Wednesday, September 24, 2014

FUN-MAZA-MASTI हुआ कुछ यूँ था...

FUN-MAZA-MASTI

 हुआ कुछ यूँ था... 
बात ज्यादा पुरानी नहीं है अभी यही कोई दो महीने पहले की है। होली पर यह खूबसूरत हादसा हुआ। 
मेरे ताऊ जी की बड़ी बेटी की नई नई शादी हुई थी तब। वो मिलने के लिए हमारे घर आई हुई थी। होली से दो-तीन दिन पहले जीजा जी का दीदी को बुलाने के लिए फोन आ गया। ताऊ जी का बेटा अजय बाहर गया हुआ था तो ताऊ जी ने मुझे कहा- जा अपनी बहन को उसकी ससुराल छोड़ आ ! 
मुझे भी बाहर कहीं गए बहुत दिन हो गए थे तो सोचा कि इस बहाने घूमना हो जाएगा। मैं दीदी को लेकर उसके ससुराल के लिए चल दिया। मैं पहली बार उसकी ससुराल जा रहा था। करीब दो घण्टे के सफर के बाद हम दोनों वहाँ पहुँच गए। दीदी का देवर गाड़ी लेकर बस स्टैंड पर आया था हमें लेने। 
हम गाड़ी में बैठ कर दीदी की ससुराल पहुँच गए। गाड़ी की आवाज सुनते ही एक खूबसूरत सी लड़की भाग कर गाड़ी के पास आई। जब वो भाग कर गाड़ी की तरफ आ रही थी तो मेरी नजर उस बला की चूचियों पर अटक गई, दोनों की दोनों मस्त उछल रही थी। उस जालिम ने दुपट्टा भी नहीं लिया था। 
आप समझ सकते है कि क्या नजारा होगा। खरबूजे के आकार के दोनों चूचे कमीज से बाहर आने को बेताब लग रहे थे। 
उसकी इस अदा ने मेरा दिल लूट लिया था। वो गाड़ी के पास आकर दीदी से लिपट गई। तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी। उसने सवालिया अंदाज़ में दीदी की तरफ देखा तो दीदी ने उसका-मेरा परिचय करवाया। 
उसका नाम सुधा था और वो मेरी दीदी की ननद थी। दीदी ने मेरे बारे में भी उसको बताया तो मैंने हँसते हुए अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया जो उसने थाम लिया। उसका मुलायम और नाजुक नाजुक उँगलियों वाला हाथ अपने हाथ में आते ही मुझे लगा जैसे पूरी जन्नत मेरे हाथ में समा गई हो। बहुत कोमल हाथ था सुधा का। 
मैं तो जैसे खो सा गया था। वो एकदम से अपना हाथ मुझ से छुड़वा कर हँसते हुए अंदर भाग गई। मैंने देखा दीदी पहले ही अंदर जा चुकी थी और मैं अकेला गाड़ी के पास खड़ा था। एक बार तो लगा कि कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा था। पर नहीं यह सब सच ही था क्यूंकि उसके कोमल हाथों का एहसास अब भी मेरे हाथ में था। 
तभी दीदी की आवाज आई- अरे राज ! तुम बाहर क्यों खड़े हो? अंदर आ जाओ ! 
मैं पहली बार आया था तो थोड़ी झिझक सी थी। मैं शर्माता हुआ अंदर दाखिल हुआ तो सब लोग बैठे थे, दीदी के ससुर, सास, जीजा जी और वो देवर जिसके साथ हम अभी आये थे। पर वो क़यामत नजर नहीं आ रही थी। मेरी नजर उसी को ढूँढ रही थी। सब लोगों ने हाल-चाल पूछा और मुझसे बातें करने लगे। 
तभी दीदी कमरे में आई और साथ में सुधा भी थी। वो चाय की ट्रे लेकर आ रही थी कि मेरी नजर एकदम से उससे टकराई। 
मुझे लगा कि वो भी मेरी तरफ ही देख रही थी। नजरें मिलते ही वो थोड़ा मुस्कुराई। वो और दीदी सब को चाय देने लगी। तभी वो चाय लेकर मेरे सामने आई और थोड़ा झुक कर मुझे चाय देने लगी। मेरा तो दिल उछल कर बाहर आ गिरा। 
कमीज के गले में से उसके दो शानदार खरबूजे और उनके बीच की दरार देख कर तो मेरा लण्ड सलामी देने लगा था। दिल तो किया कि अभी पकड़ कर मसल डालूँ पर चाय अभी ज्यादा गर्म थी मुँह जल सकता था। 
सयाने लोग कह गए है कि ठंडा करके खाने से खाने का स्वाद ज्यादा आता है। 
दोपहर का खाना खाने के बाद मैं, दीदी और जीजा जी बैठ कर कमरे में बातें करने लगे सुधा भी कुछ देर बाद आ गई। 
मैंने थोड़ा उबासी लेटे हुए दीदी को कहा- दीदी, सफर से थोड़ी थकावट हो रही है। आराम करने की जगह बताओ मैं कुछ देर सोना चाहता हूँ। 
दीदी ने सुधा को बोला- राज को ऊपर वाले कमरे में छोड़ आओ। 
सुधा ने मुझे चलने को कहा तो मैं उसके साथ हो लिया। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए सुधा बोली- तुम भी निरे बुद्धू लगते हो मुझे ! 
"क्यों? मैंने ऐसा क्या किया?" 
"अरे बुद्धू... भाभी आज पन्द्रह दिन के बाद आई है तो भैया भाभी को अकेले छोड़ना था ना... ! तुम हो कि उनसे चिपक कर बैठे थे तब से !" 
"ओह्ह... !" मैंने उसकी बात को समझते हुए कहा। 
वैसे बात उसकी भी सही थी। पर मैं भी तो अकेला बोर हो रहा था। 
हम दोनों ऊपर वाले कमरे में पहुँच गए। वो मुझे वहाँ छोड़ कर जाने लगी तो मैंने उसको बैठने के लिए कहा, मैंने उसको बोला कि मैं अकेला बोर हो जाऊँगा तो वो थोड़ी देर रुक जाए। 
वो मान गई और वहीं मेरे पास बिस्तर पर बैठ गई। 
"वहाँ नीचे तो उबासियाँ ले रहे थे और अब तुम्हें बातें करनी हैं? तुम भी कमाल हो।" वो हँस कर बोली। 
"अब तुम जो मेरे पास हो... तो भला आराम कौन बेवकूफ करेगा !" जवाब में मैं भी हँस पड़ा। 
"मुझ पर लाइन मार रहे हो?" वो मेरी बात का मतलब समझते हुए बोली।" 
"तुम हो ही इतनी खूबसूरत कि लाइन क्या तुम पर पूरा का पूरा मर मिटे कोई भी !" मैंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा। 
वो थोड़ा शरमाई और उठ कर जाने लगी। मैंने सोचा कि अब नहीं तो कभी नहीं और मैंने आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लिया। 
वो कुछ नहीं बोली बस उसने हल्का सा प्रयास किया अपना हाथ छुड़वाने का। 
मैंने उसको अपनी तरफ खींचा और उसके कान में बोला- सुधा... मुझे तुमसे प्यार हो गया है। 
उसने मेरी तरफ देखा और फिर हँस कर बोली- बुद्धू ! 
मैं हैरान हुआ पर तभी दिमाग की घंटी बजी कि मैं तो सच में ही बुद्धू हूँ क्यूंकि मामला तो सारा सेट हो चुका था। 
अब वो मुझसे बिल्कुल चिपक कर खड़ी थी। मैंने उसके गाल पर हल्के से चूमा तो वो शरमा गई। फिर मैंने उसको अपनी तरफ करके उसके होंठों पर चुम्बन करना चाहा तो उसने मेरे होंठों पर हाथ रख दिया और बोली- जनाब... इतना तेज मत भागो... थोड़ा समय का इन्तजार करो ! 
यह कह कर वो मुझसे छुड़वा कर नीचे भाग गई और मैं अपने धड़कते दिल को लिए उसको जाते हुए देखता रहा। मैंने अपने दिल पर हाथ रख कर देखा तो वो बहुत जोर जोर से धड़क रहा था। नीचे देखा तो लण्ड महाराज भी पैंट को फाड़ने को बेताब नजर आ रहे थे। 
उसके जाने के बाद मैं बिस्तर पर लेटा हुआ उसके बारे में ही सोचता रहा और कब नींद आ गई पता नहीं चला। 
करीब चार बजे वो चाय लेकर कमरे में आई। 
"अच्छा तो जनाब हमारी नींद उड़ा कर खुद आराम से सो रहे हैं !" उसने मुझे उठाते हुए कहा। 
मैं कुछ नहीं बोला बस उसको बिस्तर पर अपने ऊपर खींच लिया। वो भी कटे पेड़ की तरह मुझ पर गिर पड़ी। उसके मस्त चूचे मेरी छाती पर दब गए। 
"छोड़ो ना... ! क्या करते हो...?" 
"एक बार अपने मुँह से बोलो ना कि तुम मुझ से प्यार करती हो !" 
"तुम न ! निरे बुद्धू हो... ! अब भी कहने की कसर बाकी है क्या?" और यह कह कर उसने मेरे गाल पर पप्पी ले ली। 
मैंने भी उसको अपने नीचे दबाते हुए उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। क्या रसीले होंठ थे यार। सुधा के होंठों का रस पीते ही बदन में तरावट सी आ गई। मेरे होंठ सुधा के होंठों का रसपान कर रहे थे कि तभी मेरे हाथ भी सुधा की चूचियों की गोलाईयाँ मापने लगे। मस्त मुलायम चूचियाँ हाथ में आते ही लण्ड देवता पूरे शबाब पर आ गए। मेरा लण्ड उसकी जांघ पर लग रहा था, उसने हाथ लगा कर पूछा– "यह क्या है?" 
फिर जैसे ही उसकी समझ में आया कि वो क्या चीज है तो शरमा गई। उसका लण्ड पर हाथ लगाना मेरे अंदर एक आग सी लगा गया। मैंने उसका हाथ पकड़ कर दुबारा से लण्ड पर रख दिया। उसने हाथ फिर से हटाया तो मैंने फिर से पकड़ कर लण्ड पर रख दिया। 
इस बार उसने अपना हाथ नहीं हटाया और धीरे धीरे लण्ड को सहलाने लगी। मैं तो आनन्द के सागर में गोते लगा रहा था। आज से पहले लण्ड सिर्फ अपने हाथ से सहलाया था। पहली बार लड़की का हाथ लण्ड पर पाकर लग रहा था कि अभी सब कुछ बाहर उगल देगा। पर अब परवाह किस को थी। 
मैंने सुधा की कमीज ऊपर करनी शुरू की और धीरे धीरे उसकी दोनों चूचियाँ नंगी कर दी। वो अब गर्म हो चुकी थी और आँखें बंद किये मेरा लण्ड पैंट के ऊपर से ही सहला रही थी। मैंने उसकी गोरी गोरी चूचियों को सहलाया और फिर धीरे से दाईं चूची का चुचूक अपने होंठों में दबा लिया और धीरे धीरे जीभ फेरते हुए चूसने लगा। 
सुधा के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी थी, मस्ती के मारे वो अपनी टाँगें भींच रही थी, मेरा सर अपनी चूचियों पर दबा रही थी और कोशिश कर रही थी कि मैं पूरी चूची अपने मुँह में भर लूँ। 
मैंने भी उसको निराश नहीं किया और पूरी चूची मुँह में भर भर कर चूसने लगा। कभी दाएँ तो कभी बाएँ, बारी बारी से दोनों चूचियों को चूस रहा था। 
वो मस्ती के मारे आह.. ओह्ह... उम्म्म.. उफ्फ्फ्फ़ आह्ह्ह कर रही थी। तभी नीचे से उसकी मम्मी की आवाज आई तो हम दोनों का स्वप्न टूटा। 
वो और मैं पसीने से लथपथ हो गए थे, मम्मी की आवाज सुनते ही वो मुझसे अलग हुई और रात को आने का कह कर नीचे भाग गई। 
मेरे लण्ड में दर्द होने लगा था तो मैं बाथरूम में गया और हाथ से हिला कर उसको शांत किया पर लण्ड पर भी जैसे मस्ती चढ़ी थी तभी तो झड़ने के बाद भी बैठने का नाम नहीं ले रहा था। 
रात का इन्तजार मेरे लिए भारी होने लगा था। शाम को दीदी का देवर आ गया और मूवी देखने चलने की जिद करने लगा। दीदी और जीजा ने भी कहा तो मैं भारी मन से उसके साथ चला गया। जब मैं जा रहा था तो सुधा का मुँह उतर गया था। उसकी आँखों में नाराजगी साफ़ नजर आ रही थी। 
इसे मेरी किस्मत ही कहूँ तो ठीक है कि जब हम सिनेमा पहुँचे तो टिकट-खिड़की बंद हो चुकी थी। मूवी हाउसफुल चल रही थी। बस फिर हम दोनों खा पी कर ऐसे ही वापिस आ गए। 
जब हम वापिस पहुँचे तो सभी डिनर की तैयारी कर रहे थे। हमें देखते ही सबसे ज्यादा जिसको खुशी हुई उसका नाम लिखने की तो जरुरत ही नहीं है। 
सुधा जो कुछ देर पहले मुरझाये फूल सी हो रही थी अब महकते गुलाब सी खिल उठी थी। बाकी सब डिनर कर चुके थे। सिर्फ मैं, दीदी का देवर कमल और सुधा ही बाकी थे। कमल ने खाना कमरे में लगाने को बोला और मुझे लेकर अपने कमरे में चला गया। 
कुछ देर बाद सुधा सब के लिए खाना लगा कर कमल के कमरे में आ गई। बिस्तर पर बैठ कर हम तीनों खाना खाने लगे। सुधा एकदम मेरे नजदीक बैठी थी और कभी उसका हाथ कभी पाँव मुझे छू रहा था। 
तभी एकदम से बिजली चली गई और कमरे में कुछ क्षण के लिए अँधेरा छा गया। तभी सुधा ने शरारत करते हुए मेरा लण्ड दबा दिया और मेरे गाल पर चूम लिया। मुझे ऐसा अंदाजा नहीं था कि सुधा कमल की उपस्थिति में ऐसा कुछ कर सकती है तो मैं एकदम से सकपका गया। उसकी हरकत का जवाब देने के लिए जैसे ही मैं उसकी तरफ गया तो एकदम से बिजली आ गई। 
सुधा के चेहरे पर शर्म की लाली थी और वो अंदर ही अंदर मंद मंद मुस्कुरा रही थी। 
खाना खाने के बाद सुधा बर्तन रख कर आई और हम तीनों वही बिस्तर पर बैठ कर बातें करने लगे। सुधा बीच बीच में मुझे कुछ इशारा कर रही थी पर मैं लल्लू राम समझ नहीं पा रहा था। 
तभी कमल ने सुधा को जाने को कहा और मुझे बोला- यहीं सो जाओ ! 
तो मुझसे पहले ही सुधा बोल पड़ी- इनके सोने का इंतजाम ऊपर वाले कमरे में किया हुआ है पहले से ही। 
कमल के कमरे में डबलबेड था तो मैंने कहा- यहीं सो जाता हूँ ! 
तो सुधा ने ऐसे आँखें तरेरी की बस ! 
सुधा उठ कर बाहर चली गई। मैं भी कमल को नींद का बहाना बना कर ऊपर कमरे की तरफ चल दिया। तब रात के करीब बारह बजने को थे। 
जब मैं सीढ़ियाँ चढ़ने लगा तो सुधा की कोमल सी आवाज आई- अब क्यूँ आये हो... सो जाओ उस कमल के पास.. ! 
मैंने इधर उधर देखा और उसके पास जाकर उसको मनाते हुए सॉरी बोला। 
पर वो थी कि मानने का नाम ही नहीं ले रही थी। मेरा भी मूड खराब हो गया, मैं अपने आप को कोसने लगा कि मैंने कमल के कमरे में रुकने का कहा ही क्यों। 
मैं बुझे मन से ऊपर कमरे में चला गया। 

तभी कमल ने सुधा को जाने को कहा और मुझे बोला- यहीं सो जाओ ! 
तो मुझसे पहले ही सुधा बोल पड़ी- इनके सोने का इंतजाम ऊपर वाले कमरे में किया हुआ है पहले से ही। 
कमल के कमरे में डबलबेड था तो मैंने कहा- यहीं सो जाता हूँ ! 
तो सुधा ने ऐसे आँखें तरेरी की बस ! 
सुधा उठ कर बाहर चली गई। मैं भी कमल को नींद का बहाना बना कर ऊपर कमरे की तरफ चल दिया। तब रात के करीब बारह बजने को थे। 
जब मैं सीढ़ियाँ चढ़ने लगा तो सुधा की कोमल सी आवाज आई- अब क्यूँ आये हो... सो जाओ उस कमल के पास.. ! 
मैंने इधर उधर देखा और उसके पास जाकर उसको मनाते हुए सॉरी बोला। 
पर वो थी कि मानने का नाम ही नहीं ले रही थी। मेरा भी मूड खराब हो गया, मैं अपने आप को कोसने लगा कि मैंने कमल के कमरे में रुकने का कहा ही क्यों। 
मैं बुझे मन से ऊपर कमरे में चला गया और अपने कपड़े उतार कर लुंगी पहन ली। 
तभी दरवाजे पर खट-खट हुई। मैंने देखा तो देखता ही रह गया। यह तो सुधा थी। सफ़ेद बल्ब की रोशनी में एकदम परी सी खड़ी लग रही थी। एक बेहद खूबसूरत नाइटी में दूध का गिलास हाथ में लिए वो दरवाजे पर खड़ी थी। 
उसको देखते ही दिल खुशी से झूम उठा और मैं लगभग दौड़ कर उसके पास गया। जाते ही उसके हाथ से दूध का गिलास लेकर एक तरफ रखा और उसको अपनी गोद में उठा कर सीधा बिस्तर पर ले गया। 
उसके बाल उसके गालों पर फ़ैल गए थे। मैंने धीरे से उसके बालो को एक तरफ करते हुए उसकी आँखों में देखा तो उसने शरमा कर आँखें बंद कर ली। 
मैंने झुक कर उसकी बंद आँखों को चूम लिया। ऐसा मैंने अब तक फिल्मों में ही देखा था पर आज मेरे साथ हकीकत में हो रहा था। जब मैंने उसकी आँखें चूमी तो वो एकदम से लरज कर मुझ से लिपट गई। फिर तो जो चूमा-चाटी का दौर शुरू हुआ तो कुछ भी ध्यान नहीं रहा। अब तो हम दोनों एक दूसरे में समा जाने को बेताब हो रहे थे। 
मैंने एक एक करके उसके सारे कपड़े उतार दिए। पहले उसकी नाइटी, फिर उसकी ब्रा, और फिर जब उसकी पैंटी उतारी तो उसकी पानी-पानी होती चूत देख कर लण्ड फटने को हो गया। मैंने उसकी नाभि क्षेत्र को चूमना-चाटना शुरू किया तो वो बेहद गर्म हो गई और मुझसे बुरी तरह से लिपट गई। वो भरपूर उत्तेजित थी। मैंने थोड़ा सा नीचे होते हुए उसकी चूत पर जब जीभ लगाई तो वो मस्ती के मारे चीख पड़ी। उसकी चूत बहुत पानी छोड़ रही थी। 
मैं भी मस्ती में भर कर उसकी चूत चाटने लगा। उसकी रसीली चूत का स्वाद बहुत गज़ब था। एकदम नमकीन और थोड़ा सा कसैला सा पर था मजेदार। वो मस्ती में सर को इधर उधर पटक रही थी और मेरा सर अपनी चूत पर दबा रही थी। 
उसके हाथ अब मेरे लण्ड को टटोल रहे थे और वो भी अब मुझे बिना कपड़ों के देखना चाहती थी। पर मैंने पहना ही क्या था, एक लुंगी थी वो मैंने उतार कर एक तरफ़ रख दी तो मैं भी बिल्कु नंगा हो गया। मैंने अपना लण्ड उसके मुँह की तरफ किया तो उसने भी लण्ड थोड़ी सी ना नुकर के बाद मुँह में ले लिया और चूसने लगी। पर कुछ देर बाद वो लण्ड अपनी चूत में लेने को तड़प उठी। 
अब रुकने के मूड में मैं भी नहीं था। पहली बार एक नंगी चूत जो थी लण्ड के सामने। पर सच कहूँ तो बिल्कुल भी नहीं पता था चुदाई के बारे में। बस जो भी पता था वो   कहानियों और ब्लू फिल्मों में पढ़ा और देखा था। 
कमरे में कोई क्रीम या तेल नहीं था चूत पर लगाने को। पर जब मैं लण्ड सुधा की चूत रखने लगा तो सुधा ने तकिये के नीचे से एक क्रीम की डब्बी निकाल कर मेरे हाथ में थमा दी। 
कुछ कहने की जरुरत ही नहीं थी, वो पूरी तैयारी के साथ चुदवाने आई थी। मैंने डब्बी में से क्रीम लेकर उसकी चूत पर और अपने लण्ड पर अच्छे से लगाया। चूत पर क्रीम लगाते लगाते मैंने क्रीम से भरी एक उंगली सुधा की गाण्ड में डाल दी। उसका यह सब पहली बार था तो वो चिंहुक उठी। मैंने उंगली बाहर नहीं निकाली और उसको अंदर-बाहर करने लगा। मैं सुधा की चुचियाँ चूस रहा था। 
"क्यूँ तड़पा रहे हो राज... अब जल्दी से डाल दो अंदर... वरना मर जाऊँगी...!" 
वो लण्ड लेने के लिए तड़प रही थी। मैंने अपना लण्ड उसकी चूत के मुँह पर टिकाया और धीरे से अंदर की तरफ दबाया तो लण्ड फिसल कर एक तरफ़ चला गया। आखिर था तो अनाड़ी ही तब तक। 
मैंने दुबारा कोशिश की पर फिर से लण्ड फिसल गया तो सुधा ने लण्ड को अपने हाथ में पकड़ कर चूत पर रखा। मैंने भी देर नहीं की और एक जोरदार धक्का लगा दिया। सुधा की चीख पूरे घर में गूंज जाती अगर मैंने सही समय पर उसके मुँह पर हाथ नहीं रख दिया होता। क्रीम की चिकनाई और चूत के पानी की मेहरबानी से लण्ड पहले ही धक्के में दो तीन इंच उतर गया था चूत में। खून की एक पतली सी लकीर जांघों पर आ गई थी। मैंने लण्ड को बाहर खींचा तो उस पर भी खून लगा हुआ था। 
मैंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और दो तीन धक्के एक साथ फिर से लगा दिए। सुधा दर्द के मारे छटपटाने लगी। वो अपने हाथों के जोर से मुझे अपने ऊपर से धकेलने की नाकाम कोशिश कर रही थी। 
इसी कोशिश में मेरा हाथ उसके मुँह पर से उतर गया, वो रो रही थी और मुझे लण्ड बाहर निकालने को कह रही थी- बहुत दर्द हो रहा है राज... मुझसे सहन नहीं हो रहा है, प्लीज अपना बाहर निकाल लो ! 
  कहानियों में पढ़ा था कि दर्द कुछ देर में खत्म हो जाता है तो मैं उसको यही बात समझाने की कोशिश करता रहा और साथ ही साथ धीरे धीरे लण्ड को भी अंदर-बाहर करता रहा। वो सब समझ रही थी पर दर्द बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। पर मैं नहीं रुका। धीरे धीरे धक्के लगाते लगाते कब लण्ड पुरा सुधा की चूत में समा गया पता ही नहीं चला। जब देखा कि पूरा लण्ड चूत में चला गया है तो मैं थोड़ी देर के लिए रुका और सुधा के होंठ चूमने लगा और उसकी चुचियाँ मसलने लगा। 
कुछ देर में जैसे ही उसका दर्द कुछ कम हुआ तो उसने रोना बंद कर दिया और मेरे होंठ चूसने लगी। अब उसको भी मज़ा आने लगा था। मैंने थोड़ा ऊपर होकर उसके चेहरे से आँसू अपनी जीभ से साफ़ कर दिए। मैंने हल्का हल्का लण्ड को हिलाना शुरू किया तो वो भी अपनी गाण्ड ऊपर उठाने लगी। फिर तो धीरे धीरे चुदाई शुरू हो गई और कुछ ही देर बाद चुदाई अपनी पूरे यौवन पर आ गई और सुधा की चूत ने पानी छोड़ दिया। 
कमरे में फच्च फच्च की आवाज कमरे के माहौल को मादक बनाने लगी। कमरे में सुधा की और मेरी आँहे और सिसकारियाँ गूंज रही थी। सुधा की कसी चूत चोदते चोदते मैं पसीने से लथपथ हो गया था। अब तो सुधा भी गाण्ड उछाल उछाल कर मेरी लण्ड के साथ ताल से ताल मिला रही थी। जब हम दोनों की जांघें मिलती तो फट फट फच्च फच्च की आवाज आती और मैं दुगने जोश के साथ चुदाई करने लगता। 
हम दोनों मस्ती में डूबे चुदाई का मज़ा ले रहे थे। हम दोनों का ही यह पहला मौका था। करीब आधे घंटे की जबरदस्त चुदाई के बाद मेरा लण्ड अकड़ने लगा। लण्ड चूत के अंदर ही फ़ूल गया था। तभी सुधा की चूत से तीसरी बार झरना फ़ूट पड़ा। अभी पाँच दस धक्के ही और लगे थे कि मेरा लण्ड भी पूरे जोश के साथ सुधा की चूत में अपना वीर्य भरने लगा। मैं बेदम सा हुआ सुधा के ऊपर ही लेट गया। सुधा ने भी मुझे अपनी बाहों और टांगों में जकड़ लिया। हम दोनों के होंठ मिल गए और प्यार से एक दूसरे को चूमने लगे। फिर ऐसे ही बहुत देर तक हम दोनों लेटे रहे। 
जबरदस्त चुदाई के बाद अब नींद सी आने लगी थी। तभी सुधा उठी और बाथरूम में चली गई। मैंने देखा कि उसने दरवाज़ा बंद नहीं किया था तो मैं भी उठ कर बाथरूम में घुस गया। 
सुधा वहाँ बैठी पेशाब कर रही थी। मुझे देख कर वो शरमाई। मैं भी वही खड़ा होकर पेशाब करने लगा। सुधा पेशाब करने के बाद उठी और मुझ से लिपट गई। 
फिर उसने वहीं पर मेरा लण्ड और अपनी चूत अच्छे से साफ़ की और हम बाहर आने लगे। सुधा की चूत अब सूज गई थी, उससे चला नहीं जा रहा था। मैंने भी मौका हाथ से जाने नहीं दिया और सुधा का नंगा बदन अपनी बाहों में उठा लिया और बाहर आकर बिस्तर पर लेटा दिया। हम दोनों को ही चरमसुख की प्राप्ति हुई थी। हम दोनों ही बहुत खुश थे। 
बाहर आकर कुछ देर बातें की। कुछ सच्ची झूठी कसमें खाई और फिर दूसरा दौर शुरू हो गया। फिर तो सुबह जब तक नीचे खटपट शुरू नहीं हो गई हम दोनों चुदाई के सागर में गोते लगाते रहे और जवानी की आग को ठंडा करते रहे। 
मुझे अगले दिन ही वापिस आना था पर जब दीदी की ससुराल वालो ने जोर दिया तो मैं होली तक रुक गया। आखिर चाहता तो मैं भी यही था। और फिर मेरी होली कैसी रही होगी इसका अंदाजा आप सब लगा सकते हैं। वो तीन दिन मेरी जिंदगी के सब से सुहाने दिन बन गए। अब शायद सुधा के घर वालों को इस बारे में पता लग गया है तभी तो वो सुधा के और मेरे रिश्ते की बात चला रहे हैं पर मैं अभी शादी नहीं करना चाहता। 
आप लोग भी बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए। 
कहानी पढ़ कर बताना कि कैसी लगी मेरी पहली बार की मस्ती।








हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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