Thursday, October 9, 2014

FUN-MAZA-MASTI घर का बिजनिस --5

FUN-MAZA-MASTI

 घर का बिजनिस --5

 और मैं दीदी को आंटी के घर छोड़कर घर वापिस आ गया। जैसे ही मैं घर में दाखिल हुआ तो बुआ ने कहा- “हाँ आलोक, छोड़ आया अपनी बहन को?

मैंने कहा- “जी बुआ छोड़ आया हूँ और अम्मी कहा हैं? नजर नहीं आ रही हैं?

बुआ ने कहा- “वो जरा बैठक में है, अभी आ जायेगी और तुम सुनाओ क्या सोचा है फिर काम के बारे में…”

मैंने कहा- बुआ, मैं भी आप लोगों के साथ हूँ जो बोलोगे मैं किया करूंगा। मुझे लगता है कि अब वक़्त आ गया है कि हमें भी अपने और अपने घर के बारे में सोचना चाहिए दुनियां का क्या है?

बुआ ने हाँ में सर हिला दिया और कहा- हाँ बेटा, सही कहा तुमने। चलो अच्छा हुआ कि अब तुम भी हमारे साथ हो…”

मैं- अच्छा बुआ, बापू कहाँ हैं?

बुआ- “बेटा, तेरे बापू काम के लिए मकान ढूँढ़ने गये हुये हैं जो तुझे बताया था ना…”

मैं- चलो ये भी अच्छा है और सुनाओ बुआ क्या आपको आज काम नहीं मिला अभी तक?

बुआ- “अरे बेटा, अभी तेरे बापू किसी ना किसी को पकड़कर ले ही आयेंगे…”

अभी हम ये बातें ही कर रहे थे कि अम्मी बैठक का घर वाला दरवाजा खोलकर अंदर आ गई और मुझे देखकर हँस पड़ी और बाथरूम की तरफ चल पड़ी। अम्मी उस वक़्त बिल्कुल नंगी थी और अपनी गाण्ड को हिलाती और मटकती हुई वाश-रूम में घुस गईं।

बुआ ने कहा- आलोक, क्या देख रहे हो?

मैंने कहा- कुछ नहीं बुआ, बस अम्मी की तरफ देख रहा था। अच्छा बुआ आपसे एक बात पूछूं बताओगी?

बुआ- हाँ आलोक, बोला तो था कि अब तुम भी हममें से हो। जो पूछना हो पूछ लिया करो, अब तुमसे क्या छुपाना?

मैं- बुआ, क्या आपने कभी अपने भाई यानी मेरे बापू के साथ भी किया है?

बुआ- हेहेहेहे… आलोक, तुम भी ना बड़े बदमाश हो?

मैं- “बताओ ना बुआ प्लीज़्ज़…”

बुआ- “हाँ आलोक, करवा चुकी हूँ…”

मैं- बुआ, क्या आपको मेरे साथ ज्यादा मजा आया या बापू के साथ?

बुआ- “आलोक, सच तो ये है कि मुझे तेरे साथ भी मजा आया लेकिन तेरे बापू के साथ ज्यादा मजा आता है…”

मैं- बुआ, क्या बापू का मेरे से बड़ा है?

बुआ- “नहीं आलोक, बड़ा तो नहीं है लेकिन बस पता नहीं क्यों जब तेरे बापू मेरे साथ करते हैं तो मैं खो सी जाती हूँ और दिल करता है कि तेरे बापू बस इसी तरह मुझे चोदते रहें…”

बुआ ने अभी इतना ही कहा था कि अम्मी भी फ्रेश होकर और अपने कपड़े पहनकर बाहर निकल आईं और हमें बातें करता देखकर हमारे पास आ गई और बोली- बुआ भतीजे में क्या हो रहा है? भाई।

बुआ ने कहा- आपका बेटा पूछ रहा है कि मुझे इसके साथ ज्यादा मजा आता है या भाई के साथ?
अम्मी ने कहा- तो फिर बता दिया मेरे बेटे को तूने हाँ?

बुआ ने कहा- “हाँ बता दिया है और तेरा बेटा भी आज से हमारे साथ ही है…”

अम्मी ने मेरी तरफ देखकर मुश्कुराई और कहा- “आखिर मैं ना कहती थी कि जब भी इसे पता चलेगा ये हमारा साथ ही देगा…”

मैंने कहा- “अच्छा अम्मी, अब आप लोगों ने दीदी का क्या सोचा है? क्योंकि आप दो से तो काम नहीं चल सकता ना…”

अम्मी ने कहा- “मैंने उसके साथ बात तो की है और उसने मुझसे सोचने के लिए टाइम माँगा है। अब देखो
क्या कहती है…” अभी हम बातें ही कर रहे थे कि बैठक की तरफ के दरवाजा पे खटखट होने लगी। अम्मी ने मेरी तरफ देखा और बोली- जा आलोक, देख तो कौन है?

मैंने जाकर दरवाजा खोला, देखा तो एक काला सा आदमी था, मुझे देखकर थोड़ा परेशान हो गया।

मैंने कहा- जी क्या काम था? किससे मिलना है?

उस आदमी ने कहा- “जी, वो… मेरा नाम आबिद है। आपके बापू से मिलना था कुछ सामान था उनके पास…”


 मैंने कहा- “बापू तो नहीं हैं आप आकर बैठो मैं घर में पूछ लेता हूँ…” और उसे बैठक में बिठा दिया और घर आ गया। अंदर आकर मैंने अम्मी से कहा- “अम्मी, कोई आबिद नाम का आदमी है कह रहा है कि बापू के पास उसका कोई सामान है वो लेने आया हूँ…”

मेरी बात सुनकर बुआ हँस पड़ी और बोली- “चलो भाभी जाओ और अपनी फुद्दी में से सामान निकाल कर उसे दे आओ…”

मैंने बुआ की बात सुनकर अम्मी की तरफ देखा तो अम्मी ने हँसते हुये मुझसे कहा- “जाकर उससे पूछ कि कितना टाइम लगाना है उसने? अगर वो एक घंटे से ज्यादा बोले तो ₹1,000 माँग लेना…”

मैं समझ गया कि वो भी कोई ग्राहक ही है। मैं गया और उससे कहा- कितना टाइम लगाना है आपको?

आबिद ने मेरी तरफ देखा और हँस पड़ा और बोला- “यार, मैं तो तुम्हें देखकर डर ही गया था…”

मैंने कहा- चलो कोई बात नहीं… टाइम बताओ कितना लगाओगे?

आबिद ने कहा- “मैं यहाँ दो घंटे तक रहूंगा…”

मैंने उससे कहा- “ठीक है, लाओ निकालो ₹1,000 मैं भेजता हूँ…”

आबिद ने फौरन ₹1,000 मुझे दे दिए और मैं पैसे लेकर घर के अंदर आ गया और अम्मी की तरफ पैसे बढ़ा दिए।

अम्मी ने कहा- “रखो अपने पास, मैं चलती हूँ…” और उठकर बैठक के अंदर चली गईं।

अम्मी के जाने के बाद बुआ ने मेरी तरफ देखा और हँस पड़ी और बोली- “आलोक, क्या हुआ रख ले अपनी माँ की कमाई अपनी जेब में…”

मैं बुआ की बात पे हँस पड़ा और पैसे जेब में डाल लिए और बोला- “चलो कोई बात नहीं कभी आपकी कमाई भी आ ही जायेगी मेरे पास…”

बुआ ने हाँ में सर हिला दिया और कहा- “हाँ क्यों नहीं…” और बोली- देखोगे क्या?

मैंने कहा- क्या देखना है बुआ”

बुआ ने कहा- अपनी माँ को चुदवाते हुये और क्या?

मैंने कहा- क्या ऐसा हो सकता है?

बुआ ने कहा- “अगर तुम चाहो तो हो भी सकता है…”

मैंने कहा- नहीं बुआ, अभी नहीं। रहने दो, बाद में किसी दिन देख लूँगां पता नहीं अम्मी इस काले से कैसे चुदवाती होगी?

बुआ ने कहा- “आलोक, तेरी अम्मी बताती है कि उसका बहुत बड़ा है और टिक के मजा देता है…”

सारा दिन इसी तरह से गुजरा और शाम को 5:00 बजे अम्मी ने मुझसे कहा- जाकर अपनी बहन को आंटी के घर से ले आ…”

मैं उठा और दीदी को लाने चला गया और जैसे ही दीदी को लेकर घर की तरफ चला तो दीदी ने कहा- हाँ भाई सुनाओ, कैसा गुजरा सारा दिन?

मैंने कहा- दीदी, सारा दिन घर पे था, बहुत अच्छा गुजारा है…”

दीदी- भाई, एक बात पूछूं गुस्सा तो नहीं करोगे?

मैं- हाँ दीदी, पूछो क्या बात है?

दीदी- भाई, आप सारा दिन घर में थे और आप खुश हो इस सबसे?

मैं- क्या मतलब दीदी? मैं समझा नहीं आपकी बात?

दीदी- नहीं भाई, वो मेरा मतलब है कि घर में फारिग़ रहे हो ना, कोई काम नहीं (साफ पता चल रहा था कि दीदी ने बात बदल दी है)

मैं- “हाँ बाजी, मैं सारा दिन खुश रहा हूँ और अब तो मुझे नया काम भी संभालना है…”

दीदी ने मेरी बात सुनकर मेरी तरफ देखा और फिर से सर झुका लिया और घर आने तक मेरे साथ और कोई बात नहीं की और मैं भी घर आकर अपने रूम में चला गया। रूम में आकर मैं बेड पे लेट गया और आराम करने लगा।

तभी दीदी मेरे रूम में आ गई और बोली- “भाई, आपको बापू बुला रहे हैं…”

मैं उठा और दीदी के साथ बाहर निकला और बापू के रूम की तरफ चल पड़ा। जैसे ही मैं बापू के पास गया तो बापू अकेले ही बैठे हुये थे। मुझे देखते ही मुश्कुरा दिए और बोले- “आओ बेटा, बैठो यहाँ मेरे पास…”

मैं बापू के पास बैठ गया तो बापू ने मुझे एक चाभी पकड़ा दी और कहा- “ये लो बेटा, ये है मकान की चाबी जहाँ अब तुम सुबह से जाया करोगे…”

मैंने चाभी बापू के हाथ से पकड़ ली और कहा- बापू, दुकान का क्या होगा?

बापू मेरी बात सुनकर हँस पड़े और कहा- “पुरानी दुकान तो बिक गई है अब नयी को संभालो…”

मैं बापू की बात सुनकर हँस पड़ा और कहा- चलो ठीक है, कहाँ है ये दुकान?

बापू ने मुझे एक पाश एरिया के फ्लैट का, जो कि ग्राउंड फ्लोर पे ही था, पता बता दिया और कहा- “मैंने सब कुछ सेट करवा दिया है अब वहाँ कोई परेशानी नहीं होगी…”

मैं- “ठीक है बापू, मैं सुबह से वहाँ चला जाऊँगा…”

बापू- “चलो ठीक है, ऐसा करना कि खाना खाने के बाद रात को यहाँ मेरे पास आ जाना…”

मैं- क्यों बापू? कोई काम था क्या?

बापू- “हाँ बेटा, काम है इसीलिए तो बुला रहा हूँ तुम्हें…”

मैं बापू की बात सुनकर बोला- “ठीक है बापू, अब मैं चलता हूँ…” और रूम से बाहर आ गया बाहर बुआ और बाजी बैठी हुई थी।

मुझे देखते ही बुआ ने कहा- हाँ आलोक, क्या बोल रहे थे तेरे बापू?

मैंने बुआ को चाभी दिखाई और कहा- “नयी दुकान की चाबी देनी थी मुझे, बस और कुछ नहीं…”

मेरी बात सुनकर बुआ हँस पड़ी और बोली- “चलो अच्छा है, तेरी भी जान छूटी, पुरानी दुकान से…”

मैंने दीदी की तरफ देखा तो दीदी अजीब सी नजरों से मेरी तरफ देख रही थी जिसमें बे-यकीनी और दुख और हल्की सी खुशी सब कुछ था जिसको कि मैं समझ ना सका।

अब मैं वहाँ से अपने रूम की तरफ चल पड़ा और जाकर दीदी के बारे में सोचने लगा कि आखिर दीदी मेरी तरफ इस तरह क्यों देख रही थी? क्या दीदी जानती हैं कि बापू ने मुझे किस दुकान की चाबी दी है? और वहाँ कौन सा काम होना है?

खैर टाइम गुजरता गया और रात का खाना दीदी ही मेरे रूम में लेकर आई और झुक के मेरे सामने रखने लगी तो मेरी नजर दीदी की चूचियों को, जो कि ऊपर से हल्के से नजर आ रही थीं, देखने लगा क्योंकि दीदी ने ऊपर दुपट्टा नहीं लिया हुआ था।

दीदी खाना रखकर ऊपर उठी और मुझे अपनी चूचियों के अंदर घूरता हुआ देखा तो दीदी ने कहा- भाई, क्या देख रहे हो आप?

मैंने कहा- कुछ नहीं दीदी, मैं भला क्या देखूंगा?

दीदी मेरी बात सुनकर वापिस मुड़ गईं और मैं दीदी की गाण्ड की तरफ देखने लगा तो दीदी रूम के दरवाजे के पास रुकी और मुड़कर मेरी तरफ देखा और मुझे अपनी गाण्ड की तरफ देखता पाकर दीदी बाहर निकल गईं।
दीदी के जाने के बाद मैंने खाना खाया और बर्तन बगल में रख दिए और टाइम गुजरने का इंतेजार करने लगा। क्योंकि अभी मैंने बापू के रूम में भी जाना था।

रात के 10:00 बज चुके थे। अब मैं उठा और बापू के रूम की तरफ चल पड़ा, क्योंकि बापू ने मुझे बुलाया था। मैं जैसे ही बापू के रूम के बाहर पहुँचकर दरवाजे को हल्का सा दबाया तो वो खुलता चला गया और मैं रूम में दाखिल हो गया। रूम में बापू के साथ बुआ और अम्मी भी बैठी हुई थी।

मुझे आता देखकर अम्मी ने कहा- “चलो अच्छा हुआ कि तुम खुद ही आ गये वरना मैं अभी आ ही रही थी तुम्हें बुलाने के लिए…”

मैंने दरवाजे को लाक किया और जाकर बेड के करीब पड़ी चेयर पे बैठ गया और बोला- “क्यों अम्मी कोई खास बात है क्या? जो इस वक़्त आप सब यहाँ जमा हैं…”

बुआ ने कहा- “हाँ आलोक, बात तो खास ही है इसीलिए तो हम लोग जमा हुये हैं…”

मैं- “तो फिर मुझे भी बतायें कि क्या बात है? जिसने आप सबकी नींद उड़ा रखी है…”

अम्मी- “बेटा, बात ये है कि तेरी दीदी इस काम के लिए मान गई है और अब उसके लिए एक आदमी भी ढूँढ़ना था, जो कि तेरे बापू ने ढूँढ़ लिया है?

अम्मी की बात सुनकर दीदी का चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम सा गया और मैंने कहा- तो इसमें जमा होने की क्या बात है?

बुआ- आलोक, बात ये है कि तेरी दीदी अभी तक कुँवारी है और वहाँ उसके पास भी तो किसी का होना जरूरी है ना।

मैं- बुआ, क्या जब लड़की शादी के बाद अपने पति के साथ जाती है तो वहाँ भी उसके रूम में कोई होता है क्या?

बापू मेरी बात सुनकर हँस पड़े और बोले- “यार, मैं भी इनको ये ही समझा रहा था लेकिन ये है ना जो तेरी बुआ… इसका बड़ा दिल है कि ये भी उस वक़्त अंजली के साथ ही हो…”

बुआ- “भाई, आप तो ना बस बात का बतंगड़ बना देते हो। मैं तो बस ऐसे ही बोल रही थी…”






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