FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--30
अब आगे...
मैं और कुछ नहीं बोला और वापस लेट गया... पाँच मिनट बाद भौजी भी मेरे बगल में लेट गई| मैं अब भी कुछ नहीं बोला परन्तु मेरी पीठ भौजी कि ओर थी| भौजी ने मेरी पीठ पे हाथ रखा ओर मुझे अपनी ओर करवट लेने को कहा| एक तकिये पे मैं ओर भौजी दोनों ... एक दूसरे कि आँखों में देख रहे थे| मुझे रह-रह के माधुरी का रोता हुआ चेहरा दिख रहा था| मैंने अपनी आँखें बंद कि... फिर कब भौजी का बाएं हाथ मेरी गर्दन के नीचे आया मुझे नहीं पता| मैं उनके नजदीक आया और उनके स्तन के बीचों बीच दरार में अपना मुंह छुपा के चुप-चाप पड़ा रहा| मुझे कब नींद आई.. कुछ नहीं पर हाँ मुझे उनके हाथ बारी-बारी से अपने सर को सहलाते हुए महसूस हो रहे थे| उसके बाद मेरी आँख सीधा सुबह के तीन बजे खुली... भौजी अपना हाथ मेरी गर्दन के नीचे से निकाल रहीं थी| सुआबह होने को थी और भौजी के घर का मुख्य दरवाजा बंद था| ऐसे में घर के लोगों को शक हो सकता था| इसलिए वो दरवाजा खोलने के लिए उठीं थी| मुझे जगा देख उन्होंने सर पे हाथ फेरा और मेरे होठों को चूमा!!! अब सुबह कि इससे अच्छी शुरुआत क्या हो सकती थी? मैं उठ के बैठ गया...
भौजी: कहाँ जा रहे हो?
मैं: बाहर
भौजी: पर अभी तो सब उठे भी नहीं तो बाहर अकेले में क्या करोगे?
मैं: कुछ नहीं....
भौजी मेरे पास आइन और अपने घुटनों के बल बैठ मेरे दोनों हाथों को अपने हाथ में ले के पूछने लगी:
भौजी: तुम मुझे अपनी पत्नी मानते हो ना? तो बताओ की क्या बात है जो तुम्हें आदर ही अंदर खाए जा रही है?
मैं: आप प्लीज मुझे गलत मत समझना ... कल पंचायत के बाद जब ठाकुर साहब माधुरी को घर ले जा रहे थे, उसकी आँखें भीगी हुई थीं और वो मुझे टकटकी लगाए देख रही थी| जैसे कह रही हो "मेरी इच्छाएं..मेरी जिंदगी ख़त्म हो गई" मैं उससे प्यार नहीं करता.. पर मैं नहीं चाहता था की उसका दिल टूटे! उसने जो भी किया वो सब गलत था... मेरे प्रति उसके आकर्षण को वो प्यार समझ बैठी| पर...
(मैं आगे कुछ बोल पाटा इससे पहले भौजी ने मेरी बात काट दी|)
भौजी: पर इसमें आपकी कोई गलती नहीं.. आपने उसे नहीं कहा था की वो आपसे प्यार करे|
मैं: जब आपने मुझसे पहली बार अपने प्यार का इजहार किया था तब अगर मैंने इंकार कर दिया होता तो आप पे क्या बीतती?
भौजी: मैं उसी छत से छलांग लगा देती!!!
मैं: और उस सब का दोषी मैं होता|
भौजी: नहीं.... बिलकुल नहीं!!! अगर तुम मुझे ये एहसास दिलाते की तुम मुझसे प्यार करते हो.. मेरा जिस्मानी रूप से फायदा उठाते और जब मैं अपने प्यार का इजहार करती तब तुम मुकर जाते तब तुम दोषी होते| तुमने उसके साथ ऐसा कुछ भी नहीं किया... तुम्हें बुरा इसलिए लग रहा है क्योंकि तुमने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया| आज जब माधुरी का दिल टुटा तब तुम उसे अपना दोष मान रहे हो|
इसके आगे उन्होंने मुझे कुछ बोलने नहीं दिया और मुझे गले लगा लिया| मैं रूवांसा हो उठा...
"बस.. अब आप अपनी आँखें बंद करो?"
मैं: क्यों?
भौजी: मेरे पास एक ऐसा टोटका है जिससे आप सब भूल जाओगे|
मैंने अपनी आँखें बंद कर ली| भौजी का चेहरा मेरे ठीक सामने था.. मुझे उनकी गर्म सांसें अपने चेहरे पे महसूस होने लगी थी| उन्होंने मेरे बाएं पे अपने होंठ रख दिए और अगले ही पल मेरे गाल पे अपने दांत गड़ा दिया| उन्होंने धीरे-धीरे मेरे गाल को चूसना शुरू कर दिया.. मेरे रोंगटे खड़े होने लगे| जब उनका बाएं गाल से अं भर गया तब उन्होंने मेरे दायें गाल को भी इसी तरह काटा और चूसा| शुक्र है की उनके दांत के निशाँ ज्यादा गाढ़े नहीं थे वरना सब को पता चल जाता!!!
भौजी: तो उस दिन आपने मुझसे अंग्रेजी में क्या पूछा था..अम्म्म्म .. हाँ याद आया; HAPPY ?
मैं: (मुस्कुराते हुए) YEAH !!! VERY HAPPY !!!
सच में ये टोटका काम कर गया था! और उनके मुँह से HAPPY सुन के दिल खुश हो गया| भौजी तो उठ के बाहर चलीं गई... मैं कुछ देर और लेटा रहा| करीब साढ़े पाँच उठा| बाहर सब मेरा हाल-चाल पूछने लगे... जैसे मैं बहुत दोनों से बीमार हूँ| नहा-धो के चाय पि.. और फिर नेहा मेरे पास कूदते हुए आ गई और खेलने की जिद्द करने लगी| कभी पकड़ा-पकड़ी, कभी आँख में चोली .. ऐसा लग रहा था जैसे भौजी ने उसे मुझे बिजी रखने के लिए मेरे पीछे लगा दिया हो| आखिर में नेहा बैट और बॉल ले आई| उसने मुझे बैट दिया और खुद बॉल फेकने लगी| मैं देख रहा था की भौजी मुझे सब्जी काटते हुए, बॉल उड़ाते हुए देख रही है| पाँच मिनट बाद वो भी आ गईं और नेहा से बॉल ले के फेंकने लगी| उनकी पहली ही बॉल पे मैंने इतना लम्बा शोट मार की बॉल खेतों के अंदर जा गिरी| नेहा उसे लेने के लिए भागी... और इधर भौजी मेरे पास आइन और खाने लगी; "आज रात तैयार रहना... आपके लिए बहुत बड़ा सरप्राइज है!!!" मैंने आँखें मटकते हुए उन्हें देखा और कहा; "अच्छा जी... देखते हैं क्या सरप्राइज है?" और हम क दूसरे को प्यासी नजरों से देखते रहे| मैं ये तो समझ ही चूका था की सरप्राइज क्या है पर फिर भी अनजान बनने में बड़ा मजा आरहा था| इधर नेहा को बॉल ढूंढने गए हुए पाँच मिनट होने आये थे| खेत बिलकुल खाली था.. अब तक बॉल तो मिल जानी चाहिए थी| मैं उत्सुकता वास नेहा के पीछे खेत में पहुँच गया.. वहां जाके देखा तो वो बॉल लिए दूसरी दिशा से आ रही है| भौजी और मेरे बीच में कुछ दूरी थी.. जिससे वो दख सकती थीं की मैं वहां खड़ा क्या कर रहा हूँ| तभी नेहा मेरे पास आई और बोली; "चाचू.. ये कागज़ उसने दिया है|" नेहा की ऊँगली दूर बानी एक ईमारत के पास कड़ी लड़की की ओर थी और मुझे ये समझते देर ना लगी की वो लड़की कोई और नहीं माधुरी ही है| सारा मूड फीका हो गया...
मैंने पर्ची खोल के पढ़ी तो उसमें ये लिखा था: "प्लीज मुझे एक आखरी बार मिल लो!!" मैंने पर्ची जेब में डाली, नेहा को बैट थमाया और कहा; "बेटा आप घर चलो, मैं अभी आया|" मैंने पलट के देखा तो भौजी की नजर मुझ पे टिकी थी... जिस ईमारत के पास वो कड़ी थी वो गाँव का स्कूल था| अंदर पाठशाला अभी भी लगी हुई थी क्योंकि मुझे अंदर से अध्यापक द्वारा पाठ पढ़ाये जाने की आवाजें आ रहीं थी| मैं उससे करीब छः फुट दूरी पर खड़ा हो गया और सरल शब्दों में उससे पूछा;
"बोलो क्यों बुलाया मुझे यहाँ?"
माधुरी: आपको जानके ख़ुशी होगी की मेरे पिताजी ने आननफानन में मेरी शादी तय कर दी है| लड़का कौन है ? कैसा दीखता है? क्या करता है? मुझे कुछ नही पता|
मैं: तो तुम इसका जिम्मेदार मुझे मानती हो?
माधुरी: नहीं... गलती मेरी थी! मैं आपकी ओर आकर्षित थी| जाने कब ये आकर्षण प्यार में बदल गया, मुझे पता ही नहीं चला| खेर मैं आपसे प्यार करती हूँ और हमेशा करती रहूँगी... दरअसल मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ|
मैं: पूछो
माधुरी: आप प्लीज मुझसे झूठ मत बोलना... मैं जानती हूँ की आपने शादी से इंकार क्यों किया? आप किसी और से प्यार करते होना?
मैं: क्या इस बात से अब कोई फर्क पड़ता है?
माधुरी: नहीं पर... मैं एक बार उसका नाम जानना चाहती हूँ?
मैं: नाम जानके क्या होगा?
माधुरी: कम से कम उस खुशनसीब को दुआ तो दे सकुंगी ... ख़ुदा से प्रार्थना करुँगी की वो आप दोनों को हमेशा खुश रखे|
ना जाने क्यों पर मुझे उसकी बात में सच्छाई राखी पर मैं भावुक होके उसे सब सच नहीं बताना चाहता था|
इसलिए मैं नाम की कल्पना करने लगा;
मैं: रीतिका
माधुरी: नाम बताने के लिए शुक्रिया!!! अगर मैं आपसे कुछ मांगू तो आप मुझे मना तो नहीं करेंगे?
मैं: मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं| पर फिर भी मांगो अगर बस में होगा तो मना नहीं करूँगा|
माधुरी: जब मैंने किशोरावस्था में पैर रखा तो स्कूल में मेरी कुछ लड़कियाँ दोस्त बनी| उसे आप अच्छी संगत कहो या बुरी.. मुझे उनसे "सेक्स" के बारे में पता चला| वो आये दिन खतों में इधर-उधर सेक्स करती थी, पर मैंने ये कभी नहीं किया| मेरी सहेलियां मुझपे हंसती थी की तू ये दौलत बचा के क्या करेगी?... पर मैं सोचा था की जब मुझे किसी से प्यार होगा तो उसी को मैं ये दौलत सौंपूंगी| सीधे शब्दों में कहूँ तो; मैं अभी तक कुँवारी हूँ और मैं ये चाहती हूँ की आप मेरे इस कुंवारेपन को तोड़ें|
मैं: क्या??? तुम पागल तो नहीं हो गई? तुमने मुझे समझ क्या रखा है? तुम जानती हो ना मैं किसी और से प्यार करता हूँ और फिर भी मैं तुम्हारे साथ... छी-छी तुम्हें जरा भी लाज़ नहीं आती ये सब कहते हुए? ओह!!! अब मुझे समझ आया...तुम चाहती हो की हम "सेक्स" करें और फिर तुम इस बात का ढिंढोरा पूरे गाँव में पीटो ताकि मुझे मजबूरन तुमसे शादी करनी पड़े? सॉरी मैडम!!! मैं वैसा लड़का बिलकुल भी नहीं हूँ!!!
(मैं घर की ओर मुड़ा ओर चल दिया| वो मेरे पीछे-पीछे चलती रही|)
माधुरी: मैं जानती हूँ आप ऐसे नहीं हो वरना कबका मेरा फायदा उठा लेते| और मेरा इरादा वो बिलकुल नहीं है जो आप सोच रहे हो| प्लीज ... मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ| कम से कम मेरी ये ख्वाइश तो पूरी कर दीजिये!!!
(इतना कह के वो सुबकने लगी और फुट-फुट के रोने लगी|)
(मैंने चलते हुए ही जवाब दिया|)
मैं: मेरा जवाब अब भी ना है|
माधुरी: अगर आपके दिल में मेरे लिए जरा सी भी दया है तो प्लीज !!!
(मैं नहीं रुका|)
"ठीक है...मैं तब भी आपका इसी स्कूल के पास इन्तेजार करुँगी... !!! रोज शाम छः बजे!!!!!! इसी जगह!!!"
मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और वापस घर की ओर चलता रहा| जब मैं घर के नजदीक पहुंचा तो भौजी अब भी उसी जगह कड़ी मेरी ओर देख रही थी| जब मैं उनके पास पहुँच तो उन्होंने पूछा;
"अब क्या लेने आई थी यहाँ? और आप उससे मिलने क्यों गए थे?"
मैं: अभी नहीं... दोपहर के भोजन के बाद बात करता हूँ|
भौजी: नहीं.. मुझे अभी जवाब चाहिए?
मैं: (गहरी सांस लेते हुए) उसने नेहा के हाथ पर्ची भेजी थी, उसमें लिखा था की वो मुझसे एक आखरी अबार मिलना चाहती है| बस इसलिए गया था ...
भौजी: अब क्या चाहिए उसे?
मैं: ये मैं आपको दोपहर भोजन के बाद बताऊँगा|
भौजी: ऐसा क्या कह दिया उसने?
मैं: प्लीज!!
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बदलाव के बीज--30
अब आगे...
मैं और कुछ नहीं बोला और वापस लेट गया... पाँच मिनट बाद भौजी भी मेरे बगल में लेट गई| मैं अब भी कुछ नहीं बोला परन्तु मेरी पीठ भौजी कि ओर थी| भौजी ने मेरी पीठ पे हाथ रखा ओर मुझे अपनी ओर करवट लेने को कहा| एक तकिये पे मैं ओर भौजी दोनों ... एक दूसरे कि आँखों में देख रहे थे| मुझे रह-रह के माधुरी का रोता हुआ चेहरा दिख रहा था| मैंने अपनी आँखें बंद कि... फिर कब भौजी का बाएं हाथ मेरी गर्दन के नीचे आया मुझे नहीं पता| मैं उनके नजदीक आया और उनके स्तन के बीचों बीच दरार में अपना मुंह छुपा के चुप-चाप पड़ा रहा| मुझे कब नींद आई.. कुछ नहीं पर हाँ मुझे उनके हाथ बारी-बारी से अपने सर को सहलाते हुए महसूस हो रहे थे| उसके बाद मेरी आँख सीधा सुबह के तीन बजे खुली... भौजी अपना हाथ मेरी गर्दन के नीचे से निकाल रहीं थी| सुआबह होने को थी और भौजी के घर का मुख्य दरवाजा बंद था| ऐसे में घर के लोगों को शक हो सकता था| इसलिए वो दरवाजा खोलने के लिए उठीं थी| मुझे जगा देख उन्होंने सर पे हाथ फेरा और मेरे होठों को चूमा!!! अब सुबह कि इससे अच्छी शुरुआत क्या हो सकती थी? मैं उठ के बैठ गया...
भौजी: कहाँ जा रहे हो?
मैं: बाहर
भौजी: पर अभी तो सब उठे भी नहीं तो बाहर अकेले में क्या करोगे?
मैं: कुछ नहीं....
भौजी मेरे पास आइन और अपने घुटनों के बल बैठ मेरे दोनों हाथों को अपने हाथ में ले के पूछने लगी:
भौजी: तुम मुझे अपनी पत्नी मानते हो ना? तो बताओ की क्या बात है जो तुम्हें आदर ही अंदर खाए जा रही है?
मैं: आप प्लीज मुझे गलत मत समझना ... कल पंचायत के बाद जब ठाकुर साहब माधुरी को घर ले जा रहे थे, उसकी आँखें भीगी हुई थीं और वो मुझे टकटकी लगाए देख रही थी| जैसे कह रही हो "मेरी इच्छाएं..मेरी जिंदगी ख़त्म हो गई" मैं उससे प्यार नहीं करता.. पर मैं नहीं चाहता था की उसका दिल टूटे! उसने जो भी किया वो सब गलत था... मेरे प्रति उसके आकर्षण को वो प्यार समझ बैठी| पर...
(मैं आगे कुछ बोल पाटा इससे पहले भौजी ने मेरी बात काट दी|)
भौजी: पर इसमें आपकी कोई गलती नहीं.. आपने उसे नहीं कहा था की वो आपसे प्यार करे|
मैं: जब आपने मुझसे पहली बार अपने प्यार का इजहार किया था तब अगर मैंने इंकार कर दिया होता तो आप पे क्या बीतती?
भौजी: मैं उसी छत से छलांग लगा देती!!!
मैं: और उस सब का दोषी मैं होता|
भौजी: नहीं.... बिलकुल नहीं!!! अगर तुम मुझे ये एहसास दिलाते की तुम मुझसे प्यार करते हो.. मेरा जिस्मानी रूप से फायदा उठाते और जब मैं अपने प्यार का इजहार करती तब तुम मुकर जाते तब तुम दोषी होते| तुमने उसके साथ ऐसा कुछ भी नहीं किया... तुम्हें बुरा इसलिए लग रहा है क्योंकि तुमने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया| आज जब माधुरी का दिल टुटा तब तुम उसे अपना दोष मान रहे हो|
इसके आगे उन्होंने मुझे कुछ बोलने नहीं दिया और मुझे गले लगा लिया| मैं रूवांसा हो उठा...
"बस.. अब आप अपनी आँखें बंद करो?"
मैं: क्यों?
भौजी: मेरे पास एक ऐसा टोटका है जिससे आप सब भूल जाओगे|
मैंने अपनी आँखें बंद कर ली| भौजी का चेहरा मेरे ठीक सामने था.. मुझे उनकी गर्म सांसें अपने चेहरे पे महसूस होने लगी थी| उन्होंने मेरे बाएं पे अपने होंठ रख दिए और अगले ही पल मेरे गाल पे अपने दांत गड़ा दिया| उन्होंने धीरे-धीरे मेरे गाल को चूसना शुरू कर दिया.. मेरे रोंगटे खड़े होने लगे| जब उनका बाएं गाल से अं भर गया तब उन्होंने मेरे दायें गाल को भी इसी तरह काटा और चूसा| शुक्र है की उनके दांत के निशाँ ज्यादा गाढ़े नहीं थे वरना सब को पता चल जाता!!!
भौजी: तो उस दिन आपने मुझसे अंग्रेजी में क्या पूछा था..अम्म्म्म .. हाँ याद आया; HAPPY ?
मैं: (मुस्कुराते हुए) YEAH !!! VERY HAPPY !!!
सच में ये टोटका काम कर गया था! और उनके मुँह से HAPPY सुन के दिल खुश हो गया| भौजी तो उठ के बाहर चलीं गई... मैं कुछ देर और लेटा रहा| करीब साढ़े पाँच उठा| बाहर सब मेरा हाल-चाल पूछने लगे... जैसे मैं बहुत दोनों से बीमार हूँ| नहा-धो के चाय पि.. और फिर नेहा मेरे पास कूदते हुए आ गई और खेलने की जिद्द करने लगी| कभी पकड़ा-पकड़ी, कभी आँख में चोली .. ऐसा लग रहा था जैसे भौजी ने उसे मुझे बिजी रखने के लिए मेरे पीछे लगा दिया हो| आखिर में नेहा बैट और बॉल ले आई| उसने मुझे बैट दिया और खुद बॉल फेकने लगी| मैं देख रहा था की भौजी मुझे सब्जी काटते हुए, बॉल उड़ाते हुए देख रही है| पाँच मिनट बाद वो भी आ गईं और नेहा से बॉल ले के फेंकने लगी| उनकी पहली ही बॉल पे मैंने इतना लम्बा शोट मार की बॉल खेतों के अंदर जा गिरी| नेहा उसे लेने के लिए भागी... और इधर भौजी मेरे पास आइन और खाने लगी; "आज रात तैयार रहना... आपके लिए बहुत बड़ा सरप्राइज है!!!" मैंने आँखें मटकते हुए उन्हें देखा और कहा; "अच्छा जी... देखते हैं क्या सरप्राइज है?" और हम क दूसरे को प्यासी नजरों से देखते रहे| मैं ये तो समझ ही चूका था की सरप्राइज क्या है पर फिर भी अनजान बनने में बड़ा मजा आरहा था| इधर नेहा को बॉल ढूंढने गए हुए पाँच मिनट होने आये थे| खेत बिलकुल खाली था.. अब तक बॉल तो मिल जानी चाहिए थी| मैं उत्सुकता वास नेहा के पीछे खेत में पहुँच गया.. वहां जाके देखा तो वो बॉल लिए दूसरी दिशा से आ रही है| भौजी और मेरे बीच में कुछ दूरी थी.. जिससे वो दख सकती थीं की मैं वहां खड़ा क्या कर रहा हूँ| तभी नेहा मेरे पास आई और बोली; "चाचू.. ये कागज़ उसने दिया है|" नेहा की ऊँगली दूर बानी एक ईमारत के पास कड़ी लड़की की ओर थी और मुझे ये समझते देर ना लगी की वो लड़की कोई और नहीं माधुरी ही है| सारा मूड फीका हो गया...
मैंने पर्ची खोल के पढ़ी तो उसमें ये लिखा था: "प्लीज मुझे एक आखरी बार मिल लो!!" मैंने पर्ची जेब में डाली, नेहा को बैट थमाया और कहा; "बेटा आप घर चलो, मैं अभी आया|" मैंने पलट के देखा तो भौजी की नजर मुझ पे टिकी थी... जिस ईमारत के पास वो कड़ी थी वो गाँव का स्कूल था| अंदर पाठशाला अभी भी लगी हुई थी क्योंकि मुझे अंदर से अध्यापक द्वारा पाठ पढ़ाये जाने की आवाजें आ रहीं थी| मैं उससे करीब छः फुट दूरी पर खड़ा हो गया और सरल शब्दों में उससे पूछा;
"बोलो क्यों बुलाया मुझे यहाँ?"
माधुरी: आपको जानके ख़ुशी होगी की मेरे पिताजी ने आननफानन में मेरी शादी तय कर दी है| लड़का कौन है ? कैसा दीखता है? क्या करता है? मुझे कुछ नही पता|
मैं: तो तुम इसका जिम्मेदार मुझे मानती हो?
माधुरी: नहीं... गलती मेरी थी! मैं आपकी ओर आकर्षित थी| जाने कब ये आकर्षण प्यार में बदल गया, मुझे पता ही नहीं चला| खेर मैं आपसे प्यार करती हूँ और हमेशा करती रहूँगी... दरअसल मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ|
मैं: पूछो
माधुरी: आप प्लीज मुझसे झूठ मत बोलना... मैं जानती हूँ की आपने शादी से इंकार क्यों किया? आप किसी और से प्यार करते होना?
मैं: क्या इस बात से अब कोई फर्क पड़ता है?
माधुरी: नहीं पर... मैं एक बार उसका नाम जानना चाहती हूँ?
मैं: नाम जानके क्या होगा?
माधुरी: कम से कम उस खुशनसीब को दुआ तो दे सकुंगी ... ख़ुदा से प्रार्थना करुँगी की वो आप दोनों को हमेशा खुश रखे|
ना जाने क्यों पर मुझे उसकी बात में सच्छाई राखी पर मैं भावुक होके उसे सब सच नहीं बताना चाहता था|
इसलिए मैं नाम की कल्पना करने लगा;
मैं: रीतिका
माधुरी: नाम बताने के लिए शुक्रिया!!! अगर मैं आपसे कुछ मांगू तो आप मुझे मना तो नहीं करेंगे?
मैं: मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं| पर फिर भी मांगो अगर बस में होगा तो मना नहीं करूँगा|
माधुरी: जब मैंने किशोरावस्था में पैर रखा तो स्कूल में मेरी कुछ लड़कियाँ दोस्त बनी| उसे आप अच्छी संगत कहो या बुरी.. मुझे उनसे "सेक्स" के बारे में पता चला| वो आये दिन खतों में इधर-उधर सेक्स करती थी, पर मैंने ये कभी नहीं किया| मेरी सहेलियां मुझपे हंसती थी की तू ये दौलत बचा के क्या करेगी?... पर मैं सोचा था की जब मुझे किसी से प्यार होगा तो उसी को मैं ये दौलत सौंपूंगी| सीधे शब्दों में कहूँ तो; मैं अभी तक कुँवारी हूँ और मैं ये चाहती हूँ की आप मेरे इस कुंवारेपन को तोड़ें|
मैं: क्या??? तुम पागल तो नहीं हो गई? तुमने मुझे समझ क्या रखा है? तुम जानती हो ना मैं किसी और से प्यार करता हूँ और फिर भी मैं तुम्हारे साथ... छी-छी तुम्हें जरा भी लाज़ नहीं आती ये सब कहते हुए? ओह!!! अब मुझे समझ आया...तुम चाहती हो की हम "सेक्स" करें और फिर तुम इस बात का ढिंढोरा पूरे गाँव में पीटो ताकि मुझे मजबूरन तुमसे शादी करनी पड़े? सॉरी मैडम!!! मैं वैसा लड़का बिलकुल भी नहीं हूँ!!!
(मैं घर की ओर मुड़ा ओर चल दिया| वो मेरे पीछे-पीछे चलती रही|)
माधुरी: मैं जानती हूँ आप ऐसे नहीं हो वरना कबका मेरा फायदा उठा लेते| और मेरा इरादा वो बिलकुल नहीं है जो आप सोच रहे हो| प्लीज ... मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ| कम से कम मेरी ये ख्वाइश तो पूरी कर दीजिये!!!
(इतना कह के वो सुबकने लगी और फुट-फुट के रोने लगी|)
(मैंने चलते हुए ही जवाब दिया|)
मैं: मेरा जवाब अब भी ना है|
माधुरी: अगर आपके दिल में मेरे लिए जरा सी भी दया है तो प्लीज !!!
(मैं नहीं रुका|)
"ठीक है...मैं तब भी आपका इसी स्कूल के पास इन्तेजार करुँगी... !!! रोज शाम छः बजे!!!!!! इसी जगह!!!"
मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और वापस घर की ओर चलता रहा| जब मैं घर के नजदीक पहुंचा तो भौजी अब भी उसी जगह कड़ी मेरी ओर देख रही थी| जब मैं उनके पास पहुँच तो उन्होंने पूछा;
"अब क्या लेने आई थी यहाँ? और आप उससे मिलने क्यों गए थे?"
मैं: अभी नहीं... दोपहर के भोजन के बाद बात करता हूँ|
भौजी: नहीं.. मुझे अभी जवाब चाहिए?
मैं: (गहरी सांस लेते हुए) उसने नेहा के हाथ पर्ची भेजी थी, उसमें लिखा था की वो मुझसे एक आखरी अबार मिलना चाहती है| बस इसलिए गया था ...
भौजी: अब क्या चाहिए उसे?
मैं: ये मैं आपको दोपहर भोजन के बाद बताऊँगा|
भौजी: ऐसा क्या कह दिया उसने?
मैं: प्लीज!!
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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