Saturday, December 14, 2013

FUN-MAZA-MASTI नशीली सुगंध-8

FUN-MAZA-MASTI

 नशीली सुगंध-8

 मैंने बाँहों में भर कोमल को पलट नीचे दबाया और ऊपर चढ़ लिंग को उसकी योनी पर दबा अन्दर घुसेड़ा पहले धीरे से और ..योनी बिलकुल सरोबार थी रस से.... फिर भी लिंग को अन्दर जाने में जैसे कोई रुकावट लगी, कोमल की योनी टाईट थी, वो फुसफसाने लगी "धीरे कर.. धीरे धीरे ..."..... लेकिन मुझे चैन कहाँ ...भरपूर प्रहार से लिंग अन्दर जा घुसा ." उई उई..आ आ आ.... करती हुए उसकी कराहने की आवाज़ निकली, मैंने उसके मुहं को हाथों से दबाया डर लग रहा था कहीं जोरों से चिल्ला नहीं बैठे और लिंग के धक्के जारी रक्खे, " आह ...आह....आआ..." वो अब कराह रही थी और मुझे कभी अपने ऊपर से हटाने की कोशिश कर रही थी..और कभी मेरी कमर पकड़ मेरे धक्को के साथ जैसे लय मिलाते हुए नितम्ब उठाकर धक्के दे रही थी....कुछ ही देर में सिसकारी की आवाज़ धीमी हो गयी और उसने मुझे चूमते हुए जोरों से पकड़ साथ देना शुरू कर दिया.... अब उसकी आवाज़ में एक आनंद था...उसकी योनी रस से भरपूर मेरे लिंग को पूरा निगल रही थी. यूं तो योनी टाईट थी लेकिन उसने फ़ैल कर लिंग को अन्दर समा लिया और अब लिंग योनी रस के कारण स्वाभाविक रूप से योनी को घर्षण करता हुआ धक्के लगा रहा था, कोमल भी उन धक्कों का जवाब देने लगी... उसने जांघें उठा मेरे चूतड़ों को लपेट लिया और हाथों को पीठ पर दबा अपने अपने नितम्ब उठाते हुए हौले हौले मेरे हर धक्के का जवाब दे रही थी.. बहार अभी भी अँधेरा था.. हम एक दुसरे में गुंथे पड़े थे, कोमल अत्यंत गर्म हो गयी थी, उसने मुझे गालों पर काट लिया और पीठ को नाखूनों से खरोंच डाला, उसकी सांसें जैसे थक कर भारी हो गयीं , मेरी हालत भी ऐसी ही थी, हमें होश नहीं था, कोमल के स्तनों को चूस डाला और घुंडियों को खींच कई बार काट डाला, वो कराहने लगती लेकिन मुझे रोकती नहीं और मेरी पीठ और चूतड़ों को दबा और धक्के लगाने का इशारा करती, कोमल बहुत ही कामुक थी ये तो मैं पहले ही समझ गया था लेकिन सम्भोग में भी इतना ही खुल कर मजे से साथ देगी मैने नहीं सोचा था, हम पसीने पसीने थे और पूरी तरह नग्न, कुछ ही क्षणों में जैसे लिंग से लावा फूट कर बहने लगा, मैं कोमल पर निढाल सा पड़ गया, उसने भी मुझे जोरों से बाँहों में दबा लिया, शरीर के रोम रोम में रोमांच था, जैसे नसों से कुछ बहता हुआ एक जोर की उत्तेजना के साथ लिंग से निकल पड़ा हो, ऐसा आनदं कभी पहले महसूस नहीं किया था, किसीने जैसे शरीर को तोड़ दिया हो, जैसे की सारी थकावट दूर हो गयी और शरीर हल्का हो कर उड़ने लगा हो, हम कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे, सांसें धीमें हुईं और लिंग सिकुड़ ठंडा हो गया मैंने योनी से बाहर खींचा, कोमल आँखें बंद किये निढ़ाल पडी थी, मैंने ध्यान से देखा कोंडोम वीर्य से भरा था, ऐसा लगा जैसे कोमल की जांघों पर कुछ धब्बे लगे हुए थे, मुझे लगा कौमार्य का स्राव होगा मैंने सावधानी बरती थी की सोफे पर तौलिया बिछा दिया था, कोमल ने पूछा " खून है क्या ....? दर्द हो रहा है ..." मैंने इशारे से हाँ कहा, वो बोली "तुम्हारा कहाँ है... अन्दर तो नहीं गया न.." मैंने कहा "डर मत.. कुछ नहीं होगा, ....मैं आता हूँ..." कह कर मैं बाथरूम में गया और कोंडोम को फ्लश कर दिया, कोंडोम पर खून के धब्बे थे जिन्हें देख मुझे एक अजीब एहसास हुआ, लगा की मैं क्या कर बैठा, अनायास ही कोमल के लिए मन में प्यार और एक सुरक्षा की भावना आयी जैसे वो मेरी हो, मैं कुछ देर यूं ही सोचता रहा, बाहर आया तो देखा कोमल ने कपड़े पहन लिए थे और सोफे पर बैठी थी, मैंने पैंट पहना और उसके पास बैठ गया, वो उदास थी, चेहरा उतरा हुआ बिलकुल रोने जैसा, "क्या हुआ..." मैंने पुछा , वो बिना कुछ जवाब दिए उठी और मुझे कंधे पर धक्का देते हुए अपने कमरे में चली गयी, मुझे कुछ समझ में नहीं आया क्या हुआ, अभी तो बिलकुल ठीक थी और इतनी देर तक तो मस्ती से सम्भोग में लिप्त थी और अब क्या हुआ अचानक. मैंने सोफे को ठीक ठाक किया, तौलिया उठाया और कमरे में आकर सोने की कोशिश कर रहा था. अब तक दिन निकलने लगा था, हल्का उजाला हो गया था, मैं सोच रहा था ये अचानक कोमल को क्या हो गया, कुछ देर पहले मेरे उसके बीच जो हुआ उसपर विश्वास नहीं हो रहा था, ये तो किस्मत थी की कोई भी घर में इस दौरान जगा नहीं, हम दोनों ही कुछ ऐसा खो गए थे की होश नहीं था किसीने देखा लिया होता तो हम दोनों ही मारे जाते और कोमल का क्या होता, यही सब सोचते सोचते नींद लग गयी.

सुबह उठा तो बहुत देर हो गयी थी, बाबूजी और कोमल के पिताजी बाहर जा चुके थे, माँ और कोमल की मम्मी बाहर के आहाते में थे , कोमल कहीं दिखी नहीं, अपने कमरे में भी नहीं, किसीसे पूछने की हिम्मत भी नहीं हुई, मैं बाथरूम में गया, रात को जो तौलिया इस्तेमाल किया था उसपर कुछ हल्के लाल धब्बे लगे थे उनको गर्म पानी से धो कर बाकी कपड़ों के साथ धोने में डाल दिया, बहुत डर भी लग रहा था की किसी को कुछ भनक न लग जाए. मैं स्नान कर आया तो माँ किचेन में थी, पुछा " क्या बात है.. आज इतनी देर सोते रहे , नाश्ता कर ले" , मुझसे रहा नहीं गया ' कोमल कहाँ है... " मैंने पुछा, " उसकी तबियत ठीक नहीं... शायद बुखार है... बाबूजी के साथ डाक्टर के यहाँ गयी है." यह सुन मुझे काटो तो खून नहीं... ये क्या हुआ... उसकी तबियत ज्यादा ख़राब तो नहीं... कहीं डॉ को पता चल गया तो... लेकिन ऐअसा कुछ हुआ नहीं... कुछ देर में कोमल वापस आयी, वो काफी कमजोर और उदास लग रही थी, डॉ ने बताया कुछ नहीं है और सिर्फ थोड़ी थकावट है ... आराम करो तीन दिन सब ठीक हो जाएगा...कोमल बिना मुझसे नजरें मिलाये अपने कमरे में चली गयी, माँ और उसकी मम्मी भी गयीं और उसे आराम करने की हिदायत दी..." तुम कोमल के पास बैठो.. उसका मन लगेगा...उसे दवा दे देना और बातें करना" कहती हुई उसकी मम्मी ने मुझे उसके पास भेज दिया, मैं कोमल के बिस्तर पर उसके नजदीक बैठ उसके हाथों को सहला रहा था की कोमल बोल पड़ी
" मैंने बहुत गलत किया कल रात, किसी लड़की को शादी से पहले ऐसा नहीं करना चाहिए..."
"कोई गलती नहीं हुई... हमने जो भी किया सच्चे मन से किया.. कोई पाप नहीं था" मैंने कहा, मैं उसे काफी देर तक समझाता रहा, "जो हो गया उसमे में दुखी न हो कर जिन्दगी जीने का सुख लेना चाहिए .." इस प्रकार की कई बातें कर के किसी तरह उसके मन को हल्का किया, मैंने देखा बातें करते करते उसने अपना मुहं मेरी गोद में छिपा लिया था और सुबक रही थी, थोड़ी देर में उसका रोना बंद हो गया, " किसी से कभी बताओगे तो नहीं..." कोमल ने कहा, "तुम पागल हो क्या..., मैं क्यूं बताऊँगा...मैंने दिल से तुमको प्यार किया है..." मैंने कहा, कोमल को कुछ सांत्वना हुई, "चलो, उठो और तैयार हो जाओ.. हमलोग बाहर बगीचे में बैठते हैं.. माँ और आंटी किचेन में थे, हम बहार आ गए.... " मुझे वहां दर्द हो रहा है... कुछ हो तो नहीं जाएगा " कोमल ने पुछा उसकी आँखों में चिंता थी, " कुछ नहीं... थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा... दर्द ज्यादा है क्या.." मैंने पुछा तो उसके चेहरे पर इतनी देर बाद पहली बार मुस्कराहट देखी
" नहीं.. हल्का हल्का... जैसे कोई दाँतों से काट रहा हो....."
" कौन काट रहा है..." मैंने पुछा तो कोमल ने मुस्कुराकर दिया पर कुछ कहा नहीं. उसे काफी समझाया और सांत्वना दी. मुझे लगा की अब उसके मन की अवस्था ठीक हो रही थी और मुझसे शिकायत करके उसने अपने मन का बोझ हल्का कर लिया था... मैं उसका ध्यान रात की बातों से हटाकर उसकी उदासी को दूर करना चाहता था. कोमल की तबियत शाम तक कुछ ठीक लगने लगी, बुखार अब नहीं था, उनको २ दिन और रुकना था और फिर पुरी के लिए जाने वाले थे, वहां १ हफ्ते रुक कर सीधा अलीगढ़ वापस लौटने का कार्यक्रम था. शाम को पिताजी और कोमल के पिताजी घर आये तो किसी ठेके के बारे में बातें कर रहे थे जो कलकत्ते से २ घंटे पर था बिजली के नए बन रहे कारखाने में. कोमल के पिताजी उसमे इच्छुक थे और सुबह कम्पनी ऑफिस में किसीसे मिलने गए थे. बातों ये मालूम हुआ की पुरी से लौटते हुए वो पुनः हमारे घर पर रुकेंगे, शायद एक या दो दिन. मुझे सुन कर खुशी का अंदाजा नहीं रहा, लगा जैसे भगवान मेरी बातें सुन रहा था और मुझ पर मेहेरबान था. रात तक कोमल का मूड कुछ कुछ ठीक हो गया था, मैं उससे ज्यादा बातें नहीं कर रहा था और सोच रहा था की उसे खुद ही महसूस हो की जो कुछ हुआ उसमे किसीकी गलती नहीं थी और ये सब स्वाभाविक था, उसके मन से किसी तरह की गलती करने की भावना दूर हो जाये. रात मैंने पुछा तो उसने बताया की अब दर्द नहीं के बराबर है. सच पुछा जाये तो मुझे लगा वाकई दर्द कभी इतना था ही नहीं बल्की उसके मन में गलती किये जाने की भावना ज्यादा थी. खैर जो भी हो, उसका मूड ठीक हो रहा था ये खुशी की बात थी. उस रात मैं उसके बगल में बैठा था ड्राइंग हॉल में और सबसे नजरें बचा कर उसके हाथों पर हाथ रक्खा तो उसने भी धीरे से मेरे हाथों को दबा दिया और मेरी और देखा. मैं अपने कमरे में सोने गया लेकिन नींद नहीं थी आँखों में. बार बार कोमल का मासूम चेहरा और उसके मादक बदन की याद आ रही थी. रहा नहीं गया तो कोमल के कमरे की तरफ गया, वो अपने माता-पिता के कमरे में सो रही थी. जगाने की हिम्मत नहीं हुई. उसने नाईट ड्रेस पहनी हुई थी, पैजामा और बिना बाँहों की ढ़ीली और खुली हुई सी कमीज़. मैं देखता रह गया. फिर से शरीर गर्म हो गया इस नज़ारे को देख. मैं खिड़की के पीछे से देख रहा था, अन्दर स्याह अँधेरा तो नहीं था लेकिन रोशनी काफी कम थी और सिर्फ कोमल के अंगों का प्रतिरूप ही मालूम पड़ रहा था, उसके वक्षस्थल के उभारों का आभाष हो रहा था, मैं कितनी देर खड़ा रहा मालूम नहीं, मैं अनायास ही अपने लिंग को सहलाने लगा और कल रात के अनुभव को याद करते हुए लिंग तन कर टाईट हो गया , कुछ देर बाद रहा नहीं गया और बेचैनी में कभी बैठक में जाता कभी कोमल के कमरे की खिड़की पर आ खड़ा उसे निहारता. रहा नहीं गया तो अपना पैंट खोल
अर्धनग्न अवस्था में लिंग से खेलने लगा उसे शांत करने के लिए. इसी बीच देखा कोमल अपने बिस्तर पर नहीं थी, किसी समय जब में बैठक में था वो बाथरूम गयी होगी और उसने अँधेरे में मुझे देखा नहीं होगा, मैं बैठक में सोफे पर नग्न बैठा उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा था, मेरा लिंग तनी अवस्था में विकराल खड़ा था जो मैं उसे दिखाना चाहता था, दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी और अँधेरे में कोमल की छाया दालान में आती दिखी , उसे बताने के लिए मैंने क्षणिक रोशनी बैठक के बल्ब को जलाया, मुझे वहां देख मेरी और आकर उसने फुसफुसाते हुए पुछा
"क्या कर रहे हो यहाँ इतनी रात..?"
"नींद नहीं आ रही" कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ सोफे पर नजदीक बैठाया और उसके गालों को चूम लिया. वो थोड़ा सकपकाई और अपने को छुड़ाती हुई बोली
" मेरा मन नहीं है..."
"बस एक बार...यह रह नहीं पा रहा.. " कहते हुए अपने लिंग को उसके हाथों में पकड़ा दिया.
"एक बार इसको प्यार करले..." मैंने कोमल से कहा..उसके दोनो हाथों को पकड़ मैंने अपने लिंग और अंडकोष पर रख दिए, वो सर झुकाकर उनको मालिश करने लगी, उसके कंधे पकड़ उसे नजदीक खींचा और उसके गालों पर होठ रख चूमने लगा,
"छोड़ दो.. मन नहीं है.. तू मानेगा नहीं जबतक तेरा कुछ हो नहीं जाता ... मैं जानती हूँ .." कोमल बोली
"तो फिर कर दे न ..तू जानती है तो...' मैं कहा, कोमल ने लिंग को अपनी मुट्ठी में थाम ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया और दुसरे हाथ से अंडकोष को सहलाती रही, उसे मालूम था मुझे किन चीज़ों से उत्तेजना बढ़ती है, मैं रोक नहीं पा रहा था अपने को, मैंने उसके कमीज़ के अन्दर हाथ डाल स्तनों को पकड़ दबाया और अपने होठ उसपर रख दिए,



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