Thursday, December 5, 2013

FUN-MAZA-MASTI कामोन्माद -4

FUN-MAZA-MASTI 
 कामोन्माद -4

बरात के नाम पर मेरे दो बहुत ही ख़ास दोस्त आ सके। खैर, मुझे ऐसे तमाशों की आवश्यकता भी नहीं थी। विवाह सम्बन्धी क्रियाविधियां और संस्कार, शादी के दो दिन पहले से ही प्रारंभ हो गयी - ज्यादातर तो मुझे समझ ही नहीं आयीं, की क्यों की जा रही हैंपारंपरिक बाजे गाजे, संगीत इत्यादि कभी मनोरम लगते तो कभी बेहद चिढ़ पैदा करने वाले! कम से कम एक दर्जन, लम्बी चौड़ी विवाह रीतियाँ संपन्न हुईं, तब कहीं जाकर मुझे संध्या को अपनी पत्नी कहने का अधिकार मिला। यह सब होते होते इतनी देर हो चली थी की मेरा मन हुआ की बस अब जाकर सो जाया जाए। ऐसी हालत में भला कौन आदमी सेक्स के बारे में सोच सकता है! मैंने अपनी घड़ी पर नज़र डाली, देखा अभी तो मुश्किल से सिर्फ दस बज रहे थे - और मुझे लग रहा था की रात के कम से कम दो बज रहे होंगे। शायद पहाड़ों पर रात जल्दी आ जाती है, जिसकी मुझे आदत नहीं थी।

खैर, तो मेरी सुहागरात का समय आ ही गया, और संध्या जैसी परी अब पूरी तरह से मेरी है - यह सोच सोच कर मैं बहुत खुश हो रहा था। हमारे सोने का इन्तेजाम उसी घर में एक कमरे में कर दिया गया था। यह काफी व्यवस्थित कमरा था - उसमे दो दरवाज़े थे और एक बड़ी खिड़की थी। कमरे के बीच में एक पलंग था, जो बहुत चौड़ा नहीं था (मुश्किल से चार फीट चौड़ा रहा होगा), उसपर एक साफ़, नयी चद्दर, दो तकिये और कुछ फूल डाले गए थे। संध्या उसी पलंग पर अपने में ही सिमट कर बैठी हुई थी। संध्या ने लाल और सुनहरे रंग का शादी में दुल्हन द्वारा पहनने वाला जोड़ा पहना हुआ था। मैं कमरे के अन्दर आ गया और दरवाज़े को बंद करके पलंग पर बैठ गया। पलंग के बगल एक मेज रखी हुई थी, जिस पर मिठाइयाँ, पानी का जग, गिलास, और अगरबत्तियां लगी हुई थी। पूरे कमरे में एक मादक महक फैली हुई थी।

'क्या सोच रही होगी ये? क्या इसके भी मन में आज की रात को लेकर सेक्सुअल भावनाएं जाग रही होंगी?' मैं यही सब सोचते हुए बोला -

"संध्या ..?"


"जी"

"आई लव यू ....."

जवाब में संध्या सिर्फ मुस्कुरा दी।

"मैं आपका घूंघट हटा सकता हूँ?" संध्या ने धीरे से हाँ में सर हिलाया।


मैंने धड़कते दिल से संध्या का घूंघट उठा दिया - बेचारी शर्म से अपनी आँखें बंद किये बैठी रही। अपने साधारण मेकअप और गहनों (माथे के ऊपरी हिस्से से होती हुई बेंदी, मस्तक पर बिंदी, नाक में एक बड़ा सा नथ, कानो में झुमके) और केसरिया सिन्दूर लगाई हुई होने पर भी संध्या बहुत सुन्दर लग रही थी - वस्तुतः वह आज पहले से अधिक सुन्दर लग रही थी। उसके दोनों हाथों में कोहनी तक मेहंदी की विभिन्न प्रकार की डिज़ाइन बनी हुई थी, और कलाई के बाद से लगभग आधा हाथ लाल और स्वर्ण रंग की चूड़ियों से सुशोभित था। उसके गले में तीन तरह के हार थे, जिनमे से एक मंगलसूत्र था।

"प्लीज अपनी आँखें खोलो .." मैंने कम से कम तीन चार बार उससे बोला तब कहीं उसने अपनी आँखें खोली। आखें खुलते ही उसको मेरा चेहरा दिखाई दिया।

'क्या सोच रही होगी ये? और क्या सोचेगी? शायद यही की यह आदमी इसका कौमार्य भंग करने वाला है।'

यह सोचकर मेरे होंठों पर एक वक्र मुस्कान आ गयी। शायद उसको मेरे पौरुष, और मेरी आँखों में कामुक विश्वास और संकल्प का आभास हो गया होगा, इसीलिए उसकी आँखें तुरंत ही नीचे हो गयीं।


"में आई किस यू?" मैंने पूछा।

उसने कुछ नहीं बोला।


"ओके। यू किस मी।" मैंने आदेश देने वाली आवाज़ में कहा।

संध्या एक दो सेकंड के लिए हिचकिचाई, फिर आगे की तरफ थोडा झुक कर मेरे होंठो पर जल्दी से एक चुम्बन दिया, और उतनी ही जल्दी से पीछे हट गयी। उसका चेहरा अभी और भी नीचे हो गया।

'भला यह भी क्या किस हुआ' मैंने सोचा और उसके चेहरे को ठुड्डी से पकड़ कर ऊपर उठाया।

कुछ पल उसके भोले सौंदर्य को देखता रहा और फिर आगे की ओर झुक कर उसके होंठो को चूमना शुरू कर दिया। यह कोई गर्म या कामुक चुम्बन नहीं था - बल्कि यह एक स्नेहमय चुम्बन था - एक बहुत ही लम्बा, स्नेहमय चुम्बन। मुझे समय का कोई ध्यान नहीं की यह चुम्बन कब तक चला। लेकिन अंततः हमारा यह पहला चुम्बन टूटा। 
 लेकिन, बेचारी संध्या का हाल इतने में ही बहुत बुरा हो चला था - वह बुरी तरह शर्मा कर कांप रही थी, उसके गाल इस समय सुर्ख लाल हो चले थे और साँसे भारी हो गयी थी। संभवतः यह उसके जीवन का पहला चुम्बन रहा होगा। उसकी नाक का नथ हमारे चुम्बन में परेशानी डाल रहा था, इसलिए मैंने आगे बढ़कर उसको उतार कर अलग कर दिया। ऐसा करने हुए मुझे सहसा यह एहसास हुआ की थोड़ी ही देर में इसी प्रकार संध्या के शरीर से धीरे धीरे करके सारे वस्त्र उतर जायेंगे। मेरे मन में कामुकता की एक लहर दौड़ गयी।

"संध्या?"

"जी?"

"आपको इंग्लिश आती है?"


"थोड़ी थोड़ी ... आपने क्यों पूछा?"


"आई वांट टू सी यू नेकेड" मैंने उसके कान के बहुत पास आकर फुसफुसाती आवाज़ में कहा।

"जी?" उसकी बहुत ही भयभीत आवाज़ आई।


"मैं आपको बिना कपड़ो के देखना चाहता हूँ" मैंने वही बात हिन्दी में दोहरा दी, और उसको आँखें गड़ा कर देखता रहा। वह बेचारी घबराहट और शर्म के मारे कुछ भी नहीं बोल पा रही थी। मैंने कहना जारी रखा, "मैं आपके सारे कपड़े उतार कर, आपके निप्पल्स चूमूंगा, आपके बम और ब्रेस्ट्स को दबाऊँगा और फिर आपके साथ ज़ोरदार सेक्स करूंगा ..."

मेरी खुद की आवाज़ यह बोलते बोलते कर्कश हो गयी, और मेरे शिश्न में उत्थान आना शुरू हो गया

"ज्ज्ज्जीईई .. म्म्म मुझे बहुत डर लग रहा है" बड़े जतन से वह सिर्फ इतना ही बोल पाई।


"आई कैन अंडरस्टैंड दैट डिअर। मैं आपको किसी भी ऐसी चीज़ को करने को नहीं कहूँगा, जिसके लिए आप रेडी नहीं हैं"


संध्या ने समझते हुए बहुत धीरे से सर हिलाया। कुछ कहा नहीं।

मैंने उसकी लाल गोटेदार साड़ी का पल्लू उसकी छाती से हटा दिया। लाल रंग के ही ब्लाउज में कैद उसके युवा स्तन, उसकी तेज़ी से चलती साँसों के साथ ही ऊपर नीचे हो रहे थे। मेरा बहुत मन हुआ की उसके कपड़े उसके शरीर से चीर कर अलग कर दूँ, लेकिन मेरे अन्दर उसके लिए प्यार और जिम्मेदारी के एहसास ने मुझे ऐसा करने से रोक लिया। लिहाज़ा, मेरी गति बहुत ही धीमे थी। वैसे मेरे खुद के हाथ कांप रहे थे, लेकिन मैंने यह निश्चय किया था की इस परम सुंदरी परी को आज मैं प्यार कर के रहूँगा।

मैंने उसकी साड़ी को उसकी कमर में बंधे पेटीकोट से जैसे तैसे अलग कर दिया और उसके शरीर से उतार कर नीचे फेंक दिया। इस समय वह सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में बैठी हुई थी। मेरी अगली स्वाभाविक पसंद (उतारने के लिए) उसका ब्लाउज थी। कितनी ही बार मैंने कल्पना कर कर के सोचा था की मेरी जान के स्तन कैसे होंगे, और इस समय मुझे बहुत मन हो रहा था की उसके स्तनों के दर्शन हो ही जाएँ। मैं कांपते हुए हाथ से उसके ब्लाउज के बटन धीरे धीरे खोलने लगा। करीब तीन बटन खोलने के बाद मुझे अहसास हुआ की उसने अन्दर ब्रा नहीं पहनी है।

"आप ब्रा नहीं पहनती?" मैंने बेशर्मी से पूछ ही लिया।

संध्या घबराहट और शर्म के मारे कुछ भी नहीं बोल पा रही थी। उसका चेहरा नीचे की तरफ झुका हुआ था, मानो वह उसके ब्लाउज के बटन खोलते मेरे हाथों को देख रही हो। उसकी तेज़ी से चलती साँसे और भी तेज़ होती जा रही थी। उसने उत्तर में सिर्फ न में सर हिलाया - और वह भी बहुत ही हलके से। खैर, यह तो मेरे लिए अच्छा था - मुझे एक कपड़ा कम उतारना पड़ता। मैंने उसकी ब्लाउज के बचे हुए दोनों बटन भी खोल दिए। उसकी त्वचा शर्म या उत्तेजना के कारण लाल होती जा रही थी। मैंने अंततः उसके ब्लाउज के दोनों पट अलग कर दिए, और मुझे उसके स्तनों के दर्शन हो गए।

संध्या के स्तन अभी भी छोटे थे - मध्यम आकार के सेब जैसे, और ठोस। उसकी त्वचा एकदम दोषरहित थी। उन पर गहरे भूरे रंग के अत्यंत आकर्षक स्तनाग्र (निप्पल्स) थे, जिनका आकार अभी छोटा लग रहा था। महिलाओं के स्तन बढती उम्र, मोटापे, अक्षमता और गुरुत्व के मिले जुले कारणों से बड़े हो जाते हैं, और कई बार दुर्भाग्यपूर्ण तरीक से नीचे लटक से जाते हैं। लेकिन संध्या इन सब प्रभावों से दूर, अभी अभी यौवन की दहलीज़ पर आई थी। लिहाज़ा, उसके स्तनों पर गुरुत्व का कोई प्रभाव नहीं था, और उसके निप्पल्स भूमि के सामानांतर ही सामने की ओर निकले हुए थे। संध्या के स्तन उसकी तेज़ी से चलती साँसों के साथ ही ऊपर नीचे हो रहे थे। यह सारा नज़ारा देख कर मुझे नशा सा आ गया - वाकई इन स्तनों को किसी भी ब्रा की ज़रुरत नहीं थी।

"संध्या ... यू आर सो प्रीटी! आप मेरे लिए दुनिया की सबसे सुन्दर लड़की हैं!" यह सब कहना स्वयं में ही कितना उत्तेजनापूर्ण था - खास तौर पर तब, जब यह सारी बातें सच थी।

मुझसे अब और रहा नहीं जा रहा था। उसके जवान, ठोस स्तनों पर मैंने अपने मुंह से हमला कर दिया। मेरा सबसे पहला एहसास उसके स्तनों की महक का था - आड़ू जैसी महक! उसके चिकने निप्पल्स पहले मुलायम थे, लेकिन मेरे चूसे और चुभलाए जाने से कड़े होते जा रहे थे। मेरे इस क्रिया कलाप का सकारात्मक असर संध्या पर भी पड़ रहा था, क्योंकि उसके हाथों ने मेरे सर को उन्मादित होकर पकड़ लिया था। मैंने कुछ देर तक उसके स्तनों को ऐसे ही दुलार किया - लेकिन इतना होते होते संध्या और मेरा, दोनों का ही, गला एकदम शुष्क हो गया। मैंने रुक कर पास ही रखे गिलास से पानी पिया और संध्या को भी पिलाया। उसके बाद मैंने उसके ब्लाउज को उसके शरीर से अलग कर के ज़मीन पर फेंक दिया। ऐसा होते ही मेरी जान अपने में ही सिमट गयी और अपने हाथो से अपनी नग्नावस्था को छुपाने की कोशिश करने लगी। चूड़ियों और मेहंदी से भरे हाथो से ऐसा करते हुए वह और भी प्यारी लग रही थी। मैंने उसके हाथ हटाने की कोशिश नहीं की, लेकिन उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर उसके होंठों पर एक गहरा चुम्बन दिया, और फिर सिलसिलेवार तरीके से चुम्बनों की बौछार कर दी।

शुरू में उसका शरीर, होंठ, चेहरा - सब कुछ - एकदम से कड़ा हो गया, शायद नर्वस होने से ... लेकिन चुम्बनों की संख्या बढ़ते रहने से वह भी धीरे धीरे शांत होने लगी। उसने मेरी आँखों में देखा, और फिर आँखें बंद कर के चुम्बन में यथासंभव सहयोग देने लगी। उसके होंठ गर्म और मुलायम थे - एकदम शानदार! चुम्बन करते हुए मैं अपनी जीभ को उसके मुंह में डालने का प्रयास करने लगा। संभवतः उसको यह बात समझ में आ गयी - उसने अपने होंठ ज़रा से खोल दिए। मैंने बहुत सावधानीपूर्वक अपनी जीभ उसके मुंह में प्रविष्ट कर दी। एक बात और हुई, उसने अपने हाथ अपने सीने से हटा कर, मुझे अपनी बाहों में भर लिया। संध्या के मुंह का स्वाद बहुत अच्छा था - हलकी सी मिठास लिए हुए। मैं बयान नहीं कर सकता की यह अनुभव कितना बढ़िया था। यह एक कामुक चुम्बन था, जिसके उन्माद में अब हम दोनों ही बहे जा रहे थे। मेरे हाथ उसके चेहरे से हट कर उसकी कमर पर चले गए और वहां से धीरे धीरे उसके नितम्बों पर। मेरी उत्तेजना मुझे संध्या को अपनी तरफ भींचने को मजबूर कर रही थी। मैंने उसको अपनी तरफ खीच लिया - मुझे अपने सीने पर संध्या के स्तनों का एहसास होने लगा। इस तरह से संध्या को चूमना और भी सुखद लग रहा था।

खैर, ऐसे ही कुछ देर चूमने के बाद हम दोनों के मुंह अलग हुए। मैंने संध्या की कमर पर नज़र डाली - उसके पेटीकोट का नाड़ा ढूँढने के लिए। नाड़ा उसकी कमर से बाएं तरफ था, जिसको मैंने तुरंत ही खीच कर ढीला कर दिया। अब पेटीकोट उसके शरीर पर नाम-मात्र के लिए ही रह गया। इसलिए मैंने उसको उतारने में ज़रा भी देर नहीं की। लेकिन मेरी इस जल्दबाजी में संध्या बिस्तर पर चित होकर गिर गयी। पेटीकोट के उतरते ही उसने अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया - शायद अब उसको अपने स्तनों के प्रदर्शन पर उतना ऐतराज़ नहीं था, लेकिन ऐसी नग्नावस्था में वह मुझे अपना चेहरा नहीं दिखाना चाहती थी। मेरी आशा के विपरीत, संध्या ने चड्ढी पहनी हुई थी। उसका रंग काला था। उसमे कुछ भी उल्लेखनीय नहीं था - बस रोज़मर्रा पहनी जाने वाली सामन्य सी चड्ढी थी - हाँ एक बात है - चड्ढी नयी थी। सामने से देखने पर उसकी चड्ढी अंग्रेजी के "V" जैसी, कमर की तरफ फैलाव लिए और वहां, जहाँ पर उसकी योनि थी, एक सौम्य उभार लिए हुए थी। संध्या के नितम्ब स्त्रियोचित फैलाव लिए हुए प्रतीत होते थे, लेकिन उसका कारण यह था की उसकी कमर पतली थी। उसके शरीर का आकर वस्तुतः एक कमसिन, छरहरी और तरुण लड़की जैसा था।



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