FUN-MAZA-MASTI
सौतेला बाप--32
अब आगे
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और अचानक उसके लरजते हुए होंठों को देखते हुए विक्की के लंड से रसमलाई निकल कर उसके चेहरे पर गिरने लगी...
और देखते ही देखते उसने रश्मि के पूरे चेहरे पर बर्फ़बारी करके उसको सफेद चादर से ढक दिया..बाकी की बची हुई मलाई उसने खुद ही चूस-चूस्कर खा ली.
रश्मि की प्यास अभी भी नही बुझी थी...और विक्की ने उसे बुझाने के लिए कोई और जतन भी नही किया...आख़िर थकी हुई सी रश्मि की समझ मे ये बात आ ही गयी की वो अपनी बात पर अडिग है, और फिर उसने बाथरूम मे जाकर अपने आप को साफ़ किया...उसके कपड़े हल्के से गीले थे, पर फिर भी उसने उन्हे पहना और तैयार हो गयी.
विक्की ने भी कपड़े पहन लिए थे...और फिर बाहर जाती हुई रश्मि एकदम से रुकी और बोली : "आज तो मैने तेरी बात का मान रख लिया है...पर तेरा काम पूरा हो जाने के बाद मैं तुझे नही छोड़ूँगी...तुझे मेरी प्यास बुझानी ही पड़ेगी...सैटरडे को 1 बजे तक आ जाना मेरे घर..''
इतना कहकर वो बाहर निकल गयी..
और विक्की अपनी किस्मत पर खुश होकर आने वेल सैटरडे के सपने देखने लगा.
घर पहुँचकर रश्मि काफ़ी खुश थी....आज पूरे दिन के बारे मे सोचकर वो मुस्कुराए ही जा रही थी..उसने तो सोचा भी नही था की वो ऐसी बन जाएगी...अभी कुछ समय पहले ही तो उसकी शादी हुई है..इतने सालो से दबी हुई वासना अब भयानक रूप लेकर बाहर निकल रही है, शायद इसलिए उसकी प्यास सिर्फ़ अपने नये पति से नही बुझ रही है..वो खुद नही जानती थी की वो ऐसा क्यो बिहेव कर रही है..उसका तन और मन अब उसके दिमाग़ की नही सुन रहे थे ,वो अपनी जिंदगी के हर मज़े लेना चाहती थी, वैसे मज़ा तो उसको विक्की के बाप के साथ भी आया था, पर वो बुड्ढा भी सही से और समय की कमी की वजह से कुछ नही कर पाया वरना आज उसके पास भी सुनहरा अवसर था उसकी चूत मारने का.
दूसरों से चुदाई करवाने का विचार आते ही उसके मन मे एकदम से हज़ारों ओप्शन्स आने लगे...की वो अगर खुलकर चुदाई करवाना चाहे तो बिना किसी डर के किस-किससे चुदवा सकती है..
अपनी बेटी के बाय्फ्रेंड से तो वो चुदवाने को तैयार हो ही चुकी थी ..अपने पति के दोस्त लोकेश से करे तो वो भी मना नही करेगा...उसकी भूखी नज़रों को वो अच्छी तरह से समझती थी..और उसने तो उसको और समीर को नंगा भी देखा था, हनिमून पर..और कौन हो सकता है...उसके घर के नौकर...ड्राइवर...
या फिर दोनों का एक साथ लेने में भी कितना मजा आएगा
और ये ख़याल आते ही उसके जहन में दृश्य उभर आया जिसमें वो दो लंडो से पिलवा है
और ये सब सोचते-2 उसकी चूत एकदम से गीली होकर रिसने लगी...वो अपनी सोच पर खुद ही मुस्कुरा दी..ऐसा अगर सच मे हो गया तो वो दुनिया की सबसे बड़ी रांड बन जाएगी..
''क्या बात है माँ , अकेले बैठी हुई मुस्कुरा रही हो...'' काव्या ने अंदर आते हुए कहा..शायद उसने रश्मि को अकेले मे हंसते हुए देख लिया था...पर उसको अगर पता चल जाता की वो क्यो हंस रही है तो वो बेचारी भी हैरान रह जाती..
रश्मि ने सकपकाते हुए कहा : "अरे...कुछ भी तो नही..बस ऐसे ही कुछ याद आ गया..''
काव्या : "क्या माँ ...क्या याद आ गया...'' वो भी आज काफ़ी लाड वाले मूड मे थी..वो पालती मारकर वहीं रश्मि के पास बैठ गयी.
रश्मि ने कुछ सोचा , फिर बोली : "अपने स्कूल टाइम की बात याद आ गयी...एक लड़के के बारे मे सोच रही थी...''
काव्या की आँखे चमक उठी ये बात सुनकर , वो चहकति हुई बोली : "वाव मॉम , आप भी...मतलब आपके जमाने मे भी ये सब होता था..गर्लफ्रेंड, बाय्फ्रेंड एंड ऑल देट ...''
रश्मि (शर्म से लाल होते हुए) : "और नही तो क्या, तू क्या समझती है, तेरा बाय्फ्रेंड हो सकता है तो मेरा नही हो सकता क्या...मैं तेरे और तेरे उस फ्रेंड विक्की के बारे मे ही सोच रही थी..जब तूने उसके बारे मे बताया था , तब तो मुझे काफ़ी गुस्सा आया था, पर जब मैने सोचा की उस उम्र मे मैने भी तो ये सब किया है, तो मुझे तेरी सब बातें सही लगी..''
रश्मि बोले जा रही थी और उसकी बातें सुनकर काव्या के चेहरे के रंग बदल रहे थे...उसने अपना माथा पीट लिया, उसकी मनघड़त बातों को उसकी माँ ने सच समझ लिया था, वो तो उस विक्की से कितनी नफ़रत करती है, और वैसे भी उसने उसके और अपने चक्कर की बात तो किसी और मकसद से कही थी, जो अब पूरा हो चुका था, फिर ये माँ क्यो उसकी बात कर रही है.
रश्मि कहती रही : "तू ऐसा मत समझना बेटी की मैं या तेरे पापा तुझे समझते नही हैं, वो क्या है ना की तू अब जवान हो गयी है, ये सब सोच समझकर करना चाहिए...कौन कैसा है ,ये आजकल किसी के चेहरे पर नही लिखा रहता..''
काव्या अपनी माँ का बोर सा भाषण सुनती जा रही थी.
रश्मि : "मुझे उस लड़के के बारे मे ज़्यादा पता तो नही था, इसलिए मैं उससे मिलने गयी थी...''
रश्मि की ये बात सुनकर काव्या के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी..वो समझ गयी की उसका झूट पकड़ा जा चुका है...
पर रश्मि की अगली बात सुनकर वो हैरान रह गयी
रश्मि : "वो लड़का मुझे भी पसंद आया...ये उम्र अभी शादी की तो नही है तुम्हारी, पर प्यार भी एक हद तक करना चाहिए...तू समझ रही है ना मेरा मतलब...और मुझे उसके और तेरे मिलने से कोई ऐतराज नही है...वो भी तेरी काफ़ी तारीफ कर रहा था...और तुझसे प्यार भी काफ़ी करता है...''
काव्या की समझ मे नही आ रहा था की ये नया एंगल कहाँ से आ गया एकदम से ...उसने तो झूट बोला था अपने और विक्की के बारे में...फिर ये विक्की कैसे वही बात दोहरा रहा है उन दोनो के बारे मे...ओह्ह्ह्ह ....अब समझी...ये साला विक्की तो पहले से ही हरामी है, मेरी माँ के मुँह से सारी बातें सुनकर उसने भी बहते पानी मे हाथ धोने की सोची होगी...साला एक नंबर का हरामी है ये तो...उसने वो बात उसकी माँ को पता नही चलने दी, ताकि वो मुझसे सच मे मज़े ले सके...वो समझता क्या है अपने आप को, साला गली का कीड़ा...एक नंबर का हरामी, साला कुत्ता...
वो मन ही मन विक्की को कोस रही थी और उसको गालियाँ दे रही थी..
पर वो अपनी माँ को कैसे समझाती की ये सब झूट है, वो खुद अब ये बात बोलकर अपनी माँ और अपने प्यारे पापा समीर के सामने शर्मिंदा नही होना चाहती थी...
उसने सोच लिया की वो जल्द से जल्द विक्की से बात करेगी और सारी बातें साफ़ कर लेगी..
उसकी एक सहेली अभी भी वहीं रहती थी, और वो विक्की को अच्छी तरह से जानती थी, उससे विक्की का नंबर लेकर बात करनी पड़ेगी..
वो ये सोच ही रही थी की उसकी माँ ने एक और बोम्ब फेंक दिया उसके सिर पर.
रश्मि : "वैसे तो विक्की ने तुझे फोन करके बता ही दिया होगा, मैने उसको सेटरडे को यहाँ अपने घर बुलाया है...वो एक बजे तक आएगा...''
अब तो काव्या का सिर बुरी तरह से घूमने लगा..
काव्या : "वो ...वो ...क्यू मॉम ...''
रश्मि : "बेटी, तू मुझे अपनी दुश्मन मत समझ, दोस्त हू मैं तेरी...तू मेरी पीठ पीछे कुछ करेगी,वो तेरी नज़रों मे ग़लत होगा, और उसको छुपाने के लिए तू मुझसे झूट बोलेगी, जो मैं नही चाहती, इसलिए तू खुलकर उससे मिल, यहीं अपने घर पर,चाहे तो अपने रूम मे भी ले जा उसको...पर मैं ये चाहती हू की तू इन सबकी वजह से ये मत सोचे की मैं तुझे प्यार नही करती या मैं तेरे प्यार को समझती नही..''
काव्या समझ गयी की वो तो आदर्श माँ बन रही है उसके सामने...अगर सच मे उसका विक्की के साथ कोई चक्कर होता तो आज ये बात सुनकर वो फूली ना समाती, पर वो अच्छी तरह से जानती थी की उसकी माँ ने ये सब करके कितनी बड़ी ग़लती की है..
पर जो भी है, वो अपनी माँ को ये बात हरगिज़ नही बता सकती थी की असल मे बात क्या है...और कहती भी किस मुँह से...उस दिन तो बड़ी शेखी बघारते हुए उसने विक्की का नाम ले लिया था..और संडे को उसके साथ लवर पॉइंट पर मिलने का प्रोग्राम भी बना लिया था...पर उसकी माँ ऐसे सीधा विक्की के पास पहुँच जाएगी इस बात का अंदाज़ा बिल्कुल भी नही था उसको...वो मन ही मन उस पल को कोस रही थी जब उसने विक्की का नाम लिया था.
पर अब तो कुछ हो ही नही सकता था..उसको जल्द से जल्द विक्की को फोन करना होगा..
वो अपनी माँ को बिना कुछ कहे अपने कमरे मे भाग गयी..
रश्मि ने समझा की शायद ये बात सुनकर शर्मा गयी है और खुशी के मारे विक्की से बात करने भाग गयी है..
वो फिर से मुस्कुराते हुए अपने काम मे लग गयी.
काव्या ने जल्दी से जाकर अपनी सहेली को फोन किया और उससे विक्की का नंबर निकलवाया और एक मिनट मे ही सीधा उसे फोन मिला दिया.
दो बेल के बाद विक्की ने फोन उठाया
विक्की : "हेलो....कौन...''
काव्या ने धड़कते दिल से कह : "मैं काव्या बोल रही हू...''
विक्की : "ओहो....काव्या मेरी जान.....क्या बात है...आज मेरी याद कैसे आ गयी..''
काव्या (गुस्से मे) : "तुम अच्छी तरह से जानते हो की मैने किसलिए फोन किया है...''
विक्की : "नही मुझे नही पता, तू बोल ना मेरी चंपा,किसलिए फोन किया है....''
वो मज़े लेने के मूड मे आ चुका था..
उसकी बात सुनकर काव्या झल्ला गयी : "सुन विक्की....तू किसी ग़लतफहमी मे मत रहना...मेरी माँ ने चाहे कुछ भी कहा हो तुझसे..मुझपर तेरी किसी बात का कोई फ़र्क नही पड़ता..''
विक्की : "मैं भी कौन सा तेरे लिए मरा जा रहा हू, तेरी माँ खुद ही आई थी मेरे पास...सोच ,मैं अगर सच बोल देता तो तेरी क्या हालत होती तेरे घर मे...तेरे नये बाप के सामने क्या इज़्ज़त रह जाती तेरी...''
विक्की ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था...वो समझ गयी की जिस बात से वो डर रही थी , विक्की भी उसी बात का फायदा उठाना चाहता है...
वो थोड़ा नर्म होती हुई बोली : "तुम आख़िर चाहते क्या हो...''
विक्की के कान तो जैसे ये शब्द सुनने के लिए तरस रहे थे..
वो बोला : "ये तो मैं तुम्हे सेटरडे आकर ही बताऊंगा ...''
और इतना कहते हुए उसने फोन रख दिया.
काव्या का मन किया की वो रो पड़े.....ये सारी मुसीबत उसने खुद ही खड़ी की थी.
और अब इसका समाधान भी उसको खुद ही ढूँढना पड़ेगा.
वो जल्दी से तैयार होकर श्वेता के घर की तरफ चल दी, क्योंकि ऐसी मुसीबत मे वही उसकी कोई मदद कर सकती थी.
''आहहssssssssssssss ......... चोदो मुझे ................... येस्स्स्स्स्स्स ...........................ऐसे ही ...................... फाड़ दो मेरी चूत ..............''
श्वेता के घर के अंदर घुसते ही काव्या को ये सब सुनाई दिया...उसने तो ये सोचा भी नही था की श्वेता ऐसे दरवाजा खुला छोड़कर चुदाई करवा रही होगी..ऐसी लापरवाही की उम्मीद नही थी उसको.
पर श्वेता की लगातार चीखों ने उसके दिल की धड़कनो को ज़रूर तेज कर दिया था..
उसने दरवाजा धीरे से बंद किया और अपने पंजो पर चलती हुई उपर की तरफ चल दी, श्वेता के बेडरूम की तरफ, जहाँ से आवाज़ें आ रही थी.
और उसकी लापरवाही की और भी हद देखी उपर जाकर उसने, वो और उसका भाई नितिन पूरा दरवाजा खोल कर चुदाई कर रहे थे..
चुदाई का ऐसा सीन काव्या ने ब्लू फ़िल्मो मे भी नही देखा था.
नितिन और श्वेता बुरी तरह से बेड पर लगे हुए थे...श्वेता ने तो अपने कपड़े भी नहीं उतारे थे पूरी तरह से, उसकी शमीज़ अभी तक उसके जिस्म पर थी, और नितिन ने उसको घोड़ी बनाकर उसकी चूत मे पीछे से लंड पेला हुआ था, और उसकी कमर पकड़कर ज़ोर से धक्के मार रहा था.
दरवाजा पूरा खुला हुआ था, पर दोनों का चेहरा दूसरी तरफ था, पर वो लोग थोड़ा भी पलट कर देखते तो उन्हे काव्या साफ़ दिख जाती, काव्या भी उनकी चुदाई पूरी देखना चाहती थी, इसलिए उसने छुपकर वो सब देखने का विचार बनाया..क्योंकि उन्हे देखकर वो गर्म तो हो ही चुकी थी, ऐसे मे उन्हे डिस्टर्ब करके वो उनका और अपना मज़ा खराब नही करना चाहती थी.
वो जल्दी से सामने बने नितिन के बेडरूम के अंदर घुस गयी और उसने थोड़ा सा दरवाजा खुला रहने दिया, जिसमे से वो सामने के कमरे मे चल रही चुदाई का पूरा आनंद उठा सकती थी.
और ये सब करते हुए वो ये भी भूल चुकी थी की वो वहाँ करने क्या आई है, अपनी मुसीबत का समाधान करने के बजाए वो श्वेता और उसके भाई नितिन की चुदाई मे मगन हो गयी..
दोस्तो, तभी तो कहते है की सेक्स सभी दिमागी परेशानियो को दूर करने का सबसे उत्तम उपाय है...सेक्स करते हुए इंसान कुछ देर के लिए बाहरी दुनिया को भूल जाता है..और इस वक़्त श्वेता और नितिन बाहरी दुनिया को भूलकर जंगलियो वाली चुदाई कर रहे थे,जिन्हे शायद ये भी पता नही था की उन्होने नीचे का मेन गेट खुला छोड़ दिया है, जिसमे से काव्या अंदर आकर उनका सारा कार्यकर्म देख रही है...और वो भी अपनी परेशानियो से कुछ पल के लिए दूर होकर और उत्तेजित होकर उनकी लाईव ब्लू फिल्म देख रही थी.
काव्या ने गौर किया की श्वेता और नितिन एंगल बदल -2 कर सेक्स कर रहे हैं...कुछ देर तक अपने भाई की घोड़ी बने रहने के बाद वो जल्दी से नीचे उतरी और उसने नितिन को ज़मीन पर लिटा दिया...और उसके पैरों की दिशा मे मुँह करके उसके लंड को चूत के ज़रिए अंदर निगल गयी..
नितिन भी पागलो की तरह नीचे से धक्के मारता हुआ उसके मुम्मे मसल रहा था...उसने उसकी शमीज़ फाड़ डाली,जिसकी वजह से श्वेता के दोनो कबूतर आज़ाद होकर हवा मे उछलते हुए फड़फड़ाने लगे...ऐसा लग रहा था की दोनो मुम्मे आपस मे टकराकर चूर-2 हो जाएँगे..पर श्वेता की लचीली छातियाँ बड़ी ही नज़ाकत के साथ एक दूसरे से टकराती और फिर अलग हो जाती ...फिर नितिन उन्हे पकड़कर मसलता और नीचे से अपने लंड से उसकी चूत मे हवा भरता...
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और अचानक उसके लरजते हुए होंठों को देखते हुए विक्की के लंड से रसमलाई निकल कर उसके चेहरे पर गिरने लगी...
और देखते ही देखते उसने रश्मि के पूरे चेहरे पर बर्फ़बारी करके उसको सफेद चादर से ढक दिया..बाकी की बची हुई मलाई उसने खुद ही चूस-चूस्कर खा ली.
रश्मि की प्यास अभी भी नही बुझी थी...और विक्की ने उसे बुझाने के लिए कोई और जतन भी नही किया...आख़िर थकी हुई सी रश्मि की समझ मे ये बात आ ही गयी की वो अपनी बात पर अडिग है, और फिर उसने बाथरूम मे जाकर अपने आप को साफ़ किया...उसके कपड़े हल्के से गीले थे, पर फिर भी उसने उन्हे पहना और तैयार हो गयी.
विक्की ने भी कपड़े पहन लिए थे...और फिर बाहर जाती हुई रश्मि एकदम से रुकी और बोली : "आज तो मैने तेरी बात का मान रख लिया है...पर तेरा काम पूरा हो जाने के बाद मैं तुझे नही छोड़ूँगी...तुझे मेरी प्यास बुझानी ही पड़ेगी...सैटरडे को 1 बजे तक आ जाना मेरे घर..''
इतना कहकर वो बाहर निकल गयी..
और विक्की अपनी किस्मत पर खुश होकर आने वेल सैटरडे के सपने देखने लगा.
घर पहुँचकर रश्मि काफ़ी खुश थी....आज पूरे दिन के बारे मे सोचकर वो मुस्कुराए ही जा रही थी..उसने तो सोचा भी नही था की वो ऐसी बन जाएगी...अभी कुछ समय पहले ही तो उसकी शादी हुई है..इतने सालो से दबी हुई वासना अब भयानक रूप लेकर बाहर निकल रही है, शायद इसलिए उसकी प्यास सिर्फ़ अपने नये पति से नही बुझ रही है..वो खुद नही जानती थी की वो ऐसा क्यो बिहेव कर रही है..उसका तन और मन अब उसके दिमाग़ की नही सुन रहे थे ,वो अपनी जिंदगी के हर मज़े लेना चाहती थी, वैसे मज़ा तो उसको विक्की के बाप के साथ भी आया था, पर वो बुड्ढा भी सही से और समय की कमी की वजह से कुछ नही कर पाया वरना आज उसके पास भी सुनहरा अवसर था उसकी चूत मारने का.
दूसरों से चुदाई करवाने का विचार आते ही उसके मन मे एकदम से हज़ारों ओप्शन्स आने लगे...की वो अगर खुलकर चुदाई करवाना चाहे तो बिना किसी डर के किस-किससे चुदवा सकती है..
अपनी बेटी के बाय्फ्रेंड से तो वो चुदवाने को तैयार हो ही चुकी थी ..अपने पति के दोस्त लोकेश से करे तो वो भी मना नही करेगा...उसकी भूखी नज़रों को वो अच्छी तरह से समझती थी..और उसने तो उसको और समीर को नंगा भी देखा था, हनिमून पर..और कौन हो सकता है...उसके घर के नौकर...ड्राइवर...
या फिर दोनों का एक साथ लेने में भी कितना मजा आएगा
और ये ख़याल आते ही उसके जहन में दृश्य उभर आया जिसमें वो दो लंडो से पिलवा है
और ये सब सोचते-2 उसकी चूत एकदम से गीली होकर रिसने लगी...वो अपनी सोच पर खुद ही मुस्कुरा दी..ऐसा अगर सच मे हो गया तो वो दुनिया की सबसे बड़ी रांड बन जाएगी..
''क्या बात है माँ , अकेले बैठी हुई मुस्कुरा रही हो...'' काव्या ने अंदर आते हुए कहा..शायद उसने रश्मि को अकेले मे हंसते हुए देख लिया था...पर उसको अगर पता चल जाता की वो क्यो हंस रही है तो वो बेचारी भी हैरान रह जाती..
रश्मि ने सकपकाते हुए कहा : "अरे...कुछ भी तो नही..बस ऐसे ही कुछ याद आ गया..''
काव्या : "क्या माँ ...क्या याद आ गया...'' वो भी आज काफ़ी लाड वाले मूड मे थी..वो पालती मारकर वहीं रश्मि के पास बैठ गयी.
रश्मि ने कुछ सोचा , फिर बोली : "अपने स्कूल टाइम की बात याद आ गयी...एक लड़के के बारे मे सोच रही थी...''
काव्या की आँखे चमक उठी ये बात सुनकर , वो चहकति हुई बोली : "वाव मॉम , आप भी...मतलब आपके जमाने मे भी ये सब होता था..गर्लफ्रेंड, बाय्फ्रेंड एंड ऑल देट ...''
रश्मि (शर्म से लाल होते हुए) : "और नही तो क्या, तू क्या समझती है, तेरा बाय्फ्रेंड हो सकता है तो मेरा नही हो सकता क्या...मैं तेरे और तेरे उस फ्रेंड विक्की के बारे मे ही सोच रही थी..जब तूने उसके बारे मे बताया था , तब तो मुझे काफ़ी गुस्सा आया था, पर जब मैने सोचा की उस उम्र मे मैने भी तो ये सब किया है, तो मुझे तेरी सब बातें सही लगी..''
रश्मि बोले जा रही थी और उसकी बातें सुनकर काव्या के चेहरे के रंग बदल रहे थे...उसने अपना माथा पीट लिया, उसकी मनघड़त बातों को उसकी माँ ने सच समझ लिया था, वो तो उस विक्की से कितनी नफ़रत करती है, और वैसे भी उसने उसके और अपने चक्कर की बात तो किसी और मकसद से कही थी, जो अब पूरा हो चुका था, फिर ये माँ क्यो उसकी बात कर रही है.
रश्मि कहती रही : "तू ऐसा मत समझना बेटी की मैं या तेरे पापा तुझे समझते नही हैं, वो क्या है ना की तू अब जवान हो गयी है, ये सब सोच समझकर करना चाहिए...कौन कैसा है ,ये आजकल किसी के चेहरे पर नही लिखा रहता..''
काव्या अपनी माँ का बोर सा भाषण सुनती जा रही थी.
रश्मि : "मुझे उस लड़के के बारे मे ज़्यादा पता तो नही था, इसलिए मैं उससे मिलने गयी थी...''
रश्मि की ये बात सुनकर काव्या के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी..वो समझ गयी की उसका झूट पकड़ा जा चुका है...
पर रश्मि की अगली बात सुनकर वो हैरान रह गयी
रश्मि : "वो लड़का मुझे भी पसंद आया...ये उम्र अभी शादी की तो नही है तुम्हारी, पर प्यार भी एक हद तक करना चाहिए...तू समझ रही है ना मेरा मतलब...और मुझे उसके और तेरे मिलने से कोई ऐतराज नही है...वो भी तेरी काफ़ी तारीफ कर रहा था...और तुझसे प्यार भी काफ़ी करता है...''
काव्या की समझ मे नही आ रहा था की ये नया एंगल कहाँ से आ गया एकदम से ...उसने तो झूट बोला था अपने और विक्की के बारे में...फिर ये विक्की कैसे वही बात दोहरा रहा है उन दोनो के बारे मे...ओह्ह्ह्ह ....अब समझी...ये साला विक्की तो पहले से ही हरामी है, मेरी माँ के मुँह से सारी बातें सुनकर उसने भी बहते पानी मे हाथ धोने की सोची होगी...साला एक नंबर का हरामी है ये तो...उसने वो बात उसकी माँ को पता नही चलने दी, ताकि वो मुझसे सच मे मज़े ले सके...वो समझता क्या है अपने आप को, साला गली का कीड़ा...एक नंबर का हरामी, साला कुत्ता...
वो मन ही मन विक्की को कोस रही थी और उसको गालियाँ दे रही थी..
पर वो अपनी माँ को कैसे समझाती की ये सब झूट है, वो खुद अब ये बात बोलकर अपनी माँ और अपने प्यारे पापा समीर के सामने शर्मिंदा नही होना चाहती थी...
उसने सोच लिया की वो जल्द से जल्द विक्की से बात करेगी और सारी बातें साफ़ कर लेगी..
उसकी एक सहेली अभी भी वहीं रहती थी, और वो विक्की को अच्छी तरह से जानती थी, उससे विक्की का नंबर लेकर बात करनी पड़ेगी..
वो ये सोच ही रही थी की उसकी माँ ने एक और बोम्ब फेंक दिया उसके सिर पर.
रश्मि : "वैसे तो विक्की ने तुझे फोन करके बता ही दिया होगा, मैने उसको सेटरडे को यहाँ अपने घर बुलाया है...वो एक बजे तक आएगा...''
अब तो काव्या का सिर बुरी तरह से घूमने लगा..
काव्या : "वो ...वो ...क्यू मॉम ...''
रश्मि : "बेटी, तू मुझे अपनी दुश्मन मत समझ, दोस्त हू मैं तेरी...तू मेरी पीठ पीछे कुछ करेगी,वो तेरी नज़रों मे ग़लत होगा, और उसको छुपाने के लिए तू मुझसे झूट बोलेगी, जो मैं नही चाहती, इसलिए तू खुलकर उससे मिल, यहीं अपने घर पर,चाहे तो अपने रूम मे भी ले जा उसको...पर मैं ये चाहती हू की तू इन सबकी वजह से ये मत सोचे की मैं तुझे प्यार नही करती या मैं तेरे प्यार को समझती नही..''
काव्या समझ गयी की वो तो आदर्श माँ बन रही है उसके सामने...अगर सच मे उसका विक्की के साथ कोई चक्कर होता तो आज ये बात सुनकर वो फूली ना समाती, पर वो अच्छी तरह से जानती थी की उसकी माँ ने ये सब करके कितनी बड़ी ग़लती की है..
पर जो भी है, वो अपनी माँ को ये बात हरगिज़ नही बता सकती थी की असल मे बात क्या है...और कहती भी किस मुँह से...उस दिन तो बड़ी शेखी बघारते हुए उसने विक्की का नाम ले लिया था..और संडे को उसके साथ लवर पॉइंट पर मिलने का प्रोग्राम भी बना लिया था...पर उसकी माँ ऐसे सीधा विक्की के पास पहुँच जाएगी इस बात का अंदाज़ा बिल्कुल भी नही था उसको...वो मन ही मन उस पल को कोस रही थी जब उसने विक्की का नाम लिया था.
पर अब तो कुछ हो ही नही सकता था..उसको जल्द से जल्द विक्की को फोन करना होगा..
वो अपनी माँ को बिना कुछ कहे अपने कमरे मे भाग गयी..
रश्मि ने समझा की शायद ये बात सुनकर शर्मा गयी है और खुशी के मारे विक्की से बात करने भाग गयी है..
वो फिर से मुस्कुराते हुए अपने काम मे लग गयी.
काव्या ने जल्दी से जाकर अपनी सहेली को फोन किया और उससे विक्की का नंबर निकलवाया और एक मिनट मे ही सीधा उसे फोन मिला दिया.
दो बेल के बाद विक्की ने फोन उठाया
विक्की : "हेलो....कौन...''
काव्या ने धड़कते दिल से कह : "मैं काव्या बोल रही हू...''
विक्की : "ओहो....काव्या मेरी जान.....क्या बात है...आज मेरी याद कैसे आ गयी..''
काव्या (गुस्से मे) : "तुम अच्छी तरह से जानते हो की मैने किसलिए फोन किया है...''
विक्की : "नही मुझे नही पता, तू बोल ना मेरी चंपा,किसलिए फोन किया है....''
वो मज़े लेने के मूड मे आ चुका था..
उसकी बात सुनकर काव्या झल्ला गयी : "सुन विक्की....तू किसी ग़लतफहमी मे मत रहना...मेरी माँ ने चाहे कुछ भी कहा हो तुझसे..मुझपर तेरी किसी बात का कोई फ़र्क नही पड़ता..''
विक्की : "मैं भी कौन सा तेरे लिए मरा जा रहा हू, तेरी माँ खुद ही आई थी मेरे पास...सोच ,मैं अगर सच बोल देता तो तेरी क्या हालत होती तेरे घर मे...तेरे नये बाप के सामने क्या इज़्ज़त रह जाती तेरी...''
विक्की ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था...वो समझ गयी की जिस बात से वो डर रही थी , विक्की भी उसी बात का फायदा उठाना चाहता है...
वो थोड़ा नर्म होती हुई बोली : "तुम आख़िर चाहते क्या हो...''
विक्की के कान तो जैसे ये शब्द सुनने के लिए तरस रहे थे..
वो बोला : "ये तो मैं तुम्हे सेटरडे आकर ही बताऊंगा ...''
और इतना कहते हुए उसने फोन रख दिया.
काव्या का मन किया की वो रो पड़े.....ये सारी मुसीबत उसने खुद ही खड़ी की थी.
और अब इसका समाधान भी उसको खुद ही ढूँढना पड़ेगा.
वो जल्दी से तैयार होकर श्वेता के घर की तरफ चल दी, क्योंकि ऐसी मुसीबत मे वही उसकी कोई मदद कर सकती थी.
''आहहssssssssssssss ......... चोदो मुझे ................... येस्स्स्स्स्स्स ...........................ऐसे ही ...................... फाड़ दो मेरी चूत ..............''
श्वेता के घर के अंदर घुसते ही काव्या को ये सब सुनाई दिया...उसने तो ये सोचा भी नही था की श्वेता ऐसे दरवाजा खुला छोड़कर चुदाई करवा रही होगी..ऐसी लापरवाही की उम्मीद नही थी उसको.
पर श्वेता की लगातार चीखों ने उसके दिल की धड़कनो को ज़रूर तेज कर दिया था..
उसने दरवाजा धीरे से बंद किया और अपने पंजो पर चलती हुई उपर की तरफ चल दी, श्वेता के बेडरूम की तरफ, जहाँ से आवाज़ें आ रही थी.
और उसकी लापरवाही की और भी हद देखी उपर जाकर उसने, वो और उसका भाई नितिन पूरा दरवाजा खोल कर चुदाई कर रहे थे..
चुदाई का ऐसा सीन काव्या ने ब्लू फ़िल्मो मे भी नही देखा था.
नितिन और श्वेता बुरी तरह से बेड पर लगे हुए थे...श्वेता ने तो अपने कपड़े भी नहीं उतारे थे पूरी तरह से, उसकी शमीज़ अभी तक उसके जिस्म पर थी, और नितिन ने उसको घोड़ी बनाकर उसकी चूत मे पीछे से लंड पेला हुआ था, और उसकी कमर पकड़कर ज़ोर से धक्के मार रहा था.
दरवाजा पूरा खुला हुआ था, पर दोनों का चेहरा दूसरी तरफ था, पर वो लोग थोड़ा भी पलट कर देखते तो उन्हे काव्या साफ़ दिख जाती, काव्या भी उनकी चुदाई पूरी देखना चाहती थी, इसलिए उसने छुपकर वो सब देखने का विचार बनाया..क्योंकि उन्हे देखकर वो गर्म तो हो ही चुकी थी, ऐसे मे उन्हे डिस्टर्ब करके वो उनका और अपना मज़ा खराब नही करना चाहती थी.
वो जल्दी से सामने बने नितिन के बेडरूम के अंदर घुस गयी और उसने थोड़ा सा दरवाजा खुला रहने दिया, जिसमे से वो सामने के कमरे मे चल रही चुदाई का पूरा आनंद उठा सकती थी.
और ये सब करते हुए वो ये भी भूल चुकी थी की वो वहाँ करने क्या आई है, अपनी मुसीबत का समाधान करने के बजाए वो श्वेता और उसके भाई नितिन की चुदाई मे मगन हो गयी..
दोस्तो, तभी तो कहते है की सेक्स सभी दिमागी परेशानियो को दूर करने का सबसे उत्तम उपाय है...सेक्स करते हुए इंसान कुछ देर के लिए बाहरी दुनिया को भूल जाता है..और इस वक़्त श्वेता और नितिन बाहरी दुनिया को भूलकर जंगलियो वाली चुदाई कर रहे थे,जिन्हे शायद ये भी पता नही था की उन्होने नीचे का मेन गेट खुला छोड़ दिया है, जिसमे से काव्या अंदर आकर उनका सारा कार्यकर्म देख रही है...और वो भी अपनी परेशानियो से कुछ पल के लिए दूर होकर और उत्तेजित होकर उनकी लाईव ब्लू फिल्म देख रही थी.
काव्या ने गौर किया की श्वेता और नितिन एंगल बदल -2 कर सेक्स कर रहे हैं...कुछ देर तक अपने भाई की घोड़ी बने रहने के बाद वो जल्दी से नीचे उतरी और उसने नितिन को ज़मीन पर लिटा दिया...और उसके पैरों की दिशा मे मुँह करके उसके लंड को चूत के ज़रिए अंदर निगल गयी..
नितिन भी पागलो की तरह नीचे से धक्के मारता हुआ उसके मुम्मे मसल रहा था...उसने उसकी शमीज़ फाड़ डाली,जिसकी वजह से श्वेता के दोनो कबूतर आज़ाद होकर हवा मे उछलते हुए फड़फड़ाने लगे...ऐसा लग रहा था की दोनो मुम्मे आपस मे टकराकर चूर-2 हो जाएँगे..पर श्वेता की लचीली छातियाँ बड़ी ही नज़ाकत के साथ एक दूसरे से टकराती और फिर अलग हो जाती ...फिर नितिन उन्हे पकड़कर मसलता और नीचे से अपने लंड से उसकी चूत मे हवा भरता...
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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