FUN-MAZA-MASTI
बीवी का मायका-8
मैं पड़ा पड़ा सोच ही रहा था कि अब उठा जाये, पैकिंग वगैरह की जाये. तभी सासूमां कमरे में आयीं. उन्होंने शायद नहा लिया था और कपड़े बदल लिये थे. फूलों के प्रिंट वाली एक सफ़ेद साड़ी और सादा सफ़ेद ब्लाउज़ पहना हुआ था. आकर उन्होंने इधर उधर कुछ सामान ठीक ठाक किया पर मुझे लगता है कि वे आयी थीं सिर्फ़ ये देखने को कि मैं सोया हुआ हूं या जाग गया हूं.
मुझे जगा देखकर उन्होंने पहले तो आंखें चुराईं, फ़िर न जाने क्या सोच कर मेरे पास मेरे सिरहाने आकर बैठ गयीं. मेरे बालों में उंगलियां चलाते हुए बड़े प्यार से बोलीं "अनिल बेटा, आराम हुआ कि नहीं? मुझे लगता है कि हम सब ने मिल कर तुमको जरा ज्यादा ही तकलीफ़ दी है"
मैं बोला "ममीजी, अगर आप वचन दें कि ऐसी तकलीफ़ देती रहेंगी तो मैं अपना सब काम धाम छोड़ कर यहीं आकर पड़ा रहूंगा आप के कदमों में"
वे बस मुस्करायीं. उनकी मुस्कान में एक शांति का भाव था जैसे मन की सब इच्छायें तृप्त हो गयी हों. मैं सरक कर उनके करीब आया और उनकी गोद में सिर दे कर लेट गया. मैंने पूछा "और मांजी, ज्यादा तकलीफ़ तो नहीं हुई ना? याने मैंने जो दोपहर को किया? मुझे अच्छा लगता है, कभी कभी रसीले फलों को ऐसे ही चूस चूस कर खाने का जी होता है. लीना के साथ मैं कई बार करता हूं, हफ़्ते में एकाध बार तो करता ही हूं. आज तो मीनल थी मेरी मदद को, वहां अकेले में तो लीना के हाथ पैर बांध कर करता हूं, बहुत तड़पती है बेचारी पर मजा भी बहुत आता है उसको"
"मैंने पहले ही कहा है कि बड़ी भाग्यवान है मेरी बेटी. इतना तेज न सहनेवाला सुख पहले नहीं चखा मैंने कभी अनिल ... सच में पागल हो जाऊंगी लगता था. बाद में जब नींद से उठी तो बहुत आनंद सा भरा था नस नस में ... अब जल्दी जल्दी आया करो बेटे, ऐसे साल में एकाध बार आना हमें गवारा नहीं होगा" ताईजी बोलीं.
"अब आप ही आइये ताईजी हमारे यहां, सब को लेकर आइये"
"अब कैसा क्या जमता है दामादजी, वो देखती हूं. वैसे आई तो शायद अकेली ही आ जाऊंगी, वैसे भी हेमन्त और मीनल को कहां छुट्टी मिलती है. लीना को कहीं जाना हो तो आ जाऊंगी, कहूंगी कि हो आ, तेरे पति की देख रेख के लिये मैं हूं ना!" मैं उनकी ओर देख रहा था इसलिये यह कहते ही वे शर्मा सी गयीं. उनकी मेरे साथ अकेले रहने की इच्छा थी याने! मैंने भी सोचा कि यार अनिल, तेरी सास तो तेरे पर बड़ी खुश है.
"ताईजी, ये बहुत अच्छा सोचा आप ने, लीना का कुछ प्लान है अगले महने में एक हफ़्ते का, तब आप आ जाइये. बस मैं और आप रहेंगे. ना जमे तो लीना रहेगी तब भी आइये ना. आप को अष्टविनायक की यात्रा करवा दूंगा, लीना तो आयेगी नहीं, हम दोनों ही चलेंगे, आराम से चलेंगे, दो तीन दिन होटल में रहना पड़ेगा" मैंने उनकी आंखों में आंखें डाल कर कहा.
ताईजी फिर से नयी नवेली दुल्हन जैसी शरमा गयीं. मैं उनके खूबसूरत चेहरे को देख रहा था जिसको गालों की लाली ने और सुंदर बना दिया था. अचानक मेरे दिल में आया कि शायद मुझे उनसे इश्क हो गया है, याने चुदाई वाला इश्क तो पहले से ही था, परसों से था जब लीना के मायकेवालों का असली रूप मैंने देखा था. पर अब सच में वे मुझे बड़ी प्यारी सी लगने लगी थीं. लीना को भी शायद मेरे दिल का उस समय का हाल पता चलता तो एक पल को वो डिस्टर्ब हो जाती कि कहीं उसकी मां ही उसकी सौत तो नहीं बन रही है. अब जब मैंने हंसी हंसी में उनको अष्टविनायक के टूर पर ले जाने की बात की तो मैं कल्पना करने लगा कि वे और मैं रात का खाना खाने के बाद अपने कमरे में जाते हैं और फ़िर ...? मुरादों की रातें ...? बेझिझक अकेले में उनसे जो मन आये वो करने का लाइसेंस?
इस वक्त मेरे मन में दो तरह की वासनायें उमड़ रही थीं. एक खालिस औरत मर्द सेक्स वाली ... बस पटककर चोद डालूं, मसल मसल कर उनके मुलायम गोरे बदन को चबा डालूं, जहां मन चाहे वहां मुंह लगा कर उनका रस पी जाऊं ये वासना .... दुसरी ये चाहत कि उनको बाहों में भर लूं, उनके सुंदर मुखड़े को चूम लूं, उनके गुलाबी पंखुड़ी जैसे होंठों के अमरित को चखूं ...
इनमें से कौनसी वासना जीतती ये कहना मुश्किल है. पर मेरा काम आसन करने को लीना अचानक अंदर आ गयी. मैं चौंका नहीं, वैसा ही मांजी की गोद में सिर रखे पड़ा रहा. लीना भी तैयार होकर आयी थी, एक अच्छा ड्रेस पहना था. लगता था बाहर जाने की तैयारी करके आई थी. हमें उस ममतामयी पोज़ में देख कर बोली "वाह ... जमाई के लाड़ प्यार चल रहे हैं लगता है मां"
"क्यों ना करूं?" मांजी सिर ऊंचा करके बोलीं "है ही मेरा जमाई लाखों में एक. अब ये बता तू कहां चली? आज घर में ही रहेंगे, कहीं जाकर टाइम वेस्ट होगा ऐसा कह रही थी ना तू? आखिर आज रात की ट्रेन है तुम लोगों की"
"ठहरा था पर काम है जरा .... मैं और भाभी मार्केट हो कर आते हैं"
ताईजी ने लीना की ओर देखा जैसे पूछ रही हों कि ऐसा क्या लेना है मार्केट से? लीना झुंझलाकर बोली "अब मां ... भूल गयी सुबह मैं और मीनल क्या बातें कर रहे थे?"
"हां ... वो ... सच में तुम दोनों निकली हो उसके लिये? मुझे लगा था मजाक चल रहा है. ठीक है, करो जो तुम्हारे मन आये" ताईजी पलकें झपका कर बोलीं
"तू बैठ ऐसे ही और अपने जमाईसे गप्पें कर. पर अब अच्छी बच्ची जैसे रहना, कुछ और नहीं करना शैतान बच्चों जैसे" लीना आंख मार कर बोली "और ललित अपने कमरे में है, उसको डिस्टर्ब मत करना, सो रहा है" लीना जाते जाते ताईजी के गाल पर प्यार से चूंटी काट कर गयी.
मुझे लगा कि दाल में कुछ काला है. "लगता है कुछ गड़बड़ चल रहा है, लीना का दिमाग हमेशा आगे रहता है उल्टी सीधी बातों में" मैंने कमेंट किया. सोचा शायद मांजी कुछ बतायें. पर वे बस बोलीं "अब करने दो ना उनको जो करना है, मन बहलता है उनका. मैं तो पड़ती ही नहीं उन लड़कियों के बीच में"
मांजी की गोद में सिर रखे रखे अब मुझपर फिर से मस्ती छाने लगी थी. उनके बदन की हल्की सी मादक खुशबू मुझे बेचैन करने लगी थी. मैंने अपना चेहरा उनकी जांघों के बीच और दबा दिया और उस नारी सुगंध का जायजा लेने लगा. वे कुछ नहीं बोलीं, बस मेरे बालों में उंगलियां चलाती रहीं. अनजाने में मेरा एक हाथ में उनकी साड़ी पकड़कर उसको ऊपर करने की कोशिश करने लगा तो मांजी ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैं समझ गया कि शायद अभी मूड ना हो या वे कुछ देर का आराम चाहती हों.
पर मुझे इस समय उनके प्रति जो आकर्षण लग रहा था वह बहुत तीव्र था. मैं उठ कर बैठ गया और उनको आगोश में ले लिया. "ममी ... आप मुझे पागल करके ही छोड़ेंगी लगता है, इतनी सुंदर हैं आप" कहकर फ़िर चुंबन लेते हुए साड़ी के पल्लू के ऊपर से ही मैंने उनका एक मुलायम स्तन पकड़ लिया. इस बार उन्होंने विरोध नहीं किया.
अगले आधा घंटे बस हमारे प्यार भरे चुंबन चलते रहे. बीच बीच में एकाध बातें भी करते थे पर अधिकतर बस खामोशी से तो प्रेमियों जैसी हमारी चूमा चाटी जारी थी. उस उत्तेजना में मैंने किसी तरह उनके ब्लाउज़ के बटन खोल लिये थे और अब उनके सफ़ेद ब्रा में बंधे मांसल स्तन मेरी आंखों के सामने थे. कहने में अजीब लगता है कि ब्रा में लिपटे वे उरोज मुझे इतना आकर्षित कर रहे थे क्योंकि पिछले दो दिनों में मैंने उनको पूरा नग्न भी देखा था और तरह तरह से उनके नग्न बदन का भोग भी लगाया था, याने उनके बदन का कोई भी अंग मेरे लिये नया नहीं था फ़िर भी ब्रा के कपों में कसे हुए उन आधे खुले स्तनों की सुंदरता का जो खुमार था वो उनके नग्न उरोजों में भी नहीं आया था. मैंने बार बार उनको ब्रा के ऊपर से चूमा, ब्रा के नुकीले छोर में फंसे उनके निपलों को कपड़े के ऊपर से ही चूसा, हल्के से चबाया भी.
ताईजी भी शायद मेरे दिल का हाल समझ गयी थीं क्योंकि बिना कुछ कहे वे भी अब भरसक मेरे चुंबनों का जवाब दे रही थीं. जब मैं बार बार उनकी ब्रा को चूमता या ब्रा के कपड़े पर से ही उनके निपल चूसता तो वे मेरा चेहरा अपने सीने पर छुपा लेतीं.
"बहुत अच्छे लगे ना मेरे स्तन बेटा तुम्हे?" बीच में वे भाव विभोर होकर बोलीं. मैंने बस सिर हिलाया. उन्होंने मुझे सीने से चिपटा लिया. बुदबुदाईं "बीस साल पहले देखते तो .... "
मैं उनके स्तनों में चेहरा दबा कर बोला "मुझे तो अभी मस्त लग रहे हैं मांजी ... इनके साथ क्या क्या करने का मन होता है मेरा ..."
मेरा लंड अब कस के खड़ा हो गया था. लगातार संभोग के बाद अब गोटियां थोड़ी दुख रही थीं पर फ़िर भी लंड एकदम मस्ती में आ गया था. मेरी सासूमां का जलवा ही कुछ ऐसा था. लगता है और कुछ देर हो जाती तो हमारी चुदाई फ़िर शुरू हो जाती. वैसे लीना कुछ कहती नहीं पर जिस तरह से वह हमें जतला कर गयी थी कि अब कुछ मत करना, उससे लगता था कि थोड़ा चिढ़ जरूर जाती.
फ़िर लीना की आवाज सुनाई दी. वह मीनल से कुछ बोल रही थी. शायद जान बूझकर जोर से बोल रही थी कि हम आगाह हो जायें. मैं मांजी से अलग होकर बैठ गया. ताईजी ने फटाफट अपने कपड़े ठीक किये और उठ कर एक अलमारी खोल कर उसमें कुछ जमाने लगीं.
लीना अंदर आयी. हम दोनों को ऐसा अलग अलग देख कर उसे शायद आश्चर्य हुआ पर वो खुश भी हुई. "अरे वा, दोनों कैसे आराम से बात चीत कर रहे हैं. मुझे तो लगा था कि जिस तरह से सास दामाद की आपस में मुहब्बत हो गयी है, वे न जाने किस हाल में मिलेंगे"
"चल बदमाश, तेरे को तो बस यही सूझता है" मांजी बोलीं. वैसे लीना की बात सच थी.
लीना मेरी ओर मुड़कर बोली "चलो अनिल, पैकिंग कर लें."
"तुमको जो खरीदना था वो सब मिल गया लीना बेटी?" मांजी ने पूछा.
"हां मां, बस एक दो ही चीजें चाहिये थीं, बाकी तो सब है घर में. अब जल्दी चलो अनिल"
मैं लीना के पीछे हो लिया. जाते जाते जब मुड़ कर देखा तो सासूमां मेरी ओर देख रही थीं. उनकी नजरों में इतने मीठे वायदे थे कि वो नजर एकदम दिल को छू गयी.
हमारे रूम में आकर मैंने अपना सूटकेस ऊपर पलंग पर रखा. लीना कपड़े रखने लगी. दो मिनिट बाद मुझे अचानक समझ में आया कि वो बस मेरे ही कपड़े रख रही है, खुद के नहीं. हम दोनों मिलकर बस एक बड़ी सूटकेस लाये थे.
"अपने कपड़े रखो ना डार्लिंग, या दूसरी बैग लेने वाली हो?" मैंने कहा.
लीना मेरे पास आयी और मेरे गले में बाहें डाल कर शोखी से बोली "डार्लिंग ... तुम नाराज तो नहीं होगे? ... वो क्या है कि मैं नहीं आ रही तुम्हारे साथ ... मीनल और मां दोनों चाहती हैं कि हम रुक जायें ... अब तुम्हारा तो ऑफ़िस है पर मैं सोच रही हूं कि मैं एकाध दो हफ़्ते को रुक जाती हूं"
मेरा चेहरा देख कर मुझे चूम कर बोली "सॉरी मेरे राजा ... मैं जानती हूं कि तुम्हारा एक मिनिट नहीं चलेगा मेरे बिना पर प्लीज़ ... ट्राइ करूंगी कि एक हफ़्ते में लौट आऊं. अब मां का भी तो खयाल करना है, उसके साथ मुझे टाइम ही नहीं मिला"
मैंने बेमन से कहा "ठीक है लीना रानी, अब तुम कह रही हो तो मैं कैसे मना कर सकता हूं? तुम्हारी कोई बात मैंने टाली है कभी"
लीना मुझे लिपटकर बोली "वैसे तुमको बिलकुल सूखे सूखे अकेले नहीं जाने दूंगी बंबई. लता को भेज रही हूं तुम्हारे साथ"
"लता कौन?" मैंने अचरज से पूछा?
"अरे भूल गये? कल नहीं देखा था मेरी मौसेरी बहन, बहुत कुछ मेरे जैसी दिखती है. लगता है भूल गये. खैर जाने दो, अब मिल लेना, आती ही होगी. पैकिंग हो गया तो अब चलो बाहर" हाथ पकड़कर मुझे लीना बाहर ले गयी. जाते जाते बोली "अब उसके साथ कुछ ऊल जलूल नहीं करना, सीधी है बेचारी."
"नहीं करूंगा, उतनी समझ है मेरे को. पर ऐसे क्यों भेज रही हो लता को इस वक्त मेरे साथ, वो क्या करेगी वहां, मैं तो ऑफ़िस में रहूंगा, वो बोर हो जायेगी"
"बोर क्यों? घुमाना बंबई रोज. ऑफ़िस से जल्दी आ जाया करना" वो ऐसे कह रही थी जैसे ये सब बड़ा आसान हो. मैं जरा धर्मसंकट में था. बीच में ये भी लगता कि ये फ़िर से लीना का कोई खेल तो नहीं है.
हम बाहर आये. ड्राइंग रूम में कोई नहीं था. लीना ने आवाज लगाई "भाभी कहां हो?"
मीनल के कमरे से आवाज आयी "यहां हूं ननद रानी, लता आई है, उससे जरा गप्पें लड़ा रही थी"
"अरे बाहर आओ ना. अनिल भी है यहां"
"दो मिनिट लीना. ये लता शरमा रही है अनिल के सामने आने को." मीनल की आवाज आयी.
लीना बोली "अब आ भी जाओ, अनिल कोई दूसरे थोड़े हैं. शरमाने की जरूरत नहीं है" फ़िर मुझसे बोली "फ़िर से मेकप कर रही होगी, सुंदर है ना, जरा सेन्सिटिव है, मेकप ठीक ठाक करके ही आयेगी देखना"
"अच्छा रानी पर ये तो बताओ, कि बंबई आने का ये प्लान अचानक कैसे बना? याने लता ने कहा कि मैं जाना चाहती हूं कि तुम दोनों ननद भौजी ने मिलके उसको उकसाया है?" मैंने धीमे स्वर में पूछा. लीना पर मेरा बिलकुल विश्वास नहीं है, ऐसे नटखट खेल वो अक्सर खेलती है और फ़िर मेरी परेशानी देखकर खुश होती है.
"अब क्या फरक पड़ता है? तुम बस ये देखो कि एक सुंदर कमसिन अठारह बरस की कन्या तुम्हारे साथ, अपने जीजाजी के साथ बंबई जा रही है, हफ़्ते भर अकेली रहेगी उनके साथ, अब और कोई होता तो अपनी किस्मत पर फूला नहीं समाता और तुम हो कि शंका कुशंका कर रहे हो"
मैं चुप हो गया. मन ही मन कहा कि रानी, तेरी नस नस पहचानता हूं इसलिये शंका कर रहा हूं. वैसे एक बात जरूर है, लीना ने जब जब मुझे ऐसा फंसाया है, उसका नतीजा मेरे लिये बड़ा मीठा ही निकला है हमेशा.
पांच मिनिट हो गये तो मैंने भी आवाज दी. आखिर अपना जीजापन दिखाकर उस कन्या की झेंप मिटाना भी जरूरी था. "अब आ भी जाओ भई लता, कहो तो मैं आंखें बंद कर लेता हूं"
मीनल की आवाज आयी "अनिल, मैं ले आती हूं उसको, बहुत शरमा रही है"
मीनल मुस्कराते हुए बाहर आयी. उसने एक लड़की का हाथ पकड़ रखा था और उसे खींचती हुई अपने पीछे ला रही थी. मुझे तो ऐसा कुछ दिखा नहीं कि वह ज्यादा शरमा रही हो, हां मंद मंद हंस रही थी.
लड़की सच में सुंदर थी. छरहरा नाजुक बदन था, डार्क ब्राउन कलर की साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउज़ पहने थी. हाथों में एक एक फ़ैशन वाला कॉपर का कंगन था और एक स्लिम गोल्ड वाच थी. गोरे पैरों में ऊंची ऐड़ी के सैंडल थे. छरहरा बदन था, एकदम स्लिम, ऊंचाई लीना से तीन चार इंच कम थी. चेहरा काफ़ी कुछ लीना जैसा था, काफ़ी कुछ क्या, बहुत कुछ. बस बदन लीना के मुकाबले एकदम स्लिम था, लीना अच्छी खासी मांसल है, मोटी नहीं पर जहां मांस होना चाहिये वहां उसका एवरेज से ज्यादा ही मांस है. वजन थोड़ा ज्यादा होता और ऊंची होती तो एकदम लीना की जुड़वां लगती. हल्का मेकप किया था और होंठों पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक थी. आंचल में से छोटे छोटे पर तन कर खड़े उरोजों का उभार दिख रहा था.
"याद आया? कल ही तो मिलवाया था बड़े घर में" लीना ने कमर पर हाथ रखकर मुझसे पूछा. मैं अचरज में पड़ गया. ऐसी सुंदर कमसिन कन्या, लीना से मिलते जुलते चेहरे की और मुझे याद ना रहे! अब क्या बोलूं ये भी नहीं समझ पा रहा था.
मेरी परेशानी देखकर मीनल आंचल मुंह में दबा कर हंसने लगी. मैंने सोचा कि कुछ तो बोलना पड़ेगा. बोला "हेलो लता. सॉरी कल जल्दी जल्दी में इतने लोगों से मिला कि ... पर चलो, अब बंबई आ रही हो तो जान पहचान हो ही जायेगी. वैसे सच में तुम चल रही हो या ये इन दोनों ने मिलकर कुछ शरारत की है" लीना और मीनल की ओर इशारा करके मैं बोला.
"पहले ये बताइये दामादजी कि हमारी लता कैसी है? बंबई की लड़कियों के मुकाबले जच रही है या नहीं?" मीनल बोली. लीना ने भी उसकी हां में हां जोड़ी. लता खड़ी खड़ी बस जरा सा शरमाते हुए सब को देख देख कर मुस्करा रही थी.
मैंने कहा "ऐसे किसी का कंपेरिज़न करने की बहुत बुरी आदत है तुमको लीना. वैसे मैं सच कहूं तो इस प्रश्न में कोई दम नहीं है. लता इज़ वेरी प्रेटी, बहुत फोटोजेनिक है"
मीनल और लीना ने पट से एक दूसरे से हाथ पर हाथ मारा जैसा आज कल का फ़ैशन है ये बताने को कि कैसे बाजी मार ली.
"सिर्फ़ सुंदर कहकर नहीं बचोगे दामादजी. अंग अंग का निरीक्षण करके डिस्क्राइब करो लता की सुंदरता. लता, जरा घूम ना, एक चक्कर तो लगा, अनिल को भी देखने दे तेरा जलवा"
अब अपने ही बड़े घर की, जहां एक अलग डिसिप्लिन चलता है, एक लड़की को ये लोग इस तरह से बोल रही थीं यह देखकर मेरा माथा ठनका कि कुछ गड़बड़ न हो जाये. लता क्या सोच रही होगी. मैंने उसकी ओर देखा तो वो भी मेरी ओर देख रही थी. कुछ शरमा कर बोली "अब ये बहुत हो गया भाभी, इस सब की क्या जरूरत है?"
बोल लता रही थी पर आवाज ललित की थी. एल पल को मैं हक्का बक्का रह गया पर फ़िर एकदम से दिमाग में रोशनी हुई. ये ललित ही था लड़की के रूप में.
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मुझे जगा देखकर उन्होंने पहले तो आंखें चुराईं, फ़िर न जाने क्या सोच कर मेरे पास मेरे सिरहाने आकर बैठ गयीं. मेरे बालों में उंगलियां चलाते हुए बड़े प्यार से बोलीं "अनिल बेटा, आराम हुआ कि नहीं? मुझे लगता है कि हम सब ने मिल कर तुमको जरा ज्यादा ही तकलीफ़ दी है"
मैं बोला "ममीजी, अगर आप वचन दें कि ऐसी तकलीफ़ देती रहेंगी तो मैं अपना सब काम धाम छोड़ कर यहीं आकर पड़ा रहूंगा आप के कदमों में"
वे बस मुस्करायीं. उनकी मुस्कान में एक शांति का भाव था जैसे मन की सब इच्छायें तृप्त हो गयी हों. मैं सरक कर उनके करीब आया और उनकी गोद में सिर दे कर लेट गया. मैंने पूछा "और मांजी, ज्यादा तकलीफ़ तो नहीं हुई ना? याने मैंने जो दोपहर को किया? मुझे अच्छा लगता है, कभी कभी रसीले फलों को ऐसे ही चूस चूस कर खाने का जी होता है. लीना के साथ मैं कई बार करता हूं, हफ़्ते में एकाध बार तो करता ही हूं. आज तो मीनल थी मेरी मदद को, वहां अकेले में तो लीना के हाथ पैर बांध कर करता हूं, बहुत तड़पती है बेचारी पर मजा भी बहुत आता है उसको"
"मैंने पहले ही कहा है कि बड़ी भाग्यवान है मेरी बेटी. इतना तेज न सहनेवाला सुख पहले नहीं चखा मैंने कभी अनिल ... सच में पागल हो जाऊंगी लगता था. बाद में जब नींद से उठी तो बहुत आनंद सा भरा था नस नस में ... अब जल्दी जल्दी आया करो बेटे, ऐसे साल में एकाध बार आना हमें गवारा नहीं होगा" ताईजी बोलीं.
"अब आप ही आइये ताईजी हमारे यहां, सब को लेकर आइये"
"अब कैसा क्या जमता है दामादजी, वो देखती हूं. वैसे आई तो शायद अकेली ही आ जाऊंगी, वैसे भी हेमन्त और मीनल को कहां छुट्टी मिलती है. लीना को कहीं जाना हो तो आ जाऊंगी, कहूंगी कि हो आ, तेरे पति की देख रेख के लिये मैं हूं ना!" मैं उनकी ओर देख रहा था इसलिये यह कहते ही वे शर्मा सी गयीं. उनकी मेरे साथ अकेले रहने की इच्छा थी याने! मैंने भी सोचा कि यार अनिल, तेरी सास तो तेरे पर बड़ी खुश है.
"ताईजी, ये बहुत अच्छा सोचा आप ने, लीना का कुछ प्लान है अगले महने में एक हफ़्ते का, तब आप आ जाइये. बस मैं और आप रहेंगे. ना जमे तो लीना रहेगी तब भी आइये ना. आप को अष्टविनायक की यात्रा करवा दूंगा, लीना तो आयेगी नहीं, हम दोनों ही चलेंगे, आराम से चलेंगे, दो तीन दिन होटल में रहना पड़ेगा" मैंने उनकी आंखों में आंखें डाल कर कहा.
ताईजी फिर से नयी नवेली दुल्हन जैसी शरमा गयीं. मैं उनके खूबसूरत चेहरे को देख रहा था जिसको गालों की लाली ने और सुंदर बना दिया था. अचानक मेरे दिल में आया कि शायद मुझे उनसे इश्क हो गया है, याने चुदाई वाला इश्क तो पहले से ही था, परसों से था जब लीना के मायकेवालों का असली रूप मैंने देखा था. पर अब सच में वे मुझे बड़ी प्यारी सी लगने लगी थीं. लीना को भी शायद मेरे दिल का उस समय का हाल पता चलता तो एक पल को वो डिस्टर्ब हो जाती कि कहीं उसकी मां ही उसकी सौत तो नहीं बन रही है. अब जब मैंने हंसी हंसी में उनको अष्टविनायक के टूर पर ले जाने की बात की तो मैं कल्पना करने लगा कि वे और मैं रात का खाना खाने के बाद अपने कमरे में जाते हैं और फ़िर ...? मुरादों की रातें ...? बेझिझक अकेले में उनसे जो मन आये वो करने का लाइसेंस?
इस वक्त मेरे मन में दो तरह की वासनायें उमड़ रही थीं. एक खालिस औरत मर्द सेक्स वाली ... बस पटककर चोद डालूं, मसल मसल कर उनके मुलायम गोरे बदन को चबा डालूं, जहां मन चाहे वहां मुंह लगा कर उनका रस पी जाऊं ये वासना .... दुसरी ये चाहत कि उनको बाहों में भर लूं, उनके सुंदर मुखड़े को चूम लूं, उनके गुलाबी पंखुड़ी जैसे होंठों के अमरित को चखूं ...
इनमें से कौनसी वासना जीतती ये कहना मुश्किल है. पर मेरा काम आसन करने को लीना अचानक अंदर आ गयी. मैं चौंका नहीं, वैसा ही मांजी की गोद में सिर रखे पड़ा रहा. लीना भी तैयार होकर आयी थी, एक अच्छा ड्रेस पहना था. लगता था बाहर जाने की तैयारी करके आई थी. हमें उस ममतामयी पोज़ में देख कर बोली "वाह ... जमाई के लाड़ प्यार चल रहे हैं लगता है मां"
"क्यों ना करूं?" मांजी सिर ऊंचा करके बोलीं "है ही मेरा जमाई लाखों में एक. अब ये बता तू कहां चली? आज घर में ही रहेंगे, कहीं जाकर टाइम वेस्ट होगा ऐसा कह रही थी ना तू? आखिर आज रात की ट्रेन है तुम लोगों की"
"ठहरा था पर काम है जरा .... मैं और भाभी मार्केट हो कर आते हैं"
ताईजी ने लीना की ओर देखा जैसे पूछ रही हों कि ऐसा क्या लेना है मार्केट से? लीना झुंझलाकर बोली "अब मां ... भूल गयी सुबह मैं और मीनल क्या बातें कर रहे थे?"
"हां ... वो ... सच में तुम दोनों निकली हो उसके लिये? मुझे लगा था मजाक चल रहा है. ठीक है, करो जो तुम्हारे मन आये" ताईजी पलकें झपका कर बोलीं
"तू बैठ ऐसे ही और अपने जमाईसे गप्पें कर. पर अब अच्छी बच्ची जैसे रहना, कुछ और नहीं करना शैतान बच्चों जैसे" लीना आंख मार कर बोली "और ललित अपने कमरे में है, उसको डिस्टर्ब मत करना, सो रहा है" लीना जाते जाते ताईजी के गाल पर प्यार से चूंटी काट कर गयी.
मुझे लगा कि दाल में कुछ काला है. "लगता है कुछ गड़बड़ चल रहा है, लीना का दिमाग हमेशा आगे रहता है उल्टी सीधी बातों में" मैंने कमेंट किया. सोचा शायद मांजी कुछ बतायें. पर वे बस बोलीं "अब करने दो ना उनको जो करना है, मन बहलता है उनका. मैं तो पड़ती ही नहीं उन लड़कियों के बीच में"
मांजी की गोद में सिर रखे रखे अब मुझपर फिर से मस्ती छाने लगी थी. उनके बदन की हल्की सी मादक खुशबू मुझे बेचैन करने लगी थी. मैंने अपना चेहरा उनकी जांघों के बीच और दबा दिया और उस नारी सुगंध का जायजा लेने लगा. वे कुछ नहीं बोलीं, बस मेरे बालों में उंगलियां चलाती रहीं. अनजाने में मेरा एक हाथ में उनकी साड़ी पकड़कर उसको ऊपर करने की कोशिश करने लगा तो मांजी ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैं समझ गया कि शायद अभी मूड ना हो या वे कुछ देर का आराम चाहती हों.
पर मुझे इस समय उनके प्रति जो आकर्षण लग रहा था वह बहुत तीव्र था. मैं उठ कर बैठ गया और उनको आगोश में ले लिया. "ममी ... आप मुझे पागल करके ही छोड़ेंगी लगता है, इतनी सुंदर हैं आप" कहकर फ़िर चुंबन लेते हुए साड़ी के पल्लू के ऊपर से ही मैंने उनका एक मुलायम स्तन पकड़ लिया. इस बार उन्होंने विरोध नहीं किया.
अगले आधा घंटे बस हमारे प्यार भरे चुंबन चलते रहे. बीच बीच में एकाध बातें भी करते थे पर अधिकतर बस खामोशी से तो प्रेमियों जैसी हमारी चूमा चाटी जारी थी. उस उत्तेजना में मैंने किसी तरह उनके ब्लाउज़ के बटन खोल लिये थे और अब उनके सफ़ेद ब्रा में बंधे मांसल स्तन मेरी आंखों के सामने थे. कहने में अजीब लगता है कि ब्रा में लिपटे वे उरोज मुझे इतना आकर्षित कर रहे थे क्योंकि पिछले दो दिनों में मैंने उनको पूरा नग्न भी देखा था और तरह तरह से उनके नग्न बदन का भोग भी लगाया था, याने उनके बदन का कोई भी अंग मेरे लिये नया नहीं था फ़िर भी ब्रा के कपों में कसे हुए उन आधे खुले स्तनों की सुंदरता का जो खुमार था वो उनके नग्न उरोजों में भी नहीं आया था. मैंने बार बार उनको ब्रा के ऊपर से चूमा, ब्रा के नुकीले छोर में फंसे उनके निपलों को कपड़े के ऊपर से ही चूसा, हल्के से चबाया भी.
ताईजी भी शायद मेरे दिल का हाल समझ गयी थीं क्योंकि बिना कुछ कहे वे भी अब भरसक मेरे चुंबनों का जवाब दे रही थीं. जब मैं बार बार उनकी ब्रा को चूमता या ब्रा के कपड़े पर से ही उनके निपल चूसता तो वे मेरा चेहरा अपने सीने पर छुपा लेतीं.
"बहुत अच्छे लगे ना मेरे स्तन बेटा तुम्हे?" बीच में वे भाव विभोर होकर बोलीं. मैंने बस सिर हिलाया. उन्होंने मुझे सीने से चिपटा लिया. बुदबुदाईं "बीस साल पहले देखते तो .... "
मैं उनके स्तनों में चेहरा दबा कर बोला "मुझे तो अभी मस्त लग रहे हैं मांजी ... इनके साथ क्या क्या करने का मन होता है मेरा ..."
मेरा लंड अब कस के खड़ा हो गया था. लगातार संभोग के बाद अब गोटियां थोड़ी दुख रही थीं पर फ़िर भी लंड एकदम मस्ती में आ गया था. मेरी सासूमां का जलवा ही कुछ ऐसा था. लगता है और कुछ देर हो जाती तो हमारी चुदाई फ़िर शुरू हो जाती. वैसे लीना कुछ कहती नहीं पर जिस तरह से वह हमें जतला कर गयी थी कि अब कुछ मत करना, उससे लगता था कि थोड़ा चिढ़ जरूर जाती.
फ़िर लीना की आवाज सुनाई दी. वह मीनल से कुछ बोल रही थी. शायद जान बूझकर जोर से बोल रही थी कि हम आगाह हो जायें. मैं मांजी से अलग होकर बैठ गया. ताईजी ने फटाफट अपने कपड़े ठीक किये और उठ कर एक अलमारी खोल कर उसमें कुछ जमाने लगीं.
लीना अंदर आयी. हम दोनों को ऐसा अलग अलग देख कर उसे शायद आश्चर्य हुआ पर वो खुश भी हुई. "अरे वा, दोनों कैसे आराम से बात चीत कर रहे हैं. मुझे तो लगा था कि जिस तरह से सास दामाद की आपस में मुहब्बत हो गयी है, वे न जाने किस हाल में मिलेंगे"
"चल बदमाश, तेरे को तो बस यही सूझता है" मांजी बोलीं. वैसे लीना की बात सच थी.
लीना मेरी ओर मुड़कर बोली "चलो अनिल, पैकिंग कर लें."
"तुमको जो खरीदना था वो सब मिल गया लीना बेटी?" मांजी ने पूछा.
"हां मां, बस एक दो ही चीजें चाहिये थीं, बाकी तो सब है घर में. अब जल्दी चलो अनिल"
मैं लीना के पीछे हो लिया. जाते जाते जब मुड़ कर देखा तो सासूमां मेरी ओर देख रही थीं. उनकी नजरों में इतने मीठे वायदे थे कि वो नजर एकदम दिल को छू गयी.
हमारे रूम में आकर मैंने अपना सूटकेस ऊपर पलंग पर रखा. लीना कपड़े रखने लगी. दो मिनिट बाद मुझे अचानक समझ में आया कि वो बस मेरे ही कपड़े रख रही है, खुद के नहीं. हम दोनों मिलकर बस एक बड़ी सूटकेस लाये थे.
"अपने कपड़े रखो ना डार्लिंग, या दूसरी बैग लेने वाली हो?" मैंने कहा.
लीना मेरे पास आयी और मेरे गले में बाहें डाल कर शोखी से बोली "डार्लिंग ... तुम नाराज तो नहीं होगे? ... वो क्या है कि मैं नहीं आ रही तुम्हारे साथ ... मीनल और मां दोनों चाहती हैं कि हम रुक जायें ... अब तुम्हारा तो ऑफ़िस है पर मैं सोच रही हूं कि मैं एकाध दो हफ़्ते को रुक जाती हूं"
मेरा चेहरा देख कर मुझे चूम कर बोली "सॉरी मेरे राजा ... मैं जानती हूं कि तुम्हारा एक मिनिट नहीं चलेगा मेरे बिना पर प्लीज़ ... ट्राइ करूंगी कि एक हफ़्ते में लौट आऊं. अब मां का भी तो खयाल करना है, उसके साथ मुझे टाइम ही नहीं मिला"
मैंने बेमन से कहा "ठीक है लीना रानी, अब तुम कह रही हो तो मैं कैसे मना कर सकता हूं? तुम्हारी कोई बात मैंने टाली है कभी"
लीना मुझे लिपटकर बोली "वैसे तुमको बिलकुल सूखे सूखे अकेले नहीं जाने दूंगी बंबई. लता को भेज रही हूं तुम्हारे साथ"
"लता कौन?" मैंने अचरज से पूछा?
"अरे भूल गये? कल नहीं देखा था मेरी मौसेरी बहन, बहुत कुछ मेरे जैसी दिखती है. लगता है भूल गये. खैर जाने दो, अब मिल लेना, आती ही होगी. पैकिंग हो गया तो अब चलो बाहर" हाथ पकड़कर मुझे लीना बाहर ले गयी. जाते जाते बोली "अब उसके साथ कुछ ऊल जलूल नहीं करना, सीधी है बेचारी."
"नहीं करूंगा, उतनी समझ है मेरे को. पर ऐसे क्यों भेज रही हो लता को इस वक्त मेरे साथ, वो क्या करेगी वहां, मैं तो ऑफ़िस में रहूंगा, वो बोर हो जायेगी"
"बोर क्यों? घुमाना बंबई रोज. ऑफ़िस से जल्दी आ जाया करना" वो ऐसे कह रही थी जैसे ये सब बड़ा आसान हो. मैं जरा धर्मसंकट में था. बीच में ये भी लगता कि ये फ़िर से लीना का कोई खेल तो नहीं है.
हम बाहर आये. ड्राइंग रूम में कोई नहीं था. लीना ने आवाज लगाई "भाभी कहां हो?"
मीनल के कमरे से आवाज आयी "यहां हूं ननद रानी, लता आई है, उससे जरा गप्पें लड़ा रही थी"
"अरे बाहर आओ ना. अनिल भी है यहां"
"दो मिनिट लीना. ये लता शरमा रही है अनिल के सामने आने को." मीनल की आवाज आयी.
लीना बोली "अब आ भी जाओ, अनिल कोई दूसरे थोड़े हैं. शरमाने की जरूरत नहीं है" फ़िर मुझसे बोली "फ़िर से मेकप कर रही होगी, सुंदर है ना, जरा सेन्सिटिव है, मेकप ठीक ठाक करके ही आयेगी देखना"
"अच्छा रानी पर ये तो बताओ, कि बंबई आने का ये प्लान अचानक कैसे बना? याने लता ने कहा कि मैं जाना चाहती हूं कि तुम दोनों ननद भौजी ने मिलके उसको उकसाया है?" मैंने धीमे स्वर में पूछा. लीना पर मेरा बिलकुल विश्वास नहीं है, ऐसे नटखट खेल वो अक्सर खेलती है और फ़िर मेरी परेशानी देखकर खुश होती है.
"अब क्या फरक पड़ता है? तुम बस ये देखो कि एक सुंदर कमसिन अठारह बरस की कन्या तुम्हारे साथ, अपने जीजाजी के साथ बंबई जा रही है, हफ़्ते भर अकेली रहेगी उनके साथ, अब और कोई होता तो अपनी किस्मत पर फूला नहीं समाता और तुम हो कि शंका कुशंका कर रहे हो"
मैं चुप हो गया. मन ही मन कहा कि रानी, तेरी नस नस पहचानता हूं इसलिये शंका कर रहा हूं. वैसे एक बात जरूर है, लीना ने जब जब मुझे ऐसा फंसाया है, उसका नतीजा मेरे लिये बड़ा मीठा ही निकला है हमेशा.
पांच मिनिट हो गये तो मैंने भी आवाज दी. आखिर अपना जीजापन दिखाकर उस कन्या की झेंप मिटाना भी जरूरी था. "अब आ भी जाओ भई लता, कहो तो मैं आंखें बंद कर लेता हूं"
मीनल की आवाज आयी "अनिल, मैं ले आती हूं उसको, बहुत शरमा रही है"
मीनल मुस्कराते हुए बाहर आयी. उसने एक लड़की का हाथ पकड़ रखा था और उसे खींचती हुई अपने पीछे ला रही थी. मुझे तो ऐसा कुछ दिखा नहीं कि वह ज्यादा शरमा रही हो, हां मंद मंद हंस रही थी.
लड़की सच में सुंदर थी. छरहरा नाजुक बदन था, डार्क ब्राउन कलर की साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउज़ पहने थी. हाथों में एक एक फ़ैशन वाला कॉपर का कंगन था और एक स्लिम गोल्ड वाच थी. गोरे पैरों में ऊंची ऐड़ी के सैंडल थे. छरहरा बदन था, एकदम स्लिम, ऊंचाई लीना से तीन चार इंच कम थी. चेहरा काफ़ी कुछ लीना जैसा था, काफ़ी कुछ क्या, बहुत कुछ. बस बदन लीना के मुकाबले एकदम स्लिम था, लीना अच्छी खासी मांसल है, मोटी नहीं पर जहां मांस होना चाहिये वहां उसका एवरेज से ज्यादा ही मांस है. वजन थोड़ा ज्यादा होता और ऊंची होती तो एकदम लीना की जुड़वां लगती. हल्का मेकप किया था और होंठों पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक थी. आंचल में से छोटे छोटे पर तन कर खड़े उरोजों का उभार दिख रहा था.
"याद आया? कल ही तो मिलवाया था बड़े घर में" लीना ने कमर पर हाथ रखकर मुझसे पूछा. मैं अचरज में पड़ गया. ऐसी सुंदर कमसिन कन्या, लीना से मिलते जुलते चेहरे की और मुझे याद ना रहे! अब क्या बोलूं ये भी नहीं समझ पा रहा था.
मेरी परेशानी देखकर मीनल आंचल मुंह में दबा कर हंसने लगी. मैंने सोचा कि कुछ तो बोलना पड़ेगा. बोला "हेलो लता. सॉरी कल जल्दी जल्दी में इतने लोगों से मिला कि ... पर चलो, अब बंबई आ रही हो तो जान पहचान हो ही जायेगी. वैसे सच में तुम चल रही हो या ये इन दोनों ने मिलकर कुछ शरारत की है" लीना और मीनल की ओर इशारा करके मैं बोला.
"पहले ये बताइये दामादजी कि हमारी लता कैसी है? बंबई की लड़कियों के मुकाबले जच रही है या नहीं?" मीनल बोली. लीना ने भी उसकी हां में हां जोड़ी. लता खड़ी खड़ी बस जरा सा शरमाते हुए सब को देख देख कर मुस्करा रही थी.
मैंने कहा "ऐसे किसी का कंपेरिज़न करने की बहुत बुरी आदत है तुमको लीना. वैसे मैं सच कहूं तो इस प्रश्न में कोई दम नहीं है. लता इज़ वेरी प्रेटी, बहुत फोटोजेनिक है"
मीनल और लीना ने पट से एक दूसरे से हाथ पर हाथ मारा जैसा आज कल का फ़ैशन है ये बताने को कि कैसे बाजी मार ली.
"सिर्फ़ सुंदर कहकर नहीं बचोगे दामादजी. अंग अंग का निरीक्षण करके डिस्क्राइब करो लता की सुंदरता. लता, जरा घूम ना, एक चक्कर तो लगा, अनिल को भी देखने दे तेरा जलवा"
अब अपने ही बड़े घर की, जहां एक अलग डिसिप्लिन चलता है, एक लड़की को ये लोग इस तरह से बोल रही थीं यह देखकर मेरा माथा ठनका कि कुछ गड़बड़ न हो जाये. लता क्या सोच रही होगी. मैंने उसकी ओर देखा तो वो भी मेरी ओर देख रही थी. कुछ शरमा कर बोली "अब ये बहुत हो गया भाभी, इस सब की क्या जरूरत है?"
बोल लता रही थी पर आवाज ललित की थी. एल पल को मैं हक्का बक्का रह गया पर फ़िर एकदम से दिमाग में रोशनी हुई. ये ललित ही था लड़की के रूप में.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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