Friday, September 19, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--32

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--32

अब आगे ...


चन्दर भैया को आज जो भी हुआ वो सब पता चला... वो मेरे पास आके बैठे और कोशिश करने लगे की मेरा ध्यान इधर उधर भटका सकें| उनके अनुसार मैंने जो भी किया वो सबसे सही था! कुछ समय में भोजन तैयार था .. सब ने भोजन किया और अपने-अपने बिस्तरे में घुस गए| मैं भी अपने बिस्तर में घुस गया; सोचने लगा की क्या भौजी ने कोई रास्ता निकाला होगा? मैं उठा और टहलने के बहाने संतुष्टि करना चाहता था की सब कहाँ-कहाँ सोये हैं| सबसे पहले मैं अजय भैया को ढूंढने लगा, पर वे मुझे कहीं नहीं नजर आये|मैंने सोचा की ज्यादा ताँका-झांकी करने सो कोई फायदा नहीं, और मैं अपने बिस्तर पे आके लेट गया| कुछ ही समय में मुझे नींद आने लगी और मैं सो गया| उसके बाद मुझे अचानक ऐसा लगा जैसे कोई मेरे होंठों को चूम रहा हो| वो शख्स मेरे लबों को चूसने लगा| मुझे लगा ये कोई सुखद सपना है और मैं भी लेटे-लेटे उसके होठों को चूमता रहा| जब उस शख्स की जीभ मेरी जीभ से स्पर्श हुई तो अजीब सी मिठास का अनुभव हुआ! मैंने तुरंत अपनी आँखें खोलीं... देखा तो वो कोई और नहीं भौजी ही थीं| वो मेरे सिराहने झुक के अपने होंठ मेरे होंठों पे रखे खड़ी थीं| भौजी ने मुझे इशारे से अंदर आने को कहा, मैं उठा और एक नजर घर में सोये बाकी लोगों की चारपाई पर डाली| सब के सब गहरी नींद में सोये थे...समय देखा तो साढ़े बारह बजे थे! मैदान साफ़ था! मैं भौजी के घर में घुसा.. वो अंदर खड़ी मुस्कुरा रही थी| मैं दरवाजा बंद करना भूल गया और उनके सामने खड़ा हो गया| वो मेरी और चल के आइन और बगल से होती हुई दरवाजे की ओर चल दिन| वहां पहुँच उन्होंने दरवाजा बड़े आराम से बंद किया की कोई आवाज ना हो!

फिर वो पलटीं और मेरी ओर बढ़ने लगी, दस सेकंड के लिए रुकीं और......

फिर बड़ी तेजी के साथ उन्होंने मेरे होठों को अपने होठों की गिरफ्त में ले लिए| दोनों बेसब्री से एक दूसरे को होठों का रसपान कर रहे थे... करीब पांच मिनट तक कभी वो तो कभी मैं उनके होठों को चूसता... उनके मुख से मुझे पेपरमिंट की खुशबु आ रही थी| मेरी जीभ उनके मुख में विचरण कर रही थी.. और कभी कभी तो भौजी मेरी जीभ को अपने दांतों से काट लेती! धीरे-धीरे उनके हाथ मेरे कन्धों तक आ पहुंचे और उन्होंने एक झटके में मुझे अपने से दूर किया| मैं हैरान था की भला वो मुझे इस तरह अपने से दूर क्यों कर रहीं है? उन्होंने आज तक ऐसा नहीं किया था.... कहीं उन्हें ये सब बुरा तो नहीं लग रहा? अभी मैं अपने इन सवालों के जवाब धुंध ही रहा था की उन्होंने मुझे बड़ी जोर से धक्का दिया! मैं पीठ के बल चारपाई पे गिरा... वो तो शुक्र था की तकिया था वरना मेरा सर सीधा लकड़ी से जा लगता! अब मुझे कुछ शक सा होने लगा था.. भौजी के बर्ताव में कुछ तो अजीब था| मैं अब भी असमंजस की स्थिति में था.. तभी भौजी ने अपनी साडी उतारना चालु कर दी... साड़ी उतारके उन्होंने मेरे ऊपर फेंकी, और पेटीकोट और ब्लाउज पहने मेरी छाती पे आके बैठ गईं| अब तो मेरी धड़कनें तेज होने लगीं... उन्होंने अपनी उतारी साडी के एक सिरे से मेरा दाहिना हाथ चारपाई के एक पाये से बाँध दिया... मैं उनसे लगातार पूछ रहा था की आपको हो क्या गया है और ये आप क्या कर रहे हो? पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुराये जा रहीं थी| अब उनकी मुस्कराहट देख के मुझे भी संतोष होने लगा की कुछ गलत नहीं हो रहा बस उनकर व्यवहार थोड़ा अटपटा सा लगा|

देखते ही देखते उन्होंने मेरा बाएं हाथ भी अपनी साडी के दूसरे छोर के साथ चारपाई के दूसरे पाय से बांद दिया| वो अब भी मुस्कुरा रहीं थी.... फिर उन्होंने अपना ब्लाउज उतार के फेंक दिया अब मुझे उनके गोर-गोर स्तन दिख रहे थे; मैं उन्हें छूना चाहता था परन्तु हाथ बंधे होने के कारन छू नही सकता था|भौजी अपने सर पे हाथ रखके अपनी कमर मटका रही थी.. उनकी कमर के मटकने के साथ ही उनके स्तन भी हिल रहे थे और ये देख के मुझे बड़ा मजा आ रहा था| फिर अचानक भौजी को क्या सूझी उन्होंने मेरी टी-शर्ट के बटन खोले अब टी-शर्ट उतरने से तो रही क्योंकि मेरे दोनों हाथ बंधे थे... इसलिए भौजी ने तेश में आके मेरी टी-शर्ट फाड़ डाली!!! अब इसकी उम्मीद तो मुझे कतई नहीं थी और भौजी का ये रूप देख के ना जाने मुझे पे एक सा सुरुर्र छाने लगा था|उन्होंने मेरी फटी हुई टी-शर्ट भी उठा के घर के एक कोने में फेंक दी... अब वो मेरी छाती पे बैठे-बैठे ही झुक के मुझे बेतहाशा चूमने लगी| मेरी आँखें, माथा, भौएं, नाक, गाल और होठों पे तो उन्होंने चुम्मियों की झड़ी लगा दी| वो तो ऐसा बर्ताव कर रहीं थीं मानो रेगिस्तान के प्यास के सामने किसी ने बाल्टी भर पानी रख के छोड़ दिया हो और वो प्यासा उस बाल्टी में ही डुबकी लगाना चाहता हो! भौजी नीचे की और बढ़ीं और अब उन्होंने मेरी गर्दन पे बड़ी जोर से काटा.... इतनी जोर से की मेरी गर्दन पे उनके दांतों के निशान भी छप गए थे| मेरे मुंह से बस सिस्कारियां निकल रहीं थी..."स्स्स्स्स स्स्स्स्स्स्स्स्सह्ह्ह " ऐसा लगा मानो आज वो मेरे गले से गोश्त का एक टुकड़ा फाड़ ही लेंगी|


धीरे-धीरे वो और नीचे आइन और अब वो ठीक मेरे लंड पे बैठी थीं| उनकी योनि से निकल रही आँच मुझे अपने पजामे पे महसूस हो रही थी... साथ ही साथ उनकी योनि का रस अब मेरे पजामे पे अपनी छाप छोड़ रहा था| उन्होंने धीरे से मेरे बाएं निप्पल को प्यार से चूमा.. और अगले ही पल उन्होंने उस पे अपने दांत गड़ा दिए!!! मैं दर्द से छटपटाने लगा पर अगर चिल्लाता तो घर के सब लोग इकठ्ठा हो जाते और मुझे इस हालत में देख सबके सब सदमें में चले जाते!!! मैं बस छटपटा के रह गया और मुंह से बस एक दबी सी आवाज ही निकाल पाया; "अह्ह्ह्ह उम्म्म्म"!!! आज तो जैसे भौजी के ऊपर सच में कोई भूत सवार हो!!! उन्होंने फिर मेरे बाएं निप्पल का हाल भी यही किया! पहले चूमा और फिर बड़ी जोर से काट लिया.... मैं बस तड़प के रह गया| लेकिन उनका मन अब भी नहीं भरा था उन्होंने मेरी पूरी छाती पे यहाँ-वहां काटना शुरू कर दिया| जैसे की वो मेरे शरीर से गोश्त का हर टुकड़ा नोच लेना चाहती हो| माथे से लेके मेरे "बेल्ली बटन" तक अपने "लव बाइट्स" छोड़े थे!!! पूरा हिस्सा लाल था और हर जगह दांतों के निशान बने हुए थे|

मैं तो ये सोच के हैरान था की आखिर भौजी को हो क्या गया है और वो मुझे इतनी यातनाएं क्यों दे रही हैं?
अब भौजी और नीचे बढ़ीं और उन्होंने चारपाई से नीचे उतर मेरे पाँव के पास खड़ी हो के मेरे पजामे को नीचे से पकड़ा और उसे एक झटके में खीच के निकला और दूसरी तरफ फेंक दिया| वो वापस चारपाई पे आइन और झुक के मेरे तने हुए लंड को गप्प से मुंह में भर लिया और अंदर-बहार करने लगीं| जब वो अपना मुंह नीचे लाती तो लंड सुपाड़े से बहार आके उनके गालों और दांतों से टकराता और जब वो ऊपर उठतीं तो सुपाड़ा वापस चमड़ी के अंदर चला जाता| इस प्रकार की चुसाई से अब मैं बेचैन होने लगा था.. दिमाग ने काम आना बंद कर दिया था और मैं बस तकिये पे अपना मुंह इधर-उधर पटकने लगा था| मैंने पहली बार कोशिश की, कि कैसे भी मैं अपने हाथों को छुड़ा सकूँ पर नाकामयाब रहा| इधर भौजी का मन जैसे चूसने से भर गया था अब वो मेरी और किसी शेरनी कि अरह बढ़ने लगीं ... अपने हाथों और घुटनों के बल मचलती हुई| अब तो मेरा शिकार पक्का था! वो मेरे मुख के सामने आके रुकीं; उनकी योनि ठीक मेरे लंड के ऊपर थी| उन्हेोन अपना दायें हाथ नीचे ले जाके मेरे लंड को पकड़ा और अपनी योनि के द्वार पे रखा| फिर वो सीढ़ी मेरे लंड पे सवार हो गईं.... पूरा का पूरा लंड उनकी योनि में घुस गया था|
उनकी योनि अंदर से गर्म और गीली थी.. "स्स्स्स्स्स आआह्हह्हह्ह हुम्म्म्म" कि आवाज आँगन में गूंजने लगी! अब भौजी ने धीरे-धीरे लंड पे उछलना शुरू किया... हर झटके के साथ मेरा लंड उनकी बच्चेदानी से टकरा रहा था जिससे वो चिहुक जाती पर फिर भी वो बाज़ नहीं आइन और कूदती रहीं| उनकी योनि ने मेरे लंड को जैसे कास के जकड रखा हो, जैसे ही वो ऊपर उठती तो सुपाड़ा चमड़ी में कैद हो जाता और जब वो नीचे आतीं तो सुपाड़ा सीधा उनकी बच्चे दाने से टकराता| एक पल के लिए तो मुझे लगा कि कहीं मेरा लंड उनकी बच्चेदानी के आर-पार ना हो जाये!!! उनकी ये घुड़ सवारी वो ज्यादा देर न बर्दाश्त कर पाईं और पंद्रह मिनट में ही स्खलित हो गईं| अंदर कि गर्मी और गीलेपन के कारन मेरे लंड ने भी जवाब दे दिया और अंदर एक जबरदस्त फव्वारा छोड़ा!!! हम दोनों ही हांफने लगे थे... और फिर भौजी पास्ट होके मेरे ऊपर हो गिर गईं | मैंने आज तक ऐसे सम्भोग कि कभी कल्पना नहीं कि थी... आज सच में मुझे बहुत मजा आया| सारा बदन वैसे ही भौजी के काटे जाने से दुक रहा था ऊपर से जो रही-सही कसार थी वो भौजी के साथ सम्भोग ने पूरी कर दी थी|

जब सांसें थोड़ा नार्मल हुईं तो मैंने भौजी को हिलाया ताकि वो जागें और मेरे हाथ खोलें वरना सुबह तक मैं इसी हालत में रहता और फिर बवाल होना तय था!

मैं: उम्म्म... उठो? उठो ना?

भौजी: उम्म्म्म ... रहने दोना ऐसे ही|

मैं: अगर मैं बाहर नहीं गया तो सुबह बवाल हो जायेगा|

भौजी: कुछ नहीं होगा... कह देना कि रात को मेरी तबियत खराब थी इसलिए सारी रात जाग के आप पहरेदारी कर रहे थे|

मैं: ठीक है बाबा !!! कहीं नहीं जा रहा पर कम से कम मेरे हाथ तो खोल दो!


भौजी मेरे सीने पे सर रख के मेरे ऊपर ही लेटी हुई थीं... उन्होंने हाथ बढ़ा के एक गाँठ खोल दी और मेरा दायां हाथ फ्री हो गया| फिर मैंने अपने दायें हाथ से किसी तरह अपना बायें हाथ कि गाँठ को खोला| फिर भौजी के सर पे हाथ फेरता रहा और वो मुझसे लिपटी पड़ी रहीं| समय देखा तो पौने दो हो रहे थे... अब मुझे कसी भी बाहर जाना था पर जाऊं कैसे? भौजी मेरे ऊपर पड़ी थीं.. बिलकुल नंगी! सारे कपडे इधर-उधर फेंके हुए थे! और मेरी हालत ऐसी थी जैसे किसी ने नोच-नोच के मेरी छाती लाल कर दी हो| और नीचे कि हालत तो और भी ख़राब थी! मेरा लंड अब भी भौजी कि योनि में सिकुड़ा पड़ा था! जैसे उनकी योनि ने उसे अपने अंदर समां लिया हो... मैं पन्द्रह्मिनुते तक ऐसे ही पड़ा रहा... फिर जब मुझे संतोष हुआ कि भौजी सो गई हैं तो मैंने उन्हें धीरे से अपने ऊपर से हटाया और सीधा लेटा दिया| फिर उठा और स्नानघर से पानी लेके अपने लंड को साफ़ किया .. अपना पजामा और कच्छा उठाया और पहना... अब ऊपर क्या पहनू? टी-शर्ट तो फाड़ दी भौजी ने? मैंने उनके कमरे से एक चादर निकाली और बाहर जाने लगा... फिर याद आय कि भौजी तो एक दम नंगी पड़ी हैं| मैंने एक और चादर निकाली और उन्हें अच्छी तरह से उढ़ा दी| भौजी के कपडे जो इधर-उधर फैले थे उन्हें भी समेत के तह लगा के उनके बिस्तर के एक कोने पे रख दिया| धीरे-धीरे दरवाजा खोला और दुबारा से बंद किया और मैं चुप-चाप बाहर आके अपनी चारपाई पे लेट गया| अब भी मेरे सर पे एक मुसीबत थी... मेरी टी-शर्ट! मैंने खुद को उसी चादर में लपेटा और लेट गया| लेटे-लेटे सोचता रहा कि आखिर आज जो हुआ वो क्या था... काफी देर सोचने के बाद याद आया... भौजी ने आज मेरे साह वही किया जो मैंने उन्हें उस कहानी के रूप में बताया था| मैंने अपना सर पीटा कि हाय !! उन्होंने मेरी ख़ुशी के लिए इतना सब कुछ किए? पूरी कि पूरी DVD कि कहानी उन्हें याद थी.. वो एक एक विवरण जो मैंने उन्हें दिया था वो सब!!!

ये बात तो साफ़ हो गई कि भौजी का सरप्राइज वाकई में जबरदस्त था... पर मुझे अब भी एक बात का शक हो रहा था| मुझे लग रहा था कि उन्होंने जो भी किया वो किसी न किसी नशे के आवेश में आके किया? इस बात को साफ़ करने का एक ही तरीका था कि जब सुबह होगी तब उनसे इत्मीनान से बात करूँ| पर सबसे पहले मुझे किसी के भी जागने से पहले टी-शर्ट का जुगाड़ करना होगा,ये सोचते-सोचते कब आँख लग गई पता ही नहीं चला| सुबह जब आँख खुली तो सात बज रहे थे... माँ मुझे उठाने आईं;

माँ: चल उठ भी जा... सारी रात जाग के क्या हवन कर रहा था| सारे लोग उठ के खेत भी चले गए और तू अब भी चादर ओढ़े पड़ा है|

मैं: उठ रहा हूँ...

दर के मारे मैं अंगड़ाई भी नहीं ले सकता था क्योंकि मैंने खुद को चादर में लपेट रखा था... अब चादर हटता भी कैसे? माँ सामने बैठी थी... तभी भौजी आ गईं उनके हाथ में कुछ था जो उन्होंने अपने पीछे छुपा रखा था, वो ठीक मेरी बगल में आक खड़ी हुई और वो कपडा मेरी ओर फेंका| माँ ये सब नहीं देख पाई... अब दिक्कत ये थी कि मैं उसे पहनू कैसे? भौजी ने माँ का ध्यान बताया और मैंने वो कपडा खोला तो वो मेरी गन्दी टी-शर्ट थी जिसे मैंने धोने डाला था| मैंने तुरंत वही टी-शर्ट पहन ली...

माँ: ये कौन सी टी-शर्ट पहनी है तूने? कल रात तो हरी वाली पहनी थी? अब काली पहनी हुई है?

मैं: नहीं तो मैंने काली ही पहनी थी... अँधेरे में रंग एक जैसे ही दीखते हैं| खेर मैं फ्रेश होक आता हूँ|

मैं फटा-फट उठा और बड़े घर कि ओर भगा|फ्रेश होक लौटा.. चाय पी, ओर एक बात गौर कि, की भौजी मुझसे नजर नहीं मिला पा रही थी| मेरे अंदर भी भौजी से अपने प्रश्नों के जवाब जानने की उत्सुकता थी|पर मैं सही मौके की तलाश कर रहा था.. क्योंकि अब तो घर में रसिका भाभी भी थीं| बड़की अम्मा और माँ तो खेत जा चुके थे|मैंने नजर बचा के भौजी को मिलने का इशारा किया... और जा के कुऐं की मुंडेर पे बैठ गया| भौजी ने मुझे आवाज लगाते हुए कहा; "आप मेरी चारा आतने में मदद कर दोगे?" मैंने हाँ में सर हिलाया और उनके पीछे जानवरो का चारा काटने वाले कमरे की ओर चल दिया| वहां पहुँच के भौजी ओर मैं मशीन चलाने लगे जिससे की चारा कट के नीचे गिर रहा था|

मैं: पहले आप ये बताओ की आप मुझसे नजरें क्यों चुरा रहे हो?

भौजी: वो... कल रात.... मैंने

मैं: प्लीज बताओ

भौजी: मैंने कल रात को नशे की हालत में वो सब किया...

मैं: (बीच में बात काटते हुए|) क्या? आपने नशा किया था? पर क्यों? ओर क्या नशा किया? शराब या भांग खाई थी?

भौजी: वो आपके चन्दर भैया ने शराब छुपा के रखी थी .. उसमें से ... बस एक ही घूँट ही पिया था! सच आपकी कसम! बहुत कड़वी थी ओर इतनी गर्म की पेट तक जला दिया!!!

मैं: पर क्यों? भला आपको शराब पीने की क्या जर्रूरत थी|

भौजी : वो आपने उस दिन मुझे उस फिल्म की सारी कहानी सुनाई थी... सुन के लगा की आपको वो फिल्म बहुत अच्छी लगी थी| मैंने सोचा क्यों ना मैं उस फिल्म हेरोइन की तरह आपके साथ वो सब....पर मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी.. की उस हेरोइन की तरह आपको पलंग पे धक्का दूँ ओर भी बहुत कुछ जो मुझे बोलने में शर्म आ रही है|

मैं: पर आपको ये सब करने के लिए मैंने तो नहीं कहा? क्या जर्रूरत थी आपको ये सब करने की?

भौजी: पिछले कई दिनों से आपका मन खराब था ओर उस दिन सुबह जब मैंने आपको परेशान देखा तो मुझसे रहा नहीं गया ओर मैंने ये सब सिर्फ ओर सिर्फ आपको खुश करने के लिए किया|

मैं: आप सच में मुझसे बहुत प्यार करते हो! पर हाँ आज के बाद आप कभी भी किसी तरह को नशा नहीं करोगे| हमारे बच्चे को आप यही गुण देना चाहते हो?

भौजी: आपकी कसम मैं कभी भी कोई भी नशा नहीं करुँगी|

मेरा मन तो कर रहा था की भौजी को गोद में उठा के उन्हें चूम लूँ पर मौके की नजाकत कुछ और कह रही थी|

मैं: वैसे कल रात आपको होश भी है की आपने मेरे साथ क्या-क्या किया?

भौजी: थोड़ा बहुत होश है....घर में मैंने आपकी फटी हुई टी-शर्ट देखि थी बस इतना ही याद है| सुबह उठने के बाद सर घूम रहा था| हुआ क्या कल रात ?

मैंने अपनी टी-शर्ट ऊपर कर के दिखाई... भौजी का मुंह खुला का खुला रह गया था| अब भी मेरी छाती पे उनके दांतों के निशान बने हुए थे| कई जगह लाल निशान भी पड़ गए थे!

भौजी: हाय राम!!! ये मेरी करनी है?

मैं: अभी तक तो सिर्फ आपने ही मुझे छुआ है!

भौजी अपने सर पे हाथ रख के खड़ी हो गईं..

भौजी: मुझे माफ़ कर दो!!! ये सब मैंने जान-बुझ के नहीं किया! मुझे हो क्या गया था कल रात? ये मैंने क्या कर दिया... चलो मैं मलहम लगा देती हूँ|

मैं: नहीं रहने दो... अकेले में कहीं फिर से आपके अंदर की शेरनी जाग गई तो मेरी शामत आ जाएगी| (मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा)

भौजी: आप भी ना... चलो मैं मलहम लगा दूँ वरना किसी ने देख लिया तो क्या कहेगा?

मैं: नहीं रहने दो... ये आपके LOVE BITES हैं.. कुछ दिन में चले जायेंगे तब तक इन्हें रहने दो|

भौजी मुस्कुरा दि और हम चारा काटने में लग गए...  

वो सारा दिन मैं भौजी को बार-बार यही कह के छेड़ता रहा की आपने तो मेरा बलात्कार कर दिया!!! और हर भर भौजी झेंप जाती... शाम के छः बजे थे... नाजाने क्यों पर मेरी नजर स्कूल की ओर गई.. वहां कोई नहीं था| मुझे यकीन हो गया था की माधुरी मुझे बरगलाने के लिए वो सब कह रही थी| वो सच में थोड़े ही वहां मेरा इन्तेजार करने वाली थी| मैं वापस नेहा के साथ खेलने में व्यस्त हो गया| वो रात ऐसे ही निकल गई... कुछ ख़ास नहीं हुआ बस वही भौजी के साथ बातें करना, उनको बार-बार छेड़ना ऐसे ही रात काट गई| अगले दिन सुबह भी बारह बजे तक सब शांत था... तभी अचानक माधुरी की माँ हमारे घर आईं ओर रसिका भाभी को पूछने लगी|

मैं और नेहा घर के प्रमुख आँगन में बैट-बॉल खेल रहे थे| रसिका भाभी जल्दी-जल्दी में माधुरी के घर निकल गईं, मुझे थोड़ा अट-पटा तो लगा पर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया| करीब एक घंटे बाद रसिका भाभी लौटी, उस समय मैं छापर के नीचे नेहा के साथ बैठ खेल रहा था| भौजी रसोई में आँटा गूंद रहीं थी....

रसिका भाभी: मानु... तुम्हें मेरे साथ चलना होगा!!!

मैं: पर कहाँ ?

रसिका भाभी: (मेरे नजदीक आते हुए, धीरे से खुस-फ़ुसाइन) माधुरी तुमसे मिलना चाहती है|

मैं: (खुस-फुसते हुए) पर क्यों?

रसिका भाभी: (अपने हाथ जोड़ते हुए) मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ... बस एक आखरी बार उससे मिल लो, उसने पिछले तीन दिनों से कुछ नहीं खाया है, बस तुमसे कुछ कहना चाहती है| उसके लिए ना सही काम से काम मेरे लिए ही एक बार चलो!

मैं कुछ नहीं बोला और चुप चाप उठ के माधुरी के घर की ओर चल दिया| पीछे-पीछे रसिका भाभी भी आ गईं|

रसिका भाभी: मानु, माधुरी की माँ बाजार गई हैं और वो मुझे कहने आईं थी की उनकी गैर हाजरी में मैं उसका ध्यान रखूं| प्लीज घर में किसी से कुछ मत कहना वरना मेरी शामत है आज|

मैं: मैं कुछ नहीं कहूँगा पर उसके पिताजी कहाँ हैं?

रसिका भाभी: वो शादी के सील-सिले में बनारस गए हैं| उन्हें तो पता भी नहीं की माधुरी की तबियत यहाँ खराब हो गई है| घर में केवल उसकी माँ के और कोई नहीं जो उसका ध्यान रखे|

मैं: क्यों आप हो ना... चिंता मत करो मैं घर में सब को समझा दूंगा आप यहीं रह के उसका ख्याल रखा करो| और अगर किसी चीज की जर्रूरत हो तो मुझे कहना मैं अजय भैया से कह दूंगा|

हम बातें करते-करते माधुरी के घर पहुँच, वहां पहुँच के देखा तो वो बिस्तर पे पड़ी थी.. कमजोर लग रही थी|मैं चुप-चाप खड़ा उसे देख रहा था, तभी रसिका भाभी उसके पास आके बैठ गईं|

माधुरी: भाभी मुझे इनसे कुछ बात करनी है... अकेले में|
(भाभी चुप-चाप उठ के बहार चली गईं)
 



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