Tuesday, September 9, 2014

FUN-MAZA-MASTI पराये मर्द से सम्भोग-6

FUN-MAZA-MASTI

 पराये मर्द से सम्भोग-6

 विजय ने तब मेरी टाँगों को फैला कर अपने कमर के दोनों तरफ कर मुझे गोद में उठा लिया। उसने मेरी दोनों जाँघों को पकड़ कर सहारा दिया और मैं उसके गले में दोनों हाथ डाल कर किसी बच्चे की तरह लटक गई।
फिर सुधा ने विजय का लिंग पकड़ कर मेरी योनि पर रगड़ना शुरू कर दिया, इससे मुझे बहुत मजा आ रहा था, मन कर रहा था कि जल्दी से उसे मेरी योनि में डाल दे।
मैं भी अपनी योनि को उसके ऊपर दबाते हुए विजय को चूमने लगी।
तब विजय ने मुझसे कहा- आज एक चीज़ तुम दोनों को करना होगा मेरी खातिर !
मैंने पूछा- क्या?
तब उसने कहा- तुम दोनों को आपस में चूमना होगा, साथ ही एक-दूसरे की बुर को चूसना होगा !
यह बात सुनते ही मैं चौंक गई, मुझे ऐसा लगा कि यह क्या पागलपन है।
तभी सुधा खुशी से बोली- हाँ.. क्यों नहीं.. बहुत मजा आएगा !
पर मैं इसके लिए तैयार नहीं थी, पर सुधा और विजय जिद पर अड़ गए और विजय ने मुझे कस कर पकड़ लिया। फिर सुधा ने मेरे सिर को थामा और मेरे होंठों से होंठ लगा कर मेरे होंठों चूमने लगी।
मैं बार-बार मना कर रही थी, पर उन पर कोई असर नहीं हुआ। तब मैं गुस्से में आ गई तो उन दोनों ने मुझे छोड़ दिया।
मैं गुस्से से जाने लगी तब उन दोनों ने मुझसे माफ़ी माँगी और फिर हम वैसे ही अपनी काम-क्रीड़ा में लग गए।
सुधा के लिए शायद ये सब नया नहीं था क्योंकि वो ऐसी पार्टियों में जाया करती थी।
पर मेरे लिए ये सब नया था तो मैं सहज नहीं थी।
तब सुधा ने मुझसे कहा- सारिका, तुम्हें मजे लेने चाहिए क्योंकि ऐसा मौका हमेशा नहीं मिलता !
मैंने कह दिया- मुझे इस तरह का मजा नहीं चाहिए… मैं बस अपनी यौन-तृप्ति चाहती थी इसलिए तुम लोगों की हर बात ना चाहते हुए भी माना, पर अब हद हो गई है !
तब विजय ने मुझसे कहा- ठीक है, जैसा तुम चाहो वैसा ही करेंगे।
तब उन्होंने कहा- दो औरतें अगर एक-दूसरे का अंग छुए और खेलें तो खेल और भी रोचक हो जाता है।
पर मैंने मना कर दिया, तब उसने कहा- ठीक है मत करो ! तुम पर सुधा को करने दो उसे कोई दिक्कत नहीं।
मैंने कुछ देर सोचा फिर आधे मन से ‘हाँ’ कर दी।
अब विजय ने सुधा को पकड़ा और उसे पागलों की तरह चूमने, चूसने लगा। सुधा भी उसका जवाब दे रही थे।
दोनों काफी गर्म हो गए थे, तब विजय ने मुझसे कहा- तुम दोनों मेरा लंड चूसो !
वो किनारे पर आ गया, जहाँ पानी घुटनों तक था। सुधा और विजय आपस में चूमने लगे और मैं झुक कर घुटनों के बल खड़ी होकर उसके लिंग को प्यार करने लगी।
मैंने उसके लिंग को पहले हाथ से सहलाया, जब मैं उसके लिंग को आगे की तरफ खींचती तो ऊपर का चमड़ा उसके सुपाड़े को ढक देता पर जब पीछे करती तो उसका सुपाड़ा खुल कर बाहर आ जाता।
मैं दिन के उजाले में उसका सुपाड़ा पहली बार इतने करीब से देख रही थी, एकदम गहरा लाल.. किसी बड़े से चैरी की तरह था।
मैंने उसके सुपाड़े के ऊपर जीभ फिराई और फिर उसको अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। कुछ देर में विजय भी अपनी कमर को हिलाने लगा और अपने लिंग को मेरे मुँह में अन्दर बाहर करने लगा।
थोड़ी देर में सुधा भी घुटनों के बल आ गई और फिर वो भी लिंग को चूसने लगी। दोनों के लार और थूक से उसका लिंग तर हो गया था।
विजय ने अब कहा- चलो चट्टान के ऊपर चलते हैं।
फिर उसने सुधा को कहा- क्या तुम मेरे लिए सारिका की बुर चाटोगी !
उसने मुस्कुराते हुए सर हिलाया फिर मुझे चट्टान के ऊपर लेट जाने को कहा। मुझे अजीब लग रहा था क्योंकि पहली बार कोई औरत मेरी योनि के साथ ऐसा करने वाली थी।
उसने मेरी टाँगें फैला दीं और झुक कर मेरे टाँगों के बीच अपना सर रख दिया।
फिर उसने मेरी तरफ देख मुस्कुराते हुए कहा- अब तुम्हें बहुत मजा आएगा !
फिर उसने मेरी दोनों जाँघों को चूमा, फिर योनि के किनारे फिर अपनी जुबान को मेरी योनि में लगा कर नीचे से ऊपर ले आई।
उसने मेरी योनि को चाटना शुरू कर दिया।
काफी देर के बाद विजय सुधा के पीछे चला गया और झुक कर उसकी योनि को चाटने लगा। इधर सुधा मेरी योनि से तरह-तरह से खिलवाड़ करने लगी, कभी जुबान को योनि के ऊपर फिराती, तो कभी योनि में घुसाने की कोशिश करती, कभी दोनों हाथों से मेरी योनि को फैला देती और उसके अन्दर थूक कर दुबारा चाटने लगती या उंगली डाल देती।
कभी मेरी योनि के दोनों तरफ की पंखुड़ियों को दांत से पकड़ कर खींचती। मुझे इससे काफी उत्तेजना हो रही थी। मैं अब काफी गर्म हो कर तैयार थी, पर उन दोनों को तो खेलने में ज्यादा रूचि थी।
तभी विजय मेरे पास आकर लेट गया। मैंने उसको पकड लिया और चूमने लगी, साथ ही उसके लिंग को सहलाने लगी।
सुधा ने फिर मुझे छोड़ दिया और विजय के लिंग को पकड़ कर चूसा, फिर अपनी दोनों टाँगें फैला कर उसके कमर के दोनों तरफ कर उसके लिंग के ऊपर आ गई। मैंने उसके लिंग को उसकी योनि में रगड़ा और उसकी छेद पर टिका दिया। इस पर सुधा ने दबाव दिया, लिंग अन्दर चला गया।
अब सुधा ने धक्के लगाने शुरू कर दिए और विजय मुझे चूमने, चूसने में मग्न हो गया। वो मेरे स्तनों को पूरी ताकत से दाबता और चूसता तो कभी सुधा के आमों को चूसता।
करीब 10 मिनट के बाद सुधा सिसकी लेते हुए हांफने लगी और विजय के ऊपर गिर गई। मेरे लिए यह खुशी का पल था क्योंकि मैं खुद विजय का लिंग अपने अन्दर लेने को तड़प रही थी।
सुधा विजय के ऊपर से अलग हुई तो उसकी योनि में गाढ़े चिपचिपे पानी की तरह लार की तरह वीर्य लगा हुआ था।
विजय मेरे ऊपर आ गया तो मैंने अपनी टाँगें फैला दीं और ऊपर उठा दीं। उसने झुक मेरे दोनों स्तनों को चूमा, चूसा फिर मेरे होंठों को चूसने लगा।
मैंने हाथ से उसका लिंग पकड़ लिया और अपनी योनि के छेद पर टिका कर उसका सुपाड़ा अन्दर कर लिया। फिर मैंने अपनी कमर उठा दी। यह देख उसने जोश में जोर का धक्का मारा तो उसका लिंग मेरी बच्चेदानी से टकरा गई।
मैं चिहुंक उठी, मेरे मुँह से अकस्मात निकल गया- उई माँ… धीरे.. चोदो !
 
तब उसने 3-4 और जोर के धक्के लगाते हुए कहा- आज कुछ धीरे नहीं होगा !
उसका इतना जोश में आना, मुझे पागल कर रहा था… उसने जोर-जोर से मुझे चोदना शुरू कर दिया था।
मैं इतनी गर्म हो चुकी थी कि कुछ ही देर में मैं झड़ गई।
मैंने पूरी ताकत से विजय को पकड़ लिया।
तब विजय ने मुझसे कहा- आज इतनी जल्दी झड़ गई तुम !
मैंने उसको कहा- तुम्हें इससे कोई परेशानी नहीं होगी.. तुम जितना चाहो चोद सकते हो, मैं साथ दूँगी तुम्हारा !
यह सुन उसने धक्कों का सिलसिला जारी रखा कुछ ही देर में मुझे लगा कि मैं दुबारा झड़ जाऊँगी, सो मैंने उसको कस के बांहों में भर लिया। अपनी टाँगें उसके कमर के ऊपर रख उसको जकड़ लिया।
विजय की गति अब दुगुनी हो गई थी, उसकी साँसें और तेज़ हो गईं, मैं समझ गई कि अब वो भी झड़ने को है।
हमारे होंठ आपस में चिपके हुए थे और हम दोनों ने एक-दूसरे को यूँ पकड़ रखा था जैसे एक-दूसरे में समा जायेंगे। सिर्फ विजय का पेट हिल रहा था। वो मेरी योनि में लिंग अन्दर-बाहर तेज़ी से करके चोद रहा था।
अचानक मेरे शरीर की नसें खिंचने लगी और मैं झड़ गई।
ठीक उसी वक़्त विजय ने भी पूरी ताकत से धक्के मारते हुए मेरे अन्दर अपना रस छोड़ दिया।
हम दोनों हाँफते हुए एक-दूसरे से काफी देर लिपटे रहे। थोड़ा सुस्ताने के बाद हम वापस पानी में चले गए और फिर पानी में ही दो बार उसने मुझे और सुधा को चोदा।
हम तीनों काफी थक चुके थे, फिर हमने खुद को पानी से साफ़ करके कपड़े पहने और वापस घर को आ गए।

 रास्ते में मैंने उनको बताया, “मेरे पति ने मुझे कल वापस बुलाया है।”
इस पर विजय को दु:ख हुआ क्योंकि वो मेरे साथ कुछ समय और बिताना चाहता था।
पर उसने कहा- मैं रात को मिलूँ, पर मेरी हालत इन 4 दिनों में ऐसी हो गई थी कि मेरा मन नहीं हो रहा था।
फिर भी मैंने कहा- मैं कोशिश करुँगी !
फिर हम अपने-अपने घर चले गए।
मैं घर जाकर थोड़ी देर सोई रही, फिर शाम को घरवालों को बताया- मुझे कल वापस जाना है।
इस पर मेरी भाभी मुझे शाम को बाज़ार ले गईं और एक नई साड़ी दिलवाई। फिर करीब 7 बजे हम घर लौटे।
रास्ते भर मुझे विजय फोन करता रहा पर मैंने भाभी की वजह से फोन नहीं उठाया।
रात को सबके सोने के बाद मैंने उसको फोन किया तो उसने जिद कर दी कि मैं उसको छत पर मिलूँ !
काफी कहने पर मैं चली गई पर मैंने कहा- मुझसे और नहीं हो पाएगा।
हम छत पर बातें करने लगे। काफी देर बातें करने के बाद मैंने कहा- मुझे जाना है.. सुबह बस पकड़नी है !
पर उसने शायद ठान ली थी और मुझे पकड़ कर अपनी बांहों में भर लिया। मैंने उससे विनती भी की कि मुझे छोड़ दे, मेरी हालत ठीक नहीं है.. मेरे पूरे बदन में दर्द हो रहा है पर उसका अभी भी मुझसे मन नहीं भरा था।
शायद इसलिए मुझसे मेरे कानों में मुझे चूमते हुए कहा- मैं तुम्हें कोई तकलीफ नहीं दूँगा, क्या तुम्हें अभी तक मुझसे कोई परेशानी हुई !
मैं उसकी बातों से पिघलने लगी और उसकी बांहों में समाती चली गई। उसने मुझे वहीं पड़ी खाट पर लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गया।
मैंने एक लम्बी सी मैक्सी पहनी थी। उसे उसने उतारना चाहा, पर मैंने ने मना कर दिया।
तब उसने मेरे मैक्सी के आगे के हुक को खोल कर मेरे स्तनों को बाहर कर दिया और उनको प्यार करने लगा। उसने इस बार बहुत प्यार से मेरे स्तनों को चूसा, फिर कभी मेरे होंठों को चूमता या चूसता और कभी स्तनों को सहलाता।
तभी उसने मेरी मैक्सी को ऊपर पेट तक उठा दिया और मेरी जाँघों को सहलाने लगा। इतनी हरकतों के बाद तो मेरे अन्दर भी चिंगारी भड़कने लगी। सो मैंने भी नीचे हाथ डाल कर उसके लिंग को सहलाना शुरू कर दिया।
उसका एक हाथ नीचे मेरी जाँघों के बीच मेरी योनि को सहलाने लगा।
मैं गीली होने लगी तभी विजय मुझे चूमते हुए मेरी जाँघों के बीच चला गया और मेरी एक टांग को खाट के नीचे लटका दिया। अब उसने मेरी योनि को चूसना शुरू कर दिया पर इस बार अंदाज अलग था। वो बड़े प्यार से अपनी जीभ को मेरी योनि के ऊपर और बीच में घुमाता, फिर दोनों पंखुड़ियों को बारी-बारी चूसता और जीभ को छेद में घुसाने की कोशिश करता।
मुझे इतना आनन्द आ रहा था कि मुझे लगा अब मैं झड़ जाऊँगी। पर तभी उसने मेरे पेट को चूमते हुए नाभि से होता हुआ मेरे पास आ गया। मेरे होंठों को चूमा और अपना पजामा नीचे सरका दिया।
मैंने उसके लिंग को हाथ से पकड़ कर सहलाया, थोड़ा आगे-पीछे किया, फिर झुक कर चूसने लगी। उसका लिंग इतना सख्त हो गया था जैसे कि लोहा और काफी गर्म भी था। वो मेरे बालों को सहला रहा था और मैं उसके लिंग को प्यार कर रही थी।
तभी उसने मेरे चेहरे को ऊपर किया और कहा- अब आ जाओ मुझे चोदने दो !
मैंने सोचा था कि जैसा अब व्यवहार कर रहा है, वो इस तरह के शब्दों का प्रयोग नहीं करेगा, पर मैं भूल गई थी कि वासना के भूखे सब भूल जाते हैं।
मुझे अब यह बात ज्यादा पहले की तरह बैचैन नहीं कर रहे थे, क्योंकि इन 4 दिनों में मैं खुद बेशर्म हो चुकी थी।
उसने मुझे चित लिटा दिया। मेरी टाँगों को फैला कर अपनी जाँघों पर चढ़ा दिया। फिर झुक गया और मेरे ऊपर आ गया। उसका लिंग मेरी योनि से लग रहा था। सो मैंने हाथ से उसे पकड़ा और फिर अपनी योनि में उसका सुपाड़ा अन्दर कर दिया।
इसके बाद विजय मेरे ऊपर अपना पूरा वजन दे कर लेट गया फिर उसने मुझे चूमते हुए कहा- कुछ कहो !
मैं समझ गई कि वो क्या चाहता है, सो मैंने उसको कहा- अब देर मत करो.. चोदो मुझे !
उसने मुझे मुस्कुराते हुए देखा और मेरे होंठों को चूमते हुए धक्का दिया। उसका लिंग मेरी योनि में अंत तक चला गया। मेरी योनि में तो पहले से ही दर्द था, तो इस बार लिंग के अन्दर जाते ही मैं दर्द से कसमसा गई।
मेरी सिसकी सुनकर वो और जोश में आने लगा और बड़े प्यार से मुझे धीरे-धीरे धक्के लगाता, पर ऐसा लगता था जैसे वो पूरी गहराई में जाना चाहता हो। पता नहीं मैं दर्द को किनारे करती हुई उसका साथ देने लगी।
जब वो अपनी कमर को ऊपर उठाता, मैं अपनी कमर नीचे कर लेती और जब वो नीचे करता मैं ऊपर !
इसी तरह हौले-हौले हम लिंग और योनि को आपस में मिलाते और हर बार मुझे अपनी बच्चेदानी में उसका सुपाड़ा महसूस होता। वो धक्कों के साथ मेरे पूरे जिस्म से खेलता और मुझे बार-बार कहता- कुछ कहो!
काफी देर बाद उसने मुझे ऊपर उठाया और अपनी गोद में बिठा लिया और मुझसे कहा- सारिका, अब तुम चुदवाओ !
मैं समझ रही थी कि वो ऐसा इसलिए कह रहा था ताकि मैं भी उसी तरह के शब्द उसको बोलूँ।
मैंने भी उसकी खुशी के लिए उससे ऐसी बातें करनी शुरू कर दीं।
मैंने कहा- तुम भी चोदो मुझे.. नीचे से मैं भी धक्के लगाती हूँ !
यह सुन कर उसने अपनी कमर को उछालना शुरू कर दिया। मैंने भी धक्के तेज़ कर दिए। करीब 20 मिनट हो चुके थे, पर हम दोनों में से कोई अभी तक नहीं झड़ा था।
फिर उसने मुझे खाट के नीचे उतरने को कहा और मुझसे कहा कि मैं घुटनों के बल खड़ी होकर खाट पर पेट के सहारे लेट जाऊँ।
मैं नीचे गई और वैसे ही लेट गई।
विजय मेरे पीछे घुटनों के सहारे खड़ा हो गया फिर मेरी मैक्सी को मेरे चूतड़ के ऊपर उठा कर मेरे कूल्हों को प्यार किया, दबाया, चूमा फिर उन्हें फैला कर मेरी योनि को चूमते हुए कहा- तुम्हारी गांड और बुर कितनी प्यारी है !
फिर उसने अपना लिंग मेरी योनि से लगा कर धक्का दिया।
कुछ देर बाद शायद उसे मजा नहीं आ रहा था तो मुझसे कहा- तुम अपनी टाँगों को फैलाओ और चूतड़ ऊपर उठाओ !
मैंने वैसा ही किया इस तरह मेरी योनि थोड़ी ऊपर हो गई और अब उसका लिंग हर धक्के में पूरा अन्दर चला जाता, कभी-कभी तो मेरी नाभि में कुछ महसूस होता।
करीब दस मिनट और इसी तरह मुझे चोदने के बाद उसने मुझे फिर सीधा लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गया। उसने मेरी एक टांग को अपने कंधे पर चढ़ा दिया और मुझे चोदने लगा। करीब 5 मिनट में मेरी बर्दाश्त से बाहर होने लगा, सो मैंने अपनी टांग उसके कंधे से हटा कर उसको दोनों टाँगों से उसकी कमर जकड़ ली।
मेरी योनि अब रस से भर गई और इतनी चिपचिपी हो गई थी कि उसके धक्कों से ‘फच-फच’ की आवाज आने लगी थी। मैं अब चरमसुख की तरफ बढ़ने लगी। धीरे-धीरे मेरा शरीर सख्त होने लगा और मैंने नीचे से पूरी ताकत लगा दी।
उधर विजय की साँसें भी तेज़ होती जा रही थीं और धक्कों में भी तेज़ी आ गई थी। उसने अपनी पूरी ताकत मुझ पर लगा दी थी।
मैंने उसके चेहरे को देखा उसके माथे से पसीना टपक रहा था और चेहरा मानो ऐसा था जैसे काफी दर्द में हो। पर मैं जानती थी कि ये दर्द नहीं बल्कि एक असीम सुख की निशानी है।
उसने मुझे पूरी ताकत से पकड़ लिया और मैंने उसको। वो धक्कों की बरसात सा करने लगा और मैंने भी नीचे से उसका साथ दिया। इसी बीच मैं कराहते हुए झड़ गई। मेरे कुछ देर बाद वो भी झड़ गया। उसके स्खलन के समय के धक्के मुझे कराहने पर मजबूर कर रहे थे।
हम काफी देर तक यूँ ही लेटे रहे। करीब रात के 1 बज चुके थे। मैंने खुद के कपड़े ठीक किए फिर मैंने विजय को उठाया, पर वो सो चुका था।
मैंने चैन की सांस ली कि वो सो गया क्योंकि अगर जागता होता तो मुझे जाने नहीं देता सो मैंने दुबारा उठाने की कोशिश नहीं की।
मैंने उसका पजामा ऊपर चढ़ा दिया और दबे पाँव नीचे अपने कमरे में चली आई। दिन भर की थकान ने मेरा पूरा बदन चूर कर दिया था।
अगली सुबह मैं जल्दी से उठी। नहा-धो कर तैयार हुई और बस स्टैंड जाने लगी। रास्ते भर मेरी जाँघों में दर्द के वजह से चला नहीं जा रहा था।
उसी रात पति को भी सम्भोग की इच्छा हुई। पर राहत की बात मेरे लिए ये थी कि वो ज्यादा देर सम्भोग नहीं कर पाते थे, सो 10 मिनट के अन्दर सब कुछ करके सो गए।
अगले महीने मेरी माहवारी नहीं हुई, मैं समझ गई कि मेरे पेट में बच्चा है। पर अब ये मुश्किल था तय करना कि किसका बच्चा है।
फिर भी मुझे कोई परेशानी नहीं थी और तीसरा बच्चा भी लड़का ही हुआ।
मेरी ये कहानी कैसी लगी।















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