Friday, December 19, 2014

FUN-MAZA-MASTI बीवी का मायका-9

FUN-MAZA-MASTI

 बीवी का मायका-9

 मैंने दाद दी मीनल और लीना की कि कितने अच्छे से सिंगार किया था. बाकी सब तो ठीक है, आसानी से किया जा सकता है पर सिर में जो विग लगाया होगा वो बड़ा खूबसूरत था, बड़े खूबसूरत नरम सिलन शोल्डर लेंग्थ बाल थे. और ललित को भी मैं मान गया, साड़ी पहनकर सबके लिये चलना आसान नहीं है पर वह इस तरह से चल कर आया था जैसे जिंदगी भर साड़ी पहन रहा हो.

उधर लीना सिर पर हाथ मारकर हंस रही थी और ललित पर चिढ़ रही थी "सत्यानाश कर दिया उल्लू कहीं के. मैंने कहा था मत बोलना, अब बोल के सब भांडा फोड़ दिया. अभी तो अनिल को हम वो घुमाते कि ... "

ललित झेंप रहा था, लीना की डांट से और मेरा क्या रियेक्शन होगा इसके डर से.

मैंने तारीफ़ की "अरे उसको क्यों बोल रही हो, उसने ए-वन काम किया है ... मुझे जरा भी पता नहीं चला. यार ललित मान गये ... हैट्स ऑफ़. वैसे लता के बजाय ललिता नाम रख लो." फ़िर लीना की ओर मुड़ कर बोला "तुम्हारा और मीनल का भी जवाब नहीं, अब बॉलीवुड में ड्रेसिंग का काम देख लो. पर ये सब किसलिये? ललित कितना सुंदर है ये दिखाने को? मैंने तो पहले ही देख लिया है, बड़ा हैंडसम क्यूट लड़का है"

"लो, ललित आखिर जीजाजी तेरे फ़ैन हो ही गये, अब तो आराम से जा तू उनके साथ, तुझे जरूर बहुत इंटरेस्ट से ये बंबई घुमायेंगे" लीना बोली. फ़िर मेरे पास आकर मेरा हाथ पकड़कर बोली "वो क्या है कि ललित का बहुत मन है बंबई घूमने का. अपने साथ आने की जिद कर रहा था. अब इतनी जल्दी रिज़र्वेशन तो मिलेगा नहीं, ये कह रहा था कि दीदी, मैं नीचे फर्श पर सो लूंगा ट्रेन में पर वो एकाध खड़ूस टीसी फंस गया तो. अब कल से मीनल और मां ये भी कह रहे हैं कि लीना, रुक जा और हफ़्ते दो हफ़्ते के लिये तो मेरे दिमाग में एक खयाल आया कि मैं रुक जाती हूं और ललित मेरी जगह पर जा सकता है. हां उसे मेरे नाम पर सफ़र करना पड़ेगा, और वो भी स्त्री वेश में. ये तैयार हो गया, वैसे भी इसे बचपन से बड़ा शौक है लड़कियों के कपड़े पहनने का. मैंने कहा कि पहन कर दिखा और अनिल के सामने जा और वो भी पहचान ना पाये तो जरूर जा बंबई"

मीनल हंस कर बोली "मैदान मार लिया ललित ने आज, क्या खूबसूरत लड़की बना है"

लीना मुझे बोली "अनिल डार्लिंग, ललित शर्मायेगा बताने में पर अब तुमसे क्या छिपाना, ये ललित बचपन में ही नहीं, अभी भी लड़कियों के कपड़े पहनने का बहुत शौकीन है. सिर्फ़ हमारे ड्रेस, सलवार कमीज़ साड़ी ही नहीं, ब्रा और पैंटी भी पहनने का बड़ा शौक है इसको. मेरी ओर लीना की जब मौका मिलता है, पहन लेता है. ये तो मां की भी ब्रेसियर पहन ले पर वो उसको थोड़ी ढीली होती है."

इतने में सासूमां कमरे में आयीं. ललित को देखा और फ़िर लीना को बोलीं "तो तुम दोनों मानी नहीं, लड़की बना ही दिया बेचारे ललित को. अब ऐसे ट्रेन में भेजने के पहले अनिल को तो पूछ लिया होता, पर तुम दोनों कहां मेरा कहा मानती हो. और देखो कैसा शर्मा रहा है मेरा बच्चा. ललित बेटे, तेरे को ऐसे नहीं जाना हो तो साफ़ कह दे, इन दोनों छोरियों के कहने में ना आ, ये तो महा शैतान हैं दोनों"

लीना ने चिढ़ कर अपनी मां को कहा "अब तू चुप रह मां. इन बातों में अपना सिर मत खपा. देखो अनिल डार्लिंग, ललित तुम्हारे साथ जायेगा, बेचारे का बहुत मन है, घुमा देना उसको बंबई. और ये इसी स्त्री रूप में जायेगा मेरी जगह, टीसी को भी कोई शक नहीं होगा, और ट्रेन सुबह तड़के दादर पहुंचती है, ठीक से सुबह होने के पहले तुम लोग घर भी पहुंच जाओगे."

ललित मेरी ओर देख रहा था, बेचारा टेंशन में था कि मैं क्या कहता हूं.

मैंने सोचा कि बेचारे को और टंगाकर रखना ठीक नहीं है. उसकी पीठ थपथपा कर मैंने कहा "जाने दो ललित, जैसा ये कहती है वैसा ही करते हैं. इनको तो ऐसे टेढ़े आइडिया ही आते हैं और हम कर भी क्या सकते हैं! सुंदर कन्याओं की हर बात मानना ही पड़ती है. चल, तू लीना बनकर ही चल, आगे मैं संभाल लूंगा" उसकी पीठ पर हाथ फेरते वक्त उसके महीन ब्लाउज़ के नीचे से ललित ने पहनी हुई टाइट ब्रा के स्ट्रैप मेरी उंगलियों को महसूस हुए, न जाने क्यों एक मादक सी टीस मेरे सीने में दौड़ गयी.

ललित की बांछें खिल गयीं. मीनल बोली "देख, तू फालतू टेंशन कर रहा था कि जीजाजी क्या कहेंगे. अरे तू उनका लाड़ला साला है, जो मांगेगा वो मिलेगा"

सासूमां बोलीं "दामादजी, तुमको जमेगा ना? तुम्हारा ऑफ़िस होगा रोज, उसमें कहां इस घुमाओगे फिराओगे?"

"आप चिंता ना करें, मैं देख लूंगा, ऑफ़िस से जल्दी आ जाया करूंगा, दो दिन छुट्टी ले लूंगा पर ललित को खुश कर दूंगा, उसे जो चाहिये, वो उसको मिलेगा"

लीना ने ललित को हाथ पकड़कर मेरे साथ सोफ़े पर बिठाते हुए कहा "अब चुपचाप बैठो यहां, मैं फोटो निकालती हूं"


 हम दोनों के काफ़ी फोटो लिये लीना ने, हर तरह के ऐंगल से. फ़िर लीना रानी जरा अपनी हमेशा की शैतानी पर उतर आयी. "अब कमर में हाथ डालो अनिल ... और पास खींचो ना उसको ... अब उसे उठाकर जरा गोद में बिठा लो ... अब कस के उसको भींच लो ... अब जरा किस करो ..." बेचारा ललित ये सब करते वक्त जरा परेशान था, एक बार बोला भी "अब दीदी ... ये सब क्या कर रही हो ..." पर लीना ने डांट कर उसे चुप कर दिया. "एकदम चुप ... एक भी लफ़्ज़ कहा तो तेरी ट्रिप कैंसल ... हां चलो अनिल ... अरे हाथ जरा उसके सीने पर रखो ना ... ऐसे"

अब ये सब हो रहा था तब अनजाने में मेरा लंड सिर उठाने लगा. याने भले ही वो ललित रहा हो पर उसका कमनीय रूप, उसने लगाया सेंट ... और अपनी बांहों में महसूस हो रहा उसका जवान छरहरा चिकना बदन जो काफ़ी कुछ हद तक एक कन्या के बदन से कम नहीं था ... अब इस सब का मेरे ऊपर असर होना ही था. किसी तरह मैंने कंट्रोल किया, पता नहीं ललित ने मेरी गोद में बैठे वक्त मेरे लंड का कड़ा होना महसूस किया कि नहीं पर बोला कुछ नहीं.

फोटो सेशन खतम होने पर लीना ललित से प्यार से बोली "अब मुंह ना लटकाओ, ये सब फोटो अपने प्राइवेट हैं, घर के बाहर किसी को नहीं दिखाऊंगी"

ललित पल्लू संभाल रहा था. मैंने लीना से कहा "डार्लिंग, ललित को जरा टॉप जीन्स वगैरह पहना दो, ऐसे साड़ी संभालने में बेचारे को ट्रेन में परेशानी होगी."

लीना को बात जच गयी. "हां ललित ऐसा ही करते हैं, मैंने तो ये सोचा ही नहीं. जा, वो मेरी जीन्स और टॉप पहन ले"

ललित टॉक टॉक टॉक करते हुए मीनल के कमरे में जाने लगा. उसके सैंडल एकदम मस्त आवाज कर रझे थे जैसे लड़कियों के हाइ हील करते हैं. मेरे मन में आया कि हाइ हील पहनकर चलते हुए उसे कंफ़र्टेबल लग रहा है, जरूर जनाब घर में बहुत बार पहन कर घूमते होंगे.

मीनल बोली "अरे यहीं बदल ले ना, शरमाता क्यों है? सब एक साथ नंगे एक दूसरे से लिपटे हुए थे तब तो नहीं शरमाया तू, अब क्यों शरमा रहा है. और अंदर ब्रा और पैंटी तो है ना, एकदम नंगी भी नहीं होगा तू"

मैं समझ गया कि ललित इसी लिये शरमा रहा होगा कि उसके जीजाजी उसको ब्रा और पैंटी में देख कर क्या कहेंगे. तब तक मीनल जाकर लीना की जीन्स और टॉप ले आयी थी. ललित वहीं मीनल के कमरे के दरवाजे पर खड़ा होकर कपड़े बदलने लगा. साड़ी और ब्लाउज़, पेटीकोट निकालने के बाद ललित जीन्स पहनने लगा. उसने अभी भी विग पहना हुआ था इसलिये एकदम एक कमसिन अर्धनग्न सुंदरी जैसा लग रहा था. उसके गोरे बदन पर काली ब्रा और पैंटी निखर आयी थी. बस एक फरक था कि उसकी पैंटी में उभार था, जितना आम तौर पर मर्दों का उभार दिखता है उससे ज्यादा था. मैं मन ही मन मुस्कराया, सोचा - बेटा ललित ... मजा आ रहा है ... मस्ती चढ़ रही है औरतों के कपड़े पहनकर. फ़िर खुद की ओर ध्यान गया तो मेरा भी हाल कोई अलग नहीं था, ललित के उस चिकने बदन को ब्रा और पैंटी में देखकर आधा खड़ा हो गया था.

ललितने जीन्स और टॉप पहने. अब वह कॉलेज की छोरी जैसा कमनीय लग रहा था. मैंने भी निकलने की तैयारी करना शुरू कर दी. मीनलने जल्दी से ललित का एक बैग पैक किया. बीच में सासूमां उनसे कुछ बोल रही थीं. शायद बता रही हों कि वहां ज्यादा तकलीफ़ ना देना अनिल को. फ़िर उन्होंने ललित को सीने से लगाकर पटापट चूम डाला. आखिर लाड़ला छोटा बेटा था उनका.

हम खाने बैठे. पिज़्ज़ा मंगाया गया था. खाते खाते सबको मस्ती चढ़ी थी. मीनल और लीना तो हाथ धोकर ललित के पीछे लगी थीं, ताने कस रही थीं, उल्टा सीधा कुछ कुछ सिखा भी रही थीं उसके कान में कुछ बोलकर. वह बेचारा बस झेंप कर पिज़्ज़ा खाता हुआ हंस रहा था.

निकलने के आधा घंटा पहले मीनल ने मुझे अंदर बुलाया. उसके कमरे में गया तो उसने मुझे अपने बिस्तर पर बिठाया और फ़िर गाउन के आगे के बटन खोलकर अपने भारी भारी भरे हुए मम्मे बाहर निकाले. "भूल गये क्या अनिल? आज दोपहर को ही बोले थे ना कि रात को मुझे पूरा पिला देना?"

"ऐसी बात मैं कैसे भूलूंगा मीनल, अब इतनी भागम भाग में तुमको और तंग नहीं करना चाहता था. पर जाते जाते ये अमरित मिल रहा है, एकाध दो दिन का दिलासा तो मिल जायेगा पर फ़िर ये प्यास कौन बुझायेगा मीनल?"

"अब खुद अपनी बीवी का दूध पी सको ऐसा कुछ करो." मीनल बोली और मुझे बिस्तर पर लिटाकर मेरे मुंह में अपना स्तनाग्र देकर लेट गयी. पूरा दोनों स्तनों का दूध मुझे पिलाया. दूध पीते पीते मेरा ऐसा तन्नाया कि क्या कहूं. मीनल ने उसे पैंट के ऊपर से ही पकड़कर कहा "आज रात ये तकलीफ़ देगा दामादजी. वैसे लता ... मेरा मतलब ललिता है साथ में पर अब वो पहले ट्रेन में फ़र्स्ट क्लास रहते थे वैसे कूपे भी नहीं है नहीं तो ललिता इस बेचारे को कुछ आराम जरूर देती, है ना अनिल" उसने मुझे आंख मारकर कहा.

"क्या मीनल, ऐसा मजाक मत करो. अरे आखिर मेरा साला है, भले ही लड़की के भेस में हो और लड़कियं से सुंदर दिखता हो. उसे तो मैं एकदम वी आइ पी ट्रीटमेंट देने वाला हूं"

स्टेशन जाने के लिये जब हम निकले तो लीना मुझे बाजू में ले गयी "अच्छा डार्लिंग, जरा खयाल रखना मेरे भैया का. मैं स्टेशन नहीं आ रही, फालतू हम दोनों को साथ देखकर कोई जान पहचान वाला बातें करने के लिये आ जाये तो लफ़ड़ा हो जायेगा. सिर्फ़ तुम दोनों होगे तो यही समझेंगे कि लीना अपने पति के साथ वापस जा रही है. वैसे ललित कैसा लगा ये बताओ, मेरा मतलब है ललिता कैसी लगी? अब सच बताना"

मैंने उस किस करते हुए कहा "एकदम हॉट और सेक्सी. पर तुमको आगाह करके रख रहा हूं जानेमन, तुमने शायद खुद अपनी सौत बना कर मेरे साथ भेज रही हो. अब कभी बहक कर याद ना रहे कि ये ललित है, ललिता नहीं, उसके साथ कुछ कर बैठूं तो मुझे दोष मत देना. और जरा उसको भी बता दो, नहीं तो घबरा कर चीखने चिल्लाने लगेगा"

"मैं बीच में नहीं पड़ती, दोनों एडल्ट हो, जो करना है वो करो. वैसे एक बात समझ लो कि ललित तुमसे ज्यादा बोलता नहीं इसका मतलब ये नहीं कि वो तुम्हारे साथ अनकंफ़र्टेबल है, वो बस जरा शर्मीला है. मां तो कह रही थी कि कल से कई बार तुम्हारी तारीफ़ कर चुका है मां के सामने"

फ़िर बाहर आते आते धीरे से बोली "एक बात और, उसके कपड़ों के साथ मैंने कुछ अपने खास कपड़े ..." एक आंख बंद करके हंसकर आगे बोली " ... रख दिये हैं. और घर में तो ढेरों हैं मेरे हर तरह के कपड़े. कभी उसे ललिता बनाकर डिनर को ले जा कर भी देखो, मैं बेट लगाती हूं कि कोई पहचान नहीं पायेगा. अगर मेरी बहुत याद आये कभी तो ललित को कहना कि यार ललिता बन जा और फ़िर उसके साथ गप्पें मारते बैठना."

"और अगर मन चाहे तो उसे ये भी कहूं कि ललिता बनकर मेरे बेडरूम में मेरे बिस्तर पर साथ सोने चल, लीना की बहुत याद आ रही है?"

"मुझे चलेगा, तुम लोग देखो" लीना बोली "ट्राइ करने में हर्ज नहीं है. बस उसका खयाल रखना जरा, मेरा प्यारा सा नाजुक सा भाई है"

"बिलकुल वैसा ही खयाल रखूंगा जैसा तुम्हारा रखता हूं डार्लिंग" मैंने कहा. टैक्सी में बैठते मैंने कहा.



 हमने जैसा सोचा था, वैसा ही हुआ. ललित को किसी ने नहीं पहचाना कि वह लड़का है. टी सी ने भी टिकट चेक करके वापस कर दिया. रात के दस बज ही गये थे और अधिकतर लोग अपनी अपनी बर्थ पर सो गये थे. ललित पर किसी की नजर नहीं गयी. याने एक दो लोगों ने और एक दो स्त्रियों ने देखा पर बिलकुल नॉर्मल तरीके से जैसा हम किसी सुन्दर लड़की की ओर देखते हैं.

हम दोनों की बर्थ ऊपर की थी. मैं उसे चढ़ने में मदद करने लगा तो वो रुक कर मेरी ओर देखने लगा कि क्या कर रहे हो जीजाजी, मुझे मदद की जरूरत नहीं है. बोला नहीं यह गनीमत है क्योंकि उसे सख्त ताकीद दी थी कि बोलना नहीं, दिखने में वो भले लड़की जैसा नाजुक हो, उसकी आवाज अच्छी खासी नौजवान लड़के थी. मुझे उसके कान में हौले से कहना पड़ा कि यार लड़की है, ऐसा बिहेव कर ना, ऊपर चढ़ने में सहारा लगता है काफ़ी लड़कियों को. तब उसकी ट्यूब लाइट जली.

सुबह तड़के हम दादर पहुंचे. टैक्सी करके सीधे घर आये. गेट बंद था इसलिये बाहर ही उतर गये. बैग भी हल्के थे. अंदर आते आते गेट पर सुब्बू अंकल मिले. हमारी बाजू की बिल्डिंग में रहते हैं, ज्यादा जान पहचान या आना जाना नहीं है, पर हाय हेलो होता है हमेशा. सुबह सुबह घूमने जाते हैं. हमें देख कर उन्होंने ’गुड मॉर्निंग अनिल, गुड मॉर्निंग लीना’ किया और आगे बढ़ गये. ललित थोड़ा सकपका गया. ऊपर आते वक्त लिफ़्ट में मैंने उसकी पीठ पर हाथ मार कर कहा "कॉंग्रेच्युलेशन्स, सुब्बू अंकल को भी तुम लीना ही हो ऐसा लगा. याने जिसकी रोज की जान पहचान या मुलाकात नहीं है, उसे तुम्हारे और लीना के चेहरे में फ़रक नहीं लगेगा, कम से कम अंधेरे में."

फ़्लैट में आने पर हमने बैग अंदर रखे. मैंने चाय बनाई, तब तक ललित इधर उधर घूम कर फ़्लैट देख रहा था. हमारा फ़्लैट वैसे पॉश है, चार बेडरूम हैं.

"क्या ए-वन फ़्लैट है जीजाजी!" ललित बोला.

"अरे तभी तो कब से बुला रहे हैं तुम सब लोगों कि बंबई आओ पर कोई आया ही नहीं. चलो तुमसे शुरुआत तो हुई. अब मांजी, मीनल भी आयेंगी ये भरोसा है मेरे को. राधाबाई ने तो प्रॉमिस किया मुझे नाश्ता खिलाते वक्त कि वे दो महने बाद आने वाली हैं"

"हां जीजाजी, वे क्यों ना आयें, आप ने उन सब को क्लीन बोल्ड कर दिया दो दिन में" ललित बड़े उत्साह से बोला. अब वह मुझसे धीरे धीरे खुल कर बात करने लगा था. "मां तो कब से आप के ही बारे में बोल रही है"

"अच्छा? और तुम क्लीन बोल्ड हुए क्या?" मैंने मजाक में पूछा. ललित कुछ बोला नहीं, बस बड़ी मीठी मुस्कान दे दी मेरे को जैसे कह रहा हो कि अब लड़की के भेस में आपके साथ आया हूं तो और क्या चाहते हो मुझसे.

चाय पीकर मैं नहाने चला गया. ललित ने अपना सूटकेस गेस्ट बेडरूम में रखा और कपड़े जमाने लगा. मैंने नहा कर कपड़े पहने और ऑफ़िस जाने की तैयारी करने लगा. टाई बांधते बांधते ललित के कमरे में आया तो ललित चौंक गया. थोड़ा टेन्शन में था "आप कहीं जा रहे हैं जीजाजी?"

"हां ललित, मुझे ऑफ़िस जाना जरूरी है, मैंने आज जॉइन करूंगा ये प्रॉमिस किया था, नहीं तो वहीं नहीं रुक जाता सबके साथ? इसलिये आज तो जाना ही पड़ेगा. कल से देखूंगा, थोड़ा ऑफ़ या हाफ़ डे वगैरह मिलता है क्या. हो सके तो जल्दी आ जाऊंगा. फ़िर देखेंगे आगे का प्लान, घूमने वूमने चलेंगे"

ललित ने अपना विग निकाला और बाल सहला कर बोला "ठीक है जीजाजी, मैं भी कपड़े बदल लेता हूं"

मेरे मन में अब एक प्लान सा आने लगा था. वैसे वो कल से ही था जबसे अपने खूबसूरत साले को लड़की के भेस में देखा था. रात को ट्रेन में उसे मेरे बाजू वाली ऊपर की बर्थ पर सोते देखकर मेरा लंड अच्छा खासा खड़ा हो गया था जैसे भूल ही गया हो कि ये लीना नहीं, ललित है. मैंने सोचा कि इसे लड़की समझ कर वैसे ही थोड़ा फंसाने की कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं है, देखें इस के मन में क्या है. "पर क्यों बदल रहा है? मुझे तो लगा था कि तेरे को ऐसे कपड़े पहनना अच्छा लगता है"

"बहुत अच्छा लगता है जीजाजी" ललित बड़ी उत्सुकता से बोला "पर कोई आ जाये तो ... अब आप भी नहीं हैं घर में"

"अरे मेरी जान, कोई नहीं आने वाला. अगर भूले भटके आया भी और बेल बजी तो दरवाजा मत खोलना. मैं तो कहता हूं कि अब ऐसा ही रह, मजा कर, अपने मन की इच्छा पूरी करने का ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता"

"नहीं जीजाजी ..." ललित बोला. " ... कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाये" लगता है थोड़ा शरमा रहा था. पर बात जच गयी थी, सारे दिन वैसे ही लड़की बनके रहने की बात से लौंडा मस्त हो गया था.

"अरे कर ना अपने मन की. यहां वैसे भी कौन तुझे पहचानता है? लीना मुझे बता रही थी कि तेरे को यह बचपन से कितना अच्छा लगता है. और ये शरमाना बंद कर, साले ...." मैंने प्यार से कहा "मेरे सामने बिना शरमाये अपनी दीदी की - मेरी बीवी की - चूत चूस रहा था ... मुझे तेरी मां और भाभी पर चढ़ा हुआ बड़े आराम से बिना शरमाये देख रहा था और अब सिर्फ़ अपना शौक पूरा करने में शरमा रहा है? लानत है यार! अरे यही तो टाइम है अपने मन की सब मस्ती कर लेने का. बस तू है और मैं हूं, और कोई नहीं है यहां"

ललित को बात जच गयी थी पर अभी भी उसका मन डांवाडोल हो रहा था. मैंने सोचा कि थोड़ा ललचाया जाये इन जनाब को "ललित डार्लिंग ..." मैंने बिलकुल उस लहजे में कहा जैसा मैं लीना को बुलाता था. "तेरे को एक इन्सेन्टिव देता हूं. एक हफ़्ते बाद लीना आने वाली है. तब तक तू अगर ऐसा ही लीना बन के रहेगा ... याने बाहर वाले लोगों के लिये लीना ... मैं तुझे ललिता ही कहूंगा ... तो जो कहेगा वह ले कर दूंगा"

"पर लोग मुझे पहचान लेंगे. घर आये लोगों से मैं क्या बोलूंगा?" ललित ने शंका प्रकट की. लड़का तैयार था पर अभी भी थोड़ा घबरा सा रहा था. "और अपने बाजू वाले फ़्लैट में जो हैं वो? वो तो जरूर बेल बजायेंगे जब पता चलेगा कि आप आ गये हैं"

"अरे वह मेहता फ़ैमिली भी अभी यहां नहीं है, एक माह को वे बाहर गये हैं. उनसे भी हमारा बस हेलो तक का ही संबंध है. वे भी सहसा बेल बजाकर नहीं आते. अरे ये बंबई है, यहां इतना आना जाना नहीं होता लोगों का. यहां लोग होटल जैसे रहते हैं. तू चिंता ना कर. मजा कर. और मैं सच कह रहा हूं. बेट लगा ले, अगर तू हफ़्ता भर लड़की बन के रहा तो जो चाहे वो ले दूंगा"

"जो चाहे याने जीजाजी ...?" लड़का स्मार्ट था, देख रहा था कि जीजाजी को कितनी पड़ी है उसे लड़की बना कर रखने की.

"स्मार्ट फोन .. टैब्लेट ... लैपटॉप ... ऐसी कोई चीज" मैंने जाल फैलाया. "बोल ... है तैयार?"

लैपटॉप वगैरह सुनकर ललित की बांछें खिल गयीं. "ठीक है जीजाजी ... पर बाहर जाते वक्त?"

"वो भी लड़की जैसा जाना पड़ेगा, ललिता बनकर, ऐसे ही सस्ते में नहीं मिलेगा तुझे स्मार्ट फोन. और यही तो मजा है कि लोगों के सामने लड़की बनकर जाओ, जैसे कल ट्रेन में आये थे. और एक बार बाहर जाने के बाद इतनी बड़ी बंबई में कौन तुझे पहचानेगा? और वैसे भी बेट यही है ना डार्लिंग कि तू सबको एक सुंदर नाजुक कन्या ही लगे. जरा देखें तो तेरे में कितनी हिम्मत है. अपने मन की पूरी करने को किस हद तक तैयार है तू? तो पक्का? मिलाओ हाथ"

साले का हाथ भी एकदम कोमल था. मैं सोचने लगा कि हाथ ऐसा नरम है तो ... फ़िर बोला "ललित, एक बार और ठीक से सब समझ ले. घर में भी लड़की जैसे रहना पड़ेगा. ऐसा नहीं कि कोई देख नहीं रहा है तो लड़के जैसे हो लिये. याने लिंगरी ... ब्रा ... पैंटी ... सब पहनना पड़ेगी"

"पर वो क्यों जीजाजी?" ललित बेचारा फिर थोड़ा सकपका सा गया.

"अरे तेरे को पहनने में मजा आता है और मुझे देखने में. इतना नहीं करेगा मेरे लिये? अरे अब लीना, मेरी वो चुदैल बीवी, तेरी वो शैतान दीदी यहां नहीं है तो उसकी कमी कम से कम मेरी आंखों को तो ना खलने दे, वो घर में बहुत बार सिर्फ़ ब्रा और पैंटी पहन कर घूमती है, तू भी करेगा तो मुझे यही लगेगा कि लीना घर में है"

ललित सोच रहा था कि क्या करूं. मैंने कहा "एक रास्ता है, ब्रा और पैंटी ना पहनना हो तो नंगा रहना पड़ेगा घर में. नहीं तो बेट इज़ ऑफ़. वैसे भी हम सब अधिकतर नंगे ही थे पिछले दो दिन तेरे घर में. तू काफ़ी चिकना लौंडा है, ब्रा पैंटी ना सही, वैसे ही देखकर शायद मेरी प्यास बुझ जायेगी. पर हां ... तेरे को नंगा देखकर बाद में मैं कुछ कर बैठूं तो उसकी जिम्मेदारी तेरी"

"नहीं जीजाजी ..." शरमा कर ललित बोला "मैं पहनूंगा ब्रा और पैंटी" उसने विग फ़िर से सिर पर चढ़ा लिया.

"शाबास. अब मैं नीचे से ब्रेड बटर अंडे बिस्किट वगैरह ले आता हूं. आज काम चला लेना. कल से देखेंगे खाने का. और तब तक तू जा और नहा ले. मैं लैच लगाकर निकल जाऊंगा. बेल बंद कर देता हूं, किसी को पता भी नहीं लगेगा कि हम वापस आ गये हैं"

सामान लाकर मैंने डाइनिंग टेबल पर रखा. गेस्ट रूम में देखा तो बाथरूम से शावर की आवाज आ रही थी. मन में आया कि अंदर जाकर उस चिकने शर्मीले लड़के को थोड़ा तंग किया जाये, पर फ़िर सोचा जाने दो, बिचक ना जाये, जरा और घुल मिल जाये तो आगे बढ़ा जाये, आखिर लीना का लाड़ला भाई था. और किसी लड़के के साथ, खूबसूरत ही सही, इश्क लड़ाने की कोशिश मेरे लिये भी पहली ही बार थी. इसलिये वैसे ही ऑफ़िस निकल गया.








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