Friday, December 13, 2013

FUN-MAZA-MASTI कामोन्माद -10

FUN-MAZA-MASTI
 कामोन्माद -10


नीलम का परिप्रेक्ष्य:


नीलम ने जो कुछ देखा, उससे उसका मन जुगुप्सा से पुनः भर गया। दीदी जीजू के छुन्नू को मुँह में भर कर चूस रही थी।

'पहले जीजू, और अब दीदी! ये शादी करते ही क्या हो गया इसको? कितना गन्दा गन्दा काम! और वो भी ऐसे खुले में? और वो जीजू ने दीदी के ऊपर ही पेशाब कर दिया! (नीलम की रूद्र का वीर्यपात पेशाब करने जैसा लगा)? अरे इतनी जोर से लगी थी तो वहां बगल में कर लेते!'

नीलम ने देखा की कुछ देर चूसने के बाद दीदी जीजू से अलग हो गयी और दोनों ही उठ कर झील की तरफ चलने लगे। वहां पहुँच कर जीजू और दीदी अपने अपने शरीर को धोने लगे, और कुछ देर में वापस आकर उसी टीले पर बैठ गए। और आपस में एक दूसरे को गले लगा कर चूमने और पलासने लगे। लेकिन दोनों ने कपडे अभी तक नहीं पहने।

'अरे! ऐसे तो दोनों को ठंडक लग जाएगी और इनकी तबियत ख़राब हो जाएगी। कुछ तो करना पड़ेगा! ये दोनों तो न जाने कब तक कपडे नहीं पहनेंगे - मैं ही उनके पास चली जाती हूँ। जब इन्ही लोगो को कोई शर्म नहीं है तो मैं क्यों शरमाऊँ?'

 मेरा परिपेक्ष्य:


"दीदी?" यह आवाज़ सुन कर हम दोनों ही चौंक गए - हमारा चुम्बन और आलिंगन टूट गया और उस आवाज़ की दिशा में हड़बड़ा कर देखने लगे। मैंने देखा की वहां तो नीलम खड़ी है।

"अरे! नीलम?" संध्या हड़बड़ा गयी - एक हाथ से उसने अपने स्तन और दूसरे से अपनी योनि छुपाने का प्रयास किया। "…. तू कब आई?" यह प्रश्न उसने अपनी शर्मिंदगी छुपाने के लिए किया था। संध्या को समझ आ गया था की उन दोनों की गरमागरम रति-क्रिया नीलम बहुत देर से देख रही है।

मैंने नीलम को देखकर अपनी नितांत नग्नता को महसूस किया और मैं भी हड़बड़ी में अपने शरीर को ढकने का असफल प्रयास करने लगा। हमारे कपडे उस चट्टान पर थोड़ा दूर रखे हुए थे, अतः चाह कर भी हम लोग जल्दी से कपडे नहीं पहन सकते थे।

"दीदी मैं अभी आई हूँ …. माँ ने आप दोनों के पीछे भेजा था मुझे, आप लोगो को वापस लिवाने के लिए। वो कह रही थी की मौसम खराब हो जाएगा और आप लोगो की तबियत न ख़राब हो जाए!"

कहते हुए उसने एक भरपूर नज़र मेरे शरीर पर डाली। मुझे मालूम था की नीलम ने मुझे और संध्या को पूरा नग्न तो देख ही लिया है, तो अब छुपाने को क्या ही है? अतः मैंने भी अपने शरीर को छुपाने की कोई कोशिश नहीं की - उसने हमको काफी देर तक देखा होगा - संभव है की सम्भोग करते हुए भी। संभव नहीं, निश्चित है। लिहाज़ा, अब उससे छुपाने को अब कुछ रह नहीं गया था।

नीलम के हाव भाव देख कर मुझे लगा की वह हमारी नग्नता से काफी नर्वस है। हो सकता है की हमारे सम्भोग को देख कर वह लज्जित या जेहनी तौर पर उलझ गयी हो। उधर संध्या बड़े जतन से अपने स्तनों को अपने हाथों से ढँके हुए थी।

"अच्छा …" संध्या ने शर्माते हुए कहा। वो बेचारी जितना सिमटी जा रही थी, उसके अंग उतने अधिक अनावृत होते जा रहे थे। "…. वो हमारे कपड़े यहाँ ले आ …. प्लीज!" संध्या ने विनती करी। नीलम बात मान कर हमारे कपड़े लाने लगी।

"आप लोग ऐसे नंग्युल …. मेरा मतलब ऐसे नंगे क्यों हैं? ठंडक लग जायेगी न! कर क्या रहे थे आप लोग?" उसने एक ही सांस में पूछ डाला।

"हम लोग एक दूसरे को प्यार कर रहे थे, बच्चे!" मैंने माहौल को हल्का बनाने के लिए कहा।

"प्यार कर रहे थे, या मेरी दीदी को मार रहे थे। मैंने देखा … दीदी दर्द के मारे कराह रही थी, लेकिन आप थे की उसको मारते ही जा रहे थे।"

मुझे लगा की नीलम हम दोनों को ऐसे देख कर संभवतः चकित हो गयी है - वैसे जब बच्चे इस तरह की घटना घटते देखते हैं, तो समझ नहीं पाते की क्या हो रहा है। कई बार वे डर भी जाते हैं, और उस डर की घुटन से अजीब तरह से बर्ताव करने लगते हैं। नीलम सतही तौर पर उतनी बुरी हालत में नहीं लग रही थी, लेकिन कुछ कह नहीं सकते थे। मुझे लग रहा था की उसमें इस घटना को समझने की दक्षता तो थी, लेकिन अभी उचित और पर्याप्त ज्ञान नहीं था।

उसने पहले संध्या को, और फिर मुझको हमारे कपड़े दिए, मैंने कपडे लेते हुए उसका हाथ पकड़ लिया और अपने ओर खींच कर उसकी कमर को पकड़ लिया और उसकी आँख में आँख डाल कर, मुस्कुराते हुए, बहुत ही नरमी से कहा,

"तुम्हारी दीदी को मारने की मैं सपने में भी नहीं सोच सकता - वो जान है मेरी! उसकी ख़ुशी मेरे लिए सब कुछ है और मैं उसकी ख़ुशी के लिए कुछ भी करूंगा। हम लोग वाकई एक दूसरे को प्यार कर रहे थे - वैसे जैसे की शादीशुदा लोग करते हैं। लेकिन, तुम अभी यह बात नहीं समझोगी। जब तुम्हारी शादी हो जायेगी न, तब तुमको मालूम होगा की दाजू सही कह रहे थे। तब तक मेरी कही हुई बात पर भरोसा करो …. ओके? तुम्हारी दीदी और मैं, हम दोनों एक हैं!"

नीलम ने अत्यंत मिले जुले भाव से मुझे देखा (मुझे स्पष्ट नहीं समझ आया की वह क्या सोच रही थी) और फिर सर हिला कर हामी भरी। मैंने उसके माथे पर एक छोटा सा चुम्बन दिया। मैंने देखा की उधर संध्या कपड़े पहनते हुए हमको ध्यान से देख रही है, और जब मैंने नीलम को चूमा, तो संध्या मुस्कुरा उठी। उस मुस्कान में मेरे लिए प्रशंसा और प्यार भरा हुआ था। नीलम मेरे द्वारा इस तरह खुले आम चूमे जाने से शरमा गयी - उसके गाल सेब जैसे लाल हो गए, अतः मैंने उसको जोर से गले से लगा लिया, जिससे उसको और शर्मिंदगी न हो।

जब वो अलग हुई तो बोली, "दाजू, आप बहुत अच्छे हो! … और एक बात कहूं? आप और दीदी साथ में बहुत सुन्दर लगते हैं!" इसके जवाब में नीलम को मेरी तरफ से एक और चुम्बन मिला, और कुछ ही देर में संध्या की तरफ से भी, जो अब तक अपने कपडे पहन चुकी थी।

कोई दो मिनट में हम दोनों ही शालीनता पूर्वक तरीके से कपड़े पहन कर, नीलम के साथ वापस घर को रवाना हो रहे थे। 

 वापस आते समय हम बिलकुल अलग रास्ते से आये और तब मुझे समझ आया की संध्या मुझे लम्बे और एकांत रास्ते से लायी थी - यह सोच कर मेरे होंठों पर शरारत भरी मुस्कान आ गयी। खैर, इस नए रास्ते के अपने फायदे थे। यह रास्ता अपेक्षाकृत छोटा था और इस रास्ते पर घर और दुकाने भी थीं। वैसे अगर मन में मौसम खराब होने की आशंका हो तो अच्छा ही है की आप आबादी वाली जगह पर हों - इससे सहायता मिलने में आसानी रहती है।

इस छोटी जगह में मैं एक मुख़्तलिफ़ इंसान था। ऐसा सोचिये जैसे की स्वदेस फिल्म का 'मोहन भार्गव'। मैं स्थानीय नहीं था, बल्कि बाहर से आया था; मेरे हाव भाव और ढंग बहुत भिन्न थे; मुझे इनकी भाषा नहीं आती थी, इन्ही लोगो को दया कर के मुझसे हिंदी में बात करनी पड़ती थी - मुझसे ये लोग कई सारे मजेदार प्रश्न पूछते जिनसे इनका भोलापन ही उजागर होता; और तो और बहुत सारे लोग मुझे बहुत ही जिज्ञासु निगाहों से देखते थे - मुझसे बात करने के बजाय मुझे देख कर आपस में ही खुसुर पुसुर करने लगते। लेकिन, अब सबसे बड़ी बात यह थी की मैं यहाँ का दामाद था। इसलिए लोग ऐसे ही काफी मित्रवत व्यवहार कर रहे थे। यहाँ जितने भी लोगों ने हमको देखा, सभी ने हमसे मुलाक़ात की, अपने घर में बुलाया और आशीर्वाद दिया। नाश्ते इत्यादि के आग्रह करने पर हमने कई लोगो को टाला, लेकिन एक परिवार ने हमको जबरदस्ती घर में बुला ही लिया और हमारे लिए चाय और हलके नाश्ते का बंदोबस्त भी किया। वहां करीब आधे घंटे बैठे और जब तक हम लोग वापस आये तब शाम होने लगी थी।

इस समय तक मुझे वाकई ठंडक लगने लगी थी - और लम्बे समय तक अनावृत अवस्था में रहने से ठण्ड कुछ अधिक ही लग रही थी।

घर आकर देखा की आस पास की पाँच-छः स्त्रियाँ आकर रसोई घर में कार्यरत थी। पता चला की आज भी कुछ पकवान बनेंगे! मैंने सवेरे जो मैती आन्दोलन के लिए जिस प्रकार का सहयोग दिया था, उससे प्रभावित होकर स्त्रियाँ कर-सेवा करने आई थी और साझे में खाना बना रही थी। वो सारे परिवार आ कर एक साथ खाना खायेंगे। मैंने संध्या से गुजारिश करी की कुछ स्थानीय और रोज़मर्रा का खाना बनाए। वो तो तुरंत ही शुरू ही किया गया था, इसलिए मेरी यह विनती मान ली गयी।


खाने के पहले करीबी लोग साथ बैठ कर हंसी मजाक कर रहे थे। एक भाई साहब अपने घर से म्यूजिक सिस्टम ले आये थे और उस पर 'गोल्डन ओल्डीस' वाले गीत बजा रहे थे। उन्होंने ने ही बताया की संध्या गाती भी है, और बहुत अच्छा गाती है। उसकी यह कला तो खैर मुझे मालूम नहीं थी। वैसे भी, हमको एक दूसरे के बारे में मालूम ही क्या था? मुझे उसके बारे में बस यह मालूम था की उसको देखते ही मेरे दिल ने आवाज़ दी की यही वह लड़की है जिसके साथ तुम्हे पूरी उम्र गुजारनी है।

मेरे अनुरोध करने पर संध्या ने गाना आरम्भ किया ---

'तेरा मेरा प्यार अमर, फिर क्यो मुझ को लगता हैं डर ,
मेरे जीवन साथी बता, क्यो दिल धड़के रह रह कर'

उसकी आवाज़ का भोलापन और सच्चाई मेरे दिल को सीधा छू गया। उसकी आवाज़ लता जी जैसी तो नहीं थी, लेकिन उसकी मिठास उनकी आवाज़ से सौ गुना अधिक थी। मेरा मन उस आवाज़ के सागर में गोते लगाने लगा।

'कह रहा हैं मेरा दिल अब ये रात ना ढले,
खुशियों का ये सिलसिला, ऐसे ही चला चले''

मेरे मन में हमारे साथ बिताये हुए इन दो दिनों की घटनाएं और दृश्य चलचित्र की भाँति चलने लगे। मन में एक हूक सी हो गयी। संध्या के बगैर एक भी पल नहीं चाहिए मुझे मेरे जीवन में!

'चलती हू मैं तारों पर, फिर क्यो मुझ को लगता हैं डर'

वही डर जो मुझे भी लगता है। प्यार में होना, जहाँ अत्यधिक संतोषप्रद और परिपूरक होता है, वहीँ अपने प्रेम को खोने का डर भी लगता है। गाना ख़तम हो गया था, और मैं संध्या की आँखों में देख रहा था - और वो मुझे! उसकी आँखों में यकीन दिलाने वाली चमक थी - इस बात का यकीन की मैं तुम्हारे साथ हूँ, हमेशा! मेरे ह्रदय में एक धमक सी हो गयी। ऐसा कभी नहीं हुआ। हमारा प्रेम बढ़ता ही जा रहा था, और हमारे साथ के प्रत्येक पल के साथ और प्रगाढ़ होता जा रहा था।


जब थाली परोसी गयी तो मैं घबरा गया - ये रोज़मर्रा की थाली है?! मुझको जो परोसा गया वह था - पुलाव, राजमा दाल, स्वांटे के पकौड़े, स्वाले (एक तरह के परांठे), और खीर - जो संध्या ने बनायी। सबसे अच्छी बात मुझको यह लगी की सभी लोग टाट-पट्टी पर साथ में बैठ कर साथ में खाना खा रहे थे। यहाँ लगता है की स्त्रियाँ अपने पतियों के साथ बैठ कर खाना नहीं खाती, लेकिन मेरे दबाव में संध्या मेरे साथ ही खाने बैठ गयी। वह सलज्ज, लेकिन संयत लग रही थी। पहले तो शादी होने के बाद भी शलवार-कुर्ता पहनना, फिर खुलेआम एक रोमांटिक गाना, और अब साथ में बैठ कर खाना - इस छोटी सी जगह के लिए बहुत बड़ा अपवाद था।

पहाड़ पर चढ़ने, और ठंडक में इतनी देर तक अनावृत रहने से मेरी भूख काफी बढ़ गयी थी, इसलिए मैंने छक कर खाया, और संध्या को भी आग्रह कर के खिलाया। खाने के बाद कस्बे के बड़े-बूढ़े लोग भी साथ आ गए - हम लोग अलाव जला कर उसके इर्द-गिर्द बैठे और कुछ देर यूँ ही इधर उधर की बात की। यहाँ पर कल और रहना था और परसों वापस अपने शहर - कंक्रीट जंगल - को! मेरे पास वैसे तो छुट्टियाँ काफी थीं, लेकिन अभी तक हनीमून का कोई प्लान नहीं बनाया था।

मैंने संध्या से शादी के पहले पूछा था की वो कहाँ जाना पसंद करेगी, लेकिन यह प्रतीत होता था की उसको हनीमून जैसी चीज़ के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था। और उस समय हम दोनों इतनी कम बाते करते थे की यह संभव नहीं था की इसके बारे में संध्या को तफसील से बता पाऊँ! मुझे यह अचानक ही याद आया की हनीमून का तो कोई प्लान ही नहीं बनाया है।

'ठीक है …. अभी संध्या से इस विषय में चर्चा करूँगा।' मैंने सोचा।

वैसे भी विदेश में जा कर हनीमून करना संभव नहीं था, क्योंकि एक तो संध्या के पास पासपोर्ट नहीं था, और दूसरा उसके लिए काफी योजना करनी होती है। खैर उसी से यह बात करने पर कोई हल निकलेगा। मैंने अपने शादी-शुदा दोस्तों को एस एम एस भेजे की मुझे हनीमून आईडिया भेजें - जो भारत में हों - वो भी तुरंत। मैंने वैसे भी कहीं मनोरंजन के इरादे से यात्रा नहीं करी थी - बस एक बार की, तो उसी में मुझको अपनी जीवन संगिनी भी मिल गयी।

अगले पन्द्रह मिनट में शादी की बधाई के साथ मुझे कम से कम बीस अलग अलग जगहों के बारे में मालूम हो गया - पहाड़ो से लेकर रेगिस्तान तक, धर्म स्थानों (आखिर हनीमून के लिए कौन गधा धर्म-स्थान जाता है?) से लेकर नग्न-बीचों तक। पहाड़, धर्म-स्थान, रेगिस्तान, और जंगल वाले आईडिया मैंने नकार दिए (हाँलाकि जंगल वाला आईडिया मुझे बहुत अच्छा लगा - लेकिन मैंने सोचा की उसको बाद में देखा जाएगा।

नग्न बीच तो भारत में तो होते नहीं - लेकिन बीच का आईडिया मस्त है, मैंने सोचा। संध्या के लिए एकदम नया होगा। उसने अभी तक सिर्फ पहाड़ ही देखे हैं - इस जगह से आगे कभी गयी ही नहीं। उसने बस किताबों में ही पढ़ा होगा। मैंने अपने दोस्तों को पुनः एस एम एस भेजे की मुझे बीच के विभिन्न आईडिया बताएं।

अगले आधे घंटे में मुझको गोवा, केरल, अंडमान और लक्षद्वीप के बारे में मालूम हो गया। लगभग सभी ने गोवा के बारे में बोला अवश्य। इसी से मुझे स्पष्ट हो गया की वहां नहीं जाना है - निश्चित रूप से बहुत ही भीड़-भाड़ वाली जगह होगी। कोई ऐसी जगह चाहिए जो साफ़ सुथरी हो, सुरक्षित हो, और जहाँ पर्याप्त एकांत भी मिले।

फिर मैंने अपने बॉस को फ़ोन किया और अपना प्लान बताया। आप लोगो सोचेंगे की ऐसा बॉस सभी को मिले - लेकिन उसने पहले तो मुझे विवाह की बधाइयाँ दीं और फिर बहुत ही ख़ुशी से मुझको वापस आने के लिए 'अपना समय लेने' को कहा (इतने दिनों के काम में मैंने शायद ही कभी छुट्टी ली हो - उसको कभी कभी यह डर लगता था की कहीं मुझे काम के कारण बर्न-आउट न हो जाए। वो मेरे जैसे लाभकर कर्मचारी का क्षय नहीं करना चाहता था। उसने मुझे अंडमान जाने को कहा, और यह भी बताया की उसका एक मित्र है जो वहां एक उम्दा होटल का मालिक है। और यह की वह होटल एकदम फर्स्ट क्लास है (वह खुद भी वहां रह चुका है), और वह अपने दोस्त को मुझे डिस्काउंट देने के लिए भी बोलेगा। मुझे तो उसका सुझाव बहुत अच्छा लगा, लेकिन संध्या की रजामंदी भी उतनी ही अवश्यक थी। अतः मैंने उसको कहा की मैं सवेरे फोन कर के बताऊँगा। 

"यहाँ तो बहुत ठंडक हो जाती है! बाप रे! आप लोग रहते कैसे हैं?" मैंने कमरे के अन्दर आते हुए संध्या से पूछा। मैं अपने हाथों को रगड़ कर गरम करने का प्रयास कर रहा था। संध्या इस समय कुछ कपडे तह करके एक तरफ रख रही थी।

"आपको आदत नहीं है न! इसीलिए आपको इतनी ठंडक लग रही है। और आप सिर्फ एक स्वेटर क्यों लाये? पहाडों पर आए और वो भी इस मौसम में! कुछ और गर्म कपडे रखने चाहिए थे न?" संध्या ने हँसते हुए जवाब दिया।

"आपको कैसे मालूम की मेरे पास सिर्फ एक स्वेटर है? मेरे पीछे पीछे मेरा सामान चेक कर रही थीं क्या?" मैंने मजाक करते हुए कहा।

"हाँ! आपके कुछ कपड़े आपके बैग में रखने थे, इसलिए।" संध्या ने पत्नी-सुलभ अधिकार और मान वाली आवाज़ में कहा। मैं मुस्कुराया - अब 'मेरा सामान' जैसा कुछ नहीं है!

"आपने कभी बताया ही नहीं, की आप इतना बढ़िया गाती हैं? मैं अब तो रोज़ सुनूँगा गाने!" संध्या ने कुछ नहीं कहा, बस लज्जा से मुस्कुराई। मेरे चेहरे पर उसके लिए प्रेम, प्रशंसा, और गर्व के कितने ही सारे मिले जुले भाव आये। मेरी आवाज़ आर्द्र हो चली, लेकिन फिर भी मैंने उसको कहा,

"सच कहूं? यू चेंज्ड माय लाइफ! थैंक यू!" मेरी यह बात सुनते सुनते संध्या की आँखें भर आईं, और वो तेज़ी से मेरे पास आकर मुझसे लिपट गयी। अब 'आई लव यू' कहने की ज़रुरत नहीं थी। हम दोनों इन मामूली औपचारिकताओं से ऊपर उठ गए थे। मैंने उसको अपने से चिपटाए हुए ही कहा, "आपको मालूम है न, की परसों एकदम सवेरे ही हम लोगो को यहाँ से वापस जाना है?"

यह सुन कर संध्या जाहिर तौर पर उदास हो गयी और उसने बहुत धीरे से सर हिलाया।

"जानू, प्लीज! उदास मत होइए! हम लोग यहाँ हमेशा तो नहीं रह सकते हैं न? जाना तो होगा?" उसने फिर से सर हिलाया।

"माँ बाबा को छोड़ कर जाने से दुःख तो होगा, लेकिन मैं आपका पूरा ख़याल रखूंगा। आपको मुझ पर भरोसा है न?" संध्या ने मेरी आँखों में एक गहन दृष्टि डाली और कहा,

"आप पर जितना भरोसा है, मुझे वो खुद पर नहीं है! आपके साथ मैं कहीं भी जाऊंगी। और मुझे मालूम है की आप मुझे हमेशा खुश रखेंगे। इसका उल्टा तो मैं सोच भी नहीं सकती।"

मैंने संतोषप्रद सांस भरी, "चलिए, बिस्तर पर चलते हैं …"




FUN-MAZA-MASTI Tags = Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | कामुकता | kamuk kahaniya | उत्तेजक | मराठी जोक्स | ट्रैनिंग | kali | rani ki | kali | boor | सच | | sexi haveli | sexi haveli ka such | सेक्सी हवेली का सच | मराठी सेक्स स्टोरी | हिंदी | bhut | gandi | कहानियाँ | छातियाँ | sexi kutiya | मस्त राम | chehre ki dekhbhal | khaniya hindi mein | चुटकले | चुटकले व्‍यस्‍कों के लिए | pajami kese banate hain | हवेली का सच | कामसुत्रा kahaniya | मराठी | मादक | कथा | सेक्सी नाईट | chachi | chachiyan | bhabhi | bhabhiyan | bahu | mami | mamiyan | tai | sexi | bua | bahan | maa | bharat | india | japan |funny animal video , funny video clips , extreme video , funny video , youtube funy video , funy cats video , funny stuff , funny commercial , funny games ebaums , hot videos ,Yahoo! Video , Very funy video , Bollywood Video , Free Funny Videos Online , Most funy video ,funny beby,funny man,funy women

No comments:

Raj-Sharma-Stories.com

Raj-Sharma-Stories.com

erotic_art_and_fentency Headline Animator