Sunday, March 2, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--69

FUN-MAZA-MASTI

     फागुन के दिन चार--69
गतांक से आगे ...........


 मैंने सोचा एंट्री लेने के लिए ये सही टाइम है और मैंने एंट्री ले ली..

दोनों मुझे देख के खिलखिलाने लगीं और खड़ी हो गयीं.

पहली नजर में मुझे लगा की किती बड़ी होगयी है ..ओके साफ साफ बोलूं तो बहोत मस्त मस्त लग रही थी.
लम्बाई भी पहले से ज्यादा ...गुड्डी से कम से कम डेढ़ इंच जयादा लम्बी हो गयी होगी.

आँखे भी न सिर्फ बड़ी बड़ी बल्कि एक किशोर चुलबुलाहट के अलावा,एक हल्की सी शोख अदा, एक बांकपन...
उसके गालों पर तो मेरी नजर पहले सी कभी भी मजाक में या चिढाने पे मैं उसके गालों पे ही चिकोटी काटता था...और ये उसे मालूम था लें अब वो और ज्यादा ...

चीकबोन्स बहूत शार्प हो गयी थीं, और ठुड्डी गहरी...और जब गालो से फिसल के मेरी नजर नीचे उतरी तो मै, मैं नहीं रहा...उसके उभार..गुड्डी से निश्चित २१ थे लेकिन साइज से ज्यादा इत्ते कड़े लग रहे थे, उनका उभार, शेप, साइज सब कुछ ...एकदम मस्त

मैं अपने ऊपर तो कंट्रोल कर लेता लेकिन बिचारे जंगबहादुर का क्या होता ...

और ऊपर से गुड्डी मुझे इत्ती टाईट जींस पहना के लायी थी की वो थोडा कुनमुनाए तो टेंट पोल साफ ..
नजर आता ...एकदम उठा हुआ तन्नाया

और वही हुआ...

उसकी नजर वहीँ पड़ी वो मुस्करायी और मेरे आँखों के सामने चुटकी बजाकर एक शोख मुस्कान से पूछा क्या हुआ...मैं वही हूँ जो साल भर पहले थी...

" उहूँ बड़ी हो गयी हो..." मैंने वापस होते हुए मुस्कराकर कहा...

" बड़ी हो गयी है की ...बड़ा हो गया है..." गुड्डी क्यों चूकती उसका एक हाथ सीधे उसके उभार पे पहुँच गया..." नाप लो ना बुरा नहीं मानेगी ..क्यों बुरा तो तो नहीं मानेगी .."

वो उससे कम शोख थोड़े ही थी, उसने पलट के जवाब दिया ...

" पहले तू नपवा ले ना तू मुझसे तीन महीने बड़ी है..."

गुड्डी ने मेरा हाथ खींच के उसके कंधे पे रखते हुए कहा..

." अरे यार हम बनारस वाले है, कोई लखनऊ वाले नहीं...पहले आप पहले आप...चलो दोनों का एक साथ नाप लो ये अंदाज भी लग जाएगा किसका बड़ा है..."
मैंने दोनों के बीच सैंड विच बना हुआ था.

मेरी उँगलियाँ सरक के उसके उभार तक आलमोस्ट टच कर रही थीं. मैंने बात टालने वाला काम किया...

" हे पहले एक चीज सेटल कर लें तेरे नाम का..." मैंने बोला.

"क्यों ..मेरे नाम में क्या हुआ...और जिस अदा से वो शोख मुड़ी मेरी उंगलिया अब अपने आप उसके उभार पे थीं.
" देख तूम दोनों का नाम एक है..मेरा मतलब घर का नाम ..पुकारने वाला नाम...तो .."

मेरी बात काट के वो बड़े अंदाज से बोली...

" तो ठीक तो है...इसका मतलब साफ है की तुम हम दोनों में कोई भेद मत करो...और पहले करते भी नहीं थे लेकिन अब मैं देख रही हूँ की इसे ज्यादा लिफ्ट मिल रही है...है ना..."

वो गुड्डी को आँख मार के बोली.

" नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं है मेरे लिए तुम दोनों बराबर हो..." मैंने तुरंत एक्सप्लेन किया...
" सच्ची ..." दोनों एक साथ मुस्करा के बोलीं. और उसने मुझे फिर कार्नर किया...

" इसके साथ एक पूरे दिन बनारस में रहे ...और यहाँ कल रात आ गए थे ..आज जाके फोन किया...और कहते हो..की बराबर ट्रीट करते हो ...झूठे ..."

एक से निपटना मुश्किल होता है और यहाँ तो दोनों साथ साथ...

गुड्डी मेरे बचाव में आई लेकिन उसमें भी चाल थी..

" अच्छा चलो कान पकड़ो और कबूल करो की आगे से कोई भी...कोई भी भेदभाव नहीं करोगे...जैसा मेरे साथ वैसा इसके साथ ..."

ठीक है ना उसकी ओर मुंह कर के गुड्डी बोली.

बड़ी दया कर के उसने कहा..." अच्छा चलो तू मेरी सबसे पक्की वाली फ्रेंड है तो तू बोलती है तो..."

लेकिन मुझे कान पकड़ के कबूल करवाया है दोनों ने..
.
" अच्छा ..अब बाताइये आपकी क्या प्राबलम है..." वो बड़े मजे से बोली ...
" अरे यार तुम दोनों के नाम ..एक है तो...एक को बुलाओ दोनों आ जाओगी ..."

" तो दोनों से कर लेना..ना...अरे एक साथ डबल फायदा ..."
गुड्डी हंसते हुए बोली और वो भी उसकी हंसी में शामिल हो गयी.

' अरे यार मेरे फ्रेंड जो कह के बुलाते हैं वो तुम भी बुलाओ ना...मेरा नाम क्यों " उसने हल बताया...
" इत्ता लम्बा नाम ...रंजीता..." मैंने बुरा सा मुंह बनाया...

" अरे नहीं यार रंजी..."और मेरी ओर हाथ बढ़ाया...हे आई ऍम रंजी ...मैंने तपाक से हाथ मिला लिया...
" और मेरी गिफ्ट श्रीमान जी...." रंजी बोली...इत्ता इंतज़ार कराया...

" ऊप्स माय मिस्टेक ..." गुड्डी बोली और अपने बोरे नुमा पर्स से एक लिपस्टिक निकाल के दी ...वही इम्पोर्टेड वाली जो हम लोगो ने मेहक की दूकान से पार की थीं ...ये वाली स्लट रेड कलर की थी...

" वाऊ चलो भैया माफ किया आपकी गलती...लेकिन आगे से कोई गड़बड़...भेद भाव ..दो आँख... हुयी न तो एकदम से कुट्टी "
और लिपस्टिक ले के वो ड्रेसिंग टेबल की ओर चल दी.

शीशे में जब उसने लिपस्टिक लगाने के लिए होंठ गोल किये तो साफ दिख रहे थे...जैसे कोई ...वो ...लालीपाप...होंठों के बीच लेने को तैयार हो...

.और फिर वो मेरी ओर मुड़ी और एक दम पास आके खड़ी हो गयी..
" बोलो ना मैं कैसी लगती हूँ..." लेकिन गुड्डी इत्ती आसानी से थोड़ी छोड़ने वाली थी...
" अरे पास से देखो ना...जरा टेस्ट करके बताओ..."

मैं थोडा सा बढ़ा...उसने होंठ गोल किये और अगले पल मेरे होंठ उसके होंठों पे थे...और मुझसे ज्यादा कस के उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकड़ रखा था और अपनी ओर खींच रही थी.. मेरे होंठों ने पहले टच किया फिर हलके से किस किया .

.फिर थोडा जोर से और फिर लिक..मेरा लालची हाथ ..जैसे पहले एक्सीडेंटली उसके किशोर उभार को टच कर गया हो..और फिर हलके से सहला दिया और फिर थोडा सा दबा दिया..

१ मिनट बाद जब हम अलग हुए तो उसकी आँखे अब थोड़ी शरमा रही थीं , लजा रही थीं ..झिझक रही थी..जैसे कह रही हों धत्त
और मैं भी आँख नीचे किये था ..इस किस में कुछ भी ब्रदरली नहीं था...गुड्डी बगल में खड़ी मुस्करा रही थी.

आइस मैंने ही ब्रेक की ...उसके कंधे पे हाथ रख के बोला..

." हे पिक्चर चलनी है..." मैंने उसके कंधे पे हाथ रख के आँख में आँख डाल के पुछा.

" अरे नेकी और पूछ...साथ में आइसक्रीम भी खिलानी होगी और शापिंग ...भी..." वो हंस के बोली...

" एकदम ..." मैंने कहा...

और अबकी उसने हग किया ...पूरे जोर से...फिर किस और हम दोनों के लिप्स लाक हो गए...

अबकी कोई हिचकिचाहट नहीं थी..मैं ही पहल कर रहा था और मेरे हाथ भी...पहले एक हाथ और फिर दूसरा हाथ रंजी के उभार पे...और अबकी उन्होंने कस के दबा दिया...खूब कड़े गदराये, मस्त जवानी के फूल...

और मैंने कनखियों से देखा तो ...गुड्डी क्लिक ...क्लिक ...पहले अपने मोबाइल से फिर मेरे मोबाइल से...यहाँ तक की क्लोज अप भी मेरे हाथ उसके उभार पे..मेरे होंठ उसके होंठ से चिपके...

रंजी ने एक मिनट के लिए अपने होंठ अलग किये और गुड्डी से बोली ...

" हे तुमने क्या किया इस कंजूस दास को...जो इतने भामाशाह हो रहे हैं..." और फिर उसके होंठ मेरे होंठ पे वापस..

दो तीन मिनट बाद नीचे से उसकी मम्मी की आवाज ने हमें अलग किया...
वो बोल रही थीं...
" हे मैं जरा पड़ोस में वर्मा जी के यहाँ जा रही हूँ...थोड़ी देर के लिए..."

रंजी छत पे गयी और वहीँ मुंडेर से नीचे गर्दन कर के जोर से बोली..

." ठीक है...लेकिन भैया हम लोगों को पिक्चर ले जा रहे हैं ...और मै और गुड्डी मिल के इन्हें जरा अच्छी तरह से लूटेंगे..."
" ठीक है नौकरी मिलने के बाद पहली बार आ रहे हैं...तो तुम दोनों का तो हक़ बनता है...और होली भी...है...अच्छी तरह लूटना...हँसते हुए वो बोली. हां मैं निकल रही हूँ जब जाना तो चाभी मुझे वर्मा जी के यहाँ दे देना..."

" हे जरा एक मिनट मैं नीचे जा रही हूँ ...दरवाजा बंद करने के लिए...बस आती हूँ..." और वो धड धड नीचे चली गयी.

...
और इधर गुड्डी चालू हो गयी...थोड़ी डांट, जरा सी तारीफ टिपिकल गुड्डी...


 "तुम भी ना इत्ता अच्छा मौका चूक गए...ये ऊपर से क्या नाप जोख करे रहे थे...वो भी कित्ते हलके हलके...काटेगा थोड़े...अरे टाप के अन्दर हाथ डाल के जरा हाल चाल लेते...थोडा कस के मसलते रगड़ते ...तुम्हारी उँगलियाँ तो वैसे भी एक बार उसकी चूंची पे पहुंचती ना ...तो एकदम पिघल जाती वो...पिक्चर हाल में मत गडबड करना...ये खोल के सीधे उसके हाथ में पकड़ा देना...और अगर नहीं हुआ न तो समझ लो वो तो नहीं ही पटने वाली .मैं भी टाटा कर लुंगी..बस लेके बैठे रहना अपने हाथ में रात भर...पकडाना क्या मैं तो कहती हूँ भले थोड़ी जबरदस्ती ही करनी क्यों ना पड़े...जरा सा उसको चुसवा देना...एक बार तुम्हारे लंड का स्वाद उसके होंठों को लग गया ना तो बस...फस गयी समझो...बस इतना सिखाने पढ़ाने का ये फायदा हुआ की तुमने कम से किस्सी ले ली..."
तब तक रंजी के पदचाप सुनाई दिए ..और गुड्डी ने फाइनल वार्निंग भी दे दी...
" अगर आज ये न पटी तो समझ लो...इसकी चुन्मुनिया के दर्शन के लिए तो तरस ही जाओगे...और मेरी रामापियारी का ताला भले ही तुमने खोल दिया हो...लेकिन असली मजे नहीं ले पाओगे..."
आते ही उसने घडी की और देखा और चालू ..." ऊप्स अरे बस 3० मिनट बचे हैं पिक्चर में..." और मेरी और देख के छेड़ा,
" हे पिक्चर विक्चर दिखाना है या बस खाली पिली..."
" अरे तो तुम तैयार हो ना..." मैंने बाल उस के पाले में फेक दी.
" मैं तो तैयार हूँ...क्यों ऐसे अच्छी नहीं लग रही हूँ क्या..." जिस तरह से अपने मस्त किशोर जोबन उभार के वो बोली मैं समझ गया वो किस तैयार होने के बारे में बात कर रही है. वो खुद ही बोली
" लेकिन अब आप पिक्चर दिखा रहे तो आप कह रहे हो तो मैं चेंज कर ही लेती हूँ ...लेकिन आप बाहर तो जाओ ...तो मैं चेंज करूँ..."
मैं बाहर जाने के लिए मुडा ही था की गुड्डी ने एक हाथ से मुझे पकड़ लिया और रंजी के उभार पे मुझे दिखा के चिकोटी काटते बोली..
" अरे रहना दे न ..ये भी जरा इन जोबन का उभार देख लें.." गुड्डी ने चिढाया लेकिन मैं उस का हाथ छुडा के बाहर निकल आया.. मैं दरवाजे पे ही था की रंजी बड़ी भोली अदा में बोली
" भैया ...ना जाने का मन हो तो रुक जाइए, मैं कर लूंगी चेज टावेल में..."
मैं धत कह के जल्दी से बाहर निकल आया और दरवाजा बंद कर दिया...पीछे दोनों किशोरियां जम के खिलखिला रही थीं..
दरवाजा उठंगा ही था...दरवाजे की झिरझिरी तो थी ही...उस में एक बड़ा सा छेद भी था..बस मेरी आँख और कान दोनों वहीँ..
कपड़ा वपडा तो चेंज होने के अलावा दोनों चालू हो गयी थीं...गुड्डी ने रंजी को दबोच लिया था...
एक हाथ गुड्डी का रंजी के उभार पे था और दूसरा जाँघों के बीच...मैंने समझ सकता था वो क्या कर रही होगी..दूबे भाभी और चंदा भाभी की योग्य शिष्या ..बनारस की ..सीखी सिखाई ...
" हाँ तो बोल उस प्रेम पत्र वाले का लंड खड़ा वडा नहीं होता था क्या जो अब तक तेरी ये बुल बुल कोरी बची है..." गुड्डी ने तगादा किया.
" अरे यार खड़ा होता है...लेकिन....तू तो जानती है ना वो गन्ने वाले खेत के बीच की पगडण्डी से मैं जाती थी ...म्यूजिक टीचर के यहाँ..." रंजी बोली.
" हाँ यार तेरे साथ गयी भी तो थी एक दिन...तो क्या उस गन्ने के खेत में ही पटक के पेल दिया हम लोगों के यहाँ गावं में तो बहूत
खेल होते हैं गन्ने और अरहर के खेत में...." गुड्डी ने कहा.
" नहीं यार ...हाँ गन्ने के खेत में वो मिलता जरूर था...और जोबन मर्दन के बिना कोई लड़का मानता है..तो ..और एक दो बार के बाद तो सीधे टाप में हाथ डाल के ..फिर तो मैंने उस गन्ने के खेत वाले रस्ते पे घुसते ही आपने टाप के सारे बटन खोल देती थी..की कहीं वो जल्दी बाजी में तोड़ न दे तो और मुश्किल..." रंजी हंस के बोली और फिर एक टाप निकाल के गुड्डी को दिखाया और पूछा ये वाली पहन लूं
" ना पहले पूरी बात बताओ..." गुड्डी ने उसके हाथ से टाप छीन लिया.

रंजी हंस के बोली... अरे यार और क्या..अभी करीब १५-२० दिन पहले उसने अपनी कसम दिला दी की मैं उसके कमरे में आऊं...मेरा मन कर भी रहा था… नहीं भी कर रहा था ..."
क्यों...गुड्डी ने हंस कर पुछा.
मेरी भी हालत खराब थी...इसलिए की रंजी ने जो टाप पहले पहन रखा था वो तो पलंग पे दिख रहा था और दूसरा वाला गुड्डी के हाथ में था ...तो इसका मतलब रंजी इस समय टापलेस थी..मैंने छेद से और कस के आँख सटाई..रंजी थोड़ी थोड़ी दिख रही थी और एक पल के लिए जरा सी झलक ..सफेद रंग की टीन लेसी हाफ कप ब्रा और उसमे से छलकते हुए गोरे उभार..लेकिन अगले ही पल वो फ्रेम से बाहर हो गयी. पर उसकी आवाज सुनाई दे रही थी …खनकती हुयी ..
" यार मन इसलिए कर रहा था ..की मैं इत्ती बुद्दू तो थी नहीं...जानती तो थी ही की वहां गयी तो भरतपुर लूट जाएगा. लेकिन ..दिया साल्ली ने आपने भाई से ही टांका भिड़ा लिया था तो बची मैं...अकेली चनडाल चौकड़ी में ...और मन इसलिए नहीं कर रहा था की...वहां भी वो अकेले नहीं रहता था उसका एक रूम पार्टनर रहता था ...तो एक दिन मेरी म्यूजिक टीचर बोल दिया था था की वो फ्राइडे को क्लास नहीं लेंगी...बस मैंने उसे बता दिया..मैं घर से फ्राइडे को क्लास के लिए बोल के निकली...मालूम मुझे पक्का था लेकिन यार इत्ती मेरी लगी हुई थी ..."
गुड्डी ने उसे भी डांटा, " सीन मत बना...बोल फटी की नहीं..."
" अरे मेरी नानी ...तेरी तो फट गयी न...हड बड मत कर...रंजी भी गुड्डी से १९ नहीं थी.." तो पहले तो मैं टीचर के घर गयी ..की अगर कोई देख रहा है और और वहां ५ मिनट रुक के..उसके रूम पे...अंदर से आवाजें आ रही थीं तो बस मैं दरवाजे के पास सट के खड़ी हो गयी. बहोत डर लग रहा था उसका रूम पार्टनर उससे बोल रहा था..हे सुन वो आने वाली होगी ना तेरी वाली ...मैं निकल रहा हूँ लेकिन जैसे समझाया था ना बस दरवाजा वैसे बंद करना...और ज्यादा भूमिका मत बांधना...थोडा चुम्मी चाटी कर के..बस पेल देना...मैं ठीक पन्दरह मिनट में वापस आ जाऊंगा तब तो तेरा हथियार पूरा अन्दर होगा...बस मैं अन्दर घुस के तुम लोगों को हड़काउंगा, उसे बोलूँगा की मैंने उसे बदनाम कर दूंगा...फिर वो मान जायेगी ..और नहीं मानेगी...तो ये तो हैंी ना..उसने अपना मोबाईल दिखाया. मेरे वाले ने भी हलके से हाँ बोला..फिर मैं एकदम छिप गयी और उसका पार्टनर रूम से बाहर चला गया.
" कमीना..." गुड्डी बोली और रंजी से पुछा .." फिर तूने क्या किया गुस्सा तो बहोत आया होगे तुझे उस लव लेटर वाले पे..."
" हाँ ..पहले तो मन किया की वापस चली जाऊं...फिर सोचा की जा के उसे हड्काऊं और फिर...लेकिन मेरा मूड बदल गया...मैंने सोचा यार ...ये लडके हैं मन तो करता होगा ...जब हम लोगों के इत्ती खुजली मचती है तो इन बिचारों के तो और ...फिर पूरे ११ महीने से पीछे पड़ा है...८९ लव लेटर, ४२८ एस एम् एस दे चुका है...और रहा उसके रूम पार्टनर का सवाल तो मन तो उसका भी करता होगा नहीं पटी होगी उससे कोई ….तो मैं कमरे में घुस गयी."
" फिर ..." गुड्डी भी बेचैन थी और बाहर मैं भी...
" फिर क्या...वही हुआ जो होना था..उसने एकदम...बहोत बेताब बेसब्र था बिचारा...कोई भी होता... इत्ते दिन तड़पाया था मैंने...मुझे कस के दबोच लिया जैसे ना जाने कब के प्यासे को पानी मिला हो ...बीसों तो किस्सी ली होंठों पे गालों पे और कस कस मेरे जोबन दबाने लगा...मुझे भी बहोत मस्ती छ रही थी..लेकिन मैंने बोला...मेरे बेसबरे बालम..मैं कहीं भागी नहीं जा रही लेकिन पहले दरवाजा तो बंद कर ..उसने दरवाजा बंद तो किया लेकिन मैं कनखियों से देख रही थी..सिटकिनी उसने ऐसे लगायी थी कोई बाहर से जरा सा झटका दे तो खुल जाए....लेकिन अब मैं भी मस्ती से पागल हो रही थी..वो मुझे खिंच के बेड पे ले गया और एक झटके मेरा टाप पलंग पे था..मैंने ब्रा को हाथ से छुपाने को कोशिश की लेकिन उसने हाथ जबरन हटा के ब्रा के ऊपर से ही मेरे निपल्स सक करने लगा. वो खुद एक शार्ट और टी में था...उसका बम्बू एकदम तना था उसने मेरा हाथ खिंच के अपने शार्ट के ऊपर रख दिया या और पकड़ा दिया. जब मेरा हाथ वहां फँस गया तो अगले पल उसने मेरी ब्रा के हुक भी खोल दिए..और वो भी मेरे टाप के साथ...पहली बार मैं उसके सामने टापलेस हुई थी...वो मेरे उभार तो आलमोस्ट डेली दबा देता था लेकिन पहली बार इस तरह...वो पागल हो गया...." रंजी बोलते हुए एक पल के लिए ठहरी तो गुड्डी बोल पड़ी...
" क्यों क्या कियाउस प्रेम पत्र वाले ने...'
हंस के रंजी बोली ," क्या नहीं किया उस बावरे ने...ये लडके भी ना...कस कस के मसाला दबाया फिर जोर जोर से मेरे निपल चूसने लगा...मैं तो पागल हो गयी सिसकने लगी और उसने मेरी स्कर्ट भी उतार दी
अब मैं सिर्फ पैंटी में रह गयी...तो मैंने भी उसकी टी उतार दी...फिर क्या था उसने मझे पलंग पे लिटा दिया और एक हाथ मेरी पैंटी में ड़ाल के ...मेरा तो बस मन कर रहा था अब उठा के टांग मेरी ड़ाल दे...लेकिन वो तो आग लगाने में लगा था...६-७ मिनट के अन्दर ही उसने मेरी हालत खाराब कर दी थी.

उसका एक हाथ मेरी पैंटी में दूसरा .बूब्स पे था ...वो जिस तरह से मसल रगड़ रहा था...जितना मेरी सहेलियां बता रही थीं ...उससे भी १०० गुना मजा आरहा था..उसने मेरी टांगों को उठा के पैंटी नीचे सरकाना शुरू किया की कीरवाजे पे जोर जोर से ठक ठक शुरू हुयी.


 " आता हूँ..." उसने बोला और अपनी टी शर्ट पहन ली मैंने तो बस पैंटी में ही स्कर्ट, और टाप समेट के एक आलमारी के पीछे चली गयी और जल्दी जल्दी पहनने लगी.
" यहाँ कोई लड़की आई थी..." मैंने सिर्फ आवाज सुन रही थी.
" नहीं नहीं यहाँ तो बस मैं हूँ और जतिन...अभी बाहर गया है...." मेरे बी ऍफ़ ने घबडाकर बोला.
" झूठ मत बोलो...मुझे किसी ने बोला की उसने एक लड़की को स्कर्ट टाप में आते देखा...तो कहाँ आई होगी.." उसने वहीँ से चारो और नजर डाली फिर वार्निंग दी...दिन में दरवाजा खोल के रखा करो,,,,ये सब कंडीसन मैंने शुरू में बता दी थी...वो तो तेरे पिता जी नी...कोई लफडा हुआ ना ...मैं अभी बाहर जा रहा हूँ आधे घंटे के लिए....लौट के आउंगा तो इस महीन एक रेंट तैयार रखना.
मैं समझ गयी की ये उसके मकान मालिक हैं...बहोत खोंख्वार और हम लोगों को भी अच्छी तरह जानते हैं."
" फिर ..." गुड्डी सांस थामे सुन रही थी...
" फिर क्या ..उस बिचारे की तो सिट्टी पिट्टी गुम हो चुकी थी ...उस की भी क्या गलती थी...उसके जाने के बाद पीछे के रस्ते से उसने मुझे निकाल दिया ...और मैंने भी घर आके सांस ली ..लेकिन तब मुझे याद आया की मेरी ब्रा तो वहीँ रह गयी.." रंजी बोली और गुड्डी से कहा चल अब तो टाप दे मेरी...
" बस एक बात...वो फिर मिला की नहीं..." गुड्डी इत्ती आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी..
" १८ एस मस ...एक से एक सेक्सी शेर ये लडके ना...मैं गुस्सा भी नहीं थी उस बिचारे की क्या गलती ...मकान मालिक को तो उसने बुलाया नहीं था...घाटा तो उसी का हुआ ना...लेकिन थोडा भाव खा रही थी..आगले दिन गली के बाहर मिला..कान पकडे खड़ा...मैं मुस्करा दी...बस ..उसने बहोत हाथ पैर जोड़े फिर पिक्चर का आइसक्रीम का प्रामिस किया ...तो मैं बोली...हां मैं गुस्सा नहीं हूँ. दो दिन बाद एक्स्ट्रा क्लास का बहाना कर के मैं गयी... लेकिन पिक्चर में क्या क्या हुआ मत पूछो..." रंजी बोली
" मैं तो पूछूंगी...वरना आज टापलेस ही पिक्चर चलो..." गुड्डी खिलखिला के बोली.
" अरे वही जो ठरकी सब करते है लड़कियों के साथ...पहले तो पटायेंगे ...फिर ..उसने रोज दिए फिर कोल्ड ड्रिंक...और सबसे बेस्ट सीट...;लास्ट रो..कार्नर सीट...हाल वैसे भी आलमोस्ट खाली..वहां जानती हो जब मैं बैठी तो उसका रूम पार्टनर भी आगया ...पहले तो मैंने मुंह बनाया लेकिन वो बोला...की ये भी सारी बोलना चाहता है ...और उसके बाद तो ..दोनों ओर पहले हाथ फिर गाल और सीधे बूब्स पे ...मेरे वो तो गन्ने के खेत में भी सीधे टाप में हाथ डाल देता था ...वहां भी वही...और कुछ देर में उसके रूम पार्टनर ने भी ...वो भी बुरा नहीं है...मेरा हाथ पकड़ के उसने अपने जींस पे रख लिया ..एकदम तनतनाया था...ये लडके ना ...मेरे दोनों हाथ दोनों के बल्ज पे फिर तो उन दोनों की और चांदी हो गयी ...अब खुल के मेरे बूब्स का दोनों मजा ले रहे थे ..मेरे वाले ने तो एक बार झुक के किस भी कर लिया...मैं भी सोच रही थी चल यार इन दोनों बिचारों की इतनी जबर्दस्त प्लानिंग फेल हो गयी तो कुछ तो ...और इंटरवल में मैं भी खूब लूटा दोनो को आइसक्रीम सबसे महगी वाली, कोल्ड ड्रिंक क्रोम रोल....' रंजी ने बताया.
" और इंटरवल के बाद..." गुड्डी बेचैन थी.
" उन दोनों ने ...रंजी खिलखिलाई..पहले मेरे वाले ने फिर उसके पार्टनर ने जिप खोल के बाहर...एकदम कड़क था...पूरा खड़ा...मैंने बहोत मना किया..लेकिन दोनों ने पकड़ा दिया..फिर मैंने भी थोडा सा आगे पीछे....इसी में खुश हो गए बिचारे..."
' लालीपॉप नहीं चुसाया..." गुड्डी हंस के बोली...
" अरे पीछे तो दोनों बहोत पड़े थे ...मेरे वाले ने तो थोडा जबरदस्ती भी की लेकिन मैं मना नहीं किया बस बोला अगली बार...यार ..दिया ने सिखाया था पहली बार देना मत लेकिन मना भी मत करना...और दूसरी की अगर लड़कों को सब चीज एक बार में ही मिल गयी ना तो कोई घास नहीं डालने वाला...अच्छा चल अब तो टाप दे ना...सब बता दिया...इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ ...मेरी बुलबुल अभी भी कोरी है..." रंजी हंस के बोली.

गुड्डी रंजी को ले उसके वार्डरोब की ओर मुड़ी और मेरे दिमाग में चंदा भाभी की वार्निंग गूंजी...लाला निवान कर लो उसका वरना कोई ना कोई ..बात भले मजाक में थी लेकिन एकदम सही थी..

तब तक मेरे सिक्योर फोन पे दो मेसेज आये..पहला डीबी का था.
रिपोर्ट मीटिंग में रीत ने पढ़ी ...एक दम हिट. दोनों ने ये माना की थ्रेट बहूत सीरियस है. सेंटर से भी बात हो गयी है...शाम से पहले ही रेड एलर्ट हो जाएगा...आई बी के कुछ आपरेटिव स्पेशल प्लेन से देर शाम तक आ जायेंगे...सभी चेकपोस्ट पे आई बी के लोग लगाए जा रहे हैं ...
रीत का मेसेज रीत टाइप था...डी बी को बहूत डांट पड़ी की रीत को हायर रैंक क्यों नहीं दी, रीत के ठरकी सेना का प्रोग्राम उन लोगों ने आप्रूव कर दिया है...एक हफ्ते के लिए उन्हें टेम्पोरेरी लीगल स्टेटस और सपोर्ट मिलेगा...रीत ने ४ का नाम फाइनल कर लिया है.

तब तक अन्दर से झगड़े की आवाजें आ रही थी...रंजी मना कर रही थी और गुड्डी उसे हड़का रही थी...ये बनारस की लड़कियां ना मैंने छेद में आँख लगा के देखा ..गुड्डी के हाथ में एक हाल्टर टाप था ...बहोत ही हाट, स्ट्रिंग टाप , ऐसा हाल्टर जो लोगों की हाल खराब कर दे...
रंजी ने लड़कियों वाला ब्रह्मास्त्र निकाला...यार मम्मी ने देख लिया ना तो घर से बाहर से निकलने से मना कर देगी...फिर सारी मस्ती ख़तम ...
लेकिन इन बनारस वालियों के पास हर सवाल का जवाब होता है...चाहे वो गुड्डी हो या रीत..
" अरे तेरी मम्मी देखेंगी कैसे वो पड़ोस में गयी हैं ...और चाभी में उनको दे आउंगी उन्हें क्या पता की आज उनकी रामप्यारी शहर लूटने जा रही है...और जब लौटेगी तो तेरे भैया कम सैयां किस मर्ज की दवा हैं ...वो एक नया टाप खरीदवा देंगे ...तेरे चक्कर में मुझे भी मिल जायेगी...और वो अगर कुछ हाट शाट भी खरीदंगे तो बस उनका नाम लगा देना की मैं तो बहोत मना कर रही थी लेकिन वो नहीं माने बोले की बड़े सहरों में लड़कियां यहीं पहनती हैं ..बस..." गुड्डी ने रास्ता निकाल लिया.
" बात तो तेरी ठीक है लेकिन इसके साथ ब्रा कैसे ...मेरे पास सब स्ट्रेप वाली है ,,,," रंजी ने एक नयी जहमत खड़ी की.
" अरे तो मत पहन मेरी नानी...और उससे खरीदवा लेंगे वहां बिना स्ट्रैप वाली ब्रा भी ...तेरे इन मस्त जोबन के लिए तो ...देख कैसे नदीदे की तरह ललचा रहा था..." गुड्डी बोली.
रंजी हंसी और बोली...मैंने भी देखा था...एकदम पानी आ रहा था मुंह में ...चल आज तेरी बात...
गुड्डी ने उसे हाल्टर पकड़ा दिया और बोला की तू इसे पहन मैं एक ढंग की बाटम भी निकालती हूँ...

अब मैं मल्टी टास्किंग कर रहा था...आँखे सिक्योर फोन पे मेसेज पे लगी थीं...और कान कमरे में...
कुछ और मेसेज थे...बडौदा और मुम्बई के कुछ और डिटेल पता चले थे...लोकेशन थोड़ी और स्पेसिफिक थी. जेड की जो रीत ने सोनल की मदद से फोटो बनवाई थी, वो सर्कुलेट की जा रही थी. सबसे इम्पोर्टेंट मेसेज दो थे , एक तो हुजी के जो लोग बनारस आ रहे थे वो दो ग्रुप में थे , एक ट्रेन से और दूसरा रोड से ...और उनके ट्रवेल प्लान के स्पेसिफिक डिटेल मिल गए थे. दूसरा मेरे बारे में ही था...की जेड के कंट्रोलर ने रात में मेरी, गुड्डी और रीत ...और आज मेरी और रंजी की बात का ट्रांस्क्रिप्शन सुना था लेकिन उसे अभी भी शक था और उसने क्लोजर फिजिकल सर्वायालेंस का आदेश दिया था. चूँकि मेरे हैकर मित्रों ने आज सुबह मेरे उनके सर्वर में घुसने में सफलता हासिल कर ली थी इसका ये फायदा हुआ.


अन्दर आवाजें कुछ तेज हो गयी थी. रंजी तैयार होके ड्रेसिंग टेबल के सामने थी गुड्डी भी ...साथ में ...ये लड़कियाँ भी ना...
गुड्डी ने पुछा .." तो यही दोनों थे जो तू बता रही थी ना...प्रेम पत्र वाला और उसका पार्टनर ..."
" नहीं यार ...वो दोनों तो ठन्डे बस्ते में है अभी और...दो हैं मेरे पीछे पड़े हैं..." रंजी ने ड्रेसिंग टेबल से उठते हुए कहा.
" मतलब..." गुड्डी बोली...
" अरे यार वो दोनों होली की छुट्टी में गाँव चले गए हैं और अभी १० दिन बाद आयेंगे ...तो इसलिए मैंने कहा ठन्डे बस्ते में...लेकिन एक गुड न्यूज उन दोनों ने पिक्चर हाल में बताई थी...उनका मकान मालिक उनके आने के दो चार दिनों बाद..शायद १२ अप्रैल से १५ दिन के लिए कहीं ट्रिप पे जा रहा है...तो नो डर वर एकदम खुला खेल फरुर्खाबादी ...लेकिन तब तक तो वो दोनों ठन्डे बस्ते में है ये दो और लडके है मैं दिया का बताया उसने अपने भाई से ही ताला खुलवा लिया तो वही ...वो उसकी सहेली सानिया है ...मेरी भी मुलाकात है उसका एक भाई है तनवीर डी यु में पढ़ता है आज कल आया हुआ है उसके साथ एक्स्चेंज प्रोग्राम चलाने के चक्कर में थी..."
गुड्डी ने जाहिर किया की वो भी जानकार है खुद बोला समझ गया...दिया तनवीर के साथ और सानिया दिया के भाई के साथ...
" हाँ वही...रंजी बोली...लेकिन मामला अटक गया जब एक दिन दिया के यहाँ उन दोनों ने मुझे देख लिया ...और फिर दोनों ने दिया और सानिया को बोला की एक्सचेंज प्रोग्राम तभी होगा जब बोनस में,मैं भी पैकेट में इनक्लूड हूँ...दिया ने मुझसे बोल दिया साफ साफ ...लेकिन मैंने थोडा भाव दिखाया ...तो एक दिन दिया ने एक दिन एक्जाम ख़तम होने के बाद क्लास की पिकनिक प्लान की...मैंने तनवीर की बैक पे ट्रिपलिंग कर के ...सबसे पीछे दिया बीच में मैं ....और सानिया दिया के भाई के साथ बड़ा मजा आया ...लेकिन वहां पहुँच कर मुझे पता चला की ये सब उन चारों का प्लान था...कोई पिकनिक विक्निक नहीं थी... क्लास का कोई भी नहीं आया था हम सब नदी के किनारे एक आम के पुराने बाग़ में थे एकदम सूनसान जगह थी. और वो दोनों वहां मेरी सीन अपने भाइयों के साथ सेट कराने के लिए आई थी,"
तो हुआ क्या ...गुड्डी बेचैन हो रही थी और बाहर मैं भी...
" अरे सब ..दिया के भाई की उस बाग़ के चौकीदार से सेटिंग थी...वो उस को चाभी दे देता था...उस का दो रूम का छोटा सा रहने का था ...तो वहीँ पर उन दोनों का प्लान था...लेकिन अचानक उस दिन उस चौकीदार को कहीं जाना पड़ गया और उन लोगों का प्रोग्राम अटक गया ...सानिया बोली अरे रंजी नीले गगन के नीचे क्या गड़बड़ है ...तो मैंने हंस के कहा चलो पहले तू दोनों शुरू कर..और तानिया दिया के भाई के साथ और दिया तनवीर के साथ लालीपॉप चूसने में जुट गए..."
" तेरा मन नहीं कर रहा था लालीपॉप लेने का..." गुड्डी ने चिढाया...
" अरे यार मन तो बहूत कर रहा था ..सैंडल पहनते हुए रंजी बोली...लेकिन..."
" ये वाली नहीं ये पहन हाई हील वाली..." गुड्डी ने दूसरी सैंडल आगे बढाई
" अरे ये तो बहूत हाई है..." रंजी ने नखड़ा किया...
" ये कुछ नहीं है मैडम जी आपका भाई कम आशिक से कम से कम साढे तीन-चार इंच की हाई हील खरीदवाउंगी...तब जब चूतड मटका मटका के चलेगी ना...तो तेरे यारों की जान पे बन आएगी लेकिन आगे बता लालीपॉप का..." गुड्डी बोली.
रंजी ने हाई हील पहनते हुए कहा..." अरे लालीपॉप का मजा उन दोनों ने लिया मुसीबत मेरी हो गयी...जब दोनों के तनतना गए...तो सानिया और दिया ने दोनों को मेरे हवाले कर दिया ...और वहीँ पेड़ों के एक झुरमुट के बीच..जमीन पर पत्ते गिरे हुए थे मुझे लिटा दिया ...दिया ने हाथ पकड़ा और सानिया ने मेरी पाजामी पकड़ के खींच दी...मन तो मेरा भी बहूत कर रहा था लेकिन इस तरह एक दम खुल्ले में ...वो भी पहली बार...सबसे पहले तनवीर आया...लेकिन वो ज्यादा कुछ कर पाता...उसके पहले पानी शुरू हो गया...दिया बोली यार रंजी तेरी तो किस्मत है ..पहली बार आम के बाग़ में बूंदों के नीचे...लेकिन पानी के साथ आंधी भी आ गयी...हमारे पास के पेड़ की एक डाल गिर पड़ी ...फिर तो हम लोग भागे..."
अब वो दोनों तैयार हो गयी थीं. गुड्डी ने पुछा ...तो तेरी फिर बच गयी ना...
" अरे क्या बची यार...वो दोनों तो ऐसे पीछे पड़े..वो तो तनवीर को दिल्ली वापस जाना पड़ गया...अगले हफ्ते वो आएगा फिर तो सानिया ने बोला है की वो मेरा हाथ पैर बाँध के ...अगर मैंने सीधे नहीं दिया तो..."
फिर दोनों खिलखिलाने लगी.
उसके बूब्स कस के दबाते हुए गुड्डी बोली...इत्ते दिन नहीं बचेगी तेरी...४-५ दिन के अन्दर ही इस तेरी सों चिरैया को दाना घोंटवा दूँगी..."
रंजी बोली...तेरे मुंह में घी शक्कर मेरा मतलब मोटे मोटे लालीपॉप...
और दरवाजा खोल दिया...
गनीमत था की जस्ट मैं दरवाजे के पास से हट गया था...

रंजी को तो देख के मेरी लग गयी.
मैं खड़ा रह गया.
मेरा खड़ा हो गया...पूरा...


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