Thursday, December 5, 2013

FUN-MAZA-MASTI कामोन्माद -3

FUN-MAZA-MASTI
 कामोन्माद -3  

मैं अगले दो दिन तक वहीँ रहा लेकिन मुझे शक्ति सिंह का फ़ोन नहीं आया। इसलिए मैं आगे की यात्रा पर निकल पड़ा और कौसानी पहुच गया। कौसानी को महात्मा गाँधी जी ने "भारत का स्विट्ज़रलैंड" की उपाधि दी थी। इतनी सुन्दर जगह हिमालय में शायद ही कहीं मिलेगी। यहाँ की प्राकृतिक भव्यता की कोई मिसाल नहीं दी जा सकती है - देवदार के घने वृक्षों से घिरे इस पहाड़ी स्थल से हिमालय के तीन सौ किलोमीटर चौड़े विहंगम दृश्य को देखा जा सकता है। मैं दिन में बाहर जा कर पैदल यात्रा करता और रात में अपने होटल के कमरे से बाहर के अँधेरे में आकाशगंगा देखने का प्रयास करता। लेकिन मेरे दिलो-दिमाग पर बस संध्या ही छायी हुई थी। 'क्या उन लोगो को याद भी है मेरे बारे में?' मैं यह अक्सर सोचता।

वहीँ रहते हुए, करीब पांच दिन बाद मुझे शक्ति सिंह के नंबर से रात में फ़ोन आया।

"हेल्लो!" मैंने कहा।

"जी ..... मैं संध्या बोल रही हूँ। .... मुझे आपसे कुछ कहना था।"

"हाँ कहिये न?" मेरा दिल न जाने क्यों जोर जोर से धड़कने लगा।

"जी ..... हम आपसे प्रेम करते हैं।" कहकर उसने फोन काट दिया।

मुझे अपने कानो पर विश्वास ही नहीं हो रहा था - क्या हुआ? ज़रूर शक्ति सिंह ने मेरे बारे में तहकीकात करी होगी, और यह सोचा होगा की संध्या और मेरा अच्छा मेल है। हाँ, ज़रूर यही बात रही होगी। संध्या के फोन ने मेरे दिल के तार कुछ इस प्रकार झनझना दिए की रात भर नींद नहीं आई। बहुत ही बेचैनी में करवटें बदलते हुए मेरी रात किसी प्रकार बीत ही गयी। 'संध्या का कैसा हाल होगा?' यह विचार मेरे मन में बार बार आता।

अगले दिन मेरे ऑफिस से मेरे बॉस और मेरे हाउसिंग सोसाइटी के सेक्रेटरी का फ़ोन आया। उन लोगो ने बताया की कोई मेरे बारे में पूछताछ कर रहे थे। मैंने उन लोगो को सारी बात का विवरण दे दिया। दोनों लोग ही बहुत खुश हो गए - दरअसल सभी को मेरी चिंता खाए जाती थी। खासतौर पर मेरा बॉस - उसको लगता था की कहीं मैं वैरागी न बन जाऊं। काम मैं अच्छा कर लेता हूँ, इसलिए उसको मुझे खोने का डर लगा रहता था। इसी तरह हाउसिंग सोसाइटी का सेक्रेटरी सोचता रहता की इतना बड़ा घर, मैं अकेले रहते रहते कहीं खराब न कर दूं। लेकिन, अगर मैं शादी कर लेता, तो उन लोगो की चिंता समाप्त हो जाती। इसलिए उन लोगो ने मौका मिलते ही मेरे बारे में जांच करने वाले व्यक्ति को अच्छी अच्छी बातें बताई और मेरी इतनी बढाई कर दी जैसे मुझसे बेहतर कोई और आदमी न बना हो। शायद यही बाते शक्ति सिंह को भी पता चली हों और उन्होंने अपने घर में मेरे बारे में विचार विमर्श किया हो।


सारे संकेत सकारात्मक थे। अवश्य ही शक्ति सिंह के घर में मुझको पसंद किया गया हो। संध्या के फोन के बाद मुझे अब शक्ति सिंह के फोन का इंतज़ार था। पूरे दिन इंतज़ार किया, लेकिन कोई फोंन नहीं आया। आखिरकार, शाम को करीब तीन बजे शक्ति सिंह का फोन आया।

"हेल्लो ... रूद्र जी, मैं शक्ति सिंह बोल रहा हूँ .."

"जी .. हाँ ... बोलिए"

"आपसे एक बहुत ज़रूरी बात करनी है। आप हमारे यहाँ एक बार फिर से आ सकते हैं?"

"जी .. बिलकुल आ सकता हूँ। लेकिन मुझे दो दिन का समय तो लगेगा।"

"कोई बात नहीं। आप प्लीज आराम से आइये। लेकिन मिलना ज़रूरी है, क्योंकि यह बात फोन पर नहीं हो सकती।"

"जी .. ठीक है" कह कर मैंने फोन काट दिया, और मन ही मन शक्ति सिंह को धिक्कारा। 'अरे यार! यह बात सवेरे बता देते तो कम से कम मैं एक तिहाई रास्ता पार चुका होता अब तक!'

खैर, इतने शाम को ड्राइव करना मुश्किल काम था, इसलिए मैंने सुबह तड़के ही निकलने की योजना बनायीं। अपना सामान पैक किया, और रात का खाना खा कर लेटा ही था, की मुझे फिर से शक्ति सिंह के नंबर से कॉल आया। मैंने तुरंत उठाया - दूसरी तरफ संध्या थी।

"संध्या जी, आप कैसी हैं?" मैंने कहा।

"जी ..... मैं ठीक हूँ। .... आप कैसे हैं?"

"मैं बिलकुल ठीक हूँ ... आपको फिर से देखने के लिए बेकरार हूँ .."

उधर से कोई जवाब तो नहीं आया, लेकिन मुझे लगा की संध्या शर्म के मारे लाल हो गयी होगी।

"संध्या?" मैंने पुकारा।

"जी .. मैं हूँ यहाँ। ..... आपको मालूम है की आपको पिताजी ने क्यों बुलाया है?"

"कुछ कुछ आईडिया तो है। लेकिन पूरा आप ही बता दीजिये।"

"जी ... पिताजी आपसे हमारे बारे में बात करना चाहते हैं ....." जब मैंने जवाब में कुछ नहीं कहा, तो संध्या ने कहना जारी रखा, ".... आप सच में मुझसे शादी करेंगे?"


"आपसे मैं ऐसा मजाक क्यों करूंगा?"

"नहीं नहीं .. मेरा वो मतलब नहीं था। हम लोग बहुत ही साधारण लोग हैं ... आपके मुकाबले बहुत गरीब! और ... मैं तो आपके लायक बिल्कुल भी नहीं हूँ ... न आपके जितना पढ़ी लिखी, और न ही आपके तौर तरीके जानती हूँ .."

"संध्या ... शादी का मतलब अंत नहीं है ... यह तो हमारी शुरुआत है। मैं तो चाहता हूँ की आप अपनी पढाई जारी रखिये। भला मैं क्यों रोकूंगा आपको। रही बात मेरे तौर तरीके सीखने की, तो भई, मेरा तो कोई तरीका नहीं है ... बस मस्त रहता हूँ! ठीक है?"

"जी ..."

"तो फिर जल्दी ही मिलते हैं .. ओके?"

"ओ .. के .."

"और हाँ, एक बात ... आई लव यू"

जवाब में उधर से खिलखिला कर हंसने की आवाज़ आई।
 अगली सुबह सूर्य की पहली किरण के साथ ही मैं संध्या से मिलने निकल पड़ा। मौसम अच्छा था - हलकी बारिश और मंद मंद बयार। ऐसे में तो पूरे चौबीस घंटे ड्राइव किया जा सकता है। लेकिन, पहाड़ों पर थोड़ी मुश्किल आती है। खैर, मन की उमंग पर नियंत्रण रखते हुए मैंने जैसे तैसे ड्राइव करना जारी रखा - बीच बीच में खाने पीने और शरीर की अन्य जरूरतों के लिए ही रुका। ऐसे करते हुए शाम ढल गयी, लेकिन फिर भी संध्या का घर कम से कम पांच घंटे के रास्ते पर था। बारिश के मौसम में, और वह भी शाम को, पहाडो पर ड्राइव करने के लिए बहुत ही अधिक कौशल चाहिए। अतः मैंने वह रात एक छोटे से होटल में बिताई। अगली सुबह नहा धोकर और नाश्ता कर मैंने फिर से ड्राइव करना शुरू किया और करीब छह घंटे बाद शक्ति सिंह के घर पहुँचा।

सवेरे निकलने से पहले मैंने उनको फोन कर दिया था की आज ही आने वाला हूँ, इसलिए उनके घर पर सामान्य दिनों से अधिक चहल पहल देख कर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। दरवाज़े पर शक्ति सिंह और नीलम ने मेरा स्वागत किया और मुझे घर के अन्दर लाये। घर के अन्दर चार पांच बुजुर्ग पुरुष थे - उनमे से एक तो निश्चित रूप से पण्डित लग रहा था। जान पहचान के समय यह बात भी साफ़ हो गयी। शक्ति सिंह वाकई आज मेरे प्रस्ताव को अगले स्तर पर ले जाना चाहते थे। उन बुजुर्गो में दो लोग शक्ति सिंह के बड़े भाई थे, और बाकी लोग उस समाज के मुखिया थे। भारतीय शादियाँ, विशेष तौर पर छोटी जगह पर होने वाली भारतीय शादियाँ काफी जटिल और पेचीदा हो सकती हैं - इसका ज्ञान मुझे अभी हो रहा था।

ऐसे ही हाल चाल लेते हुए दोपहर का खाना जमा दिया गया। बहुत ही रुचिकर गढ़वाली खाना परोसा गया था - पेट भर गया, लेकिन मन नहीं। नाश्ता सवेरे किया था, इसलिए भूख तो जैम कर लगी थी - इसलिए मैंने तो डटकर खाया। खाना खाते हुए अन्य लोगो से मेरे उत्तराँचल आने, मेरे पढाई और काम के विषय में औपचारिक बाते हुईं। वैसे भी उन लोगो को अब मेरे बारे में काफी कुछ मालूम था, बस वहां बात करने के लिए कुछ तो होना चाहिए - ऐसा सोच कर बस खाना पूरी चल रही थी। 


खाने के बाद अब गंभीर विषय पर चर्चा होनी थी।


शक्ति सिंह: "रूद्र जी, मैं जानता हूँ की आप बहुत अच्छे आदमी हैं, और आपके जैसा वर ढूंढना मेरे अपने खुद के बस में संभव नहीं है ... और मैं यह भी जानता हूँ की आप मेरी बेटी को बहुत जिम्मेदारी और प्यार से रखेंगे। लेकिन .. यह सब बातें आगे बढ़ें, इसके पहले मैं आपको बता दूं की हम लोग अपनी परम्पराओं में बहुत विश्वास रखते हैं।"

मैंने सिर्फ अपना सर सहमती में हिलाया ... शक्ति सिंह ने बोलना जारी रखा, ".... वैसे तो हम लोग अपने समाज के बाहर अपने बच्चो को नहीं ब्याहते, लेकिन आपकी बात कुछ और ही है। फिर भी, जन्म-पत्री और कुंडली तो मिलानी ही पड़ती है न ..."

"मुझे इस बात पर कोई ऐतराज़ नहीं .. आप मिला लीजिये ..." मैंने मन ही मन शक्ति को उनकी मूर्खता के लिए कोसा, 'कहीं ये बुड्ढा कचरा न कर दे'

"इसके लिए मैंने पंडित जी को बुलाया था .. आप अपनी जन्मतिथि, समय और जन्म-स्थान बता दीजिये। पंडित जी इसका मिलान कर देंगे।"

"बिलकुल .." यह कह कर मैंने पंडित को अपने जन्म सम्बंधित सारे ब्योरे दे दिए। पंडित ने अपने मोटे मोटे पोथे खोल कर न जाने कौन सी प्राचीन, लुप्तप्राय पद्धति लगा कर हमारे भविष्य के लिए निर्णय लेने की क्रिया शुरू कर दी। यह सब करने में करीब करीब एक घंटा लगा होगा उस मूर्ख को। खैर, उसने अंततः घोषणा करी की लड़का और लड़की के बीच अष्टकूट मिलान छब्बीस हैं, और यह विवाह श्रेयष्कर है।

यह सुनते ही वहां उपस्थित सभी लोगो में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी - खासतौर पर मुझमें। चूंकि घर की सारी स्त्रियाँ और लड़कियां घर के अन्दर के कमरों में थीं, इसलिए मुझे उनके हाव-भाव का पता नहीं।

खैर, इस घोषणा के बाद शक्ति सिंह और उनकी पत्नी दोनों ने मुझे कुर्सी पर आदर से बिठा कर मेरे मस्तक पर तिलक लगाया और मिठाई खिलाई। मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा था की यह सब क्या हो रहा था - खैर, मैं भी बहती धारा के साथ बहता जा रहा था। ऐसे ही कुछ लोगो ने टीका इत्यादि किया - अभी यह क्रिया चल ही रही थी की बैठक में संध्या आई। उसने लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी - शायद अपनी माँ की। हिन्दू रीतियों में लाल रंग संभवतः सबसे शुभ माना जाता है। इसलिए शादी ब्याह के मामलों में लाल रंग की ही बहुतायत है। साड़ी का पल्लू उसके सर से होकर चेहरे पर थोड़ा नीचे आया हुआ था - इतना की जिससे आँख ढँक जाए।

'क्या बकवास!' मैंने मन में सोचा, 'इतना दूर आया .. और चेहरा भी नहीं देख सकता ..!'

खैर, संध्या को मेरे बगल में एक कुर्सी पर बैठाया गया। वहां बैठे समस्त लोगो के सामने हम दोनों का विधिवत परिचय दिया गया। उसके बाद पंडित ने घोषणा करी की वर (यानी की मैं), वधु (यानी की संध्या) से विवाह करने की इच्छा रखता हूँ और यह की दोनों परिवारों के और समाज के वरिष्ठ जनो ने इस विवाह के लिए सहमति दे दी है। उसके बाद सभी लोगो ने हम दोनों को अपनी हार्दिक बधाइयाँ और आशीर्वाद दिए। मैंने और संध्या ने एक दुसरे को मिठाई खिलाई।

पंडित ने एक और दिल तोड़ने वाली बात की घोषणा की - यह की अभी चातुर्मास चल रहा है, इसलिए विवाह की तिथि चार महीने बाद नवम्बर में निश्चित है। मेरा मन हुआ की इस बुढऊ का सर तोड़ दिया जाए। खैर, कुछ किया नहीं जा सकता था। बस इन्तजार करना पड़ेगा। यह भी तय हुआ की शादी पारंपरिक रीति के साथ की जायेगी। यह सब होते होते शाम ढल गयी। उन लोगो ने रात में वहीँ रुकने का अनुरोध किया, लेकिन मैंने उनसे विदा ली, और अपने पहले वाले होटल में रात गुजारी।


सवेरे उठने के साथ मैंने सोचा की अब आगे क्या किया जाए! शादी के लिए छुट्टी तो लेनी ही पड़ेगी, तो क्यों न यह छुट्टियाँ बचा ली जाए, और वापस चला जाया जाए। इस समय का उपयोग घर इत्यादि जमाने में किया जा सकता था। अतः मैंने सवेरे ही शक्ति सिंह के घर जा कर अपनी यह मंशा उनको बतायी। उन्ही के यहाँ खाना इत्यादि खा कर मैंने वापसी का रुख लिया। दुःख की बात यह की जाते समय संध्या से बात भी न हो सकी और न ही मुलाकात।

'दकियानूसी की हद!' खैर, क्या कर सकते हैं!

वापस कब घर आ गया, कुछ पता ही नहीं चला। समय कहाँ उड़ गया - बस खयालो की दुनिया में ही घूमता रहा। कुछ याद नहीं की कब ड्राइव करके वापस देहरादून पहुँचा और कब वापस घर!

इस प्रेम ने मुझे पूरी तरह से बदल दिया था। सुना था, की लोग प्रेम के चक्कर में पड़ कर न जाने कैसे हो जाते हैं, लेकिन कभी यह नहीं सोचा था की मेरा भी यही हाल होगा। घर पहुँचने के बाद मैं जो भी कुछ कर रहा था, वह सब संध्या को ही ध्यान में रख कर कर रहा था। डबल-बेड कैसा हो, नए फर्नीचर कैसे हों, इत्यादि इत्यादि। मुझे जानने वाले सभी लोग आश्चर्यचकित थे। इन चार महीनों में मैंने क्या क्या किया, उसका ब्यौरा तो नहीं दूंगा, लेकिन अगर कुछ ही शब्दों में बयान करना हो तो बस इतना कहना काफी होगा की 'प्यार में होने' का एहसास गज़ब का था। ऐसा नहीं था की मैं और संध्या फोन पर दिन रात लगे रहते थे - वास्तविकता में इसका उल्टा ही था। उन चार महीनों में हमारी मुश्किल से पांच-छः बार ही बात हुई थी, और वह भी निश्चित तौर पर उसके परिवार वालो के सामने। लिहाज़ा, मिला जुला कर पांच-छः मिनट! लेकिन फिर भी, उसकी आवाज़ सुन कर दुनिया भर की एनर्जी भर जाती मुझमे, जो उसके अगले फोन तक मुझको जिला देती। मेरा सचमुच का कायाकल्प हो गया था।

खैर, अंततः वह दिन भी आया जब मुझे संध्या को ब्याहने उसके घर जाना था।

FUN-MAZA-MASTI Tags = Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | कामुकता | kamuk kahaniya | उत्तेजक | मराठी जोक्स | ट्रैनिंग | kali | rani ki | kali | boor | सच | | sexi haveli | sexi haveli ka such | सेक्सी हवेली का सच | मराठी सेक्स स्टोरी | हिंदी | bhut | gandi | कहानियाँ | छातियाँ | sexi kutiya | मस्त राम | chehre ki dekhbhal | khaniya hindi mein | चुटकले | चुटकले व्‍यस्‍कों के लिए | pajami kese banate hain | हवेली का सच | कामसुत्रा kahaniya | मराठी | मादक | कथा | सेक्सी नाईट | chachi | chachiyan | bhabhi | bhabhiyan | bahu | mami | mamiyan | tai | sexi | bua | bahan | maa | bharat | india | japan |funny animal video , funny video clips , extreme video , funny video , youtube funy video , funy cats video , funny stuff , funny commercial , funny games ebaums , hot videos ,Yahoo! Video , Very funy video , Bollywood Video , Free Funny Videos Online , Most funy video ,funny beby,funny man,funy women

No comments:

Raj-Sharma-Stories.com

Raj-Sharma-Stories.com

erotic_art_and_fentency Headline Animator