FUN-MAZA-MASTI
कामोन्माद -11
संध्या ने बिस्तर को थोडा व्यवस्थित किया और मेरे पहले बैठने का इंतज़ार करने लगी। मैं उसका आशय समझ कर जल्दी से बिस्तर के कगार पर बैठ गया, और उसको इशारे से अपनी तरफ बुलाया। संध्या मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर खड़ी हो गयी। मानव शरीर और मष्तिष्क अपने परिवेश से कितनी जल्दी अनुबन्ध स्थापित कर लेता है! पिछले दो दिवस से चल रही अनवरत यौन क्रिया ने संध्या के दिमाग का कुछ ऐसा ही अनुकूलन कर दिया था - जैसे ही हमको एकांत मिलता, संध्या को लगता कि सम्भोग होने वाला है। वैसे मेरे भी हालत उसके सामान ही थी - संध्या मेरे आस पास रहती तो मेरे मन में और लिंग में हलचल सी होने लगती।
"कम .... गिव मी अ किस!" मैंने उसकी कमर को थामते हुए कहा। मेरी इस बात से संध्या के गाल एकदम से सुर्ख हो गए। मैंने बड़ी मृदुलता से उसके सर को मेरी तरफ झुकाया और उसकी आँखों में देखा। वहाँ लज्जा, प्रेम, रोमांच और प्रसन्नता के मिले-जुले भाव थे। मैंने अपने होंठों को उसके होंठो से सटाया और अपनी जीभ को उसके होंठो के बीच धीरे से धकेल दिया। संध्या के होंठ सहजता से खुल गए, और मेरी जीभ उसके मुख में चली गयी। मैंने अपनी जीभ से उसके मुख के भीतर टटोलना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में उसकी जीभ को महसूस किया। संध्या ने भी मेरा अनुसरण करते हुए अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी।
इस सुंदरी को इस प्रकार चूमने का संवेदन अतुल्य था - मुझे लगा कि मैं पुनः अपने किशोरावस्था में आ गया। मुझे चूमते हुए संध्या अब और झुक गयी - उसकी बाहें मेरे गले का घेरा डाले थीं। उसके कोमल बालों का मेरे चेहरे पर स्पर्श बहुत ही आनंददायक था। मैंने उसके कपोलों पर अपनी हथेलियों से थोडा और दबाव डाला और उसको फ्रेंच किस करना जारी रखा। कुछ देर बाद मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए अपने चुम्बन को एक भिन्न दिशा देना आरम्भ किया, और अंततः उसके नितम्ब को थाम लिया और उसको अपनी गोदी में बिठा लिया, कुछ इस तरह की उसके दोनों पैर मेरे दोनों तरफ रहें और उसकी योनि वाला हिस्सा मेरे लिंग वाले हिस्से के ठीक सामने रहे।
अद्भुत बात है, मैंने सोचा, कि मैंने पिछले दो दिनों में सेक्स का मैराथन किया था और आज की पदयात्रा के कारण थक भी गया था। स्वाभाविक रूप से मुझमें अभी उत्तेजना नहीं आनी चाहिए थी। लेकिन, मेरे लिंग कि अवस्था कुछ और ही कह रही थी। किसी ज्ञानी ने सही ही कहा है कि लिंगों का अपना ही दिमाग होता है - भले ही विज्ञान कुछ और ही कहे। संध्या का पेडू मेरे लिंग से एकदम सटा हुआ था, लिहाज़ा, उसको निश्चित तौर पर मेरे लिंग का कड़ापन महसूस हो रहा था। मैं निश्चित रूप से बहुत उत्तेजित हो चला था।
मैंने उसके आकर्षक नितम्बो को अपने हथेलियों से सौंदना शुरू किया। संध्या मत्त होकर मेरे सीने को सहला रही थी - सम्भव है कि उसको भी अब मेरे सामान ही उत्तेजना प्राप्त हो गयी हो। क्रिया को आगे बढ़ाने के लिए मैंने उसके शलवार का नाडा ढीला कर दिया और अपनी तर्जनी से उसके पुट्ठों के बीच की घाटी को सहलाया। वह सम्भवतः मुझे चूमने में अत्यधिक व्यस्त थी, अतः मेरी इस क्रिया कि उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखायी। मैंने अपना हाथ ऊपर सरका कर उसके पेट और पसलियों को सहलाते हुए उसके स्तनों के आधार को छुआ। संध्या ने थोडा सा हट कर मेरे हाथों समुचित स्थान दिया। मैंने अपने हथेलियों को अपने सीने और उसके स्तन के बीच के स्थान में आगे बढ़ा कर, उसके स्तनो को पुनः महसूस करना शुरू किया। ठोस स्तनो से उसके दोनों निप्प्ल तन कर खड़े हुए थे, और कुर्ते और स्वेटर के ऊपर से भी अच्छी तरह से टटोले जा सकते थे।
मेरा लिंग पूरी तरह से अब खड़ा हो गया था, और निश्चित तौर पर संध्या उसको महसूस कर सकती थी। सम्भवतः वह लिंग के कड़ेपन का आनंद भी उठा रही थी, क्योंकि इस समय अपने नितम्ब वह बहुत थोड़ा भी मेरी गोद पर घिस रही थी। यह अविश्वसनीय रूप से कामुक था। इसी उत्तेजना में मैंने उसके कूल्हों पर अपने हाथ चलाना शुरू कर दिया। लेकिन शलवार के ऊपर से यह काम करने में कोई ख़ास मज़ा नहीं आ रहा था, अतः मैंने कुछ इस तरह कि संध्या को न मालूम पड़े, उसकी शलवार को नीचे कि ओर सरका दिया। संध्या ने चड्ढी पहनी हुई थी - लेकिन इस समय उसके इस खूबसूरत हिस्से का अधिक अभिगम मिल गया था। मैंने अपनी हथेलियों से उसके नंगे चूतड़ों का आनंद उठाना आरम्भ कर दिया। अचानक ही मैंने धीरे से मेरी उंगलियों से उसके नितंबों के बीच की दरार को छुआ। मेरे ऐसा करते ही संध्या का चुम्बन रुक गया, और उसके साँसे अब और गहरी, और तेज हो गयीं। हमारी आँखें आपस में मिलीं। उसका चेहरा संतोष की एक सुंदर नरम अभिव्यक्ति लिए था, और मैं इस दृश्य को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। मैं मुस्कुराया और संध्या भी। मैंने उसकी सुंदर नाक को चूमा और उसको बताया कि मैं उसको बहुत प्यार करता हूँ।
संध्या मेरी गोद से उठ खड़ी हुई और मैंने बिना कोई समय खोए उसका शलवार और चड्ढी पूरी तरह से उतार दिया। मैंने देखा की संध्या की योनि अभी होने वाली रति क्रिया के पूर्वानुमान से गीली हो गयी थी। मैंने उसको वापस अपनी गोद में बैठा लिया और चूमना आरम्भ किया। मैंने अभी तक अपने कपडे नहीं उतारे थे, लिहाज़ा उसकी योनि का गीलापन, अब मेरे कपड़ो को भिगो रहा था। मेरे हाथ इस समय उसके कुर्ते के अंदर था, और मैं उसकी पीठ को सहला रहा था। उसकी पीठ को सहलाते हुए मैं उसकी पीठ के निचले हिस्से को, जहाँ डिंपल होते हैं, अपनी उंगलियों से सहलाने लगा। संध्या का शरीर स्वयं ही मेरे स्पर्श से ताल मिलाने लगा। मैंने धीरे धीरे अपने हाथों को उसके शरीर के ऊपर की तरफ ले जाने लगा। मेरा परम लक्ष्य उसके छोटे और ठोस स्तनों की सुंदर जोड़ी थी। लेकिन मैं इस काम में कोई जल्दी नहीं करना चाहता था। मैं चाहता था कि संध्या अपने शरीर को सहलाये और दुलराये जाने की अनुभूति का पूरा आनंद उठाये।
मैंने उसकी पसलियों को सहलाया और सहलाते हुए अपने अंगूठों से उसके स्तनों के बाहरी गोलाइयों को छुआ। उसका शरीर इस संवेदन के जवाब में पीछे को तरफ झुक गया, लेकिन यह कुछ इतनी जल्दी से हुआ कि उसको सम्हालने के चक्कर में मेरे हाथ फिसल कर उसके स्तनो पर जा टिके। संध्या ने मुझे चूमना जारी रखा, और मेरे हाथों को अपने स्तनों पर महसूस करके पूरी तरह से खुश लग रही थी। मैंने उसके शानदार स्तनों को सहलाया। मेरे हाथों ने उसके स्तनों को पूरी तरह से ढक रखा था और उनको इस तरह से पूरी तरह से प्रवरण करने में सक्षम होने की अनुभूति अद्भुत थी। मैंने कोमलता से उसके स्तनाग्रों को सहलाया - जवाब में संध्या एक गहरी सांस भरती हुई पीछे कि तरफ मुड़ गयी। उसने चूमना बंद कर दिया था और मुँह से भारी साँसे भर रही थी। उसके शरीर की मेरे स्पर्श की इस तरह से प्रतिक्रिया करते देखना अद्भुत था।
अब समय आ गया था कि संध्या को पूर्णतया नग्न कर दिया जाए। मैंने उसके कुर्ते का निचला हिस्सा पकड़ कर उसको निकालने लगा। संध्या ने भी अपने हाथ उठा कर कुर्ते को उतारने में सहयोग किया। इस प्रकार नग्न होने के बाद, संध्या पीठ के बल लेट गयी - इसके दोनों हाथ उसके दोनों तरफ थे। मैं भी एक करवट में उसके बगल आकर लेट गया और दृष्टि भर कर उसके रूप का रसास्वादन करने लगा। उसके स्तन इतने सुन्दर थे कि मैं उनको अपनी पूरी उम्र देख सकता था - खूबसूरती से तराशे हुए! मैंने अपने सामने चल रहे इस अद्भुत दृश्य की प्रशंसा में दीर्घश्वास छोड़ा। संध्या ने वह आवाज़ सुन कर मेरी तरफ गर्व और लज्जा के मिले-जुले भाव से देखा।
मैंने लेटे लेटे ही उसके रूप का दृष्टि निरिक्षण करना जारी रखा - और उसके स्तनों, पसलियों और पेट से होते हुए उसके आकर्षक कूल्हे का अवलोकन किया। लेते हुए उसका पेट थोड़ा अवतल लग रहा था (बैठे हुए वह सपाट लगता है) और उसकी कूल्हे की हड्डियां पेट से अधिक ऊपर उठी हुई थीं और स्पष्ट रूप से परिभाषित दिख रही थीं। मेरे लिए इस प्रकार का नारी शरीर अत्यधिक आकर्षक है। दृष्टि थोड़ी और आगे बढ़ी तो उसके जघन क्षेत्र के बाल दिखने लगे। और नीचे देखा तो उसका सूजा हुआ भगोष्ठ और उन दोनों के बीच में स्थित लगभग बाल-विहीन, उसके अन्तर्भाग का द्वार, बहुत ही लुभावना दिख रहा था। मेरे इस निरिक्षण क्रिया के बीच में संध्या ने कुछ भी नहीं कहा - इस समय उसकी साँसे भी आश्चर्यजनक रूप से शांत थीं। मुझे अचानक ही अपने कार्यस्थल से एक मज़ेदार बात याद आ गयी - कि अगर मैं संध्या पर कोई रिपोर्ट लिख रहा होता, तो उसको मैं 'A1' मूल्यांकन देता।
उसी समय मुझे ध्यान आया कि मैं तो अभी भी पूरी तरह से कपड़े पहने हुए था। मैंने जल्दी से अपने सारे कपडे उतार दिए, जिससे मुख्य कार्य में कोई विलम्ब न हो। मेरा इरादा संध्या के शरीर के एक एक इंच का आस्वादन अपने हाथ और मुंह से करने का था। मैंने उसके इस काम के लिए चेहरे से आरम्भ करने कि सोची। मैंने संध्या को होंठों पर चूमा तो वह भी मुझे चूमने लगी, लेकिन मेरा प्लान अलग था। मैंने उसके पूरे चेहरे को चूमा और फिर उसके कान के निकट गया। मैंने उसके कान को चूमते हुए उसकी लोलकी को धीरे से काटन और चबाना शुरू किया। उसके दूसरे कान के साथ भी यही हुआ। मैंने साथ ही साथ अपने खाली हाथों से उसके शरीर को सहलाना भी शुरू किया। इस सम्मिलित प्रहार का असर यह हुआ कि संध्या कि साँसे फिर से बढ़ने लगीं। ऐसे ही सहलाते सहलाते मैंने उसके एक स्तन को अपने हाथ से ढक लिया और कुछ देर उनको यूँ ही दबाया। मैंने देखा कि संध्या कि आँखें अब बमुश्किल ही खुल पा रही थीं।
मैं उसकी गर्दन से होते हुए नीचे कि तरफ जाकर उसके सीने के ऊपरी हिस्से चूमने लगा। नीचे बढ़ते हुए मैंने उसके स्तनों के बीच के हिस्से, उनके नीचे और आसपास चूमा और जीभ से छेड़ा। संध्या की सांस अब काफी बढ़ गयीं थीं और उसकी आँखें कास कर बंद हो गयी थीं। उसके दोनों हाथ अभी भी उसके बगल में ही थे, लेकिन उन्माद में उसकी मुट्ठियां बंध गयीं थीं। मैंने एक और बात देखी, और वह यह कि उसने अपनी कामुक अवचेतना में अपनी टाँगे थोड़ी खोल दी थीं जिससे मैंन उसके योनि-क्षेत्र का अन्वेषण कर सकूं, मैंने अभी तक उसके स्तनों पर अपना कार्य समाप्त नहीं किया गया था।
मैंने उसके एक निपल पर अपनी जीभ फिराई - संध्या ने कांपते हुए तेज़ सांस भरी। उसकी छाती एकदम से ऊपर उठ गयी, जिससे उसका स्तन मेरे मुंह में अनायास ही भर गया। मैंने उसके चेहरे को देखा, उसकी आँखें अभी भी कस कर बंद थीं, लेकिन सांस भरने के कारण उसके होंठ थोड़ा जुदा थे। मैंने पुनः उसके निपल को चाटा तो एक बार फिर से उसकी छाती मेरे उठ कर मेरे छेड़ते हुए मुंह में भर गयी। मैंने उस निपल को मुंह में भरा और धीरे से चूसने, चबाने और काटने लगा। उसकी साँसे अब और अधिक तेजी से चलने लगीं साँस ले रहा था और बेचैनी में अपने सर को इधर उधर चलाने लगी। ऐसा करने से उसके बाल बिस्तर पर फ़ैल गए। वाह! क्या गज़ब की सेक्सी लग रही थी वह! कुछ देर उसके स्तन को इसी प्रकार छेड़ने के बाद मैंने दूसरे स्तन पर भी यही क्रिया आरम्भ कर दी, लेकिन पहले वाले स्तन को छोड़ा नहीं - उसको अपने हाथ से लगातार मसलता, दुलारता रहा। संध्या की कामोत्तेजना देखने लायक थी - उसका पूरा शरीर कसमसाने लगा, और उसने अपने दोनों पैर और ऊपर खींच लिए थे। मैंने समय देख कर उसके स्तन को छोड़ा और ऊपर पहुँच कर होंठ पर उसे चूमा। संध्या ने पहले की तुलना में कहीं अधिक शक्ति के साथ मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल कर मुझे वापस चूमा। उसने उन्माद में आ कर मुझे पकड़ लिया था।
कुछ देर ऐसे ही चूमने के बाद मैंने पुनः उसके स्तनो का भोग लगाना आरम्भ कर दिया। उसके शरीर पर वह दोनों स्वादिष्ट स्तन जिस तरह से परोसे हुए थे, मैं ही क्या, कोई भी होता तो अपने आपको रोक न पाता। मुझे लगा कि संध्या कुछ कुछ कह रही थी, लेकिन उसकी आवाज़ मेरे एक तो स्तनपान कि क्रिया के कारण धीरे-धीरे आ रही थी और ऊपर से मेरे स्वयं के उन्माद के कारण मुझे लग रहा था कि बहुत दूर से आ रही है।
"हँ?" मैंने बड़े प्रयास के बाद उसके स्तन से मुंह हटा कर पूछा।
"काश .......... इनमें ..... दूध होता …" संध्या ने दबी हुई आवाज़ में कहा।
'वाकई! काश इनमे दूध होता!' मैंने सोचा, तो मुंह में और स्वाद आ गया। मैंने और जोश में आकर उनको चूमना, चूसना और दबाना जारी रखा। मैंने कब तक ऐसा किया मुझे ध्यान नहीं, लेकिन एक समय ऐसा भी आया की संध्या दर्द भरी सिसकी भरने लगी। मुझे समझ आ गया की अब दूसरे स्तन की बारी है, और यही क्रिया उस पर भी आरम्भ कर दी। निश्चित तौर पर अब तक संध्या का संकोच समाप्त हो चला था, और वह कामुक आनंद से पूर्णतया अभिभूत हो गयी थी।
अब आगे बढ़ने का समय हो चला था। मैं उसके पेट को लगातार चूमते हुए उसके गुप्तांग तक पहुँचने लगा। मेरे हर चुम्बन के जवाब में संध्या कसमसाने लगती। इस समय उसके दोनों हाथ मेरे बालों में घुस कर मेरे सर को कभी पकड़ते तो कभी सहलाते। मैं चूमते हुए जल्दी ही उसकी योनि तक पहुँच गया। मैंने उसके जघन क्षेत्र को चूमा तो संध्या ने अपने कूल्हों को मेरे मुंह में ठेल दिया। मैंने अपनी जीभ से कुछ देर चाटा। उसकी योनि के इतने करीब होने के कारण मैं उसकी मंद स्त्रैण-गंध सूंघ सकता था। मेरा लिंग अविश्वसनीय ढंग से कड़ा हो गया था, और मैं चाहता था कि संध्या उसको महसूस कर सके।
ऐसे ही समय के लिए महान ऋषि वात्स्यायन जी ने "कोकिला योग" कि खोज की थी। कोकिला - जिसको आज कल कि भाषा में 69 कहा जाता है। "69" सम्भोग क्रीड़ा के पूर्व का वह कामुक विन्यास है जो आप और आपके साथी को, एक दूसरे को, एक साथ मौखिक सेक्स देने के लिए अनुमति देता है। इस योग में आप और आपका साथी अपने मुंह से एक दूसरे के जननांगों को एक अभूतपूर्व निजता के साथ काम-सुख प्रदान कर सकते हैं। अतः, मैं उठ कर पूरी तरह से संध्या के ऊपर औंधा हो गया - जिससे मेरे दोनों पाँव उसके दोनों तरफ रहे और मेरा मुंह उसकी योनि पर और मेरा लिंग संध्या के मुंह के सामने रहे।
"अ … अ … आप क … क … क्या कर रहे ह … हैं?" संध्या के मुख से अस्फुट से स्वर निकले। पता नहीं उसको कैसा लगेगा, जब वह अपने चेहरे के सामने मेरा चूतड़ देखेगी! मेरी एकमात्र उम्मीद यह थी कि संध्या मेरे लिंग पर अपना ध्यान केंद्रित करे, न कि किसी अन्य हिस्से पर।
"जो मैं कर रहा हूँ, आप भी वही करो।" मैंने भी हाँफते हुए कहा, और अपने नितम्ब को नीचे कि तरफ दबाया जिससे मेरा लिंग उसके मुख के पास पहुँच जाए। संध्या पहले भी मेरा लिंग अपने मुंह में ले चुकी थी, अतः उसको दोबारा यह करने में कोई समस्या नहीं हुई। अगले ही छण मुझे अपने लिंग पर एक गर्म, नम और मखमली एहसास हुआ।
संध्या की योनि पहले से ही रसीली हो गयी थी। मैंने अपने अंगूठों से उसकी योनि द्वार को सरकाया और अपनी जीभ को उसकी स्वादिष्ट योनि द्वार में सरका दिया। स्त्रियों के गुप्तांग (मूलाधार, भगशेफ और योनि) बहुत संवेदनशील होते हैं और मामूली उत्तेजन से भी कामुक प्रतिक्रिया दिखाने लगते हैं। अतः मैंने अपनी जीभ को सौम्य और धीमी गति से चलना शुरू किया - ठीक इस प्रकार जैसे कि आइसक्रीम को चाटा जाता है। मैंने धीरे धीरे शुरुआत करके, चाटने की गति बढ़ा दी - और साथ ही साथ चाटने का तरीका और चाटने का दबाव भी बदलता रहा। मैंने धीरे-धीरे, अपनी उँगलियों से उसके भगोष्ठ को फैला कर उसकी स्वादिष्ट योनि के अंदर अपनी जीभ से अन्वेषण किया और ऐसा करने से मैंने उसके समस्त कामुक क्रोड़ के तार झनझना दिए।
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संध्या ने बिस्तर को थोडा व्यवस्थित किया और मेरे पहले बैठने का इंतज़ार करने लगी। मैं उसका आशय समझ कर जल्दी से बिस्तर के कगार पर बैठ गया, और उसको इशारे से अपनी तरफ बुलाया। संध्या मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर खड़ी हो गयी। मानव शरीर और मष्तिष्क अपने परिवेश से कितनी जल्दी अनुबन्ध स्थापित कर लेता है! पिछले दो दिवस से चल रही अनवरत यौन क्रिया ने संध्या के दिमाग का कुछ ऐसा ही अनुकूलन कर दिया था - जैसे ही हमको एकांत मिलता, संध्या को लगता कि सम्भोग होने वाला है। वैसे मेरे भी हालत उसके सामान ही थी - संध्या मेरे आस पास रहती तो मेरे मन में और लिंग में हलचल सी होने लगती।
"कम .... गिव मी अ किस!" मैंने उसकी कमर को थामते हुए कहा। मेरी इस बात से संध्या के गाल एकदम से सुर्ख हो गए। मैंने बड़ी मृदुलता से उसके सर को मेरी तरफ झुकाया और उसकी आँखों में देखा। वहाँ लज्जा, प्रेम, रोमांच और प्रसन्नता के मिले-जुले भाव थे। मैंने अपने होंठों को उसके होंठो से सटाया और अपनी जीभ को उसके होंठो के बीच धीरे से धकेल दिया। संध्या के होंठ सहजता से खुल गए, और मेरी जीभ उसके मुख में चली गयी। मैंने अपनी जीभ से उसके मुख के भीतर टटोलना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में उसकी जीभ को महसूस किया। संध्या ने भी मेरा अनुसरण करते हुए अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी।
इस सुंदरी को इस प्रकार चूमने का संवेदन अतुल्य था - मुझे लगा कि मैं पुनः अपने किशोरावस्था में आ गया। मुझे चूमते हुए संध्या अब और झुक गयी - उसकी बाहें मेरे गले का घेरा डाले थीं। उसके कोमल बालों का मेरे चेहरे पर स्पर्श बहुत ही आनंददायक था। मैंने उसके कपोलों पर अपनी हथेलियों से थोडा और दबाव डाला और उसको फ्रेंच किस करना जारी रखा। कुछ देर बाद मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए अपने चुम्बन को एक भिन्न दिशा देना आरम्भ किया, और अंततः उसके नितम्ब को थाम लिया और उसको अपनी गोदी में बिठा लिया, कुछ इस तरह की उसके दोनों पैर मेरे दोनों तरफ रहें और उसकी योनि वाला हिस्सा मेरे लिंग वाले हिस्से के ठीक सामने रहे।
अद्भुत बात है, मैंने सोचा, कि मैंने पिछले दो दिनों में सेक्स का मैराथन किया था और आज की पदयात्रा के कारण थक भी गया था। स्वाभाविक रूप से मुझमें अभी उत्तेजना नहीं आनी चाहिए थी। लेकिन, मेरे लिंग कि अवस्था कुछ और ही कह रही थी। किसी ज्ञानी ने सही ही कहा है कि लिंगों का अपना ही दिमाग होता है - भले ही विज्ञान कुछ और ही कहे। संध्या का पेडू मेरे लिंग से एकदम सटा हुआ था, लिहाज़ा, उसको निश्चित तौर पर मेरे लिंग का कड़ापन महसूस हो रहा था। मैं निश्चित रूप से बहुत उत्तेजित हो चला था।
मैंने उसके आकर्षक नितम्बो को अपने हथेलियों से सौंदना शुरू किया। संध्या मत्त होकर मेरे सीने को सहला रही थी - सम्भव है कि उसको भी अब मेरे सामान ही उत्तेजना प्राप्त हो गयी हो। क्रिया को आगे बढ़ाने के लिए मैंने उसके शलवार का नाडा ढीला कर दिया और अपनी तर्जनी से उसके पुट्ठों के बीच की घाटी को सहलाया। वह सम्भवतः मुझे चूमने में अत्यधिक व्यस्त थी, अतः मेरी इस क्रिया कि उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखायी। मैंने अपना हाथ ऊपर सरका कर उसके पेट और पसलियों को सहलाते हुए उसके स्तनों के आधार को छुआ। संध्या ने थोडा सा हट कर मेरे हाथों समुचित स्थान दिया। मैंने अपने हथेलियों को अपने सीने और उसके स्तन के बीच के स्थान में आगे बढ़ा कर, उसके स्तनो को पुनः महसूस करना शुरू किया। ठोस स्तनो से उसके दोनों निप्प्ल तन कर खड़े हुए थे, और कुर्ते और स्वेटर के ऊपर से भी अच्छी तरह से टटोले जा सकते थे।
मेरा लिंग पूरी तरह से अब खड़ा हो गया था, और निश्चित तौर पर संध्या उसको महसूस कर सकती थी। सम्भवतः वह लिंग के कड़ेपन का आनंद भी उठा रही थी, क्योंकि इस समय अपने नितम्ब वह बहुत थोड़ा भी मेरी गोद पर घिस रही थी। यह अविश्वसनीय रूप से कामुक था। इसी उत्तेजना में मैंने उसके कूल्हों पर अपने हाथ चलाना शुरू कर दिया। लेकिन शलवार के ऊपर से यह काम करने में कोई ख़ास मज़ा नहीं आ रहा था, अतः मैंने कुछ इस तरह कि संध्या को न मालूम पड़े, उसकी शलवार को नीचे कि ओर सरका दिया। संध्या ने चड्ढी पहनी हुई थी - लेकिन इस समय उसके इस खूबसूरत हिस्से का अधिक अभिगम मिल गया था। मैंने अपनी हथेलियों से उसके नंगे चूतड़ों का आनंद उठाना आरम्भ कर दिया। अचानक ही मैंने धीरे से मेरी उंगलियों से उसके नितंबों के बीच की दरार को छुआ। मेरे ऐसा करते ही संध्या का चुम्बन रुक गया, और उसके साँसे अब और गहरी, और तेज हो गयीं। हमारी आँखें आपस में मिलीं। उसका चेहरा संतोष की एक सुंदर नरम अभिव्यक्ति लिए था, और मैं इस दृश्य को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। मैं मुस्कुराया और संध्या भी। मैंने उसकी सुंदर नाक को चूमा और उसको बताया कि मैं उसको बहुत प्यार करता हूँ।
संध्या मेरी गोद से उठ खड़ी हुई और मैंने बिना कोई समय खोए उसका शलवार और चड्ढी पूरी तरह से उतार दिया। मैंने देखा की संध्या की योनि अभी होने वाली रति क्रिया के पूर्वानुमान से गीली हो गयी थी। मैंने उसको वापस अपनी गोद में बैठा लिया और चूमना आरम्भ किया। मैंने अभी तक अपने कपडे नहीं उतारे थे, लिहाज़ा उसकी योनि का गीलापन, अब मेरे कपड़ो को भिगो रहा था। मेरे हाथ इस समय उसके कुर्ते के अंदर था, और मैं उसकी पीठ को सहला रहा था। उसकी पीठ को सहलाते हुए मैं उसकी पीठ के निचले हिस्से को, जहाँ डिंपल होते हैं, अपनी उंगलियों से सहलाने लगा। संध्या का शरीर स्वयं ही मेरे स्पर्श से ताल मिलाने लगा। मैंने धीरे धीरे अपने हाथों को उसके शरीर के ऊपर की तरफ ले जाने लगा। मेरा परम लक्ष्य उसके छोटे और ठोस स्तनों की सुंदर जोड़ी थी। लेकिन मैं इस काम में कोई जल्दी नहीं करना चाहता था। मैं चाहता था कि संध्या अपने शरीर को सहलाये और दुलराये जाने की अनुभूति का पूरा आनंद उठाये।
मैंने उसकी पसलियों को सहलाया और सहलाते हुए अपने अंगूठों से उसके स्तनों के बाहरी गोलाइयों को छुआ। उसका शरीर इस संवेदन के जवाब में पीछे को तरफ झुक गया, लेकिन यह कुछ इतनी जल्दी से हुआ कि उसको सम्हालने के चक्कर में मेरे हाथ फिसल कर उसके स्तनो पर जा टिके। संध्या ने मुझे चूमना जारी रखा, और मेरे हाथों को अपने स्तनों पर महसूस करके पूरी तरह से खुश लग रही थी। मैंने उसके शानदार स्तनों को सहलाया। मेरे हाथों ने उसके स्तनों को पूरी तरह से ढक रखा था और उनको इस तरह से पूरी तरह से प्रवरण करने में सक्षम होने की अनुभूति अद्भुत थी। मैंने कोमलता से उसके स्तनाग्रों को सहलाया - जवाब में संध्या एक गहरी सांस भरती हुई पीछे कि तरफ मुड़ गयी। उसने चूमना बंद कर दिया था और मुँह से भारी साँसे भर रही थी। उसके शरीर की मेरे स्पर्श की इस तरह से प्रतिक्रिया करते देखना अद्भुत था।
अब समय आ गया था कि संध्या को पूर्णतया नग्न कर दिया जाए। मैंने उसके कुर्ते का निचला हिस्सा पकड़ कर उसको निकालने लगा। संध्या ने भी अपने हाथ उठा कर कुर्ते को उतारने में सहयोग किया। इस प्रकार नग्न होने के बाद, संध्या पीठ के बल लेट गयी - इसके दोनों हाथ उसके दोनों तरफ थे। मैं भी एक करवट में उसके बगल आकर लेट गया और दृष्टि भर कर उसके रूप का रसास्वादन करने लगा। उसके स्तन इतने सुन्दर थे कि मैं उनको अपनी पूरी उम्र देख सकता था - खूबसूरती से तराशे हुए! मैंने अपने सामने चल रहे इस अद्भुत दृश्य की प्रशंसा में दीर्घश्वास छोड़ा। संध्या ने वह आवाज़ सुन कर मेरी तरफ गर्व और लज्जा के मिले-जुले भाव से देखा।
मैंने लेटे लेटे ही उसके रूप का दृष्टि निरिक्षण करना जारी रखा - और उसके स्तनों, पसलियों और पेट से होते हुए उसके आकर्षक कूल्हे का अवलोकन किया। लेते हुए उसका पेट थोड़ा अवतल लग रहा था (बैठे हुए वह सपाट लगता है) और उसकी कूल्हे की हड्डियां पेट से अधिक ऊपर उठी हुई थीं और स्पष्ट रूप से परिभाषित दिख रही थीं। मेरे लिए इस प्रकार का नारी शरीर अत्यधिक आकर्षक है। दृष्टि थोड़ी और आगे बढ़ी तो उसके जघन क्षेत्र के बाल दिखने लगे। और नीचे देखा तो उसका सूजा हुआ भगोष्ठ और उन दोनों के बीच में स्थित लगभग बाल-विहीन, उसके अन्तर्भाग का द्वार, बहुत ही लुभावना दिख रहा था। मेरे इस निरिक्षण क्रिया के बीच में संध्या ने कुछ भी नहीं कहा - इस समय उसकी साँसे भी आश्चर्यजनक रूप से शांत थीं। मुझे अचानक ही अपने कार्यस्थल से एक मज़ेदार बात याद आ गयी - कि अगर मैं संध्या पर कोई रिपोर्ट लिख रहा होता, तो उसको मैं 'A1' मूल्यांकन देता।
उसी समय मुझे ध्यान आया कि मैं तो अभी भी पूरी तरह से कपड़े पहने हुए था। मैंने जल्दी से अपने सारे कपडे उतार दिए, जिससे मुख्य कार्य में कोई विलम्ब न हो। मेरा इरादा संध्या के शरीर के एक एक इंच का आस्वादन अपने हाथ और मुंह से करने का था। मैंने उसके इस काम के लिए चेहरे से आरम्भ करने कि सोची। मैंने संध्या को होंठों पर चूमा तो वह भी मुझे चूमने लगी, लेकिन मेरा प्लान अलग था। मैंने उसके पूरे चेहरे को चूमा और फिर उसके कान के निकट गया। मैंने उसके कान को चूमते हुए उसकी लोलकी को धीरे से काटन और चबाना शुरू किया। उसके दूसरे कान के साथ भी यही हुआ। मैंने साथ ही साथ अपने खाली हाथों से उसके शरीर को सहलाना भी शुरू किया। इस सम्मिलित प्रहार का असर यह हुआ कि संध्या कि साँसे फिर से बढ़ने लगीं। ऐसे ही सहलाते सहलाते मैंने उसके एक स्तन को अपने हाथ से ढक लिया और कुछ देर उनको यूँ ही दबाया। मैंने देखा कि संध्या कि आँखें अब बमुश्किल ही खुल पा रही थीं।
मैं उसकी गर्दन से होते हुए नीचे कि तरफ जाकर उसके सीने के ऊपरी हिस्से चूमने लगा। नीचे बढ़ते हुए मैंने उसके स्तनों के बीच के हिस्से, उनके नीचे और आसपास चूमा और जीभ से छेड़ा। संध्या की सांस अब काफी बढ़ गयीं थीं और उसकी आँखें कास कर बंद हो गयी थीं। उसके दोनों हाथ अभी भी उसके बगल में ही थे, लेकिन उन्माद में उसकी मुट्ठियां बंध गयीं थीं। मैंने एक और बात देखी, और वह यह कि उसने अपनी कामुक अवचेतना में अपनी टाँगे थोड़ी खोल दी थीं जिससे मैंन उसके योनि-क्षेत्र का अन्वेषण कर सकूं, मैंने अभी तक उसके स्तनों पर अपना कार्य समाप्त नहीं किया गया था।
मैंने उसके एक निपल पर अपनी जीभ फिराई - संध्या ने कांपते हुए तेज़ सांस भरी। उसकी छाती एकदम से ऊपर उठ गयी, जिससे उसका स्तन मेरे मुंह में अनायास ही भर गया। मैंने उसके चेहरे को देखा, उसकी आँखें अभी भी कस कर बंद थीं, लेकिन सांस भरने के कारण उसके होंठ थोड़ा जुदा थे। मैंने पुनः उसके निपल को चाटा तो एक बार फिर से उसकी छाती मेरे उठ कर मेरे छेड़ते हुए मुंह में भर गयी। मैंने उस निपल को मुंह में भरा और धीरे से चूसने, चबाने और काटने लगा। उसकी साँसे अब और अधिक तेजी से चलने लगीं साँस ले रहा था और बेचैनी में अपने सर को इधर उधर चलाने लगी। ऐसा करने से उसके बाल बिस्तर पर फ़ैल गए। वाह! क्या गज़ब की सेक्सी लग रही थी वह! कुछ देर उसके स्तन को इसी प्रकार छेड़ने के बाद मैंने दूसरे स्तन पर भी यही क्रिया आरम्भ कर दी, लेकिन पहले वाले स्तन को छोड़ा नहीं - उसको अपने हाथ से लगातार मसलता, दुलारता रहा। संध्या की कामोत्तेजना देखने लायक थी - उसका पूरा शरीर कसमसाने लगा, और उसने अपने दोनों पैर और ऊपर खींच लिए थे। मैंने समय देख कर उसके स्तन को छोड़ा और ऊपर पहुँच कर होंठ पर उसे चूमा। संध्या ने पहले की तुलना में कहीं अधिक शक्ति के साथ मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल कर मुझे वापस चूमा। उसने उन्माद में आ कर मुझे पकड़ लिया था।
कुछ देर ऐसे ही चूमने के बाद मैंने पुनः उसके स्तनो का भोग लगाना आरम्भ कर दिया। उसके शरीर पर वह दोनों स्वादिष्ट स्तन जिस तरह से परोसे हुए थे, मैं ही क्या, कोई भी होता तो अपने आपको रोक न पाता। मुझे लगा कि संध्या कुछ कुछ कह रही थी, लेकिन उसकी आवाज़ मेरे एक तो स्तनपान कि क्रिया के कारण धीरे-धीरे आ रही थी और ऊपर से मेरे स्वयं के उन्माद के कारण मुझे लग रहा था कि बहुत दूर से आ रही है।
"हँ?" मैंने बड़े प्रयास के बाद उसके स्तन से मुंह हटा कर पूछा।
"काश .......... इनमें ..... दूध होता …" संध्या ने दबी हुई आवाज़ में कहा।
'वाकई! काश इनमे दूध होता!' मैंने सोचा, तो मुंह में और स्वाद आ गया। मैंने और जोश में आकर उनको चूमना, चूसना और दबाना जारी रखा। मैंने कब तक ऐसा किया मुझे ध्यान नहीं, लेकिन एक समय ऐसा भी आया की संध्या दर्द भरी सिसकी भरने लगी। मुझे समझ आ गया की अब दूसरे स्तन की बारी है, और यही क्रिया उस पर भी आरम्भ कर दी। निश्चित तौर पर अब तक संध्या का संकोच समाप्त हो चला था, और वह कामुक आनंद से पूर्णतया अभिभूत हो गयी थी।
अब आगे बढ़ने का समय हो चला था। मैं उसके पेट को लगातार चूमते हुए उसके गुप्तांग तक पहुँचने लगा। मेरे हर चुम्बन के जवाब में संध्या कसमसाने लगती। इस समय उसके दोनों हाथ मेरे बालों में घुस कर मेरे सर को कभी पकड़ते तो कभी सहलाते। मैं चूमते हुए जल्दी ही उसकी योनि तक पहुँच गया। मैंने उसके जघन क्षेत्र को चूमा तो संध्या ने अपने कूल्हों को मेरे मुंह में ठेल दिया। मैंने अपनी जीभ से कुछ देर चाटा। उसकी योनि के इतने करीब होने के कारण मैं उसकी मंद स्त्रैण-गंध सूंघ सकता था। मेरा लिंग अविश्वसनीय ढंग से कड़ा हो गया था, और मैं चाहता था कि संध्या उसको महसूस कर सके।
ऐसे ही समय के लिए महान ऋषि वात्स्यायन जी ने "कोकिला योग" कि खोज की थी। कोकिला - जिसको आज कल कि भाषा में 69 कहा जाता है। "69" सम्भोग क्रीड़ा के पूर्व का वह कामुक विन्यास है जो आप और आपके साथी को, एक दूसरे को, एक साथ मौखिक सेक्स देने के लिए अनुमति देता है। इस योग में आप और आपका साथी अपने मुंह से एक दूसरे के जननांगों को एक अभूतपूर्व निजता के साथ काम-सुख प्रदान कर सकते हैं। अतः, मैं उठ कर पूरी तरह से संध्या के ऊपर औंधा हो गया - जिससे मेरे दोनों पाँव उसके दोनों तरफ रहे और मेरा मुंह उसकी योनि पर और मेरा लिंग संध्या के मुंह के सामने रहे।
"अ … अ … आप क … क … क्या कर रहे ह … हैं?" संध्या के मुख से अस्फुट से स्वर निकले। पता नहीं उसको कैसा लगेगा, जब वह अपने चेहरे के सामने मेरा चूतड़ देखेगी! मेरी एकमात्र उम्मीद यह थी कि संध्या मेरे लिंग पर अपना ध्यान केंद्रित करे, न कि किसी अन्य हिस्से पर।
"जो मैं कर रहा हूँ, आप भी वही करो।" मैंने भी हाँफते हुए कहा, और अपने नितम्ब को नीचे कि तरफ दबाया जिससे मेरा लिंग उसके मुख के पास पहुँच जाए। संध्या पहले भी मेरा लिंग अपने मुंह में ले चुकी थी, अतः उसको दोबारा यह करने में कोई समस्या नहीं हुई। अगले ही छण मुझे अपने लिंग पर एक गर्म, नम और मखमली एहसास हुआ।
संध्या की योनि पहले से ही रसीली हो गयी थी। मैंने अपने अंगूठों से उसकी योनि द्वार को सरकाया और अपनी जीभ को उसकी स्वादिष्ट योनि द्वार में सरका दिया। स्त्रियों के गुप्तांग (मूलाधार, भगशेफ और योनि) बहुत संवेदनशील होते हैं और मामूली उत्तेजन से भी कामुक प्रतिक्रिया दिखाने लगते हैं। अतः मैंने अपनी जीभ को सौम्य और धीमी गति से चलना शुरू किया - ठीक इस प्रकार जैसे कि आइसक्रीम को चाटा जाता है। मैंने धीरे धीरे शुरुआत करके, चाटने की गति बढ़ा दी - और साथ ही साथ चाटने का तरीका और चाटने का दबाव भी बदलता रहा। मैंने धीरे-धीरे, अपनी उँगलियों से उसके भगोष्ठ को फैला कर उसकी स्वादिष्ट योनि के अंदर अपनी जीभ से अन्वेषण किया और ऐसा करने से मैंने उसके समस्त कामुक क्रोड़ के तार झनझना दिए।
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