Saturday, December 14, 2013

FUN-MAZA-MASTI नशीली सुगंध-9

FUN-MAZA-MASTI

 नशीली सुगंध-9

 मैंने उसके कमीज़ के अन्दर हाथ डाल स्तनों को पकड़ दबाया और अपने होठ उसपर रख दिए, स्तनों को चूसते हुए अपने हाथ से उसकी जांघों को महसूस कर रहा था, गुदाज़ और मांसल, मेरे हाथ कभी उसकी जांघों को सहला रहे थे कभी उसकी कमर को, कब हाथ कोमल की योनी के पास पहुँच गया अनायास मालूम नहीं, मैंने सोचा कोमल विरोध करेगी लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और अपनी मुट्ठी में मेरे लिंग को घेर अपने हाथों से मैथुन करती रही बिना कुछ कहे चुपचाप. बिलकुल अँधेरा था सिर्फ हमारी साँसों की आवाज़ आ रही थी, कोमल के नर्म स्पर्श से शरीर में बिजली सी दौड़ रही थी, लिंग से पानी बाहर आने को तैयार, मेरे मुहं से सिस्कारियां निकलने लगी "आह्ह्ह..आःह्ह्ह...धीरे धीरे खींच इसे..बहुत मस्ती आ रही है.... मत छोड़.. करती रह..निकलनेवाला है बस ...." मैं बडबडा रहा था और साथ ही कोमल की चूचियों के बीच मुहं को डाल उसकी बदन की खुशबु में होश खो रहा था, इसी बीच जैसे शरीर में कोई तीव्र झुरझुराहट सी हुई और लिंग से वीर्य की धार फूट पड़ी, " आह ...आः......aaaaahhhhhh" करता हुआ मैं निढ़ाल सा कोमल पर पड़ गया, कोमल ने लिंग को सहलाना जारी रक्खा और चमड़ी को ऊपर नीचे करते हुए लंड से पूरा वीर्य निकाल दिया, उसकी मुट्ठी लसलसे वीर्य से सरोबर हो गयी, मैंने चेहरा उठा कर देखा , कोमल जैसे बिना किसी भावना के मुझे देखते हुए मेरे पैंट पर अपने हाथों को पोंछा और अपनी कमीज़ के बटन बंद करते हुए उठकर चली गयी कमरे में...उत्तेजना का ज्वर उतर गया अब तक, मैं भी कमरे मैं आकर सो गया, जब वासना पूर्ती से मन शांत होता है तो नींद भी अच्छी आती है, सुबह उठा, आज कोमल और उसका परिवार पुरी जाने वाले थे, शाम को ट्रेन थी, दिन भर उसने मुझे ठीक से देखा भी नहीं, एक दो बार रोक कर उससे बात करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुआ, समझ में नहीं आ रहा था ऐसा अजीब व्यवहार वो क्यों कर रही थी, शाम को हमलोग उनको छोड़ने स्टेशन गए, फर्स्ट क्लास का डब्बा था, कोमल का परिवार नीचे प्लेटफोर्म पर पिताजी और मां के साथ खड़ा था, मौका देख मैं कोमल के पास अन्दर गया, उसने
मुझे बिना भाव के देखा, मुझसे रहा नहीं गया और उसके चेहरे को पकड़ जोरों से चूम लिया
" ऐसा व्यवहार करोगी तो मर जाऊँगा.... फिर मेरा मुहं भी नहीं देखोगी..." मैं कुछ गुस्से और कुछ अपनी मन की बेचैनी में बोल पड़ा....कोमल उसी तरह चुप सी देखती रही, " तुम जा रही हो... तुम्हारे अलावा कुछ सोच नहीं सकता... " कहता हुआ उसे बाँहों में भर लिया, "नीचे जाओ... कोई देख लेगा..." इतनी देर बाद कोमल के मुहं से कुछ सुना... उसकी आँखों में एक फिर एक बार प्यार दिखा और करुणा के भाव भी...मैं डब्बे से बाहर निकलने लगा तो उसने मेरी बाँहों को पकड़ लिया और एक क्षण के लिए अपना सर मेरे सीने से लगा दिया ... लगा जैसे अभी भी उसके मन में मेरे लिया कुछ था .. ट्रेन के जाने का समय हुआ...कोमल दरवाज़े पर नहीं आयी.... मैंने खिड़की से देख उसे हाथ हिलाया, उसने भी धीरे
से हाथ उठा कर जवाब दिया......कोमल के जाने के बाद मुझे सब कुछ इतना उदास लगने लगा, माँ और पिताजी को भी उनका कुछ दिनों रहना अच्छा लगा सब का मन लगा हुआ था. कोमल के पिताजी का फ़ोन आया वो सब ठीक पुरी पहुँच गए थे. मैं याद कर रहा था की कब वो वापस आयें की तीन दिन बाद दोपहर को फ़ोन की घंटी बजी, मैंने फ़ोन उठा कर पुछा तो उस तरफ कोमल थी, मेरे आश्चर्य और खुशी का ठिकाना नहीं, "कैसी हो..." मैंने पुछा तो कोमल ने कहा " तुमसे ही बात करनी थी.... तुम इस समय मिलोगे इसलिए फ़ोन किया.." "क्या बात है..." मैंने कुछ चिंता से पूछा तो वो धीमे से हंसती हुई बोली " घबराओ मत...तुम्हें बताना था..मैं मेंस में हूँ...." " हे भगवन...क्या तुम इसलिए इतनी चिंतित थी... मैं तो घबरा रहा था तुम्हें क्या हो गया है... तुमने दो दिन मुझे ठीक से देखा भी नहीं.." मैं बोले जा रहा था मैंने फ़ोन पर फुसफुसाते हुए कहा "मुझे मालूम था कुछ नहीं होगा... मैंने सब सावधानी रक्खी थीं ... तुमने बताया क्यूँ नहीं की इसलिए तुम इतनी परेशां हो...." मेरे दिल का बोझ हल्का हुआ, कोमल बहुत खुश थी और उसने बहुत कुछ कहा जैसे " मुझे बहुत डर लग रहा था...अब सब ठीक है....हमलोग यहाँ बहुत मजे कर रहे हैं... मैंने कल समुद्र में नहाया ... बाबूजी मंदिर में हैं.....मेंस में हूँ....तुमको ये बताना था इसलिए फ़ोन किया...तुम्हारी याद आ रही है.... .हम फिर आ रहे हैं... जल्दी मिलेंगे ...." वगैरह वगैरह....फ़ोन पर उसकी खुशी का अंदाजा मैं लगा सकता था और वो इतनी उदास क्यूँ थी ये भी समझ में आया..लड़की थी उसे गर्भ ठहर जाने का डर था जो उसे चिंतित कर रहा था, वो डर अब दूर हो गया...इसलिए इतना चहक रही थी फ़ोन पर.... उसकी याद मुझे सता रही थी.. तीन दिनों से उसका बदन मेरी आँखों के सामने आ आ कर मुझे जैसे झिझकोर जाता था.. इन तीन दिनों में रोज ही हस्तमैथुन कर बैठता.. ऐसा पहले नहीं था, .. रात
को बिस्तर पर उलट पुलट होता रहता.. बेचैनी इतनी बढ़ गयी की देर रात उठ कर बाहर बैठक में आकर अँधेरे में बैठा रहता और कोमल के बारे में ही सोचता रहता... उसकी गज़ब की जवानी और शरीर की याद बदन में खून गरम कर देती तो वहीं हाथों से अपने आप को शांत करता.... उसकी फ़ोन पर मीठी चहकती आवाज़ ने पागल बना दिया था, इतनी दीवानगी तो जब वो सामने थी तब भी नहीं थी, अब आँखों से ओझल होने पर उसकी हर अदा और उसके शरीर का एक एक पोर जैसे मुझे याद आ रहा था, उसके स्पर्श को महसूस कर रहा था हर वक्त उसकी गैरमौजूदगी में, ....उस रात बिस्तर पर उसे याद करते हुए दो बार वीर्यस्खलन कर बैठा अपने हाथों से, जब रहा नहीं गया तो गद्दे पर उल्टा लेटे पैंट को नीचे सरका लंड का घर्षण करते हुए इतना वीर्य निकल पड़ा की शरीर एक बार लगा जैसे तनाव मुक्त हो गया, छोटा भाई सो रहा था लेकिन कुछ सूझ नहीं रहा था और लगभग नंगा होकर ठंडी हवा से शांती प्राप्त करने की कोशिश करता हुआ कोमल के नजदीक होने की तमन्ना करता रहा,

दो तीन दिन बाद ही अलीगढ से दो तकनीकी लोग आये जो कोमल के पिताजी के यहाँ काम करते थे और नए ठेके की जानकारी करने आये थे... उनको पिताजी ने होटल में ठहराया ... घर में एक हलचल का वातावरण सा था, पिताजी भी शायद इस मिलनेवाले ठेके में शामिल थे .. ...इस बीच कोमल से बात नहीं हो सकी लेकिन माँ पिताजी की बात होती थी.. एक दिन पिताजी ने कहा कल वो लोग आयेंगे और मुझे लेने उन्हें स्टेशन जाना था .. गाडी सुबह सुबह ५-६ बजे आती थी ...ड्राईवर और मैं स्टेशन गए ...कोमल से मिलने को मन व्याकुल था....उसे ट्रेन से उतरते देख दिल की धड़कन तेज हो गयी जैसे पहली बार देख रहा होऊँ. उनींदी आँखें...चेहरे पर सुबह की अलसाई सी निस्फिक्रता और शांती, अभी भी याद है सफ़ेद ढीली कमीज़ और पैजामा, लेकिन वक्ष का लुभावना उभार स्पष्ट उस ढीली कमीज़ में भी दिख रहा था,....कोमल ने आँखें मिलाई एक हल्की मुस्कराहट आयी उसके चेहरे पर जो सिर्फ मैं ही देख पाया....घर आये तो माँ और पिताजी सभी इंतज़ार कर रहे थे... सब अपने अपने काम में लग गए.. मैं बार बार कोमल से बात करने की फ़िराक में था लेकिन मौका ही नहीं मिला...मेरे छोटे भाई के तो उस दिन मजे हो गए...कोमल ने उसे कई बार चूमा और उसके साथ लिपट गयी मुझे दिखाते हुए....मैंने देखा वो और उसकी मम्मी माँ के साथ बातों में लग गए और पुरी से लाया सामान दिखा रहे थे ... जैसे मुझे चिढ़ा रही थी इशारा करने पर भी नहीं आयी...... वो तकनीकी लोग भी कुछ देर में आ गए और पिताजी और कोमल के पिताजी उनके साथ बातों में लग गए.. थोड़ी देर में सभी बिजली कारखाने के लिए रवाना हुए तो मालूम हुआ की रात देर तक लौटेंगे..कोमल के इस व्यवहार से मुझे गुस्सा भी आ रहा था और मैं सोच में था की कैसे कोमल से मिलूँ...रहा नहीं गया और मौका तब मिला जब वो दोपहर में नहाने गयी...
"कौन.." दरवाज़े पर दस्तक करने पर कोमल ने पुछा..."खोलो...मैं हूँ..." मैंने कहा..
"पागल मत बनो... जाओ...कोई देख लेगा...."
"कोई नहीं है....मैं बात नहीं करूंगा..दरवाज़ा खोलो .. " मैंने जिद की तो कोमल ने थोड़ा सा दरवाज़ा खोल बाहर झाँका इसी समय मैंने दरवाज़े पर दबाव डाला और अन्दर जा घुसा और सिटकनी बंद की...
"तुम को क्या हुआ है... कोईभी देख लेगा तुम्हें अन्दर .." कोमल ने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा
"कोई नहीं है.... माँ और तुम्हारी मम्मी ऊपर कमरे में हैं...उन्हें कुछ मालूम नहीं...घर में कोई नहीं है..." मैंने कहा तो कोमल कुछ निश्चिंत सी हुई... फिर भी मैं अन्दर से डर तो रहा ही था लेकिन मन में जो तूफ़ान था मैं कोई भी रिस्क लेने को तैयार था...रहा नहीं गया तो बाँहों में उसके गदराये बदन को भर कर जी भर पहले तो चूमा और फिर उसकी ओर देखा, एक काली चोली और छोटी सी पैंटी में उसका बदन दमक रहा था पानी की बूंदों से , भरी जांघें, उन्नत वक्ष और लम्बे ऊंचे शरीर का उठान जैसे मतवाला कर गया, होश काबू में नहीं रहे, मैंने उसके गालों को काट खाया......" सी सीई ... आह......क्या करते हो..." कहते हुए कोमल जैसे कराह उठी ,
" बाहर जाओ... मैं आती हूँ.... शाम को मिलेंगे..टंकी के पीछे ..." कहते हुए कोमल ने दरवाज़ा खोल मुझे बाहर धकेल दिया.





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