Wednesday, June 10, 2015

FUN-MAZA-MASTI आकर्षक लिंग लेने की लालसा

FUN-MAZA-MASTI

आकर्षक लिंग लेने की लालसा


मेरा नाम रुचिका है लेकिन सभी मुझे रुचि कह कर ही पुकारते हैं, मैं झारखण्ड राज्य के बोकारो शहर में अपने पति विनय तथा आठ वर्षीय पुत्र अंकुश के साथ रहती हूँ।
विनय बोकारो स्टील प्लांट में इंजीनियर के पद पर काम करते है और हम बोकारो की एक आलीशान कॉलोनी में अपने दो बैडरूम वाले निजी घर में रहते हैं।
विनय से मेरा विवाह दस वर्ष पहले हुआ था जब मैं बाईस वर्ष की थी और उसके दो वर्ष बाद हमारे यहाँ अंकुश पैदा हुआ था।
अंकुश के जन्म के समय प्रसव में कुछ जटिलता हो जाने के कारण डॉक्टरों को ऑपरेशन करके मेरे गर्भाशय को भी निकलना पड़ा जिसके कारण मेरी संतान प्रजनन शक्ति में सदा के लिए अंकुश ही लग गया।
शादी के बाद पांच वर्ष तक तो हमारा पारिवारिक जीवन बहुत ही आनन्द से गुज़रता रहा लेकिन उसके बाद बढती महंगाई एवं पुत्र की पढ़ाई के खर्चे के कारण हमें घर का खर्चा चलने में कुछ कठिनाइयाँ आने लगी क्योंकि तब विनय एक साधारण पद पर कार्य करते थे और उनका वेतन भी बहुत अधिक नहीं था तथा उन्हें कार्य के लिए माह में पन्द्रह दिनों के लिए रात्रि की पारी में भी जाना पड़ता है।
उन कठिनाइयों को दूर करने के लिए तथा घर की आमदनी में बढ़ोतरी के लिए मैंने कुछ काम करने की सोची।
विनय से विचार विमर्श करने के बाद मैंने कंपनी में कार्य करने वाले कई कर्मचारियों के लिए घर में बना खाना डिब्बों में डाल कर उपलब्ध करना शुरू कर दिया।
मैने कंपनी के एक सुरक्षा कर्मचारी को उसके खाली समय में दोपहर और रात को खाने के डिब्बे ले जाकर उन कर्मचारियों को देने और फिर उन्हें साफ़ करके वापिस लाने के लिए अनुबंध कर लिया था।
इस तरह तीन वर्ष बहुत सफलता से बीत गए और मेरे द्वारा भेजा गया खाना कर्मचारियों को बहुत पसंद आया जिसके कारण खाने की मांग भी बढ़ गई और मेरी आमदनी भी।
बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए मुझे अपनी सहायता के लिए दो काम-वाली सहायक महिलाओं को और दो खाना पहुँचाने वाले सुरक्षा कर्मचारीयों को भी अनुबंध करना पड़ा था।
दो वर्ष पहले की बात है जब एक दिन मेरे एक खाना पहुँचाने वाले कर्मचारी ने मुझे बताया की दो दिन पहले ही हमारे सामने वाले फ्लैट में कंपनी के नए उच्च सुरक्षा अधिकारी मेजर अजय रहने के लिए आये हैं।
उसने यह भी बताया कि मेजर अजय एक रिटायर्ड फौजी अफसर हैं तथा अकेले रहते हैं और उन्हें खाने की कुछ दिक्कत आ रही है इसलिए वे चाहते हैं कि मैं उनके लिए भी खाने का डिब्बा भिजवाया करूँ।
मेरे पूछने पर की उन्हें मेरे बारे में कैसे पता चला तब उसने बताया की कल किसी कर्मचारी ने उनको मेरा भेजा खाना खिलाया था जो उन्हें बहुत पसंद आया था।
उस दिन मैंने उनका दोपहर का खाना भिजवा दिया लेकिन साथ में यह भी कहला दिया कि वह शाम को मेरे घर आकर खाने के बारे में पूरी बात कर लेवें और खाने की अग्रिम राशि भी जमा करा देवें।
शाम को आठ बजे मेजर अजय खाने के बारे में बातचीत करने के लिए मेरे घर पर आये तब उनसे मालूम पड़ा कि उन्हें दोपहर का खाना ऑफिस में और रात का खाना उनके सामने वाले फ्लैट में चाहिए था।
इसके बाद अपने घर जाते हुए मेजर अजय ने अग्रिम ज़मानत के रूप में मुझे पांच हज़ार रूपये दिये और कहा कि उनका रात का खाना नौ बजे पहुँच जाना चाहिए।
क्योंकि काम-वाली सहायक महिलाएं और फैक्ट्री में खाना पहुँचाने वाले कर्मचारी तो आठ बजे चले जाते थे इसलिए मेजर अजय के घर खाना पहुँचाना एक समस्या बन गया।
अंत में विनय ने सुझाव दिया कि जिन दिनों उसकी दिन की पारी होती है उन दिनों में वह खाना दे आया करेगा और बाकी के दिनों में मुझे खुद ही यह बीड़ा उठाना पड़ेगा।
इस प्रकार विनय या मैं जब भी मेजर अजय को रात का खाना पहुँचाने जाते तब अंकुश भी साथ जाता था।
कुछ ही दिनों में अंकुश मेजर अजय के साथ इतना घुल-मिल गया था कि वह अकेला ही उनको खाना देने चला जाता और कभी कभी तो अपना खाना भी साथ ले जाता और उन्हीं के साथ बैठ कर खाता।
मैंने भी आपत्ति इसलिए नहीं की क्योंकि उसने मेजर अजय के साथ मेज पर बैठ कर भोजन करना सीख लिया था तथा वह उनसे शिष्टाचार की बातें भी सीख रहा था।
कुछ ही दिनों में मैंने देखा की अंकुश घर पर भी मेज पर बैठ कर बहुत निपुणता से चम्मच, कांटे और छुरी से खाना खाने लगा था।
इस प्रकार छह माह बीत गए तब एक दिन विनय ने बताया कि स्टील प्लांट में एक नई मशीन लगाई जा रही है जिसका इंचार्ज उसे बनाया जायेगा और उसकी पदोन्नति भी हो जायेगी।
विनय ने यह भी बताया की इसीलिए अगले दो माह के लिए उसे भिलाई के स्टील प्लांट में वैसी ही एक मशीन पर प्रशिक्षण के लिए भेजा जा रहा था।
उन दिनों मेरे जीवन में थोड़ा अकेलापन तो आ गया लेकिन अपने को खाने के काम में व्यस्त रख कर तथा मैं और अंकुश आपस में ही समय को व्यतीत करने लगे।
विनय को भिलाई गए अभी दो सप्ताह ही हुए थे तब एक शाम अंकुश साइकिल चलते हुए गिर गया और उसके कान और सिर में काफी चोट आई।
मैंने जब उसे हॉस्पिटल ले जाने के लिए प्लांट के सुरक्षा विभाग में एम्बुलेंस के लिए फ़ोन किया तब मेजर अजय वहीं पर थे और उन्हें खबर मिलते ही वह भी हमारे घर आ गए।
उन्होंने अंकुश के उपचार के लिए हॉस्पिटल के डॉक्टर को तुरंत फ़ोन कर दिया और मेरे साथ ही खुद भी हॉस्पिटल गए।
जब डॉक्टर ने बताया की अंकुश के सिर की चोट गहरी थी और उसे रात भर हॉस्पिटल में ही रखना पड़ेगा तब मेजर अजय मुझे हॉस्पिटल में ही छोड़ कर घर गए।
वहाँ से वह अपने कपडे बदल कर तथा अपने एवं मेरे लिए खाना तथा आवश्यकता का सामान आदि ले कर वापिस आये और सारी रात मेरे साथ हॉस्पिटल में अंकुश के पास ही बैठे रहे।
मैंने जब विनय को अंकुश के बारे में फोन से बताते हुए रो पड़ी तब उन्होंने मुझसे फ़ोन ले कर उसे विस्तार से सब कुछ बताया और उसे ढाढस बंधाया कि उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि वह सारी व्यवस्था खुद देख रहे हैं।
अगले दिन अंकुश को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई लेकिन डॉक्टर ने एक सप्ताह के लिए उसे बिस्तर पर ही लेटे रहने का परामर्श दिया।
हमारे घर पहुँचने के कुछ देर बाद विनय भी भिलाई से आ गए और अंकुश को ठीक देख कर राहत की सांस ली।
सब कुछ सामान्य होता देख कर विनय एक रात घर पर रुके और फिर वापिस भिलाई चले गए लेकिन जाते जाते मेजर अजय से हमारा ख्याल रखने के लिए आग्रह कर गए।
अगले सात दिन मेजर अजय सुबह सुबह अंकुश का पता करने चले आते थे लेकिन शाम को तो वह उसी के पास ही बैठे रहते और रात का खाना हमारे साथ ही खा कर देर रात को अपने घर जाते।
कई बार तो रात को अंकुश के सो जाने के बाद भी वह मेरे पास बैठे रहते और अपने तथा फ़ौज के बारे में बाते करते रहते थे।
उन सात दिनों में मेजर अजय हमारे घर के एक सदस्य की तरह ही हो गए और मुझे भी उनके साथ कुछ लगाव सा महसूस होने लगा था।
हर शाम अंकुश और मैं उनके आने का इंतज़ार करते रहते थे क्योंकि उनके आते ही घर का वातावरण बहुत ही प्रफुल्लित हो जाता था और हंसी के ठाहाके लगने लगते थे।
उनके बहुत आग्रह पर ही मैं उन्हें मेजर अजय या मेजर साहिब की जगह सिर्फ अजय कह कर पुकारने लगी थी।
सात दिनों के बाद जब डॉक्टर ने अंकुश का निरीक्षण किया तो बताया की सिर में चोट लगी थी इसलिए उसके मस्तिष्क के कुछ टेस्ट भी कराने आवश्यक थे जिसके लिए उसे रांची के बड़े हॉस्पिटल में ले जाना होगा।
क्योंकि बात अंकुश के मस्तिष्क के बारे में थी इसलिए मैंने विनय और अजय से विचार विमर्श करने के बाद उसी शाम अंकुश को ले कर अजय के साथ रांची के लिए निकल पड़ी।
देर रात से पहुँचने के कारण हमें होटल में ठहरने के लिए सिर्फ एक ही कमरा मिला जिस में दो अलग अलग बैड लगे थे।
हमने होटल वाले से कह कर उस कमरे में अंकुश के लिए एक अतिरिक्त बैड भी लगवा लिया और हम तीनों अलग अलग बिस्तर पर सो गए।
आधी रात को मेरी नींद खुली और मैं मूत्र-विसर्जन के लिए बाथरूम में घुसी और उसकी लाइट जलाई तो देखा की अँधेरे में बाथरूम के अन्दर पॉट के पास अजय खड़ा हुआ मूत्र-विसर्जन कर रहा था।
उसने अपने हाथ में लगभग सात इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा लिंग पकड़ा हुआ था जिस में से मूत्र की बहुत ही तेज़ धार निकल रही थी।
उसके एकदम गोरे और तने हुए अति आकर्षक लिंग को देख कर मैं अपनी सुध-बुध भूल कर गतिहीन हो गई और बहुत विस्मय से उसके लिंग की सुन्दरता को निहारती रही।
मूत्र-विसर्जन समाप्त करके जब अजय मुड़ा और मुझे देखा तो उसने हडबडा कर अपने लिंग को अपने कपड़ों के अन्दर समेट लिया और मुझे सॉरी कहते हुए बाथरूम से बाहर चला गया।
अजय के बाहर जाने के बाद मैं मूत्र-विसर्जन करने के लिए पॉट पर बैठ गई और मन ही मन अजय के लिंग का विनय के लिंग के साथ तुलना करने लगी।
उन दोनों के लिंगों में जो भिन्नता मुझे समझ में आई वह कुछ इस प्रकार थी।
विनय का लिंग माप में आठ इंच लम्बा और डेढ़ इंच मोटा था जब की अजय का लिंग सात इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा था।
विनय के लिंग अकार में थोड़ा टेढ़ा और बाएँ ओर को मुड़ा हुआ था जब की अजय का लिंग एकदम सीधा था।
दूर से विनय का लिंग तना हुआ होने के बावजूद भी थोड़ा झुका हुआ और नर्म दीखता था जबकि अजय का तना हुआ लिंग सीधा अकड़ा हुआ और बहुत ही सख्त दिखता था।
माप एवं अकार में भिन्नता का साथ साथ उन दोनों के लिंगों में ख़ास अंतर रंग का था क्योंकि विनय का लिंग सांवला था और काले बालों में छिप जाता था जब की अजय का लिंग बहुत ही गोरा था और काले बालों में भी चमक रहा था।
मूत्र-विसर्जन करने के बाद जब मैं बाथरूम से बाहर जाने लगी तब मैंने पाया कि दरवाज़े की कुण्डी टूटी हुई थी इसीलिए अजय द्वारा उसे लगाए जाने के बावजूद भी मेरे हाथ लगाते ही वह खुल गया था।
बाहर आई तो अजय को सोये हुए पाया तब मैं अपने बैड पर आ कर लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी लेकिन वह मुझसे कोसों दूर थी।
आँखें बंद करती तो मुझे अजय के लिंग का वह दृश्य सामने घूमने लगता और मेरा उसके प्रति लगाव अब लालसा में बदलने लगा था।
पिछले तीन सप्ताह से मेरी अनछुई योनि में एक अजीब सी तथा अलग तरह की सनसनी सी होने लगी थी और मुझमें अजय के लिंग से संसर्ग का आनन्द लेने की लालसा जाग उठी।
एक और प्रश्न जो बार बार मेरे मन में उठ रहा था कि क्या अजय का लिंग मुझे और मेरी योनि को विनय के लिंग से अधिक आनन्द और संतुष्टि दे पायेगा या नहीं।
मैं एक घंटे तक इन्ही विचारों में खोई करवटें बदलती रही और बार बार घड़ी की सुइयों की सुस्त गति पर झुंझलाती रही।
अंत में रात दो बजे जब मेरी वासना की लालसा और यौन सुख पाने की तृष्णा पर नियंत्रण नहीं रख पाई तब मैं अपने बिस्तर से उठ कर अजय के पास जाकर लेट गई।
अजय की पीठ मेरी ओर थी और मैं उससे चिपक कर लेटे हुए उसके सीने को अपने हाथों से सहलाने लगी और अपनी जांघें तथा टांगों को उसकी जाँघों एवं टांगों के साथ रगड़ने लगी।
मेरी इस हरकत से अजय की नींद खुल गई और वह करवट बदला कर सीधा हो गया ओर अपना सिर ऊँचा करके अचंभित हो कर मेरी ओर देखने लगा।
अजय के सीधा होते ही मैंने अपने हाथ को उसके सीने सा हटा कर उसकी जाँघों पर ले गई और उसके लिंग तथा उसके अंडकोष को सहलाने लगी।
अजय ने ‘नहीं, बिल्कुल नहीं…’ कहते हुए मेरा हाथ को पकड़ कर हटाने की कोशिश की।
लेकिन असफल रहा क्योंकि मैंने उसके लिंग को कस कर पकड़ लिया था और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए थे।
कहते हैं कि जब भी कोई स्त्री अपनी वासना की आग में जलते हुए शरीर की गर्मी से किसी भी पुरुष को अवगत कराती है तब वह पुरुष मोम की तरह पिघल जाता है।
अजय के साथ भी वही हुआ क्योंकि मेरे चुम्बनों की मिठास, शरीर की गर्मी और उसके लिंग एवं अंडकोष को सहलाने के कारण उसका लिंग तन कर एक लोहे की छड़ की तरह सख्त हो गया था।
शीघ्र ही अजय पर भी वासना का भूत सवार हो गया और वह मेरी हर गतिविधि में सम्पूर्ण सहयोग देने लगा तथा मेरे गुप्तांगों को सहलाने तथा मसलने में लीन हो गया।
दस मिनट के बाद जब मैंने देखा की अजय की ओर से पूर्ण सम्मति मिल गई है तब मैंने उसके पजामे और अंडरवियर के अन्दर हाथ डाल कर उसके लिंग को पकड़ कर हिलाने लगी।
तब अजय ने बहुत धीमे स्वर में मेरे कान में कहा- ऐसे करने से ना तो तुम्हें और ना ही मुझे कोई आनन्द आ रहा है। क्यों नहीं हम सभी कपड़े उतार कर करें?
अजय की बात सुन कर मेरे दिल की धड़कन अकस्मात् ही बढ़ गई लेकिन अपने को संयम में रखते हुए मैंने उसे कहा- अजय, अंकुश पास में सोया हुआ है इसलिए मैं सभी कपड़े नहीं उतार सकती। मैंने नाइटी के नीचे सिर्फ पैंटी ही पहनी हुई है, उसे तुम उतार दो और नाइटी को ऊँची कर लो।
अजय मेरी बात सुन कर बोला- ठीक है, इससे पहले की मैं तुम्हारी पैंटी उतारूँ तुम पहले मेरे सभी कपड़े उतार दो।
यह सुन कर मैं अजय से अलग हुई और पहले उसके पजामे का नाड़ा खोल कर उसकी टांगों से निकाल दिया और फिर उसके अंडरवियर को नीचे सरकाते हुए उसकी टांगों से अलग कर दिया।
अजय के शरीर के नीचे के भाग के नग्न होते ही मैं उसके गोरे एवं लोहे के छड़ जैसे सख्त लिंग पर टूट पड़ी और उसे चूमते हुए अपने मुँह में भर लिया।
मुझे लिंग से खेलता देख कर अजय ने अपना कुरता उतार दिया और मेरी टांगों को अपनी ओर खींच कर मेरी नाइटी को ऊँचा करके मेरी पैंटी को खींच कर उतार दिया।
उसके बाद अजय ने मेरी दोनों टाँगें चौड़ी करी और मेरी जाँघों के बीच में अपना मुँह डाल कर मेरी योनि को चाटने लगा।
अगले पन्द्रह मिनट तक हम दोनों उस 69 की अवस्था में एक दूसरे के गुप्तांगों को चूसते एवं चाटते रहे और एक दूसरे की कामाग्नि को भड़काते रहे।
उन पन्द्रह मिनट में मेरी योनि में से एक बार रस स्खलित हुआ था जिसे अजय ने बहुत ही चाव से चाट लिया लेकिन उसके लिंग में से मुझे सिर्फ पूर्व रस की कुछ बूँदें ही पीने के लिए मिली।
क्योंकि मुझे विनय के डेढ़ इंच मोटे लिंग को ही मुँह में लेने की आदत थी इसलिए अजय के ढाई इंच मोटे लिंग को मुँह में लेने में मुझे कुछ दिक्कत आई और उन पन्द्रह मिनटों में तो मेरा मुँह का जबड़ा ही अकड़ गया।
तब मैंने उसे मुँह से निकालते हुए अजय से पूछा- तुम्हारा लिंग तो काफी मोटा है। तुमने यह इतना मोटा कैसे किया?
मेरे प्रश्न के उत्तर में अजय बोला- मैं जब छत्तीसगढ़ के जंगली इलाके में ड्यूटी पर था तब मैंने इससे वहाँ की आदिवासी लड़कियों की बहुत सेवा की और एवज में मैंने उनसे इसकी बहुत मालिश भी करवाई थी।
मैंने फिर प्रश्न किया- तो यह मालिश करवाने से पहले कितना मोटा था? क्या मालिश करवाने से इसकी लम्बाई भी बढ़ी गई थी?
अजय ने कहा- नहीं, मालिश करवाने से इसकी लम्बाई में कोई ख़ास अंतर नहीं आया था और यह सात इंच का सात इंच ही रहा। लेकिन इसकी मोटाई डेढ़ इंच से बढ़ कर ढाई इंच हो गई थी।
तभी मेरी योनि में एक बार फिर गुदगुदी और हलचल होने लगी तब मैंने अजय के मुँह को योनि से दूर करते हुए उसे सीधा किया और उसके ऊपर चढ़ कर बैठ गई।
फिर मैं थोड़ा ऊँची होकर अजय के लिंग को अपनी योनि के द्वार पर लगा कर जैसे ही नीचे बैठने के लिया दबाव डाला तो लिंग अन्दर जाने के बजाये बाहर की ओर फिसल गया।
मैंने तब अजय की ओर बड़ी आशा भरी नजरों से देखा तो उसने तुरंत अपने लिंग को पकड़ कर स्थिर कर दिया और मुझे बैठने का संकेत दिया।
उसका संकेत मिलते ही मैं एक झटके के साथ नीचे बैठी जिससे लिंग-मुण्ड सहित उसका आधा लिंग मेरी योनि को चीरता हुआ अन्दर घुस गया।
अत्यंत दर्द के कारण मेरी चीख निकल गई जिसे अजय ने मेरे मुँह पर अपना हाथ रख कर मेरे गले में ही दबा दी।
मेरा शरीर कांपने लगा और मेरी आँखों में आँसू आ गए तथा मैं अपने सिर को हिलाते हुए उस दर्द को सहने का प्रयास करती रही।
अभी तक विनय के डेढ़ इंच मोटे लिंग की ही अभ्यस्त योनि के अंदर जब अजय का ढाई इंच मोटे लिंग जबरदस्ती प्रवेश हुआ तब उसके अंदर की सभी माँस पेशियाँ के खिचते ही दर्द की लहरें उठने लगी थी।
मेरी वेदना को समझते हुए तब अजय ने अपने आधे लिंग को मेरी योनि के अंदर ही फंसे रहने दिया और मुझे खींच कर अपने ऊपर लिटा लिया तथा मेरे स्तनों की चुचूकों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा।
उसके द्वारा मेरी चुचूकों को चूसने से मेरी योनि के अंदर की मांस पेशियों में हलचल हुई जिससे नसों में आये तनाव से राहत मिली और जल्द ही दर्द भी समाप्त हो गया।
तब मैं अजय का चुम्बन लेते हुए उठी और थोड़ा सा ऊँचा हो कर एक झटके के साथ उसके लिंग पर बैठ गई तथा उसे जड़ तक अपनी योनि में समेट लिया।
एक बार फिर मुझे बहुत ही तीव्र दर्द हुई और अपने पर बहुत संयम रखने के बावजूद भी मेरे मुँह से एक चीख निकल ही गई।
मैंने और अजय ने गर्दन घुमा कर अंकुश की ओर देखा और उसे गहरी नींद में सोया देख कर दोनों ने चैन की सांस ली और मैं भी दर्द के मारे एक बार फिर अजय के ऊपर लेट गई।
इस बार अजय मेरे होंठों को चूमता रहा और मेरे दोनों स्तनों को चुचुकों को अपने हाथों के अंगूठे और उँगलियों के बीच में लेकर मसलता रहा।
उसके ऐसा करने से मुझे एक बार दर्द से जल्द राहत मिल गई और तब मैं अपनी योनि में फसे अजय के लिंग में हो रहे स्पंदन को महसूस करने लगी थी।
अजय के लिंग में हो रहे स्पंदन और मेरी योनि में हो रही सिकुड़न से मिल रहे आनन्द के कारण हम दोनों की उत्तेजना में बहुत वृद्धि हो गई और तब अजय नीचे से धक्के लगाने लगा।
मैं उसके धक्कों के संकेत को समझ गई और तुरंत ही उछल उछल कर अजय के लिंग को अपनी योनि के अन्दर बाहर करने लगी।
दस मिनट उछलने के बाद मेरी योनि में एकदम से सिकुडन हुई और मेरा शरीर ऐंठने लगा, मेरी टांगों में कंपकंपी होने लगी तथा मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी थी।
मेरी योनि में अजय का लिंग ऐसे फंसा हुआ था जैसे वह उसी का ही अभिन्न अंग था और उसने मेरी योनि के अन्दर के खालीपन को बिल्कुल गायब कर दिया था।
उस हालत में मैंने उछालना बंद करके अजय के पूरे लिंग को अपनी योनि में समेटे हुए उसके शरीर के उपर ही लेट गई तथा अपनी योनि के अन्दर होने वाली खिंचावट से उसके लिंग का मर्दन करने लगी।
लगभग पांच मिनट के बाद जब मैं सामान्य हुई तब फिर से मैंने उछल उछल कर अजय के तने हुए और रोड की तरह सख्त लिंग को अपनी योनि के अन्दर बाहर करने लगी।
दस मिनट के बाद एक बार फिर मुझे योनि के अंदर खिंचावट और टांगों में थकावट महसूस हुई तब मैंने रुक कर अजय को मेरे ऊपर आने को कहा।
मेरे कहते ही अजय ने मुझे अपने सीने के साथ चिपका लिया और मेरे नितम्बों को हाथों से पकड कर लिंग को योनि के अंदर ही रखते हुए उसने मुझे एक फूल की तरह उठा कर खड़ा हो गया।
फिर उसने खड़े खड़े ही अपने हाथों से मुझे उपर नीचे करके अपने लिंग को मेरी योनि के अंदर बाहर करने लगा।
पांच मिनट के बाद उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर चूमने लगा और मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरे उपर लेट कर तीव्र गति से सम्भोग करने लगा।
मैंने भी चुम्बन में उसके होंठों एवं जीभ को चूस कर उसका साथ दिया तथा सम्भोग में नीचे से अपने कूल्हे उठा कर उसके हर धक्के का उपयुक्त उत्तर दिया।
दस मिनट के इस तीव्र गति के संसर्ग में हम दोनों पसीने से नहा गए और दोनों के सांसे उखड़ने लगी थी तभी अजय बोला- रुचि मेरा वीर्य-रस संखलन होने वाला है, बोलो कहाँ पर स्खलित करूँ। तुम्हारी योनि के अंदर ही करूं या फिर बाहर?
उसकी बात सुन कर मैं बहुत ही रोमांचित हो उठी थी जिसके कारण मेरी उत्तेजना चरमसीमा की ओर अग्रसर होने लगी थी और मैं वह आनन्द और संतुष्टि से वंचित नहीं रहना चाहती थी।
मैंने अजय का साथ देते हुए कहा- मैं भी स्खलित होने वाली हूँ इसलिए तुम रुको मत और इसी तीव्रता से संसर्ग करते हुए मेरे साथ ही मेरी योनि में ही अपना वीर्य-रस स्खलित कर दो।
इसके बाद हम दोनों एक दूसरे से चिपके हुए तेजी से हिलने लगे और देखते ही देखते दोनों के शरीर अकड़ गए, अजय का लिंग फूलने लगा और मेरी योनि सिकुड़ने लगी तथा हम दोनों के मुख से सिसकारियाँ और हुंकार निकलने लगी थी।
तभी मेरी योनि का जवालामुखी फूटा जिससे उसके अन्दर आग लग गई थी और उस आग को शांत करने के लिए अजय के लिंग में से पिचकारी भी छूट पड़ी थी।
मेरी योनि के अंदर इस गतिविधि के कारण हम दोनों को जो आनन्द एवम् संतुष्टि मिली उसका विवरण लिख कर व्यक्त नहीं किया जा सकता, वह तो सिर्फ महसूस ही किया जा सकता था।
अगले पन्द्रह मिनट तक हम दोनों पसीने में नहाये हुए और उखड़ी सांसों को नियंत्रण करने की कोशिश में एक दूसरे के ऊपर निढाल हो कर पड़े रहे।
ऐसा लग रहा था कि हम दोनों किसी और ही दुनिया में पहुँच गए थे जहाँ सिर्फ आनन्द और संतुष्टि का ही वास रहता है।
जब पंखे की हवा से पसीना तेज़ी से सूखने लगा और हमारी सांसें भी सामान्य हो गई तब अजय ने अपने लिंग को मेरी योनि में से निकाला और मेरे ऊपर से लुढ़क कर मेरी बगल में लेट गया।
उसके आधे घंटे के बाद हम दोनों ने उठ कर बाथरूम में जाकर अपने अपने गुप्तांगों के साफ़ किया और कपड़े पहन कर अपने अपने बिस्तर पर सो गए।
सुबह हॉस्पिटल से रिपोर्ट लेने पर पता चला की अंकुश के सभी परीक्षण परिणाम सामान्य है और उसके स्वास्थ में कोई भी समस्या नहीं है और वह एक तंदरुस्त बालक की तरह अपना जीवन व्यतीत कर सकता है।
यह खुशखबरी सुन कर मन को बहुत राहत मिली और हम वापिस बोकारो की ओर चल पड़े।
रास्ते में मैंने अजय को कहा- इस मुश्किल के समय में तुमने मेरा साथ दिया और इतने कष्ट उठाए, इसके लिए मैं तुम्हारी बहुत आभारी हूँ। मैं तुम्हारा धन्यवाद कसे करूँ और यह कर्ज कैसे चुका पाऊँगी?
तो अजय ने उत्तर दिया- अरे, धन्यवाद तो तुमने रात को ही दे दिया था लेकिन जहाँ तक कर्ज चुकाने की बात है वह तुम किश्तों में उतार देना।
अजय की बात सुन कर मैंने उससे थोड़ा भ्रमित होते हुए पूछा- किश्त!!! कर्ज़ की किश्त? किश्त को कैसे चुकाना होगा तथा इसमें कितना देना होगा और कब तक?
मेरी सूरत और जिज्ञासा को देखते हुए अजय ने हँसते हुए कहा- अरे, घबराने की कोई बात नहीं। मैंने कुछ अधिक बड़ी मांग नहीं रखी है।
मैंने व्याकुल होते हुए उससे पूछा- पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हो। अब साफ़ और सीधी तरह से बता दो।
तब अजय ने साफ़ और सीधा कह दिया- मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे कल रात जैसा धन्यवाद हर सप्ताह कम से कम एक बार तो दे दिया करना।
उसकी बात सुन कर मैं थोड़ा हैरान हो गई क्योंकि मैंने उससे ऐसे उत्तर की आशा नहीं करी थी लेकिन मन ही मन खुश भी हुई कि वह मुझे और भी अधिक आनन्द एवं संतुष्टि देना चाहता है।
जब मैंने शरमाते हुए चुप हो गई और कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तब अजय ने कहा- लगता है कि तुमने मेरे मज़ाक को गंभीरता से ले लिया है। मैं तो मज़ाक में यह सब कह दिया था और मुझे कुछ नहीं चाहिए।
उसके बाद हमने दोनों ने आगे कोई बात नहीं करी और चुपचाप यात्रा करते रहे तथा शाम तक अपने घर पहुँच गए।
हमें घर पर छोड़ कर जब अजय अपने घर जाने लगा तब मैंने उसे चाय के लिए रोक लिया कहा- तुम बैठो और चाय पी कर ही जाना और तरोताज़ा हो कर रात के खाने के समय यहीं आ जाना, सब मिल बैठ कर ही खाना खायेंगे।
अजय ने पहले तो नहीं कह दिया, लेकिन फिर मेरे दबाव डालने पर मान गया और दोनों ने साथ बैठ कर चाय पी और इसके बाद वह रात को नौ बजे आने के लिए कह कर अपने घर चला गया।
अजय के जाते ही मैं रसोई में जुट गई और आठ बजे तक रात के लिए उसकी पसंद का खाना बना कर ही बाहर निकली।
उस रात मैंने अजय अपने घर नहीं जाने दिया क्योंकि मैंने उसे धन्यवाद कर्ज़ की पहली किश्त भेंट करने के लिए रोक लिया था।
उसके बाद अब तक मैंने अजय को धन्यवाद कर्ज़ की लगभग सौ किश्तें दे चुकी हूँ और उन हर एक किश्त के बदले अजय में मुझे भपूर आनन्द एवं संतुष्टि प्रदान करी है।

No comments:

Raj-Sharma-Stories.com

Raj-Sharma-Stories.com

erotic_art_and_fentency Headline Animator