FUN-MAZA-MASTI
पापा प्लीज........14
शहर में हर तरफ एस.पी. के इस रवैये से वो चर्चा में आ गया था... सब इसी सोच में थे कि अब क्या होगा? अगर एस.पी. अपनी बेटी के लिए फिरौती देता तो इस शहर के साथ साथ अगल बगल के शहर के लोग और सदमें में आ जाते...
जब एस.पी. ही झुक गया तो और जनता किस खेत की मूली होता... एस.पी. की हिम्मत की जहाँ वाहवाही मिल रही थी तो वहीं उसकी बेटी पुष्पा सबके लिए चिंता भी बनी थी... बेचारी की गलती कुछ नहीं थी और नाहक ही मुसीबत में फंस गई...
जब औरों के दिल किसी अनहोनी की सोच दहल जाता तो उसके मां बाप पर क्या बीत रही होगी, सोचना मुश्किल...! अब सबकी नजर बस एस.पी. पर ही थी... उनका अगला कदम क्या होगा और इसका निदान क्या करते हैं.... सब यही दुआ कर रहे थे कि अब बस, लड़की सही सलामत वापस आ जाए...
दोषी को सजा मिलनी चाहिए पर पहले पुष्पा को वापस लाना ठीक रहेगा...फिरौती के लिए आए आदमी के सुसाइड करने से सुरक्षा विभाग हिल गई थी... जब वो बात ना करने के लिए जान गंवा सकते हैं तो उसके पीछे पड़ने पर वो पता नहीं क्या सब कर डालेंगे....ये चिंता का विषय था...
रातों रात एक विशेष टीम एस.पी. से मिलने आ पहुँची, जिसकी भनक किसी को नहीं लगी... और काफी देर तक विचार विमर्श हुआ... नतीजन सुबह होते ही एस.पी. ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और पब्लिक से अपने काम को इमानदारी से ना करने की माफी मांग ली...जब खुद सुरक्षा नहीं कर सकता तो आप लोगों की सेवा कैसे कर सकता हूँ...
एस.पी. गुप्त टीम के साथ रत्ना के ठिकानों का पता लगाने के लिए हाथ धो के पीछे पड़ गया...एस.पी. स्टेट के उन शहरों में शिफ्ट हुआ जहां रत्ना सबसे ज्यादा क्राइम करता था... वहां ज्यादे क्राइम होते हैं मतलब उसका आदमी निश्चित वहां ज्यादा होंगे... और कोई तो जरूर मुंह खोलेगा...
पद से इस्तीफा देने के बाद वो शहर भी छोड़ दिया फैमिली के साथ और दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया... ऐसी घटना से उसे अब कहाँ के लोग नहीं पहचानते थे पर इस शहर में किसी से बातचीत नहीं थी तो वो आराम से अपने काम में लगा रहा....
उधर पुष्पा नंगी ही कालिया के संग काफी देर तक सोई रही... जब कालिया उठा तब जाकर वो भी हटी... फिर दोनों बाथरूम घुस तरोताजा हो लिए पर दोनों की एक जैसी प्रॉब्लम आ गई थी... पुष्पा की बूर सूज गई थी तो कालिया के लंड पर छाले पड़ गए थे...दोनों दर्द से कराह रहे थे और एक दूसरे को देख हंस भी रहे थे...
दो दिनों तक तो कालिया का लंड खड़ा भी नहीं हुआ...तीसरे दिन जब राहत हुई तो उसके साथ ही खड़ा भी हो गया... पर वो इतनी जल्दी फिर से छाले नहीं पड़वाना चाहता था लंड पर... हंसी मजाक, चुगलबंदी, अच्छी-बुरी बातें इत्यादि दोनों हर वक्त करते रहते थे...
इन दो दिनों में ही दोनों पूर्णतया एक दूजे को हो लिए थे... पहले तो दिल से,फिर तन से और अब दिमाग,मन सब से... दोनों एक दूसरे की हर बात सुनते थे, सुनाते थे... इस तरह रहना नसीब वालों को ही मिलती है...
कभी कभी रत्ना की नजर इन दोनों पर पड़ जाती... पहले तो रत्ना दोस्त समझ के मुंह फेर लेता पर जब रात में बेड पर जाता तो उसके जेहन में ये बात घूमने लगती... दोनों के भविष्य की सोच वो कांप सा जाता... अगर ऐसा हुआ तो वो कहीं अनजान जगह जा शरीफों की तरह रहने लगेगा और फिर बच्चे होंगे तो ये परिवार वाला होगा जो कि इसके और कुछ तो नहीं कह सकता पर नाम का जरूर वारिस होगा...
कई दिनों तक रत्ना दिमाग पर काबू करते रहता पर कहते हैं ना बद चीज जल्द हावी होती है... यही बात रत्ना के साथ हुई... मजबूर हो रत्ना अपने दोस्त से बहाने कर गया कि उसे सूचना मिली है कि पुलिस हाथ धो के उसके खोज में जुटी है...तो अब तुम लोग का इधर रहना ठीक नहीं है...
कालिया को उसकी बात में सच्चाई नजर आई... वो अब हर वक्त पुष्पा के साथ बिताना चाहता था... पुलिस नाम से अब उसे पकड़े या मारे जाने का डर नहीं लगा बल्कि उसे तो अलग होने का डर लग गया..वो तुरंत हामी भर दिया...
अगले ही दिन कालिया पुष्पा को ले वहां से निकल गया... रत्ना उसे नदी किनारे तक छोड़ने आया था... कालिया नदी पार ना होकर कुछ सोचा और नदी के रास्ते ही बढ़ गया... पीछे रत्ना खूब रोया अपने दोस्त के बारे में सोच कर...
कितना कमीना हो गया था.... आज एक दोस्त की विश्वास का कत्ल होने जा रहा था... लानत है तुझ पर ... और ना जाने कितनी खरी खोटी सुनाई खुद को... कालिया अब बिल्कुल नए और अनजान जगह जाना चाहता था... बिल्कुल अनजाना...
पुष्पा इस सफर में कई बार रोई पर वापस जाने पर होने वाले अंजाम को सोच मन मसोस कर रह गई... कालिया से काफी अंदर तक जुड़ गई थी... वो भी एक पल भी अलग नहीं रहना चाहती थी... कालिया उसे नए और बदले कालिया की कहानी सुना उसे ढ़ाढ़स बंधा रहा था...
वो जानता था कि ये मुश्किल जरूर है पर नामुमकिन नहीं... पर ये सोच कर जोश से भर जाता कि पहले तो कोई नहीं था पर अब पुष्पा है ना हर कदम पर साथ देने वाली तो टेंशन किस बात की... बिन मंजिल के वो कई दिनों तक सफर पर चलता रहा...
आखिर उसे एक जगह जहां सब नए चेहरे थे, जगह अनजान, हवा अनजान, मौसम नया ... सब कुछ नया नया.... उसने वहीं अपने सफर को रोक दिया... अब उसने रहने के लिए ठिकाने ढ़ूँढ़ने थे... पहली जगह ही उसे बड़ी समस्या आ गई...
मुंह बनाए वो वापस पुष्पा के पास आते ही बोला,"इधर की भाषा तो समझ में ही नहीं आती... शाले बुड्ढ़े ने क्या बोला मालूम ही नहीं..." उसकी बात सुनते ही पुष्पा जोर से हंस पड़ी...
आगे से पुष्पा पता करनी शुरू की... वो अंग्रेजी अच्छी जानती थी... कई प्रयासों में उसे एक जगह मिल ही गई... रूम मालिक छोटे फैमिली वाला था... पति पत्नी और एक बेटा... दोनों वहीं ठहर गए...
उसके रूम मालिक ने पूछताछ की तो पुष्पा प्यार वाली बात सच सच बता दी... किडनैप की बात नहीं बता पाई नहीं तो प्रॉब्लम हो जाती... वो मुस्कुरा के रहने की इजाजत दे दी क्योंकि संयोगवश वो भी इसी तरह भागा था और अभी तक वापस नहीं गया था... तो लाजिमी है कि वो प्यार के हर दर्द को अच्छी तरह जानता था.... साथ ही उसने कालिया को काम भी दिलवा दिया अपना रिश्तेदार बता कर...
एस.पी. जल्द ही व्यवस्थित हो अपने काम में जुट गया...10 दिन तक कुछ हाथ नहीं लगा... वो अब कुछ ज्यादा ही अपसेट होने लगा था... वो अपसेट कम करने के लिए बियर बार जा पहुँचा...
वो नजर दौड़ाता हुआ आगे बढ़ एक कोने में बैठ गया...अंदर काफी बढ़िया व्यवस्था की हुई थी... झूमने वाले झूमे, बैठने वाले बैठ के मजे ले... एक बियर ऑर्डर कर वो बैठा... उसकी आँख बंद हो गई थकान से... बंद आँखों में वो पुष्पा की यादें आने लगी...
वेटर बियर देकर चला गया. . वो अभी दो घूंट ही पिया था कि बगल के कुर्सी पर तीन आदमी आ कर बैठ गए... एस.पी. एक नजर डाल पुनः पीने लगा... तीनों अभी आए ही थे... वे पहले मूड बनाते फिर झूमने जाते शायद...
तभी उन तीनों की बातचीत सुनते ही एस.पी. के कान खड़े हो गए...एक आदमी दूसरे से संयोगवश पुष्पा की ही बात कर रहा था... तभी उसमें से एक बोल पड़ा कि भाई, उस लड़की को तो मैं ही नदी किनारे तक छोड़ने गया था गाड़ी से...
उसने फिर कहा,"वो मेरे मामा हैं ना वो यही सब करते हैं तो उन्होने ही फोन कर कहा कि तुम बस उसे जहाँ तक कहे पहुँचा दो, मैंने पहुँचा दिया... भाई मैं ऐसे काम तो नहीं करता पर जब कोई अपना कह दे तो साले मैं कुछ भी करने का जिगर रखता हूँ..."
एस.पी. की आँखें चौंक गई कि बेटा, तेरा दिन खराब हो गया अब... नहीं करता है तो नहीं करना चाहिए था ना... एस.पी. तुरंत अपने साथी से कांटेक्ट किया और उस पर नजर रखने लगा...
कुछ ही पलों में उसके साथी बार के बाहर आ धमके... एस.पी. आराम से उससे सहायता मांगा कि बेटा, बाहर गाड़ी तक हमें छोड़ आओ... कुछ ज्यादा चढ़ गई है तो जाने में.... एस.पी. जैसे सभ्य पुरूष देखते ही वही ड्राइवर खड़ा हो सहायता करने लगा अच्छे बच्चों की तरह...
एस.पी. इसके गिरफ्तारी की भनक नहीं लगने देना चाहता था... इसी वजह से वो उसे बहाने से बाहर लाया... बाहर एस.पी. अपने गाड़ी के पास पहुँचा कि उसी वक्त एक साथी ने पीछे से उसके कमर पर गन लगा दी और चुपचाप अंदर बैठने को कहा...बेचारा क्या करता.. ?
एस.पी. के साथ ही बैठना पड़ा और गाड़ी तेज गति से निकल गई... पीछे से उसके साथी भी सादी लिबास में आ रहे थे...उस लड़के की समझ में कुछ नहीं आ रहा था... वह एक बार पूछा भी कि मुझे क्यों और कहाँ ले जा रहे... तुम लोग कौन हो..?
पर बंदूक की नोक उसे आगे से कोई सवाल ना करने पर मजबूर कर दिया बिना जवाब सुने...अपने जगह पर पहुँच उसे पहले तो उल्टा लटका दिया और 10-12 मोटे डंडे ला उसे दिखा दिखा कर मजबूती चेक करने लगा...
बेचारा, देख के ही उसकी पैंट गीली हो गई और सारा पानी उसके सर से टपकने लगा... वो रोने लग गया और हर बार बस छोड़ने की गुहार लगाने लगा... एस.पी. अपने साथी को इशारा कर खुद कुर्सी पर बैठ गया... उसके साथी उसके पास आ उसे रौबदार आवाज में बोला,"तुम्हारे एक बार ना कहने पर ये एक डंडे टूट जाएंगे...सो तुम अपनी खैर चाहने के लिए खुद फैसला कर सकते हो..."
वो रोता रहा पर बोल कुछ नहीं पाया... तभी वो पुलिसवाला पूछा,"एस.पी. साहब हैं ये... जिनकी बिटिया का किडनैप हो गया है..." उसके इतना कहने से ही वो आदमी सारा माजरा समझ गया और बियर बार में कही बात याद आने लगी... वो अब चाह कर भी मुकर नहीं सकता था...
वो पुलिस वाले की बात बीच में काटते ही सारी कहानी पट पट उगल दी कि कैसे उसके मामा ने उसे फोन पर बताया,फिर वो कालिया और पुष्पा को गाड़ी से छोड़ने गया था नदी किनारे तक... फिर रत्ना बोट से उसे रिसीव कर ले गया.. उसके बाद वो कुछ नहीं जानता..
उसकी बात खत्म होते ही एस.पी. आँख तरेरता उठा और डंडे से मारने दौड़ा कि वो जोर से चिल्लाते हुए मां बाप और ना जाने कितनों की कसम खाने लगा और रोते हुए कह रहा था कि साब मैं सच कह रहा हूँ...एस.पी. को अगर उसके साथी बीच में ना पकड़ते तो वो सच में उसे तोड़ देते...
फिर सभी ने एस.पी. साब को शांत कर बाहर ले आए और उसे यूं ही टंगा छोड़ दिया...बाहर निकल एस.पी. ने तुरंत हेडक्वाटर फोन मिलाया और सारी बात कह स्पेशल फोर्स की मांग कर दी...
ऊपर वाले ऑफिसर भी मामले को गंभीरता से ले हामी भर दी और सुबह तक स्पेशल फोर्स की टीम पहुँचने की बात कही... एस.पी. अब जल्द से जल्द सुबह होने का इंतजार कर रहा था...उसे बेचैनी से नींद कोसो दूर भाग रही थी... उसने वहीं कुर्सी पर बैठ सुबह होने का इंतजार करने लगा...
सुबह की पहली किरण निकलने से पहले ही स्पेशल टीम आ पहुँची थी...एस.पी. और उसके साथी तैयार तो थे ही... उसके आते ही सब बिना समय गंवाए चल पड़े... रास्ते में ही पूरी प्लानिंग हो गई कि कैसे मिशन को कम्प्लीट करना है...
धूप निकलने तक सब नदी किनारे तक आ गए जहाँ बोट उनका इंतजार कर रही थी... बोट में सभी सैनिक सवार हो चल पड़े... सब जल्द से जल्द पहुँचना ताहते थे...सुबह होने और इतनी जल्दी पूरी तैयारी होने से किसी को भनक लगने की भी उम्मीद नहीं थी... कोई रत्ना का खुफिया भी होता तो वो शाम से सुबह के बीच क्या सब हुआ, कुछ नहीं पता होगा...
बोट में ही एस.पी. ने सभी जवानों को अपनी बेटी की तस्वीर दिखा दी... काफी देर नदी में सफर करने के बाद सब मंजिल तक पहुँच गए... बोट से उतर सबने अपने हथियार संभाल आगे बढ़ने लगे... सबके सब चौकन्ने थे... और जंगलों की ओर जाने वाली गाड़ी के पहिए के निशान की ओर बढ़े जा रहे थे...
रास्ते तो थे नहीं...उन तक पहुँचने का उन्हें बस यही निशान मिला था जो कि इन सब के लिए काफी था... कुछ दूर चलने के बाद इन्हें एक तरफ से कुछ आवाज आई... सब जड़वत रूक गए... एक टुकड़ी तुरंत हट आवाज की ओर बढ़ गई... झाड़ी के पीछे दो लोग बैठ अपनी बंदूक का मुआयना कर रहे थे...
शायद सुबह की वजह से वे अभी आए ही थे और अपनी पोजीशन के लिए तैयार हो रहे थे... अचानक उन पर जवानों ने चाकू निकाल तेज वार कर दिया; दोनों ढ़ेर...बाहर निकल इशारे से सबको बात कह दी... सब तुरंत ही कई टुकड़ियों में बंट गए और फूंक फूंक कर आगे बढ़ने लगे...
ऐसे ही झाड़ी के पीछे तो कोई पेड़ पर,तो कोई गड्ढे में वगैरह जगहों पर मिलते रहे और सबको जवानों ने कोई मौका दिए मौत के घाट उतारते गए...अभी तक जवानों ने बंदूक का इस्तेमाल नहीं किए थे...
सारे जवान ऐसे बढ़ रहे थे कि रत्ना के ठिकाने तक पहुँचते पहुँचते सब के सब उस घर के चारों तरफ हो गए... पर किसी को घर दिखाई दे नहीं रहा था... सब अपने अगल बगल देखे तो सब जवान ही नजर आए... मतलब रत्ना के आदमी उसके ठिकाने के चारों ओर से घिरे थे...
तभी जवान के कैप्टन ने अपना दिमाग दौड़ा दिया और पलक झपकते ही वो सब समझ गया... फिर बगल के जवानों को इशारों से कह दिया कि सबको कह दो, झाड़ी के अंदर जाना है... ठिकाना यही है...
सभी जवान अपने बिल्ली के पंजों के माफिक कदम बढ़ाने लगे... जब कुछ ही फीट की दूरी रह गई थी एक जवान और एक डाकू की नजरें आपस में टकरा गई... नतीजन घांय... और फिर चली पड़ी अंधाधुंध फायरिंग...
चारों तरफ से घिर चुकी रत्ना के साथी भागने की तो सोच नहीं सकते थे... लड़ना ही एक विकल्प बच गई थी उनके लिए...इन तड़ातड़ की आवाज से रत्ना की नींद खुली तो उसके माथे पर परेशानी की लकीर साफ नजर आने लगी...
वो तेजी से रूम से बाहर देखने भागा...सामने की तरफ देखा तो उसके कुछ आदमी बाहर की तरफ ओर बढ़ते हुए फायरिंग कर रहे थे तो कुछ डर से फायरिंग करते अंदर की ओर भी आ रहे थे...
कुछ पल में अंदर आने वालों की संख्या बढ़ने लगी... मतलब बाहर वाला भारी पड़ने लगा... तभी रत्ना के एक आदमी रत्ना को कहते हुए भागता है कि भाई, पुलिस हमला कर दिया है...
अब तो रत्ना को सांप सूंघ गया... उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था... उसके दिमाग में सभी की तस्वीरे स्लाइडशो की तरह चलने लगी कि आखिर किसने खबर दी पुलिस को...एक बार तो उसके दिमाग में कालिया व एस.पी. की बेटी भी आ गई... पर वो दिमाग से इस बात को हटा बचने की सोच नीचे की तरफ दौड़ पड़ा...
अभी वो भागकर आधी सीढ़ी ही उतर पाया था कि तभी उसके पांक के ठीक पास धांय की आवाज हुई... वो डरते हुए सामने देखा तो एक जवान उसकी तरफ फायरिंग के लिए निशाने लगा रहा था...
वो अगली फायरिंग के लिए स्ट्रिगर दबाता कि उससे पहले ही जवान जमीन पर लुढ़क गया... रत्ना की नजर होने वाले फायरिंग की तरफ गया तब तक उसका वो आदमी भी नीचे तड़प रहा था...रत्ना अब नीचे उतरने की सोच भी नहीं सकता था क्योंकि सभी जवान अंदर घुसे जा रहे थे...
वो वापस छुपने के लिए भागा और इस दौरान कई फायरिंग उस पर भी हुई पर वो बचता हुआ अपने रूम में घुस लॉक हो गया...कुछ ही पलों में फायरिंग कम हो गई पर बीच बीच में होती तो बस आहें ही निकलती...
रत्ना की आँखों के सामने मौत अपना नाच शुरू कर चुका था... वो किसी पत्ते की तरह टूटता हुआ दीवाल के सहारे नीचे बैठ रोने लग गया... पल भर में सब तबाह हो गई थी... वो इसका जिम्मेदार बस एस.पी. की बेटी को ठहरा ढ़ेर सारी गालियाँ निकालें जा रहा था...
करीब दस मिनट बाद जाकर वहाँ फायरिंग बंद हुई... रत्ना के अब पसीने निकलने शुरू हो गए थे... उसे लगने लगा था कि शायद सब मारे गए...और ये सच भी थी... सब खत्म.. एक दो डर के मारे सरेंडर करने की सोची तो एस.पी. किसी पागल कुत्ते की तरह उसे अपने निकट ला लाकर उसके मुँह में गन घुसेड़ कर खत्म कर रहा था....
सब के सब निर्दय और हैवान बन चुके थे... आखिर करीब दस सालों से परेशान पुलिस अपना गुस्सा निकाल रही थी... पुलिस के साथ साथ ना जाने कितने निर्दोष व्यक्ति को ये सब अपना शिकार बनाए थे... जब सब जवानों को लगा कि सब खत्म हो गए तो सबने अपनी पोजीशन ले ली अंदर ही...
क्योंकि कैप्टन ने एक को रूम में घुसते देखा था और वो अनुमान कर लिया था कि रत्ना यही है... वो एस.पी. और जवान की एक टुकड़ी को ले ऊपर बढ़ गया... और रूम में चेक किया तो कोई नहीं मिला... मतलब सब वफादार थे रत्ना के... अब बस ओक ही रूम बचा था...
जवान गेट के इर्द-गिर्द पोजीशन लिए और तब कैप्टन ने कुछ सोच रत्ना को सरेंडर करने की आवाज दी... अभी तक किसी ने पुष्पा को नहीं देखा था तो पुष्पा कहाँ है ये भी जानना जरूरी था... आवाज सुन रत्ना क्या जवाब दे कुछ सोच नहीं पा रहा था...
एस.पी. आगे बढ़ गेट तोड़कर अंदर जाने की सोचा पर कैप्टन उसे रोक लिए... पुनः कैप्टन ने दिलासा देते हुए बोला कि अगर वो सरेंडर कर दे तो उसे कुछ नहीं होगा... बस पुष्पा कहां है बता दो...फिर कानूनी तरीके से तुम्हें जेल जरूर जानी होगी पर वादा करता हूँ कि सजा कम से कम दिलवाऊंगा...
जान पर जब बात आती है तो आदमी किसी भी बात पर विश्वास जल्द कर लेता है.... रत्ना के साथ भी यही हुआ और वो कांपते हाथ से गेट खोल वहीं जमीन पर बैठ गया... गेट खुलते ही दो जवान फुर्ती से आगे हुए और गेट को चौकन्ने हो खोलने लगे...
सामने कुछ नजर नहीं आया तो बगल की तरफ गन घुमाकर घुसा तो एक तरफ रत्ना पसीने से नहाया रोनी सूरत में पड़ा था... उसने तुरंत उसके सर पर गन तान कर खड़ा हो गया...इतने में एस.पी., कैप्टन सब धड़धड़ाता अंदर आ घुसा...
अंदर घुसते ही कैप्टन उससे पूछा,"पुष्पा कहाँ है..?" रत्ना बिना कुछ बोले ना में सर हिला दिया... ये देख एस.पी. का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया... उसने वहीं रत्ना के सर पर जूते की एक जोरदार किक दे मारी... रत्ना चीखता हुआ लुढ़क गया...
उसके सर पर चोट जोर की लगी थी...उसने सर पर हाथ रख बोला,"सच कह रहा हूँ मुझे नहीं पता कि वो कहाँ है... " उसकी बात सुन तमतमा कर एस.पी. पुनः गरजा,"वो कुत्ते का पिल्ला तो मेरी बेटी को तेरे ही अड्डे पर लाया था ना..." एस.पी. के बोलते ही रत्ना हाँ में सर हिलाते बोला...
"हाँ पर वो कल ही यहाँ से निकल गए...अब कहाँ गए कुछ मालूम नहीं... "रत्ना की बात खत्म होते ही कैप्टन बोला,"देख सीधे बता दे कि वो कहाँ है वरना मुझे मजबूर मत करो... मैं अपनी बात से नहीं मुकरा हूँ तुम खुद आफत मोल ले रहे हो..."
रत्ना अब गिड़गिड़ाने लगा,"सच कह रहा हूँ साब... कहाँ गए मुझे नहीं पता है... पर एक बात है कि आपकी बिटिया खुद गई है... दोनों प्यार करने लगे हैं... " उसकी बात सुनते ही सबके चेहरे पर आश्चर्य से हवाइयाँ उड़ने लगी..
"साब, मेरा पता किसने बताया..."रत्ना उठ के बैठते हुए बोला... रत्ना को थोड़ा महसूस हुआ कि ये बात इन्हें सच लगी... हालांकि पुलिस वाले अपराधी की किसी बात का यकीं जल्द नहीं करते...
एस.पी. उसकी बात का जवाब उसके सामने बैठ दिया," पता देने वाला कौन है ये जान के अब क्या करेगा... वैसे मेरी बेटी अभी तक नहीं मिली तो वो बता नहीं सकती... तो जाहिर है कोई तेरा ही अपना है... पर हाँ, वो तुम्हारा वफादार नहीं है इन सबकी तरह... बेचारा ये सब काला काम नहीं करता है... फिर भी तुम्हें उस पर गुस्सा तो जरूर आ रहा होगा... और बात कुछ ऐसा है कि मैं उसे मरते नहीं देखना चाहूँगा... मुझे विश्वास है कि उसे समझा दूँगा तो वो गलत काम के लिए साथ देना छोड़ देगा..."
एस.पी. अपने गन की स्ट्रिगर पर उंगली दबाते हुए बोला,"अब तेरा काम खत्म है और तुझे अंदर डाल मैं बोझ नहीं बढ़ाना चाहता देश पर... तेरे जैसे को मर जाना ही बेहतर होगा लाखों लोगों के लिए..." उसकी बात का जवाब देने हैरानी से रत्ना मुँह खोला ही था कि उसका मुँह खुला का खुला रह गया...
गन की गोली रत्ना के माथे के बीच में घुस गई...रत्ना लहूलुहान वहीं लुढ़क गया... कैप्टन तुरंत सभी जवानों को इतल्ला कर आगे कानूनी कार्रवाई में एस.पी. के साथ जुट गया...
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जब औरों के दिल किसी अनहोनी की सोच दहल जाता तो उसके मां बाप पर क्या बीत रही होगी, सोचना मुश्किल...! अब सबकी नजर बस एस.पी. पर ही थी... उनका अगला कदम क्या होगा और इसका निदान क्या करते हैं.... सब यही दुआ कर रहे थे कि अब बस, लड़की सही सलामत वापस आ जाए...
दोषी को सजा मिलनी चाहिए पर पहले पुष्पा को वापस लाना ठीक रहेगा...फिरौती के लिए आए आदमी के सुसाइड करने से सुरक्षा विभाग हिल गई थी... जब वो बात ना करने के लिए जान गंवा सकते हैं तो उसके पीछे पड़ने पर वो पता नहीं क्या सब कर डालेंगे....ये चिंता का विषय था...
रातों रात एक विशेष टीम एस.पी. से मिलने आ पहुँची, जिसकी भनक किसी को नहीं लगी... और काफी देर तक विचार विमर्श हुआ... नतीजन सुबह होते ही एस.पी. ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और पब्लिक से अपने काम को इमानदारी से ना करने की माफी मांग ली...जब खुद सुरक्षा नहीं कर सकता तो आप लोगों की सेवा कैसे कर सकता हूँ...
एस.पी. गुप्त टीम के साथ रत्ना के ठिकानों का पता लगाने के लिए हाथ धो के पीछे पड़ गया...एस.पी. स्टेट के उन शहरों में शिफ्ट हुआ जहां रत्ना सबसे ज्यादा क्राइम करता था... वहां ज्यादे क्राइम होते हैं मतलब उसका आदमी निश्चित वहां ज्यादा होंगे... और कोई तो जरूर मुंह खोलेगा...
पद से इस्तीफा देने के बाद वो शहर भी छोड़ दिया फैमिली के साथ और दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया... ऐसी घटना से उसे अब कहाँ के लोग नहीं पहचानते थे पर इस शहर में किसी से बातचीत नहीं थी तो वो आराम से अपने काम में लगा रहा....
उधर पुष्पा नंगी ही कालिया के संग काफी देर तक सोई रही... जब कालिया उठा तब जाकर वो भी हटी... फिर दोनों बाथरूम घुस तरोताजा हो लिए पर दोनों की एक जैसी प्रॉब्लम आ गई थी... पुष्पा की बूर सूज गई थी तो कालिया के लंड पर छाले पड़ गए थे...दोनों दर्द से कराह रहे थे और एक दूसरे को देख हंस भी रहे थे...
दो दिनों तक तो कालिया का लंड खड़ा भी नहीं हुआ...तीसरे दिन जब राहत हुई तो उसके साथ ही खड़ा भी हो गया... पर वो इतनी जल्दी फिर से छाले नहीं पड़वाना चाहता था लंड पर... हंसी मजाक, चुगलबंदी, अच्छी-बुरी बातें इत्यादि दोनों हर वक्त करते रहते थे...
इन दो दिनों में ही दोनों पूर्णतया एक दूजे को हो लिए थे... पहले तो दिल से,फिर तन से और अब दिमाग,मन सब से... दोनों एक दूसरे की हर बात सुनते थे, सुनाते थे... इस तरह रहना नसीब वालों को ही मिलती है...
कभी कभी रत्ना की नजर इन दोनों पर पड़ जाती... पहले तो रत्ना दोस्त समझ के मुंह फेर लेता पर जब रात में बेड पर जाता तो उसके जेहन में ये बात घूमने लगती... दोनों के भविष्य की सोच वो कांप सा जाता... अगर ऐसा हुआ तो वो कहीं अनजान जगह जा शरीफों की तरह रहने लगेगा और फिर बच्चे होंगे तो ये परिवार वाला होगा जो कि इसके और कुछ तो नहीं कह सकता पर नाम का जरूर वारिस होगा...
कई दिनों तक रत्ना दिमाग पर काबू करते रहता पर कहते हैं ना बद चीज जल्द हावी होती है... यही बात रत्ना के साथ हुई... मजबूर हो रत्ना अपने दोस्त से बहाने कर गया कि उसे सूचना मिली है कि पुलिस हाथ धो के उसके खोज में जुटी है...तो अब तुम लोग का इधर रहना ठीक नहीं है...
कालिया को उसकी बात में सच्चाई नजर आई... वो अब हर वक्त पुष्पा के साथ बिताना चाहता था... पुलिस नाम से अब उसे पकड़े या मारे जाने का डर नहीं लगा बल्कि उसे तो अलग होने का डर लग गया..वो तुरंत हामी भर दिया...
अगले ही दिन कालिया पुष्पा को ले वहां से निकल गया... रत्ना उसे नदी किनारे तक छोड़ने आया था... कालिया नदी पार ना होकर कुछ सोचा और नदी के रास्ते ही बढ़ गया... पीछे रत्ना खूब रोया अपने दोस्त के बारे में सोच कर...
कितना कमीना हो गया था.... आज एक दोस्त की विश्वास का कत्ल होने जा रहा था... लानत है तुझ पर ... और ना जाने कितनी खरी खोटी सुनाई खुद को... कालिया अब बिल्कुल नए और अनजान जगह जाना चाहता था... बिल्कुल अनजाना...
पुष्पा इस सफर में कई बार रोई पर वापस जाने पर होने वाले अंजाम को सोच मन मसोस कर रह गई... कालिया से काफी अंदर तक जुड़ गई थी... वो भी एक पल भी अलग नहीं रहना चाहती थी... कालिया उसे नए और बदले कालिया की कहानी सुना उसे ढ़ाढ़स बंधा रहा था...
वो जानता था कि ये मुश्किल जरूर है पर नामुमकिन नहीं... पर ये सोच कर जोश से भर जाता कि पहले तो कोई नहीं था पर अब पुष्पा है ना हर कदम पर साथ देने वाली तो टेंशन किस बात की... बिन मंजिल के वो कई दिनों तक सफर पर चलता रहा...
आखिर उसे एक जगह जहां सब नए चेहरे थे, जगह अनजान, हवा अनजान, मौसम नया ... सब कुछ नया नया.... उसने वहीं अपने सफर को रोक दिया... अब उसने रहने के लिए ठिकाने ढ़ूँढ़ने थे... पहली जगह ही उसे बड़ी समस्या आ गई...
मुंह बनाए वो वापस पुष्पा के पास आते ही बोला,"इधर की भाषा तो समझ में ही नहीं आती... शाले बुड्ढ़े ने क्या बोला मालूम ही नहीं..." उसकी बात सुनते ही पुष्पा जोर से हंस पड़ी...
आगे से पुष्पा पता करनी शुरू की... वो अंग्रेजी अच्छी जानती थी... कई प्रयासों में उसे एक जगह मिल ही गई... रूम मालिक छोटे फैमिली वाला था... पति पत्नी और एक बेटा... दोनों वहीं ठहर गए...
उसके रूम मालिक ने पूछताछ की तो पुष्पा प्यार वाली बात सच सच बता दी... किडनैप की बात नहीं बता पाई नहीं तो प्रॉब्लम हो जाती... वो मुस्कुरा के रहने की इजाजत दे दी क्योंकि संयोगवश वो भी इसी तरह भागा था और अभी तक वापस नहीं गया था... तो लाजिमी है कि वो प्यार के हर दर्द को अच्छी तरह जानता था.... साथ ही उसने कालिया को काम भी दिलवा दिया अपना रिश्तेदार बता कर...
एस.पी. जल्द ही व्यवस्थित हो अपने काम में जुट गया...10 दिन तक कुछ हाथ नहीं लगा... वो अब कुछ ज्यादा ही अपसेट होने लगा था... वो अपसेट कम करने के लिए बियर बार जा पहुँचा...
वो नजर दौड़ाता हुआ आगे बढ़ एक कोने में बैठ गया...अंदर काफी बढ़िया व्यवस्था की हुई थी... झूमने वाले झूमे, बैठने वाले बैठ के मजे ले... एक बियर ऑर्डर कर वो बैठा... उसकी आँख बंद हो गई थकान से... बंद आँखों में वो पुष्पा की यादें आने लगी...
वेटर बियर देकर चला गया. . वो अभी दो घूंट ही पिया था कि बगल के कुर्सी पर तीन आदमी आ कर बैठ गए... एस.पी. एक नजर डाल पुनः पीने लगा... तीनों अभी आए ही थे... वे पहले मूड बनाते फिर झूमने जाते शायद...
तभी उन तीनों की बातचीत सुनते ही एस.पी. के कान खड़े हो गए...एक आदमी दूसरे से संयोगवश पुष्पा की ही बात कर रहा था... तभी उसमें से एक बोल पड़ा कि भाई, उस लड़की को तो मैं ही नदी किनारे तक छोड़ने गया था गाड़ी से...
उसने फिर कहा,"वो मेरे मामा हैं ना वो यही सब करते हैं तो उन्होने ही फोन कर कहा कि तुम बस उसे जहाँ तक कहे पहुँचा दो, मैंने पहुँचा दिया... भाई मैं ऐसे काम तो नहीं करता पर जब कोई अपना कह दे तो साले मैं कुछ भी करने का जिगर रखता हूँ..."
एस.पी. की आँखें चौंक गई कि बेटा, तेरा दिन खराब हो गया अब... नहीं करता है तो नहीं करना चाहिए था ना... एस.पी. तुरंत अपने साथी से कांटेक्ट किया और उस पर नजर रखने लगा...
कुछ ही पलों में उसके साथी बार के बाहर आ धमके... एस.पी. आराम से उससे सहायता मांगा कि बेटा, बाहर गाड़ी तक हमें छोड़ आओ... कुछ ज्यादा चढ़ गई है तो जाने में.... एस.पी. जैसे सभ्य पुरूष देखते ही वही ड्राइवर खड़ा हो सहायता करने लगा अच्छे बच्चों की तरह...
एस.पी. इसके गिरफ्तारी की भनक नहीं लगने देना चाहता था... इसी वजह से वो उसे बहाने से बाहर लाया... बाहर एस.पी. अपने गाड़ी के पास पहुँचा कि उसी वक्त एक साथी ने पीछे से उसके कमर पर गन लगा दी और चुपचाप अंदर बैठने को कहा...बेचारा क्या करता.. ?
एस.पी. के साथ ही बैठना पड़ा और गाड़ी तेज गति से निकल गई... पीछे से उसके साथी भी सादी लिबास में आ रहे थे...उस लड़के की समझ में कुछ नहीं आ रहा था... वह एक बार पूछा भी कि मुझे क्यों और कहाँ ले जा रहे... तुम लोग कौन हो..?
पर बंदूक की नोक उसे आगे से कोई सवाल ना करने पर मजबूर कर दिया बिना जवाब सुने...अपने जगह पर पहुँच उसे पहले तो उल्टा लटका दिया और 10-12 मोटे डंडे ला उसे दिखा दिखा कर मजबूती चेक करने लगा...
बेचारा, देख के ही उसकी पैंट गीली हो गई और सारा पानी उसके सर से टपकने लगा... वो रोने लग गया और हर बार बस छोड़ने की गुहार लगाने लगा... एस.पी. अपने साथी को इशारा कर खुद कुर्सी पर बैठ गया... उसके साथी उसके पास आ उसे रौबदार आवाज में बोला,"तुम्हारे एक बार ना कहने पर ये एक डंडे टूट जाएंगे...सो तुम अपनी खैर चाहने के लिए खुद फैसला कर सकते हो..."
वो रोता रहा पर बोल कुछ नहीं पाया... तभी वो पुलिसवाला पूछा,"एस.पी. साहब हैं ये... जिनकी बिटिया का किडनैप हो गया है..." उसके इतना कहने से ही वो आदमी सारा माजरा समझ गया और बियर बार में कही बात याद आने लगी... वो अब चाह कर भी मुकर नहीं सकता था...
वो पुलिस वाले की बात बीच में काटते ही सारी कहानी पट पट उगल दी कि कैसे उसके मामा ने उसे फोन पर बताया,फिर वो कालिया और पुष्पा को गाड़ी से छोड़ने गया था नदी किनारे तक... फिर रत्ना बोट से उसे रिसीव कर ले गया.. उसके बाद वो कुछ नहीं जानता..
उसकी बात खत्म होते ही एस.पी. आँख तरेरता उठा और डंडे से मारने दौड़ा कि वो जोर से चिल्लाते हुए मां बाप और ना जाने कितनों की कसम खाने लगा और रोते हुए कह रहा था कि साब मैं सच कह रहा हूँ...एस.पी. को अगर उसके साथी बीच में ना पकड़ते तो वो सच में उसे तोड़ देते...
फिर सभी ने एस.पी. साब को शांत कर बाहर ले आए और उसे यूं ही टंगा छोड़ दिया...बाहर निकल एस.पी. ने तुरंत हेडक्वाटर फोन मिलाया और सारी बात कह स्पेशल फोर्स की मांग कर दी...
ऊपर वाले ऑफिसर भी मामले को गंभीरता से ले हामी भर दी और सुबह तक स्पेशल फोर्स की टीम पहुँचने की बात कही... एस.पी. अब जल्द से जल्द सुबह होने का इंतजार कर रहा था...उसे बेचैनी से नींद कोसो दूर भाग रही थी... उसने वहीं कुर्सी पर बैठ सुबह होने का इंतजार करने लगा...
सुबह की पहली किरण निकलने से पहले ही स्पेशल टीम आ पहुँची थी...एस.पी. और उसके साथी तैयार तो थे ही... उसके आते ही सब बिना समय गंवाए चल पड़े... रास्ते में ही पूरी प्लानिंग हो गई कि कैसे मिशन को कम्प्लीट करना है...
धूप निकलने तक सब नदी किनारे तक आ गए जहाँ बोट उनका इंतजार कर रही थी... बोट में सभी सैनिक सवार हो चल पड़े... सब जल्द से जल्द पहुँचना ताहते थे...सुबह होने और इतनी जल्दी पूरी तैयारी होने से किसी को भनक लगने की भी उम्मीद नहीं थी... कोई रत्ना का खुफिया भी होता तो वो शाम से सुबह के बीच क्या सब हुआ, कुछ नहीं पता होगा...
बोट में ही एस.पी. ने सभी जवानों को अपनी बेटी की तस्वीर दिखा दी... काफी देर नदी में सफर करने के बाद सब मंजिल तक पहुँच गए... बोट से उतर सबने अपने हथियार संभाल आगे बढ़ने लगे... सबके सब चौकन्ने थे... और जंगलों की ओर जाने वाली गाड़ी के पहिए के निशान की ओर बढ़े जा रहे थे...
रास्ते तो थे नहीं...उन तक पहुँचने का उन्हें बस यही निशान मिला था जो कि इन सब के लिए काफी था... कुछ दूर चलने के बाद इन्हें एक तरफ से कुछ आवाज आई... सब जड़वत रूक गए... एक टुकड़ी तुरंत हट आवाज की ओर बढ़ गई... झाड़ी के पीछे दो लोग बैठ अपनी बंदूक का मुआयना कर रहे थे...
शायद सुबह की वजह से वे अभी आए ही थे और अपनी पोजीशन के लिए तैयार हो रहे थे... अचानक उन पर जवानों ने चाकू निकाल तेज वार कर दिया; दोनों ढ़ेर...बाहर निकल इशारे से सबको बात कह दी... सब तुरंत ही कई टुकड़ियों में बंट गए और फूंक फूंक कर आगे बढ़ने लगे...
ऐसे ही झाड़ी के पीछे तो कोई पेड़ पर,तो कोई गड्ढे में वगैरह जगहों पर मिलते रहे और सबको जवानों ने कोई मौका दिए मौत के घाट उतारते गए...अभी तक जवानों ने बंदूक का इस्तेमाल नहीं किए थे...
सारे जवान ऐसे बढ़ रहे थे कि रत्ना के ठिकाने तक पहुँचते पहुँचते सब के सब उस घर के चारों तरफ हो गए... पर किसी को घर दिखाई दे नहीं रहा था... सब अपने अगल बगल देखे तो सब जवान ही नजर आए... मतलब रत्ना के आदमी उसके ठिकाने के चारों ओर से घिरे थे...
तभी जवान के कैप्टन ने अपना दिमाग दौड़ा दिया और पलक झपकते ही वो सब समझ गया... फिर बगल के जवानों को इशारों से कह दिया कि सबको कह दो, झाड़ी के अंदर जाना है... ठिकाना यही है...
सभी जवान अपने बिल्ली के पंजों के माफिक कदम बढ़ाने लगे... जब कुछ ही फीट की दूरी रह गई थी एक जवान और एक डाकू की नजरें आपस में टकरा गई... नतीजन घांय... और फिर चली पड़ी अंधाधुंध फायरिंग...
चारों तरफ से घिर चुकी रत्ना के साथी भागने की तो सोच नहीं सकते थे... लड़ना ही एक विकल्प बच गई थी उनके लिए...इन तड़ातड़ की आवाज से रत्ना की नींद खुली तो उसके माथे पर परेशानी की लकीर साफ नजर आने लगी...
वो तेजी से रूम से बाहर देखने भागा...सामने की तरफ देखा तो उसके कुछ आदमी बाहर की तरफ ओर बढ़ते हुए फायरिंग कर रहे थे तो कुछ डर से फायरिंग करते अंदर की ओर भी आ रहे थे...
कुछ पल में अंदर आने वालों की संख्या बढ़ने लगी... मतलब बाहर वाला भारी पड़ने लगा... तभी रत्ना के एक आदमी रत्ना को कहते हुए भागता है कि भाई, पुलिस हमला कर दिया है...
अब तो रत्ना को सांप सूंघ गया... उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था... उसके दिमाग में सभी की तस्वीरे स्लाइडशो की तरह चलने लगी कि आखिर किसने खबर दी पुलिस को...एक बार तो उसके दिमाग में कालिया व एस.पी. की बेटी भी आ गई... पर वो दिमाग से इस बात को हटा बचने की सोच नीचे की तरफ दौड़ पड़ा...
अभी वो भागकर आधी सीढ़ी ही उतर पाया था कि तभी उसके पांक के ठीक पास धांय की आवाज हुई... वो डरते हुए सामने देखा तो एक जवान उसकी तरफ फायरिंग के लिए निशाने लगा रहा था...
वो अगली फायरिंग के लिए स्ट्रिगर दबाता कि उससे पहले ही जवान जमीन पर लुढ़क गया... रत्ना की नजर होने वाले फायरिंग की तरफ गया तब तक उसका वो आदमी भी नीचे तड़प रहा था...रत्ना अब नीचे उतरने की सोच भी नहीं सकता था क्योंकि सभी जवान अंदर घुसे जा रहे थे...
वो वापस छुपने के लिए भागा और इस दौरान कई फायरिंग उस पर भी हुई पर वो बचता हुआ अपने रूम में घुस लॉक हो गया...कुछ ही पलों में फायरिंग कम हो गई पर बीच बीच में होती तो बस आहें ही निकलती...
रत्ना की आँखों के सामने मौत अपना नाच शुरू कर चुका था... वो किसी पत्ते की तरह टूटता हुआ दीवाल के सहारे नीचे बैठ रोने लग गया... पल भर में सब तबाह हो गई थी... वो इसका जिम्मेदार बस एस.पी. की बेटी को ठहरा ढ़ेर सारी गालियाँ निकालें जा रहा था...
करीब दस मिनट बाद जाकर वहाँ फायरिंग बंद हुई... रत्ना के अब पसीने निकलने शुरू हो गए थे... उसे लगने लगा था कि शायद सब मारे गए...और ये सच भी थी... सब खत्म.. एक दो डर के मारे सरेंडर करने की सोची तो एस.पी. किसी पागल कुत्ते की तरह उसे अपने निकट ला लाकर उसके मुँह में गन घुसेड़ कर खत्म कर रहा था....
सब के सब निर्दय और हैवान बन चुके थे... आखिर करीब दस सालों से परेशान पुलिस अपना गुस्सा निकाल रही थी... पुलिस के साथ साथ ना जाने कितने निर्दोष व्यक्ति को ये सब अपना शिकार बनाए थे... जब सब जवानों को लगा कि सब खत्म हो गए तो सबने अपनी पोजीशन ले ली अंदर ही...
क्योंकि कैप्टन ने एक को रूम में घुसते देखा था और वो अनुमान कर लिया था कि रत्ना यही है... वो एस.पी. और जवान की एक टुकड़ी को ले ऊपर बढ़ गया... और रूम में चेक किया तो कोई नहीं मिला... मतलब सब वफादार थे रत्ना के... अब बस ओक ही रूम बचा था...
जवान गेट के इर्द-गिर्द पोजीशन लिए और तब कैप्टन ने कुछ सोच रत्ना को सरेंडर करने की आवाज दी... अभी तक किसी ने पुष्पा को नहीं देखा था तो पुष्पा कहाँ है ये भी जानना जरूरी था... आवाज सुन रत्ना क्या जवाब दे कुछ सोच नहीं पा रहा था...
एस.पी. आगे बढ़ गेट तोड़कर अंदर जाने की सोचा पर कैप्टन उसे रोक लिए... पुनः कैप्टन ने दिलासा देते हुए बोला कि अगर वो सरेंडर कर दे तो उसे कुछ नहीं होगा... बस पुष्पा कहां है बता दो...फिर कानूनी तरीके से तुम्हें जेल जरूर जानी होगी पर वादा करता हूँ कि सजा कम से कम दिलवाऊंगा...
जान पर जब बात आती है तो आदमी किसी भी बात पर विश्वास जल्द कर लेता है.... रत्ना के साथ भी यही हुआ और वो कांपते हाथ से गेट खोल वहीं जमीन पर बैठ गया... गेट खुलते ही दो जवान फुर्ती से आगे हुए और गेट को चौकन्ने हो खोलने लगे...
सामने कुछ नजर नहीं आया तो बगल की तरफ गन घुमाकर घुसा तो एक तरफ रत्ना पसीने से नहाया रोनी सूरत में पड़ा था... उसने तुरंत उसके सर पर गन तान कर खड़ा हो गया...इतने में एस.पी., कैप्टन सब धड़धड़ाता अंदर आ घुसा...
अंदर घुसते ही कैप्टन उससे पूछा,"पुष्पा कहाँ है..?" रत्ना बिना कुछ बोले ना में सर हिला दिया... ये देख एस.पी. का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया... उसने वहीं रत्ना के सर पर जूते की एक जोरदार किक दे मारी... रत्ना चीखता हुआ लुढ़क गया...
उसके सर पर चोट जोर की लगी थी...उसने सर पर हाथ रख बोला,"सच कह रहा हूँ मुझे नहीं पता कि वो कहाँ है... " उसकी बात सुन तमतमा कर एस.पी. पुनः गरजा,"वो कुत्ते का पिल्ला तो मेरी बेटी को तेरे ही अड्डे पर लाया था ना..." एस.पी. के बोलते ही रत्ना हाँ में सर हिलाते बोला...
"हाँ पर वो कल ही यहाँ से निकल गए...अब कहाँ गए कुछ मालूम नहीं... "रत्ना की बात खत्म होते ही कैप्टन बोला,"देख सीधे बता दे कि वो कहाँ है वरना मुझे मजबूर मत करो... मैं अपनी बात से नहीं मुकरा हूँ तुम खुद आफत मोल ले रहे हो..."
रत्ना अब गिड़गिड़ाने लगा,"सच कह रहा हूँ साब... कहाँ गए मुझे नहीं पता है... पर एक बात है कि आपकी बिटिया खुद गई है... दोनों प्यार करने लगे हैं... " उसकी बात सुनते ही सबके चेहरे पर आश्चर्य से हवाइयाँ उड़ने लगी..
"साब, मेरा पता किसने बताया..."रत्ना उठ के बैठते हुए बोला... रत्ना को थोड़ा महसूस हुआ कि ये बात इन्हें सच लगी... हालांकि पुलिस वाले अपराधी की किसी बात का यकीं जल्द नहीं करते...
एस.पी. उसकी बात का जवाब उसके सामने बैठ दिया," पता देने वाला कौन है ये जान के अब क्या करेगा... वैसे मेरी बेटी अभी तक नहीं मिली तो वो बता नहीं सकती... तो जाहिर है कोई तेरा ही अपना है... पर हाँ, वो तुम्हारा वफादार नहीं है इन सबकी तरह... बेचारा ये सब काला काम नहीं करता है... फिर भी तुम्हें उस पर गुस्सा तो जरूर आ रहा होगा... और बात कुछ ऐसा है कि मैं उसे मरते नहीं देखना चाहूँगा... मुझे विश्वास है कि उसे समझा दूँगा तो वो गलत काम के लिए साथ देना छोड़ देगा..."
एस.पी. अपने गन की स्ट्रिगर पर उंगली दबाते हुए बोला,"अब तेरा काम खत्म है और तुझे अंदर डाल मैं बोझ नहीं बढ़ाना चाहता देश पर... तेरे जैसे को मर जाना ही बेहतर होगा लाखों लोगों के लिए..." उसकी बात का जवाब देने हैरानी से रत्ना मुँह खोला ही था कि उसका मुँह खुला का खुला रह गया...
गन की गोली रत्ना के माथे के बीच में घुस गई...रत्ना लहूलुहान वहीं लुढ़क गया... कैप्टन तुरंत सभी जवानों को इतल्ला कर आगे कानूनी कार्रवाई में एस.पी. के साथ जुट गया...
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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