Friday, December 6, 2013

एक से भली दो; दो से भली तीन

FUN-MAZA-MASTI

 एक से भली दो; दो से भली तीन

यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है। आप इसका पूरा मज़ा उठा सकें इसलिए इसमें कुछ काल्पनिक घटनाएं भी जोड़ी हैं लेकिन पात्र उतने ही हैं। अधिकतर दृश्य ज्यूँ के त्यूं है। बस आप यह समझ लें कि लगभग नब्बे प्रतिशत कहानी सत्य है.
एक से भली दो; दो से भली तीन



जी हाँ. आप मेरी कहानी का शीर्षक पढ़कर चौंक गए होंगे. लेकिन यह सत्य है. मैं आज से लगभग दो महीने पहले मुंबई पी एच डी करने के लिए आया था. मैं बीस साल का हूँ और दिखने में इतना खुबसूरत नहीं लेकिन मेरा जिस्म काफी भरा हुआ है. मेरे एक दूर के रिश्ते के चाचा यहाँ रहते हैं. मैं उन्ही के यहाँ रह रहा हूँ. उनके तीन बेडरूम का फ्लैट है बांद्रा में. उनकी पत्नी शीला की उम्र चालीस की है लेकिन बहुत ही खुबसूरत हैं और जिस्म भी अभी तक मजबूत है. उसके स्तनों का उभार जबरदस्त है. उनकी दो बेटियाँ है अंजना और मंजुला. अंजना बीस की है और मंजुला अठारह साल की. दोनों भी अपनी मां की तरह बला की खुबसूरत है. जिस तरह शीला आंटी की खासियत उसके स्तन है; अंजना की टांगें और जांघें बहुत ही सेक्सी है. मंजुला के होंठ तो जैसे नारंगी की फांक है.

अंजना और मंजुला मुझे छुप छुप कर कई बार देखती रहती है और मुस्कुराती रहती है. कभी कभी दोनों अपने जिस्म के हिस्सों को मुझे दिखने का प्रयास भी करती रहती है.. कई बार मैं भी उन्हें देखकर मुस्कुरा उठता हूँ. मैं इन तीनों को हर रोज नजर बचाकर देखता रहता हूँ.

शीला आंटी अपनी उम्र के हिसाब से काफी तजरुबेकार है. एक दिन उसने मेरी चोरी पकड़ ली. मैंने तुरंत नजरें झुका ली. शीला आंटी ने कुछ नहीं कहा. एक दो दिन शांत रहने के बाद मैंने फिर से उन्हें ताकना शुरू कर दिया. एक दिन मैं अपने कमरे में बैठा पढ़ रहा था. मुझे प्यास लगी तो मैं रसोई में पानी लेने चला गया. शीला आंटी उस वक्त नहाकर बाथरूम से बाहर ही आई थी. उनके कमरे का दरवाजा खुला था. उन्होंने एक तौलिया लपेटा हुआ था. तौलिया उनके स्तनों के आधे भाग को ढंकते हुए शुरू हो रहा था और उनकी जाँघों के उपरी भाग पर ख़त्म हो रहा था. मैं शीला आंटी को देखता ही रह गया. मन ही मन बोला " कौन कहता है ये चालीस साल की है. ये तो पच्चीस की जवान से भी ज्यादा खुबसूरत और गरम है." मैं दरवाजे की ओट से शीला आंटी को ललचाई नज़रों से देखने लगा. अचानक शीला आंटी ने अपना चेहर घुमाया और वो मेरे सामने थी और मैं उनके. मैं तैयार नहीं था की खुद को संभालता. शीला आंटी ने मुझे देखते ही अपनी आँखों में गुस्सा भर लिया और बोली " तुम मानोगे नहीं. तुम्हारी शिकायत तुम्हारे चाचा से करनी पड़ेगी." मैं घबरा गया. मैं जैसे ही पलता शीला आंटी ने मुझे कहा " इधर आओ. कहाँ जा रहे हो." मैं डरते हुए उनके पास गया. मैं जैसे ही उनके करीब पहुंचा उनके स्तनों के उभार ने मुझे भीतर तक हिला दिया. उनके बदन से आ रही खुशबु ने मेरे होश छीन लिए. शीला आंटी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा " तुम्हें इस तरह से देखना अच्चा लगता है ना. लो अब अच्छे से देख लो." शीला आंटी ने तौलिया हटा लिया. उनका गदराया जिस्म मेरे सामने थे. उनके भरी भरकम स्तन जैसे अपने पास आने का निमंत्रण दे रहे थे. उनकी भरी हुई कमर जैसे रस टपका रही थी. उनकी मजबूत जांघें और टाँगे जैसे यह कह रही थी कि इंतज़ार किस बात का . किसी मिठाई की तरह खा जाओ. मैं पागल हो गया. शीला ने तौलिये को वापस लपेटा और बोली " जाओ आज के लिए इतना ही काफी है." मैं चुपचाप वापस अपने कमरे में आ गया.

सारी रात मैं सो नहीं पाया. बार बार शीला आंटी का शारीर मेरे सामने आता रहा. मेरी अंडरवेअर अचानक ही गीला हो गया.

अगले दिन मैं शाम को जब कॉलेज से घर लौटा तो शीला आंटी घर पर अकेली ही थी. अंजना और मंजुला की कॉलेज देर शाम को छुटती है. मैं शीला आंटी से नजरें नहीं मिला पाया और अपने कमरे में आ गया. कुछ ही देर बाद शीला आंटी मेरे कमरे में आई. वो मेरे सामने की कुर्सी पर बैठ गई और मुझे देखकर मुस्कुराने लगी. मैं घबरा उठा. शीला आंटी बोली " क्या हुआ? इस तरह उदास क्यूँ हो? आज तुम्हरी इच्छा पूरी नहीं हुई इसलिए?" मैं कुछ ना बोल सका और अब तो ज्यादा घबराने लगा. तभी मैंने देखा की शीला आंटी ने अपनी साड़ी के पल्लू की अपने सीने से हटा इया और अपने ब्लाउस के बटन खोलने लगी. कुछ ही पलों में उनके स्तन उनकी चोली में से बाहर झाँकने लगे. मेरी आँखें विश्वास नहीं कर पा रही थी. शीला आंटी ने फिर कहा " इतना ही देखोगे ! आओ इधर आओ." मैं घबराते हुए उठा और उनके करीब चला गया. मेरी साँसें तेज चलने लगी. शीला आंटी ने मुझे अपनी चोली के हुक दिखाते हुए कहा " इन्हें खोलो." मैंने दोनों हुक खोल दिए. एक बार फिर शीला आंटी के दोनों स्तन मेरे सामने थे. इस बार वो मेरे बहुत ही करीब थे. शीला आंटी मेरे एकदम करीब आ गई और मुझे अपने सीने से लगा लिया. उनके स्तनों के उभार को मैं अब महसूस कर रहा था. मुझे लगा जैसे मैं किसी रबर के गद्दे को दबा रहा हूँ. शीला आंटी ने मुझे करीब दो मिनट तक भींचे रखा. मैं नशे में आ गया. अचनका शीला ने मुझे अपने से अलग करते हुए कहा " चलो तुम बाहर चले जाओ. अंजू और मंजू आती ही होगी. आज बस इतना ही." मैं बेकाबू हो गया था लेकिन मेरे पास और कोई दुसरा रास्ता नहीं था. मैं अनमने मन से बाहर आ गया.

रात को खाना खाते वक्त शीला आंटी ने मुझसे नजर मिलते ही एक मुस्कुअराहत फेंकी. मैं समझ गया कि अब रास्ता साफ़ है और कल भी मुझे ये नजारा नसीब होनेवाला है.

अगले दिन मैं जैसे ही कॉलेज से लौटा मैंने देखा कि शीला आंटी मेरे ही कमरे में बैठी हुई है, हम दोनों एक दुसरे को देख मुस्कुरा दिए. शीला आंटी ने मुझे अपने पास आने का इशारा किया और अपनी साड़ी का पल्लू सीने से हटा दिया. मैं समझा गया. मैंने तुरंत ब्लाउस के बटन खोले और फिर चोली के हुक भी खोल दिए. अब शीला आंटी ने मेरी शर्त उतार दी और फिर मेरा बनियान भी उतार दिया. फिर अचानक उन्होंने मुझे अपने सीने ले गा लिया. मैं तो जैसे आज जन्नत में पहुँच गया था. अपनी जिन्दगी में पहली बार किसी औरत के सीने से अपना सीना स्पर्श करने का मौका मिला था. मैंने भी शीला आंटी को कसकर दबा दिया. अब उन्हें भी मजा आने लगा था. हम दोनों मेरे पलंग कि तरफ बढे और शीला ने मुझे पलंग पर गिरा दिया और फिर खुद भी मुझसे लिपट गई. हम दोनों लगभग दस मिनट तक आपस में लिपटे रहे. फिर अंजू मंजू का ख़याल आते ही शीला आंटी अपने कमरे में लौट गई. अब यह सिलसिला रोज चलने लगा. लेकिन सिर्फ उपरी कपडे उतारकर एक दुसरे को गले लगाने तक ही.

अब सारे दिन शीला आंटी भी मेरे कॉलेज से लौटने का इंतज़ार करती और मैं भी कॉलेज के आखिरी समय में शीला आंटी से मिलने के सपने देखने लग जाता. उधर अंजना और मंजुला भी मुझे अपनी और आकर्षित करने कि बहरापुर कोशिश करने लगी थी. एक दिन तो अंजना ने तो हद ही कर दी. वो नहाने के बाद रात के वक्त सोते वक्त पहनने वाला हाल्फ पन्त पहनकर मेरे कमरे में अपनी कोई किताब खोजने का बहाना करते हुए आ गई. मैं उसे देखते ही एक बार तो अपने होश खो बैठा. उसकी टांगें चमक रही थी. एकदम चिकनी और सपाट. उसने मुझे ललचाने कि कोशिश भी कि लेकिन शीला आंटी का ख़याल आते ही मैंने अपनी नजरें दूसरी तरफ घुमा ली. अंजना गुस्से से कमरे से बाहर निकल गई.

शीला आंटी के पति एक सप्ताह के लिए अहमदाबाद गए हुए थे. जिस दिन वे अहमदाबाद गए उस दिन जब मैं कॉलेज से लौटा तो देखा कि शीला आंटी कि आँखों में कुछ अलग तरह की चमक थी. मैं समाजः गया की शीला आंटी अब हम दोनों को सवेरे मिलने वाले खली समय के बारे में सोचकर खुश हो रही होगी. मैंने तेजी से अपनी कमीज और बनियान निकला दिया. इसके बाद मैंने शीला आंटी का ब्लाउस खोला और फिर आखिर में चोली. हमेशा की तरह हम दोनों एक दुसरे से लिपट गए. हम दोनों कुछ इस तरह से लिपटे थे कि हमें समय का पता नहीं चला और हम दोनों ही यह भूल गए कि अंजना और मंजुला के आने का समय हो चुका है. आज विशेष रूप से शीला आंटी बेकाबू हो गई थी. मैंने एक दो बार खुद को उनसे अलग करने कि कोशिश भी की लेकिन वो असफल रही. जिस बार का मुझे डर था वो ही हुआ. अंजना लौट आई. वो सीधे मेरे कामे की तरफ ही आई. उसने जैसे ही मेरे कमरे का दरवाजा धीरे से खोला तो वो मुझे और शीला आंटी को इस हालत में एक दुसरे से लिप्त हुआ देखकर हैरान रह गई. शीला आंटी की पीठ दरवाजे की तरफ होने से शीला आंटी को तो कुछ पता नहीं चला लेकिन मेरी नजरें अंजना से मिल गई. अंजना कुछ ना बोली और गुस्से से मेरी तरफ देखते हुए चली गई. मैंने शीला आंटी को यह बताना सही नहीं समझा. कुछ देर बाद मैंने बड़ी मुश्किल से अपने को शीला आंटी से अलग किया.

रात को खाना खाते वक्त अंजना बार बार मुझे एक कुटिल मुस्कान के साथ देखे जा रही थी. मैं लगातार उससे नजर चुरा रहा था.

जब मैं सोने के लिए अपने कमरे में गया तो कुछ ही देर बाद अंजना मेरे कमरे में दाखिल हुई. अंजना बहुत ही खुले गले का टी शर्ट और जाँघों तक की लम्बाई वाला हाल्फ पैंट पहने हुई थी. मैं उसे इन कपड़ों में देखते ही उसके इरादे को समझ गया. मैं सचेत होकर बैठ गया. अंजना ने मेरे बहुत करीब आकर मेरे सीने पर हाथ रखा और बोली " तुम्हारा सीना कुछ ज्यादा ही मुलायम नहीं लग रहा आज!" मैं उसका इशारा समझ गया. अंजना अब मेरे बहुत करीब आ चुकी थी. उसकी साँसें मुझे छूने लगी थी. मैंने उसे दूर जाने के लिए कहा. अंजना ने एक शैतान नजर मुझ पर डाली और बोली " अगर तुमने मेरा कहा नहीं मन तो मैं पिताजी से सारी बात कह दूंगी." मैं घबरा गया. अंजना ने धेरे से मेरे शर्त के बटन खोलने शुरू किये. मैं मजबूर था इसलिए कुछ नहीं कर सकता था. उसने मेरा शर्ट उतर दिया और फिर बनियान भी खोल दिया. इससे पहले कि मैं कुछ संभल पता वो मुझे लिपट गई. मैंने अपने आपको छुड़ाने की कोशिश की लेकिन उसने मुझे बहुत कसकर पकड़ लिया था. अचानक उसने मुझे कुछ इस तरह से धकेला कि हम दोनों पलंग पर गिर गए. मैंने उसे दूर धकेला. अंजना ने अब अपनी हाफ पैंट उतार दी और टी शर्ट को खोलना शुर कर दिया था.

मैं अब समझ गया था कि उससे बच पाना मुश्किल है. मैंने सोचा इससे अच्छा मौका अब नहीं मिलने वाला कि हुस्न का दरिया मेरे सामने आकर खुद मुझे डूबने को कह रहा है. मैंने अब अंजना को कसकर पकड़ लिया और उसके सीने से अपने सीने को लगा दिया. अंजना ने भी वापस इसी अंदाज में जवाब दिया. मैं और अंजना अब उसी मुद्रा में थे जिस तरह अंजना ने मुझे शीला आंटी के साथ देखा था. अब अंजना ने अपने होठों को मेरे होठों के बहुत करीब लाकर एक लम्बी सांस छोड़ी. मुझ पर जैसे एक नशा छा गया. मैंने अचानक अपने होंठ अंजना के होंठ पर रख दिए. अंजना ने मेरे होठों को चूम लिया. हम दोनों के शारीर में एक बिजली कि लहर जैसे दौड़ गई क्योंकि हम दोनों के लिए इस तरह के चुम्बन का यह पहला ही मौका था. हम दोनों को ऐसा लगा जैसे एक साथ ढेर सारी शक्कर की मिठास एक साथ मुंह में घुल गई हो. हम दोनों लगभग पांच मिनट तक एक दुसरे के होठों को चूमते रहे. अब मैंने अंजना को पलंग पर सीधा लिटा दिया और मेरी मनपसंद उसकी चिकनी टांगों और जांघों को बेतहाशा चूमने लगा. अंजना को यह बहुत ही पसंद आ रहा था. वो बार बार मुझे अपनी जांघें चूमने को कहती रही और मैं उसे चूमता रहा.

अंजना ने इसके बाद मुझे अपनी तरफ खींचा और मुझे अपने स्तनों को चूमने को कहा. मैंने शीला के आंटी के स्तनों को बहुत करी से देखा था लेकिन कभी चूमा नहीं था. अब मुझे पहली बार किसी के स्तनों को चूमने का मौका मिल रहा था. मैंने उसके दोनों स्तनों को चूमा. मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी मलाई के सागर में तैर रहा हूँ. अंजना को तो ऐसा लगा जैसे वो बादलों में उड़ रही हो. अब अंजना ने मुझे जगह जगह चूमना शुरू किया. हम दोनों इसी तरह लगभग आधी रात तक एक दुसरे को चूमना जारी रखा. इसके बाद अंजना ने यह कहते हुए कि मंजुला को कोई शक ना हो जाए; अपने कपडे पहने और अपने कमरे में चली गई. मैं अपनी किस्मत पर खुश हो रहा था.

अगली सुबह जहाँ एक तरफ मैं और शीला आंटी एक दुसरे को शरारती नज़रों से देख कर हंस रहे थे वहीँ अंजना और मैं भी इसी तरह मुस्कुरा रहे थे. अब मैं मंजुला की तरफ अपनी नजर गड़ा रहा था कि यह मुझे कब मिलेगी. लेकिन अब मुझे यह विश्वास हो चला था कि बहुत जल्दी मंजुला भी मेरी बाहों में आने वाली है.

अगले दिन अब मैं शीला आंटी और अंजना दोनों से मिलने के लिए बेताब हो रहा था. सवेरे जब मैं कोलेगे जाने के लिए तैयार हो रहा था तो अंजना मेरे कमरे में आ गई. उसें आते ही मेरे होंठ चूम लिए और भाग गई. मैं सवेरे सवेरे ही उत्तेजित हो गया.शाम को कॉलेज से आते ही शीला आंटी से सामना हो गया. आज शीला आंटी खुद के कमरे में मुझे ले गई. कुछ ही पलों में हम दोनों ने अपने ऊपर के कपडे खोल दिए और हमेशा कि तरह एक दुसरे से चिपट गए. अंजना के साथ अपने होठों के चुम्बन कि याद आते ही मैनुतावाला हो गया और मैंने शीला आंटी के होठों कि तरफ ललचाई नजर से देखा. शीला आंटी के होंठ कुछ सांवले रंग के थे लेकिन काफी रसभरे लग रहे थे. मैंने अब बेहिचक होकर अपने होंठ उनकी तरफ बाधा दिए और बहुत धीरे से उनके होंठो को सिर्फ छु लिया. शीला आंटी शायद इसी पल का इंतज़ार कर रही थी. उन्होंने तुरन्त जोरों से मेरे होठों को अपने होठों से भींच लिया और मेरे होठों से रस खींचने लगी. मेरा बदन सरसरा उठा. शीला आंटी ने अब बेतहाशा मेरे होठों को चुसना शुरू कर दिया था. काफी मेहनत के बाद ही में शीला आंटी के होठों से रस चूस सका. मैं एकदम बेकाबू हो गया. शीला आंटी ने मुझे अब पलंग पर लेटने के लिए कहा और वो भी लेटकर मुझे लिपट गई. अब हम एक दुसरे के गालों; होठों और गर्दन के सभी हिस्सों को चूम रहे थे. आज मुझे अंजना का डर नहीं सता रहा था. शीला आंटी भी चूँकि बेकाबू हो चुकी थी इसलिए उसे भी समय का कुछ ध्यान नहीं रहा हौर हम दोनों काफी देर तक एक दुसरे से लिपटे रहे और पागलों की तरह एक दुसरे को यहाँ वहां चूमते रहे. इसी बीच अंजना भी आ चुकी थी और हम दोनों को बाहर से चोरी छुपे देख रही थी. लगभग एक घंटे के बाद जब हम दोनों को ही संतुष्टि महसूस हुई तो हम दोनों एक दुसरे से अलग हो गए और मैं अपने कमरे में लौट आया. शीला आंटी ने जल्दी जल्दी कपडे पहने और ड्राइंग रूम में आ गई.

अंजना मेरे कमरे में आई और बोली " आज तो तुमने बहु जोरदार चुम्बन लिए हैं दोस्त. आओ मैं भी तो तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही हूँ." यह कहकर उसने तुरंत मुझे गालों और गर्दन पर चूमना शुरू कर दिया. मैंने भी उसी तरह से जवाब दिया. फिर हमने इक दुसरे के होंठ चुसे और सावधानी से दूर हो गए.

अब रात का इंतज़ार था. अंजना रात को एक किताब लेकर कुछ पूछने के बहान एमेरे कमरे में आ गई. कुछ ही देर बाद जब हम दोनों को यह विश्वास हो गया कि मजुला सो गई है तो हम दोनों बिस्तर में गुस गए और एक चद्दर ओढ़ ली और अपना काम शुरू कर दिया. लगभग आधे घंटे तक हम दोनों ने एक दूसरे को खूब चूमा और फिर अंजना अपने कमरे में लौट गई.

अगले दिन अंजना और मंजुला अपनी किसी सहेली के जनम दिन कि पार्टी में कॉलेज से सीधे ही जानेवाली थी और रात को ही लोटने वाली थी. इसलिए शाम से लेकर रात तक मैं और शीला आंटी अकेले ही रहनेवाले थे औए मैं यही सोचकर रोमांचित हो रहा था. सच कहूँ तो अब मुझे सारा सारा दिन शीला आंटी का उभरा हुआ सीना अपनी आँखों के सामने घूमता हुआ दिखाई देता था.

शाम को घर आते ही मैं शीला आंटी के कमरे में गया. शीला आंटी ने एक मुस्कान से मेरा स्वागत किया और मुझे अपनी बाहों में भर लिया. मैंने हमेशा कि तरह शीला आंटी के उपरी कपडे उतार दिए और फिर शीला आंटी ने मेरे उपरी कपडे खोल दिए. मैं जैसे ही उनकी तरफ बाधा शीला आंटी ने मेरा हाथ पकड़ा और अपने पेटीकोट के नाड़े की तरफ ले गई और मुस्कुराने लगी. मैंने पेटीकोट का नाडा भी खोल दिया. शीला आंटी मेरा हाफ पैंट खोलने में लग गई. अब मेरे दिल की धडकनें बढ़ने लगी. मैंने देखा कि शीला आंटी ने इसके बाद मेरा अंडरवेअर खींचकर नीचे लेकर खोल दिया और मरे हाथ से अपना अंडर वेअर छुआ दिया. मैंने उनका अंडरवेअर भी खोल दिया. अब हम दोनों पूरी तरह निर्वस्त्र एक दूसरे के सामने खड़े थे. मैंने शीला आंटी को पहली बार निर्वस्त्र देखा था. उनका एक एक अंग गदराया हुआ था और हर अंग से रस टपक रहा था. शीला आंटी ने मुझे अपनी तरफ खींचा और लिप्त लिया. मेरा पूरा शरीर कांपने लगा. हम दोनों ने धीरे धीरे हमेशा कि तरह एक दूजे को चूमना शुरू किया. कुछ देर बाद एक दूजे को होठों को खूब चूसा. शीला पीछे मुड़ी और मैंने उनकी पीठ को भी चूमा. अब शीला आंटी ने अपनी एक टांग उठाई और कुर्सी पर रखकर खड़ी हो गई. मैंने उनकी जांघ को जब चूमा तो शीला आंटी के मुंह से सिसकी निकल गई. मैं बेतहाशा उनकी जांघ को अह यह. शीला आंटी एक झटके से मुझे पकड़ पलंग की तरफ ले गई और हम दोनों पलंग पर लेट गए और लिपट गए.

काफी देर तक हम एक दूसरे से युहीं लिपटे चूमते रहे और बीच बीच में समझ दूजे के होठों का रस भी पीते रहे. अब मुझ पर बहुत नशा छा गया था लेकिन शीला आंटी सामान्य नजर आ रही हती. ये शायद उनकी उमर और अनुभव का असर था. तभी शीला आंटी ने तकिये के नीचे हाथ डाला और एक पैकेट निकाला. मैंने देखा वो कंडोम था. शीला आंटी ने उसे मेरे ताने हुए गुप्तांग पर चढ़ा दिया. मेरी घबराहट अब चरम सीमा पर थी. मेरी जिन्दगी में ये पहली बार होने जा रहा था. अब शीला आंटी ने अपनी दोनों टांगो को अंग्रेजी के वी टी तरह फैलाया और मुझे अपनी तरफ खींचा. अब मेरे शरीर का निचला हिस्सा शीला आंटी के उस वी के बीच में जा चुका था. अगले ही पल मुझे बहुत ही गुदगुदी जगह पर मेरे गुप्तांग के स्पर्श हो जाने का अहसास हुआ. शीला आंटी ने अपना एक हाथ उस स्थान पर ले गई और मेरे गुप्तांग को पकड़ लिया औए थोडा आगे की तरफ ले जाकर थोडा जोर लगाया. मुझे अचानक ही ऐसा लगा जैसे मेरा गुप्तांग किसी छेद में घुस रहा है. वो शीला आंटी का गुप्तांग था जिसमे मेरा गुप्तांग अब पूरी तरह से समां चुका था. मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी रस से भरे तालाब में कूद गया हूँ. शीला आंटी ने मुस्कुराकर मेरी तरफ देखा और बोली " बहुत अच्छा लग रहा है ना. मुझे भी एक लम्बे अरसे के बाद बहुत मजा आया है." फिर उन्होंने मुझे पीठ से दबा दिया और मुझे उपर नीचे करने लगी. मुझे एक अलग तरह का आनंद आने लगा और फिर मैं अपने आप ही जोर लगा लगाकर अपने गुप्तांग को शीला आंटी के गुप्तांग में और अन्दर की तरफ ले जाने लगा. फिर मैंने अपने गुप्तांग को पूरी तरह बाहर निकाला और फिर अन्दर डाला. अब लगातार मैं ऐसा करता रहा और शीला आंटी के मुंह से हरबार सिसकी और आह आह की आवाजें आती रही. शीला आंटी थोड़ी थोड़ी देर के बाद ही मुझे रोक देती और कुछ ठहरकर मुझे करने को कहती. मेरा पहला मौका था लेकिन मैंने शीला आंटी के साथ यह सम्भोग लगभग आधे घंटे तक जारी रखा. अब शीला आंटी ने मेरे दोनों होठों को इतनी जोर से चूसा कि मैं सब कुछ भूल गया और इतना जोर लगाया कि कुछ ऐसा महसूस हुआ कि मेरा गुप्तांग शीला आंटी के गुप्तांग कि आखिरी गहराई तक पहुँच गया है. अब मुझे ऐसा लग रहा था कि शीला आंटी के गुप्तांग में बहुत नमी हो गई और मेरा गुप्तांग उस नमी से पूरी तरह भीग चुका है. अचानक ह शीला आंटी ने मुझे जोर से अपने सीने से दबा दिया. उनके बड़े बड़े स्तनों के गुदगुदे दबाव , मेरे और इनके होठों के रसों के आपसी मिलन और एक दूसरे से पूरी तरह से चिपटा होने का यह परिणाम निकाला कि मेरे गुप्तांग से एकदम ही कुछ बहने लगा.

मुझे अपना सारा शरीर तड़पता हुआ लगा और शीला आंटी ने मुझे इतना कसकर दबाया कि मेरे मुंह से भी आह और सिसकी निकल गई. अचानक ही शीला आंटी का शरीर बिन पानी की मछली की तरह कांपने लगा था. हम दोनों ने एक दूजे को बहुत कसकर दबा दिया और बेतहाशा एक दूजे के होठों को जोर जोर से चूसने लगे. कुछ ही सेकण्ड के बाद जैसे सब कुछ शांत हो गया. हम दोनों के शरीर बेजान हो गए. हम दोनों के शरीर के निचले हिस्से पूरी तरह से हिलाने डुलने बंद हो गए थे लेकिन शीला आंटी अब भी मेरे होठों को चुसे जा रही थी. हम दोनों के पुरे शरीर पर ढेर सारा पसीना आ गया था. शीला आंटी और मेरी छातीयों के बीच पसीना इतना अधिक हो गया था कि गीलेपन का अहसास बहुत आसानी से हो रहा था और हमारी छातीयाँ बार बार आपस में रगड़कर फिसल रही थी. लगभग दो मिनट के बाद शीला आंटी के होंठ भी हिलने बंद हो गए, अब भी लेकिन हम दोनों ने पाने अपने होंठ एक दूसरे से सटा रखे थे. काफी देर तक युहीं लेते रहने के बाद जब थोड़ी ताकत हमारे जिस्मों में लौटी तो मैंने अपने गुप्तांग कू शीला आंटी के गुप्तांग से बाहर निकाला. हम दोनों ने ही देखा कि कंडोम में बहुत सारा लिक्विड भर चुका था और वो पूरी तरह से लटक गया था. हम दोनों एक दूसरे को देखकर एक संतुष्ट हंसी हंसने लगे. शीला आंटी ने कहा " तुम्हें मजा आया." मैं बोला " बहुत ही ज्यादा मजा आया है. अब अगली बार कब करेंगे फिर से ?" शीला आंटी ने मुझे एक बाद फिर चिपटा लिया और मेरे होठों को एक बार फिर चूसा और बोली " मुझे भी आज बरसों बाद ऐसा मजा आया है. जब भी मौका मिलेगा हम पूरा फायदा उठाएंगे." हमने देखा कि रात के दस बज चुके थे. हम दोनों जब मिले थे तब केवल छः बजे थे. यानी कि हमने लगभग चार घंटे तक सम्भोग का मजा लूटा था. शीला आंटी ने कहा " उन दोनों के आने का वक्त हो गया है. जाओ अपने कमरे में जाओ." सीके बाद शीला आंटी ने मुझे कंडोम का पूरा पैकेट देते हुए कहा " इसे तुम अपने पास ही रखो. फिर काम आयेगा." मैं अपने कमरे में आ गया. सारी रात मैं शीला आंटी के सपनों में ही खोया रहा.

अगले दिन सवेरे फिर वो ही हुआ अंजना मेरे कमरे में तेजी से दौडती हुई आई. मैं पलंग पर ही लेता हुआ था क्योंकि मेरा सारा शरीर टूट रहा था और मुझे बहुत थकान महसूस हो रही थी. अंजना ने जब मुझे लेते देखा तो तो वो अचानक से मेरे ऊपर लेट गई और मेरे होठों को चूसने लगी. तभी कुछ आहट हुई और वो जिस तेजी से आई थी उसी तरह से बाहर दौड़कर चली गई.

शाम को जब मैं घर लौटा तो शीला आंटी नहीं थी. घर पर ताला लगा हुआ था. मेरे पास दूसरी चाबी नहीं थी. कुछ ही देर में मुझे मंजुला आती दिखी. उसने आते ही कहा " मां; अपनी किसी सहेली के जन्मदिन कि पार्टी में गई हुई है. सवेरे वो जल्दी जल्दी में तुम्हें बताना भूल गई थी. मुझे बता रखा था इसलिए मैं जल्दी आ गई हूँ." हम दोनों घर में दाखिल हो गए. ना जाने मुझे ऐसा क्यूँ लगने लगा कि आज मंजुला और मेरा मिलन भी हो जाएगा. मैं अपने कमरे में आ गया. मैंने जल्दी जल्दी अपने कपडे बदले और हाफ पैंट तथा बनियान पहनकर मंजुला के कमरे कि तरफ चला आया. उसके कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. मैंने देखा वो कपडे बदल रही थी. उसने नीचे तो शोर्ट पहन ली थी लेकिन ऊपर पहनने के लिए आलमारी में कुछ ढूंढ रही थी. वो उस बक्त केवल अपनी ब्रा में थी. उसकी पीठ मेरी तरफ थी. मैं बिलकुल नहीं घबराया और बड़े ही आताम्विश्वास के साथ कमरे में घुस गया. मैं उसके पीछे जाकर उसके बहुत करीब खड़ा हो गया. उसकी पीठ का खुला हिस्सा मेरे सामने था. उसके जिस्म से भीनी सी महक आ रही थी. मैंने धीरे अपना मुंह उसके कान के पास ले जाकर उसके कानों में फुसफुसाया " अब कुछ मत पहनो तुम युहीं बहुत अच्छी लग रही हो." मंजुला ने डरते हुए पलट कर देखा तो मैं सामने खड़ा था. वो एक थडी सांस के साथ मुस्कुराई और बोली " तुमने तो मुझे डरा ही दिया था. क्यूँ नहीं पहनूं कुछ और ? " मैंने कहा " बस युहीं." मंजुला ने शरारत भरी आवाज में कहा " इस युहीं का मतलब?" मैंने अपनी बाहें उसके गले में डाल दी और बोला " अब और समझाऊं क्या?" मंजुला ने अपना चेहरा अब मेरे चेहरे के बहुत करीब कर लिया था. मैंने उसके रसीले होठों को बहुत ही करीब से देखा. उनमें से रस तो जैसे छलक रहा था. उसकी साँसें अब तेज चलने लगी. मैंने बहुत धीरे से अपने होठों को उसके होठों से सिर्फ छूने दिया. आगे का काम मंजुला ने कर दिया. उसने तुरंत मेरे होंठ अपने होठों के बीच में दबा दिए और उन्हें बहुत जोर से चूस लिया. मैंने भी वापस जोर लगाकर उसके होठों का सारा रस एक साथ हो चूस लिया. मंजुला अब कुछ बेकाबू होने लगी थी. मुझे इसी का इंतज़ार था. मेरी नज़र शुरू से उसके रसीले होठों पर थी इसलिए मैंने उसके होठों को चुसना लगातार जारी रखा. इसके बाद जब मंजुला थोड़ी ढीली पड़ने लगी तो मैंने उसे पलंग पर गिरा दिया. हम दोनों अब पलंग पर लोट रहे थे और एक दूसरे को चूम रहे थे. काफी देर तक यह सिलसिला चलता रहा. मंजुला ने मेरे कान में कहा " क्या तुम और आगे बढ़ना चाहोगे?" मैं कुछ कहत उसके पहले ही उसने मेरे हाथ खींचे और अपनी अंडरवेअर को मेरे हाथ में थमाया. मैं समझ गया लेकिन तभी दरवाजे कि घंटी बज गई. हम दोनों ही घबरा गए. मंजुला बाथरूम में दौड़ गई. मैंने तुरन्त अपने कपडे पहने और दरवाजा खोल दिया. शीला आंटी लौट आई थी. हम दोनों एक दूजे को देखकर मुस्कुराए. मंजुला काफी देर तक बाहर नहीं आई. मैं थोडा घबराया लेकिन तभी वो कपडे बदलकर बाहर आई और शीला आंटी से यह कहते हुए कि वो अपनी किसी सहेली के यहाँ जाकर आ रही है और बाहर निकल गई.

अब मेरा हौसला बहुत बढ़ चुका था. इससे पहले कि शीला आंटी अपने कमरे की तरफ बढ़ती मैंने उनके पीछे दौड़कर उन्हें अपनी बाहों में भर लिया. शीला आंटी चौंक गई और बोली " तो अब तुम इतनी हिम्मत जुटा चुके हो?" मैंने उनके गले को चूमते हुए कहा " ये सब आप ही ने मुझे सिखाया है." अब शीला आंटी ने मेरा गला चूम लिया. हम दोनों ही यह जानते थे की अंजना कभी भी आ सकती है इसलिए हमने अपने कपडे उसी तरह रहने दिए और एक दूसरे के जिस्म के अलग अलग हिस्सों को चूमने लगे. तभी दरवाजे की घंटी बजी. अब अंजना के आने की आवाज भी सुनाई दी. शीला तुरंत अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. मैंने दरवाजा खोला. अंजना मुझे देखते ही हंसी और बोली " तुम मां के साथ थे क्या?" मैंने मन करते हुए कहा " नहीं; वे तो अभी अभी ही लौटी है और अपने कमरे में गई है." अंजना ने शीला के कमरे का दरवाजा बंद देखा और मुझे अपनी बाहों में भरते हुए कहा " तो चलो अपने कमरे में. जब तक मां बाहर नहीं आ जाती हम ...." मैं उसे लेकर अपने कमरे में आ गया. हम एक साथ पलंग पर गिर पड़े और चूमने चाटने का दौर शुरू हो गया. मैं अपने आप को आज बहुत ही खुश-किस्मत समझ रहा था. मैंने आज केवल आधे घंटे के अन्दर अन्दर ही शीला आंटी , मंजुला और अंजना के होठो का रस पिया था. आज तक शायद कोई ऐसा नहीं कर सका होगा. मैं ये सोच रहा था और उधर अंजना मेरे होठों और गालों को चूमे जा रही थी. तभी शीला आंटी के कमरे के खुलने की आवाज आई. अंजना अपने कमरे में दौड़ कर चली गई. शीला ने देखा की अंजना ने अपने कमरे में प्रवेश कर लिया है तो उसने मेरी तरफ एक मुस्कराहट फेंक दी. मैं भी मुस्कुरा दिया. अब मैं अपने कमरे में लौट आया था.

रात को जब मैं सोने लगा तो मुझे डर सा लगने लगा. इसका कारन यह था की अंजना और मंजुला दोनों ही कभी भी एक साथ आ सकते हैं. अगर ऐसा हो गया तो सारी पोल खुल जायेगी. दोनों बहनों में झगडा भी हो सकता है. मेरे दिल काँप उठा. फिर यह ख़याल भी आया कि कभी शीला आंटी भी आ सकती है. अब हर आहट पर मैं डरने लगा. पहली रात को कोई नहीं आ पाया.

अगले दिन सवेरे शीला आंटी के पति लौट आये. मैं एकदम से उदास हो गया. जब तक मैं कॉलेज गया तब तक शीला आंटी को मैं एक बार भी मुस्कुराते हुए नहीं देख सका था. वो भी कुछ उदास लग रही थी.

शाम को मैं कॉलेज से लौटा तो चाचा घर पर ही थे और शीला आंटी के साथ बैठे चाय पी रहे थे. अब तो मुझसे रहा नहीं गया. अब मैं शीला आंटी को कैसे अकेले में मिलूं यही सोचने लगा. लेकिन कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. सारा दिन युहीं बीत गया. चाचा के घर होने के कारण अंजना और मंजुला भी मुझसे नहीं मिल पाई. यह पहला दिन था जब मैंने किसी एक को भी ना तो अपने सीने से लगा पाया था और ना ही चूम सका था. मेरा शरीर बेजान हो चला था. मैं झुंझलाते हुए अपने कमरे में चला गया. थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि शीला आंटी के कमरे कि लाईट बंद हो चुकी है तो मैं ड्राइंग रूम में आ गया. अंजना और मंजुला के कमरे के बाहर मैं खड़ा हो गया और उनके कमरे के भीतर झाँकने कि कोशिश करें लगा. मैंने देखा कि दोनों ही शायद अपने कॉल्लेग का कोई होम वर्क कर रही थी. मैं अब हर तरह से हार कर लौट आया और चद्दर ओढ़ कर सो गया.

मैं गहरी नींद में था. अचानक मेरी आँख खुल गई. कोई मेरे बिस्तर पर बैठ कर मेरी चद्दर खींच कर मेरी चद्दर में घुस रहा था. मैं खुश हो गया. मैंने सोचा कोई भी हो पूरा दिन तड़पा हूँ. अचानक मेरी कानों में अंजना कि आवाज आई " सो रहे हो! चलो उठो जल्दी! मैं हूँ अंजू." मैंने तुरंत अंजू कि तरफ अपना मुंह किया और उसे अपनी बाहों में भर लिया. अंजू ने भी मुझे अपनी बाहों में भर लिया.

मैंने और अंजू ने अपने कपडे उतार दिए और हम दोनों अब केवल अपने अंडर गारमेंट्स में ही रह गए थे. हम दोनों ने के दूजे को चूमना शुरू किया और जल्दी ही हमने एक दूजे के लगभग सारे जिस्म को गीला कर दिया था. अंजना अब मदहोश हो चली थी. मैंने उसे पलंग पर सीधा लिटाया और उसकी ब्रा खोल दी. मैंने अपने कमरे कि लाईट जला दी. अब अंजू का जिस्म लाईट में दमकने लगा. अंजू को भी अपने दमकते जिस्म को देखकर बहुत ख़ुशी हो रही थी. उसने अपनी गठीली टांगों और रसीली जाँघों को बार बार अपने हाथों से मसलना शुरू किया. मैंने उसकी जांघें चूम चूमकर लाल और गीली कर दी. मैं और अंजू अब पूरी तरह से मदहोश हो चुके थे. अंजू मुझे पागलों कि तरह चूम रही थी. मैंने अपनी आलमारी से शीला आंटी का दिया हुआ कंडोम का पैकेट निकाला और अंजू कि तरफ फेंक दिया., अंजू ने उसे देखा और बोली " तो तुम हर वक्त तैयार रहते हो?" मैंने कहा " तुम्हें देखते ही मैं तैयार हो जता हूँ." अंजू ने एक शर्त भरी नजर मुझ पर डाली और बोली " इसमें एक कंडोम कम है. क्या तुम ने ....." मैंने अंजू के गालों को चूमा और कहा " तुम अपनी बात कहो." अंजू ने मेरे होठों पर अपनी ऊंगलीयाँ फेरते हुए कहा " अब पूछकर वक्त बर्बाद मत करो." इतना कहकर अंजू ने मेरा अंडर वेअर उतार दिया और मैंने उसका. मैंने कंडोम को अपने गुप्तांह पर चढ़ाया और अंजू ने अपनी टांगें फैला दी. मैं उसके ऊपर लेट गया और अपने गुप्तांग को अंजू के जननांग के अन्दर धकेलने लगा. शीला आंटी के जननांग के अन्दर मेर अगुप्तांग बहुत जल्दी चला गया था जबकि अंजू के अन्दर जाने में काफी परेशानी हो रही थी और अंजू को दर्द भी होने लगा. हम दोनों डर गए. मैं कुछ देर के लिए रुक गया लेकिन अंजू ने जिद की कि मैं बिलकुल ना रुकूँ. मैंने थोडा रुक रुक कर धकेलना जारी रखा. लगभग तीन-चार मिनट कि मेहनत औए दर्द के बाद मैं कामयाब हो गया. अंजू का जिस्म पसीने में पूरी तरह भीग गया था. लेकिन उसके होठों पर सफलता और आनद कि मुस्कान थी. मैंने अंजू के होठों पर अपने होंठ रख दिए. हमने एक दूजे के होठों को आपस में बहुत देर तक चूसा. मैंने मेरे गुप्तांग को अंजू के जननांग के अन्दर धीरे धीरे धकेलना और निकलना जारी रखा. अब हम दोनों का मजा अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था. तभी अचानक अंजू ने मुझे बहुत कसकर पकड़ लिया औए मेरे होठों को अपने होठों से लगभग भींच लिया. मैंने देखा कि अंजू के शरीर में बहुत तेज हलचल होने लगी थी. मैंने ही अंजू को अब उतने ही जोर से पकड़ा और अपनी जीभ से उसकी जीभ सटा दी. हम दोनों अब पूरी तरह से एक दूसरे में सिमट चुके थे. अचानक अंजू बेकाबू हो उठी. मैंने भी अपने गुप्तांग को अब उसके जननांग में दूर तलक पुरे जोर से धकेल दिया. कुछ ही पलों के बाद मेरे गुप्तांग से रस की धारा निकल पडी और अंजू के मुंह से एक जोर की सिसकी निकल गई. हम दोनों अब पूरी तरह से थक कर चूर हो गए थे. हम इसी तरह से कुछ देर तक लेटे रहे. आखिर में मैंने अंजू के होठों को चूमा औए अंजू ने मेरे होठों को चूमा.. अंजू और मैंने अपने अपने कपडे पहने औए अंजू अपने कमरे में चली गई.

अब मैं मंजुला के साथ सम्भोग का इंतज़ार करने लगा. मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि अगले दिन ही मुझे ये मौका मिल जाएगा. मुझे कॉलेज नहीं जाना था क्यूंकि मेरे गाइड आज आनेवाले नहीं थे. मैं घर पर ही था. चाचा अपने काम पर चले गए. अंजना और मंजुला दोनों कॉलेज चली गई. इनके जाते ही शीला आंटी मेरे कमरे में आ गई. मैं भी उन्ही का इंतज़ार कर रहा था. शीला आंटी ने आते ही मुझे चूमना शुरू कर दिया. मैं छुट्टी के मूड में था इसलिए एक अलग तरह का जोश था. मेरे और शीला आंटी के पास करीब पूरा दिन था. हम शुरू ही हुए थे कि शीला आंटी को कोई काम याद आ गया और वो मुझे छोड़कर पड़ोस में चली गई. तब तक मैं भी बाज़ार कुछ खरीदने चल अगया. जब मैं लौट कर आया तो शीला आंटी बाथरूम में थी और नहा रही थी. दरवाजा खुलने कि आवाज से उन्होंने मुझे आवाज लगाईं. मैंने कह दिया कि मैं ही हूँ. शीला आंटी ने फिर आवाज लगाई और मुझे अपना तौलिया लाने के लिए कहा. मैं उनका तौलिया लेकर उन्हें देने लगा तो शीला आंटी ने मुझे बाथरूम में खींच लिया. शीला आंटी पूरी तरह से भीगी हुई थी और उनके सारे बदन पर पानी की बूंदें चमक रही थी. मैं उन्हें देखता ही रह गया. शीला आंटी ने मेरे कपडे खोलने शुरू किये. मैंने भी मदद की. अब हम दोनों ही निर्वस्त्र थे. शीला आंटी ने शोवर चला दिया. मैं और शीला आंटी पानी की बौछारों में नहाने लगे. मैंने फिर शीला आंटी को अपनी तरफ खींच लिया. शीला आंटी ने तुरंत मेरे गीले बदन को अपने गरम गरम होठों से चूमना शुरू कर दिया. शीला उन्ती के बदन से बह रहा पानी मुझे किसी अमृत से कम नहीं लग रहा था. मैं उन्हें जगह जगह चूमने लगा. शीला आंटी ने हँसते हुए कहा " तुम पागल तो नहीं हो गए." मैंने कहा " पागल ही समझ लें." शीला ने अचानक मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए. उनके गरम होंठ ने मेरे बदन में ज्वाला जगा दी. बाथरूम काफी बड़ा था. उसमे बात टब भी लगा हुआ था. उसमे पानी भरा हुआ था. मैं शीला आंटी को लेकर उस टब में उतार गया. हम दोनों उसमे बैठ गए. हम दोनों ने एक दूसरे को साबुन लगाना शुरू किया. शीला आंटी के चिकने जिस्म पर मेरे हाथ फिसलने लगे. शीला आंटी को बहुत मजा आने लगा था. अब हम पानी से भरे हुए टब में दोनों लिपट कर लेट गए. हम दोनों के एक दूजे को चूमना शुरू कर दिया. आपस में होठों को भी खूब चूसा. अचानक शीला आंटी ने मेरे गुप्तांग को अपने हाथ में लिया और अपनी जाँघों के बीच में फंसा लिया. मैंने धीरे धीरे उसे हिलाने लगा. हम दोनों को यह बहुत ही अच्छा लगा. बहुत देर तक यह सब चलता रहा फिर अचानक ही मेरे गुप्तांग से रस की धारा बाहर आ गई और मैंने शीला आंटी को जोर से दबा दिया. उन्होंने भी मुझे होठों से चूम लिया. पुरे दो घंटों तक हम दोनों साथ साथ युहीं खेलते रहे.

मंजुला कॉलेज से थोडा जल्दी आ गई थी. शीला आंटी बाहर गई थी और अंजना कॉलेज से सीधे उन्हें किसी दूकान पर मिलने वाली थी. मेरा रास्ता साफ़ था. मंजुला के आते ही मैं तियार हो गया. उसे देखते ही मैं मुस्कुराया. वो भी मुस्कुरा दी. मैं उसके करीब गया. उसका हाथ पकड़ा. उसने कहा " क्या कर रहे हो?" मैं बोला " जो काम कल अधुरा रह गया था वो अज कर डालते हैं." मंजुला बोली " तो चलो देर किस बात की." मैं उसे लेकर अपने कमरे में आ गया.

मैंने मंजुला के सारे कपडे उतार दिए, उसने मेरे उतार दिए. हम दोनों बिस्तर में थे और बुरी कदर एक दूसरे को चूम रहे थे. बहुत जल्दी ही मैंने मंजुला को तैयार रहने को कहा क्यूंकि वक्त कम था. शीला आंटी और अंजू कभी भी आ सकती थी. मैंने तुरंत कंडोम लगाया और मंजुला के जननांग में धकेल दिया. उसे अंजना की तरह से दर्द हुआ लेकिन उसने भी रुकने के लिए नहीं कहा और बोली " मां आ जायेगी. तुम रुको मत." मैंने थोडा ज्यादा जोर लगाया और तुरंत मैंने उसके बहुत भीतर तक गुप्तांग को पहुंचा दिया. मजुला के चेहरे पर एक ख़ुशी और संतोष की लहर दौड़ गई. हम चरम सीमा पर आ गए और मैंने अब रस छोड़ दिया. मंजुला ने अपने रस भरे होंठ मेरे होंठों पर रखते हुए कहा " अब जल्दी से तुम भी रस पीओ और मुझे भी पिला दो. " हम दोनों ने एक दूसरे को बहुत ही जोर से चूमा. हम दोनों में अब बिलकुल ताकत नहीं बची थी. मंजुला कुछ देर बाद अपने कमरे में चली गई. मैं ये सोच सोचकर मन ही मन खुश हो रहा था कि कितना कुछ हो गया है अब तक. विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैंने एक मां और उसकी दोनों बेटियों के साथ संभोग सम्बन्ध बना लिए हैं.

ये सिलसिला अब तक जारी है. हाँ यह जरुरु है कि मुझे बहुत चौकन्ना रहना पड़ता है कि कहीं किसी को एक दूसरे पर शक ना हो जाए.

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