Friday, September 19, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--33

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--33

 मैं: आखिर क्यों तुम अपनी जान देने पे तुली हो?

माधुरी: सब से पहले मुझे माफ़ कर दो... मैं दो दिन स्कूल आके आपका इन्तेजार नहीं कर पाई| दरअसल तबियत अचानक इतनी जल्दी ख़राब हो जाएगी मुझे इसका एहसास नहीं था| आप भी सोच रहे होगे की कैसी लड़की है जो ....

मैं: (उसकी बात काटते हुए) प्लीज !!! ऐसा मत करो !!! क्यों मुझे पाप का भागी बना रही हो| ये कैसी जिद्द है... तुम्हें लगता है की मैं इस सब से पिघल जाऊंगा|

माधुरी: मेरी तो बस एक छोटी से जिद्द है... जिसे आप बड़ी आसानी से पूरा कर सकते हो पर करना नहीं चाहते|

मैं: वो छोटी सी जिद्द मेरी जिंदगी तबाह कर देगी... मैं जानता हूँ की तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है, तुम उस जिद्द के जरिये मुझे पूरे गाँव में बदनाम कर दोगी|

माधुरी: (मुझे एक पर्ची देते हुए) ये लो इसे पढ़ लो!

मैंने वो पर्ची खोल के देखि तो उसमें जो लिखा था वो इस प्रकार है:

"आप मुझगे गलत मत समझिए, मेरा इरादा आपको बदनाम करने का बिलकुल नहीं है| मैं सिर्फ आपको आपने कौमार्य भेंट करना चाहती हूँ.... इसके आलावा मेरा कोई और उद्देश्य नहीं है| अगर उस दौरान मैं गर्भवती भी हो गई तो इसमें आपकी कोई गलती नहीं होगी| अगर आपने मेरी बात नहीं मानी तो मैं अपनी जान दे दूंगी!!! "

माधुरी: मैं ये लिखित में आपको इसलिए दे रही हूँ ताकि आपको तसल्ली रहे की मैं आपको आगे चल के ब्लैकमेल नहीं करुँगी| इससे ज्यादा मैं आपको और संतुष्ट नहीं कर सकती| प्लीज मैं अब और इस तरह जिन्दा नहीं रह सकती| अगर अब भी आपका फैसला नहीं बदला तो आप मुझे थोड़ा सा ज़हर ला दो| उसे खा के मैं आत्मा हत्या कर लुंगी| आप पर कोई नाम नहीं आएगा... कम से कम आप इतना तो कर ही सकते हो|

मैं: तुम पागल हो गई हो... अपने होश खो दिए हैं तुमने| मैं उस लड़की से धोका कैसे कर सकता हूँ?

माधुरी: धोका कैसे ? आपको रीतिका को ये बात बताने की क्या जर्रूरत है?

मैं: तो मैं अपनी अंतरात्मा को क्या जवाब दूँ? प्लीज मुझे ऐसी हालत में मत डालो की ना तो मैं जी सकूँ और ना मर सकूँ|

माधुरी: फैसला आपका है.... या तो मेरी इच्छा पूरी करो या मुझे मरने दो?

मैं: अच्छा मुझे कुछ सोचने का समय तो दो?

माधुरी: समय ही तो नहीं है मेरे पास देने के लिए| रेत की तरह समय आपकी मुट्ठी से फिसलता जा रहा है|

मेरे पास अब कोई चारा नहीं था, सिवाए इसके की मैं उसकी इस इच्छा को पूरा करूँ|

मैं: ठीक है.... पर मेरी कुछ शर्तें हैं| ससे पहली शर्त; तुम्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ होना होगा| क्योंकि अभी तुम्हारी हालत ठीक नहीं है, तुमने पिछले तीन दिनों से कुछ खाया नहीं है और तुम काफी कमजोर भी लग रही हो|

माधुरी: मंजूर है|

मैं: दूसरी शर्त, मैं ये सब सिर्फ मजबूरी में कर रहा हूँ! ये सिर्फ एक बार के लिए है और तुम दुबारा मेरे पीछे इस सब के लिए नहीं पड़ोगी?

माधुरी: मंजूर है|

मैं: और आखरी शर्त, जगह और दिन मैं चुनुँगा?

माधुरी: मंजूर है|

मैं: और हाँ मुझसे प्यार की उम्मीद मत करना... मैं तुम्हें प्यार नहीं करता और ना कभी करूँगा| ये सब इसीलिए है की तुमने जो आत्महत्या की तलवार मेरे सर पे लटका राखी है उससे मैं अपनी गर्दन बचा सकूँ| बाकी रसिका भाभी को तुम क्या बोलोगी, की हम क्या बात कर रहे थे?

माधुरी: आप उन्हें अंदर बुला दो|

मैंने बहार झाँका तो रसिका भाभी आँगन में चारपाई पे सर लटका के बैठी थीं| मैंने दरवाजे से ही भाभी को आवाज मारी.... भाभी घर के अंदर आईं;

रसिका भाभी: हाँ बोलो ....क्या हुआ? मेरा मतलब की क्या बात हुई तुम दोनों के बीच?

माधुरी: मैं बस इन्हें अपने दिल का हाल सुनाना चाहती थी|

मैं: और मैं माधुरी को समझा रहा था की वो इस तरह से खुद को और अपने परिवार को परेशान करना बंद कर दे| वैसे भी इसकी शादी जल्द ही होने वाली है तो ये सब करने का क्या फायदा|

बात को खत्म करते हुए मैं बहार चल दिया| उसके बाद दोनों में क्या बात हुई मुझे नहीं पटा.. पर असल में अब मेरा दिमाग घूम रहा था... मैं भौजी को क्या कहूँ? और अगर मैं उन्हें ये ना बताऊँ तो ये उनके साथ विश्वासघात होगा!!!!
शकल पे बारह बजे थे... गर्मी ज्यादा थी ... पसीने से तरबतर मैं घर पहुंचा| मैं लड़खड़ाते हुए क़दमों से छप्पर की ओर बढ़ा और अचानक से चक्कर खा के गिर गया! भौजी ने मुझे गिरते हुए देखा तो भागती हुई मेरे पास आईं ... उसके बाद जब मेरी आँख खुली तो मेरा सर भौजी की गोद में था और वो पंखे से मुझे हवा कर रहीं थी|


 मुझे बेहोश हुए करीब आधा घंटा ही हुआ था... मैं आँखें मींचते हुए उठा;

भौजी: क्या हुआ था आपको?

मैं: कुछ नहीं... चक्कर आ गया था|

भौजी: आप ने तो मेरी जान ही निकाल दी थी! डॉक्टर के जाना है?

मैं: नहीं... मैं अब ठीक महसूस कर रहा हूँ|

दोपहर से ले के रात तक मैं गुम-सुम रहा... किसी से कोई बोल-चाल नहीं, यहाँ तक की नेहा से भी बात नहीं कर रहा था| रात्रि भोज के बाद मैं अपने बिस्तर पे लेटा तभी नेहा मेरे पास आ गई| वो मेरी बगल में लेती और कहने लगी; "चाचू कहानी सुनाओ ना|" अब मैं उसकी बात कैसे टालता ... उसे कहानी सुनाने लगा| धीरे-धीरे वो सो गई| मेरी नींद अब भी गायब थी.... रह-रह के मन में माधुरी की इच्छा पूरी करने की बात घूम रही थी| मैंने दुरी ओर करवट लेनी चाही पर नेहा ने मुझे जकड़ रखा था अगर मैं करवट लेता तो वो जग जाती| इसलिए मैं सीधा ही लेटा रहा.. कुछ समय बाद भौजी मेरे पास आके बैठ गईं ओर मेरी उदासी का कारन पूछने लगी;

भौजी: आपको हुआ क्या है? क्यों आप मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रहे हो? जर्रूर आपके और माधुरी के बीच कुछ हुआ है?

मैं: कुछ ख़ास नहीं ... वाही उसका जिद्द करना|

भौजी: वो फिर उसी बात के लिए जिद्द कर रही है ना?

मैं: हाँ ...

भौजी: तो आपने क्या कहा?

मैं: मन अब भी ना ही कहता है| (मैंने बात को घुमा के कहा.. परन्तु सच कहा|)
खेर छोडो इन बातों को... आप बहुत खुश दिख रहे हो आज कल?

भौजी: (अपने पेट पे हाथ रखते हुए) वो मुझे....

मैं: रहने दो.. (मैंने उनके पेट को स्पर्श किारते हुए कहा) मैं समझ गया क्या बात है| अच्छा बताओ की अगर लड़का हुआ तो?

भौजी: (मुस्कुराते हुए) तो मैं खुश होंगी!

मैं: और अगर लड़की हुई तो ?

भौजी: मैं ज्यादा खुश होंगी? क्योंकि मैं लड़की ही चाहती हूँ....

मैं: (बात बीच में काटते हुए) और अगर जुड़वाँ हुए तो?

भौजी: हाय राम!!! मैं ख़ुशी से मर जाऊँगी!!!

मैं: (गुस्सा दिखाते हुए) आपने फिर मरने मारने की बात की?

भौजी: (कान पकड़ते हुए) ओह सॉरी जी!

मैं: एक बात बताओ आपने अभी तक नेहा को स्कूल में दाखिल क्यों नहीं कराया?

भौजी: सच कहूँ तो मैंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं ... मेरा ध्यान तो केवल आप पे ही था| अगर आप नहीं होते तो मैं कब की आत्महत्या कर चुकी होती| आपके प्यार ने ही तो मुझे जीने का सहारा दिया है|

मैं: मैं समझ सकता हूँ... मैं कल ही बड़के दादा से बात करता हूँ और कल ही नेहा को स्कूल में दाखिल करा देंगे|

भौजी: जैसे आप ठीक समझो... आखिर आपकी लाड़ली जो है|


 अभी हमारी गप्पें चल रहीं थी की पीछे से पिताजी की आवाज आई;

पिताजी: क्यों भई सोना नहीं है तुम दोनों ने? सारी रात गप्पें लदानी है क्या ?

भौजी ने जैसे ही पिताजी की बात सुनी उन्होंने तुरंत घूँघट ओढ़ लिया और उठ के खड़ी हो गईं| मैं खुश था की काम से काम पिताजी ने मुझसे बात तो की वरना जबसे मैंने रसिका भाभी से बहस बाजी की थी तब से तो वो मुझसे बोल ही नहीं रहे थे|

मैं: पिताजी आप अगर जाग ही रहे हो तो मुझे आपसे एक बात करनी थी|

पिताजी: हाँ बोलो

मैं उठ के पिताजी की चारपाई पे बैठ गया.. मेरे साथ-साथ भौजी भी पिताजी के चारपाई के सिराहने घूँघट काढ़े खड़ी हो गईं|

मैं: पिताजी, मैं भौजी से पूछ रहा था की उन्होंने नेहा को अब तक स्कूल में दाखिल नहीं करवाया? चन्दर भैया का तो ध्यान ही नहीं है इस बात पे, तो क्या आप बड़के दादा से इस बारे में बात करेंगे? शिक्षा कितनी जर्रुरी होती है ये मैंने आप से ही सीखा है तो फिर हमारे ही खानदान में लड़कियां क्यों वंचित रहे?

पिताजी: तू फ़िक्र ना कर... मैं कल भैया को मना भी लूंगा और तू खुद जाके मास्टर साहब से बात करके कल ही दाखिला भी करवा दिओ| दाखिले के लिए तू अपनी भाभी को साथ ले जाना ठीक है?

मैं: जी... अब आप सो जाइये शुभ रात्रि!!!

पिताजी: शुभ रात्रि तुम भी जाके सो जाओ सुबह जल्दी उठना है ना?

मैं और भौजी ख़ुशी-ख़ुशी वापस मेरी हारपाई पे आ गए;

मैं: अब तो आप खुश हो ना?

भौजी: हाँ... अभी आप सो जाओ मैं आपको बाद में उठाती हूँ?

मैं: नहीं... आज नहीं सुबह जल्दी भी तो उठना है|

भौजी: तो मेरा क्या? मुझे नींद कैसे आएगी? आपके बिना मुझे नींद नहीं आती|

मैं: अव्व्व् कल नेहा का एडमिशन हो जाए फिर आप जो कहोगे वो करूँगा पर अभी तो आप मेरी बात मान लो|

भौजी: ठीक है पर अब आप कोई चिंता मत करना और आराम से सो जाना|

भौजी उठ के चलीं गईं पर मुझे नींद कहाँ आने वाली थी... मुझे तो सबसे ज्यादा चिंता माधुरी की थी| उसे पूरी तरह स्वस्थ होने में अधिक से अधिक दो दिन लगते ... और मुझे इसी बात की चिंता थी| मैं उसका सामना कैसे करूँ? और सबसे बड़ी बात मैं भौजी को धोका नहीं देना चाहता था.... कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था अगर मैं भाग भी जाता तो भी समस्या हल होती हुई नहीं नजर आ रही थी| क्या करूँ? ... क्या करूँ? ..... मैंने एक बार अपनी जेब में रखी पर्ची फिर से निकाली और उसे पड़ा ...सिवाय उसकी बात मैंने के मेरे पास कोई और चारा नहीं था| ठीक है तो अब सबसे पहले मुझे जगह का जुगाड़ करना है... हमारे अड़े घर के पीछे ही एक घर था| मैंने गौर किया की वो घर हमेशा बंद ही रहता था... अब इस घर के बारे में जानकारी निकालना जर्रुरी था| दुरी बात ये की मुझे समय तय करना था? दिन के समय बहुत खतरा था... और रात्रि में मैं तो घर से निकल जाता पर माधुरी कैसे आती?

जब किसी काम को करने की आपके दिल की इच्छा ना हो तो दिमाग भी काम करना बंद कर देता है| यही कारन था की मुझे ज्यादा आईडिया नहीं सूझ रहे थे|


 अगले दिन सुबह मैं जल्दी उठा... या ये कहूँ की रात में सोया ही नहीं| फ्रेश हो के तैयार हो गया| हमेशा की तरह चन्दर भैया और अजय भैया खेत जा चुके थे| घर पे केवल माँ-पिताजी, रसिका भाभी, भौजी रो बड़के दादा और अब्द्की अम्मा ही थे| मैं जब चाय पीने पहुंचा तो बड़की अम्मा मेरी तारीफ करने लगी की इस घर में केवल मैं ही हूँ जिसे भौजी की इतनी चिंता है| पता नहीं क्यों पर मेरे कान लाल हो रहे थे| खेर इस बात पे सब राजी थे की नेहा का दाखिल स्कूल में करा देना चाहिए तो अब बारी मेरी थी की मैं नेहा को स्कूल ले जाऊँ| मैंने भौजी को जल्दी से तैयार हो जाने के लिए कहा और मैं और नेहा चारपाई पे बैठ के खेलने लगे|

करीब आधे घंटे बाद भौजी तैयार हो के आईं... हाय क्या लग रहीं थी वो! पीली साडी .... माँग में सिन्दूर.... होठों पे लाली... उँगलियों में लाल नेल पोलिश... पायल की छम-छम आवाज...और सर पे पल्लू.... हाय आज तो भौजी ने क़त्ल कर दिया था मेरा!!!! सच में इतनी सुन्दर लग रहीं थी वो| वो मेरे पास आके खड़ी हो गईं;

भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो आप?

मैं: कुछ नहीं.... बस ऐसे ही आपकी सुंदरता को निहार रहा था| कसम से आज आप कहर ढा रहे हो|

भौजी: आप भी ना... चलो जल्दी चलो आके मुझे वापस चुलाह-चौक सम्भालना है| आपकी रसिका भाभी तो सुबह से ही कहीं गयब हैं|

रास्ते भर मेरे पेट में तितलियाँ उड़ती रहीं| ऊपर से भौजी ने डेढ़ हाथ का घूँघट काढ़ा हुआ था| हम स्कूल पहुंचे, वो स्कूल कुछ बड़ा नहीं था बस प्राइमरी स्कूल जैसा था... तीन कमरे और कुछ नहीं... ना ही छात्रों के बैठने के लिए बेन्चें ना कुर्सी ... ना टेबल... पंखे तो भूल ही जाओ| केवल एक ही कुर्सी थी जिस पे मास्टर साहब बैठ के पढ़ा रहे थे| मैं पहली कक्षा में घुसा और हेडमास्टर साहब के लिए पूछा तो मास्टर जी ने कहा की वो आखरी वाले कमरे में हैं| हम उस कमरे की ओर बढ़ लिए... नेहा मेरी गोद में थी ओर भौजी ठीक मेरे बराबर में चल रहीं थी| कमरे के बहार पहुँच के मैंने खट-खटया.. मास्टर जी ने हमें अंदर बुलाया| अंदर एक मेज था जो मजबूत नहीं लग रहा था, और बेंत की तीन कुर्सियां|

हम उन्हीं कुर्सियों पे बैठ गए और बातों का सिल-सिला शुरू हुआ;

मैं: HELLO SIR !

हेडमास्टर साहब: हेलो ... देखिये मैं आपको पहले ही बता दूँ की मेरी बदली हुए कुछ ही दिन हुए हैं और मैं हिंदी माध्यम से पढ़ा हूँ तो कृपया आप मुझसे हिंदी में ही बात करें|

मैं: जी बेहतर!

हेडमास्टर साहब: तो बताइये मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ? (नेहा की ओर देखते हुए) ओह क्षमा कीजिये.. मैं समझ गया आप अपनी बेटी के दाखिले हेतु आय हैं| ये लीजिये फॉर्म भर दीजिये|

मैं: जी पर पहले मैं कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ? इस स्कूल में केवल दो ही कमरे हैं जिन में अध्यापक पढ़ा रहे हैं? यह स्कूल कितनी कक्षा तक है और क्या ये स्कूल किसी सरकारी स्कूल या कॉलेज से मान्यता प्राप्त है? मतलब जैसे दिल्ली में स्कूल CBSE से मान्यता प्राप्त होते हैं ऐसा कुछ?

हेडमास्टर साहब: जी हमें उत्तर प्रदेश हाई स्कूल बोर्ड से मान्यता प्राप्त है| हमारे स्कूल में केवल दूसरी कक्षा तक ही पढ़ाया जाता है... हमें कुछ फंड्स केंद्रीय सरकार से मिलने वाले हैं जिसकी मदद से इस स्कूल का निर्माण कार्य जल्द ही शुरू होगा और फिर ये स्कूल दसवीं कक्षा तक हो जायेगा|

मैं: जी ठीक है पर आप के पास कुछ कागज वगैरह होंगे... ताकि मुझ तसल्ली हो जाये| देखिये बुरा मत मानियेगा परन्तु मैं नहीं चाहता की बच्ची का साल बर्बाद हो.. फिर उसे तीसरी कक्षा के लिए हमें दूसरा स्कूल खोजना पड़े|

हेडमास्टर साहब: जी जर्रूर मुझे कोई आपत्ति नहीं|

और फिर हेडमास्टर साहब ने मुझे कुछ सरकारी दस्तावेज दिखाए| उन्हें देख के कुछ तसल्ली तो हुई.. फिर मैंने फॉर्म भरा और फीस की बात वगैरह की| हेडमास्टर साहब फॉर्म पढ़ने लगे...




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