Monday, March 17, 2014

FUN-MAZA-MASTI मेरी जिंदगी--5

FUN-MAZA-MASTI


 मेरी जिंदगी--5

 'भावना तू जानती है वो तुझे बहुत प्यार करता है, उसे अपना काम भी तो देखना है'

'जानती हूँ मोम पर क्या करूँ ये चूत की आग बहुत सताती है'

'तेरी चूत की गर्मी का हल भी निकाल दूँगी'

'केसे - डिल्डो से मज़ा नही आता मुझे असली लंड चाहिए'

'वो सब तू मुझ पे छोड़ जैसे मैं कहूँ वेसे करना - अभी आराम कर'

'मोम याद है जब पहली बार आपने मेरा लंड अपनी चूत में लिया था?'

'वो केसे भूल सकती हूँ - आज भी उस लंड की याद में तड़पति हूँ - पर तेरी जिंदगी को सवारना बहुत ज़रूरी था - तू मा बन सकती थी पर कभी बाप ना बन पाती अगर में तुझे लड़का बना देती - फिर सारी जिंदगी एक तड़प के साथ जीना पड़ता तुझे'

'रात को बात करेंगे - अभी तू आराम कर मैं राजेश को देख के आती हूँ'

और सीमा कमरे से बाहर निकल उस कमरे में जाती है जहाँ राजेश बिस्तर पे लेटा एक मेगज़ीन पॅड रहा था.

सीमा उसके पास जा के बैठ जाती है

'क्या पॅड रहा है बेटा?'

'कुछ नही नानी बस एसे एक मेगज़ीन उठा ली बोर हो रहा था - आप मोम से बातें करो ना बहुत याद कर रही थी आपको'

'बातें तो उसके साथ होती ही रहेंगी बेटा अभी वो आराम कर रही है'

'नानी एक बात पूछूँ?'

'हाँ हाँ पूछ ना क्या पूछना है'

'नानी क्या बात है जो मोम इतना उदास रहती है - हमेशा कहीं खोई रहती है'

'उसके लिए ही तो तुझ से बात करने आई थी'

'मुझसे ?'

'हां बेटा - तेरी मा को सोने दे फिर कहीं बाहर चलते हैं'

'ठीक है नानी - ये तो मज़ा आजाएगा - अपनी डटे भी हो जाएगी'

'चल बदमाश - तू रेडी हो मैं थोड़ी देर में आती हूँ'

और सीमा खुद रेडी होने चली जाती है

राजेश जब रेडी हो कर हॉल में आया तो सीमा को देख हैरान रह गया.
सीमा को देख कोई भी नही कह सकता था की उसका १८ साल का एक दोता है.
सीमा इस वक़्त सफेद सारी में सुदरता की अभूतपूर्व प्रतिमा से लग रही थी. यूँ लग रहा था जेसे स्वर्ग से कोई अप्सरा धरती पे उतर आई हो. राजेश का तो मुँह खला का खुला ही रह गया.
'माइ माइ नानी यू आर ग्रेट - बिल्कुल ऐसा लग रहा है जेसे मोम सामने खड़ी हो'

' चल ज़यादा बातें ना बना'
आर दोनो घर लॉक कर के बाहर सीमा की मर्सिडीस में बैठ गये. सीमा ड्राइव करती हुई आधे घंटे में होटल मौर्या शेरेटन पहुँच गई. राजेश की नज़रें तो सीमा के उपर से हट ही नही रही थी. सीमा ने बुखारा में पहले से ही टेबल रिज़र्व करवा रखी थी. दोनो स टेबल पे जा के बैठ गये और सीमा ने कुछ स्नॅक्स के साथ रेड वाइन का ऑर्डर दे दिया. राजेश और भी हैरान हो गया ये देख की नानी ने वाइन का ऑर्डर दिया है कुछ बोलता बोलता रुक गया.

'एसे क्या देख रहा है- मैं जानती हूँ तू पीता है आज मेरे साथ भी पी ले'

'अरे नानी एसी डटे के लिए तो मैं कब से मरा जा रहा हूँ आज तो मज़ा आ जाएगा'

'धत हर वक़्त उल जलूल बकता ही रहता है'

थोड़ी देर में वाइन की बॉटल आ जाती है और वेटर दोनो के लिए ग्लास में वाइन डाल कर चला जाता है.

दोनो चियर्स करते हैं और ग्लास टकरा कर वाइन का घूँट भरते हैं.

सीमा कुछ गहरी सोच में थी, पता नही उसे क्या हुआ की वाइन का ग्लास झट से खाली कर दिया, एक ही घूँट में सब अंदर और राजेश आँखें फाडे देखता ही रहा.

'कुछ बातें एसी होती हैं जिन्हें करने के लिए कभी कभी वाइन का भी सहारा लेना पड़ता है'

अब राजेश की हालत अंदर ही अंदर खराब होने लगी - वो भी गंभीर हो गया - पता नही नानी आज क्या बात करनेवाली है.

'तू जानना चाहता है ना तेरी मा क्यूँ उदास रहती है क्यूँ ख़यालों में खोई रहती है?'

राजेश के दिल की धड़कन बॅड गयी - हे भगवान कुछ एसा ना सुनने को मिल जाए जो वो बर्दाश्त ना कर पाए.

राजेश के चेहरे पे एक घबराहट सी फैल गई थी, आँखों में उत्सुकता के बादल लहराने लगे. वो टकटकी बाँधे सीमा को देखने लगा.

'बेटा अब तू इतना बड़ा हो गया की अब तू ज़िम्मेदारियों को समझ सकता है और उनका पालन कर सकता है. - जब बेटा इतना बड़ा हो जाता है तो वो बेटा नही रहता एक दोस्त भी बन जाता है जिसके साथ एसी बातें भी शेयर करी जा सकती हैं जो आम तोर पर दिल की गहराइयों में दफ़न रहती हैं' - कह कर सीमा वाइन का एक ग्लास और गटक गयी.

' नानी आख़िर बात क्या है? मुझे कुछ डर सा महसूस होने लगा है. -क्या कुछ एसा तो नही जो मैं बर्दाश्त ही नही कर पाउन'

'नही बेटा तू जवान है - सुलझे हुए विचारों वाला है - एसा कुछ नही जो तू बर्दाश्त ना कर सके, समझ ना सके'

'फिर बताओ नानी मैं बहुत उत्सुक हूँ'

'वही सोच रही हूँ - कहाँ से शुरू करूँ?'

 
 सीमा की आँखों से आँसू बहने लगे और राजेश अपलक सीमा के चेहरे को ही देख रहा था.

'अरे नानी डियर डेट पे कोई रोता है, आप तो सारा मज़ा खराब कर दोगि, क्या हुआ है?'

'मैने एक बेटे को जनम दिया था'

'मेरा मामा !!! क्या हुआ मैने तो आज तक मामा को देखा ही नही है?'

'अगर वो मेरा बेटा ही बना रहता तो आज तू नही होता'

'नानी ये क्या पहेलियाँ भुजा रही हो?'
'यही तो समझ नही आ रहा तुझे कैसे बताउन'
'बेटा, मेरा वो बेटा आज तेरी मा है'
'क्या?'
'हाँ यही कड़वा सच है'

'नानी मेरी कुछ समझ में नही आ रहा'

'इस बात को समझना इतना आसान नही है - और शायद मैं तुझे बता भी ना सकूँ - घर चल तुझे एक डाइयरी दूँगी उसे पद के तुझे सब समझ में आ जाएगा'

'देखो नानी आपने तो पहली ही डेट पे मेरे दिमाग़ की वाट लगा दी - अब थोड़ा मूड ठीक करो - डाइयरी घर पहुँच कर देदेना - अभी डिस्को चलते हैं - इसी होटेल में है'

'क्या? मैं और डिस्को - इस उम्र में?'

'अरे चलो ना आप तो अब भी आग लगा दोगि दुनिया में'
'तू ना बहुत------'
'चलो ना' और राजेश सीमा को लगभग खींचता हुआ उसी होटल में बने डिस्को में ले जाता है.

सीमा का शरम के मारे बुरा हाल था पर राजेश का दिल रखने के लिए उसके साथ खीची चली गयी- वेसे अगर आज भी कोई सीमा और भावना को साथ साथ देख ले तो दोनो को बहने ही समझेगा - मा बेटी नही - और इसका सबसे बड़ा राज ये था की सीमा अपने जिस्म का बहुत धयान रखती थी.

राजेश सीमा के साथ थोड़ी देर डांस करता है - एक दो जाम और चलते हैं फिर दोनो घर आ जाते हैं और तब सीमा उसे एक डाइयरी देती है.
'इसे पॅड लेना बेटा तुझे सब पता चल जाएगा - जो भी मैं तुझ से कहना चाहती थी'

राजेश वो डाइयरी ले के अपने कमरे में चला जाता है और सीमा अपने कमरे में जहाँ भावना सो रही थी.

पहले कुछ पन्नों में वही लिखा था जो आप लोग अब तक भावना के अतीत की झलकी में देख चुके हैं


 राजेश डाइयरी पड़ता जा रहा था और उसकी आँखों से आँसू छलक रहे थे क्या व्यथा रहती होगी भव्य की इसका उसे अहसास हो रहा था.
पड़ते पड़ते वो उस पेज पर पहुँच गया जब सीमा ने पहली बार भव्य का लंड अपनी चूत में लिया था और दर्द के मारे बेहोश हो गई थी. उसकी चीख से डर के भव्य ने अपना लंड बाहर निकाल लिया और उसकी देख भाल में लग गया.

अब आगे की कहानी सीमा की ज़ुबानी जैसा उसने अपनी डाइयरी में लिखा था :-

भव्य मुझ से बहुत प्यार करता है ये इस बात से सीध हो गया उसने वासना में डूब जाने की जगह मेरे दर्द को प्राथमिकता दी और मेरी देख भाल करी. हाए कितना लंबा और मोटा है उसका लंड, उसकी बीवी की तो ऐश हो जाएगी, पर उसमे उत्तेजना सिर्फ़ लड़की के वस्त्र पहनने के बाद ही क्यूँ आती है और ये क्या मुझे आज ऐसा क्यूँ लगा की उसके वक्ष उभरने लग गये हैं - कभी कभी लड़कों के साथ एसा होता है यूँ लगता की उनके वक्ष बॅड रहे रहे हैं, पर वक़्त के साथ सब ठीक हो जाता है.

इस वक़्त को किसी तरहा भव्य को सुला दिया है , कल फिर एक प्रयास कर के देखती हूँ, शायद मैं उसे ठीक कर पाउन, उसे इस वक़्त बहुत प्यार और अपने पन की ज़रूरत है जो सिर्फ़ मैं ही दे सकती हूँ दोनो एक मा की तरहा और उसके लिए एक औरत बन कर भी, मेरे अंदर की औरत भी उसके बड़े लंड की कामना करने लगी है.
उफ़ कितना दर्द दिया उसने पर उस दर्द के आगे जो मज़ा मिलना था वो अधूरा रह गया, अभी उसे सब बातों के बारे में पता ही कहाँ है थोड़ा समय तो लगेगा ही उसे सब समझने में.

डाइयरी का अगला पेज

आज भव्य किसी भी कीमत पे स्कूल जाने के लिए तयार नही हुआ. मैने भी ज़यादा ज़ोर नही दिया, रीमा स्कूल में होगी तो पीछे मुझे वक़्त मिल जाएगा भव्य को समझाने का और उसे समझने का.

घर के कामो से निबट कर मैं भव्य को देखने गई, अपने कमरे में नही था शायद रीमा के कमरे में होगा, मैं रीमा की कमरे में गयी तो जो देखा मेरी तो जान ही निकल गयी, भव्य रीमा के कपड़े पह्न कर खुद को शीसे में निहार रहा था.
मुझे यूँ लगा मेरे सारे प्रयास व्यर्थ हो रहे हैं, अपनी मर्यादा की कीमत दे कर भी मैं उसे रास्ते में लाने पे ना कामयाब होती लग रही हूँ.
अब उसे डाँट भी नही सकती और लगता है की कुछ ना कुछ तो मेडिकल प्राब्लम है उसके साथ.
अब मुझे ये फ़ैसला करना था की अपना प्रयास जारी रखूं या सीधा अब मेडिकल टेस्ट की तरफ जाउन.

डाइयरी को थोड़ी देर बंद कर राजेश भव्य और सीमा के बारे में सोचने लगा. उसे उन आँसू के पीछे छुपे हुए दर्द का अहसास होने लगा था. नींद तो उसकी आँखों से गायब हो गयी थी.

कल का भव्य ही आज की भावना है. उफ़ क्या क्या गुजरा होगा. कितने भावनात्मक दर्द से गुज़रना पड़ा होगा दोनो को.
और नानी ने कितना बड़ा त्याग किया था - कितना मुश्किल हुआ होगा नानी के लिए अपनी मर्यादा की बलि देना - चाहे बेटे की सलामती के लिए दी और जब भव्य को भावना का रूप लेना पड़ा होगा उस वक़्त नानी की क्या हालत हुई होगी. उस वक़्त भव्य की क्या हालत हुई होगी.

राजेश चुप चाप किचन जाता है और अपने लिए कोफ़ी बनाता है और फिर कमरे में आ कर डाइयरी पड़ना शुरू कर देता है



 अपने गुस्से को पीते हुए मैं आगे बड़ी और पीछे से भव्य के साथ चिपक गयी.
'ये क्या कर रहा है मेरा जानू दीदी के कपड़े क्यूँ पह्न लिए? हूँ बहुत शरारती हो गया है - चल उतार इन्हें और अपॉने नये कपड़े पह्न कल तेरे लिए नई शर्ट और जीन कल ले के आई थी तेरे लिए'

मैने देखा की मेरे इतना कहते ही भव्य का चेहरा उतर गया - वो कुछ नही बोला - मेरी बाँहों से बाहर निकल अपने कमरे में चला गया और थोड़ी देर बाद जब आया तो उसने नये कपड़े पहने हुए थे पर जो चमक उसके चेहरे पे तब थी अब गायब थी.

मैं उसे अपने बेडरूम में ले गई और उसके गले में अपनी बाँहों का हार डाल उसके आँखों में देखने लगी - उसकी आँखों में मुझे फिर एक वीराना नज़र आया और मेरा दिल अंदर से कहीं टूट सा गया . अपनी हिम्मत को जोड़ते हुए मैने उसके होंठों से अपने होंठ जोड़ दिए. अब मुझे उसके लिए एक औरत का रूप लेना था.

मैने धीरे धीरे उसके होंठ चूमने और चूसने शुरू कर दिए, पर उसकी तरफ से कुछ भी शुरू नही हुआ. मैने खुद को तसल्ली दी की कुछ समय लेगा खुलने में.

और धीरे धीरे मैं आगे बॅडने लगी.
अब कभी मैं उसके चेहरे को चूमती तो कभी उसके होंठों को.

'तू चुप क्यूँ है अपनी सीमा से प्यार कर ना'

मैने उसे उकसाया तो उसने भी मेरे होंठ चूसने शुरू कर दिए, पर मुझे उसमे कोई उत्तेजना बॅडती हुई नज़र नही आ रही थी. एक ठंडा पन था उसके चूमने का तरीके में.

पड़ते पड़ते राजेश सीमा के बारे में सोचने लग गया, आज नाना बीच में नही थे उन्हें गुज़रे ५ साल हो चुके थे और नानी आज भी जवान लगती हैं कैसे संभालती होगी नानी खुद को, इस उम्र में अकेला पन कितना खाता होगा नानी को. नही अब नानी को अकेला नही रहने दूँगा इस बार उन्हें साथ ले कर ही जाउँगा. और मन में ये दरिड निश्चये कर राजेश फिर से डाइयरी पड़ने लग गया.

भव्य के होंठों को चूमते हुए मैने उसकी शर्ट के बटन खोल दिए और उसकी छाती पे हाथ फिरने लगी मुझे एसा लगा जैसे उसके वक्ष कल के मुक़ाबले में कुछ और बड़े हो गये हैं. एक डर मेरे दिमाग़ में घर कर गया क्यूकी ये नॉर्मल प्रक्रिया नही थी, अपने दिमाग़ से बुरे ख़याल को झटक कर मैं उसके वक्ष को सहलाने लगी और जैसे ही मेरे हाथ उसके निपल को छूते मुझे एसा लगता जैसे भव्य मेरे मुँह के अंदर सिसकारी छोड़ रहा हो.

मैने ज़ोर ज़ोर से उसके निपल को पिंच करना शुरू कर दिया और इसका असर मुझे दिखने लगा भव्य ने मुझे कस के खुद से चिपका लिया और ज़ोर ज़ोर से मेरे होंठ चूसने लगा.

आज भव्य ने इस समय लड़की के कपड़े पहनने के लिए मुझे कुछ नही कहा, मुझे लगा मैं अपने प्रयास में सफल हो जाने वाली हूँ.

भव्य का लंड भी उसकी जीन को फाड़ने के लिए तयार होने लगा. मुझ पर मस्ती छाने लगी और मैने भव्य के हाथ को अपने उरोज़ पे रख दिया, आगे उसे बताने की ज़रूरत महसूस नही हुई वो ज़ोर ज़ोर से मेरे उरोज़ को मसलने लगा और मेरी सीत्कारें छूटने लगी.

आह मेरा आनंद बॅडने लगा.

पड़ते पड़ते राजेश का दिमाग़ भटकने लगा और वो सीमा की सुंदरता को बिना कपड़ों के सोचने लगा. उसने डाइयरी एक तरफ रख दी और कमरे में चहल कदमी करने लगा.


 राजेश अपनी मा भावना के उपर तो आसक्त था पर आज ये डाइयरी पड़ते समय उसके जेहन में सीमा का कामुक बदन बार बार लहराने लगा उसके आँखों के सामने वो मंज़र आने लगा जब सीमा और भव्य के दूसरे का चुंबन ले रहे थे.
ओह नानी ये क्या कर दिया आपने, क्यूँ ये डाइयरी दी मुझे - यही सोचते हुए वो अपने दिमाग़ को झटकता है और फिर डाइयरी पड़ने बैठ जाता है.

मेरी खुशी की कोई सीमा नही थी, भव्य में उत्तेजना आ रही थी, जितना मैने सीखया था वो उस राह पे चल पड़ा ज़ोर ज़ोर से मेरे होंठ चूसने लग गया और मेरे उरोज़ का मर्दन करने लग गया.
अब मेरी कामुकता को भी हवा लग चुकी थी मैं बहुत खुश थी आज भव्य का मोटा लंबा लंड मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ा देगा मुझे अभूतपूर्व सुख देगा.

अपने प्रयास को आगे बड़ाते हुए मैने उसकी जीन को खोलना शुरू कर दिया, मेरे हाथ उसकी जीन पे थे तो उसने मेरे ब्लाउस को खोलना शुरू कर दिया. थोड़ी ही देर मैं हम दोनो बिना वस्त्रों के थे. मुझे शरम आनी शुरू हो गई, मेरे गाल लाल सुर्ख हो गये, अब मैं उम्मीद कर रही थी की वो खुद आगे बड़े, और मुझे निराशा नही हुई, जैसे ही हम दोनो नंगे हुए, भव्य मुझ से चिपक गया

'मोम लव यू मोम'

'अब इस वक़्त मोम नही रे - इस वक़्त हम दोनो एक दूसरे के जानू हैं - और इस कमरे के बाहर ये बात नही जानी चाहिए'

'मैं तो किसी से भी बात नही करता - दी से भी बहुत कम बात करता हूँ'

'हाँ मेरे जानू हाँ मैं जानती हूँ- अब मुझे प्यार कर ना' मैं नही चाहती थी की उसका धयान भटके आज मैं उसे एक पुरुष किस तरहा एक औरत से प्यार करता है सीखना चाहती थी ताकि उसके अंदर से स्त्री भाव ख़तम हो जाए.

भव्य झुक कर मेरे निपल को चूसने लग गया और मेरी उत्तेजना मैं अग्नि लग गयी.
मेरी चूत ने रोना शुरू कर दिया और मैं उसके सर को अपने उरोज़ पे दबाने लगी, वो ज़ोर ज़ोर से मेरे निपल को चूसने लग गया, और मैं अपने दूसरे हाथ से उसके लंड को सहलाने लग गयी. मेरा दिल कर रहा था की उसके लंड को अच्छी तरहा चुँमू और चूस लूँ पर मैने खुद को किसी तरहा रोक लिया.
अब मेरी टाँगों में जान नही बची थी मैं बिस्तर पे लेटना चाहती थी, मेरा जिस्म उत्तेजना के मारे काँपने लगा था मेरे निपल पे उसके होंठ उन तरंगो को जगा रहे थे जो सीधा मेरी चूत पे वार कर रहे थे, मैने उसे धकेला और हम दोनो बिस्तर पे गिर पड़े.
वो बिल कुल मेरे उपर आ गया था और ज़ोर ज़ोर से मेरे निप्ल् चूस रहा था मेरी जान पे बनी हुई थी अब मुझे हर हालत में उसका लंड अपनी छूट में चाहिए था. मैं ज़ोर ज़ोर से उसके लंड को दबाने लगी.
अब उसे और सीखाने का वक़्त आ गया था.

'जानू अब मुझे चोद डाल'
वो हैरानी से मुझे देखने लगा.
मैने उसका लंड पकड़ के अपनी चूत से लगाया ' अब धक्का मार और मेरी चूत में अपना लंड अंदर डाल दे'
उसने मेरी बात नही मानी और थोडा उठ के अपने वक्ष को मेरे मुँह के आगे कर दिया, मैं समझ
गयी वो क्या चाहता था, मैने उसके निपल पे ज़ुबान फेरनी शुरू कर दी.
आह! उसने एक सिसकी मारी और अपनी कमर का ज़ोर लगा कर मेरी चूत मैं अपना लंड घुसा दिया- मेरी चीख निकल गई, वो अपना लंड बाहर ना निकाल ले इस लिए मैने अपनी टाँगों को उसकी कमर पे लपेट दिया.

'मेरे दर्द की परवाह मत कर बस थोड़ी देर रुक रुक कर अपना लंड अंदर घुसा दे'

उसने एक और धक्का मार कर अपना आधा लंड मेरी चूत मैं घुसा दिया. बड़ी मुश्किल से मैने अपनी चीख रोकी. मेरी आँखों से आँसू बहने लगी और जब उसकी नज़र मेरे आँसू पे पड़ी ' आप को दर्द हो रहा है मैं निकाल लेता हूँ'
'आहह नही रे निकालना मत - मैं अभी ठीक हो जाउंगी - मेरे निपल चूस' भव्य मेरे निपल चूसने लग गया और मुझे थोड़ी राहत मिलने लगी.
'आह हाँ चूस मेरे राजा, मेरे जानू चूस आहह!'
'अब अपना लंड अंदर बाहर कर - पूरा बाहर मत निकालना - हाँ एसे ही - हाँ आहह कर एसे ही कर'
और भव्य ने मुझे चोद्ना शुरू कर दिया - मेरी मस्ती बॅडने लगी और मेरी कमर उपर नीचे होने लगी.
'आहह मज़ा आने लगा है- अब तेज तेज कर और फिर एक धक्का मार के पूरा अंदर घुस जाना'

उसके धक्के तेज हो गये मैं भी उसका साथ दे रही थी - फिर उसने एक ही झटके में पूरा लंड अंदर घुसा डाला - मेरी चीख निकल पड़ी - अब वो सीख चुका था - झुक कर मेरे होंठ चूसने लग गया और मेरे उरोज़ मसलने लग गया, जब मुझे तोड़ा आराम मिला तो मेरी कमर अपने आप हिलने लगी - ये इशारा मेरी जान का दुश्मन बन गया - अब वो तेज़ी से मुझे चोद्ने लग गया - मेरी चीखें निकल रही थी - पर वो लगा रहा और मेरी चीखें कब सिसकियों में बदली पता ही नही चला.

उसका मोटा लंड मेरी चूत को जैसे खोद रहा था - मैं सातवें आसमान पे उड़ रही थी - मेरे पास वो शब्द ही नही की उस मस्ती को ब्यान कर सकूँ - उस आनंद को ब्यान कर सकूँ जो उस वक़्त मुझे मिल रहा था.

'आहह चोद मेरी जान और ज़ोर से चोद'

दस मीं से मुझे वो लगातार चोदे जा रहा था मैं अपने चर्म की तरफ बॅडने लगी - मेरा जिस्म अकड़ने लगा और मेरी चूत ने अपना रस बहाना शुरू कर दिया, इतना तगड़ा ओर्गसम मुझे कभी पहले नही हुआ था, मैं उसकी साथ चिपकती चली गयी, मेरा जिस्म ढीला पड़ता चला गया, मेरी आँखें मुद्ने लगी लेकिन उसके धक्के रुक नही रहे थे, पाँच मिनट और मुझे चोद्ता रहा, मैं फिर गरम हो कर उसका साथ देने लगी और कुछ ही देर में हम दोनो साथ साथ झड़ते हुए एक दूसरे से चिपक गये, उसके रस ने मेरी चूत को भर दिया. और हम दोनो की आँखें कब मूँद गई पता ही ना चला.





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