FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--34
हेडमास्टर साहब: तो मिस्टर चन्दर जी...
मैं: जी माफ़ कीजिये परन्तु मेरा नाम चन्दर नहीं है, मेरा नाम मानु है| (भौजी की ओर इशारा करते हुए) चन्दर इनके पति का नाम है, मैं उनका चचेरा भाई हूँ|
हेडमास्टर साहब: ओह माफ़ कीजिये मुझे लगा आप दोनों पति-पत्नी हैं! खेर आप कितना पढ़े हैं?
मैं: जी मैं बारहवीं कक्षा में हूँ ओर अगले साल CBSE बोर्ड की परीक्षा दूँगा|
हेडमास्टर साहब: वाह! वैसे इस गाँव में लोग बेटियों के पढ़ने पर बहुत काम ध्यान देते हैं| मुझे जानेक ख़ुशी हुई की आप अपनी भतीजी के लिए इतना सोचते हैं| खेर मैं आपका ज्यादा समय नहीं लूंगा... यदि आप कभी फ्री हों तो आइयेगा हम बैठ के कुछ बातें करेंगे|
मैं: जी अवश्य... वैसे मैं पूछना भूल गया, ये स्कूल सुबह कितने बजे खुलता है ओर छुट्टी का समय क्या है|
हेडमास्टर साहब: जी सुबह सात बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक|
मैं: और आप कब तक होते हैं यहाँ?
हेडमास्टर साहब: जी दरअसल मैं दूसरे गाँव से यहाँ आता हूँ तो मुझे तीन बजे तक हर हालत में निकलना पड़ता है| तो आप जब भी आएं तीन बजे से पहले आएं तीन बजे के बाद यहाँ कोई नहीं होता|
मेरा मकसद समय पूछने के पीछे कुछ और ही था| खेर हम घर आगये और मैंने ये खुश खबरी सब को सुना दी| सब खुश थे और नेहा तो सबसे ज्यादा खुश थी!!! पर नाजाने क्यों भौजी का मुंह बना हुआ था| मैं सबके सामने तो कारन नहीं पूछ सकता था... इसलिए सिवाए इन्तेजार करने के और कोई चारा नही था| दोपहर का भोजन तैयार था.. कुछ ही देर में रसिका भाभी भी आ गई, मेरे पास आके पूछने लगी;
रसिका भाभी: मानु... तुमने माधुरी से कल ऐसा क्या कह दिया की उस में इतना बदलाव आ गया? कल से उसने खाना-पीना फिर से शुरू कर दिया!!!
मैं: मैंने कुछ ख़ास नहीं कहा... बस उसे समझाया की वो ये पागलपन छोड़ दे| और मुझे जानके अच्छा लगा की वो फिर से खाना-पीना शुरू कर रही है|
बस इतना कह के मैं पलट के चल दिया... असल में मेरी फ़ट गई थी| अब मुझे जल्दी से जल्दी कुछ सोचना था| समय फिसलता जा रहा था.... समय... और बहाना... जगह का इन्तेजाम तो लघभग हो ही गया था|
इतना सोचना तो मुझे भौजी को सुहागरात वाला सरप्राइज देते हुए भी नहीं पड़ा था| ऊपर से भौजी का उदास मुंह देख के मन और दुःखी था... मैं शाम का इन्तेजार करने लगा... जब शाम को भौजी अपने घर की ओर जा रहीं थीं तब मैं चुप-चाप उनके घर के भीतर पहुँचा| अंदर भौजी चारपाई पे बैठी सर नीचे झुकाये सुबक रहीं थी|
मैं: क्या हुआ अब? जब से हम स्कूल से बात कर के लौटे हैं तब से आप उदास हो? क्या आप नहीं चाहते नेहा स्कूल जाए?
भौजी: नहीं... (सुबकते हुए) ऐसी बात नहीं है| वो... हेडमास्टर साहब ने समझा की आप ओर मैं पति-पत्नी हैं तो उस बात को लेके मैं...
मैं: तो क्या हुआ? उन्हें गलत फैमि ही तो हुई थी|
भौजी: इसी बात का तो दुःख है.. काश मैं आपकी पत्नी होती! काश हमारी शादी असल में हुई होती!
मैं: AWW मेरा बच्चा| (गले लगते हुए) !!! मैंने तो आपको पहले ही कहा था की भाग चलो मेरे साथ| पर आप ही नहीं माने ...
भौजी थोड़ा मुस्कुराई .. और मुझसे लिपटी रहीं... मैं उनकी पीठ सहलाता रहा| मन कर रहा था की उन्हें सबकुछ बता दूँ पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था|
भौजी: आप कुछ कहना चाहते हो?
मैं: नहीं तो
भौजी: आपकी दिल की धड़कनें बहुत तेज होती जा रही हैं|
मैं: अम्म ... हाँ एक बात है|
भौजी: क्या बात है बोलो...
मैंने आँखें बंद करते हुए, एक सांस में भौजी को सारी बात बता दी| मेरी बात सुन के भौजी स्तब्ध थी...
भौजी: तो आप उसकी बात मान रहे हो?
मैं: मेरे पास कोई और चारा नहीं.. अगर उसे कुछ हो गया तो मैं कभी भी इस इल्जाम के साथ जी नहीं पाउँगा| (मैंने भौजी की कोख पे हाथ रखा) मैं अपने होने वाले बच्चे की कसम खता हूँ मेरा इसमें कोई स्वार्थ नहीं!
भौजी कुछ नहीं बोली और चुप-चाप बाहर चली गईं और मैं उन्हें नहीं रोक पाया| मैं भी बाहर आ गया...
मुझे रसिका भाभी नजर आईं, मैं ऊके पास आया और उनसे हमारे बड़े घर के पीछे बने घर के बारे में पूछने लगा| उन्होंने बताया की वो घर पिताजी के मित्र चूॉबेय जी का है| वो अपने परिवार सहित अम्बाला में रहते हैं| सर्दियों में यहाँ आते हैं... बातों बातों में मैंने पता लगाया की उनके घर की चाबी हमारे पास है| क्योंकि उनके आने से पहले घरवाले घर की सफाई करवा देते हैं| मैंने रसिका भाभी से कहा की मेरा वो घर देखने की इच्छा है... किसी तरह से उन्हें मना के उन्हें साथ ले गया| घर का ताला खोला तो वो तो मकड़ी के जालों का घर निकला| तभी वहां से एक छिपकली निकल के भागी, जिसे देख रसिका भाभी एक दम से दर गईं और मुझसे चिपक गईं|
मैं: भाभी गई छिपकली|
रसिका भाभी: हाय राम इसीलिए मैं यहाँ आने से मना कर रही थी|
मैंने गौर से घर का जायजा लिया| स्कूल से मुझे ये जगह अच्छी लग रही थी| घर की दीवारें कुछ दस-बारह फुट ऊंचीं थी... आँगन में एक चारपाई थी जिसपे बहुत धुल-मिटटी जमी हुई थी| मैं बाहर आया और घर को चारों ओर से देखने लगा| दरअसल मुझे EXIT PLAN की भी तैयारी करनी थी| आपात्कालीन स्थिति में मुझे भागने का भी इन्तेजाम करना था| अब मैं कोई कूदने मैं एक्सपर्ट तो नहीं था पर फिर भी मजबूरी में कुछ भी कर सकता था| जगह का जायजा लने के बाद आप ये तो पक्का था की ये ही सबसे अच्छी जगह है ... स्कूल में फिर भी खतरा था क्योंकि वो सड़क के किनारे था ओर तीन बजे के बाद वहाँ ताला लगा होता| अब बात थी की चाबी कैसे चुराऊँ? इसके लिए मुझे देखना था की चाबी कहाँ रखी जाती है, ताकि मैं वहाँ से समय आने पे चाबी उठा सकूँ| चाबी रसिका बभभी के कमरे में रखी जाती थी.. तो मेरा काम कुछ तो आसान था| मैंने वो जगह देख ली जहाँ चाबी टांगी जाती थी| अब सबसे जर्रुरी था माधुरी से दिन तय करना... मैं चाहता था की ये काम जल्द से जल्द खत्म हो! पर मैं अपना ये उतावलापन माधुरी को नहीं दिखाना चाहता था ... वरना वो सोचती की मैं उससे प्यार करता हूँ|
उससे बात करने के लिए मुझे ज्यादा इन्तेजार नहीं करना पड़ा क्योंकि मुझसे ज्यादा उसे जल्दी थी| वो शाम को छः बजे मुझे स्कूल के पास दिखाई दी| मैं चुप-चाप स्कूल की ओर चल दिया|
माधुरी: मैंने आपकी पहली शर्त पूरी कर दी.. मैं शारीरिक रूप से स्वस्थ हो गई हूँ| आप खुद ही देख लो... तो आप कब कर रहे हो मेरी इच्छा पूरी?
मैं सच में बड़ा क़तरा रहा था कुछ भी कहने से .. इसलिए मैंने सोचा की एक आखरी बार कोशिश करने में क्या जाता है|
मैं: देखो... मैंने बहुत सोचा पर मैं तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं कर सकता, मुझे माफ़ कर दो!!!
माधुरी: मुझे पता था की आप कुछ ऐसा ही कहेंगे इसलिए मैं अपने साथ ये लाई हूँ| (उसने मुझे एक चाक़ू दिखाया) मैं आपके सामने अभी आत्महत्या कर लुंगी|
अब मेरी फ़ट गई... इस वक्त सिर्फ मैं ही इसके पास हूँ अगर इसे कुछ हो गया तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा|
मैं: रुको.. रुको.. रुको... मैं मजाक कर रहा था|
माधुरी: नहीं ... मैं जानती हूँ आप मजाक नहीं कर रहे थे| (माधुरी ने अब चाक़ू अपनी पेट की तरफ मोड़ रखा था) आप मुझे धोका देने वाले हो....
मैं: ठीक है.... कल... कल करेंगे ... अब प्लीज इसे फेंक दो|
माधुरी: (चाक़ू फेंकते हुए) कल कब?
मैं: शाम को चार बजे, तुम मुझे बड़े घर के पीछे मिलना|
माधुरी: थैंक यू !!!
मैं: (मैंने एक लम्बी सांस ली और उसके हाथ से चाक़ू छीन लिया और उसे दूर फेंक दिया) दुबारा कभी भी ऐसी हरकत मत करना !
माधुरी: सॉरी आइन्दा ऐसी गलती कभी नहीं करुँगी|
मैं वहां से चल दिया ... घर लौटने के बाद भौजी से मेरी कोई बात नहीं हुई| वो तो जैसे मेरे आस-पास भी नहीं भटक रहीं थी... बस एक नेहा थी जिससे मेरा मन कुछ शांत था|
ऐसा इंसान जिसे आप दिलों जान से चाहते हो, वो आपसे बात करना बंद कर दे तो क्या गुजरती है ये मुझे उस दिन पता चला| पर इसमें उनका कोई दोष नहीं था... दोषी तो मैं था! रात जैसे-तैसे कटी... सुबह हुई.. वही दिनचर्या... मैं चाहता था की ये समय रुक जाए और घडी में कभी चार बजे ही ना| आज तो मौसम भी जैसे मुझ पे गुस्सा निकालने को तैयार हो... सुबह से काले बदल छाये हुए थे आसमान में भी और शायद मेरे और भौजी के रिश्ते पर भी|
हाँ आज तो नेहा का पहला दिन था तो मैं ही उसे पहले दिन स्कूल छोड़ने गया .. वो थोड़ा सा रोइ जैसा की हर बच्चा पहलीबार स्कूल जाने पर रोता है पर फिर उसे बहला-फुसला के स्कूल छोड़ ही दिया| दोपहर को उसे स्कूल लेने गया तो वो मुझसे ऐसे लिपट गई जैसे सालों बाद मुझे देखा हो| उसे गोद में लिए मैं घर आया, भोजन का समय हुआ तो मैंने खाने से मन कर दिया और चुप-चाप लेट गया| नेहा मुझे फिर से बुलाने आई पर मैंने उसे प्यार से मना कर दिया|
घडी की सुइयाँ टिक..टिक..टिक...टिक..टिक... करते करते तीन बजे गए| मैं उठा और सबसे पहले रसिका भाभी के कमरे की ओर निकला| किस्मत से वो सो रहीं थीं.. वैसे भी वो इस समय सोती ही थीं| मैंने चुप-चाप चाभी उठाई और खेतों की ओर चला गया| जल्दी से खेत पहुँच मैं वहीँ टहलने लगा ताकि खेत में मौजूद घर वालों को लगे की मैं बोर हो रहा हूँ| इससे पहले कोई कुछ कहे मैं खुद ही बोला की "बहुत बोर हो गया हूँ, मैं जरा नजदीक के गाँव तक टहल के आता हूँ|" किसी ने कुछ नहीं कहा ओर मैं चुप चाप वहां से निकल लिया ओर सीधा बड़े घर के पीछे पहुँच गया| घडी में अभी साढ़े तीन हुए थे... पर ये क्या वहां तो माधुरी पहले से ही खड़ी थी!
मैं: तुम? तुम यहाँ क्या कर रही हो? अभी तो सिर्फ साढ़े तीन हुए हैं?
माधुरी: क्या करूँ जी... सब्र नहीं होता| अब जल्दी से बताओ की कहाँ जाना है?
मैंने इधर-उधर देखा क्योंकि मुझे शक था की कोई हमें एक साथ देख ना ले| फिर मैंने उसे अपने पीछे आने का इशारा किया.... मैंने ताला खोला और अंदर घुस गए, फटाक से मैंने दरवाजा बंद किया ताकि कहीं कोई हमें अंदर घुसते हुए ना देख ले| दिल की धड़कनें तेज थीं... पर मन अब भी नहीं मान रहा था| हाँ दिमाग में एक अजीब से कुलबुली जर्रूर थी क्योंकि आज मैं पहली बार एक कुँवारी लड़की की सील तोड़ने जा रहा था! अंदर अपहुंच के तो जैसे मेरा शरीर सुन्न हो गया... दिमाग और दिल के बीच का कनेक्शन टूट गया| दिमाग और शरीर का तालमेल खत्म हो गया...
माधुरी: आप क्या सोच रहे हो?
मैं: कुछ... कुछ नहीं|
माधुरी: प्लीज अब आप और मत तड़पाओ!
मैं: (झिड़कते हुए) यार... थोड़ा तो सब्र करो|
माधुरी: जबसे आपको बिना टी-शर्ट के देखा है तब से मन बड़ा बेताब है आपको फिर से उसी हालत में देखने को?
मैं: तुमने मुझे बिना कपड़ों के कब देख लिया?
माधुरी: उस दिन जब आप खेतों में काम करके लौटे थे और नहाने गए थे| दरवाजा बंद करना भूल गए थे या जानबूझ के खुला छोड़ा था?
मैंने अपने माथे पे हाथ रख लिया.... शुक्र है की इसने मुझे नंगा नहीं देख लिया|
माधुरी: आज तो मैं आपको पूरा.... (इतना कहके वो हंसने लगी)
मुझे चिंता हुई... कहीं ये भौजी के "Love Bites" ना देख ले! इसलिए मैं अब भी दरवाजे के पास खड़ा था .. मन बेचैन हो रहा था| माधुरी मेरी ओर बढ़ी और मुझे चूमने के लिए अपने पंजों के बल ऊपर उठ के खड़ी हुई पर मैं उसे रोकना चाहता था तो उसके कन्धों पे मेरा हाथ था| उसे तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ा और उसने अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिए| मैं पूरी कोशिश कर रहा था की मैंने कोई प्रतिक्रिया ना करूँ... और हुआ भी ऐसा ही| वो अपनी भरपूर कोशिश कर रही थी की मेरा मुख अपनी जीभ के "जैक" से खोल पाये पर मैं अपने आपको शांत रखने की कोशिश कर रहा था| जब उसे लगा की मेरी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही तो वो स्वयं ही रूक गई| वो वापस अपने पैरों पे खड़ी हो गई ओर मेरी ओर एक तक-तक़ी लगाए देखती रही| मेर चेहरे पे कोई भाव नहीं थे... आखिर वो मुझसे दूर हुई और मेरी टी-शर्ट उतारने के लिए हाथ आगे बढ़ाये|
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बदलाव के बीज--34
हेडमास्टर साहब: तो मिस्टर चन्दर जी...
मैं: जी माफ़ कीजिये परन्तु मेरा नाम चन्दर नहीं है, मेरा नाम मानु है| (भौजी की ओर इशारा करते हुए) चन्दर इनके पति का नाम है, मैं उनका चचेरा भाई हूँ|
हेडमास्टर साहब: ओह माफ़ कीजिये मुझे लगा आप दोनों पति-पत्नी हैं! खेर आप कितना पढ़े हैं?
मैं: जी मैं बारहवीं कक्षा में हूँ ओर अगले साल CBSE बोर्ड की परीक्षा दूँगा|
हेडमास्टर साहब: वाह! वैसे इस गाँव में लोग बेटियों के पढ़ने पर बहुत काम ध्यान देते हैं| मुझे जानेक ख़ुशी हुई की आप अपनी भतीजी के लिए इतना सोचते हैं| खेर मैं आपका ज्यादा समय नहीं लूंगा... यदि आप कभी फ्री हों तो आइयेगा हम बैठ के कुछ बातें करेंगे|
मैं: जी अवश्य... वैसे मैं पूछना भूल गया, ये स्कूल सुबह कितने बजे खुलता है ओर छुट्टी का समय क्या है|
हेडमास्टर साहब: जी सुबह सात बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक|
मैं: और आप कब तक होते हैं यहाँ?
हेडमास्टर साहब: जी दरअसल मैं दूसरे गाँव से यहाँ आता हूँ तो मुझे तीन बजे तक हर हालत में निकलना पड़ता है| तो आप जब भी आएं तीन बजे से पहले आएं तीन बजे के बाद यहाँ कोई नहीं होता|
मेरा मकसद समय पूछने के पीछे कुछ और ही था| खेर हम घर आगये और मैंने ये खुश खबरी सब को सुना दी| सब खुश थे और नेहा तो सबसे ज्यादा खुश थी!!! पर नाजाने क्यों भौजी का मुंह बना हुआ था| मैं सबके सामने तो कारन नहीं पूछ सकता था... इसलिए सिवाए इन्तेजार करने के और कोई चारा नही था| दोपहर का भोजन तैयार था.. कुछ ही देर में रसिका भाभी भी आ गई, मेरे पास आके पूछने लगी;
रसिका भाभी: मानु... तुमने माधुरी से कल ऐसा क्या कह दिया की उस में इतना बदलाव आ गया? कल से उसने खाना-पीना फिर से शुरू कर दिया!!!
मैं: मैंने कुछ ख़ास नहीं कहा... बस उसे समझाया की वो ये पागलपन छोड़ दे| और मुझे जानके अच्छा लगा की वो फिर से खाना-पीना शुरू कर रही है|
बस इतना कह के मैं पलट के चल दिया... असल में मेरी फ़ट गई थी| अब मुझे जल्दी से जल्दी कुछ सोचना था| समय फिसलता जा रहा था.... समय... और बहाना... जगह का इन्तेजाम तो लघभग हो ही गया था|
इतना सोचना तो मुझे भौजी को सुहागरात वाला सरप्राइज देते हुए भी नहीं पड़ा था| ऊपर से भौजी का उदास मुंह देख के मन और दुःखी था... मैं शाम का इन्तेजार करने लगा... जब शाम को भौजी अपने घर की ओर जा रहीं थीं तब मैं चुप-चाप उनके घर के भीतर पहुँचा| अंदर भौजी चारपाई पे बैठी सर नीचे झुकाये सुबक रहीं थी|
मैं: क्या हुआ अब? जब से हम स्कूल से बात कर के लौटे हैं तब से आप उदास हो? क्या आप नहीं चाहते नेहा स्कूल जाए?
भौजी: नहीं... (सुबकते हुए) ऐसी बात नहीं है| वो... हेडमास्टर साहब ने समझा की आप ओर मैं पति-पत्नी हैं तो उस बात को लेके मैं...
मैं: तो क्या हुआ? उन्हें गलत फैमि ही तो हुई थी|
भौजी: इसी बात का तो दुःख है.. काश मैं आपकी पत्नी होती! काश हमारी शादी असल में हुई होती!
मैं: AWW मेरा बच्चा| (गले लगते हुए) !!! मैंने तो आपको पहले ही कहा था की भाग चलो मेरे साथ| पर आप ही नहीं माने ...
भौजी थोड़ा मुस्कुराई .. और मुझसे लिपटी रहीं... मैं उनकी पीठ सहलाता रहा| मन कर रहा था की उन्हें सबकुछ बता दूँ पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था|
भौजी: आप कुछ कहना चाहते हो?
मैं: नहीं तो
भौजी: आपकी दिल की धड़कनें बहुत तेज होती जा रही हैं|
मैं: अम्म ... हाँ एक बात है|
भौजी: क्या बात है बोलो...
मैंने आँखें बंद करते हुए, एक सांस में भौजी को सारी बात बता दी| मेरी बात सुन के भौजी स्तब्ध थी...
भौजी: तो आप उसकी बात मान रहे हो?
मैं: मेरे पास कोई और चारा नहीं.. अगर उसे कुछ हो गया तो मैं कभी भी इस इल्जाम के साथ जी नहीं पाउँगा| (मैंने भौजी की कोख पे हाथ रखा) मैं अपने होने वाले बच्चे की कसम खता हूँ मेरा इसमें कोई स्वार्थ नहीं!
भौजी कुछ नहीं बोली और चुप-चाप बाहर चली गईं और मैं उन्हें नहीं रोक पाया| मैं भी बाहर आ गया...
मुझे रसिका भाभी नजर आईं, मैं ऊके पास आया और उनसे हमारे बड़े घर के पीछे बने घर के बारे में पूछने लगा| उन्होंने बताया की वो घर पिताजी के मित्र चूॉबेय जी का है| वो अपने परिवार सहित अम्बाला में रहते हैं| सर्दियों में यहाँ आते हैं... बातों बातों में मैंने पता लगाया की उनके घर की चाबी हमारे पास है| क्योंकि उनके आने से पहले घरवाले घर की सफाई करवा देते हैं| मैंने रसिका भाभी से कहा की मेरा वो घर देखने की इच्छा है... किसी तरह से उन्हें मना के उन्हें साथ ले गया| घर का ताला खोला तो वो तो मकड़ी के जालों का घर निकला| तभी वहां से एक छिपकली निकल के भागी, जिसे देख रसिका भाभी एक दम से दर गईं और मुझसे चिपक गईं|
मैं: भाभी गई छिपकली|
रसिका भाभी: हाय राम इसीलिए मैं यहाँ आने से मना कर रही थी|
मैंने गौर से घर का जायजा लिया| स्कूल से मुझे ये जगह अच्छी लग रही थी| घर की दीवारें कुछ दस-बारह फुट ऊंचीं थी... आँगन में एक चारपाई थी जिसपे बहुत धुल-मिटटी जमी हुई थी| मैं बाहर आया और घर को चारों ओर से देखने लगा| दरअसल मुझे EXIT PLAN की भी तैयारी करनी थी| आपात्कालीन स्थिति में मुझे भागने का भी इन्तेजाम करना था| अब मैं कोई कूदने मैं एक्सपर्ट तो नहीं था पर फिर भी मजबूरी में कुछ भी कर सकता था| जगह का जायजा लने के बाद आप ये तो पक्का था की ये ही सबसे अच्छी जगह है ... स्कूल में फिर भी खतरा था क्योंकि वो सड़क के किनारे था ओर तीन बजे के बाद वहाँ ताला लगा होता| अब बात थी की चाबी कैसे चुराऊँ? इसके लिए मुझे देखना था की चाबी कहाँ रखी जाती है, ताकि मैं वहाँ से समय आने पे चाबी उठा सकूँ| चाबी रसिका बभभी के कमरे में रखी जाती थी.. तो मेरा काम कुछ तो आसान था| मैंने वो जगह देख ली जहाँ चाबी टांगी जाती थी| अब सबसे जर्रुरी था माधुरी से दिन तय करना... मैं चाहता था की ये काम जल्द से जल्द खत्म हो! पर मैं अपना ये उतावलापन माधुरी को नहीं दिखाना चाहता था ... वरना वो सोचती की मैं उससे प्यार करता हूँ|
उससे बात करने के लिए मुझे ज्यादा इन्तेजार नहीं करना पड़ा क्योंकि मुझसे ज्यादा उसे जल्दी थी| वो शाम को छः बजे मुझे स्कूल के पास दिखाई दी| मैं चुप-चाप स्कूल की ओर चल दिया|
माधुरी: मैंने आपकी पहली शर्त पूरी कर दी.. मैं शारीरिक रूप से स्वस्थ हो गई हूँ| आप खुद ही देख लो... तो आप कब कर रहे हो मेरी इच्छा पूरी?
मैं सच में बड़ा क़तरा रहा था कुछ भी कहने से .. इसलिए मैंने सोचा की एक आखरी बार कोशिश करने में क्या जाता है|
मैं: देखो... मैंने बहुत सोचा पर मैं तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं कर सकता, मुझे माफ़ कर दो!!!
माधुरी: मुझे पता था की आप कुछ ऐसा ही कहेंगे इसलिए मैं अपने साथ ये लाई हूँ| (उसने मुझे एक चाक़ू दिखाया) मैं आपके सामने अभी आत्महत्या कर लुंगी|
अब मेरी फ़ट गई... इस वक्त सिर्फ मैं ही इसके पास हूँ अगर इसे कुछ हो गया तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा|
मैं: रुको.. रुको.. रुको... मैं मजाक कर रहा था|
माधुरी: नहीं ... मैं जानती हूँ आप मजाक नहीं कर रहे थे| (माधुरी ने अब चाक़ू अपनी पेट की तरफ मोड़ रखा था) आप मुझे धोका देने वाले हो....
मैं: ठीक है.... कल... कल करेंगे ... अब प्लीज इसे फेंक दो|
माधुरी: (चाक़ू फेंकते हुए) कल कब?
मैं: शाम को चार बजे, तुम मुझे बड़े घर के पीछे मिलना|
माधुरी: थैंक यू !!!
मैं: (मैंने एक लम्बी सांस ली और उसके हाथ से चाक़ू छीन लिया और उसे दूर फेंक दिया) दुबारा कभी भी ऐसी हरकत मत करना !
माधुरी: सॉरी आइन्दा ऐसी गलती कभी नहीं करुँगी|
मैं वहां से चल दिया ... घर लौटने के बाद भौजी से मेरी कोई बात नहीं हुई| वो तो जैसे मेरे आस-पास भी नहीं भटक रहीं थी... बस एक नेहा थी जिससे मेरा मन कुछ शांत था|
ऐसा इंसान जिसे आप दिलों जान से चाहते हो, वो आपसे बात करना बंद कर दे तो क्या गुजरती है ये मुझे उस दिन पता चला| पर इसमें उनका कोई दोष नहीं था... दोषी तो मैं था! रात जैसे-तैसे कटी... सुबह हुई.. वही दिनचर्या... मैं चाहता था की ये समय रुक जाए और घडी में कभी चार बजे ही ना| आज तो मौसम भी जैसे मुझ पे गुस्सा निकालने को तैयार हो... सुबह से काले बदल छाये हुए थे आसमान में भी और शायद मेरे और भौजी के रिश्ते पर भी|
हाँ आज तो नेहा का पहला दिन था तो मैं ही उसे पहले दिन स्कूल छोड़ने गया .. वो थोड़ा सा रोइ जैसा की हर बच्चा पहलीबार स्कूल जाने पर रोता है पर फिर उसे बहला-फुसला के स्कूल छोड़ ही दिया| दोपहर को उसे स्कूल लेने गया तो वो मुझसे ऐसे लिपट गई जैसे सालों बाद मुझे देखा हो| उसे गोद में लिए मैं घर आया, भोजन का समय हुआ तो मैंने खाने से मन कर दिया और चुप-चाप लेट गया| नेहा मुझे फिर से बुलाने आई पर मैंने उसे प्यार से मना कर दिया|
घडी की सुइयाँ टिक..टिक..टिक...टिक..टिक... करते करते तीन बजे गए| मैं उठा और सबसे पहले रसिका भाभी के कमरे की ओर निकला| किस्मत से वो सो रहीं थीं.. वैसे भी वो इस समय सोती ही थीं| मैंने चुप-चाप चाभी उठाई और खेतों की ओर चला गया| जल्दी से खेत पहुँच मैं वहीँ टहलने लगा ताकि खेत में मौजूद घर वालों को लगे की मैं बोर हो रहा हूँ| इससे पहले कोई कुछ कहे मैं खुद ही बोला की "बहुत बोर हो गया हूँ, मैं जरा नजदीक के गाँव तक टहल के आता हूँ|" किसी ने कुछ नहीं कहा ओर मैं चुप चाप वहां से निकल लिया ओर सीधा बड़े घर के पीछे पहुँच गया| घडी में अभी साढ़े तीन हुए थे... पर ये क्या वहां तो माधुरी पहले से ही खड़ी थी!
मैं: तुम? तुम यहाँ क्या कर रही हो? अभी तो सिर्फ साढ़े तीन हुए हैं?
माधुरी: क्या करूँ जी... सब्र नहीं होता| अब जल्दी से बताओ की कहाँ जाना है?
मैंने इधर-उधर देखा क्योंकि मुझे शक था की कोई हमें एक साथ देख ना ले| फिर मैंने उसे अपने पीछे आने का इशारा किया.... मैंने ताला खोला और अंदर घुस गए, फटाक से मैंने दरवाजा बंद किया ताकि कहीं कोई हमें अंदर घुसते हुए ना देख ले| दिल की धड़कनें तेज थीं... पर मन अब भी नहीं मान रहा था| हाँ दिमाग में एक अजीब से कुलबुली जर्रूर थी क्योंकि आज मैं पहली बार एक कुँवारी लड़की की सील तोड़ने जा रहा था! अंदर अपहुंच के तो जैसे मेरा शरीर सुन्न हो गया... दिमाग और दिल के बीच का कनेक्शन टूट गया| दिमाग और शरीर का तालमेल खत्म हो गया...
माधुरी: आप क्या सोच रहे हो?
मैं: कुछ... कुछ नहीं|
माधुरी: प्लीज अब आप और मत तड़पाओ!
मैं: (झिड़कते हुए) यार... थोड़ा तो सब्र करो|
माधुरी: जबसे आपको बिना टी-शर्ट के देखा है तब से मन बड़ा बेताब है आपको फिर से उसी हालत में देखने को?
मैं: तुमने मुझे बिना कपड़ों के कब देख लिया?
माधुरी: उस दिन जब आप खेतों में काम करके लौटे थे और नहाने गए थे| दरवाजा बंद करना भूल गए थे या जानबूझ के खुला छोड़ा था?
मैंने अपने माथे पे हाथ रख लिया.... शुक्र है की इसने मुझे नंगा नहीं देख लिया|
माधुरी: आज तो मैं आपको पूरा.... (इतना कहके वो हंसने लगी)
मुझे चिंता हुई... कहीं ये भौजी के "Love Bites" ना देख ले! इसलिए मैं अब भी दरवाजे के पास खड़ा था .. मन बेचैन हो रहा था| माधुरी मेरी ओर बढ़ी और मुझे चूमने के लिए अपने पंजों के बल ऊपर उठ के खड़ी हुई पर मैं उसे रोकना चाहता था तो उसके कन्धों पे मेरा हाथ था| उसे तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ा और उसने अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिए| मैं पूरी कोशिश कर रहा था की मैंने कोई प्रतिक्रिया ना करूँ... और हुआ भी ऐसा ही| वो अपनी भरपूर कोशिश कर रही थी की मेरा मुख अपनी जीभ के "जैक" से खोल पाये पर मैं अपने आपको शांत रखने की कोशिश कर रहा था| जब उसे लगा की मेरी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही तो वो स्वयं ही रूक गई| वो वापस अपने पैरों पे खड़ी हो गई ओर मेरी ओर एक तक-तक़ी लगाए देखती रही| मेर चेहरे पे कोई भाव नहीं थे... आखिर वो मुझसे दूर हुई और मेरी टी-शर्ट उतारने के लिए हाथ आगे बढ़ाये|
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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