Sunday, December 15, 2013

FUN-MAZA-MASTI बदन की खुशबू--2

FUN-MAZA-MASTI
 बदन की खुशबू--2

 कपड़ों की आलमारी तो साड़ियों से लदी पड़ी थी। एक खाने में कुछ पैन्ट-शर्ट और टॉप आदि भी थे। मैंने उनकी ओर इशारा कर दिया। निशा ने कहा,"पर मेरी कमर तो २२ की है, मधु दीदी की पैन्ट मुझे ढीली रहेगी!"

ओह... अच्छा कोई बात नहीं, मेरे पास एक ड्रेस और है, तुम्हें पूरी आनी चाहिए, आओ मेरे साथ।" मैंने आलमारी बन्द कर दी और दूसरी अलमारी की ओर ले जाकर उसे गुलाबी रंग की एक नई बेल-बॉटम और हल्के रंग का टॉप जिस पर पीले फूल बने थे, दिखाया, साथ एक जोड़ी ब्रा और पैन्टी भी थी। ये मैंने मिक्की के पिछले जन्मदिन के लिए मधु से छुपा कर ख़रीदे थे पर उसे दे नहीं पाया था। उन्हें देखकर निशा ने कहा, "लगता है ये तो आ जाएँगे।"

उसने पैन्टी उठाई और गौर से देखते हुए बोली, "ओह... दीदी भी ऐसी ही ब्रा पहनती हैं? ये.. तो ये.. तो ओह?" वो आगे कुछ नहीं बोल पाई। बे-खयाली में उसकसे मुँह से निकल तो गया पर उसका मतलब जान कर वो शरमा गई। इस्स्स्स्स.... मुझे तो लगा जैसे किसी ने मिक्की को ही मेरे सामने खड़ा कर दिया है बस नाम का ही फ़र्क है। मिक्की की तरह शरमाने की इस जानलेवा अदा को तो मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूल पाऊँगा।

न जाने क्या सोचकर उसने ब्रा और पैन्टी वहीं रख दी। मेरा दिल तो छलाँगें ही लगाने लगा। या अल्लाह... बिना ब्रा और पैन्टी में तो यह बिल्कुल मिक्की की तरह क़यामत ही लेगी। मैं अपने-आप पर क़ाबू कैसे रख पाऊँगा। मुझे तो डर लगने लगा कि कहीं मैं उसका बलात्कार ही ना कर बैठूँ। मेरा पप्पू तो जैसे क़ुतुबमीनार बन गया था। इतनी उत्तेजना तो आज से पहले कभी नहीं महसूस हुई थी। पप्पू तो अड़ियल टट्टू बन गया था। अचानक मेरे कानों में निशा की मीठी आवाज़ पड़ी।

"ओ जीजू, मैं नहाने जा रही हूँ।"

"हाँ-हाँ, तौलिया और शैम्पू आदि बाथरूम में हैं।" मैं तो जैसे ख़्यालों से जागा...

निशा बाथरूम में घुस गई। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। बाहर ज़ोरों की बारिश और मेरे अन्दर जलती आग, दोनों की रफ्तार एक जैसी ही तो थी। अचानक मेरे दिमाग़ में एक ख्याल दौड़ गया और होठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान। और उसके साथ ही मेरे क़दम भी बाथरूम की ओर बढ़ गए। अब आप इतने कमअक्ल तो नहीं हैं कि आप मेरी योजना ना समझे हों।

मैंने की-होल से बाथरूम के अन्दर झाँका...

निशा ने अपनी पैन्ट और शर्ट उतार दी थी। अब वो सिर्फ ब्रा पैन्टी में थी। उफ्फ... क्या मस्त हिरनी जैसी गोरी-चिट्टी नाज़ुक कमसिन कली की तरह, जैसे मिक्की ही मेरी आँखों के सामने खड़ी हो। सुराहीदार गर्दन, पतली सी कमर मानों लिम्का की बोतल को एक जोड़ा हाथ और पैर लगा दिए हों। संगमरमर सा तराशा हुआ सफाक़ बदन किसी फरिश्ते का भी ईमान डोल जाए। एक ख़ास बात: काँख (जहाँ से बाँहें शुरु होतीं हैं) और उरोजों से थोड़ा ऊपर का भाग ऐसे बना था जैसे कि गोरी-चिट्टी चूत ही बनी है। ऐसी लड़कियाँ वाकई नाज़ुक होतीं हैं और उनकी असली चूत भी ऐसी ही होती है। छोटी सी तिकोने आकार की माचिस की डिब्बी जितनी बड़ी। अगर आपने प्रियंका चोपड़ा या करीना कपूर को किसी फिल्म में बिना बाँहों के ब्लाऊज़ के देखा हो तो आपको मेरी इस बात की सच्चाई का अन्दाज़ा हो जाएगा। फिर मेरा ध्यान उसकी कमर पर गया जो २२ इंच से ज्यादा तो हर्गिज़ नहीं हो सकती। पतली-पतली गोरी गुलाबी जाँघें। और दो इंच पट्टी वाली वही टी-आकार की पैन्टी (जो मधु की पसंदीदा है)। उनके बाहर झाँटों के छोटे-छोटे मुलायम रोयें जैसे बाल। हे भगवान, मैं तो जैसे पागल ही हो जाउँगा। मुझे तो लगने लगा कि मैं अभी बाथरूम का दरवाजा तोड़कर अन्दर घुस जाऊँगा और... और...

निशा ने बड़े नाज़-ओ-अन्दाज़ से अपनी ब्रा के हुक़ खोले और दोनों क़बूतर जैसे आज़ाद हो गए। गोर गुलाबी दो सिन्दूरी आम, जैसे रस से भरे हुए हों। चूचियों का गहरा घेरा कैरम की गोटी जितना बड़ा, बिल्कुल चुरूट लाल। घुण्डियाँ तो बस चने के दाने जितने। सुर्ख रतनार अनार के दाने जैसे, पेन्सिल की नोक की तरह तीखे। उसने अदा से अपने उरोजों पर हाथ फेरा और एक दाने को पकड़ कर मुँह की तरफ किया और उस पर जीभ लगा दी। या अल्लाह... मुझे लगा जैसे अब क़यामत ही आ जाएगी। उसने शीशे के सामने घुम कर अपने नितम्ब देखे। जैसे दो पूनम के चाँद किसी ने बाँध दिए हों। और उनके बीच की दरार एक लम्बी खाई की तरह। पैन्टी उस दरार में घुसी हुई थी। उसने अपने नितम्बों पर एक हल्की सी चपत लगाई और फिर दोनों हाथों को कमर की ओर ले जाकर अपनी काली पैन्टी नीचे सरकानी शुरु कर दी।

मुझे लगा कि अगर मैंने अपनी निगाहें वहाँ से नहीं हटाईं तो आज ज़रूर मेरा हार्ट फेल हो जाएगा। जैसे ही पैन्टी नीचे सरकी हल्के-हल्के मक्के के भुट्टे के बालों जैसे रेशमी नरम छोटे-छोटे रोयें जैसे बाल नज़र आने लगे। उसके बाद दो भागों में बँटे मोटे-मोटे बाहरी होंठ, गुलाबी रंगत लिए हुए। चीरा तो मेरे अंदाज के मुताबिक ३ इंच से तो कतई ज़्यादा नहीं था। अन्दर के होंठ बादामी रंग के। लगता है साली ने अभी तक चूत (माफ़ करें बुर) से सिर्फ मूतने का ही काम लिया है। कोई अंगुल बाज़ी भी लगता है नहीं की होगी। अन्दर के होंठ बिल्कुल चिपके हुए - आलिंगनबद्ध। और किशमिश का दाना तो बस मोती की तरह चमक रहा था। गाँड की छेद तो नज़र नहीं आई पर मेरा अंदाजा है कि वो भी भूरे रंग का ही होगा और एक चवन्नी के सिक्के से अधिक बड़ा क्या होगा! दाईं जाँघ पर एक छोटा सा तिल। उफ्फ... क़यामत बरपाता हुआ। उसने शीशे में देखते हुए उन रेशमी बालों वाली बुर पर एक हाथ फेरा और हल्की सी सीटी बजाते हुए एक आँख दबा दी। मेरा पप्पू तो ऐसे अकड़ गया जैसे किसी जनरल को देख सिपाही सावधान हो जाता है। मुझे तो डर लगने लगा कि कहीं ये बिना लड़े ही शहीद न हो जाए। मैंने प्यार से उसे सहलाया पर वह मेरा कहा क्यों मानने लगा।

और फिर नज़ाक़त से वो हल्के-हल्के पाँव बढ़ाते हुए शावर की ओर बढ़ गई। पानी की फुहार उसके गोरे बदन पर पेट से होती हुई उसकी बुर के छोटे-छोटे बालों से होती हुई नीचे गिर रही थी, जैसे वो पेशाब कर रही हो। मैं तो मुँह बाए देखता ही रह गया।

वो गाती जा रही थी "पानी में जले मेरा गोरा बदन..." मैं सोच रहा था आज इसे ठण्डा मैं कर ही दूँगा, घबराओ मत। कोई १० मिनट तक वो फव्वारे के नीचे खड़ी रही, फिर उसने अपनी बुर को पानी से धोया। उसने अपनी उँगलियों से अपनी फाँकें धीरे से चौड़ी कीं जैसे किसी तितली ने अपने पंख उठाए हों। गुलाबी रंग की नाज़ुक सी पंखुड़ियाँ। किशमिश के दाने जितनी मदन-मणि (टींट), माचिस की तीली जितना मूत्र-छेद और उसके एक इंच नीचे स्वर्ग का द्वार, छोटा सा लाल रतनार। मुझे लगा कि मैं तो गश खाकर गिर ही पड़ूँगा।

उसने शावर बन्द कर दिया और तौलिये से शरीर पोंछने लगी। जब वह अपने नितम्ब पोंछ रही थी, एक हल्की सी झलक उसकी नर्म नाज़ुक गाँड की छेद पर भी पड़ ही गई। उफ्फ... क्या क़यामत छुपा रखी थी उसने। अपनी बगलें पोंछने के लिए जब उसने अपनी बाहें उठाईं तो मैं देखकर दंग रह गया। काँख में एक भी बाल नहीं, बिल्कुल मक्खन जैसी चिकनी साफ सुराही गोरी चिट्टी। अब मैं उसे हुस्न कहूँ, बिजली कहूँ, पटाखा कहूँ या क़यामत...

अरश मलशियानी का एक शेर तो कहे बिना नहीं रहा जा रहा:

बला है क़हर है आफ़त है फितना है क़यामत है

इन हसीनों की जवानी को जवानी कौन कहता है?

अब उसने बिना ब्रा और पैन्टी के ही शर्ट (टॉप) और बॉटम पहनना चालू कर दिया। बेल बॉटम पहनते समय मैंने एक बार फिर उसकी चूत पर नज़र डाली। लाल चुकन्दर जितनी छोटी सी, प्यारी सी चूत जैसे मिक्की का ही डबल रोल हो। अब वहाँ रुकने का कोई मतलब नहीं रह गया था। हे भोले शंकर आज मेरी लाज रख लेना कल सोमवार है याद है ना???...
मैं सोफ़े पर बैठ गया। जैसी ही बाथरूम का दरवाज़ा खुला गीले बालों से टपकती शबनम जैसी बूँदे, काँपते होंठ, क़मसिन बदन, बेल-बॉटम में कसी पतली-पतली जाँघों के बीच फँसी बुर का इतिहास और भूगोल यानी चीरा और फाँकें साफ़ महसूस हो रही थी। हे भगवान क्या फुलझड़ी है, पटाखा है, या कोई बम है। एक जादुई रोशनी से जैसे पूरा ड्राईंग-रूम ही भर उठा। अचानक एक बार जोर की बिजली कड़की और एक तेज धमाके के साथ पूरे मुहल्ले की लाईट चली गई। हॉल में घुप्प अँधेरा छा गया। उसके साथ ही डर के मार निशा की चीख सी निकल गई, "जीजू, ये क्या हुआ?" वो लगभग दौड़ती हुई फिर मेरी ओर आई। इस बार वह टकराई तो नहीं पर उसकी गरम साँसें मैं अपने पास ज़रूर महसूस कर रहा था।

"लगता है कहीं शॉर्ट-सर्किट हो गया है। तुम डरो मत, यहीं ठहरो, मैं इन्वर्टर चालू करता हूँ।" मैंने दरवाज़े के पास लगा इन्वर्टर चालू किया तो हमारे बेडरूम और स्टडी-रूम की बत्ती जल उठी।

"हे भगवान सब कुछ उल्टा-सीधा आज ही होना है क्या?" निशा रूआँसे स्वर में बोली।

"क्यों क्या हुआ?"

"अब देखो ना लाईट भी चली गई।" उसने एक ठंडी साँस ली।

"पर बेडरूम में तो लाईट है ना।"

"पर मुझे तो कल के वर्कशॉप में प्रेज़ेन्टेशन के लिए प्रोजेक्ट-वर्क तैयार करना था और मेरे लैपटॉप को भी आज ही ख़राब होना था। हे भगवान..."

"कोई बात नहीं तुम स्टडी-रूम में रखे कम्प्यूटर से काम चला सकती हो।" मैंने पूछा "कितना काम है?"

"घंटा भर तो लग ही जाएगा। अच्छी मुसीबत है। मैं भी कहाँ फँस गई इस कम्पनी में।"

"क्यों क्या हुआ?"

"अब देखो ना रोज़-रोज़ का प्रेज़ेन्टेशन, मीटिंग्स, वर्कशॉप, एनालिसिस, प्रोडक्ट लाँचिंग - झमेले ही झमेले हैं इस नन्हीं सी जान पर।"

मैंने अपने मन मे कहा, 'मेरी जान हम जैसे किसी आशिक़ का दामन थाम लो, सारे प्रोजेक्ट कर दूँगा' पर मैंने कहा "कौन सा उत्पाद लाँच कर रही हो?"

"दो उत्पाद हैं, एक तो गर्भाधान रोकने की गोली है, महीने में सिर्फ एक गोली और दूसरा बच्चों के अँगूठा चूसने और दाँतों से नाख़ून काटने की आदत से छुटकारा दिलाने की दवाई है, जिसे नाखूनों पर लगाया जाता है।"

"हे भगवान तुम सब लोग हमारी रोज़ी-रोटी छीन लेने पर तुले हो।"

"क्या मतलब?? हम तो बिज़नेस के साथ-साथ समाज सेवा भी कर रहे हैं।" निशा ने हैरानी से पूछा वो बात-बात में 'क्या मतलब' ज़रूर बोलती है।

"अरे भाई साफ़ बात है, तुम गर्भधारण रोकने की दवा की मार्केटिंग करती हो तो बच्चे कहाँ से पैदा होंगे और फिर हमारे उत्पाद जैसे बच्चों का दूध, बच्चों का आहार, बच्चों के तेल, नैप्पी, पावडर, साबुन कौन खरीदेगा?"

"और वो अँगूठा चूसने की आदत छुड़ाने की दवाई?"

"वो भी हम जैसे प्रेमियों के ऊपर उत्याचार ही है।"

"क्या... मत...लब?" निशा मेरा मुँह देखने लगी।

"शादी के बाद वो आदत अपने-आप छूट जाती है... उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ती। शादी के बाद भला कौन उसे अँगूठा चूसने देता है..." मैंने हँसते हुए कहा।

पहले तो मेरी बात उसे समझ ही नहीं आई, लेकिन बाद में तो वो इतने ज़ोर से शरमाई कि पूछो मत। उसने मुझे एक धक्का सा देते हुए कहा "जीजू तुम एक नम्बर के बदमाश हो।"

"नहीं, मैं दो नम्बर का बदमाश हूँ।" मैं खिलखिला कर हँस पड़ा

"जीजू मज़ाक छोड़ो, मुझे अपना प्रोजेक्ट पूरा करना है। कम्प्यूटर कहाँ है?"

"हाँ चलो मुझे भी अपना प्रोजेक्ट बनाना है।"

"अरे आपको कौन सा प्रोजेक्ट बनाना है?"

"अरे तुम नहीं जानती, मुझे एक नहीं पूरे ५ प्रोजेक्ट्स पर काम करना है" अब मैं उसे क्या बताता कि 'मुझे तुम्हारा दूध पीना है, बुर चाटनी है, अपना लंड चुसवाना है, चुदाई करनी है, और गाँड भी मारनी है।' हो गए ना पूरे ५ प्रोजेक्ट्स।

"ओह... पर आपके लिए तो ये मामूली सी बात है आप तो बड़े अनुभवी हैं आप तो झट से कार्यक्रम बना ही लेंगे।" वो भले मेरे इन नए उत्पादों के बारे में अभी क्या जानती थी।

"हाँ वो तो ठीक है पर मेरे पास भी समय कम बचा है, केवल २ घंटे और पूरे ५ प्रोजेक्ट्स... ख़ैर छोड़ो पूरा तो कर ही लूँगा। मुझे अपने-आप पर पूरा भरोसा है। आओ स्टडी-रूम में तुम्हें कम्प्यूटर दिखा दूँ।" और फिर हम दोनों स्टडी-रूम में आ गए।

कम्प्यूटर चाली करने के बाद उसने पेन-ड्राईव निकाली और उसे कम्प्यूटर में नीचे बने छेद में डालने की कोशिश की पर वह अन्दर नहीं गया।

"जीजू ये इस छेद में अन्दर क्यों नहीं जा रहा?"

"अरे पीछे वाली छेद में डालो, उसमें आराम से चला जाएगा।" उसने मेरी ओर थोड़े गुस्से से देखा तो मैंने कहा, "अरे भाई ये छेद ख़राब है, इसके पीछे और छेद हैं, उसमें... वो सही है तुम मज़ाक समझ रही हो।" मैंने हँसते हुए कहा।

"आप मेरा लैपटॉप ठीक कर दो ना प्लीज़" मेरी बात काटते हुए निशा बोली।

"लाओ मैं देख देता हूँ, क्या समस्या है।" मैं लैपटॉप लेकर अपने बेडरूम में आ गया। बेडरूम में पहुँच कर मैंने अपने प्रोजेक्ट के ऊपर काम करना शुरु कर दिया। इस निशा (रात) को कैसे रात की रानी बनाना है। मुझे तो उसकी चूत के साथ-साथ गाँड भी मारनी है और उसे लंड भी चुसवाना है। सबसे बड़ी बात तो उसे सेक्स के लिए तैयार करना ही मुश्किल है। समय कम और मुक़ाबला सख्त। ख़ैर मुहब्बत-ए-मर्दा, मदद-ए-ख़ुदा।

सिमरन (मेरी क्लास मेट) को चोदने में मुझे पूरे दो साल लग गई थी। अनारकली की चुदाई में दो महीने, सुधा की चुदाई में दो हफ़्ते और मिक्की की चुदाई के प्रोग्राम में दो दिन ही लगे थे। पर निशा को चुदाई और गाँड मरवाने के लिए तैयार करने में तो मेरे पास सिर्फ दो घंटे ही हैं। आज प्रेम-गुरु का असली इम्तिहान है। पूरी तैयारी करनी होगी ज़रा सी ग़लती पूरी परियोजना को ख़राब कर देगी और ये नई चिड़िया मेरे हाथों से निकल भागेगी। पर मैं ऐसा कदापि नहीं होने दूँगा। आख़िर मुझे प्रेम-गुरु ऐसे ही तो नहीं कहते हैं।

लैपटॉप में वायरस था जिसके कारण विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम की फाइलें ख़राब हो गईं थीं। ये तो मेरे बाएँ हाथ का खेल था। पर मैं इसे अभी ठीक नहीं किया। मैंने उसके बैग की जाँच की। उसमें दवाईयों के नमूने, कागज़, और मेकअप का छोटा-मोटा सामान था। मैंने बोरोलीन जैसी खुशबू वाली क्रीम की ट्यूब, वैसलीन की डिब्बी, एक छोटा सा शीशा और नैपकीन निकाल कर सिरहाने के नीचे रख लिए।

अब मुझे अपने परियोजना की पूरी तरह से तैयारी के बारे में सोचना ता। दो तीन विकल्प भी रखने थे। सही-सही क्रियान्वयन के लिए कार्यक्रम बनाना था। मज़बूत पक्ष, कमज़ोर पक्ष, मौक़े, संभावित हानियाँ सभी को ध्यान में रखकर कार्यक्रम शुरु करना था। मैंने कई विकल्पों पर विचार किया और फिर सब कुछ अपने दिमाग़ में सोच कर के फ्लो-चार्ट बनाने लगा। मुझे चुदाई का यह कार्यक्रम ३ चरणों में पूरा करना था।

मैंने एक बार स्टडी-रूम की ओर जाकर देखा। निशा कम्प्यूटर पर लगी थी। कोई ४० मिनट तो बीत ही गए थे। निशा का काम भी खत्म होने ही वाला होगा। मैंने उससे पूछा कि कितना समय और लगेगा तो उसने बताया कि कोई १५-२० मिनट और लगेंगे। मैंने दराज़ में से ऑपरेटिंग सिस्टम की सीडी ली और वापिस बेडरूम में आ गया। मैंने फाईलों को फिर से डाल दिया और वायरस स्कैन चालू कर दिया। उसका कम्प्यूटर काम करने लगा। इस काम में मुझे १०-१५ मिनट लगे। जब मैं सीडी वापिस रखने स्टडी रूम में गया तो निशा मेरा कम्प्यूटर बन्द ही करने जा रही थी। मैं दरवाजे के बाहर ही रूक कर अन्दर देखने लगा। उसने स्टार्ट मेनू पर क्लिक किया। शट डाउन पर क्लिक करने की बजाय उसने रीसेन्ट डॉक्यूमेन्ट मेनू खोला। मेरी आँखें चमकने लगीं। फिर उसने ऊपर से नीचे तक फाईलों की सूची देखी। उसकी निगाहें कुछ वीडियो फाईल पर पड़ीं। उसने राईट क्लिक करके उस फाईल का स्त्रोत देखा। अगर आप थोड़ा बहुत कम्प्यूटर जानते हों तो यह सब बातें आपको पता रहेंगी ही। ये वही फाईलें थीं जो मैंने आज सुबह ही कम्प्यूटर पर कॉपी की थी, और २-३ देखी भी थी। इस फाईल पर क्लिक करते ही फिल्म चलनी शुरु हो गई। मेरा काम हो गया था। मैं झट से उल्टे पाँव बेडरूम की ओर भागा।

आप शायद सोच रहे होंगे अब वापस आने का नहीं साली को पटक कर चोदने का समय था। आप ग़लत सोच रहे हैं। मैं कोई ज़ोर-ज़बर्दस्ती में विश्वास नहीं करता हूँ। मैं तो प्रेम का पुजारी हूँ। मैंने अब तक जितनी भी चूत या गाँड मारी है वो सभी अपने दोनों हाथों में जैसे अपनी चूत और गाँड लेकर मेरे पास आईं हैं। मैं उसे भी इसी तरह चोदना चाहता था। मैं उसे इतना गरम कर देना चाहता था कि वह ख़ुद चल कर मुझसे चूत और गाँड मारने को कहे, तभी तो चुदाई का असली मज़ा आता है। किसी को मजबूर करके चोदना तो बस पानी निकालनी वाली बात होती है।

मुझे पता था साली फिल्म के एक दो सीन ही देखेगी और फिर उसे बन्द करके मेरे बेडरूम में यह चेक करने आएगी कि मैं क्या कर रहा हूँ। कोई देख तो नहीं रहा। मैं भी इस मामले में पक्का खिलाड़ी हूँ। मैं उसके लैपटॉप को ठीक करने की पूरी एक्टिंग कर रहा था। वो चुपके से आई और एक निगाह डालते हुए दबे पाँव वापस चली गई। हे लिंग माहदेव ! तेरा लाख-लाख धन्यवाद। काले हब्शी और गोरी फिरंगी की गाँड-चुदाई और एक ४० साल की आँटी की एक १५-१६ साल के लड़के के साथ चुदाई देखकर तो मेरी रात की रानी गुलज़ार हो जाएगी। मेरे कार्यक्रम का पहला चरण सफलता पूर्वक सम्पन्न हो गया था।

कोई २५-३० मिनट के बाद निशा बेडरूम की ओर आई। उसकी आँखों में लाल डोरे तैर रहे थे। होश उड़े हुए, चाल में लड़खड़ाहट, होंठ सूखे हुए। वो तो बस इतनी ही बोल पाई, "जीजू क्या कर रहे हो?" शायद अपनी उखड़ी साँसों पर क़ाबू पाना चाहती थी।

"बस तुम्हारा लैपटॉप ही ठीक कर रहा था। वायरस था, विंडोज़ की फाईलें ख़राब हो गईं थीं। मैंने ठीक कर दिया है। तुमने इन्टरनेट से कोई ग़लत-सलत फाईल तो नहीं खोलीं थीं?" मैंने पूछा।

अब तो उसके चेहरे का रंग देखने लायक था। "ननन... नहीं तो.."

"कोई बात नहीं पर तुम इतना घबराती क्यों हो?"

"वो.. वो बिजली कड़क रही है ना" अजीब संयोग था कि उसी समय ज़ोर से बिजली फिर कड़की थी। बाहर अब भी पानी बरस रहा था। मैं जानता था कि वो कौन सी बिजली की बात कर रही है। वो मेरे पास आकर बैठ गई।

"जीजू सोने का क्या करेंगे?" वो बोली

मैंने मन में सोचा 'मेरी जान, तुम्हें सोने कौन देगा आज की रात।' पर मैंने कहा "भाई बिस्तर लगा है सो जाओ।"

"यहाँ?"

"क्यों क्या हुआ?"

"वो मेरा मतलब, हम दोनों एक कमरे में?"

"मैं बाहर सो जाता पर बिजली नहीं है और गेस्ट रूम में ज़हरीली मकड़ियाँ और मच्छर हैं। कभी-कभी जंगली बिल्ली भी आ जाती है। भाई मुझे बाहर डर लगता है।"

"ओह... अजीब मुसीबत में फँस गई मैं तो दीदी को भी आज ही जाना था।"

"इसमें मुसीबत वाली कौन सी बात है? क्या मधु को जंगली बिल्लियों और मकड़ियों का डर नहीं लगता?"

"वो.. वो... ऐसी बात नहीं पर... और... वो... एक ही कमरे में एक ही बिस्तर पर...?"

"क्यों अपने आप पर विश्वास नहीं है क्या?"

"नहीं ऐसी बात नहीं है पर... वो.. वो.."

"चलो मैं नीचे फर्श पर सो जाता हूँ, भले ही मुझे नींद आए या नहीं कोई बात नहीं।"

"ओहह... नहीं मैं नीचे में सो जाऊँगी।"

मैंने मन में सोचा 'मेरी जान नीचे तो तुम्हें सोना ही पड़ेगा, पर फ़र्श पर नहीं, मेरे नीचे।' मेरी योजना बिल्कुल पक्की थी किसी चूक का सवाल ही नहीं था। मैंने उसी भोलेपन से कहा "अरे, क्यों हम भरतपुर वालों की मेहमान नवाज़ी को बट्टा लगा रही हो? अच्छा एक काम करते हैं, बीच में एक तकिया लगा देते हैं।"

वो मेरी बात पर हँस पड़ी "एक तकिये से क्या होगा?"

"तो दो लगा देते हैं।" मैंने कहा। वह कुछ सोच रही थी। उसके मन की उलझन मैं अच्छी तरह जानता था। "ओह... अभी कौन सी नींद आ रही है, चलो छोड़ो कोई और बात करो।" मैंने कहा।

हम दोनों बिस्तर पर बैठ गए। मैं बिस्तर पर टेक लगाकर बैठा था और निशा मेरे सामने बैठी थी। पैन्ट में फँसी उसकी चूत के आगे का भाग कैरम की गोटी जितनी दूर में गीला हुआ था। साली फिरंगी और आँटी की चुदाई देखकर पूरी गरम हो गई थी। उसने बात चालू की।

"जीजू इस नौकरी से पीछा छूटेगा या नहीं? नौकरी बदलने का कोई मौक़ा है या नहीं? आप तो हाथ देखकर बता देते हैं।" निशा ने हाथ आगे बढ़ा दिया। मैंने झट से उसका हाथ पकड़ लिया। निशा पहले हाथ की रेखाओं और भाग्य आदि पर विश्वास नहीं करती थी। पर जब से मधु की संगत में आई है, थोड़ा-बहुत भाग्य और सितारों को मानने लगी है।

उसका शुक्र पर्वत तो सुधा और मिक्की से भी ऊँचा था। हे भगवान आज तो तूने मेरी लॉटरी ही लगा दी। उसकी हथेली के बीच में तिल देखकर मैंने कहा "तुम्हारे हाथ में ये जो तिल है उसके हिसाब से तो तुम्हारे पास दौलत की कोई कमी नहीं है।"

"अरे जीजू आप भी मज़ाक करते हैं। कहाँ है मेरे पास दौलत?"

"अरे भाई हाथ की रेखाएँ तो यही कहतीं हैं। क्या हुस्न की दौलत कम है तुम्हारे पास?"

"जीजू आप भी..." वो शरमा गई। अच्छा... फिर बोली "मजाक छोड़ो और ढंग की बात बताओ ना।"

"मैंने उससे पूछा कि तुम्हारी उम्र कितनी है तो उसने बताया कि वह २४ की है।

"क्यों तुम भी मधु और मेरी तरह मांगलिक हो?"

"हाँ क्यों?"

"अरे भाई माँगलिक की शादी २४वीं साल में हो जाती है।"

"पर मैं तो अभी ५-७ साल शादी नहीं करूँगी।"

"भाई मंगल तो यहीं कहता है और अगले ३ साल में तुम २ बच्चों की मम्मी भी बन जाओगी।"

"जीजू आप भी एक नम्बर के बदमाश हो। मज़ाक छोड़ो, कोई ठीक बात बताओ ना।"

"अरे इसमें क्या झूठ है।" उसने अपनी आँखें टेढ़ी कीं तो मैंने कहा, "अच्छा चलो बताओ, तुम्हारे कितने ब्वॉयफ्रेण्ड हैं? कभी उनके साथ फिल्म देखती हो या नहीं?"

"नहीं मेरा तो कोई ब्वॉयफ्रेण्ड नहीं है।" उसने आँखें तरेरते हुए कहा।

"अरे फिर इस जवानी और ज़िन्दगी का क्या फ़ायदा। मैं तो अब भी अपनी गर्लफ्रेण्ड को लेकर फ़िल्म देखता हूँ।" मैंने कहा।

"क्या मतलब? क्या आप अब भी... मेरा मतलब...?"

"अरे भाई मेरी गर्लफ्रेण्ड तो मधु ही है।" मैंने हँसते हुए कहा "तुम तो जानती हो मैं मधु से कितना प्यार करता हूँ। कई बार मैं और मधु फिल्म देखने जाते हैं तो ऐसी ऐक्टिंग करते हैं कि जैसे कॉलेज से भागकर के आए हों। हमें देखकर तो बड़े-बूढ़ों के दिल पर भी साँप लोटने लग जाते हैं।"

"हाँ... हाँ मुझे पता है। मधु दीदी बताती हैं तुम तो उनके पूरे 'मिट्ठू' हो। वह बताती है कि आप तो शादी के इतने सालों बाद भी उनपर लट्टू ही बने हो।" उसने मेरा मज़ाक उड़ाते हुए कहा।

"तुम कहो तो तुम्हारा भी 'मिट्ठू बन जाता हूँ।"

"मैं झाँसी की शेरनी हूँ ऐसे क़ाबू नहीं आऊँगी मिट्ठू जी?" उसने आँखें नचाते हुए कहा। मैंने मन में सोचा 'मेरी जान आज की रात तुम जैसी मैना के मुँह से ही बुलवाऊँगी बोल मेरी मैना गंगाराम' फिर मैंने कहा "अच्छा चलो बताओ तुम्हार वज़न कितना है?"

"उण्म्म्म्म... ४८ किलो"

"मेरे हिसाब से तो २१ किलो होना चाहिए।"

"क्या मतलब?"

"अरे भाई बहुत सीधी बात है दिल का २७ किलो तो हटा ही दो, फिर असली वज़न तो २१ किलो ही रहा ना?"

"तो आप भी मानते हैं कि हम झाँसी वालों का दिल बड़ा होता है।" उसने छाती तानते हुए कहा। सचमुच उसकी घुण्डियाँ कड़ी हो रहीं थीं।

"दिल बड़ा नहीं, पत्थर का है।"

"क्या मतलब?"

"चलो वो बाद में बताऊँगा।" मैंने बात को अपने प्रोजेक्ट की ओर मोड़ना चाहा। "देखो ये सब ज्योतिषीय गणित है। प्रकृति ने सब चीजें अपने हिसाब से बनाई हैं। सब चीजें एक सही अनुपात में होतीं हैं। उन्हें तो मानना ही पड़ेगा ना?"

"वो कैसे?"

"अब देखो ना भगवान ने हमारी नाक तुम्हारे अँगूठे जितनी बड़ी बनाई है।" उसने हैरानी से अपनी नाक पर हाथ लगाया और मेरी ओर देखने लगी।

"विश्वास नहीं होता तो नाप कर देख लो।" मैंने पास रखा फीता उसकी ओर बढ़ा दिया। उसने अपना अँगूठा नापा जो ७ से.मी. निकला। फिर मैंने उसकी नाक पर फीता रख कर नाप लिया। इस दौरान मैं उसके गाल छूने से बाज नहीं आया। काश्मीरी सेब हों जैसे। उसकी नाक का नाप भी ७ से.मी. ही निकला। फिर मैंने कहा, तुम्हारी मध्यमा (बीच की) उँगली मापो। जब उसने नापी तो वह ९ से.मी. निकली। अब मैंने उससे कहा कि अपने कान की लम्बाई नापो। ये काम तो मुझे ही करना था। इस बार मैंने उसका दूसरा गाल भी छू लिया। क्या मस्त मुलायम चिकना स्पर्श था। साली के गाल इतने मस्त हैं तो चूचियाँ तो कमाल की होंगी। ख़ैर कान का नाप भी ९ से.मी., होना ही था।

"अरे ये तो कमाल हो गया?" वह हैरानी से बोली तो मैंने कहा, "मैं बिना नापे तुम्हारी लम्बाई भी बता सकता हूँ।"

"वो कैसे?"

"तुम्हारे हाथ की लम्बाई का ढाई गुणा होगी।" उसने मेरी ओर हैरानी से देखा तो मैंने कहा "नाप कर देख लो।"

"मेरे कार्यक्रम का फ्लो-चार्ट बिल्कुल सही दिशा में जा रहा था। अब उसके नाज़ुक संतरों की बारी थी। चिड़िया अपने आप को बड़ा होशियार समझती थी। पर मैं भी प्रेम-गुरु ऐसी ही नहीं हूँ। मैंने फीता उठाया और ढीले टॉप के अन्दर उसकी काँख से सटा दी। वो क्या बोलती? चुप रही। उसकी काँख सफाचट थी। बालों का नामों-निशान नहीं। थोड़ी सी चूचियों की झलक भी मिल गई। एकदम सख़्त। घुण्डियाँ कड़क। गोरे-गोरे.. इलाहाबादी अमरूद जैसे।

हाथ की लम्बाई ६३ से.मी. निकली। मैंने कहा तुम्हारी लम्बाई १५८ से.मी. यानि कि ५ फीट ३ इंच के आस-पास है।"

"ओह, वेरी गुड, क़माल है जीजू।" उसकी आँखें तो फटी ही रह गईं। वो फिर बोली "जीजू जॉब का भी बताओ ना" मैं उसे प्रभावित करने में सफल हो गया था।

अब कार्यक्रम के दूसरे भाग की अन्तिम लाईन लिखनी थी। मैंने कहा "एक और बात है ऊपर के होंठ और नीचे के होंठ भी बिल्कुल एक समान होते हैं।"

"नहीं ये ग़लत है नीचे के होंठ थोड़े मोटे होते हैं। मेरे होंठ ज़रा ध्यान से देखो, नीचे का मोटा है या नहीं?" निशा अपने मुँह वाले होंठों की बात ही समझ रही थी, उसे क्या पता कि मैं तो चूत के होंठों की बात कर रहा था।

"अरे मैं मुँह के होंठों की नहीं दूसरे होठों की बात कर रहा था। अच्छा चलो बताओ औरतें ज़्यादा बातें क्यों करतीं हैं?" मैंने पूछा।

"क्यों...?" उसने आँखें तरेरते हुए पूछा। वो अब मेरी बात का मतलब कुछ-कुछ समझ रही थी।

"अरे भाई उनके चार होंठ होते हैं ना। दो ऊपर और दो नीचे" मैंने हँसते हुए कहा।

"क्या मतलब..." उसकी निगाह झट से अपनी चूत की ओर चली गई, वहाँ तो अब चूत-रस की बाढ़ ही आ गई थी. उसने झट से तकिया अपनी गोद में रख लिया और फिर बोली, "ओह जीजू, आख़िर तुम अपनी औक़ात पर आ ही गए... मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी। अकेली मज़बूर लड़की जानकर उसे तंग कर रहे हो। मुझे नींद आ रही है।" वो नाराज़ सी हो गई।

प्यार पाठकों और पाठिकाओं, मेरे कार्यक्रम का दूसरा चरण पूरा हो गया था. आप सोच रहे होंगे भला ये क्या बात हुई। लौण्डिया तो नाराज़ होकर सोने जा रही है? थोड़ा सब्र कीजिए अभी मेरा तीसरा चरण पूरा कहाँ हुआ है।

मैं जानता था साली गरम हो चुकी है। उसकी चूत ने दनादन पानी छोड़ना शुरु कर दिया है और अब तो पानी रिस कर उसकी गाँड को भी तर कर रहा होगा। अब तो बस दिल्ली दो क़दम की दूर ही रह गई है। मेरा अनुभव कहता है कि इस तरह की बात के बाद लड़की इतनी ज़ोर से नाराज़ हो जाती है कि बवाल मचा देती है, पर निशा तो बस सोने की ही बात कर रही थी. मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा

"अरे तुम बुरा मान गई... ये मैं नहीं प्रेम-आश्रम वाले गुरुजी कहते हैं। अच्छा चलो अब सो ही जाते हैं। पर एक समस्या है?"

"वो क्या?"

"दरअसल मैं सोने से पहले दूध पीता हूँ।"

"ये क्या समस्या है, रसोई में जाकर पी लो।"

"वो... वो... रसोई में लाईट नहीं है ना। बिना लाईट के मुझे डर लगता है।"

"ऐसे तो बड़े शेर बनते हो।"

"तुम भी तो झाँसी की शेरनी हो, तुम ही ला दो ना।"

"मैं.. मैं... " इतने में ज़ोर की बिजली कड़की और निशा डर के मारे मेरी ख़िसक आई "मुझे भी अँधेरे से डर लगता है।"

"हे भगवान इस प्यासे को कोई मदद नहीं करना चाहता" मैंने तड़पते हुए मजनू की तरह जब शीशे पर हाथ रख एक्टिंग की तो निशा की हँसी निकल गई।

"मैं क्या मदद कर सकती हूँ?" उसने हँसते हुए पूछा

"तुम अपना ही पिला दो।"

"क्या मतलब?" उसने झट से अपना हाथ अपने उरोजों पर रख लिए "जीजू तुम फिर...?"

इतने बड़े अमृत-कलशों में दूध भरा पड़ा है थोड़ा सा पिला दो ना तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा" मैंने लगभग गिड़गिड़ाने के अन्दाज़ में कहा।

तो निशा पहले तो हँस पड़ी फिर नाराज़ होकर बोली,"जीजू तुम हद पार कर रहे हो।"

"अभी पार कहाँ की है तुम कहाँ पार करने दे रही हो?"

"जीजू मुझे नींद आ रही है" उसने आँखें तरेरते हुए कहा।

"हे भगवान क्या ज़माना आ गया है। कोई किसी की मदद नहीं करना चाहता।" निशा हँसते हुए जा रही थी। मैंने अपनी एक्टिंग करनी जारी रखी "सुना है झाँसी के लोगों का दिल बहुत बड़ा होता है पर अब पता चला कि बड़ा नहीं पत्थर होता है और पत्थर ही क्या पूरा पहाड़ ही होता है, टस से मस ही नहीं होता, पिघलता ही नहीं।" निशा हँसते-हँसते दोहरी होती जा रही थी। पर मेरी ऐक्टिंग चालू थी। "हे भगवान, इन ख़ूबसूरत लड़िकयों का दिल इतना पत्थर का क्यों बनाया है, इससे अच्छा तो इन्हें काली-कलूटी ही बना देता कम से कम किसी प्यासे पर तरस तो आ जाता।" मैंने अपनी ऐक्टिंग चालू रखी।

मैं तो शोले वाला वीरू ही बना था "जब कोई दूध का प्यासा मरता है तो अगले जन्म में वो कनख़जूरा या तिलचट्टा बनता है। हे भगवान, मुझे कनख़जूरा या तिलचट्टा बनने से बचा लो। हे भगवान मुझे नहीं तो कम से कम इस झाँसी की रानी को ही बचा लो।"

"क्या मतलब?"

"सुना है दूध के प्यासे मरते व्यक्ति की बददुआ से वो कंजूस लड़की अगले जन्म में जंगली बिल्ली बनती है। और इस ज्न्म में उसकी शादी २४वीं साल ही हो जाती है और अगले ३ सालों में ६ बच्चे भी हो जाते हैं।" मैंने आँखें बन्द किए अपने दोनों हाथ ऊपर फैलाए।

हँसते-हँसते निशा का बुरा हाल था। वो बोली "३ साल में ६ बच्चे... वो कैसे?"

मेरे कार्यक्रम की तो अब बस चंद लाईनें ही लिखनीं बाकी रह गई थीं। चिड़िया ने दाना चुगने के लिए जाल की ओर बढ़ना शुरु कर दिया था। मैंने कहा "अच्छा सच्चे आशिक़ की दुआ हो और भगवान की मर्ज़ी हो तो सबकुछ हो सकता है। हर साल दो-दो जुड़वाँ बच्चे पैदा हो सकते हैं।"

निशा ठहाके मारने लगी थी। हँसते-हँसते वो दोहरी होती जा रही थी। मैंने कहा चलो दूध नहीं पिलाना, ना सही, पर कम से कम एक बार दूध-कलश देख ही लेने दो।"

"देखने से क्या होगा?"

"मुझे तसल्ली हो जाएगी... एक झलक दिखाने से तुम्हारा क्या घिस जाएगा, प्लीज़ एक बार।"

"ओह... जीजू तुम भी ना... नहीं... ओह... तुम भी एक नम्बर के बदमाश हो, मुझे अपनी बातों के जाल में फिर उलझा ही लिया ना, मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी है।"

"अरे किसी की प्यास बुझाने से पुण्य मिलता है।"

निशा अब पूरी तरह से गरम हो चुकी थी। उसके मन में कशमकश चल रही थी कि आगे बढ़े या नहीं। मैं जानता हूँ पहली बार की चुदाई से सभी डरतीं हैं। और वो तो अभी अनछुई कुँवारी कली थी। पर मेरा कार्यक्रम बिल्कुल सम्पूर्ण था। मेरे चुंगल से वो भला कैसे निकल सकती थी। उसने आँखें बन्द कर रखीं थीं।

फिर धीरे से बोली "बस एक बार ही देखना है और कोई शैतानी नहीं समझे?"

"ठीक है बस एक बार एक मिनट और २० सेकेण्ड के लिए, ओके, पक्का... प्रॉमिस... सच्ची..." मैंने अपने कान पकड़ लिए। उसकी हँसी निकल गई।

दोस्तों मेरे कार्यक्रम का तीसरा और अन्तिम चरण पूरा हो गया था। मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। कमोबेश यही हालत निसा की भी थी। उसने काँपती आवाज़ में कहा "अच्छा पहले लाईट बन्द करो, मुझे शर्म आती है।"

"ओह... अँधेरे में क्या दिखाई देगा? और फिर वो जंगली बिल्ली आ गई तो?"

"ओह.. जीजू.. .तुम भी..." इस बार उसने एक नम्बर का बदमाश नहीं कहा। और फिर उसने आँखें बन्द किए हुए ही काँपते हाथों से अपना टॉप थोड़ा सा उठा दिया...

उफ्फ... सिन्दूरी आमों जैसे दो रस-कूप मेरे सामने थे। ऐरोला कोई कैरम की गोटी जितना गुलाबी रंग का। घुण्डियाँ बिल्कुल तने हुए चने के दाने जितने। मैं तो बस मंत्रमुग्ध हो देखता ही रह गया। मुझे लगा जैसे मिक्की ही मेरे सामने बैठी है। उसके रस-कूप मिक्की से थोड़े ही बड़े थे पर थोड़े से नीचे झुके, जबकि मुक्की के बिल्कुल सुडौल थे. मैंने एक हाथ से हौले से उन्हें छू दिया। उफ्फ... क्या मुलायम नाज़ुक रेशमी अहसास था। जैसे ही मैंने उनपर अपनी जीभ रखी तो निसा की एक मीठी सी सीत्कार निकल गई।

"ओह जीजू... केवल देखने की बात हुई थी... ओह... ओह... यहा... अब... बस करो... मुझे से नहीं रुका जाएगा..." मैंने एक अमृत कलश पर जीभ रख दी और उसे चूसना चालू कर दिया। निशा की सीत्कार अब भी चालू थी। "ओह... जी... जू.... मुझे क्या कर दिया तुमने... ओह.. चोदो मुझे... आह। हाआआयय्य्ययय... ऊईईईईईई... माँ........ आआआहहहह... बस अब ओर नहीं, एक मिनट हो गया है" उसने मेरे सिर के बालों को अपने दोनों हाथों में ज़ोर से पकड़ लिया और अपनी छाती की ओर दबाने लगी। मैं कभी एक उरोज को चूसता, कभी दूसरे को। वो मस्त हुई आँखें बन्द किए मेरे बालों को ज़ोर से खींचती सीत्कार किए जा रही थी। इसी अवस्था में हम कोई ८-१० मिनट तो ज़रूर रहें होंगे। अचानक उसने मेरा सिर पकड़ कर ऊपर उठाया और मेरे होंठों को चूमने लगी, जैसे वो कई जन्मों की प्यासी थी। हम दोनों फ्रेंच किस्स करते रहे। फिर उसने मुझे नीचे ढकेल दिया और मेरे ऊपर लेट कर मेरे होंठ चूसने लगी। मेरा पप्पू तो अकड़ कर कुतुबमीनार बना पाजामे में अपना सिर फोड़ रहा था। मैं उसकी पीठ और नितम्बों पर हाथ फेर रहा था। क्या मुलायम दो ख़रबूज़े जैसे नितम्ब, कि किसी नामर्द का भी लंड खड़ा कर दे। मैंने उसकी गहरी होती खाई में अपनी उँगलियाँ फिरानी शुरु कर दी। उसकी चूत से रिसते कामरस से गीली उसकी चूत और गाँड का स्पर्श तो ऐसा था जैसे मैं स्वर्ग में ही पहुँच गया हूँ।

कोई ५ मिनट तक तो उसने मेरे होंठ चूसे ही होंगे। वैसे ही जैसे उस ब्लैक फॉक्स ने उस १५-१६ साल के लड़के के चूसे थे। फिर वो थोड़ी सी उठी और मेरे सीने पर ३-४ मुक्के लगा दिए। और बोली "जीजू तुमने आख़िर मुझे ख़राब कर ही दिया ना!"

मैंने धीरे से कहा "ख़राब नहीं प्यार करना सिखाया है"

"जीजू तुम एक नम्बर के बदमाश हो"

मैंने अपने मन में कहा 'मेरी रानी मैं एक नम्बर का नहीं दो नम्बर का भी बदमाश हूँ, थोड़ी देर बाद पता चलेगा' पर मैंने कहा "अरे छोड़ो इन बातों को जवानी के मज़ा लो, इस रात को यादगार रात बनाओ"

"नहीं जीजू, यह ठीक नहीं होगा। मैं अभी तक कुँवारी हूँ। मैंने पहले किसी के साथ कुछ नहीं किया। मुझे डर लग रहा है कोई गड़बड़ हो गई तो?"

"अरे मेरी रानी अब इतनी दूर आ ही गए हैं तो डर कैसा तुम तो बेकार डर रही हो, सभी मज़ा लेते हैं। इस जवानी को इतना क्यों दफ़ना रही हो। अपने मन और दिल से पूछो वो क्या कहता है।" मैंने अपना राम-बाण चला दिया। मैं जानता था वो पूरी तरह तैयार है पर पहली बार है इसलिए डर रही है। मन में हिचकिचाहट है। मेरे थोड़े से उकसावे पर वह चुदाई के लिए तैयार हो जाएगी। चूत और दिल इसके बस में अब कहाँ हैं, वो तो कब के मेरे हो चुके हैं। बस ये जो दिमाग में थोड़ा सा खलल है, मना कर रहा है। मेरी परियोजना का अन्तिम भाग सफलता पूर्वक पूरा हो गया था। अब तो बस उत्पाद का उदघाटन करना था।

दोस्तों अब मुठ मारना बन्द करो, अरे भाई आज रात के लिए कुछ तो बचा कर रखो, क्या आप को रोज़ गाँड नहीं मारनी? और मेरी प्यारी पाठिकाओं, आप भी अपनी गीली पैन्टी में उँगली करना छोड़ो और आज रात की तैयारी करो।













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