Sunday, December 15, 2013

FUN-MAZA-MASTI बदन की खुशबू--1

FUN-MAZA-MASTI
 बदन की खुशबू--1
 मेरा नाम राज है। काफी दिनों से सोच रहा था कि मैं भी अपनी कहानी सबको बताऊँ। आखिर यहीं से कहानियाँ पढ़ के मैं भी बड़ा हुआ हूँ। यहीं मैंने मुठ मारना सीखा, यहीं से मेरी सोच में सारी औरतें और लड़कियां एक सी लगने लगीं, इसलिये आज मैं आप सबको अपनी कहानी सुना रहा हूँ।

मेरा नाम तो आप जान ही गए हैं। मेरी माँ का नाम सोनम है। मैं एक संयुक्त परिवार में रहता हूँ। मेरे परिवार में मेरी दो चाचियाँ हैं, बड़ी चाची का नाम अनीता और छोटी चाची का नाम हेमा है। मेरी माँ की उमर ४२ होगी, अनीता चाची ३६ की हैं और हेमा चाची ३२ की। मेरी एक दीदी का नाम गीता है जो २१ साल की है।

बात उस समय की है जब मैं १२वीं की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली चला गया था, वहीं पे मुझे इन कामुक कहानियों की आदत पड़ी। इन कहानियों में तो माँ बहन का कोई लिहाज होता नहीं है और कहानियाँ पढ़ने में काफी रोचक होती हैं तो मैं सारी कहानियाँ पढ़ जाता हूँ। उसके बाद से जब कभी भी मैं घर वापस जाता तो मेरे दिमाग में यही कहानियाँ चलती रहती थी। इन कहानियों ने मेरी जिंदगी ही बदल दी या फिर यह भी कह सकते हैं कि मेरी लाइफ बना दी। मैं नहा कर नाश्ते के लिए गया, वहाँ अनीता चाची ही खाना खिला रही थी। चाची मुझे देख के मुस्कुराई। आज मैं चाची को देख के उनको देखता हो रह गया, वो भी मुस्कुराती ही जा रही थी। चाची ने हाफ ब्लाउज पहन रखा था, वो इतनी सेक्सी लग रही थी कि मैं बता नहीं सकता। मैंने तो सोच लिया कि आज के बाद मैं जब भी मुठ मारूंगा, चाची की पैंटी ब्रा ले के ही मारूंगा और चाची को ही याद करके अपना रस निकालूँगा।

अगले दिन जब चाची नहा के निकली, मैं नहाने के लिए जल्दी से बाथरूम की ओर दौड़ा ताकि कोई और ना चला जाए बाथरूम में। पर अन्दर जाते ही मुझे काफी निराशा हुई। इस बार चाची ने वहाँ अपने कोई कपड़े नहीं छोड़े थ। मैं उदास मन से नहा के बाहर आ गया। अपने कमरे में जा के भी मैं यही सोच रहा थी कि आज कैसे मुठ मारी जाए। तब मैं हिम्मत करके छत पे गया, वहां देखा तो चाची की पैंटी लटक रही थी। मुझे लगा कि यहाँ पर मुठ मारूंगा तो अच्छा नहीं होगा। सो मैंने उसे अपने अंडरवियर में छुपा लिया और अपने कमरे में चला गया। चाची की पैंटी को छूते ही अन्दर मेरा लंड जाग गया था। फिर कमरे में जाकर मैंने जी भर के मुठ मारी, फिर पैंटी को धो के वहीं लटका आया।

फिर मैंने इसी तरह काफी दिनों तक अनीता चाची की मदद से मुठ मारते हुए काफी मज़े लिए। इससे मेरी हिम्मत भी बढ़ती जा रही थी। अब मैं कभी कभी कमरा खुला छोड़ के मुठ मारने लगा था। अब मेरी हालत ऐसी हो गई थी कि केवल मुठ मार के मेरा मन नहीं भरता था। अब चाची के कपड़ो से मेरा लंड कड़क नहीं हो पाता था। मुझे लगा कि अब कुछ करना पड़ेगा।

मैं अब अनीता चाची के कमरे में ताक-झांक करने लगा, यह सोच कर कि कभी मैं चाची को नंगा देख सकूँ तो मजा आ जाए। बाथरूम में तो कई बार कोशिश कर चुका था पर चाची हमेशा बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर लेती थी, इसलिए मुझे सफलता नहीं मिल पाई थी।

एक दिन दोपहर में जब काफी गर्मी थी तो मैं खाना खा के चाची के कमरे में चला गया। वहाँ खिड़की में काफी बड़े-बड़े परदे लगे हुए थे। उसमें कोई भी आसानी से छुप सकता थ। गर्मी इतनी थी तो मैंने सोचा शायद चाची जब काम करके आएगी तो कुछ कपड़े तो जरूर उतारेंगी, यही सोच कर मैं परदे के पीछे छुप गया। थोड़े देर बाद जब चाची आई तो मेरा सोचना सही निकला।

चाची ने कमरे का दरवाज़ा बंद करके तुंरत ही साड़ी उतार फेंकी। मैं तो देखता ही रह गया। चाची ब्लाउज और साये में काफी खूबसूरत लग रही थी। चाची बिस्तर पर लेट गई पर गर्मी इतनी थी कि चाची को अभी भी पसीना आ रहा था। चाची से रहा नहीं गया, उन्होंने साया पूरा उपर कर लिया। अब मैं उनकी जांघों का मज़ा ले रहा था। उन्होंने गुलाबी रंग की पैन्टी पहन रखी थी, वो पसीने से भीग चुकी थी। मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि आज इतनी गर्मी हो कि चाची पूरी नंगी हो जाए और मेरा सपना पूरा हो जाए। पर भगवान ने मेरी सुनी नहीं। चाची साया ऊपर करके ही सो गई।

काफी देर इन्तज़ार करने के बाद मैं उनकी जांघों को ही देख के मुठ मारने लगा और रस को अपने हाथ में गिरा लिया ताकि किसी को पता न चले और खिड़की से ही कूद के अपने कमरे में चला गया।

दूसरे दिन भी मैं आशा लगा के वहीं छुप गया। आपको यकीन नहीं होगा कि अगले दिन भगवान ने मेरी सुन ली थी। चाची ने आते ही साड़ी ब्लाउज और साया तीनों उतार कर फ़ेंक दिए। पैंटी और ब्रा में चाची किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। चाची बिस्तर पे लेट गई और अपने हाथ से पैंटी को सहलाने लगी। मुझे लगा कि चाची ऐसे ही सहला रही है, पर चाची ने जब अपनी चूत में अपनी उंगलियाँ डालनी शुरू की तो मुझे लगा कि आज चाची गरम हैं, आज वो भी मुठ मारने वाली हैं। मुझे तो स्वर्ग मिल गया था।

चाची ने फिर फिर अपनी पैंटी उतार दी और मैं उनकी चूत को देखता रह गया। और चाची ने फिर अपनी ब्रा भी उतार कर फ़ेंक दी। उनकी चुचियों को पहली बार मैं ऐसे नग्न देख रहा था। ३८ इंच की उनकी चूचियाँ बस मेरी हालत ख़राब कर रही थी। इतनी बड़ी चूचियाँ मैंने तो सपने में ही देखी थी। उधर मेरा हाथ मेरे लंड की माँ बहन एक कर रहा था। मुझे पता भी नहीं चला कब चाची उठ कर खिड़की की तरफ़ आने लगी। मैंने जैसे ही देखा तो मैं जल्दी से खिड़की से कूद के भाग गया।

मैं इतना गरम हो चुका था कि खुले दरवाज़े ही मैं अपने बिस्तर पर लेट के ज़ोर ज़ोर से लंड हिलाने लगा। हिलाते हिलाते जब मेरी नज़र दरवाज़े पर गई तो मैं तो बस पत्थर हो गया। देखा कि चाची मुझे देख रही हैं। चाची को देखते ही मेरा लंड एकदम सिकुड़ गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ !

तब चाची ही बोली- क्या कर रहा है रे राज?

मैं: कुछ नहीं चाची!

चाची: कुछ नहीं का मतलब? तू ये सब कब से कर रहा है और किसने सिखाया तुझे ये सब ! हाँ ?

मैं: चाची, मैं कभी कभी करता हूँ, वो मेरे एक दोस्त ने बताया था इसके बारें में !

चाची: तूने ऐसे ऐसे दोस्त बना के रखे हैं जो तुझे ये सब सिखाते हैं?

मैं: चाची मुझे माफ़ कर दीजिये, मैं आगे से कभी नहीं करूँगा ! और प्लीज़ किसी को नहीं बताइयेगा !

चाची: ठीक है वो सब, मैं किसी को नहीं बोलूंगी पर तू मेरे जवाबों का सही सही जवाब देगा तब !

मैं: हाँ चाची, मैं आपको सब सच सच बोलूँगा।

चाची: किसके बारे में सोच के अभी तू हिला रहा था?

मैं: सच बोलूं चाची? आपको सोच के हिला रहा था !

चाची: मुझे सोच के हिला रहा था या देख के हिला रहा था? तू मेरे कमरे में था ना खिड़की के पास?

मैं: नहीं चाची, मैं नहीं था !

चाची ने मेरे गाल पे एक ज़ोर से तमाचा मारा।

चाची: तूने बोला कि सब सच बोलूँगा और तू झूठ बोले रहा हैं। मैंने तो कल ही समझ लिया था जब मैंने खिड़की के परदे के नीचे तेरे रस की कुछ बूंद देखी। क्यूँ तेरे ही काम थे थे ना वो ?

मैं: चाची, पता नहीं कैसे गिर गया वो, मैंने तो हाथ में ही निकाला था। सॉरी चाची...!

चाची: और तू ही मेरे ब्रा और पैंटी ले के उसमें मुठ मारता है ना? वो सब दाग तुमने ही लगाये थे न मेरे कपडों में?

मैं: चाची आपको वो भी मालूम चल गया? पर मैं तो उसे धो देता था !

चाची: अरे इसके दाग ऐसे ही थोड़े चले जाते हैं, और फिर मैं तेरी चाची हूँ रे ! कोई दूध पीती बच्ची नहीं ..तुझे ये क्या सूझी रे कि तूने अपने चाची को अपनी मुठ मारने का जरिया बना लिया?

मैं: चाची मुझे माफ़ कर दीजिये, पर क्या करूँ आप हो ही इतनी सेक्सी कि मैं अपने आप को रोक नहीं पाया !

चाची: तुझे ये ३६ साल की औरत सेक्सी लगती है रे... तू भी ना ! ... अच्छा सुन ये अच्छी बात नहीं है.. ज्यादा मुठ मत मारना.. और अगली बार जब मुठ मारने का मन करे मुझसे कपड़े मांग लेना, मैं दे दूंगी, ऐसे चोरी मत कर ! एक दिन पकड़ा जाएगा.. पर ज्यादा नहीं, हफ़्ते में २ बार से ज्यादा नहीं मारना, ठीक है...?

मैं: हाँ चाची.. आप बहुत अच्छी हो... !

फिर मैं चाची से उनकी पैंटी और ब्रा मांग के हिलाने लगा. मुझे ऐसा लगने लगा था की चाची मेरे इस आदत का मज़ा ले रही है. मुझे ऐसा भी लग रहा थी चाची शायद मुझे अपनी चूत भी मारने दे ! मुझे लग रहा थी कैसे चाची से बात करूँ इस बारें में। दूसरे दिन जब मैं चाची से उनकी पैंटी मांगने गया तो चाची की बातें बहुत मजेदार थी.

चाची: कल ही तो ली थी तुमने, आज फिर से चाहिए, कितना मनचला हो गया है मेरा भतीजा ! आज कोई पैंटी नहीं मिलेगी ! वो छत पर ही है और मैं नहीं लाने वाली....

मैं: चाची मैं तो मर जाऊंगा अगर नहीं मुठ मारूँगा तो, चाची दो ना ऐसा मत बोलो..!

चाची: अरे तुझे क्या लग रहा है कि मैं झूठ बोल रही हूँ ? तू खोज ले पूरे कमरे में, यदि मिल जाए तो ले ले...

मैंने सब जगह देखा, पर शायद चाची सच बोल रही थी, मुझे कहीं भी ब्रा या पैंटी नहीं मिली। तब मुझे एक आईडिया आया !

मैं: चाची आप सच बोल रही थी, पर मुझे एक मिल गई ...आप दोगी न उसे...?

चाची: मिल गई तो ले ले , पूछ क्यूँ रहा है?

मैं: चाची वो तो आपको देनी होगी, आपने जो अभी पहन रखी है मुझे तो वही पैंटी चाहिए...!

चाची: पागल हो गए हो क्या, ये नहीं मिलेगी, गन्दा कर दोगे, मैं क्या पहनूंगी उसके बाद? नहीं मैं नहीं दे सकती ! जा आज तू कुछ और उपाय कर..!

मैं: चाची, आप ऐसा मत करो, मैं आपकी मिन्नतें करता हूँ.. आप जो बोलोगी मैं करूँगा पर आज मुझे अपने पैंटी दे दो.. आज मैं उसकी ताज़ी सुगंध से मस्त हो जाना चाहता हूँ...!

चाची: जो बोलूंगी वैसा करेगा तब दे सकती हूँ... !

मैं: चाची आप एक बार बोल के देखो तो , आप जैसा बोलोगी मैं वैसा ही करूँगा !

चाची: आज तब तू मेरे सामने हिलाएगा... जो भी करेगा मेरी पैंटी के साथ, वो मेरे सामने करना पड़ेगा...!

मैं : चाची पर आपके सामने तो मेरा खड़ा भी नहीं होगा डर से.. आपने देखा नहीं था? जिस दिन अपने मुझे मेरे कमरे में पकड़ा था, मेरा कैसे सिकुड़ के छोटा हो गया था...

मुझे ऐसा लगने लगा कि आज तो मैं सफल हो ही जाऊंगा, लगा चाची आज गरम है और वो आज मुझे चोदने दे सकती है।

इसलिए मैंने चाची से फिर से बोला...

मैं: चाची पर एक बात बोलूं ! यदि आप मेरी मदद करो तो शायद मेरा लंड खड़ा हो जाएगा... चाची ! बोलो आप मेरी मदद करोगी न... ?

चाची: मैं कैसे मदद करुँगी.. ?.

मैं: चाची यदि आप मेरे लिए अपने सारे कपड़े निकाल दोगी तो मेरा लंड जरूर खड़ा हो जाएगा... !

चाची: बदमाश कनीं का ! आज तू मुझे नंगा होने के लिए बोले रहा है.. ? तेरी इतनी हिम्मत... ? तुझे मैं अपने कपड़े देने लगी तो तू कुछ भी बोलेगा ? जाके के तेरी मम्मी को सब बोले दूंगी !

मुझे लगा चाची गुस्सा कर रही हैं, सो मैंने सोचा छोड़ दें, पर फिर लगा नहीं एक बार और कोशिश की जाए, शायद चाची ऐसे ही मजाक कर रही हो.. फिर यदि चाची फिर से गुस्सा करेगी तो मैं माफ़ी मांग लूँगा...

मैं: चाची आप गुस्सा मत करो, ठीक है आप जैसा बोलोगी मैं वैसा ही करूँगा... पर चाची एक बात पूछूं?

चाची: हाँ पूछ !

मैं: चाची आप वादा करो इस बार गुस्सा नहीं करोगी?

चाची: हाँ रे ! ठीक है, नहीं करूंगी गुस्सा..

मैं: चाची जब पहले दिन आपने ये पता लगा लिया था कि मैंने खिड़की के पीछे खड़ा हो के वहां पे मुठ मारा था..तो फिर दूसरे दिन आप कमरे में आ के पूरी नंगी क्यूँ हुई थी...? सच बोलो चाची ! आप जानती थी ना कि मैं वहां हूँ ! और आप मुझे दिखा के मुठ मार रही थी ना...?

चाची: तूने तो मुझे चुप करा दिया रे....! अब मैं क्या बोलूं, हाँ मुझे यकीन था की तू वहां है, इसलिए मैंने वो सब कुछ किया था, और मैं जानबूझ के खिड़की की तरफ़ गई ताकि तुझे पकड़ सकूँ. पर तू भाग गया था।

मैं: चाची जब आप उस दिन नंगी हो सकती थीं तो आज क्यूँ नहीं? चाची आज तो आपको अब नंगा होना ही होगा.. !

चाची: ठीक है अब तो मना भी नहीं कर सकती.. !

उसके बाद चाची ने अपनी साड़ी उतार दी... फिर ब्लाउज और साया भी साइड में फेंक दिया.. और पैंटी को स्टाइल से खोल के मेरी तरफ़ फेंक दिया..

चाची: ले बदमाश ले सूंघ और हिला अपने लंड को.. !

मैंने चाची की पैंटी को नाक से लगाया ... उसकी मादक सुगंध से मेरा लंड तन गया.. फिर चाची को देख के लंड तड़पने लगा..

मैंने सोचा आज मौका है आज चाची से बोलता हूँ कि मेरी लंड की मालिश करें.. !

मैं: चाची अपनी ब्रा उतारो ना, आपकी चूची देखनी हैं..!

चाची: क्यूं रे ! क्या करेगा मेरी चूची देख के?

मैं: चाची आपके शरीर में सबसे प्यारी चीज़ तो आपकी चूची है.. उसे देख के मेरा लंड और भी तन जाएगा।

चाची: तुझे मेरी चूची इतनी अच्छी लगती है,

मैं: हाँ चाची आपकी चूची तो सारी ब्लू फ़िल्म की नायिकाओं से भी अच्छी है।

चाची : ठीक है, लगता है तू चूची का शौकीन लगता है.. ले देख मेरी चूची.. और अच्छे से हिला ..!

मैं : चाची एक बात पूछूँ , आप चाचा के लंड को छूती हैं ना?

चाची: हाँ तेरे चाचा के लंड पर तो मेरा अधिकार है.. उसे मैं छूती ही हूँ !

मैं: चाची मेरे लंड पे भी तो आपका अधिकार होता है.. तो आप मेरे लंड को पकड़िये ना.. देखिये ना कैसे ये लंड आपके हाथों में आने के लिए तड़प रहा है।

चाची: नहीं रे.. ! तू पागल हो गया है क्या.. ? मैं नहीं छूती तेरा लंड.. चल हिला अपना लंड ख़ुद से...!

फिर मैं चाची के पास जा के लंड हाथ में ले के :

मैं: चाची लो ना देखो कितना तड़प रहा है ये.. ले लो ना चाची.. आपके हाथ का सोच के ही ये हाल है... यदि आपने इसे हाथ में ले के थोड़ा प्यार से हिला देंगी तो सोचो कि ये कितना खुश होगा।

फिर चाची के हाथ पे ज़बरन मैंने अपना लंड रख दिया.. चाची ने अब मना नहीं किया.. चाची ने जैसे मेरे लंड को प्यार से सहलाया.. मुझे लगा कि झड़ जाऊंगा..

मैं: चाची मेरा रस निकलने वाला है..

चाची: इतनी जल्दी ...

मैं: चाची क्या करूँ आपके छूने से मेरा रस उबलने लगा था.. अब नहीं रहा जा रहा है ...

इतनी बात करते ही मैंने अपना रस निकाल दिया.. जो चाची के बूब्स पे गिरा...चाची और भी सुंदर लग रही थी..

मैं: सॉरी चाची.. सारा आपके चूचियों पर गिर गया...मैं साफ़ कर दूँ...?

चाची: अब तू चूची को हाथ लगाने के बहाने निकाल रहा है.. जरूरत नहीं है.. जा भाग अब.. !

मैं: चाची आपका मन नहीं है ना मुझे भगाने का ! मुझे पता है आप मुझे सब कुछ करने को देंगी.. देंगी ना चाची.. ?

आप मेरी सबसे अच्छी चाची हो..

चाची: चल हट यहाँ से.. क्या क्या करना है तुझे रे... ज़रा बता तो एक बार..!

मैं: चाची मैं आपको चूमना चाहता हूँ, आपकी दूध पीना चाहता हूँ, आपकी चूत का मज़ा लेना चाहता हूँ, आपकी चूत का रस पीना है मुझे ! फिर मुझे आपको चोदना भी है...

चाची: तू तो एक दम हरामी हो गया है रे.. अपनी चाची को ही चोदेगा... तू तो मादरचोद निकल गया है ... तुझसे तो बच के रहना पड़ेगा..

मैं: चाची आप गली भी देती हैं... आप भी कम हरामी थोड़े हैं, आपने अपने भतीजे का लंड पकड़ा है.. उसे अपनी कपड़े दिए हैं.. उसके सामने मुठ भी मारी है.. चाची मुझे मालूम हो गया कि आप बहुत बड़ी चुद्द्क्कड़ हैं... चाची सच बोलिए आपको मेरा लंड चाहिए ना...?

चाची: तू तो बड़ा हरामी है रे... मैंने तेरी मदद की तो आज मुझे ही चुदासी बना दिया.. आज से तुझे कुछ नहीं मिलेगा...!

मैं: चाची आप ऐसा नहीं करो,, मैं तो मर जाऊंगा.. मैंने तो सोचा कि ऐसा बोलने से आप मुझे चोदने दोगी तो मैंने बोल दिया.. मुझे माफ़ कर दीजिए।

चाची: ऐसा बोलने से कोई तुझे चोदने दे देगा..

मैं: तब चाची कब कोई मुझे चोदने देगा.. बोलिए न चाची मुझे आप कब चोदने दोगी..?

चाची: तू नहीं मानेगा न.. ठीक है चल तू अपनी माँ के सामने यदि मुझसे बोलेगा कि चाची चोदने दो.. और तेरी माँ भी बोलेगी कि हाँ चुदा ले तो मैं तुझसे जरूर चुदवाऊँगी।

मैं: चाची इतनी मुश्किल शर्त रख दी आपने.. ठीक है मैं आज डिनर के समय ही मम्मी से बात करूँगा..!

फिर उस दिन डिनर पर मैं चाची और मम्मी के साथ ही खाने को बैठा, मुझे काफी डर लग रहा था कि मम्मी से कैसे बात की जाए.. फिर अचानक लगा कि कुछ घुमा के मम्मी से बात कर लेते हैं..

मैं: चाची आप मेरे इच्छा पूरी नहीं करोगी ना, मैं कब से आपसे एक चीज मांग रहा हूँ.. आप क्यूँ नहीं देतीं?

मम्मी: क्या हुआ राज क्या चाहिए तुझे चाची से, जो वो नहीं दे रही है..

मैं: कुछ नहीं मम्मी ! एक बहुत प्यारी चीज है चाची के पास मैं वही मांग रहा हूँ.. पर चाची देने को तैयार ही नहीं होती !

मम्मी: क्यूँ री अनीता ! मेरे बेटे को वो चीज क्यूँ नहीं दे देतीं? देख बेचारा कितना परेशान है?

चाची: ठीक है दीदी ! मैं आज ही दे दूँगी इसे..

मैं तो उछल पड़ा.. मैंने मम्मी से हाँ तो करवा लिया था.. फिर चाची ने मुझसे कहा कि कल लंच के बाद आ के ले लेना राज...!

उसके बाद मैं हवा में उड़ने लगा था, मैं बस किसी तरह चाहता था कि रात ख़त्म हो.. और लंच का टाइम आ जाए... उस दिन रात काफी लम्बी लग रही थी .. पर आखिर में मेरा इंतज़ार ख़त्म हो गया.. सुबह मैं काफी अच्छे से नहा के सेंट वेंट लगा के लंच करने गया.. जल्दी से लंच करके चाची के कमरे में जा कर इन्तज़ार करने लगा चाची का.. ! आज मैं चाची को चोदने वाला था.. यह सोच कर मेरा मन फ़ूला नहीं समां रहा था.. फिर चाची कमरे में आई..

मैं बेड पे लेट के टीवी देख रहा था..

चाची: तो राज आखिर तुमने अपना दिमाग लगा के माँ से हाँ करवा लिया न...!

मैं: चाची मैं आपको चोदने के लिए कुछ भी कर सकता था... !

चाची: आज तो चाची भी तुझसे चुदना चाहती है..देख अच्छे से चोदना चाची को.. जल्दी बाज़ी में मत चोदना.. जैसे बोलूँ वैसे चोदना.. !

मैं: चाची आप जैसा बोलोगी, मैं वैसे ही चोदूँगा..!

चाची: तू आ आज तू मेरी कपड़े उतार ...!

फिर मैं चाची के पास गया , और चाची की साड़ी उतार दी.. फिर चाची की चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा.. फिर चाची ने ख़ुद ही ब्लाउज उतार दिया.. फिर मुझे लगा कि चाची को पूरा नंगा कर दूँ.. और मैंने चाची की ब्रा, साया, पैंटी सब निकाल दिया.. फिर चाची बिस्तर पर लेट गई और मैं चाची को खड़ा देखने लगा.. चाची को ऐसे देख के तो किसी मुर्दे में भी जान आ जाती..

चाची: क्यूँ रे दूर से ही देखता रहेगा.. या पास भी आएगा.. आ मेरे पास आ ना..

मैं चाची के पास जा के बैठ गया..

चाची: तू कल बोल रहा था न मेरा दूध पिएगा.. ये ले आ जा मेरे दूध पी जा..

मैं भी चाची के चूचियों को प्यार से सहलाने लगा..उनकी चूचियां मेरे हाथों में नहीं आ पा रही थी.. इतनी बड़ी और इतनी मुलायम चूची ... बस मन कर रहा था कि दबाता ही रहूँ। फिर मैं चाची की एक चूची को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा.. और दूसरी को पूरी ताकत से दबा रहा था.. चाची बड़े प्यार दे मुझे अपना दूध पिला रही थी.. हालाँकि चाची की चूची में दूध अब आता नहीं था, पर चाची की चूची बहुत स्वादिष्ट थी..

मैं: चाची आपने तो बोला दूध पियो.. पर आपके चूची से तो दूध नहीं निकाल रहा है.. चाची अब दूध कैसे पियूँ?

चाची: अरे मेरे लाल ... चूची का दूध ख़त्म हो गया है.. पर आ तुझे अपना खास दूध पिलाती हूँ, मेरी चूत पे जा और चाट जा चूत का सारा दूध ...

मैं: चाची आपकी बूर का रस मीठा है न?

चाची: तू चख के देख ले.. चूची का दूध भूल जाएगा..

फिर मैं चाची की चूत के पास जाकर बैठ गया.. चाची की चूत में हल्की हल्की झांट थी.. जो पसीने से भीगी हुई थी.. मैंने पहले चाची की झांट को चाटा.. चाची की झांट इतनी नमकीन थी कि बस चाटने का ही मन कर रहा था.. चाची उधर अपनी गांड उठा उठा कर मुझे इशारे कर रही थी कि चूत चाट..

तो मैंने सोचा कि अब चाची को ज्यादा न परेशान करूँ..फिर चाची की चूत को प्यार से सहलाया.. चाची की चूत तड़प में गीली हो गई थी.. मैंने पहले चाची की चूत में अपनी एक ऊँगली डाली, वो चाची की चूत में काफी आराम से आ जा रही थी.. तब मैंने दो दो उँगलियाँ एक साथ घुसाना शुरू किया. तब चाची को मज़ा आने लगा.. चाची हल्की हल्की आवाज़ निकलने लगी.. चाची की आवाज़ सुन के मैं और तेज़ी से उनकी चूत फाड़ने लगा.. चाची की चूत एकदम गीली हो गई थी.. सो मैंने सोचा अब बुर रसपान कर लिया जाए.. और चाची की बुर में अपना मुँह रख दिया... बूंद बूंद चाट लिया ... इतनी स्वादिष्ट रस मैंने आज तक नहीं पिया था.. चाची चूत उठा उठा के मुझे चूत का रस पिला रही थी..मैं चूत का रस ऐसे चूस रहा था जैसे कोई निम्बू से रस चूसता है..मुझे सब कुछ सपना लग रहा था.. मैंने चाची की बूर का इतना रसपान किया चाची ने ख़ुद से मना किया..

चाची: अरे बस भी कर कितना प्यासा है.. क्या मुझे मार ही डालेगा..

मैं: चाची आपका चूत-रस इतनी प्यारा है कि मैं हमेशा आपका रस चूसता रहूँ।

चाची: तूने तो मुझे धन्य कर दिया रे.. आजतक ऐसा रसपान ज़िन्दगी में किसी ने नहीं किया.. चल अब आ मैं तेरी सेवा कर दूँ..

मै: क्या करोगी चाची?

चाची: आ मैं तेरी लंड की प्यास बुझा दूँ.. तू भी चाहता है न कि मैं तेरा लंड अपने मुँह में लूँ?

मैं: चाची मैं तो रोज़ रात को सपने में अपना लंड आपके मुँह में देता हूँ.. मुझे तो वि्श्वास नहीं हो रहा है कि.. आप इसे मुँह में लोगी।

फिर चाची ने मेरी लंड को अपने हाथ में लिया.. मेरा लंड गरम होकर इतना कड़ा हो गया था कि चाची ने उसे छूते ही अपने मुँह में ले लिया.. आज मेरे लंड को अपनी मंजिल मिल गई थी। चाची मेरे लंड को आइसक्रीम की तरह चाट रही थी.. चाची के चाटने के अंदाज़ से लग रहा था कि चाची तो लंड की शौकीन हैं। चाची लंड मुँह से निकाल के उसे अपनी चूची से सटाने लगी ... लंड से चाची की चूची को छू के इतना प्यारा लगा कि मैं बयान नहीं कर सकता.. मेरा लंड बस अब चाची की चूत का प्यासा था.. फिर चाची ख़ुद ही लेट के लंड को अपनी चूत से सटाने लगी.. तब मुझे लगा कि अब समय आ गया है.. चाची भी चुदना चाहती है...

मैं: चाची अब मैं आपको चोद लूँ?

चाची: हाँ राज आ अब अपनी चाची की चूत को चोद डाल.. ! पूरी जान लगा के चोदना.. ! बहुत दिन से प्यासी है तेरी चाची की ये चूत.. आज इसकी प्यास बुझा दे मेरे लाल...!

फिर मैं चाची को नीचे लिटा के उनके ऊपर आ गया.. चाची की चूत पे अपनी लंड को रखा और उसे चूत पे रगड़ने लगा। चाची से रहा नहीं जा रहा था.. चाची ने चूत उठा के गली दी की मादरचोद अब चोद भी.. कितना इन्तज़ार कराएगा..

फिर मैंने चाची की चूत में अपना लंड घुसाना सुरु किया.. एक ही बार में मेरा लंड आधा चाची की चूत में चला गया... फिर मैंने दूसरी बार जब ज़ोर लगाया तब मेरा पुरा लंड चाची की चूत में.. मुझे ऐसा लग रहा की चाची की चूत स्वर्ग हो.. मेरा लंड तो फुला नहीं समां रहा था.. मैंने चाची की चूत में ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने सुरु किया.. चाची काफी ज्यादा आवाज़ कर रही थी.. चोद डाल.. चोद मेरे ला..चोद दे अपनी चाची को.. चाची जैसे जैसे बोले रही थी.. मैं और भी ज़ोर ज़ोर से चाची को चोद रहा था..फिर मैंने चाची घुमने की लिए बोला.. और चाची के पीछे से उनकी चुचियों को दबाते हुए.. लंड को फिर से चाची की चूत में डाल दी.. चाची मज़ा ले ले के चुदवा रही थी.. फिर मैंने चाची को कुतिया बन्ने को कहा.. और चाची के पीछे जाकर.. चाची की चूत की खूब पूजा की.. आज मेरा लंड काफी साथ दे रहा था.. चाची एक बार पुरी तरह से स्खलित हो चुकी थीं.. उसके बाद मेरा लंड फच फच की आवाज़ के साथ चाची की चूत फाड़ने लगा.. अब मेरा लंड भी अपनी पानी उगलने वाला था..

मैं: चाची मेरा लंड पानी निकलने को तैयार है..

चाची: निकाल दे बेटे चाची की चूत में ही निकाल दे.. चूत को काफी दिनों से नहीं मिली है लंड का रस..

मैंने पूरा का पूरा पानी चाची की चूत में डाल दिया.. चाची ने ज़ोर से मुझे गले लगा लिया और मुझे प्यार से चूमने लगी..

चाची: कैसा लगा बेटा चाची को चोद के.. मज़ा आया न तुझे.. ?

मैं : चाची मेरे ज़िन्दगी बन गई आज....

आज से आप जैसा बोलोगी.. मैं वैसा ही करूंगा... आप मेरी चाची हो.. मेरी दुनिया हो... मेरी लव हो.. ! चाची, मैं आपको रोज़ चोदूंगा.. चुदवाओगी न चाची.. बोलो न...!

चाची: हाँ मेरे लाल मैं तेरे से रोज़ चुदवाऊँगी.. चल अब जा अपने कमरे में ! नहीं तो कोई पकड़ लेगा ....

फिर अनीता चाची को मैं रोज़ चोदने लगा !

पाठकों ! यदि आपको यह कहानी अच्छी लगी है तो मुझे ज़रूर मेल कीजिये, तब मैं आपको आगे की कहानी बताऊंगा.. अभी मेरी हेमा चाची..और माँ की कहानी बाकी है...

मैं घर पे काफी अकेला-अकेला सा रहने लगा। अकेले में कहानियों को याद करके मैं दिन में कई बार मुठ मारता था।

एक दिन जब मैं नहाने के लिए बाथरूम में गया तो देखा वहां अनीता चाची की पैंटी और ब्रा लटक रही थी। शायद चाची उन्हें ले जाना भूल गई थी। यह पहली बार था कि मैं किसी औरत की पैंटी और ब्रा इतनी पास से देख रहा था। मेरा हाथ रोके नहीं रुका और मैं उनको अपने हाथ में ले के सूंघने लगा, उसकी मादक सुगंध से मैं मदहोश होने लगा। मैं पैंटी को अपने मुँह में लेके चूसने लगा. मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं अनीता चाची की चूत चूस रहा हूँ। उसके बाद मैं ब्रा को भी मुँह में ले के खेलने लगा।

उस दिन पहली बार मेरा लंड इतना बड़ा लग रहा था। मेरे लंड का आकार इतना बड़ा आज तक नहीं हुआ था। उसके बाद मैंने अपने लंड से पैंटी और ब्रा को खूब चोदा, उसे लंड में लपेट के मैंने अपना मुठ उसी में गिरा दिया, फिर अच्छे से धो के चाची की ब्रा और पैंटी वहीं रख दी। उस दिन हिलाने में जितना मजा आया था उतना पहले कभी नहीं आया था।
बचपने से जब भी ज़ोरों की बारिश होती या ज़ोर की बिजली कड़कती थी तो मैं डर के मारे घर में दुबक जाया करता था। पर उस रात की बारिश ने मुझे रोमांच से लबालब भर दिया था। आज भी जब ज़ोरों की बारिश होती है, और बिजली कड़कती है, मुझे एक शेर याद आ जाता है:

ऐ ख़ुदा इतना ना बरस कि वो आ ना पाएँ !
आने के बाद इतना बरस कि वो जा ना पाएँ !!

जून महीने के आख़िरी दिन चल रहे थे। मधु (मेरी पत्नी, मुधर) गर्मियों की छुट्टियों में अपने मायके गई हुई थी। मैं अकेला ड्राईंग रूम मे खिड़की के पास बैठा मिक्की के बारे में ही सोच रहा था। (मिक्की मेरे साले की लड़की है)। पिछले साल वह एक सड़क-दुर्घटना का शिकार हो गई थी और हमें रोता-बिलखता छोड़ कर चली गई थी। सच पूछो तो पिछले एक-डेढ़ साल में कोई भी दिन ऐसा न बीता होगा कि मैंने मिक्की को याद नहीं किया हो। वो तो मेरा जैसे सब कुछ लूट कर ही ले गई थी। मैं उसकी वही पैन्टी और रेशमी रुमाल हाथों में लिए बैठा उसकी याद में आँसू बहा रहा था। हर आहट पर मैं चौंक सा जाता और लगता कि जैसे मिक्की ही आ गई है।

दरवाजे पर जब कोई भी आहट सी होती है तो लगता है कि तुम आई हो
तारों भरी रात में जब कोई जुगनू चमकता है लगता है तुम आई हो
उमस भरी गर्मी में जब पुरवा का झोंका आता है तो लगता है तुम आई हो
दूर कहीं अमराई में जब भी कोई कोयल कूकती है लगता है कि तुम आई हो !!

उस दिन रविवार था। सारे दिन घर पर ही रहा। पहले दिन जो बाज़ार से ब्लू-फिल्मों की ४-५ सीडी लाया था उन्हें कम्प्यूटर में कॉपी किया था। एक-दो फ़िल्में देखी भी, पर मिक्की की याद आते ही मैंने कम्प्यूटर बन्द कर दिया। दिन में गर्मी इतनी ज्यादा कि आग ही बरस रही थी। रात के कोई १० बजे होंगे। अचानक मौसम बदला और ज़ोरों की आँधी के साथ हल्की बारिश शुरु हो गई। हवा के एक ठंडे झोंके ने मुझे जैसे सहला सा दिया। अचानक कॉलबेल बजी और लगभग दरवाज़ा पीटते हुए कोई बोला, "दीदीऽऽऽ !! ... जीजूऽऽऽ.. !! दरवाज़ा जल्दी खोलो... दीदी...!!!?" किसी लड़की की आवाज थी।

मिक्की जैसी आवाज़ सुनकर मैं जैसे अपने ख़्यालों से जागा। इस समय कौन आ सकता है? मैंने रुमाल और पैन्टी अपनी जेब में डाली और जैसे ही दरवाज़े की ओर बढ़ा, एक झटके के साथ दरवाज़ा खुला और कोई मुझ से ज़ोर से टकराया। शायद चिटकनी खुली ही रह गई थी, दरवाज़ा पीटने और ज़ोर लगाने के कारण अपने-आप खुल गया और हड़बड़ाहट में वो मुझसे टकरा गई। अगर मैंने उसे बाँहों में नहीं थाम लिया होता तो निश्चित ही नीचे गिर पड़ती। इस आपा-धापी में उसके कंधे से लटका बैग (लैपटॉप वाला) नीचे ही गिर गया। वो चीखती हुई मुझसे ज़ोर से लिपट सी गई। उसके बदन से आती पसीने, बारिश और जवान जिस्म की खुशबू से मेरा तन-मन सब सराबोर होता चला गया। उसके छोटे-छोटे उरोज मेरे सीने से सटे हुए थे। वो रोए जा रही थी। मैं हक्का-बक्का रह गया, कुछ समझ ही नहीं पाया।

कोई २-३ मिनटों के बाद मेरे मुँह से निकला "क्क..कौन... अरे.. नन्न्नन.. नि.. निशा तू...??? क्या बात है... अरे क्या हुआ... तुम इतनी डरी हुई क्यों हो?" ओह ये तो मधु की कज़िन निशा थी। कभी-कभार अपने नौकरी के सिलसिले में यहाँ आया करती थी, और रात को यहाँ ठहर जाती थी। पहले मैंने इस चिड़िया पर ध्यान ही नहीं दिया था।

आप ज़रूर सोच रहे होंगे कि इतनी मस्त-हसीन लौण्डिया की ओर मेरा ध्यान पहले क्यों नहीं गया। इसके दो कारण थे। एक तो वो सर्दियों में एक-दो बार जब आई थी तो वह कपड़ों से लदी-फदी थी, दूसरे उसकी आँखें पर मोटा सा चश्मा। आज तो वह कमाल की लग रही थी। उसने कॉन्टैक्ट लेंस लगवा लिए थे। कंधों के ऊपर तक बाल कटे हुए थे। कानों में सोने की पतली बालियाँ। जीन्स पैन्ट में कसे नितम्ब और खुले टॉप से झलकते काँधारी अनार तो क़हर ही ढा रहे थे। साली अपने-आप को झाँसी की शेरनी कहती है पर लगती है नैनीताल या अल्मोड़ा की पहाड़ी बिल्ली।

ओह... सॉरी जीजू... मधु दीदी कहाँ हैं?... दीदी... दीदी..." निशा मुझ से परे हटते हुए इधर-उधर देखते हुए बोली।

"ओह दीदी को छोड़ो, पहले यह बताओ तुम इतनी रात गए बारिश में डरी हुई... क्या बात है??"

"वो... वो एक कुत्ता..."

"हाँ-हाँ, क्या हुआ? तुम ठीक हो?"

निशा अभी भी डरी हुई खड़ी थी। उसके मुँह से कुछ नहीं निकल रहा था। मैंने दरवाज़ा बन्द किया और उसका हाथ पकड़ कर सोफ़े पर बिठाया, फिर पूछा, "क्या बात है, तुम रो क्यों रही थीं?"

जब उसकी साँसें कुछ सामान्य हुई तो वह बोली, "दरअसल सारी मुसीबत आज ही आनी थी। पहले तो प्रेज़ेन्टेशन में ही देर हो गई थी, और फिर खाना खाने के चक्कर में ९ बज गए। कार भी आज ही ख़राब होनी थी। बस-स्टैण्ड गई तो आगरा की बस भी छूट गई।" शायद इन दिनों उसकी पोस्टिंग आगरा में थी।

मैं इतना तो जानता था कि वह किसी दवा बनाने वाली कम्पनी में काम करती है और मार्केटिंग के सिलसिले में कई जगह आती-जाती रहती है। पर इस तरह डरे हुए, रोते हुए हड़बड़ा कर आने का कारण मेरी समझ में नहीं आया। मैंने सवालिया निगाहों से उसे देखा तो उसने बताया।

"वास्तव में महाराजा होटल में हमारी कम्पनी का एक प्रेज़ेन्टेशन था। सारे मेडिकल रिप्रेज़ेन्टेटिव आए हुए थे। हमारे दो नये उत्पाद भी लाँच किए गए थे। कॉन्फ्रेन्स ९ बजे खत्म हुई और खाना खाने के चक्कर में देर हो गई। वापस घर जाने का साधन नहीं था। यहाँ आते समय रास्ते में ऑटो ख़राब हो गई। इस बारिश को भी आज ही आना था। रास्ते में आपके घर के सामने कुत्ता सोया था। बेख्याली में मेरा पैर उसके ऊपर पड़ गया और वह इतनी ज़ोर से भौंका कि मैं डर ही गई।" एक साँस में निशा ने सब बता दिया।

"अरे कहीं काट तो नहीं लिया?"

"नहीं काटा तो नहीं...! दीदी दिखाई नहीं दे रही?"

"ओह... मधु तो जयपुर गई हुई है, पिछले १० दिनों से !"

"तभी उनका मोबाईल नहीं मिल रहा था।"

"तो मुझे ही कर लिया होता।"

"मेरे पास आपका नम्बर नहीं था।"

"हाँ भई, आप हमारा नम्बर क्यों रखेंगी... हम आपके हैं ही कौन?"

"आप ऐसा क्यों कहते हैं?"

"भई तुम तो दीदी के लिए ही आती हो हमें कौन पूछता है?"

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।"

"इसका मतलब तुम मेरे लिए भी आती हो।" मैं भला मज़ाक का ऐसा सुनहरा अवसर कैसे छोड़ता। वो शरमा गई। उसने अपनी निगाहें नीची कर लीं। थोड़ी देर कुछ सोचती रही, फिर बोली, "ओह, दीदी तो है नहीं तो मैं किसी होटल में ही ठहर जाती हूँ!"

"क्यों, यहाँ कोई दिक्क़त है?"

"वो... वो... आप अकेले हैं और मैं... मेरा मतलब... दीदी को पता चलेगा तो क्या सोचेगी?"

"क्यों क्या सोचेगी, क्या तुम इससे पहले यहाँ नहीं ठहरी?"

"हाँ पर उस समय दीदी घर थी।"

"क्या हम इतने बुरे हैं?"

"ओह.. वो बात नहीं है।"

"तो फिर क्या बात है?"

"वो.. .वो... मेरा मतलब क्या है कि एक जवान लड़की का इस तरह ग़ैर मर्द के साथ रात में... अकेले?? मेरा मतलब?? वो कुछ समझ नहीं आ रहा।" उसने रोनी सी सूरत बनाते हुए कहा।

"ओह.. अब मैं समझा, तुम मुझे ग़ैर समझती हो या फिर तुम्हें अपने आप पर ही विश्वास नहीं है।"

"नहीं ऐसी बात तो नहीं है।"

"तो फिर बात यह है कि मैं एक हिंसक पशु हूँ, एक गुंडा-बदमाश, मवाली हूँ। तुम जैसी अकेली लड़की को पकड़कर तुम्हें खा ही जाऊँगा या कुछ उल्टा-सीधा कर बैठूँगा? क्यों है ना यही बात?"

"ओह जीजू, आप भी बात का बतंगड़ बना रहे हैं। मैं तो यह कह रही थी आपको बेकार परेशानी होगी।"

"अरे इसमे परेशानी वाली क्या बात है?"

"फिर भी एकता कपूर... मेरा मतलब वो... दीदी...?" वो कुछ सोचते हुए सी बोली।

"अरे जब तुम्हें कोई समस्या नहीं है, मुझे नहीं, तो फिर जयपुर बैठी मधु को क्या समस्या हो सकती है। और फिर आस-पड़ोस वाले किसी से कोई फिक्र नहीं करते हैं। अगर अपना मन साफ़ है तो फ़िर किसी का क्या डर? क्या मैं ग़लत कह रहा हूँ?" मैंने कहा। मैं इतना बढ़िया मौक़ा और हाथ में आई मुर्गी को ऐसे ही हवा में कैसे उड़ जाने देता।

मुझे तो लगा जैसे मिक्की ही मेरे पास सोफ़े पर बैठी है। वही नाक-नक्श, वही रूप-रंग और कद-काठी, वही आवाज़, वही नाज़ुक सा बदन, बिल्कुल छुईमुई सी कच्ची-कली जैसी। बस दोनों में फ़र्क इतना था कि निशा की आँखें काली हैं और मिक्की की बिल्लौरी थीं। दूसरा निशा कोई २४-२५ की होगी जबकि मिक्की १३ की थी। मिक्की थोड़ी सी गदराई हुई लगती थी जबकि निशा दुबली-पतली छरहरी लगती है। कमर तो ऐसी कि दोनों मुट्ठियों में ही समा जाए. छोटे-छोटे रसकूप (उरोज)। होंठ इतने सुर्ख लाल, मोटे-मोटे हैं तो उसके निचले होंठ मेरा मतलब है कि उसकी बुर के होंठ कैसे होंगे। मैं तो सोच कर ही रोमांचित हो उठा। मेरा पप्पू तो छलांगे ही लगाने लगा। उसके होठों के दाहाने (चौड़ाई) तो २.५-३ इंच का ही होगा। हे लिंग महादेव, अगर आज यह चिड़िया फँस गई तो मेरी तो लॉटरी ही लग जाएगी। और अगर ऐसा हो गया तो कल सोमवार को मैं ज़रूर जल और दूध तुम्हें चढ़ाऊँगा। भले ही मुझे कल छुट्टी ही क्यों ना लेनी पड़े। पक्का वादा।

प्रेम आश्रम वाले गुरुजी ने अपने पिछले विशेष प्रवचन में सच ही फ़रमाया था, "ये सब चूतें, गाँड और लंड कामदेव के हाथों की कठपुतलियाँ हैं। कौन सी चूत और गाँड किस लण्ड से, कब, कहाँ, कैसे, कितनी देर चुदेंगी, कोई नहीं जानता।"

"इतने में ज़ोरों की बिजली कड़की और मूसलाधार बारिश शुरु हो गई। निशा डर के मारे मेरी ओर सरक गई। मुझे एक शेर याद आ गया:

लिपट जाते हैं वो बिजली के डर से !
या इलाही ये घटा दो दिन तो बरसे !!

उसके भींगे बदन की खुशबू से मैं तो मदहोश ही हुआ जा रहा था। गीले कपड़ों में उसका अंग-अंग साफ दिख़ रहा था। शायद उसने मुझे घूरते हुए देख लिया था। वो कुछ सोचते हुए बोली, "मैं तो पूरी ही भीग गई।"

"मैं समझ गया, वो कपड़े बदलना या नहाना चाहती है, पर उसके पास कपड़े नहीं हैं, मेरे से कपड़े माँगते हुए शायद कुछ संकोच कर रही है। मैंने उससे कहा, "कोई बात नहीं, तुम नहा लो, मैं मधु की साड़ी निकाल देता हूँ।"

वो फिर सोचने लगी, "पर वो... वो... साड़ी तो मुझे बाँधनी नहीं आती। मैंने मन में कहा, "मेरी जान तुम तो बिना साड़ी-कपड़ों के ही अच्छी लगोगी। तुम्हें कपड़े कौन कमबख़्त पहनाना चाहता है" पर मैंने कहा -

"कोई बात नहीं, कोई पैन्ट और टॉप शर्ट या नाईटी वगैरह भी है, आओ मेरे साथ।" मैंने उसकी बाँह पकड़ी और अपने बेडरूम की ओर ले जाने लगा। आहहह... उसकी नरम नाज़ुक बाँहें मखमल जैसी मुलायम चिकनी थीं। अगर बाँहें ऐसी चिकनी हैं तो पिर जाँघें कैसी होंगी?





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