Sunday, March 2, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--70

FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--70
गतांक से आगे ...........


 सिर्फ उसकी ड्रेस ही नहीं, मेकप, एटीटयुड, शोख अदा.. और जिस ढंग से वो मुझे देख रही थी...
और ड्रेस भी क्या...

रंजी का हाल्टर टाप, लाईट पिंक, शोल्डर लेस ही नहीं, बल्कि और नीचे, दोनों गोलाइयों का उपरी भाग, गोरी गोरी गुदाज , लेकिन सबसे खतरनाक था क्लीवेज, एकदम डीप..अन्दर ब्रा तो गुड्डी ने पहनने नहीं दी थी...और बाद में उसने कस के निप्स पिंच भी कर दिए थे तो दोनों सर उठाये साफ साफ...और टाप उसके नेवल के ठीक ऊपर आके ख़तम हो जारहा था.

पहली बार मैंने रंजी की पतली कमर देखी और पान के पत्ते से भी चिकना गोरा पेट...और खूब गहरी नेवल...जिसपे उसने एक टेम्प्रोरेरी टैटू ...बटरफ्लाई का बना रखा था...गोल्डेन कलर का
और उसके नीचे एक बहूत ही टाईट कैपरी वो भी बस कूल्हों पे टिकी...

और खूब लम्बी गोरी टाँगे...
हाई हील कलर्ड टो नेल्स

मैं देखता रह गया.
गुड्डी उसके पीछे खड़ी थी उसके कमर में एक ब्वाय फ्रेंड की तरह हाथ डाले...

जबरदस्त आँख उसने मुझे मारी ..और बोली..".हे गिफ्ट भूल गए क्या मिस्टर ..इसे देखने की फीस लगती है ...ये कुछ भी फ्री में नहीं देती..."

सच में मैं भूल गया था ..लेटेस्ट गैलेक्सी टैबलेट और आई पैड जो मैं उसके लिए लाया था...

मैंने एक दो बार आँख मिच मिचाई और बोला...असल में मैं बस...भूल गया...और रंजी को दोनों दे दिए..

" होता होता है...मेरी सहेली को जो देखता है हो जाता है उसके साथ..." बोली गुड्डी और दोनों खिलखिला के हंस पड़ी.

रंजी ने दोनों गुड्डी को पकडाया और मेरे गले लग के ...एकदम कस के ...उसके हाल्टर फाडू उभार मेरे सीने में दब रहे थे..और रंजी ने अपने हाट हाट दहकते, फ्रेश वेट लिपस्टिक लगे गीले होंठ मेरे होंठ पे रख दिए और एक पल के लिए हटाकर मेरी आँखों में देख के बोली ,

थैंक्स सोओओ मच ...और फिर दुबारा उसके लिप्स मेंरे होंठों पे और वो इत्ते जोर से किस ले रही थी की...मेरा एक हाथ उसके नितम्ब पे था ..क्या भरी मस्त नितम्ब थे खूब गदराये और खूब कड़े ...और दूसरा उसके सर पे...

मेरा हाथ कस के उसके सर को अपनी और खींचे हुए था एकदम जोर से...और मेरे और उसके होंठ आपस में उलझे, चिपके, कस कस कर चूमते चूसते...अचानक उसके किशोर होंठ थोड़े से खुले ..

.और मैंने पहले तो उसके भरी निचले होंठों को अपने दोनों होंठों के बीच दबा के रस ले ले केखूब चूसा फिर जीभ उसके मुंह में घुसेड दी.

वो भी कम शैतान नहीं थी, बिना रुके उसकी जीभ ने मेरी जीभ के साथ कुछ देर चल कबड्डी खेली और ...फिर क्या मस्ती से मेरी जीभ चुसी उसने ...

अगर जीभ वो ऐसी चूस रही थी तो...बिचारे जंगबहादुर की हालत ख़राब थी. नीचे भी मेरा हाथ जो उसके नितम्बो को सहला रहा था, हलके हलके दबा रहा था, उससे रंजी और मुझसे चिपक गयी थी और मेरा ' वो' सीधे उसकी दोनों जाँघों के बीच धंसा, घुसा अपनी साइज का अहस्सास उसे करा रहा था...

मैंने कनखियों से देखा ..गुड्डी मुझे घुड कती हुयी मुद्रा में घूर रही थी.

मैं तुरंत समझ गया और मेरा हाथ सर छोड़ सीधे उसकी खुली हुयी कमर पे पहुँच गया. वहां कुछ देर सहलाने, पकड़ने के बाद, सीधे हाल्टर टाप के निचले हिस्से पे पहले तो ऊपर से ही मेरी उंगली उसके रसीले किशोर उरोज को छेड़ती रही और फिर एक मेरी लालची बेसबरी उंगली, टाप के अन्दर घुस गयी. अभी तो ब्रा का कवच भी नहीं था..वो सरकती रेंगती उपर की और बढ़ी.

और फिर एक की देखादेखी दूसरी भी.. थोड़ी ही देर में वो आलमोस्ट निपल तक पहुंच गयी थीं...

और उसका असर रंजी पे जबर्दस्त हुआ...

वो जैसे पिघल रही थी..मैंने हलके से उसके बूब्स को दबाया..एक दबी दबी सी सिसकारी उसके होंठो से निकल गयी.

उरोजों पे मेरा दबाव थोडा दबाव बढ़ा और वो लता की तरह मेरे शरीर से ..मेरी तरजनी ने उसके निपल को टाप के अन्दर से फ्लिक कर दिया...अब उसके लिए कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था. उसने मुझे धक्का दे के दूर कर दिया और इस तरह रस भीनी निगाहों से मुझे देख रही थी , मानो बोल रही हो...

" बेसबरे... नदीदे ...लालची..."

उसके होंठ मुस्करा रहे थे, ललचा रहे थे . और उसने ,शरम फिर उसके हाथ थामे, उसके पहले ही, जैसे कोई बाज झपटे मुझे एक बार फिर अपनी बाहों में भर लिया अपनी दोनों बाहों से मेरे हाथ कस के पकड़ लिए और एक खूब बड़ी सी किस्सी, लिप्पी अपने होंठों से मेरे होंठों पर.....और फिर जबतक मैं रियेक्ट करूँ ...दूर खड़ी हो गयी, मुस्कराती.


 " हे थैंक्स वैन्क्स हो गया हो ना तो ज़रा ये चेक कर लो कहें ये तुम्हे अभी भी छोटी बच्ची समझते हों और खिलौना दे के बहला दिया हो और मुफ्त में..."

गुड्डी ने छेडा और मेरे आगे आके उसके हाथ से टैबलेट ले लिया.

" तुम सही कहती हो ..ऐसे कंजूस का क्या भरोसा ..." मेरी और देखते हुए आँख नचा के रंजी ने जिस शोख अदा से कहा..मेरी तो ..

" चलो मैं चला के दिखाता हूँ..." मैं आगे बढ़ा

लेकिन गुड्डी ने मुझे पीछे धकेल दिया …

मैं अब रंजी के पीछे और गुड्डी रंजी के बगल में, दोनों साथ साथ टैबलेट पकडे हुए..

मेरा एक हाथ रंजी के कंधे पे था और दूसरा उसके कुल्हे पे जो सरक कर...आहिस्ता आहिस्ता...उसकी पतली कमर में पहुँच कर लिपट गया..जंगबहादुर अब उसके बड़े नितम्बों को हलके हलके टच कर रहा था उसकी टाईट कैपरी के ऊपर से...

गुड्डी ने उसके दो चार फंक्शन चला के दिखाए..तो रंजी ने बड़ी अदा से मेरी ओर मुड कर, शोख मुस्कराहट से कहा...
" अभी तक तो असली लग रहा है..." और उसके गोरे गालों रसीले होंठों के साथ किशोर उभार और बिन ब्रा की हाल्टर से झलकते उभार और हलके हलके निपल्स की आभा भी दिख गयी.

देखा आँखों ने असर जंगबहादुर पे हुआ...पूरे ९० डिग्री...और आगे बढ़ने की जगह तो थी नहीं तो सीधे रंजी की पिछवाड़े की दरार में सेट होने की कोशिश करने लगे...

बाकी क्यों पीछे रहते...
हाथ कंधे से सरक के उसके उभार पे हलके हलके...
दोसरा हाथ जो कमर पे था, उसने कस के उसे अपनी ओर भींच लिया..जवाब में हलके से रंजी ने अपने को मेरी ओर, पीछे की तरफ जरा सा पुश किया सिर्फ ये जताने के लिए की उसे मेरी शरारतों का अह्स्सास है...

गुड्डी रंजी की बगल में खड़ी उसे समझा रही थी...

" पिक्चर विक्चर है क्या कोई...उसे भी ज़रा चला के टेस्ट कर के दिखाओ ना..".रंजी बोली...

" हैं ना ...इन्होंने ही लोड की है...बिना फिल्म्स के कया मजा...ये लो "और उसने एक फोल्डर खोला..
मुझे नहीं याद पड़ रहा था की मैंने कोई पिक्चर लोड की हो...

और जैसे ही पिक्चर खुली मेरा जी सन्न से रह गया...

वो एक ब्लो जाब की फ़िल्म थी...
मेरे लैपटाप की जरूर थी लेकिन वहां से इस टैबलेट में कैसे आई ...मुझे अंदाज नहीं था...मुझे लगा अब रंजी जोर से गुस्सा होगी...

वो थोड़ी टेंस जरूर हो गयी लेकिन कुछ बोली नहीं..

हाँ..थोडा पीछे सरकी अब हम लोगों की देह एकदम चिपक गयी थी..
उसकी सांसे लम्बी लम्बी होने लगी थी...
एक बार उसने थूक घोंटा..
उसके उभार हाल्टर में और कड़े हो गए थे...

वो मेरे लैपटाप की सबसे हाट ओरल सेक्स की पिक्चर थी...जेना जेम्सन की ..
और वो अपने गाढे लिपस्टिक लगे होंठो से पहले लिंग को चाट रही थी,

फिर जीभ निकाल के उसने चारो ओर लिंग बड़े प्रेम से लिक किया और होंठ के दबाव से सुपाडा खूब धीरे धीरे खोल दिया. खूब बड़ा सा गुस्साया सुपाडा बाहर निकला ...जुबान की टिप से उसने पहले पी होल को छेड़ा फिर खुले सुपाडे को कस कस के चाटने लगी...
थोड़ी देर में आधा लिंग उसके गुलाबी होंठों के बीच था और वो खूब जोर जोर से चूस रही थी...

असर गुड्डी और रंजी दोनों पर था लेकिन रंजी पे शायद ज्यादा था...चुप्पी गुड्डी ने तोड़ी ...

" क्या मस्त लालीपाप है..."
" हूँ" रंजी बहोत धीरे से बोली.

था तो मस्त वो...एकदम मेरे ही तरह...लम्बा कड़ा मोटा...

और उधर अब उसने कस कस के चूसना शुरू कर दिया था...लग रहा था की वो हाउ टू डू ब्लो जाब जैसी कोई मूवी हो.. बीच बीच में वो जब कैमरे की ओर देखती तो लगता गुड्डी और रंजी की ओर देख रही हो, और पूछ रही हो क्यों समझ में आया ना..है ना मजेदार मस्त...

और रंजी की निगाह तो हट नहीं रह थी.

फ़िल्म में, अब उसने अपने होंठ हटा लिए थे और दोनों हाथों से लिंग बारी बारी से पम्प कर रही थी..कभी स्लो तो कभी फास्ट...

रंजी के मस्त चूतड अब और पीछे हो के मेरे लिंग से रगड़ खा रहे थे..
मैंने भी उसकी पतली कमर में लिपटे अपने हाथ को कस के दबा लिया था और उसे अपनी ओर खीच रखा था...पूरी तरह अपने से चिपका के ..

मेरा लिंग अब पूरी तरह तन्ना चूका था और उसकी गांड की दरार में, एकदम टाईट कैपरी के ऊपर से घुसा हुआ था...

हम दोनों ही जान रहे थे की ये अनजाने में नहीं हो रहा है..

तब तक नीचे से गुड्डी ने अपने पैर से मेरे पैर पे एक जोरदार ठोकर मारी..

उसका इशारा मैंने समझ लिया.. हाल्टर से खुले हुए उसके उभारों के उपरी हिस्से को मेरी उंगलियाँ बस टच कर रही थीं.
वो थोडा और नीचे उतरीं और रंजी के उभार को, मेरी दो उँगलियाँ सहलाने, दबाने लगी पहले हलके हलके फिर कस के खुल के

उधर फ़िल्म में वो अपने दोनों उभारों के बीच लंड को ले के दबा रही थी, रगड़ रही, कभी अपने एक इंच के खड़े निपल्स से सुपाडे पे रगड़ देती.

न रंजी न गुड्डी फ़िल्म बंद कर रही थीं.

अब वो डीप थ्रोट कर रही थी, पूरा लिंग उसके मुंह के अन्दर जोर से चूसते हुए गाल की मसल्स एक दम साफ दिख रही थीं...वो भी उसका सर पकड़ के कस कस के धक्के मार रहा था ...बीच बीच में वो खुद लंड बाहर निकाल के उसके गालों पे रगड़ देता लें अगले पल फिर मुंह में...और कुछ देर में धक्कों की स्पीड बढ़ गयी...

मैं समझ गया की वो झड रहा है...समझ वो दोनों भी रही थीं

बिना मुंह से बाहर निकाले वो अन्दर ही झडा...और जोर से उसके सर को दोनों हाथों से पकडे रहा…

और जब लिंग बाहर हुआ..तो पिक्चर की हिरोइन ने ..अपनी जीभ बाहर निकाल के उस पे पड़ी ढेर सारी गाढ़ी थक्केदार मलाई दिखाई और फिर गप्प कर ली.

जब उसने दुबारा मुंह खोला तो वो खाली था...लेकिन लिंग के पी होल पे एक ड्राप कम लटक रहा था...जीभ निकाल के उसने उसे भी चाट लिया…

गुड्डी ने अगली पिक्चर लगा दी...


ये और हाट थी...
पहले ओरल फिर डागी...

जब आगे फ़िल्म में एक्शन थोडा ज्यादा हाट हुआ...डागी पोज में अन्दर बाहर सटासट जा रहा था ....
रंजी ने जाने अनजाने..अपने हिप हलके हलके हिलाने शुरू कर दिए और मैं भी उसी के साथ...
थोड़ी देर में हम लोगो ने सामने चल रही फ़िल्म की रिदम पकड़ ली...

मेरा एक हाथ अब उसके उभार पे पूरी तरह था... कस कस के खुल के मसलता

गुड्डी ने एक पल के लिए हम लोगों की ओर देखा और मुस्करायी...

दो चार मिनट पिक्चर और चली होगी की गुड्डी ने टैब बंद कर दिया और बोली...
सब पिक्चर यहीं हो जायेगी तो हाल में क्या होगा...चलो जल्दी.

रंजी ने उसकी ओर ऐसे देखा जैसे किसी बच्चे के मुंह से लालीपॉप छीन लिया हो...



 रंजी ने गुड्डी को चाभी पकड़ा दी वर्मा जी के यहाँ जा के देने के लिए...

अब मैंने और रंजी गली में अकेले खड़े थे..रंजी ने मेरे कंधे पे हाथ रखा था...और बड़ी शोख अदा में बोली,

" इत्ता इंतज़ार किया मैंने..."
" आ तो गया..ना..." मुस्कराकर मैंने भी उसी अंदाज में बोला.

" और इसकी क्या जरूरत थी, गलेक्सी और आई पैड की...लेकिन जानते हो मेरा मन कर रहा था...दिया के पास था...बहूत भाव दिखाती थी...मेरे कजिन ने दिया है...लेकिन उसका पुराना माडल है...अब मैं दिखाउंगी उसको...सबसे अच्छा वाला है ये तो लेटेस्ट ..." वो बोली.
" तुम भी तो सबसे अच्छी वाली हो ना..." मैंने उसके गाल को एक ऊँगली से सहलाते हुए कहा...

" धत्त.." कुछ शर्म कुछ शोखी से वो बोली, फिर मुझे चिढाते हुए बोली...

" ये रीत कौन मिल गयी आपको बनारस में ..."

मैं कुछ किस्से कहानी बनाता...उसके पहले वो बोली...
" अरे घबड़ाओ मत...मेरी भी उससे बहोत अच्छी दोस्ती हो गयी है...पक्की वाली...एकदम मस्त बिंदास..उसका मेसेज आया था थोड़ी देर पहले..."

जब तक मैं कुछ बोलता , गुड्डी वापस आगई थी चाभी देके ....बोली..." अरे मैंने ही इन दोनों की दोस्ती करा दी थी फेस बुक पे ... " और गुड्डी के हाथ से उसका मोबाईल ले के रीत का मेसेज देखने लगी...

फिर तो दोनों पे हंसी का दौरा पड़ गया...रुकती फिर चालू हो जातीं...

" हे मुझे भी दिखाओ ना..."
मैंने बोला ...

लेकिन दोनों एक हो गयीं. एक साथ बोलीं..." गर्ली टाक..तुम्हारे लिए नहीं."

गुड्डी ने आँख हलकी सी मुझे मारी और रंजी की मोबाइल के एक दो बटन दबा दिए..मैं समझ गया...उसने वो मेसेज मुझे फारवर्ड कर दिया था.
वो दोनों आगे आगे चल रही थीं और मैं थोडा पीछे ...और मैंने रंजी की और देखा ...

क्या मस्त नितम्ब थे, लेफ्ट राईट लेफ्ट राईट, दोनों कसर मसर करते हुए ...और ऊपर से जो गुड्डी ने उसको हाई हील पहना दी थी...
रंजी की कमर बहूत पतली थी और इस टाईट कैपरी में और संकरी लग रही थी...और हिप्स की साइज थोड़ी ज्यादा ही, गुड्डी से कम से कम दो साइज ज्यादा...

मुझे चंदा भाभी की बात याद आगई...
" ऐसी लड़कियां निहुरा के चोदने ( डागी स्टाइल) और गांड मारने दोनों में बहूत मस्त मजा देती हैं..."

जैसे ही हम लोग गली के मोड़ पे पहुंचे वहां एक कन्फेक्शनरी की दूकान थी...

हे लालीपॉप...रंजी मेरा हाथ पकड़ के जिद कर के बोली.
" धत ...अभी तो...." गुड्डी बोली ...लेकिन रंजी कम नहीं थी उसने झट जवाब दिया..." अरे वो तो सिर्फ देखा था...ना देखने से तो भूख और बढ़ जाती है..."

दोनों की चायं चायं में कौन पड़े..इसलिए मैं दूकान की ओर बढ़ लिया और...

मेरे होश उड़ गए..


वो कत्थई सूट वाला, जिसने कल रात में बनारस से निकलते समय, पांडेपुर से मेरा पीछा किया था

पहले तो मेरे मन में आया की क्या तुम लोगों के यहाँ इतनी फैएन्सियल क्राइसिस चल रही जो दूसरा ड्रेस नहीं बनवा पा रहे हो, इसे ही रगड़ रहे हो..

फिर जब मैंने थोडा सीरियस हो के सोचा तो मैं घबडा गया.

इसका एक अच्छा पार्ट था और एक बुरा...

अच्छा ये की...इसका मतलब की अभी रीत लोगों पे उनका शक नहीं गया था और वो आराम से बनारस में आपरेसन कर सकते थे...

और बुरा पार्ट था की उन्हें मेरे सारे ठरकीपने की एक्टिंग के बावजूद अभी भी मेरे ऊपर शक था, और सारे डाटा मेरे पास थे...और कहीं जान बूझ के तो उसने आज भी वही कपडे वही बाइक इसलिए इस्तेमाल की हो
...क्योंकि वो मुझे दिखाना चाहता हो...और मुझे डराना चाहता है...

जो होगा देखा जाएगा मैंने सोचा और दूकान में धंस लिया,

थोड़ी भीड थी, मैंने दो लालीपॉप लिया और आगे बढ़ा..

अब मुझे आइडिया आया की रंजी को इतना लालीपॉप की जिद्द क्यों सवार थी.

वो और गुड्डी सड़क पे जहाँ खड़ी थीं वहीँ २-३ ठरकी टाइप के खड़े थे...वो नहीं चाहती होगी की मैं उन्हें देखूं और वो रेगुलर छेड़खानी करने वाले होंगे...
...
वही मामला था, एक लाल टी शर्ट वाला बोला रहा था...

" अरे रेशमा जवान हो गयी तीर कमान हो गयी."

गुड्डी ने उसे देख के हलके से मुस्कराया, और आग में और घी पड़ गया.

" अरे रंजी क्या बात है तेरे मोहल्ले के लड़कों को तेरा नाम भी नहीं ठीक से मालूम ..."

वो लाल शर्ट वाला तो चुप रहा लेकिन एक जेल वेळ लगाये ...हीरो ...जो उन सबों का बस लगता था बोला...

" अरे नाम भी मालूम है, साइज भी मालूम है...३२ सी क्यों जानू है ना..."

गुड्डी ने रंजी को चिढाया ...अरे क्यों बड़ी नाप जोख करनेवाला है ये तो..
" अरे ब्रा की दूकान में सेल्स मैन है...जहाँ से मैं खरीदती हूँ ...इसलिए..." रंजी मुस्कराकर कर बोली।

जिस तरह से रंजी उस लड़के को देख के मुस्कराई थी, अपने होंठ पे जीभ फिरा रही थी...ये तो साफ था की ये छेडछाड नयी नहीं थी...और रंजी भी मजे ले के उन सबों को छेड़ रही थी.

अरे नया नया साल है
नया नया माल है ..
अरे क्या रंग रूप है
क्या चाल ढाल है


लाल शर्ट वाला बोला.

हीरो ने अबकी गुड्डी को देख के इशारा किया..." अरे देख होली आफर... एक के साथ एक फ्री.."

गुड्डी क्यों चुप रहती, उसने भी आँख नचा के रंजी से बोला...

" यार बड़े मुफ्तखोर हैं तेरे यहाँ के ...रसमलाई भी चाहिए और वो भी फोकट .."

लाल शर्ट वाला बोला..."बॉस अपने मॉल को आप रखो मुझे तो अब रसमलाई ही चाहिए..चवन्नी अठन्नी जो लगेगा दे देंगे..."

हीरो ने फिर रंजी को ही बोला..." अरे अपनी इस सहेली को बता दे...पकड़ा भी तो तूने फ्री में था..पसंद आया था ना मेरा ..छोटा दोस्त .."

गुड्डी रंजी से फुसफसाई ..." ये क्या बोलता है ...तूने पकड़ा था इसका अगर झूठ बोल रहा हो तो बोल…”

रंजी भी हलके से बोली..

" नहीं यार बोल तो सच रहा है लेकिन जान बूझ के नहीं...बस में मेरे पीछे था धकामुक्की कर रहा था ...लेट हो गया था बस में लाईट भी नहीं थी...मैंने उसे पीछे करने के लिए हाथ किया तो ये जिप खोल के उसे निकाल के खड़ा था..मेरे हाथ में आगया ..."

तब तक मैं पीछे से पहुँच गया...मुझे आते देख गुड्डी उन सब से बोली…

“.हट हट ..यार ये छोटे छोटे दोस्तों से अपुन का काम नहीं चलता अपुन को तो बड़ा मांगता है ...वो देखो मेरा बड़ा वाला आ रहा है ...”

मुझे देख के वो सब चुप हो गए लेकिन हटे नहीं....

रंजी ने मेरे हाथ से लालीपॉप लगभग छीनते हुए मुस्करा के होंठ से लगा लिया, और बोली क्या जबर्दस्त मजेदार है...आँख उस की उस हीरो को ही चिढा रही थी...

लेकिन मेरा ध्यान पीछे से आ रही मोटर साइकिल की आवाज की ओर था ...कत्थई सूट वाले ने बाइक स्टार्ट कर दी थी...


 मैं चेक करना चाहता था की उस के इर्रादे क्या हैं मैंने उन दोनों ने तुरंत एक झूठ बोला...

" यार उस को ५०० का नोट दिया था चेंज लेना भूल गया अभी लेके आता हूँ.."

" गुड्डी बोली..." तुमसे यही उम्मीद थी..बिना कुछ गड़बड़ किये कुछ होता है क्या...जल्दी जाओ..."

रंजी ने कहा..." और रिक्शा भी वहीँ मिलता है दूकान के सामने ही ले के जल्दी आइये...पिक्चर हाल तक पैदल घसीटने का इरादा तो नहीं है..."

जैसे ही मैं वापस मुड़ा तो कत्थई सूट वाले ने बाइक रोक दी...

जो स्ट्रीट रोमियो खड़े थे उसमें से एक बोला...अरे छोड़ ना ..आ मेरी बाइक पे बैठ जा...

दूकान में मैं घुस तो गया लेकिन वो तो सिर्फ एक बहाना था..

.मुझे याद आया जो मेसेज गुड्डी ने रंजी के मोबाइल से फारवर्ड किया था, रीत का.

मुझे भी देखते ही हंसी आगई और रीत की बात याद आ गयी...

की वो एक ठरकी सेना बना रही है जो चार उसने चुने हैं उनकी फोटो गुड्डी को भेज रही है...

गुड्डी से उसका मतलब ऐल्वल वाली गुड्डी यानि रंजी से था...और

फोटो चेहरे की नहीं 'अंग विशेष ' की थी...क्योंकि वही उसका मापदंड था...साइज...वास्तव में मुझसे २० नहीं तो १९ भी नहीं थे और एक तो शायद कम से कम मोटाई में २२ रहा हो...

" लम्बा चाहिए की मोटा चाहिए ...बोल रंजी बोल ...तूझे कैसा चाहिए "
आगे चाहिए की पीछे चाहिए ..बोल रंजी बोल तूझे किधर चाहिए "

रीत ने उन फोटो के साथ पुछा था ...

लेकिन रंजी का जवाब कम जोरदार नहीं था...

" हाँ रीत दी..एकदम लेकिन मैं इनमें से कोई सेलेक्ट नहीं कर रही...क्योंकि मैं किसी बिचारे का जरा सी चीज के लिए …दिल तोड़ने में यकीं नहीं करते..मेरे लिए तो ...चारो...और दो चार और मिल जायं तो वो भी चलेगा..."
रंजी पर भी रीत की दोस्ती का असर चढ़ रहा था।
मैं बाहर निकला ,एक रिक्शा पकड़ा और चल दिया...उन लडको की बेंतबाजी अभी भी चल रही थी और अब फिल्मी गानों से भोजपुरी होली के गाने पे आ गयी थी...

वो लाल शर्ट वाला कह रहा था...

" अरे साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना साढ़े तीन बजे...
अरे इ जोबना का मज्जा जरूर देना साढ़े तीन बजे
और उस हीरो ने भी ज्वाइन कर लिया...

अरे पांच के बदले पचास दै देब
बिना चोदे न छोड़ब चाहे जेहल हो जाय
साढ़े तीन बजे...

मेरे रिक्शा ले के पहुंचते ही दोनों धप्प से आके बैठ गयीं...


रंजी बीच मैं और मैं और गुड्डी दोनों ओर

लेकिन चलते चलते भी रंजी ने उन छोरों को ललचाते हुए दिखा के पहले तो लालीपॉप बाहर निकाला फिर साइड से लिक कर लिया और फिर एक झटके में पूरा का पूरा गप्प कर लिया...जैसे लालीपॉप ना हो..'वो' हो....

और रिक्शे पे भी ...गुड्डी भी कम नहीं थी...उसने मेरा हाथ जो बीच में बैठी रंजी के कंधे पे था खिंच के ...सीधे उसके उभार पे ...

और बोली अरे ठीक से पकड़ो...कित्ते दिन बाद ट्रिपलिंग कर रहे होगे...कहीं गिर गिरा गए तो..

रंजी भी..उसने भी अपने उभार पे रखे मेरे हाथ को और अपनी ओर खीच के अपने हाथ में ले अपने किशोर मस्त गुदाज उभारों पर जोर से दबाते हुए कहा..

." असल में गिरने विरने की चिंता नहीं हैं ..असल बात ये है की कहीं आप गिर वीर गए और मैं और गुड्डी पिक्चर हाल पहुँच गए तो पिक्चर का पैसा कौन देगा और शापिंग कौन कराएगा..."

दोनों एक साथ बहोत जोर से खिल्खिलायीं.

लेकिन फिर रंजी ने पाला बदला.." हे मेरे भैया...इत्ती जल्दी नहीं गिरते.."

गुड्डी बड़ी जोर से खिलखिलाई..." अच्छा जी भैया की बहना ...तो तुम्हे मालूम है की तुम्हारे भैय्या कितने देर में गिरते हैं...तो जरा हमें भी बताओ ना...१० मिनट, १५ मिनट, आधे घंटे में...कित्ते देर में..

रंजी ने जिस हाथ से मुझे पकड़ रखा था उसी हाथ से गुड्डी को मारने के लिए हाथ बढ़ाया...


और मैं गिरते गिरते बचा.


मैंने सम्हल कर रंजी को कस के पकड़ा, अबकी मेरे हाथ उस के उभार पे न सिर्फ थे, बल्कि उसे कस के दबोच रखा था…
रंजी ने और कस के मेरा हाथ अपने सीने पे रख के दबा दिया.

हाल्टर टाप से छलकते हुए उसके मटर के दाने के बराबर निप्स साफ साफ झलक रहे थे। पहले मैंने उंगली के पोरों से उन्हें हलके हलके दबाया और फिर और फिर तरजनी और अंगूठे के बीच में ले के हलके हलके रोल करने लगा। निप्स एकदम कड़े हो गए थे। रंजी के मुख से रोकते रोकते जैसे सिसकी निकल गयी।

उसने कुछ अदा से कुछ शिकायत से मेरी ओर देखा।

और जवाब में मैंने कस के उसके टाप फाड़ते किशोर उभारों को अबकी जोर से दबा दिया।

आँख नचा के मेरे कानों से अपने दहकते होंठ हलके से सटा के वो बोली, ...बदमाश।
और मुझसे और सट गयी।

और उसी समय कत्थई सूट वाला अपनी बाइक पे हम लोगों के एकदम बगल से गुजरा. उसकी निगाह हमलोगों पे ही टिकी थी.

शायद वो यही देखना चाह रहा था...जो बातें हमारे फोन से उसने टैप की थीं...कहीं वो एक्टिंग तो नहीं ...कहीं हम लोगों को ये मालूम तो नहीं की हम लोगों का फोन टैप हो रहा है...इसलिए वो खुद देखना चाह रहा हो...और उसने वही देखा जो हम उसे दिखाना चाहते थे. रास्ते में दो -तीन बार वो हमारे रास्ते में आया...

रंजी ने एक मजेदार बात बताई..उसे गुड्डी और रीत के सौजन्य से , उन दोनों ने जो मेरी बनारस में दुरगत की थी, उसका रत्ती रत्ती भर हाल मालूम हो गया था...

यहाँ तक की रीत ने जो मेरी शर्ट पे रंजी की पूरी रेट लिस्ट छाप दी थी ..

मेरे और रंजी के मोबाइल नम्बर के साथ साथ ...और उसके साथ साथ गुड्डी ने जो मुझे पूरे बनारस में घुमाया था, और जो 'डिमांड' आई थी उन्हें कैसे रीत को फारवर्ड कर दिया था, सब कुछ , कैसे मैने वादा किया था की मैं यहाँ से लौटते हुए उसे बनारस ले जाउंगा और रंग पंचमी में वो वही रहेगी,... सब कुछ

और उसने पूरी सहमती दी. उसने खुद बताया...की कई लोगों का जब एस में एस आया तो पहले तो उसे कुछ समझ में नहीं आया... लेकिन बाद में उसने मजे लेते हुए उसी तरह ४-५ के जवाब भी दे दिए..


जब हम लोग हाल में पहुंचे तो बस पिक्चर शूरू ही होने वाली थी.


बुकिंग पे काउंटर वाले ने बोला की क्या हम बाक्स का टिकट लेंगे, पिक्चर बस शुरू होने वाली है...

मेरा ध्यान पीछे था...वो कत्थई सूट वाल भी टिकट विंडो की और बढ़ रहा था मैं नहीं चाहता थी की वो हाल में भी हमारे पीछे रहे...

बाक्स में घुसते ही गुड्डी और रंजी की चांदी हो गयी और मेरा सोना .

रंजी ने घुसते ही सोफे का एक कोना पकड़ा, मैं बीच में और गुड्डी दूसरे कोने पे..

और मेरी सैंडविच बन गयी..
फरमाइशें, ताने, शिकायतें,
कोल्ड ड्रिंक नहीं पिलाया, बिना पाप कार्न खिलाये पिक्चर का मजा क्या...ऐसी कंजूसी..कम से कम मूंगफली ही खरीद दी होती...

और दोनों नदिदियाँ, लालीपॉप चूसे जा रही थीं...

मैंने भी पलट वार किया.
अकेले अकेक्ले लालीपॉप खाए जा रही हो मुझे आफर भी नहीं किया...मैं बोला.

" च च..सारी भैय्या ..गलती हो गयी ....लो ना ..." और रंजी ने एक बार मुझे दिखा के लालीपॉप सक किया, फिर निकाल के अपने होंठो पे उसे एक और से दूसरे और तक लगाया ...और सीधे मेरे मुंह में ...

उसके थूक, मुख रस से लिथड़ा, लिपटा लालीपॉप अलग ही रस था ...

गुड्डी ने दूसरी ओर से मुझे कोंचा..." हे क्या रंजी का हो लोगे..."

उसकी अदा और शिकायत के अंदाज से साफ था की वो 'क्या लेने' का जिक्र कर रही है... और उसने अपने मुंह से निकाल के लालीपॉप मुझे आफर किया...

" अरे यार एक साथ दोनों का कैसे लूँगा..."
मेरे मुंह से निकल गया और आफत हो गयी...

" क्यों दोनों का एक साथ नहीं ले सकते क्या...." बड़े भोलेपन से रंजी ने पुछा

" क्यों नहीं ले सकते...बल्कि लेंगे ही अभी देखना तुम...और वो नहीं लेंगे तो हम दोनों तो सहेलियां हैं जरूर साथ साथ लेंगे..." गुड्डी बोली.

और अपना इरादा उसने अपने पल साफ कर दिया...

बैठते ही गुड्डी के एक हाथ ने सीधे मेरे जंगबहादुर को मेरे पैंट के ऊपर से ही कब्जे में ले लिया था और अब उसने खिंच के रंजी का भी हाथ वहीँ रख दिया...

पिक्चर शुरू हो गयी थी लेकिन पिक्चर किसे देखनी थी...

तभी कोल्ड ड्रिंक्स वाला अन्दर आया...
मेरी तो आफत हो गयी
दोनों एक साथ

कोल्ड ड्रिंक्स, पाप कार्न और ना जाने क्या क्या...और मेरी जेब से पैसा निकाल के गुड्डी ने कोल्ड ड्रिंक वाले को दे दिया...पर्स और कार्ड तो टिकट खरीदने के बाद उसी के कब्जे में था...

लेकिन मेरी बचत भी हो गयी...

और बचत भी हो गयी...वो भी दो तरह से,,
एक तो उन दोनों बिल्लियों के झगड़ों से...कुछ देर के लिए निजात मिली...

दूसरी मेरी चमकी..

.उस कत्थई सूट वाले को मैंने कोल्ड ड्रिंक शाप पे इसी लडके से बात करते देखा था...तो उसी ने उसे कुछ पे कर के यहाँ भेजा होगा.ये देखने के लिए की हम लोग कर क्या कर रहे हैं...मैं सिर्फ ठरकी पाने की एक्टिंग कर रहा हूँ या वास्तव में ...और वो एकदम सही टाइम पे आया..
.
गुड्डी का हाथ तो पहले ही मेरे जगे शेरे को और जगा रहा था, अब उसने रंजी का हाथ भी खींच के वहीँ रख दिया था...

मेरा एक हाथ तो रंजी के हाल्टर टाप के अन्दर था और दूसरा गुड्डी का जोबन मर्दन कर रहा था.

और जैसे ही वो बाहर गया...मुझे मालूम था की वो हाल खुलासा कत्थई सूट वाले को बयां करेगा .

उसके बाद तो क्या नहीं हुआ...

रंजी कोल्ड ड्रिंक ख़तम करने के बाद थोडा सा उठी बाटल सीट के नीचे रखने के लिए ...और गुड्डी ने मुझे जोर से आँख मार के उसकी जगह पुश कर दिया और अब जो वो बैठी तो सीधे मेरी गोद में....

" क्यों मजा आरहा है सिंहासन पे बैठने में..."
गुड्डी ने उसे छेड़ा...

" और क्या...तू सोचती है तू ही बैठ सकती है...मेरे जाग गए शेर पे अपने कैपरी फाड़ते चूतडों को जोर जोर से रगड़ते वो बोली...और फिर गुड्डी को जोर से आँख मार के बोली...लेकिन बिचारा सिंह तो अभी पिंजड़े में कैद है...

" तो खोल दे ना...”

गुड्डी ने उसे चिढाया ,

“लेकिन दहाड़ता हुआ निकलेगा तो बस...गुफा ढूंढेगा...."

पहले तो मेरे दोनों हाथ हाल्टर टाप के ऊपर से ही उसके उरोजों को सहलाते रहे लेकिन बायाँ हाथ थोडा ज्यादा बोल्ड था...

पहले उंगलियाँ फिर पूरी हथेली..पहले तो सिर्फ स्पर्श सुख..एक किशोरी के नवल यौवन कमल का स्पर्श ही मुझे और रंजी दोनों को गिनगिना गया...फिर हिम्मत कर के मैंने थोडा सा दबाया..

जब रंजी कुछ नहीं बोली तो मेरी ऊँगली ने उसके निपल को फ्लिक किया ...एकदम कड़क और अब मुझे ग्रीन सिग्नल मिल गया था की उसे भी मुझसे कम मजा नहीं मिल रहा है .
.फिर तो दूसरे हाथ ने ...और अब टाप सरक के नीचे..ब्रा का कवच तो था भी नहीं और दोनों उरोज मेरी मुट्ठी में .
.मैंने जब एक साथ दोनों निपल अंगूठे और तरजनी के बीच में ले के रोल किया तो उसने पहली बार कस के सिसकी भरी और अपनी दोनों जाँघों को सिकोड़ लिया…

लेकिन अब मैं रुकने वाला नहीं था...मेरे होंठ भी मैदान में आगये थे..उसके गर्दन पे, हलके हलके बटरफ्लाई किसेज गाल पे..और एक हाथ जोबन को अब कस के दबा रहा था मसल रहा था और दूसरा ..उसके निपल को कभी फ्लिक करता, कभी पुल करता कभी, रोल करता..

" क्या करते हो वो बोली, "
कुछ शिकायत से, कुछ मजे से कुछ दावत देते...बहोत हलकी सिसकी लेते वो बोली.

भले हम लोग बाक्स में हों और कोई हम लोगों को नहीं देख सकता हो ...लेकिन आवाज तो जाती ही और ...और लोगों को फ़िल्म देखने में डिस्टर्ब होता न

तो इसलिए मैंने अपने होंठ सीधे रंजी के रसीले होंठो पे...वो भीगे होंठ तेरे..और श्योर होने के लिए मेरी जीभ उसके मुंह में घुस गयी.

गुड्डी खाली नहीं बैठी थी.
उसके होंठ मेरे इयर को किस कर रहे थे, जीभ कभी मेरे कान पे कभी गरदन पे और कभी गालों पे...मेरी आग को और हवा दे रही थी.

गुड्डी के होंठ मेरे पैंट में बंद दहाड़ते सिंह को और उकसा रहे थे कभी वो उसे प्यार से सहलाती, तो कभी जोर से दबा देती...लेकिन वो कोई भेदभाव नहीं कर रही थी...

मेरी गोद में बैठी रंजी की प्यारी प्यारी चुन्मुनिया पे भी वो बीच बीच में हाथ फिरा दे रही थी....

और उसका असर मेरे और रंजी दोनो पे हो रहा था...मारे जोश के मैं अब बिना रुके उसके गदराये किशोर उभार कस कस के दबा रहा था...और रंजी भी लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी, जोर जोर से अपनी जांघे भींच रही थी और मेरे होंठ में अपने होंठ भींचे होने के बावजूद उसकी सिसकी निकल रही थी और वो और कस कस के अपने नितम्ब मेरे तने हुए लिंग पे रगड़ रही थी...

तभी दरवाजा खुला और वो कोल्ड ड्रिंक वाला आया..

न मैंने रंजी के टाप से अपना हाथ हटाया और ना गुड्डी ने मेरे शेर से...

सिर्फ रंजी ने अपनी टाँगे उठा दी और...वो सीट के नीचे से सारी बाटल्स ले गया.
उसके जाते ही रंजी को मेरे गोद से गुड्डी ने धकेला ..." हे कीत्ती देर तक सिंहासन का मजा लेगी चल उतर...." गुड्डी बोली.

" तो क्या तू बैठेगी सिंहासन पर..." रंजी सरक के मेरी बायीं और फिर से सोफे पे बैठते हुए बोली.

" ना सिंह को आजाद करुँगी..." गुड्डी मेरी गोद में झु]कते हुए बोली..




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