Thursday, December 5, 2013

FUN-MAZA-MASTI कामोन्माद -5

FUN-MAZA-MASTI
 कामोन्माद -5


मैंने और नीचे नज़र डाली। संध्या के दोनों पाँव भी मेहंदी से आलिंकृत थे। दोनों ही टखनों में चांदी की पायलें थीं। उसके पैरों में मैंने ही बिछिया पहनाई थी। उसके दोनों पाँव की निचली परिधि लाल रंग से रंगे हुए थे। मेरी दृष्टि वापस उसके योनि क्षेत्र पर चली गयी। मेरा मन हुआ की उसकी चड्ढी भी उतार दी जाए - मेरे लिंग का स्तम्भन और कसाव बढ़ता ही जा रहा था, और मैं अब संध्या के अन्दर समाहित होने के लिए व्याकुल हुआ जा रहा था। लेकिन मुझे अभी कुछ और देर उसके साथ खेलने का मन हो रहा था। मैंने पलंग पर संध्या के काफी पास अपने घुटने पर बैठ कर, अपना कुरता उतार दिया। अब मैंने सिर्फ चूड़ीदार पजामा और उसके अन्दर स्लिम फिट चड्ढी पहनी हुई थी।

"संध्या ..?" मैंने उसको आवाज़ लगाई।


"जी?" बहुत देर बाद उसने अपना चेहरा ढके हुए ही बोला।

"आपको मेरा एक काम करना होगा ...." मेरे आगे कुछ न बोलने पर उसने अपने चेहरे से हाथ हटा कर मेरी तरफ देखा।

"जी ... बोलिए?" मेरे कसरती शरीर को देख कर उसको और भी लज्जा आ गयी, लेकिन इस बार उसने छुपने का प्रयास नहीं किया।

"अपने हाथ मुझे दीजिये" उसने थोडा सा हिचकते हुए अपने हाथ आगे बढ़ाए, जिनको मैंने अपने हाथों में थाम लिया, और फिर अपने पजामे के कमर के सामने वाले हिस्से पर रख दिया।

"यह पजामा आपको उतारना पड़ेगा। आपके कपडे उतार उतार कर मैं थक गया।" मैंने मुस्कुराते हुए उससे कहा।

उसने थोड़ा सा संकोच दिखाया, लेकिन फिर मेरी बात मान कर इस काम में लग गयी। उसने बहुत सकुचाते हुए मेरे पजामे का नाड़ा ढीला कर दिया और मेरे पजामे को धीरे से सरका दिया। मेरी चड्ढी के अन्दर मेरा लिंग बुरी तरह कस जा रहा था, और अब मेरा मन था की लिंग को मेरी चड्ढी के बंधन से अब मुक्त कर संध्या के नरम, गरम और आरामदायक गहराई में समाहित कर दिया जाए। संध्या भी बड़े कौतूहल से इसी तरफ देख रही थी।

"इसे भी ..." मैंने उसको उकसाया।


संध्या को फिर से घबराहट होने लग गयी .. उसने न में सर हिलाया। यह देख कर मैंने उसके हाथ पकड़ कर जबरदस्ती अपनी चड्ढी की इलास्टिक पर रख दिया और उसको नीचे की तरफ खीच दिया। और इसके साथ ही मेरा अति-उत्तेजित लिंग मुक्त हो गया।

"बाप रे!" संध्या के मुंह से निकल ही गया, "इतना बड़ा!" संध्या की दृष्टि मेरे कस के तने हुए लिंग पर जमी हुई थी।

मेरा शरीर शरीर इकहरा और कसरती है। और उसमें से इतने गर्व से बाहर निकले हुए मेरा लिंग (गाढ़े भूरे रंग का एक मोटा स्तंभ, जिसकी लम्बाई सात इंच और मोटाई संध्या की कलाई से ज्यादा है) देखकर वह निश्चित रूप से घबरा गयी थी। चड्ढी नीचे सरकाने की क्रिया में मेरे लिंग का शिश्नग्रछ्छद स्वयं ही थोड़ा पीछे सरक गया और लिंग के आगे का गुलाबी चमकदार हिस्सा कुछ कुछ दिखाई देने लगा। संध्या को मेरे लिंग को इस प्रकार देखते हुए देख कर मेरा शरीर कामाग्नि से तपने लग गया - संभवतः संध्या भी इसी तरह की तपन खुद भी महसूस कर रही थी।

उसको अचानक ही अपनी कही हुई बात, अपनी स्थिति, और अपने साथ होने वाले क्रिया कलाप का ध्यान हो आया। उसने शर्म से अपना मुंह तकिये में छुपा लिया। लेकिन उसका हाथ मुक्त था - मैंने उसको पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया। मेरा शक सही था - संध्या का हाथ तप रहा था। उसके हाथ को पकडे पकडे ही मैंने अपने लिंग को घेरे में ले लिया और ऐसे ही घेरे हुए अपने हाथ को तीन चार बार आगे पीछे किया, और अपना हाथ हटा लिया। संध्या अभी भी मेरे लिंग को पकडे हुए थी, हाँलाकि वह आगे पीछे वाली क्रिया नहीं कर रही थी। मेरा लिंग का आधा हिस्सा उसके हाथ की पकड़ से बाहर निकला हुआ था। लेकिन इस तरह से सजे हुए कोमल हाथ से घिरा हुआ मेरा लिंग मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।


"जी .... मुझे शरम आती है" उसने अंततः तकिये से अपना चेहरा अलग करके कहा। उसकी आवाज़ पहले जैसी मीठी नहीं लगी - उसमे अब एक तरह की कर्कशता थी - मैंने सोचा की शायद वह खुद भी उत्तेजित हो रही है। लिहाजा मैंने इस तथ्य को नज़रंदाज़ कर दिया।

"अपने पति से शर्म? ह्म्म्म ... चलिए, आपकी शर्म दूर कर देते हैं।" कहते हुए मैंने उसकी चड्ढी को नीचे सरका दी। मेरी इस हरकत से संध्या शरम से दोहरी होकर अपने में ही सिमट गयी। कहाँ मैंने उसकी शरम मिटानी चाही थी, और कहाँ यह तो और भी अधिक शरमा गयी। मुझे उसका शरीर थिरकता हुआ लगा - ठीक वैसे ही जैसे सुबकने या सिसकियाँ लेते समय होता है। मारे गए ..... संभवतः मेरी हरकतों ने उसकी भावनाओ को किसी तरह से ठेस पंहुचा दी थी।
 "संध्या ..."


कोई उत्तर नहीं! मेरे मन में अब उधेड़बुन होने लगी - 'क्या यार! सब कचरा हो गया। एक तो यह एक छोटी सी लड़की है, और ऊपर से इतने धर्म-कर्म मानने वाले परिवार से। इसको आज तक शायद ही किसी लड़के ने छुआ हो। मेरी जल्दबाजी और जबरदस्ती ने सारा मज़ा खराब कर दिया।'

सारा मज़ा सचमुच ख़राब हो चला था - मेरा लिंगोत्थान तेज़ी से घटने लग गया। खैर अभी इस बात की चिंता नहीं थी। चिंता तो यह थी, की जिस लड़की को मैं प्रेम करता हूँ, वह मेरे ही कारण दुखी हो गयी थी। अब यह मेरा दायित्व था की मैं उसको मनाऊँ, और अगर किस्मत ने साथ दिया तो संभवतः सेक्स भी किया जा सके। मैं संध्या के बगल ही लेट गया, और प्यार से उसको अपनी बाहों में भर लिया। थोड़ी देर पहले उसका तपता शरीर अपेक्षाकृत ठंडा लग रहा था। अच्छा, एक बात बताना तो भूल ही गया - मैं पलंग पर अपने बाएं करवट पर लेटा हुआ था, और संध्या मेरे ही तरफ मुंह छुपाए लेटी हुई थी।

"संध्या ... मेरी बात सुनिए, प्लीज!"


उसने मेरी तरफ देखा - मेरा शक सही था, उसकी आँखों में आँसू उमड़ आये थे, और उसके काजल को अपने साथ ही बहाए ले जा रहे थे।


"श्ह्ह्ह्ह .... प्लीज मत रोइये। मेरा आपको ठेस पहुचाने का कोई इरादा नहीं था। आई ऍम सो सॉरी! ऑनेस्ट! मैंने आपको प्रोमिस किया था की मैं आपको किसी भी ऐसी चीज़ को करने को नहीं कहूँगा, जिसके लिए आप रेडी नहीं हैं। शायद इसके लिए आप रेडी नहीं हैं। मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ, और आपको कभी दुखी नहीं देख सकता।"

ऐसी बाते करते हुए मैं संध्या को चूमते, सहलाते और दुलारते जा रहा था, जिससे उसका मन बहल जाए और वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करे।

मेरा मनाना न जाने कितनी देर तक चला, खैर, उसका कुछ अनुकूल प्रभाव दिखने लगा, क्योंकि संध्या ने अपने में सिमटना छोड़ कर अपने बाएँ हाथ को मेरे ऊपर से ले जाकर मुझे पकड़ लिया - अर्ध-आलिंगन जैसा। उसके ऐसा करने से उसका बायाँ स्तन मेरी ही तरफ उठ गया। मेरा मन तो बहुत हुआ की पुनः अपने कामदेव वाले बाण छोड़ना शुरू कर दूं, लेकिन कुछ सोच कर ठहर गया।

"अगर आप चाहें, तो हम लोग आज की रात ऐसे ही लेटे रह कर बात कर सकते हैं।"

उसने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।

"ऐसा नहीं है की मैं आपके साथ सेक्स नहीं करना चाहता - अरे मैं तो बहुत चाहता हूँ। लेकिन आपको दुखाने के एवज़ में नहीं। जब तक आप खुद कम्फ़र्टेबल न हो जाएँ, तब तक मुझे नहीं करना है यह सब ..."

मेरी बातो में सच्चाई भी थी। शायद उसने उस सच्चाई को देख लिया और पढ़ भी लिया।

"नहीं ... आप मेरे पति हैं, और आपका अधिकार है मुझ पर। और हम भी आपको बहुत प्यार करते हैं और आपका दिल नहीं दुखाना चाहते। मैं डर गयी थी और बहुत नर्वस हो गयी थी।" उसकी आँखों से अब कोई आंसू नहीं आ रहे थे।

'सचमुच कितनी ज्यादा प्यारी है यह लड़की!' मैंने प्रेम के आवेश में आकर उसकी आँखें कई बार चूम ली।

"आई लव यू सो मच! और इसमें अधिकार वाली कोई बात नहीं है। हम दोनों अब लाइफ पार्टनर हैं। मैं आपके साथ कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता हूँ।"

"नहीं .......... आपको मालूम है की मैंने कभी शादी के बारे में सोचा ही नहीं था। सोचती थी, की खूब पढ़ लिख कर माँ, पापा और नीलम को सहारा दूँगी। माँ और पापा बहुत मेहनत करते हैं, लेकिन यहाँ पहाड़ो में उस मेहनत का फल नहीं मिलता। ...... लेकिन, फिर आप आये - और मेरी तो सुध बुध ही खो गयी। सब कुछ इतना जल्दी हुआ है की मैं खुद को तैयार ही नहीं कर सकी ..."

मैंने समझते हुए कहा, "संध्या, मैंने आपसे पहले भी कहा है की मैं आपको पढने लिखने से नहीं रोकूंगा। मैं तो चाहता हूँ की आप अपने सारे सपने पूरे कर सकें। बस, मैं उन सारे सपनो का हिस्सा बनना चाहता हूँ।"

संध्या ने अपनी झील जैसी गहरी आँखों से मुझे देखा - बिना कुछ बोले। उसने अपनी उंगली से मेरे गाल को हलके से छुआ - जैसे छोटे बच्चे जब किसी नयी चीज़ को देखते हैं, तो उत्सुकतावश उसको छूते हैं। "आपसे एक बात पूछूँ?" आखिरकार उसने कहा।

"हाँ .. पूछिए न?"


"आपके जीवन में बहुत सी लड़कियां आई होंगी? ... देखिये सच बताइयेगा!"

"हाँ ... आई तो थीं। लेकिन मैंने उनके अन्दर जिस तरह की बेईमानी और अमानवता देखी है, उससे मेरा स्त्री जाति से मानो विश्वास ही उठ गया था। शुरू शुरू में मीठी मीठी बाते वाली लड़कियों की हकीकत पर से जब पर्दा हटता है, तो दिल टूट जाता है। फिर मैंने आपको देखा ... आपको देखते ही मेरे दिल को ठीक वैसे ही ठंडक पहुंची, जैसे धूप से बुरी तरह तपी हुई ज़मीन को बरसात की पहली बूंदो के छूने से पहुंचती होगी। आपको देख कर मुझे यकीन हो गया की आप ही मेरे लिए बनी हैं - और आपका साथ पाने के लिए मैं अपनी पूरी उम्र इंतज़ार कर सकता था।" मेरे बोलने का तरीका और आवाज़ बहुत ही भावनात्मक हो चले थे।

यह सब सुन कर संध्या ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में ले लिया और मेरे होंठो पर एक छोटा सा मीठा सा चुम्बन दे दिया।

"आई लव यू ...." उसने बहुत धीरे से कहा, ".... मैं आपसे एक और बात पूछूं? .... आपने ... आपने कभी .... पहले भी .... आपने कभी सेक्स किया है?" संध्या ने बहुत हिचकिचाते हुए पूछा।

"नहीं ... मैंने कभी किसी के साथ सेक्स नहीं किया।"
 यह बात आंशिक रूप से सच थी - ऐसा नहीं है की मैंने मेरी भूतपूर्व महिला मित्रों के साथ किसी भी तरह का कामुक सम्बन्ध नहीं बनाया था। मेरा यह मानना था की यदि किसी चीज़ में समय और धन का निवेश करो, तो कम से कम कुछ ब्याज़ तो मिलना ही चाहिए। इसलिए, मैंने कम से कम उन सभी के स्तनों का मर्दन और चूषण तो किया ही था। एक के साथ बात काफी आगे बढ़ गयी थी, तो उसके दोनों स्तनों के बीच में अपने लिंग को फंसा कर मैथुन का आनंद भी उठाया था, और एक अन्य ने मेरे लिंग को अपने मुंह में लेकर मुझे परम सुख दिया था। लेकिन कभी भी किसी भी लड़की के साथ योनि मैथुन नहीं किया।
 मैंने कहना जारी रखा, "...... कुछ एक के साथ मैं क्लोस था, लेकिन उनके साथ भी ऐसा कुछ नहीं किया है। मेरा यह मानना है की फर्स्ट-टाइम सेक्स को एक स्पेशल दिन और एक स्पेशल लड़की के लिए बचा कर रखना चाहिए।"


........... संध्या चुप रही ... लेकिन उसके चेहरे पर एक गर्व का भाव मुझे दिखा।


"और मैं सोच रहा था की वह स्पेशल दिन आज है .... क्या मैं सही सोच रहा हूँ?" मैंने अपनी बात जारी रखी।


संध्या ने कुछ देर सोचा और फिर धीरे से कहा, "जी .....? हाँ ... लेकिन .. लेकिन मुझे लगता नहीं की 'ये' मेरे अन्दर आ पायेगा।"


"वह मुझ पर छोड़ दो ... बस यह बताइए की क्या हम आगे शुरू करें ..?" मैंने पूछा, तो उसने सर हिला कर हामी भरी।


मेरा मन ख़ुशी के मारे नाच उठा। बीवी तो तैयार है, लेकिन मुझे सावधानी से आगे बढ़ना पड़ेगा। इसके लिए मुझे इसके सबसे संवेदनशील अंग को छेड़ना पड़ेगा, जिससे यह खुद भी उतनी कामुक हो जाए की मना न कर सके। इसके लिए मैंने संध्या के स्तनों पर अपना दाँव फिर से लगाया। जैसा की मैंने पहले भी बताया है की संध्या के स्तन अभी भी छोटे थे - मध्यम आकार के सेब जैसे और उन पर गहरे भूरे रंग के अत्यंत आकर्षक स्तनाग्र थे। वाकई उसके स्तन बहुत प्यारे थे .... खास तौर पर उसके निप्पल्स। इतने प्यारे और स्वादिष्ट, जैसे कस्टर्ड भरी कटोरी पर चेरी सजा दी गयी हो। उसके स्तनों को अगर पूरी उम्र भर चूसा और चूमा जाए, तो भी कम है।


अतः मैंने यही कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया। मैंने पहले संध्या के बाएं निप्पल को अपनी जीभ से कुछ देर चाटा, और फिर उसको मुंह में भर लिया। संध्या के मुह से हलकी सिसकारी निकल पड़ी। मैं बारी बारी से उसके दोनों स्तनों को चूसता जा रहा था। जब मैं एक स्तन को अपने होंठो और जीभ से दुलारता, तो दूसरे को अपनी उँगलियों से। साथ ही साथ मैंने अपने खाली हाथ को संध्या की योनि को टटोलने भेज दिया। संध्या के समतल पेट से होते ही मेरा हाथ उसकी योनि स्थल पर जा पहुंचा। उसकी योनि पर बाल तो थे, लेकिन वह अभी घने बिलकुल भी नहीं थे। योनि पर हाथ जाते ही कुछ गीलेपन का एहसास हुआ। कुछ देर तक मैंने उसकी योनि के दोनों होंठों, और उसके भगनासे को सहलाया, और फिर अपनी उंगली संध्या की योनि में धीरे से डाल दी। मेरे ऐसा करते ही संध्या हांफ गयी। उंगली बस एक इंच जितनी ही अन्दर गयी होगी, लेकिन उसके यौवन का कसाव इतना अधिक था, की संध्या को हल्का सा दर्द महसूस हुआ। उसके गले से आह निकल गयी।

मैंने अपनी उंगली रोक ली, लेकिन उसको योनि से बाहर नहीं निकलने दिया। साथ ही साथ उसके स्तनों का आनंद उठाता रहा। कोई एक दो मिनट में मैंने महसूस किया की संध्या अब तनाव-मुक्त हो गयी है। मैंने धीरे धीरे अपनी उंगली को उसकी योनि के अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया। इन सभी क्रियाओं का सम्मिलित असर यह हुआ की संध्या अब काफी निश्चिन्त हो गयी थी और उसकी योनि कामरस की बरसात करने लगी। मेरी उंगली पूरी तरह से भीग चुकी थी और आसानी से अन्दर बाहर हो पा रही थी।

उंगली अन्दर बाहर होते हुए मुश्किल से दो मिनट हुए होंगे की इतने में ही संध्या ने पहली बार चरमसुख प्राप्त कर लिया। उसकी सांस एक पल को थम गयी, और जब आई तो उसके गले से एक भारी और प्रबल आह निकली। मुझे पक्का यकीन है की बाहर अगर कोई बैठा हो या जाग रहा हो, तो उसने यह आह ज़रूर सुनी होगी। फिर वह निढाल होकर बिस्तर पर गिर गयी और गहरी गहरी साँसे भरने लगी। मैंने उंगली की गति धीमी कर दी, जिससे उसकी योनि का उत्तेजन ख़तम न हो।

"जस्ट रिलैक्स! अभी ख़तम नहीं हुआ है। असली काम तो बाकी है।" मैंने प्यार से बोला।

लगता है अभी अभी मिले आनंद से वह प्रोत्साहित हो गयी थी, लिहाजा उसने हाँ में सर हिलाया।
 मैं उठा कर बैठ गया, और थोड़ा सुस्ताने लगा। थोड़ी देर के आराम के बाद मैंने उसकी दोनों जांघो को फैला दिया, जिससे उसकी योनि के होंठ खुल गए थे। उसकी योनि के बाहर का रंग उसके निप्पल के जैसा ही था, लेकिन योनि के अन्दर का रंग सामन मछली के रंग के जैसा था। मेरा मन हुआ की कुछ देर यहीं पर मुख-मैथुन किया जाए, लेकिन मेरी खुद की दशा ऐसी नहीं थी की इतनी देर तक अपने आपको सम्हाल पाता। मुझे यह भी डर लग रहा था की कहीं शीघ्रपतन जैसी समस्या न आ खड़ी हो। मेरा लिंग अब वापस खड़ा हो चुका था, और अपने गंतव्य को जाने को व्याकुल हो रहा था। एक गड़बड़ थी - मेरा लिंग उसकी योनि के मुकाबले बहुत विशाल था, और अगर मैं जरा सी भी जबरदस्ती करता, या फिर अगर लिंग अन्दर डालने में कोई गड़बड़ हो जाती तो यह लड़की पूरी उम्र भर मुझसे डरती रहती।


मेरे पास अपने लिंग को चिकना करने के लिए कुछ भी नहीं था ..... 'एक सेकंड ... मैं अपने लिंग को ना सही, लेकिन उसकी योनि को तो अच्छे से चिकना कर सकता हूँ न!' मेरे दिमाग में अचानक ही यह विचार कौंध गया।

मैंने उसकी योनि पर हाथ फिराया - संध्या की सिसकारी छूट पड़ी। उसके शरीर के सबसे गुप्त और महफूज़ स्थान में आज सेंध लगने जा रही थी। यहाँ छूना कितना आनंददायक था - कितना कोमल .. कितना नरम! मैं वासना में अँधा हुआ जा रहा था .. मैंने उसके भगोष्ठ के होंठों को अपनी उँगलियों से पुनः जांचना आरम्भ कर दिया। मैंने उसकी योनि से रस निकलता हुआ देखा, और समझ गया की अब यह सही समय है।

मैंने बिस्तर पर लेटी संध्या के नग्न रूप का पुनः अवलोकन किया। उसकी आँखें बंद थी, लेकिन लिंग प्रवेश की स्थिति में होने वाली पीड़ा की घबराहट में उसके शरीर की विभिन्न माँस-पेशियाँ कसी हुई थी। उसको पूरी तरह शांत और शिथिल करने के लिए मैंने उसके कान को चूमना आरम्भ किया। ऐसे करते करते, धीरे धीरे उसकी ठोढ़ी की तरफ बढ़ते हुए मैं उसके होंठो को चूम रहा था, और गले से होते हुए शरीर के ऊपरी भाग को चूमना और हलके हलके चाटना जारी रखा। कुछ देर ऐसे ही करते हुए, इस समय मैं संध्या के निप्पल्स को चूम और चूस रहा था। संध्या की आहें छूट पड़ीं और मेरे होंठो पर एक मुस्कान आ गई। चूसते चूसते मैंने उसके स्तन पर दांत से हल्का सा काट लिया और उसकी सिसकी निकल गयी। संध्या अब मूड में आने लग गयी थी - उसकी साँसे भारी हो गयी थी, बढ़ते रक्त-संचालन के कारण उसके गोरे शरीर में लालिमा आ गयी थी। लेकिन अभी मैं उसको अभी छोड़ने के मूड में नहीं था, और लगातार उसके शरीर के साथ लगातार छेड़-छाड़ करता जा रहा था।


संध्या को चूमते, चाटते और छेड़ते हुए जब मैं उसके योनि क्षेत्र पर पहुंचा तो उसने योनि द्वार को दो तीन बार चाटा और फिर उसकी जांघो के अंदरूनी हिस्से को चूमने और चाटने लगा। संध्या वापस अपनी उत्तेजना के चरम बिंदु पर पहुच चुकी थी। मैं कभी उसकी जांघों, तो कभी उसकी योनि को चूमता-काटता जा रहा था। संध्या का शरीर अब थर थर कांप रहा था और साँसे भारी हो गयी। लेकिन फिर भी मैं अगले दो तीन मिनट तक उसकी योनि के साथ खिलवाड़ करता रहा। उसकी आँखें अब बंद थी और शरीर बुरी तरह थरथरा रहा था।


यह मेरे लिए सकते था की अब वाकई सही समय आ गया है। मैंने उसकी टांगो को फैला दिया। उसकी योनि का खुला हुआ मुख काम-रस से भीगने के कारण चमक रहा था।


"जस्ट ट्राई टू रिलैक्स! ओके?" कह कर मैंने एक हाथ से उसकी योनि को थोडा और फैलाया और अपने लिंग को उसकी योनि मुख से सटा कर धीरे-धीरे आगे की तरफ जोर लगाया, जिससे मेरा लिंग अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा। मेरे लिंग का सुपाड़ा, लिंग के बाकी हिस्सों से बड़ा है, अतः संध्या को सबसे अधिक पीड़ा शुरू के एक दो इंच से ही होनी चाहिए थी। लेकिन यह लड़की अभी भी छोटी थी, और उसके शरीर की बनावट परिपक्वता की तरफ भी अग्रसर थी। यह बात मुझसे छिपी हुई नहीं थी। इसलिए मैंने सुपाड़े का बस आधा हिस्सा ही अन्दर डाला और उसकी योनि से निकलते रस से उसको अच्छी तरह से भिगो लिया। सबसे खतरनाक बात यह थी की मुझमें अब इतना धैर्य नहीं बचा हुआ था। मुझे लग रहा था की अगर कुछ देर मैंने यह क्रिया जारी रखी तो इसी बिस्तर पर स्खलित हो जाऊँगा। न जाने क्यों, संध्या के अन्दर अपना वीर्य डालना मुझे इस समय दुनिया का सबसे ज़रूरी कार्य लग रहा था।

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