Monday, December 15, 2014

FUN-MAZA-MASTI माँ-बेटे की चाँदी--3

FUN-MAZA-MASTI

 माँ-बेटे की चाँदी--3

 थोड़ी देर बाद माँ बोली "अब पेल दे अपना घोड़े वाला लंड मेरे लाल, फार के रख दे अपनी माँ की चूत को" मैं भी तैयार था इसलिए चूमना छोड़ कर माँ को डौगी के स्टाइल में पोज बताया और कहा "इसी तरह तुम बनो" तो तो माँ उसी पोज में बनते हूवे बोली "तुम बहोत बिगर गए हो. ये सब तुम कहाँ से सिखा? किसी को चोदा तो नहीं है इससे पहले?" तो मैं बोला "मेरी माँ, मेरी जान, मैं तो ख्वाबो में तुझे रोज चोदता था! आज जाके ये मौका मिला" तो फिर माँ बोली "अच्छा! तो अपनी माँ को इससे पहले क्यूँ नहीं चोदा? पहले चोद दिया होता तो मैं इतना तरपती तो नहीं" तो मैं अपना लंड उनके चूत पे टिकाते हूवे बोला "मेरी जानेमन! अब जो होना था वो हो गया. अब तो बस तो हमेशा तुम्हे चोदुंगा" कहते हूवे मैंने लंड पे जोर डाला और एक ही धक्के में अध से ज्यादा लंड अन्दर घुसा दिया. अचानक घुसा देने की वजह से माँ तिलमिला गयी और बोली "बता दो दिया होता ऐसा लगा फट गयी मेरी चूत" तो मैं लंड को थोरा बाहर खीचते हूवे कहा "अभी तो चोदा था तो कैसे फट जाता माँ" और फिर से एक जोर का झटका दे दिया!

माँ अचानक रोने लगी.. और रोते हूवे बोली "तुम मेरी जान ले लोगे. बता के तो छोड़ो बहोत दर्द होता है. एक तो तुम्हारा लंड मेरे चूत के साइज़ का नहीं है. और फिर तुम अचानक घुसा देते हो मै मार जाऊंगी. कुछ तो रहा म करो अपनी माँ पे." और फिर रोने लगी. तो मैं धीरे-धीरे लंड अन्दर बाहर करते हूवे बोला "रोती क्यूँ हो माँ? मैं तो तुम्हे खुश करने के लिए ये सब करता हूँ! अब देखो मैंने अचानक लंड घुसाया तो इसका दर्द कैसा होता है ये तो तुम्हे पता चल ही गया. अगर नहीं करता तो तुम्हे थोड़े ना पता चलता." और फिर मैं उनकी कमर को पकरकर थोडा स्पीड बढाया! अब माँ के मूंह से हर धक्के के साथ आह्ह.. आह्ह्ह.. सीईईईइ.. सीईईईई... निकलने लगी जिससे घर के अन्दर का माहौल मदहोश सा होने लगा था! शायद अब बाहर का तूफान थम चूका था पर अन्दर का तूफ़ान अभी जारी था! तभी माँ अचानक बदन ऐंठने लगी. और चाँद सेकंड बाद उनके चूत से ढेर सारा पानी निकलने लगा और तभी माँ के मूंह से निकल पड़ा "आज मैं मर गयी" मैं इन बाते पे गौर नहीं किया और लगातार चोदता रहा! अप लंड माँ की चूत की पानी को पीके और फ़ैल चूका था और अन्दर-बाहर भी आसानी से हो रहा था जिससे स्पीड भी बढ़ गयी.

मैं पिछले २५ मिनट से माँ को चोद रहा था माँ ३ बार झड चुकी थी. अब तो उसके पैर भी कांप रहे थे. शायद ताकत ख़त्म हो गयी थी उनकी! मैं भी सोचा जल्दी फिनिश करके माँ को सोने दू और खुद भी सो जाऊं. इसलिए मैंने जोर-जोर से धक्के लगाने लगा माँ के मुंह से सुरुवात में आआअ.. आआ.... की आवाज आया और फिर बंद हो गया मैं समझ गया माँ अब थक के चूर हो चुकी है. इसलिए लगातार धक्के लगता जा रहा था. हैंह... हैंह... हैंह... हैंह... की आवाज मेरे मुंह से निकल रहा था. करीब १२०-१२५ धक्के के बाद मैं भी झरने लगा माँ की चूत में सारा वीर्य भर दिया. माँ कुछ बोल नहीं रही थी. मैं आखिरी कतरा तक डाल दिया फिर. वैसे ही चूत में लंड डाले ही सो गया.


 माँ की चूत को वीर्य से भरने के बाद मैंने कम्बल उठाया और माँ को बाँहों में लेकर ऊपर के कम्बल डालकर सो गया| दोनो को ऐसी नींद आई कि बस पता ही नहीं चला|
सुबह जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि मैं बिना कपड़ो के ही कम्बल में था. और माँ बिस्तर पर नहीं थी| बारिश रुक चुकी थी| मैंने उठकर बनियान और लुंगी पहनी और माँ को आवाज़ दी| माँ बाहर भैंस दुह रही थी| दूध लाकर माँ ने बाल्टी को कमरे में रखा और मुझसे बिना नज़रे मिलाये पूछा, "बेटा चाय पिएगा?"
मैंने शरारत में जाकर माँ को पीछे से पकड़ते हुए कहा, "जो पिला दोगी वोह पी लूँगा माँ|"
माँ ने अचानक से चौंककर मुझे अपने से दूर करते हुए कहा, "सुबह हो गयी है हरिया, कोई देख लेगा|"
मुझे माँ कि बात ठीक लगी और मैं माँ से अलग हो गया, मैंने बाहर कि तरफ जाकर दरवाजे कि कुण्डी लगाईं और जल्दी से आकर माँ को बाँहों में भर लिया और कहा, "अब कोई नहीं देखेगा माँ|" माँ मेरी इस हरकत पे एकदम से घबरा गयी और बोली, "रात को न जाने क्या क्या हो गया हरिया, मुझे डर लग रहा है| कहीं किसी को पता चल गया तो, जीना मुश्किल हो जायेगा." मैंने माँ को अपनी तरफ मोड़ा और पीठ से पकड़ कर अपने सीने से लगा कर कहा, "तुम बेकार ही चिंता कर रही हो माँ, किसी को पता नहीं चलेगा| हमें जो भी करना है हम चोरी छुपे करेंगे. घर के बाहर हम माँ और बेटा बनकर ही रहेंगे और घर के अंदर पति पत्नी बनकर|" माँ ने आश्चर्य भरी नजरो से मेरी तरफ देखा और बोली, "तू क्या कह रहा है बेटा, मैं तो अभी भी तेरी माँ हूँ. तेरे पापा मेरे पति हैं. मैं तो अभी भी उन्ही कि अमानत हूँ. " कहकर माँ ने चेहरा ऐसे झुका लिया जैसे कोई नयी नवेली दुल्हन शरमा जाती है.
मैंने माँ के चेहरे को अपने हाथ से ऊपर उठाया और माँ से पूछा, "लाल सिंह कि पत्नी बनकर तुने क्या पाया है माँ. साल में १५ दिन के लिए तुझे पत्नी बन ने का सुख मिलता है. और बाकी पुरे साल तो तू अकेली ही रहती है. मैं उस बाकी पुरे साल के लिए भी तुझे सुहागन देखना चाहता हूँ माँ. मैं चाहता हूँ कि तू भी साल भर वो सुख भोगे जिस पर किसी पत्नी का अधिकार होता है. "
माँ अभी भी मेरे सीने से लगी हुई थी. उसकी साडी का पल्लू एक तरफ गिरा हुआ था, और स्तन मेरे सीने से टच कर रहे थे. मेरे हाथ माँ कि कमर को पकडे हुए थे, ताकि वो मेरे सीने से अलग न हो जाये. माँ के दोनों हठ मेरे सीने पर थे ताकि उसके स्तन पूरी तरह से मेरे सीने से न लग सके. एकदम ऐसा सीन था जैसे कि कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को बाँहों में जकड़ने कि कोशिश कर रहा हो, और प्रेमिका अधूरे मन से उससे अलग होने कि कोशिश कर रही हो.
सुहाग के सुख कि बात करके शायद मैंने माँ कि दुखती राग पर हाथ रख दिया था. माँ कि आँखों में आंसू आ गए और माँ ने अपने हाथ मेरे कंधो पे रख लिए और थोड़ी देर के लिए चुप हो गयी. मैं माँ के कुछ कहने का इन्तेज़ार कर रहा था और माँ बस भीगी आँखों से दूध कि उस बाल्टी को देख रही थी जो उसने अभी अभी लाकर रखी थी.



 चुप्पी तोड़ते हुए माँ बोली, "बेटा हमने रात में जो भी किया, शायद हमें वो नहीं करना चाहिए था. जो भी हुआ, शायद तेरे पापा के दूर रहने कि वजह से हो गया." मैंने मौका सही जानकार तुरत अगला पैंतरा मारा, "हाँ, माँ फिर इसमें गलत क्या है, तुने मुझसे वो सुख लेने कि कोशिश कि है जो तेरा हक है. २० साल से तुने जुदाई की जो तड़प सही है, मैं तुझे और नहीं सहने दूँगा. मैं तुझे अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ. बोल माँ, लाल सिंह को छोड़कर, हरिया कि पत्नी बनेगी तू? मैं शिव जी कि सौगंध खाकर कहता हूँ कि तेरा पूरा ख़याल रखूँगा और तुझे वो हर सुख दूँगा, जो मेरे बाप ने तुझे नहीं दिया है."
इन बातों ने मुझे उत्तेजित करना शुरू कर दिया था, और मैंने लुंगी के अंदर कुछ पहना भी नहीं था. लंड ने कसमसाना शुरू कर दिया था, और शायद माँ को इस बात का एहसास हो चुका था, क्यूंकि माँ भी अपने कूल्हे हिलाकर लंड कि जगह बना रही थी. मैंने एक हाथ से फिर से माँ के सर को थमा, और माथे पर तीन चार चुम्मी लेकर कहा, "बता न माँ, क्या तू मुझे अपने पति के रूप में देखना स्वीकार करेगी?"
माँ ने आँखों में ढेर सारी ममता भरकर दोनों हाथो से मेरे चहरे को थामा, और बोली, "मेरे हरिया, तू क्या बिना सोचे समझे ये सब बोल रहा है. जानता है मेरी उम्र क्या है, मेरे जवानी तो ढल गयी है और तू तो अभी जवानी में कदम रख ही रहा है. एक दो साल में मुझे छोड़कर तू तो अपना घर बसा लेगा, शादी कर लेगा. और मैं फिर से उसी मोड पर आ जाउंगी."
माँ कि सहमति को मैं पढ़ रहा था. उनके कहने में कोई और डर था. अब. लेकिन मेरे लिए तो उनकें मन कि ये पहली सहमति ही बहुत थी. मैंने तुरंत माँ कि आँखों पर दो चुम्बन लिए और उसके चेहरे को थामकर कहा, "माँ मैंने तो हमेशा से तुझे ही अपनी पत्नी माना है. मेरे दिल और दिमाग में बस तू ही है. मैं तुझी से शादी करना चाहता हूँ. तेरे साथ ही अपना घर बसाना चाहता हूँ." मैंने माँ का हाथ लेजाकर लुंगी के ऊपर से लंड पे रख दिया और बोला, "देख ले माँ मेरे दिल और दिमाग में बस तू ही है." उसके सर पर हाथ रखकर मैंने कहा, "तेरे सर कि कसम खाकर कहता हूँ माँ कि जो कह रहा हूँ सच कह रहा हूँ, मैंने बचपन से लेकर आजतक सिर्फ तुझसे ही प्यार किया है. गांव कि किसी लड़की कि तरफ आँख उठाकर नहीं देखा. बोल माँ, लाल सिंह कि जगह इस हरिया को देगी ना. बचपन से लेकर आजतक बस एक ही मेरी हसरत रही है कि मैं तुझे अपनी पत्नी के रूप में देखूं. बोल माँ, मुझे अपने माथे का सिन्दूर बनाएगी ना."
माँ ने भाव विभोर होकर अपना सर मेरे सीने पे रख लिया और मुझे कसकर अपनी बाँहों से जकड लिया. माँ कि इस मूक सहमति से लंड में जान और भी बढती जा रही थी. मेर एक हाथ माँ के ब्लाउज के पास और दूसरा उसके चुतद पर था. माँ के सर पर मैंने अपनी ठोड़ी रख ली और उसकी पीठ सहलाने लगा.
४-५ मिनट ऐसे ही गुजर गए. मेरा दिल बहुत जोर से धक् धक् कर रहा था. पता नहीं था कि जिस हुस्न कि रानी को मैंने सपनो में अपनी रानी माना है, वोह आज मेरी बनेगी या नहीं.
ठोड़ी देर ऐसे ही रहने के बाद माँ ने अपनी चुप्पी तोड़ी. मेरे सीने पर से बिना अपना सर हटाये, माँ ने कहा, "कल रात जो सुख तुने मुझे दिया है, उसके बाद मैं तेरे बिना नहीं रह सकती हरिया.लाल सिंह कि जगह अब तुझे ही लेनी है मेरे लाल. मेरे हरिया." माँ ने अपना सर उठाया, और मेरी आँखों में आंखें डालकर और मेरे चहरे को अपने होंठो के पास खिंचा और बोली, "बाप के बाद अब बेटा ही सम्हालेगा मुझे. आज से मेरी जवानी का बोझ तू ही उठाएगा. आज से मेरी मांग में सिन्दूर तू ही भरेगा मेरे हरिया."
मैं खुशी से पागल हो गया था. मैंने माँ को तुरत गोद में उठा लिया और बिस्तर पर लेजाकर डाल दिया और तुरंत उसके ऊपर जाकर लेट गया. लंड में तुरंत एक उछाल आया और लुंगी से बाहर निकल गया. मैं माँ के ऊपर था और मैंने उसके होंठों को चूसना शुरू कर दिया. माँ ने ठोड़ी देर तो मेरी बेसब्री में मेरा साथ दिया मगर फिर हंसकर, मेरा चेहरा अपने से अलग किया, और स्नेह और वासना में सनी हुई एक मुस्कान के साथ मुझे प्यार से देखते हुए कहा, "मेरे लाल, आज से मैं तेरी पत्नी होने की हर ज़िम्मेदारी पूरी करुँगी, और तू भी मुझे वचन दे कि मेरा पूरा ख्याल रखेगा." एक हाथ में माँ ने लंड को थाम लिया, और कुटिल मुस्कान चेहरे पर लाकर बोली, "वादा कर कि तन और मन दोनों से मेरी हर ज़रूरत को पूरा करेगा." मैं माँ के ऊपर से उतर कर साइड में हो गया, ताकि माँ लंड को ठीक से पकड़ सके, और मैंने ब्लाउज के हुकों को खोलते हुए कहा, "कसम खाता हूँ माँ कि हर तरह से तेरी हर ज़रूरत को पूरा करूँगा." कहकर मैंने माँ के होंठो को अपने होठो में थाम लिया और एक नयी जिंदगी कि शुरुआत माँ की ममता के आंचल से शुरू की.


 मैं कमर के बल बिस्तर पर लेता हुआ था, और छत कि तरफ देख रहा था| माँ मेरे बाएं हाथ कि तरफ लेती थी. उसके बाल खुले हुए थे. मैंने अपना बनियान निकाल दिया था और माँ ने ब्लौसे के अंदर कुछ भी नहीं पहना था. माँ ने अपना सर मेरे कंधे पर रखा हुआ था और मेरी छाती के बालो में उँगलियाँ चला रही थी. उसके स्तन मेरे सीने से लग रहे थे और एक हाथ से माँ मेरे लिंग को सहला रही थी. मैंने माँ के साथ ही जिंदगी गुजारने कि कसम खा ली थी. और मेरा मन आगे कि जिंदगी को रोमांचक बनाने के खयालो से भर रहा था. मैंने माँ कि तरफ प्यार भरी नजरो से देखा, तो मुझे ख़याल आया कि माँ कभी सिन्दूर नहीं लगाती थी. सिन्दूर भरी मांग के साथ माँ की कल्पना करते ही मेरे लिंग में एक उछाल आ गया. माँ ने अपनी साडी को ऊपर सरका कर अपनी एक टांग को मेरी जांघों पर रखा हुआ था, और उसकी आँखों में सुरक्षित महसूस होने वाला अनुभव था. मेरा एक हाथ माँ को सर को सम्हाल रहा था और दूसरा उनकी कमर को सहलाने में लगा था.





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