Friday, October 3, 2014

FUN-MAZA-MASTI होली का असली मजा--23

FUN-MAZA-MASTI                

 होली का असली मजा--23

 मैं भी उनके बगल में खड़ी , रीतू भाभी से सटी कभी गांड मराई का मजा देखती तो कभी उनकी मस्त गदराई सलहज की शरारतें।

रीतू भाभी अपने ब्रा विहीन , होली में गीली जोबन से चिपकी चोली का मजा अपने ननदोई को पीठ पे रगड़ थीं , और मैं ने भी , आखिर मेरी भाभी थी , उनके बचे हुए दो हुक खोल दिए।




अब सलहज की बड़ी गदराई चूंचियां ,सीधे ननदोई के पीठ पे रगड़ घिस कर रही थी।


साथ साथ उनके दोनों हाथ , एक झुकी हुयी ननद की कच्ची अमिया पे दूसरा , अपने ननदोई के चूतड़ के बीच की दरार पे ,और कभी वो मीठी गालियां सीधे देतीं , तो कभी उनके इयर लोब्स की किस्सी ले लेतीं , या हलके से काट लेतीं ,







तभी , भाभी की निगाह , अपने ननदोई के लंड पे पड़ गयी।

वो जोर जोर से हचक के धक्के मार रहे थे लेकिन , करीब ७ इंच अंदर रहा होगा और दो इंच अभी भी बाहर था।

बस ,वो उबल पड़ीं।

सीधे ,नंदोई के पिछवाड़े के छेद पे उंगली दबाते हुए जोर से बोलीं ,

" साल्ले , अपनी बहन के भँड़वे , बहनचोद , ये बाकी लंड किसके लिए बचा रखा है , अपनी रंडी बहनो के लिए। डाल पूरा। "

अब मैं मैदान में आ गयी.

" नहीं भौजी , अरे इनकी छिनार बहनो को चोदने केलिए इनके साले और हमारे भाई हैं ना। "

" अरे नहीं दी , ये इन्होने आपकी सास के लिए बचा रखा है , उनके ,… " लीला मुड़ के बोली और उसकी बात हम सब की जोरदार हंसी में दब गयी।

" तो तू क्या कहती है की तेरे जीजू मादरचोद हैं , " रीतू भाभी ने लीला से आँख नचा के पुछा , लेकिन जवाब आया बाकी दोनों सालियों की ओर से।

" एकदम भाभी , वो भी पैदायशी , खानदानी। " छुटकी और रीमा दोनों एक साथ बोली ,


इतना पलीता लगाने के लिए काफी था।

और अबकी उन्होंने जब लंड बाहर निकाला तो पूरा बालिश्त भर का अंदर ठूंस दिया।

एक सूत भी बाहर नहीं था।

लीला की गांड अच्छी तरह फैली थी।

रीतू भाभी ने छुटकी को पुश किया सीधे रिंग साइड सीट पे , एकदम आगे और चिढ़ाया ,

" देख तेरी सहेली कितनी मस्त होके गांड मरवा रही है। "

" अरे भाभी ,सहेली किसकी है। " छोटे छोटे जोबन उभार के छुटकी बोली लेकिन उसकी निगाहें अपने जीजू के , गांड से निकलते घुसते लंड चिपकी थी।

और मैं चाहती भी यही थी।


मेरी सबसे छोटी बहन , छुटकी की हालत तो लीला से भी ज्यादा ,…

मैंने जो इनकी और नंदोई जी की बात सुनी थी तो आगे का मजा भले ये ले लें लेकिन उसके पिछवाड़े का उद्घाटन का काम नंदोई जी से ही होना था और उनका तो कम से कम मुटाई के मामले में , इनसे २० ही था। फिर इन्होने और इनकी सलहज ने शर्त रखी थी की छुटकी की गांड मारी जायेगी , तो एकदम सूखी। एक बूँद थूक की भी नहीं , चाहे जितना परपराये , छरछराये। और गाँव में , उसकी , बंद कमरे में तो ली नहीं जायेगी , आम के बाग़ में , गन्ने खेत में , मिटटी ढेलों चूंचियां , चूतड़ रगड़ खाएंगे ,

तो एक बार छुटकी गांड मरौव्वल देख लेगी , तो कुछ उसकी हदस दूर जायेगी , कुछ उसके दिल से डर निकल जाएगा , और वो मजा भी लेने लगेगी और उसका करेगा।


लीला भी अब मजे ले रही थी , धक्के के साथ गांड पीछे की ओर मटका रही थी। तो कभी गांड सिकोड़ के , अपने जीजू का लंड निचोड़ लेती।

वो और इनकी सलहज भी कभी चूत में उंगली करते , तो कभी क्लिट दबोच लेते।

लीला की बुर पानी पानी हो रही थी।

दो बार पानी फ़ेंक चुकी थी।

दस -पंद्रह मिनट तक धकापेल चुदाई उसकी गांड की करते रहे। पूरे बित्ते भर हलब्बी लंड से।

और जब झड़े , तो लीला भी देर तक उनके साथ झड़ती रही।
लेकिन उनकी सलहज ने लंड निकालने नहीं दिया।

उनकी साली तरह निहुरी थी , कुतिया वाले पोज में , जिस तरह हचक हचक के उसकी गांड मारी थी. उन्होने।

सलहज ने बोला , जड़ तक लंड घुसेड़े घुसेड़े , मथानी की तरह उसे मिनट तक गोल घुमाएं।
लेकिन उनकी सलहज ने लंड निकालने नहीं दिया।
उनकी नयी नवेली कमसिन सालियां भले ही न समझ पायी हों , लेकिन मैं तो अपनी ससुराल में होली का पूरा मजा ले आई थी , समझ गयी , की रीतू भाभी इरादे क्या हैं।

और उन्होंने अपनी छोटी ननद रीमा को पे लगा दिया की वो अपने जीजू का मस्त मोटा लंड पकड़ के , गोल गोल , लीला की गांड में घुमाए।


जबरदस्त गांड मराई और तीन बार झड़ने के बाद लीला की हालत एकदम पस्त थी।

इसलिए जब उन्होंने लंड निकाला और रीतू भाभी और रीमा ने मिल के लिटा दिया , चुपचाप लस्त पस्त लेट गयी।

रीतू भाभी ने कुछ उनके कान में कहा और फिर ,


अबकी उनकी साली रीमा और सलहज दोनों थी , लीला का मुंह खुलवाने के लिए , एक ने नाक बंद की और दूसरे ने जबड़ा दबाया , सर सीधा किया , बिचारी नेमुंह खोल दिया ,

लेकिन जब उस की गांड निकला लंड , गांड के रस में लिथड़ा , उसकी मक्खन मलाई से चुपड़ा , सुपाड़े से लेकर जड़ तक ( इसी लिए उन सलहज ने मथानी चलवाई थी ,जिससे लंड की मलाई और गांड का ,… )

लीला लाख छटपटाती रही लेकिन रीतू भाभी , छोड़ने वाली नहीं थी। ऊपर से गालियां ,

" साली , छिनार , मेरे नंदोई का लंड सटासट , बुर में घोंट गयी , गांड में लील गयी , वो भी जड़ तक , तो मुंह में लेने में क्यों छिनालपना कर रही है ,चूत मरानो , भाईचोदी। ले चुपचाप , चाट चूस। "


वो लाख सर पटकती रही , लेकिन रीतू भाभी की पकड़ सँड़सी से भी मजबूत।

और वो भी , सुपाड़े पे ' जो कुछ भी था ' पहले उन्होंने लीला के होंठो पे आराम से , बिना किसी जल्दी के, धीरे धीरे लिपस्टिक की तरह लगाया।

वो बिचारी छटपटा रही थी , और कुछ नहीं हुआ तो उसने अपनी हिरनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखे बंद कर ली।



 तब तक वो सुपाड़ा अंदर ठेल चुके थे , लेकिन बाकी का ६ इंच , लिथड़ा चुपड़ा बाहर ही था।

उनकी सलहज इतनी आसानी से अपनी ननद को थोड़े ही छोड़ देतीं।


उन्होंने उसकी कच्ची अमिया की घुंडियों को जोर से मरोड़ा और डांटा ,

" आँख खोल छिनार , जरा मेरे नंदोई के लंड का रंग तो देख। अगर आँख झपकी तो मुझे बहुत तरीके आते हैं। चूस ठीक से मजे ले के। '

बिचारी ने झट से आँख खोल दी , अपने जीजू के मक्खन मलाई लगे लंड देखा और चूसना शुरू कर दिया।
थोड़े देर में पूरा लंड लीला के मुंह में था और वो रस ले ले चूस रही थी , चाट रही थी।

और उसकी भौजी उसे प्यार से समझा रही थीं ,

" अरे यार तेरे गांड का ही तो है , पहला जमाना होता न तो इसके साथ मैं भी तुझे अपना रस चखाती , चाट ले प्यार से। '





और मुझे अपने ससुराल की होली याद आ रही थी। पहला जमाना क्या , अभी बीते परसों ही तो ,… पहले तो ननदोई जी ने मेरी गांड हचक के मार के , सीधे मेरेमुँह में , ननद के पिछवाड़े का ,अंत में ननद खुद चूतड़ फैला के मेरे मुंह पे ,

और ऊपर से ये वार्निंग भी , भाभी अभी तो ट्रेलर है , असली रगड़ाई रंगपंचमी में। और छुटकी भी अब मेरे साथ चल रही थी। उसकी तो मुझसे भी दूनी दुर्गत, ननदें , ननदोई और गाँव के सारे लड़के , आखिर नयकी भौजी की छुटकी बहन है।


मेरा ध्यान वापस लीला की आवाज ने खिंचा।

वो अपने कपडे ठीक कर रहे थे और लीला को भाभी और रीमा ने मिल खड़ा कर दिया था। छुटकी उसके कपडे दे रही थी।

" दी अगली बार आप आइयेगा , जीजू को जरूर लाइयेगा और दो दिन के लाइए नहीं कम से कम एक हफते के लिए ,हाँ एक बात और आप को हम लोग जीजू के फटकने भी नहीं देंगे। "लीला हँसते हुए बोल रही थी।

" अरी पगली तेरे जैसी साली होगी तो खुद दौड़ते आएंगे। और हाँ रही मेरी बात तो ससुरालमें ये पूरी तरह साली ,सलहज के हवाले रहेंगे। मैं पूरी तरह छुट्टी मनाऊँगी , आखिर मुझे भी तो आराम चाहिए। " उसके गाल पे चुटकी काटते हुए मैंने प्यार से कहा।

वो और रीमा अपने जीजा से चलने के पहले गले मिलीं। लीला से चला नहीं जा रहा था।

रीमा सहारा दे के उसे ले गयी।

रीतू भाभी अब छुटकी की ओर देख रही थीं और मुस्करा रही थीं।

छुटकी भी समझ रही थी , वो अभी भी बची थी।

दो बज गए थे। चलते समय , रीतू भाभी ने उन्हें बाहों में भर के बोला , " चलती हूँ ननदोई जी , मिलते ब्रेक के बाद , चार बजे शाम को ". 

जिस तरह वो दोनों छुटकी की और देख रहे थे , नंदोई सलहज के मन में तो साफ था ही , छुटकी को भी साफ अंदाज हो गया था की चार बजे क्या होने वाला है।

मैं और वो अपने कमरे में चले गए और छुटकी छत पे अपने कमरे पे।


हम दोनों अपने कमरे में चले गए।

मुझे बिस्तर पर उन्होंने खींच के , बाँहो में भींच लिया और कचकचा के गाल काट लिया।

उन्हें अपनी बाँहो लपेटती मैं जोर से चूम के , बोली , ' आया , ससुराल में पहली होली का मजा। '

जिसमें पिया का सुख , उसमे मेरा सुख।

मायके से मेरी मम्मी ने यही सीखा के भेजा था।

जवाब में एक झटके में मेरे ब्लाउज के सारे बटन खोलते , तोड़ते वो बोले,

" एकदम रात में सासु के साथ और दिन में सालियों के साथ।" और जोर से मेरी बड़ी गदराई चूंचियां उन्होंने मीज दी और फिर गाल काटते बोले ,
 
" रात में भोंसड़े का मजा और दिन में टिकोरों का "
 
मैं भी जोश में शार्ट उनका सरका के उनके मूसल चन्द को अपनी मुट्ठी में दबाती रगड़ती बोली ,
 
" अरे अभी असली टिकोरे वाली तो बची ही है , उसका भी तो ,… ' और मेरी बात काट के मेरे साये को कमर तक सरका के , मेरी बुर अपनी मुट्ठी में दबोचते बोले ,

" उसकी तो ऐसी रगड़ रगड़ के लूंगा की , साल्ली जिंदगी भर याद करेगी अपनी पहली चुदाई। फाड़ के रख दूंगा तेरी बहन की , "


और हम दोनों वैसे ही सो गए। पिछली रात भी मम्मी के साथ मस्ती में जागते बीती थी.

और जैसे ही हम सोते थे , इनके हाथ मेरे चूंचियों पे , और मेरा इनके लंड पे , बस वैसे ही , …



हम लोग सोते ही रहते अगर रीतू भाभी आके नहीं जगातीं ,

 जागो सोनेवालों जागो ,…

और इनके कान में जीभ से सुरसुरी करती बोलीं , " अरे ननदोई जी एक कच्ची कली , मस्त टिकोरों वाली , अपनी गुलाबी परी सम्हाले आपका इन्तजार कर रही है। "

और जब हम दोनों उठे , तो रीतू भाभी ने न उन्हें अपना शार्ट ठीक करने दिया और न मुझे ब्लाउज।

नंदोई सलहज में थोड़ी देर छेड़छाड़ चलती रही।

रीतू भाभी उनके माँ बहनो का हाल लेती रही और वो रीतूभाभी कोगोद में खींच कर चोली के ऊपर से ही जोबन का रस कभी हाथों से कभी होंठों से।





और मौका पाकर मैंने ब्लाउज की बची खुची बटन बंद कर ली ( चार में से दो तो उन्होंने तोड़ ही दी थीं ) , साये का नाड़ा बाँध लिया और साडी बस लपेट ली।


(मुझे मालूम था , रीतू भाभी हों तो ननद के देह पे कपडे कितने देर टिकते थे , जैसे ये , उनके ननदोई कपडे के दुश्मन ,वैसे ही उनकी सलहज )

तब तक रीतू भाभी को उस मिशन की याद आई , जिसके लिए वो आई थीं , मिशन छुटकी।

 
और उन्होंने अपने ननदोई को ललकारा।


शार्ट के ऊपर से ही उन्होंने नंदोई के हथियार को जोर से दबाते मसलते कहा ,

" अरे ननदोई जी , अपनी नहीं तो इसकी फिकर करो , बिचारा कितना भूखा है। "

और भाभी के दबाने मसलने से वो आधा सोया आधा जागा , पूरी तरह जग के फुफकारने लगा।

लेकिन इतने पर अगर वो छोड़ दें तो रीतू भाभी कैसी ,




शार्ट में अंदर हाथ डाल के एक झटके में रीतू भाभी ने सुपाड़ा खोल दिया और उनके पी होल पे अंगूठा लगा के , रगड़ने मसलने लगी। और साथ में उनकी बातें ,



" बोल चाहिये छोटी साल्ली की कच्ची चूत। बहुत चिल्लाएगी ,चीखेगी वो लेकिन छोड़ना मत। रगड़ रगड़ के फाड़ना , चीखने चिल्लाने देना साल्ली को। "

अब तो बिचारे उन का लंड एकदम पागल हो गया।

रीतू भाभी मुठियाती रही ,कभी पेल्हड़ भी सहला देती तो कभी उनके गाल पे हलके से चुम्मी ले के काट लेती।

सलहज हो तो रीतू भाभी ऐसी।

थोड़ी देर में हम तीनो ऊपर छुटकी के कमरे में पहुँच गए।

वो लगता है बस इंतज़ार ही कर रही थी।

एक झीनी झीनी कम से कम दो साल पुराने टॉप और स्कर्ट में ,

उसके टिकोरे टॉप फाड़ रहे थे , और स्कर्ट भी छोटी छोटी किशोर गोरी गोरी जांघो को दिखाती ज्यादा , छुपाती कम।





उसकी और उसके जीजा की आँखे चार हुयी और दोनों मुस्कराये।

उसके जीजा भी बस बनयान शॉर्ट्स में

और , खूंटा पूरा तना , शॉर्ट्स को फाड़ता।

छुटकी को देख के बल्कि छुटकी के कच्चे टिकोरों को देख के वो और बौरा गया।

वो छुटकी के बगलमें ही बैठ गए , उससे सट कर।
और रीतू भाभी मेरे बगल में बैठ गयीं।

वो छुटकी को प्यासी नज़रों से देख रहे थे ,बल्कि उनकी नजरें छुटकी के टीकोरों पे टिकी थीं।

और छुटकी कुछ सहमी , कुछ डरी और कुछ हो जाय तो हो जाने दो के अंदाज में निगाहें झुकाये थी , लेकिन बीच बीच में जब उसकी निगाह इनसे चार होती , तो मुस्करा जाती।

रीतू भाभी सोच रहीं थी कब खेल तमासा शुरू हो। और इस बीच भाभी की शरारती उँगलियों ने मेरे ब्लाउज की बची खुची बटनों को भी खोल दिया और उरोज मचल कर बाहर।

लेकिन जहाँ असली कबड्डी होनी थी वहां डेडलॉक मचा था।

 
लेकिन छुटकी की चुदाई का रास्ता खोला , और किसने, मम्मी ने।


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