Sunday, June 14, 2015

FUN-MAZA-MASTI कौमार्य

FUN-MAZA-MASTI

कौमार्य 

इतवार की छुट्टी थी, स्कूल बंद था और किसी को कोई जल्दी नहीं थी, घर के सब लोग चर्च की मोर्निंग प्रयेर्स में हिस्सा लेने की धीरे धीरे तयारी कर रहे थे. लेकिन मुझे जल्दी थी, उतावली सी मै अपनी उस ड्रेस को घूर रही थी जो मैंने कल ही खरीदी थी. हलकी गुलाबी रंग की स्कर्ट और स्याह काली टॉप. मै नहा धो कर तयार थी और बड़ी बेसब्री से बाकि सब लोगों के तयार होने की प्रतीक्षा कर रही थी. घुटने से बहुत ऊपर उठ आयी उस गुलाबी स्कर्ट और स्याह काले टॉप में मैं अपने आप को बार बार शीशे में निहार रही थी. इतनी सेक्सी और हसीं मै खुद को पहले कभी भी नहीं लगी थी या फिर शायद इससे पहले कभी मेरा ध्यान ही नहीं गया था खुद पर. स्तनों का एक बड़ा हिस्सा टॉप से बहार झांक रहा था. गोलईओं के बीच में पड़ी दरार सब साफ़ साफ़ देख सकते थे. कमर से ऊंचा टॉप मेरी नाभि को ढकने की नाकाम कोशिस कर रहा था. पसली पर टिकी स्कर्ट जरा सी भी हवा में लहराती तो पार दर्शी हलकी गुलाबी पैंटी मुझे और भी आकर्षक बना रही थी. कुल मिला कर सोलह साल की उम्र में मै एकदम कामुम हसीं और वासना की मूरत लग रही थी मुझे आज पहली बार किसी के साथ डेट पर जो जाना था. 

आखिरकार वो पल भी आ ही गया जिसका मुझे बड़ी बेसब्री से इन्तजार था. सभी लोग चर्च जाने के लिए तयार थे और घर से बहार निकलने लगे थे. मैं भी अपने पापा के साथ उन्ही की गाड़ी में बैठ गई. मुझे देखकर वो बोले तो कुछ नहीं बस मुस्कुरा कर रह गए. शायद उन्हें मेरे जवान होने का एहसास आज पहली बार हुआ था. जैसे तैसे मेरी प्रतीक्ष समाप्त हुई और हम चर्च पहुँच गए. मेरी आँखे किसी को डूंड रही थी जिससे मिलने की चाहत में रात आँखों ही आँखों में कट गई थी और सुबह सागर से भी लम्बी दिख रही थी. अनमने मन से मैं चर्च के मुख्य द्वार तक बदने लगी की तभी किसी ने धीरे से मेरे कंधो को छूते हुए कहा "हेल्लो". मेरे दिल की धड़कने बड गयी, साँस किसी ड्रम बीट की तरह सुनाई देने लगी पर दुसरे पल ही मैंने खुद को संभालते हुए कहा "हेल्लो". चर्च में भीड़ बहुत थी और कुछ भी सुन पाना मुश्किल था पर मैंने "तुम आज तो बहुत सेक्सी लग रही हो, बिलकुल अप्सरा जैसी" सुन ही लिया क्योंकि मैं यही तो सुनना चाहती थी उससे.
प्रयेर चल रही थी पर मेरा मन नहीं लग रहा था, मेरा मन तो उसके उन शब्दों में बसा हुआ था जो उसने बड़े ही धीरे से कहे थे जिससे मै सुन न सकूँ और वो अपने मन में उमडे भावों को कह भी दे. जैसे तैसे प्रयेर ख़तम हुई और मैं टकटकी लगाये उसकी ओर देखती रही, कितना सुन्दर लग रहा था वो गुलाबी शर्ट और ब्लैक जींस में. घटा हुआ शारीर और ऊँचा कद, किसी हीरो से कम नहीं लग रहा था. मन में बस एक ही विचार बार बार आ रहा था की कैसे उससे मिलूं और लिपट कर उसे तब तक चूमती चूसती और चाटती रहूँ जब तक वो पूरी तरह पिघल कर मुझमे न समां जाये सदा सदा के लिए. मेरा वापस घर जाने के लिए नहीं आई थी, मैं पापा की ओर मुडी "मुझे अपनी एक सहेली से मिलना है, उससे मिल कर शाम तक घर आती हूँ" पापा कुछ देर मुझे घूरते रहे, शायद मेरी आँखों में वो उस झूट को पड़ने की कोशिस कर रहे थे जो अभी अभी मैंने उनसे बोला था और धीमी आवाज में बोले "ठीक है बेटा जहाँ भी जाना है जाओ पर मेरे विशवाश को कभी मत तोड़ना" और इतना कह कर चुपचाप मुझे अकेला छोड़ घर चले गए.

सरपट दौड़ती कार में हम दोनों जल्दी ही एक सुनसान रास्ते पर निकल आये, उसने धीरे से अपनी हथेली मेरी स्कर्ट पर रख दी जो आधी से अधिक मेरी झांगो पर थी और एक टंडी साँस लेकर बोला " तुम तो आज आग का गोला लग रही हो, बिलकुल सेक्स की देवी" मैं हुंह के आलावा कुछ नहीं बोली और चुपचाप उसके हाथ पर अपनी हथेली रख दी. धीरे धीरे वो मेरी झागों को सहलाने लगा और में उसकी हथेली को, आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी, दोनों आग की गर्मी में सुलग रहे थे, दोनों का बदन वासना में जल रहा था, ऐसे में कोई भी सीमा कब चरमरा कर टूट जाये इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. गाड़ी की तेज रफ्तार की तरह ही दोनों के धरकने तेज होती जा रही थीं, उसका हाथ धीरे धीरे झांगो से सरकता हुआ झांगो के बीच जा पहुंचा और मेरा उसकी हथेली को अकेला छोड़ उसकी पैंट की जिप पर. उसकी उंगलिया मेरी पैंटी के अन्दर सरकते सरकते मेरे निचले रेशमी बालों में उलझने लगी और मेरी उंगलिया उसकी पैंट की जिप को नीचे तक खोलने लगी. वो अपनी उँगलियों से मेरे बालों में उलझा रहा और मैं हथेलिया से उसके पैंट से झांगियें समेत बहार निकल आये मांस के उस अल्मोल लोथडे से.

मेरी हथेली और उसके बेमिसाल तने हुए मांस के मूसल के बीच उसकी एकदम महीन झंगिया भी मुझको आखर रही थी, मैं बेताब थी उस नायाब हथोडे को अपनी हथेली मैं पूरा बिना किसी परदे के समेट लेने के लिए और वो बेताब था अपनी मजबूत हतेलियों से मेरी चुम्बकीय रेशमी बालों में छुपे यौवन को रौंदने के लिए. कार अपनी गति से बदती जा रही थी और उसका हाथ अपनी गति से. तभी धीरे से उसने अपनी तर्जनी ऊँगली को मेरे चीड के बीच में फसा दिया, मेरी झांगों की मांसपेशिया सिमटने सिकुड़ने लगी, कभी मैं उसकी ऊँगली के कसाव को और कसते हुए अपनी दोनों झांगो को जोर से दबा लेती तो कभी अपनी मुट्ठी में जोर से उसके उफान खाते हुए लिंग को. मेरी योनी की दीवारे बहार तक भीग गई थीं और उसके शिश्न पर चिपचिपाती लेस से मेरी हथेली चिप्चीपाने लगी थी.
जैसे जैसे उसके लिंग का आकार बड़ने लगा वैसे वैसे कार की रफ्तार धीमी पड़ने लगी. उसने कार एक घने पेड़ के नीचे रोक दी और अपनी दोनों हथेलियों से मेरी लम्बी खूबसूरत गर्दन को पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया. अपने अंगारे से जलते होंठ मेरे गुलाबी होठों पर रख दिए, मैं वासना के अंगारों में सुलगती जोर जोर से उसके शिशिन को खींच कर अपने अकड़ गए स्तनों के बीच दबाने का असफल प्रयास करती रही. मेरे होठों को अपने होठों से वो धीरे धीरे काटने लगा, मेरे पुरे बदन में सिरहन दौड़ने लगी. उसके बदन की आग जैसे सिमट कर उसके लिंग में समां गयी थी, उसने एक झटके से मेरे होठों को मुक्त कर दिया और मेरे मुह को बड़ी ही तेजी से अपने हवा में तैरते लिंग से भर दिया. एक पल को तो मेरी सांसे ही रुक गई पर दुसरे ही पल मैंने उस मांसल लोथडे को ऐसे चाटना चूमना और चुसना शुरू कर दिया जैसे बरसो से गला पानी की एक एक बूँद को तरस रहा हो. उसके बलिष्ट हाथ मेरे नितम्बो को सहला रहे थे और मेरे हाथ उसकी दो नन्ही नन्ही लटकती गोलिओं को. उसने एक एक करके मेरे कपडे शारीर से अलग कर दिए और मै उसकी जींस को उसके घुटनों तक उतार उसकी जंगो में दबी उसकी गोलिओं से लेकर उसके लिंग के सिरे तक को चाटती चूमती रही और वो मेरे उरोजों की छोटी छोटी काली गोलिओं को किसी मासूम बच्चे की तरह चूसता रहा.

नाग की तरह फनफनाते लिंग को कुछ नहीं सूझ रहा था कभी वो मेरी गर्दन से जा टकराता तो कभी होठों से, कभी वो मेरे बालों में उलझ जाता तो कभी हाथों की उन्गलिओं में. शायद उसका उसपर अब बस नहीं चल रहा था, मेरा भी वही हाल था, रिस रिस कर योनी से निकलता सफ़ेद पानी मेरे जघन के बालों को गीला कर रहा था. कब कार से बहार आकर हम उस घने पेड़ के नीचे लेट गए हमें पता ही नहीं चला. उसका तना हुआ लोह्स्तम्भ किसी नाग की तरह मुझे डसने को तयारी कर रह था और मेरी भुर के द्वार किसी अजगर के खुले मुह की तरह उसे निगल जाने को बेताब थे. नाग और अजगर के इस महा युद्घ का अंतिम चरण अपने शबाब पर था, दोनों गुथं गुत्था एक दुसरे से लिपटे, कभी कोई किसी का फन कुचलता तो कभी कोई दुसरे के मुह मे जाकर गुम हो जाता. कुछ देर वासना का ये महा पर्व यूँही चलता रहा और अंततः बिना किसी जीत हार के दोने निढाल कुछ देर वहीँ पड़े रहे.

शाम तक मै घर लौट आयी पर झुकी हुई आँखों ने पापा से सब हाल कह दिया. " सोफिया....., यही नाम है मेरा, .... बेटा अपना ख्याल रखना" पापा ने लगभग कांपती हुई आवाज़ मे कहा और मै वहीँ सुबक सुबक कर रोने लगी. ये सोच सोच कर ही मेरा सर फटा जा रहा था की आखिर कैसे वासना के इस हवन कुंड में सब कुछ स्वाहा हो गया पापा का विशवाश भी और मेरा कौमार्य भी.
 

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