सहेली उसी तरह एक पत्थर के सहारे झुकी रही।
विजय ने उसके दोनों पैरों को फ़ैला दिया, फ़िर अपने लिंग पर थूक लगा कर अच्छे से फ़ैला दिया और उसकी योनि में अपना लिंग लगा दिया, कुछ देर लिंग से योनि को रगड़ने के बाद धक्का दिया, लिंग अन्दर योनि में चला गया और मेरी सहेली के मुँह से एक मादक आवाज निकली- म्म्म्म्म्स्स्स्स्स्ष्ह्ह्ह्ह् !
विजय ने अब पीछे से उसके दोनों स्तनों को दबोचा और धक्के लगाने लगा।
वो लगातार 15-20 धक्के लगाता तेजी में फ़िर उसकी योनि में पूरी ताकत से पूरा लिंग घुसा देता और अपनी कमर को गोल-गोल घुमाने लगता।
सुधा भी सिसकारी लेते हुए अपने विशाल कूल्हों को उसी तरह घुमाते हुए उसका साथ देती। उनकी कामुकता धक्कों के साथ और अधिक होती जा रही थी।
अब वे लोग आपस में बातें कर रहे थे।
सुधा कह रही थी- विजय ऊपर और ऊपर हाँ.. वही… वही.. एक बार और जानू प्लीज़ एक और जोर से… आह !
विजय भी उसकी कहने के अनुसार धक्के लगा रहा था, उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं। वो हाँफ़ रहा था, पर इससे उसके धक्कों में कोई बदलाव नहीं आ रहा था।
वो तो मस्ती में उसे धक्के मार रहा था और सुधा भी उसका साथ दे रही थी।
अब विजय ने उसको कहा- चलो कुतिया बन जाओ !
तब सुधा पूरी तरह जमीन पर झुक गई और दोनों हाथ जमीन पर रख दिए।
विजय अब उसके ऊपर चला गया और उसके कमर के दोनों तरफ़ अपने पैर फ़ैला कर झुक गया और लिंग को उसकी योनि में घुसा दिया और सम्भोग करने लगा।
दोनों काफी गर्म हो चुके थे। इस बार दोनों इस तरह मेरे सामने थे कि उनके कूल्हे मेरे सामने थे। मुझे विजय का लिंग उसकी योनि में साफ़ साफ़ घुसता निकलता दिख रहा था।
अब तो उसकी योनि से चिपचिपा पानी भी दिख रहा था जो उसकी जाँघों से बहता हुआ नीचे जा रहा था।
दोनों के मुँह से अब सिसकारियाँ निकलनी तेज़ हो गई थीं।
मेरी सहेली बार-बार कह रही थी- जानू सीधे-सीधे बुर में.. ह्ह्ह्ह्ह्म और अन्दर !
करीब 30 मिनट के इस खेल के साथ विजय 10-12 जोरदार धक्कों के साथ शांत हो गया और उसके ऊपर ही हाँफता रहा, फ़िर अलगहुआ।
जब उससे अलग हुआ तो उसकी योनि से विजय का वीर्य बह निकला, जिसे बाद में उसने साफ़ किया और पजामा पहन लिया। अब हम वापस आने लगे।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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