Thursday, June 18, 2015

FUN-MAZA-MASTI एक मानसिक व्यथा

FUN-MAZA-MASTI


एक मानसिक व्यथा


‘आज फिर से अखबार पढ़े बिना तुम स्कूल चले गए? अपना हाथ आगे बढ़ाओ… तड़ाक तड़ाक !!’
‘ये शब्द’ आज भी मेरे कानों में सुनाई देने लगते हैं जब मैं अखबार पढ़ने के लिए बैठता हूँ!
क्योंकि उस दिन भी मुझे अखबार न पढ़ने के कारण पापा से 2 डंडे अपने हाथ पर खाने पड़े थे।
पापा मुझे IAS बनाना चाहते थे और क्योंकि एक IAS का ज्ञान एकदम up-to-date होना चाहिए इसलिए वो मेरे अन्दर अखबार पढ़ने की एक आदत को डालना चाहते थे।
लेकिन मेरा… मेरा दिमाग तो उस समय किशोरावस्था में कदम रख रहा था… एक ऐसी उम्र जिसमें सिर्फ सेक्स ही सेक्स सूझता है। अपने शरीर में होते हुए बदलावों को मैं भी दूसरे लड़कों की तरह खुद पर महसूस कर रहा था और जब शरीर में ही इतनी चंचलता होगी तो दिमाग की चंचलता को तो बताना भी यहाँ कठिन ही होगा।
तो बस यही सब मेरे साथ भी हो रहा था, मैं अखबार खोलता और जैसे ही अपनी नज़र अखबार में छपी हुई ख़बरों पर दौड़ाता तो सिर्फ रेप की खबर पढ़ने में ही मेरा भी मन लगता।
मैं करता भी तो क्या करता?
सारा अखबार सिर्फ रेप की खबरों से ही भरा होता था और मैं भी बस शायद उन्हीं ख़बरों को पढ़ने में दिलचस्पी लेता था लेकिन जैसे ही मुझे ‘पापा का मेरे लिए देखा वो IAS का सपना’ याद आता तो मैं उस दिन अखबार को ग्लानिवश नहीं पढ़ता और बस इसलिए मुझे उनसे मार खानी पड़ती थी।
 
धीरे-धीरे यह रेप शब्द मेरे ज़हन में एक तीर की भाँति चुभने लगा और मैं रात-दिन बस यही सोचता रहता कि अगर कभी मुझे भी sex करने का अवसर मिला तो मैं सिर्फ रेप ही करूँगा… सिर्फ रेप! मगर एक पढ़े-लिखे परिवार में पैदा होने के कारण मेरे लिए ये सब करना संभव नहीं था लेकिन जब भी मैं रात को कल्पनाएँ बनाता तो ये रेप ही मेरे सामने उभर कर आता और मुझे लगता कि शायद मैं या मेरी सोच… कोई तो ‘जंगली’ जरूर है… जो इस शब्द को मेरे भीतर में सहेज रही है।
जिंदगी के 10 साल कब गुज़र गए पता ही नहीं चला… स्कूल से कॉलेज और कॉलेज से जॉब… जी हाँ… हर लड़के की तरह मैं भी अब तक अपना कैरियर बना कर अपने पैरों पर खड़ा था।
MBA करने के बाद मुझे भी एक अच्छी MNC में जॉब मिल गई थी और अब माँ-बाप भी मुझ पर शादी करने का दबाव बना रहे थे। सच पूछो तो मैं भी अब शादी करना चाहता था… सिर्फ घर बसाने के लिए ही नहीं बल्कि अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भी! मगर मैं अपने दिमाग में पल रही उस सोच को लेकर परेशान था… क्योंकि मुझमें यह बात अब तक पूरी तरह से घर कर चुकी थी कि मेरा sex के लिए पहला अनुभव सिर्फ रेप ही होगा… सिर्फ रेप… जिसे मैं बचपन से अखबारों में पढ़ता और फिल्मों में देखता आया हूँ।
आख़िरकार ‘शमा’ से मेरी सगाई पक्की हो गई!
‘शमा’… एक मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर थी। बहुत ही सीधी-साधी और भोली भाली सी लड़की… जो डॉक्टर होते हुए भी अपना बड़ों का आदर करती थी।
शादी में बस सिर्फ 2 महीने ही बचे थे और मेरी ‘शमा’ से मिलने की आज पाँचवी मुलाक़ात थी। अब तक की 4 मुलाकातों में हमने एक-दूसरे की सभी आदतों को जाना और समझा था लेकिन बस यह मानसिक तनाव… जो अब तक मेरे ज़हन में था, उसे मैं नहीं कह पाया था और आज मैंने यह अच्छी तरह सोच लिया था कि ‘शमा’ को इस बात के बारे में आज बता कर ही जाऊँगा।
हर बार की तरह आज भी ‘शमा’ रात 8 बजे डिनर के लिए मुझसे मिलने के लिए आई थी। मेरे ठीक सामने बैठी हुई ‘वो’ इतनी सुन्दर लग रही थी कि मैं खाना खाना भी भूल सा गया था।
अचानक मैंने कहा- शमा… … वो… … तुम सुहागरात का मतलब जानती हो?
उसने धीरे से कहा- हाँ, जानती हूँ।
मैंने फिर कहा- …लेकिन शमा, मुझे वैसी सुहागरात नहीं चाहिए Plzz समझो… … Plzzz !
इस बार शमा घबरा गयी और पूछने लगी- क्या कहना चाहते हो? साफ़-साफ़ कहो !
मैंने कहा- … …शमा… आई वान्ट टू रेप… हाँ, पहली बार सिर्फ रेप ही होना चाहिए… … सिर्फ रेप!
शमा ने इस बार पूरा घूर कर मेरी तरफ देखा और बोली- … …क्या तुम भी रात को अपनी कल्पनाओं में रेप को लेते हो?’
मैंने कहा- … सिर्फ लेता नहीं हूँ शमा… … मुझे बस वही करना है… बस वही !
और मैं एक असहाय बालक की भाँति कहीं अन्दर से टूटने लगा।
शमा एक डॉक्टर थी, रोज़ न जाने कितने मरीजों की मनोव्यथा को पढ़ती थी और आज वो मेरे मन को पढ़ने की कोशिश कर रही थी। काफी देर सोचने के बाद वो जाने के लिए उठी और उसने सिर्फ इतना कहा कि अब हम सीधा सुहागरात पर ही मिलेंगे।
मैंने उसे घर तक छोड़ा और चला गया।
25 May… जब गर्मी अपने पूरों ज़ोरों पर होती है… उस दिन हमारी शादी हुई थी।
सारे मेहमान गर्मी से परेशान थे मगर शमा तब भी मुस्कुरा रही थी। उसकी यही बात मुझे सबसे अच्छी लगती थी कि वो हर हाल में खुद को ढाल लेती थी।
इतनी गर्मी में शादी का वो भारी सा लहंगा और गहनों से लदा होने के बावजूद भी उसके माथे पर शिकन तक नहीं थी। शादी होने के बाद मुझे एक चैन की राहत मिली और मैं सुबह शमा को अपने साथ अपने घर में ले आया।
26 May… यानि हमारी सुहागरात का दिन। सभी मेहमान घर से जा चुके थे और मैं भी रात होने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था कि अचानक से दरवाज़े की घंटी बजी।
जाकर देखा तो कमरे को सजाने के लिए फूल वाला आया था।
तभी शमा बाहर आई और उसे जाने को कहा।
मैं भी हैरान सा खड़ा यह सोच रहा था कि उसने ऐसा क्यों किया क्योंकि हर लड़की का अपनी सुहागरात वाले दिन एक सज़ा हुआ कमरा देखने का सपना होता है।
खैर अब तक तो वो जा चुका था इसलिए मेरे लिए अब कोई सवाल करने का मतलब ही नहीं था।
डिनर का समय हो चला था, हम दोनों ने माँ-पापा के साथ खाना खाया और मैं अपने कमरे में आराम करने के लिए चला गया। शादी की थकावट इतनी ज्यादा थी कि लेटते ही मुझे नींद आ गई और शमा वहीं माँ-पापा के पास बैठी उनसे नए घर की सीख लेने लगी।
रात के करीब 11 बजे मुझे अपने कमरे में आहट सी सुनाई दी। आँख खुली तो मैंने देखा कि शमा… वही पहले वाली शमा… जैसी मुझे उस दिन रेस्टोरेंट में मिली थी मेरे सामने खड़ी थी।
उसके बदन पर न ही वो शादी का लहंगा था और न ही वो खूबसूरत से गहने, न ही कोई सिंगार और न ही कोई हाथ में दूध का गिलास।
उसने सिर्फ इतना कहा- Today I want to make your Fantasy alive. टूडे आई वान्ट टू मेक यूअर फ़ैन्टेसी अलाइव… यू वान्ट टू रेप ना? … इट मस्ट बी अ रेप… अ वाइल्ड वीयर्ड रेप… गो ओन डीयर… गो ओन…
मैंने दौड़ कर दरवाज़ा बंद कर दिया। इतने सालों से जो शब्द मेरे ज़हन में घूम रहे थे, आज मुझे बस उन्हीं को Update करना था।
एक पागल रेपिस्ट की भाँति मैं शमा पर टूट पड़ा। वो सारी fantasies… वो सारी अखबार की खबरें… वो सारे फिल्मी scenes… जिनमें यह ‘रेप’ शब्द आता था… वो सब मेरे दिमाग में दौड़ने लगे और ‘मैं’… …’मैं’ … रहा ही नहीं!
सुबह अलार्म की आवाज़ से आँख खुली तो देखा शमा बिस्तर पर निढाल पड़ी थी। अब मुझे लगने लगा कि यह क्या हो गया मुझसे। मैंने धीरे से शमा को छुया और कहा- शमा… तुम बिल्कुल अपने नाम की तरह हो… खुद जल गई जो मेरी मानसिकता की खातिर!
शमा ने मेरी तरफ देखा और सिर्फ इतना कहा- ‘रेप’ होने पर महिलायें शारीरिक तौर पर टूट जाती हैं इतना तो मैंने पढ़ा था… …पर इस ‘रेप’ शब्द से पुरुष इतना टूट जाते हैं… यह मैंने सिर्फ आज देखा और समझा।







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