FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--107
गतांक से आगे ...........
उस रात हम कितना पैदल चले बता नहीं सकते...और हम नहीं सैकड़ों लोग...घायलों की तलाश में,
वो जे जे हास्पिटल में भी नहीं मिली.
हास्पिटल से हास्पिटल ...किसी ने बताया की पुलिस कमिश्नर आफिस में एक कंट्रोल रूम बनाया गया है वहां लिस्ट लगाई है ...
जुबेदा ने पुछा पुलिस कमिशनर आफिर कहाँ है...
वो मझे मालूम था ...क्राफोर्ड मार्केट के पास...
हम लोगो वहां भी गए...लिस्ट तो थी लेकिन उन्होंने ये पहले ही बता दिया की ये पूरी नहीं है...अभी भी अलग अलग जगह से इन्फोर्मेशन कोलेट की जा रही है....
हम फिर कामा हास्पिटल आ गए...रात के तीन बज रहे थे...पूरी मुम्बई जग रही थी.
बाद में मुझे पता चला ...पूरा हिन्दुस्तान जग रहा था.
हम लोग चुपचाप बैठे रहे. एक बेंच पर.
पास में ही लोगों की एक लाइन थी. चुपचाप लोग...सहमे बेजान से..धीमे धीमे अन्दर जा रहे थे.
मैं और जुबेदा दोनों उधर देख रहे थे...
हम दोनों को मालूम था ये लाइन क्यों है लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी बोले.
आखिर जुबेदा ही बोली..देखें...
मैं कुछ देर बैठा रहा फिर हलके से उठा और कतार में लग गया. जुबेदा भी पीछे आके खड़ी हो गयी.
धीमे धीमे कतार के साथ बढ़ते हम मार्चुअरी में पहुंचे..
बच्चे, आदमी औरतें तीनो की अलग अलग...
हम लोग बच्चो वाली लाइन में लग गए...
ये है...एक आदमी चादर हटाता और देखने वाला या ना में सर हिलाता या वहीँ धम्म से बैठ जाता...
कमरे से कुछ लोग थोड़े सुकून से निकल रहे थे और कुछ बेजार रोते...
समीना उनमें नहीं थी.
लेकिन ये सुकून की बात नहीं थी.
बाडीज दो और जगह पे थी.
समीना वहां भी नहीं थी.
कुछ लोगों ने हमें बताया की कुछ ज्यादा इंजर्ड को जसलोक भी ले गए हैं...
हम वहां भी गए...वहां भी पता नहीं चला...
लौटते हुए सुबह हो रही थी और हाजी अली की दरगाह पड़ी.
भोर की चादर उठा के सुबह निकल रही थी. सूरज की पहली किरण हाजी अली पे पड़ रही थी.
यहं भी हो ले...मैंने जुबेदा..से कहा..
वो सिर्फ इतना बोली...बाबा बचायेंगे कुछ नहीं होगा समीना को...
हम लोग बिना बोले बहोत देर तक दरगाह में बैठे रहे.
बाहर निकल कर मैंने जुबेदा से पुछा...कोई फोटो है समीना की . उसने अपने पर्स से एक मुड़ी तुड़ी पिक्चर निकली.
हाजी अली के सामने एक बड़ी जूस की दूकान है, उसी के पास मैंने उस फोटो को इनलार्ज करा के उस का जिराक्स कराया, छोटे पोस्टर की तरह,२०-२५ कापी.
और थोड़ी देर में हम लोग वापस स्टेशन पर थे.
स्टेशन पर अभी भी कल की रात के निशाँ बाकी थे. इधर उधर फैले सामान, छूटी हुयी चप्पलें, कहीं जगह फर्श पर तमाम कोशिशों के बावजूद ना छुट रहे खून के धब्बे, दीवालों और खम्भों पे गोलियों के निशान...
मिडिया वाले, पुलिस वाले और रेलवे के लोग जगह जगह जमा थे.
बगल में लोकल प्लेटफार्म पर पहली लोकल आने वाली थी.
वह गुब्बारा अभी भी हवा में तैर रहा था.
मैंने जगह जगह वो समीना की फोटो लगाई, नीचे उसका नाम और अपना फोन नंबर लिखा. हम लोगों की तरह कई लोग हाथ में फोटुयें लिए घूम रहे थे.
जुबेदा नीली साडी पहने एक सफाई वाली से कुछ बातें कर रही थी. वो उसे तेज तेज बोल कर, इशारे से कुछ समझा रही थी.
जब मैं वहां पहुंचा तो उसने बताया की रेलवे के स्टाफ के जो इंजर्ड लोग थे , उन्हें रेलवे के हास्पिटल में ले जाया गया था. हो सकता है वो लोग समीना को भी ले गए हों.
कुछ देर में हम लोग भायखला के सेन्ट्रल रेलवे के हास्पिटल में थे.
समीना वहां थी.
कुछ ही देर पहले वह आई सी यु से डिस्चार्ज हुयी थी. उस के बगल के बेड पे आर पी ऍफ़ के कांस्टेबल राम शरण यादव थे.
उन्हें मैं कैसे भूल सकता था.
रात में मैं जब जुबेदा के साथ दुबका हुआ था, वो सामने से एक पुरानी राइफल से गोली चला रहे थे. और जब गोली ख़तम हो गयी तो उन्होंने दूसरे से सिपाही से लोडेड बन्दूक मांगी और गोली चलानी जारी रखी.
आज सुबह स्टेशन पर भी उन की चर्चा थी.
हम लोगों को देख के समीना से ज्यादा वो खुश हुए और जुबेदा से बोले,
"आप समीना की अम्मा हो.'
जुबेदा के होंठ बंद थे लेकिन नाम आँखों से उसने सर हिलाया.
" आपकी बिटिया बड़ी बहादुर है, एकदम ठीक हो..." वो बोले.
मुझे मालूम था की उनके बाएं हाथ का ऐम्प्युटेशन होना है...
वो समीना की ओर देख के मुस्कराए और समीना उन की ओर
समीना ने बताया की जैसे ही गोली चलनी शुरू हुयी, वो हाल में थी. तभी ये अंकल सामने आ गए और उन्होंने अपने पीछे समीना को छिपा लिया.
बीच बीच में वो उसे एक हाथ से फर्श पर चिपक कर लेटे रहने का इशारा करते.
समीना बोली की उसने आतंकवादी अंकल को भी देखा था.
वो दूर थे और क्योंकि यहाँ से ये अंकल गोली लगातार चला रहे थे वो इधर नहीं आये.
जब गोली बंद होने के बाद लोगों को अस्पताल ले जा रहे थे तो इन्होने कहा की पहले इस बिटिया को ले चलो और लोग उसको भी हास्पिटल ले आये.
डाकटर ने मुझे बताया की वैसे तो इसे सिर्फ स्पलिंटर लगे हैं लेकिन वो पैर की हड्डी के पास है, हो सकता है आपरेशन से काम चल जाय और हो सकता है...
और जब मैंने जुबेदा को बताया तो वो रात भर के बाद...पहली बार फफक कर रोने लगी...बिना रुके जोर जोर से...सारी रात का बाँध जैसे अभी टूटा हो...
अगर कुछ हो गया, अगर पैर ...कहाँ बियाह होगा लड़की का ...बाबा बचाओ बाबा...
जब वो थोड़ी शांत हुयी तो मैंने उससे पुछा की वो बार बार किस बाबा को याद कर रही है.
जुबेदा ने मुझे गुस्से से देखा...बनारस के हो और बाबा को पूछ रहे ही...अरे और कौन अपने देवघर के...बैजनाथ बाबा...समीना उन का आशीर्वाद है...उस पर बाबा का हाथ है कुछ नहीं होगा...
पीछे से किसी ने कहा की यहाँ पे माहिम में एक चर्च है...वहां जाने से ..सब ठीक हो जाता है. जुबेदा ने मना किया, वो बोली नहीं बाबा सब ठीक कर देंगे ...आप कहीं मत जाओ..
लेकिन मैं गया.
जब मैं लौट के आया तो समीना के बेड के पास जुबेदा खुश खुश बैठी थी. मैंने नीचे कैंटीन से चाय बिस्किट लाया था. खाते हुए वो बोली,
" देखो हम कह रहे थे ना की बाबा का किरपा है इसपे..."
पता ये चला की जो एक्सपर्ट डाकटर आये थे उन्होंने एक्सरे प्लेट्स देखीं और कहा की वो पैर बचा लेंगे...शाम को आपरेशन है ...नर्स ने बताया की ग्राफ्टिंग होगी..तीन चार बोतल खून लगेगा.
उस दिन मैंने देखा खून का कोई मजहब, कोई प्रान्त, कोई जात नहीं होती.
बाहर खून देने वालों की लाइन लगी थी.
आपरेशन सक्सेसफुल रहा.
दो रात मैं जगा...वहीँ समीना के बेड के बगल में.
उस के घर के लोगों के आने के अगले दिन मैं गया...और उसके अगले दिन समीना डिस्चार्ज हो गयी...अपने पैरों पर चलकर...
मैंने ये बात किसी को नहीं बतायी थी. घर पे मैंने सिर्फ ये बताया की मैं अपने एक दोस्त के यहाँ रुक गया था और हालत थोड़ी ठीक होने के बाद वहां से चला.
जुबेदा से अभी भी बात चीत होती है.
बहूत रात तक मुझे नींद नहीं आती थी.बस सपने में हवा में लटका गुबार, प्लेटफार्म पे पड़ी चप्पलें और बिखरा हुआ खून दिखता था.
मैं अपनी यादों से बहोत कोशिश कर उस रात को रगड़ रगड़ कर साफ करता था ...लेकिन प्लेटफार्म के कुछ जिद्दी खून के धब्बों की तरह...वो नहीं मिटती थीं.
मुझे गुस्सा भी बहोत आता था ...सब पर..यहाँ तक की जो लोग कैंडल ले के मार्च करते थे उन पर भी ..एक इम्पोटेंट एंगर...
फिर मुझे किसी ने समझाया...शायद हाजी अली में किसी बुजुर्ग ने...बेटा इस गुस्से को बूझने मत दो...थोड़ी आग बचा कर रखो और उस से अपनी पूरी देह को मन को तपा तपा के तेग में, तलवार में बदल दो...जिससे अगर कभी ऐसा मौका दुबारा आये ...तो तुम उठ खड़े हो अपनी पूरी शिद्दत से...जिसे फिर किसी नन्ही आखों को खून, गोली मौत न देखना नसीब हो...
और वो बात आज तक मेरे जेहन में है...
रगों में दौड़ने फिरने के हम नहीं कायल
जो आँख से न उतरे वो लहू क्या...
ग़ालिब का ये शेर भी उसी बुजुर्ग ने सुनाया था और लहू से ही ये मेरे सीने पे लिख गया था.
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करन ने उन लोगों को अलकापुरी में एक शापिंग माल के सामने ड्राप कर दिया था .
उन दोनों ने माल में कुछ देर विंडो शापिंग की , रीत ने गुड्डी और हीरो ...आनंद को एस एम् एस किये दो तीन ..लेकिन लगता है वो दोनों अभी होली में लगे हुए थे . और वहीँ एक चेंजिग रूम में , अपने झोले वाले पर्स से कुछ हरबे हथियार रीत ने मीनल को दिए ...पीपर स्प्रे , टेजर गन ...बनारस से वो सबके दो सेट ले आयी थी .
मीनल ने भी एक बड़ा सा प्रेस का कार्ड निकाल के रीत के टॉप पे लगा दिया ...और निकलते हुए दोनों ने दो गॉगल्स और बेसबॉल कैप ले के लगा लिए .
मीनल को सब रस्ते गली कूचे पता थे ...बड़ोदा में होली का असर कम ही रहता है ...दूकाने पूरी तरह खुली थी ...
रीत स्कूटी पे पीछे बैठी सोच रही ..
अगर कहीं उन का मिशन फेल होता है तो बस अब से पांच छह घंटे में ...कर्फ्यू का सन्नाटा ..चीख पुकार ..दौड़ती हुयी एम्बुलेन्स ...गूंजते सायरन ...वो सोच भी नहीं सकती थी ....वो झेल चुकी थी ...खो चुकी थी अपना सब कुछ ...ऑलमोस्ट सब कुछ ...
वो तो माँ कि कृपा थी कि करन ...जिंदगी के उस पार से वापस आया ...रीत ने बनारस की जंग जीती थी ...अब तो करन भी साथ है ...जो उसके साथ हुआ वो किसी और के साथ ना हो ...
और वो स्कूटी के पीछे बैठी बैठी ध्यान मग्न हो गयी ...वापस बनारस ...काशी के सारे भैरव ..अष्ट विद्या ...माँ का आशीर्वाद ...सब कुछ स्मरण किया सब का आह्वान ...काशी कि बेटी थी वो ...
और जब उसने आँखे खोली ...उस के सारे रोयें खड़े थे ...एक नयी ऊर्जा का संचार हो रहा था ...उसकी सारी इन्द्रियां सारी संवेदनाये एक नए स्तर पर पहुँच गयी थीं ...उसकी छठी इन्द्रिय जागृत हो गयी थी ..उसकी भुजाएं फड़क रही थीं ...
और तब तक स्कूटी रुकी ..
वो सिक्योरिटी के आउटर पेरीमीटर पे पहुँच गए थे ...पुलिस बैरिकेड पे वो रोक लिए गए
वहीँ से एक सड़क रिफायनरी की ओर और दूसरी रेलवे यार्ड कि ओर जाती थी ...
चेक में तमाशा पूरा था ...मेटल डिटेक्टर , गाडी के नीचे शीशा ...स्निफर डॉग्स ...हैण्ड हेल्ड डिटेक्टर से स्कूटी
तक चेक की ...लेकिन ...धन्नो के माथे पे लिखे प्रेस और उन दोनों के प्रेस कार्ड ने पूरा साथ दिया ...
और वो लोग करछिया यार्ड की ओर निकल पड़े ...रिफायनरी वाले रोड पे तो वास्तव में पंछी पर नहीं मार सकता था .
और उसी समय ...हीरो का मेसेज आया ...वो अपने कंप्यूटर पे है और अब कंटिन्युअस कांटेक्ट में रहेगा ..
रीत से रहा नहीं गया उसने दो चार मोटी मोटी गालियां उसे मेसेज कर दिन ...खेल चुके होली अपने मायकेवालियों के साथ ...मजा आया अपनी बहनों के मम्मे दबाकर ..
... करछिया यार्ड ...
रीत ने कभी इतनी सारी रेलवे लाइने नहीं देखी थी ...तीस चालीस तो रही होंगी .
उस ने मैप आने के पहले देखा था ...लेकिन सामने नजर आने की बात ही और है .
लाइनों के साथ साथ , कम से कम चार पांच सौ माल गाडी के डब्बे , उनमें से ज्यादातर टैंक वैगन , जो पेट्रोल , डीजल , नेप्था और एल पीजी ले जाने के काम आते हैं . उसके अलावा खुले हुए डिब्बे भी थे जिनमे कोयला भरा हुआ था , वो ज्यादातर इम्पोर्टेड कोल था जो अनेक पावरहाउस के लिए जा रहा था .
अच्छी बात ये थी की मीनल को इस यार्ड के बारे में काफी जानकारी थी ...
बल्कि तीन चार बार वो यहाँ आ चुकी थी इसलिए यहाँ काम करने वालों से भी उसकी अच्छी जान पहचान थी . वह उसको सीधे चीफ यार्ड मास्टर के पास ले गयी वहाँ से वो उसे कंट्रोल टावर में ले गए , जो यार्ड में सबसे ऊँची बिल्डिंग थी।
उन्होंने वहाँ से उन दोनों कि दिखाया कि ये अहमदाबाद बड़ोदा के रास्ते में है लेकिन ये स्टेशन रास्ते में नहीं पड़ता . इसका सम्बन्ध दो स्टेशनो से है , रनौली और बाजवा ...और ये गुजरात रिफायनरी के साथ आई पी सी एल , गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर प्लांट ऐसे कई कारखानो से है . गुजरात रिफायनरी का उत्पादन करीब १ ३ मिलियन टन है और इसका लगभग आधा हिस्सा रेल से ही देश के अनेक भागों में जाता है .
उसी तरह बंद डिब्बे , खाद के लदान के लिए जाते हैं .
एक रेक टैंक वैगन का जा रहा था , जिसे यार्ड मास्टर ने बताया कि वो रि फायनरी में जा रहा है .
कुछ लाइने एकदम काली हो गयी थी , मीनल ने बताया कि ये ब्लैक आयल के डिब्बो के लिए है। और उस के बगल में बड़ोदा -अहमदाबाद में लाइन थी , जहाँ से हर दस पन्दरह मिनट में ट्रेने गुजर रही थी .
कुछ लाइनो में वैगन को इंजन इधर उधर ले जा रहे थे ...उन्हें समझाया गया कि ये शंटिंग हो रही है .
रीत जिस इलाके में 'वाई ' काम करता था ...उसे जानने को उत्सुक थी ...और मीनल ने उसकी बात समझ ली .
. उसने यार्ड मास्टर से कहा कि जहाँ वैगन इक्जामिन होते हैं ...वो लाइने कहा हैं .
उसने दूसरी ओर दिखाया जहाँ दो टैंक रेक खड़े थे और कई लोग काम कर रहे थे . उसने बोला कि ये दो रेक पे काम चल रहा है ..एक कि लोडिंग एक घंटे बाद शुरू होनी है और दूसरे कि डेढ़ घंटे बाद ...उसने आगे कि कुछ लाइने दिखायी तो मीनल उसकी बात काट के बोली ...
"हाँ वो उस जगह हो आयी है एक सिक लाइन है जहाँ वैगन का रिपेयर होता है और उसके पहले स्टीम क्लीनिंग प्लांट है जहाँ स्टीम से वैगन साफ किये जाते है जिससे उसमें कुछ पेट्रोल न बचा बचा रहे ."
रीत का छठा सेन्स जागृत था और उसे उस इलाके में चलने को कह रहा था .
वहाँ से मीनल और रीत जहाँ पेट्रोल के टैंक वैगन एक्जामिन हो रहे थे उधर के लिए चल दीं .
दो लाइनों पे पेट्रोल टैंक वैगन रखे हुए थे। एक के बगल में दस पंद्रह आदमी, दो दो के ग्रुप में कुछ देख रहे थे ,मरम्मत थे।
मीनल और रीत उसी के बगल में रही थीं और मीनल उस के बारे में रीत रही थी।
दो बार पहले यहाँ वो यही देखने आ चुकी थी। रीत ने भी मेंटेनेंस मैन्युअल पढ़ा था , लेकिन आज देख कर और मीनल से बात कर सारी बातें एकदम साफ हो रही थी।
तभी मीनल को देख के कोई खड़ा हो गया , पचास पचपन के रहे होंगे। उनके साथ एक और लड़का भी थी जिसके हाथ में पलास , पेचकस और एक कोई चीज थी।
मीनल ने उन्हें नमस्ते बात करने लगी। तभी उसे रीत कि याद आयी और उसने बोला,
'अरे मैं तो भूल ही गयी थी आप ही के शहर की बनारस कि हैं ये, मेरे साथ अखबार में नौकरी करती हैं। '
अब तो उनके आँख में एक नयी चमक आगयी , तुरन्त बोले।
" अरे बिटिया कहाँ क हउ …बनारस में ?"
" सिगरा क, अउर आप,… " रीत के भी आँखों में वैसी ही चमक थी।
अब दोनों लोग भोजपुरी में चालू हो गए थे,
सच में परदेश में अपनी बोली तुरंत जोड़ देती है,…
' भूलनपुर जानेलु, ' उन्होंने पूछा।
" अरे काह नहीं उहे, डी ऐल डब्लू के पास न," रीत बोली
' हाँ हमार घर उन्ही स्टेशनवा के पासै हौ। " वो बोले।
फिर तो खेत खलिहान की सब बातें चालू हो गयी।
वो भी पक्की भोजपुरी में,
… अचानक उन्होंने पुछा, अरे बनारस का होली तो बहुत जबरदंग होला… ता तू इंहा अं होली के दिन ?
" का करीं नौकरी , " रीत बुरा सा उदास मुंह बना के बोला।
वो भी उदास होके बोले ,
" इहै बात त हौ, छुट्टी नहीं मिली, दो महीने पहले रिजर्वेशन कराये थे , अब फेमली हम लोगों भेज दिए हैं गाँव में भौजी बहुत नाराज हैं बरस बरस का त्यौहार"
तब तक उनके साथ लड़का था उसके हाथ हंसुली ऐसी कोई चीज , रीत के पैर के पास पटरी पे गिरी।
रीत ने झुक के उठाने कि कोशिश की तो लगा उसमें चुम्बक सा कुछ है , जोर लगा के ही पटरी से वो अलग हुयी।
मीनल ने पूछा ये क्या चीज है,… पहले कभी नहीं देखी तो वो लड़का बोला,
"सारी मुसीबत कि जड़,… अभी बड़े साहब अरे वही हेड टी एक्स आर, हम लोगो थमा दिए हैं। कह रहे हैं बॉटम वाल्व कि बड़ी शिकायत आ रही थी ता हेड आफिस से आर्डर आया है इसे बाटम वाल्व में लगाओ, वैसे आज आदमी कम है और ऊपर से ये नया काम। "
मीनल ने रीत को आँख से इशारा किया, हेड टी एक्स आर , वही स्लीपर वाई है।
रीत का दिमाग वैसे भी चाचा चौधरी से तेज चलता है अब वो और तेज चलने लगा।
और उधर वो असिस्टेंट और उनके सीनियर साथ साथ बोल रहे थे,
" ई कौनो ट्रायल होना है उस लिए बाटम वाल्व खोल के ओकरे अंदर फिट करना पड रहा है। ई एकदम वाल्व के अंदर जा के चिपक जाता है। ''
"एक रेक हम लोग कर चुके, जांचो भी , और इस को फिर भी करो और आज फिटर भी कम है , अब ये रेक कर रहे हैं और शाम होते होते एक और ख़तम करना है, सिक लाइन का भी आदमी लगा दिए हैं तब भी ....
हम लोग चार लगा चुके है दो अउर लगाना है "
मीनल ने उनकी बात काट के पूछा , क्या सब वैगन पे लगेगा , तो असिस्टेंट फिटर ने बताया ,
" नहीं , आल्टरनेट टैंक वैगन में लगाना है। " और उसने एक मुड़ा तुड़ा कागज भी दिखाया।
रीत ने ध्यान से देखा , और उसे जोर का झटका लगा।
वह वो बाटम वाल्व में लगने वाली चीज को लेकर उसे थोड़ा हट के ध्यान से देखने लगी।
उसे महसूस हुआ ,…ग़ड्बड
बल्की महा गड़बड़
पहली गड़बड़ तो ये कागज ही था।
अगर हेडक्वार्टर से कोई कागज़ आएगा भी , तो इस तरह सारे फिटर को नहीं बांटा जाएगा बल्कि , टी एक्स आर आफिस में रहता और वहीँ से सारे शिफ्ट के इंचार्ज को नोट कराया जाता। ये जरुर इस तरह इस लिए दिया गया है कि हेड क्वार्टर के नाम पे कोई सवाल ना करे।
और फिर होली कि छुट्टी के कारण किसी आफिसर के आने और इसे देखने की सम्भावना नहीं के बराबर है।
दूसरी गड़बड़ ये है कि अगर कोई ट्रायल होना होता और वैगन में कुछ रिट्रोफिटमेंट करना होता , तो ये वर्कशाप में होता जहाँ पी ओ एच ( पिरियाडीक ओवर हॉल ) के लिएय वैगन जाते हैं।
टैंक वैगन्स का पीओएच तो बड़ौदा में ही , प्रताप नगर में होता है , तो बात ये, ये काम यहाँ क्यों ?
तीसरी बात ,मीनल ने उसे समझाया था , और वो बाकी वैगनों में देख भी रही थी कि , पेट्रोल टैंक के वैगन में जांच करते समय , वैगन की मरम्मत नहीं करते।
उनके ऊपर सिर्फ चाक से क्रास का निशान बना देते हैं और एक शंटिंग इंजिन , शं टिंग कर के उन वैगनों को अलग कर देता है और उसके बदले में फिट वैगन लगा देते हैं।
और जब रेक पूरा हो जाता है तो लोडिंग के लिए उसे रिफायनरी के अंदर भेजा जाता है। वैगनों कि रिपेयर नहीं करने का कारण ये है कि वहाँ पे पेट्रोल कि फ्यूम होती है और हर वैगन में कुछ न कुछ पेट्रोल का स्लज बचा होता है , ख़ास तौर से वाल्व में , जिसे खोल के तेल निकाला जाता है। एक्सप्लोसिव एक्ट के तहत , वहाँ वेल्डिंग एकदम मना है , क्योंकि वेल्डिंग कि चिनगारी से आग लग सकती है।
यहाँ तक की हैमर कि चोट से भी स्पार्क निकल सकता है , इसलिए जिस वैगन में कोई मरम्मत का काम है , उसे सिक लाइन में ही ले जातें हैं। वहाँ दो तीन बार स्टीम क्लीनिंग कर के सारा पेट्रोल , स्लज निकाल देते हैं।
फिर वहाँ पर वेल्डिंग या बाकी रिपेयर होता है। ऐसी हालत में अगर वैगन में कुछ फिट करना था तो सिक लाइन में ले जाना चाहिए था। यहाँ फिट करने का मतलब नहीं है।
दाल में कुछ काला है.
नहीं पूरी दाल ही काली है।
और फिर चौथी बात , आज ही क्यों? आज होली के चक्कर में स्टाफ कम है तो ये एक्स्ट्रा काम क्यों ? और अगर ट्रायल करना है तो एक साथ तीन तीन रेकों में , और रीत का दिल तेजी से धक् धक् कर रहा था।
कहीं ये वो मिसिंग लिंक यही तो नहीं।
टाइमिंग एकदम मैच कर रही है, और 'वाई ' कि शिफ्ट भी है, उसके दिल ने सोचा करन को मेसेज भेज दे।
लेकिन दिमाग ने मना कर दिया।
कहीं ते कोई डिकाय या डाइवर्जन तो नहीं , किसी को मीनल के बारे में पता चल गया हो और उसने ये डाइवर्जन बनाया हो आर असली हमला किसी और तरीके से हो और वो लोग इसी में उलझे रह जायेंगे।
या ये भी हो सकता है ये कोई जेनुइन ट्रायल हो, फिर उसकी हंसी उड़ेगी, और टाइम भी कितना कम है
उसने मुड़ के देखा। मीनल अभी भी उन दोनों को बात में उलझाये थी।
वो और आगे गयी , जहां से कोई उसे देख न रहा हो।
आँखे बंद की , गहरी सांस ली और अपनी सारी शक्तियों को संगृहीत किया।
दो पल वो वैसे ही थी , फिर आँखे बंद किये उसने उस पुर्जे पे ऊँगली फिरानी शुरू की ,
उसकी उँगलियों में आँखे उग आयी थीं।
और उसे मिल गया , छोटे छोटे पांच छह छेद उसने फिर हाथ फेरा , और उन छेदों के उपर हाथ से रगड़ा , कुछ खुरदुरा सा लगा, और पास कुछ उभरा ,…
आँखे बंद उन छेदो के पास कि जगह को नाक से सुंघा , कुछ समझ में में नहीं आया ,… फिर उसे याद आया आर डी एक्स और टी एन टी का मिला जुला मिश्रण,
रीत ने हाथ से उसका अंदाज से तौला पौन किलो तो कम से कम होगा, फिर एक बार उसने उसे आँख बंद किये सहलाकर देखा।
छोटे छोटे बटन दो, अब उसने आँख खोल कर उस जगह को ध्यान से देखा , लाल और हरे बटन , जल्दी नहीं नजर आते।
फिर उसने आँख खोल कर उन छेदों को देखा , उसे अपने लम्बे नाख़ून से कुरेदा,… और नाक के पास लगाकर तीन चार बार खूब गहरी सांस ली
अब उसका शक्क आलमोस्ट पक्का हो गया.
सड़े बादाम सी महक, एक बार फिर उसने सूंघा ,
आर डी एक्स, टी एन टी के साथ आई एम् एक्स 1 0 1 मिला है और कुछ जिलेटिन सा आई एम् एक्स के चलते थोड़े बहुत झटके या फिट करते समय होने वाले प्रेशर से ये एक्सप्लोड नहीं करेगा और इसी लिए इसमें पावरफुल मैग्नेट भी है , जिससे जिसे वो वाल्व के अंदर चिपक जाए ज्यादा फिट ना करना पड़े और वो लाल हरे बटन डिटोनेटर होंगे ,
वो असिस्टेंट फिटर रीत से वो वाल्व में लगाने के लिए मांगने आया और उसने दे दिया।
रीत और मीनल झुक के देख रही थी कि वो कैसे लगता है।
रीत ने नोटिस किया कि मैग्नेटिक होने से वो आसानी से सेट हो गया।
रीत ने मीनल से आगे चलने का इशारा किया। अब वो जल्द से जल्द 'वाई ' से मिलना चाहती थी.
तब तक उस असिस्टेंट फिटर ने आवाज लगायी ,
" अभी चार वैगन में लगाना बाकी है , "
उसके सीनियर ने जिससे रीत अभी भोजपुरी में बात कर रही थी , उससे बोला ,
" अरे उ रेकवा के ओह पार है जाके ले आओ चार, आधे घंटे में शंटिग इन्जन आ जाएगा इसको भी प्लेस करने। जल्दी करो। "
वो फिटर दो वैगन के बीच पार कर चला गया।
मीनल ने रीत की ओर इशारे से देखा। और रीत समझ गयी।
" वाई " इस शिफ्ट का इंचार्ज , हेड टी एक आर , सस्पेकटेड स्लीपर , जो इन लोगो को ये डिवाइस दे रहा था , रेक के उस पार खड़ा था. शायद बाकी लोगो को जल्दी जल्दी बोल रहा हो,
रीत को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। टेंशन से उसकी देह काँप रही थी , कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
उसे लग रहा था कि जो डिवाइस कुछ देर पहले उसके हाथ में थी , वही बॉम्ब है जो टैंक वैगन के बाटम वाल्व में लग रहे हैं।
और एक बार बॉटम वाल्व के अन्दर फिट हो जाने के बाद , बाहर से कुछ नजर नहीं आता। अगर कोई वैगन का एक्सपर्ट भी देखेगा तो ये नहीं कह सकता कि वैगन में कोई चीज जोड़ी गयी है ,
और वैगन में आप मेटल डिटेकटर इस्तेमाल नहीं कर सकते , पूरा वैगन ही लोहे का है।
यहाँ तक स्निफर डॉग्स भी कुछ नहीं सूंघ सकते थे क्योंकि वैगन के चारो और पेट्रोल के स्लज कि बेहद तेज महक आती थी।
क्या करे करे ,....
उसके बगल में जो रेक खड़ा था जल्द ही उसमे बीस बॉम्ब लग जायंगे।
और दूसरी साइड में में भी बीस बॉम्ब लगने शुरू हो गए होंगे होंगे।
रीत ने रिफायनरी कि साइडिंग की ओर देखा , जहाँ एक रेक उन लोगो ने टावर से जाते देखा था , अब उसका गार्ड का डिब्बा दिख रहा था यानी दो चार मिनट में वो रिफायनरी के अंदर होगा ,
और उसमे बीस वैगन में बॉम्ब लग चुके थे,…
क्या करे ,…क्या करे,… कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
क्या करे , कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
और एक फ़िल्म की तरह , अतीत के भयावह दृश्य उसकी आँख के सामने घूम रहे थे. वह दुःख जो उसने झेला था , वह जो उसकी धमनियों , शिराओ में घूमते रक्त का हिस्सा बन गया है। कितनी मुश्किल से उस अतीत से वो उबर पाती है।
दिन फागुन के ही थे , वो भी बनारस के। करन आया था , लेकिन उस दिन रीत छोड़ने स्टेशन नहीं गयी थी। अपने पेरेंट्स के साथ उसे मंदिर जाना था.
सात मार्च मंगलवार ,
अखबार में अगले दिन हेडलाइन थी
दो बॉम्ब ब्लास्ट , २८ लोग मरे , १०० से ऊपर घायल।
कम से कम दस लोगों के शव मंदिर में पड़े , मरने वालों में आठ महिलायें, तीन लड़कियां।
अट्ठारह से बीस लोगों के स्टेशन पे मरने कि आशंका।
लेकिन अखबार हर त्रासदी को एक अंक , एक संख्या बना देते हैं।
किसी ने ये नहीं लिखा , की जब रीत घर लौटी तो अकेली थी। वो अपने माता पिता को मॉर्चुरी में छोड़ आयी थी।
कोई नहीं था। करन के माता पिता स्टेशन पर पड़े थे , क्षत विक्षत। उन्हें भी रीत ने ही पहचाना। और उस दिन तो लगा था करन भी अपने माता पिता के साथ चला गया है।
और जब करन लौटा तो उसे लगा कि कि वो काल कि दीवाल फाड़ के वापस आया है।
और उसके बाद , दुबारा फिर जब वो घाट पे थी तभी बॉम्ब विस्फोट , एक तीन साल की बच्ची गयी।
और तब रीत ने फैसला किया , घुस के मारना होगा। इस राक्षस के मुंह में हाथ डाल के उसके दांत तोड्ने होंगे।
और आज फिर वही हालत।
वह सामने रिफायनरी देख रही थी।
अगर ये ट्रेन में लगे हुए बॉम्ब चल गए , पूरी रिफायनरी आग में तो जायेगी ही उसके साथ , कितनी और फैक्ट्रियां।
बगल में ही बी पी सी एल का गैस बाटलिंग प्लांट था , वहाँ तो आग पहुंचेगी ही और फिर जो धमाके होंगे , … आस पास कि बस्तियां। रीत जैसी कितनी लड़कियां अपने माता पिता खो देंगी। हजारों लोग ,
कुछ करना होगा कुछ करना होगा
लेकिन करे क्या , अगर एक भी गलत चाल रीत ने चल दी तो दुश्मनो कि शह और उसकी मात निश्चित ,
शक्ति दो शक्ति दो , वो एक पल आँख बंद कर ध्यान लगा रही थी और फिर उसने तय कर लिया
रीत ने फुसफुसा को मीनल को मोटी मोटी बातें बतायीं , साथ साथ में उसने अपनी स्पीकर और इयर पीस आन कर दी , ये सीधे गुड्डी के होने वाली ससुराल से जुडा था , अपना 'हीरो' आनंद ,
उसकी बात अब सुन रहा था , मीनल के साथ।
पहले उसने सोचा की जो बैंड उसके हाथ में करन ने बाँधा था , उसमें लगी रेड अलर्ट वाली बटन दबा दे , और करन को बुला ले ,
फिर वो ठिठक गयी ,
अगर कहीं जरा सा भी अंदाज हो गया तो , वो 'वाई ' कुछ भी कर सकता है।
रीत और मीनल जिन टैंक वैगन के पास खडी है उनमे बॉम्ब लग चुके है और अगर उसने रिमोट की बटन दबा दी तो,…
और एक और खतरा , यहाँ अगर यार्ड में भी एक्सप्लोजन हुआ और इन सब टैंक्स में थोडा थोडा बचा हुआ पेट्रोल है तो , फिर ये आग कही रिफायनरी तक पहुँच गयी , रिफायनरी से लोड किये हुए टैंक वैगन भी यहाँ खड़े होंगे अगर उनमे चिंगारी लग गयी ,…
रिफायनरी और यार्ड के बीच सिर्फ एक छोटी सी सड़क और दीवाल ही तो है,…
,
रीत कि निगाह फिर रिफायनरी की ओर गयी और उसे याद आया , एक रेक वहाँ आलरेडी पहुँच चूका है , बीस बम लगे हैं ,
अगर ,… अगर उस ने ,…उस का कोई साथी वहाँ हुआ और उसे सिर्फ मोबाइल से अलर्ट कर दिया , और उसने वहाँ रिमोट दबा दिया तो सब ख़तम ,
वह उधेड़ बुन में पड़ी थी ,
तभी उसको इयर पीस पे आनंद कि आवाज सुनायी पड़ी ,
" मैं हूँ ना,.... "
और उसको अपने सवाल का जवाब मिल गया ,
ठेठ बनारसी जवाब.
रास्ता एक ही था , टेक द बुल बाई हार्न।
रीत ने सोच लिया था , जो कुछ है उसे ही करना था , और मीनल को।
सबसे पहले उस 'वाई ' को न्यूट्रलाइज करना था , उसे एलिमिनेट करना था , वो भी इस तरह की ना तो वो किसी को इन्फार्म कर पाये , और ना ही खुद कोई ऐक्शन कर पाये।
दो प्रेस की टॉप , जींस धारी लड़कियों पे किसे शक होगा , और उसके कुछ ही शक होने के पहले गंगा पार हो जानी चाहिए थी।
रीत ने मीनल का हाथ दबाया , जवाब में मीनल ने रीत का।
प्लान पक्का।
तोड़ दे दुश्मन की नली ,…
वो दोनों रेकके बगल में आगे पढ़े ,
अब बगल के रेक में भी काम शुरू हो गया था।
रीत समझ गयी कि ट्रायल के नाम पे उस में भी बाटम वाल्व में वही डिवाइसेज लगायी जा रही हैं।
उसे अभी भी साफ नहीं था कि वो कैसे डिटोनेट होंगे , लेकिन ये बात साफ थी इन्ही के जरिये हमला होना था।
वो दोनों आराम से रेक के दूसरी ओर जा रही थीं।
तभी एक आवाज सुनायी पड़ी , जल्दी करो , जल्दी करो स्पेशल बोनस मिलेगा , अगर एक घंटे में दोनों रेक एक्जामिन हो गए , जल्दी।
मीनल ने रीत को आँख के इशारे से बताया , वही है।
अभी वो दिख नहीं रहा था , हाँ आवाज उधर से ही आ रही थी , जिधर वो दोनों जा रही थीं , रेक के दूसरे छोर से
और थोडी देर में वो दिखने लगा , उसके हाथ में एक बड़ा सा रेगजीन का बैग था। उस के साथ दो लोग और थे , फिटर। उसको उसने बैग से निकाल कर चार चार डिवाइस दी और बोला , बस जल्दी काम ख़तम करो।
और अब उसने पहली बार मीनल और रीत को देखा। और रीत ने मोबाइल पे बात के बहाने उसकी उसकी पिक्चर कैद कर ली।
वो उन दोनों को ही देख रहा था।
और जैसे हो वो दोनों पास आयीं , वो जोर सेगुर्राया ,
" कौन हो तुम दोनों , यहाँ कहाँ टहल रही हो जाओ यहाँ से। "
रीत ने मीनल का हाथ दबा कर इशारा किया , और अनदेखा कर आगे बढ़ गयीं।
उसने फिर पीछे से टोंका , और अबकी दोनों दूर रूक गयीं।
रीत कि स्ट्रेटेजी थी , उसे रेक से थोड़ी दूर लाने की जहाँ से बाकी काम कर रहे लोग उन्हें ना देख पाएं।
अब वो उनके पीछे पीछे आया और बोला ,
"कौन हो तुम दोनों , यहाँ क्या कर रही हो। "
"मैं प्रेस से हूँ और ये भी, ...." अब मीनल ने पहल की और अपना प्रेस कार्ड बढ़ाया।
उसके कुछ बोलने के पहले के पहले मीनल ने फिर बोला ,
" जब आपके यहाँ एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट ख़राब हो गया था ,ब्लैक आयल बारिश में बह के बगल के खेतों में चला गया था , याद है "
'हाँ, हाँ,… " अब क़ुछ ठंडा हॊता हुआ वो बोला।
" मैंने ही कवर किया था और रेलवे के सपोर्ट में रिपोर्टिंग कि थी , "मीनल बोली.
अब वो शांत हो गया।
रीत अभी थोडी और दूर जा के खडी हो गयी।
मीनल बोले जा रही थी ,
" अभी कुछ पहले भी मैं आयी थी , मजदूर संघ के मिस्टर पठान के साथ , उनको तो आप जानते होंगे ना, "
उनको कौन नहीं जानता था , पूरे डिवीजन में उसकी तूती बोलती थी।
मीनल चालु थी , " और आपके डी आर एम् मिस्टर कुमार उनका भी मैंने इंटरव्यू लिया था। "
अब वो आश्वस्त हो गया था , लेकिन बस चाहता था कि ये दोनों किसी तरह कटें यहाँ से।
उधर रीत ने जंग का मैदान तलाश लिया था।
किसी भी लड़ाई में पहला कदम यही है कि मैदान आपके अनुकूल हो और उसके चारों ओर की जानकारी आपको अच्छी तरह हो।
इस जगह पे रिपयेर वाले स्टाफ कहीं से दिख नहीं रहे थे।
दूसरे रिफायनरी कि ओर से वाली सड़क का गेट बहोत पास था और सड़क वहाँ तक आ आरही थी। उसने फ्रेंडशिप ऐसे अपने कलाई पे बंधे बैंड का पीला बटन दबा दिया।
उससे अब करन का डायरेक्ट कांटेक्ट स्टैब्लिश हो गया। उस बैंड का स्पेशल ऐप मोबाइल में था , उसके जी पी एस पे अब साफ था जहाँ करन था , वहाँ से यहाँ क्या है और पहुँचने का समय चार मिनट दिखा रहा था।
रीत अब तैयार थी।
मीनल अब तक उसे बातों में उलझाए थी , जब कि वाई चाहता था कि जल्द से जल्द उसे फुटाए।
मीनल ने उससे बोला कि बस वो उसे उससे दो चार बाइट लेना चाहती है , सिर्फ इस बात को हाइलाइट करने के लिए कि जब लोग होली कि छुट्टी मना रहे हैं तब भी आप लोग लगन से काम कर रहे हैं। बस वो जो मेरी असिस्टेंट खड़ी है न दो मिनट लगेगा वहीँ ,
वो घबडाया , "नहीं कोई फ़ोटो वोटो नहीं , हमारे यहाँ परमिटेड नहीं है। "
मीनल ने उसे समझाया , " नहीं हम कोई इलेक्ट्रानिक मिडिया वाले नहीं है बस वो अभी सीख रही है न , तो मैं सवाल करुँगी , वो जवाब नोट करेगी।
और मीनल चलती हुयी रीत के पास आ गई और पीछे पीछे वो,…
मीनल और रीत इस तरह खड़ी थीं की यार्ड में से कोई भी देखता , वही दोनों दिखती और वो उन दोनों के बीच , छिपा , ढंका।
सवाल मीनल ने शुरू किया और रीत वाई के पीछे खड़ी थी।
मीनल ने कहा आप छुट्टी के दिन भी भी इतने मेहनत से काम कर रहे हैं।
वाई ने बोला जी , लेकिन उसकी निगाहें इधर उधर घूम रही थी , और हाथ में वो रेग्जीन वाला बैग बहुत कस के पकड़े था। वाही जिसमें से वो डिवाइसेज निकाल के लोगों को दे रहा था लगाने के लिए।
मीनल ने अगला सवाल किया , लेकिन आप किस देश के लिए काम कर रहे हैं।
अब वो चौंका , गुस्से में बोला।
" मतलब ,...."
" मतलब , ये आप वैगन में बम क्यों लगा रहे हैं , " मीनल ने बोला।
जवाब उसके चाक़ू ने दिया , जिस फुर्ती से उसने चाक़ू से मीनल पे हमला किया , रीत मान गयी उसे।
लेकिन उतनी ही फुर्ती से मीनल का पेपर स्प्रे चला , वो सबसे ज्यादा पावरफुल स्प्रे था जिसमे आसाम कि मशहूर भूत जोलकिया चिली का इस्तेमाल किया गया था।
साथ ही रीत के दोनों चले उसके घुटनो के जोड़ पे,
नतीजा वही हुआ जो होना था , वो जमीन पे और चाक़ू ने सिर्फ मीनल के टॉप को हाथ के पास से चीर दिया था और उसे हलकी खरोच लगी थी।
रीत ने साथ में ही अपने कलाई में बंधे बैंड पे रेड बैंड दबा दिया और उसी के साथ अपनी टेजर गन से गिरे हुए वाई के बाडी से सटा के दो शाट मार दिए।
अब वो आधे एक घंटे के लिए बेकार था।
मीनल ने जमीन पे गिरा वाई का मोबाईल उठा के अपने पर्स के हवाले किया और रीत ने अपने झोलेनुमा लेडीज पर्स में उसका वो रेग्जीन का बैग , जिसमें वो डिवाइसेज थीं।
इस सब में उन दोनों को एक मिनट से ज्यादा नहीं लगा।
उसको उकसाना इस लिए जरुरी था जिससे कन्फर्म हो जाए कि वो दुश्मन का एजेंट है, और दूसरे गुस्से में वो अपना कंट्रोल खो देगा और उसे न्यूट्रलाइज करना ज्यादा आसान होगा।
और वही हुआ ,
तभी रीत ने अपनी पेरीफेरल विजन से देखा उसे कोई देख रहा है.
और सतर्क हो गयी।
उसने मीनल को भी इशारा किया।
रीत ने झुक कर 'वाई ' के गले के पास की एक एक नस दबा दी। सिर्फ दस सेकेण्ड के लिए ,…
और उसका असर ये हुआ कि अब वो किसी तरह एक घंटे के पहले होश में नहीं आने वाला था।
उससे भी ज्यादा ये हुआ कि अब उस के सारे सिम्पटम हार्ट अटैक के थे , पल्स स्लो हो गयी थी , ब्लड प्रेशर कम होगया था। कोई डाकटर भी बिना ई सी जी किये ये नहीं था कि , इसे हार्ट अटैक नहीं हुआ।
तब तक वही हुआ जिसका रीत को डर था.
ढेर सारे काम करने वाले इकट्ठे हो गए , मारो मारो करते ,
और पीछे वही आदमी था जिसे रीत ने पेरीफेरल विजन से देखा था , वो सामने नहीं आ रहा था , लेकिन लोगों को उकसा रहा था।
" यही दोनों है , क्या किया तुम दोनों ने मारा है इन्हे,"
मोर्चा मीनल ने फिर सम्हाला।
"तुम लोग समझते क्यूँ नहीं , इन्हे हार्ट अटैक हुआ है , तुरंत हास्पिट्ल ले जाना जरुरी है , ...." वो बोली।
" हास्पिटल ले चलना है तो रेलवे हास्पिट्ल ले चलना है , प्रतापनगर। " एक बोला।
रीत अभी भी झुकी उसकी पल्स देख रही थी। उसने कनखियो से देखा , वही आदमी अभी ही भीड़ को उकसा रहा था।
वो उठ के खड़ी हुयी और बोली ,
" मैंने रिफायनरी कि एम्बुलेंस को फोन कर दिया है वो अभी आ रही होगी। "
उसने उस बैंड के सहारे जब रेड अलर्ट किया था तभी करन को बोल दिया था कि वो रिफायनरी के एम्बुलेंस से आये।
" अरे रिफायनरी वाले कभी एम्बुलेंस नहीं भेजंगे , पहले इनको उठाओ आफिस में ले चलो , " एक कोई और चिल्लाया।
यही रीत नहीं चाहती थी। एक बार अगर वाई को वो उठा ले आते तो क्या होता पता नहीं। उसे वाई जिन्दा चाहिए था। वो जेड का हश्र बनारस में देख चुकी। आई बी और पुलिस वाले देखते रह गए और भारी भीड़ में उसे गोदौलिया में ख़तम कर दिया।
रीत ने फिर करन को फोन लगाया। करन ने बोला वो एम्बुलेंस में निकल गया है बस दो तीन मिनट में पहुँच रहा है।
लेकिन दो तीन मिनट भी मुश्किल पड रहे थे.
सहायता आयी लेकिन अप्रत्याशित जगह से ,
वही , जिनसे रीत भोजपुरी में सम्भाषण कर रही थी , और उनके साथ उनका असिस्टेंट फिटर , दो चार लोग और ,
लेकिन जैसे ही उन्होंने रीत को देखा उनकी भाव भंगिमा , मुख मुद्रा सब बदल गयी।
रीत के पास आके वो बोले , " क्या हुआ बिटिया ,"
रीत धीमे धीमे विस्तार से समझाया , और अब सब सुन रहे थे।
कैसे मीनल और वो दोनों उनसे बात कर रहे थे , कि उन्होंने सीने में तेज दर्द की शिकायत की।
मीनल ने अपनी बोतल से उन्हें पानी भी पिलाया , लेकिन दर्द बहोत तेज था इसलिए दोनों ने मिल कर उन्हें लिटा दिया। रीत ने झुक कर नाड़ी देखी तो पल्स बहुत धीमी थी , इसलिए उसने तुरंत रिफायनरी के हास्पिटल में फोन लगाया , जहाँ के एक डाकटर उनके परिचित हैं। मौके कि बात है कि वो मिल गए।
वो अभी तुरंत एम्बुलेंस ले के आ रहे हैं। उनकी भाई लाल अमिन हास्पिटल से बात हो गयी है , वहाँ भी वो लोग तैयार होंगे , इन्हे तुरंत हास्पिटल ले जाना बहुत जरुरी है।
लोगों का रुख बदलने लगा। वो खुद झुके और उन्होंने नाड़ी देखी।
नाड़ी का पता मुश्किल से चल रहा था।
नाड़ी तो एक दम डूब रही है , चिंता में उन्होंने सब से कहा। ' काहें तू लोग रेलवे हास्पिटल के जिदिया रहे थे , ई तो कहो ई दोनों थीं जान बच गयी उन की ई तुरंते एम्बुलेंस बुला दीं। "
तब तक ऐम्बुलेंस के सायरन की आवाज भी सुनायी पड़ने लगी।
दो आर पी एफ वालों के पास गए और यार्ड का गेट भी खुलवा दिया।
वो आदमी जो लोगों को भड़काने में लगा था , अब नहीं दिख रहा था।
तब तक ऐम्बुलेंस आ गयी और ऐम्बुलेंस से करन उतरा , एक डाक्टर कि ड्रेस में , और पीछे से चार स्ट्रेचर बियरर,…
रीत समझ रही थी जैसे करन डाक्टर नहीं था , वैसे वो स्ट्रेचर बियरर नहीं थे बल्कि स्पेशल फोर्स के थे.
और तभी रीत को फिर वो दिखा , वो आगे बढ़ा उठाने में सहायता करने के लिए।
लेकिन अबकी करन ने उसे डांटा , " हार्ट पेशेंट है सब लोग नहीं हैंडल कर सकते , सब लोग हटिये दूर हटिये " और स्ट्रेचर बियरर ने उसे उठा के अंदर डाल दिया।
करन ने रीत से बोला ,
" असलं में ऐम्बुलेंस का ड्राइवर नहीं मिल रहा था इसलिए मैं खुद ही ड्राइव कर के आया हूँ , यहाँ से हम सीधे भाईलाल ले जायेंगे , तुरंत ऐंजियो प्लास्टी करनी पड़ेगी। "
सब लोग अब तारीफ कि नजर से रीत की ओर देख रहे थे।
तब तक वो फिर नजर आया , और कुछ ढूंढने लगा " यहाँ इनका एक बैग था"
रीत समझ गयी वो किस बैग की बात कर रहा था।
अब तो करन आ गया था रीत को किस बात का डर , उसने जोर से उसे डांटा , " जरा सी देर होने से इनके जान जा सकती है और तुम्हे बैग कि पड़ी है। "
रीत ने करन से पुछा ,
" डाक्टर साहेब , हम लोगों की बाइक भी गेट के पास है , आपके रास्ते में पड़ेगी अगर आप हम दोनों को वहाँ ड्राप कर देते , बज गया है और हम दोनों को,…"
उसकी बात काट के बहोत सीरियस आवाज में करन बोला ,
"जल्दी बैठो "
और बाकी इकठ्ठा लोगो से उसने कहा कि आप में से जो लोग आना चाहते हों कल भाईलाल में आ जाइयेगा , आज तो ये आई सी यु में ही रहेंगे और हम ने रेलवे हास्पिट्ल को भी बोल दिया है वहाँ से भी एक डाक्टर पहुँच रहे हैं , चिंता की कोई बात नहीं है। '
ऐम्बुलेंस यार्ड से पल भर में बाहर हो गयी।
अब रीत और मीनल मुस्करायीं और दोनों ने जोर से हाई फाइव किया।
मुर्गा पिंजड़े में था।
रीत ने करन को सारी बातें समझा दी , किस डिवाइस कसी तरह बाटम वाल्व में लगे हैं और एक रेक रिफायनरी में आलरेडी प्लेस हो गया है।
दो रेक में यार्ड में वो लगा रहे थे और वो भी कुछ देर में रिफायनरी में पहुँच जाएंग। रीत ने अपने झोले नुमा पर्स में से निकाल के वो बैग भी दे दिया , जिसमें कुछ डिवाइसेज रखी थीं
। फोरेंसिक और बॉम्ब डिस्पोजल वाले जो रिफायनरी में बने कंट्रोल रूम में थे , उसकी जांच कर लेते जिससे उन्हें बॉम्ब की मेकेनिज्म समझने में आसानी होती।
रीत ने ये भी बता दिया कि ये करीब एक घंटे बेहोश रहेगा।
तब तक वो वहाँ पहुँच गए जहाँ बाइक थी। उतरने के पहले , रीत को कुछ याद आया
" हाँ एक का पूरे जबड़े का एक एक्स रे तुरंत निकलवा लेना , मैं थोड़ी देर में काल करुँगी। "
वो दोनों उतर के बाइक पे सवार हो गयीं।
ऐम्बुलेंस फिर रिफायनरी में बने कंट्रोल रूम की ओर मुड़ पड़ी।
रीत के इयर पीस पे आनंद का बार बार मेसेज आरहा था , आधे घंटे में प्रताप नगर पहुँचो रेलवे के कंट्रोल रूम में।
रास्ते में कोई ढाबा सा दिखा दिखा ,एकदम सूनसान टाइप , और रीत पीछे से चिल्लाई ,
मोड़ मोड़ इधर रोक यार
और अंदर घुस के धम्म से बैठ गयी और रीत ने लम्बी सांस लेते हुए कहा ,
" अरे यार भगवान ने ये लड़के क्यों बनाये और बनाये तो भेजे में थोड़ी सी अक्कल डाल देते। "
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फागुन के दिन चार--107
गतांक से आगे ...........
उस रात हम कितना पैदल चले बता नहीं सकते...और हम नहीं सैकड़ों लोग...घायलों की तलाश में,
वो जे जे हास्पिटल में भी नहीं मिली.
हास्पिटल से हास्पिटल ...किसी ने बताया की पुलिस कमिश्नर आफिस में एक कंट्रोल रूम बनाया गया है वहां लिस्ट लगाई है ...
जुबेदा ने पुछा पुलिस कमिशनर आफिर कहाँ है...
वो मझे मालूम था ...क्राफोर्ड मार्केट के पास...
हम लोगो वहां भी गए...लिस्ट तो थी लेकिन उन्होंने ये पहले ही बता दिया की ये पूरी नहीं है...अभी भी अलग अलग जगह से इन्फोर्मेशन कोलेट की जा रही है....
हम फिर कामा हास्पिटल आ गए...रात के तीन बज रहे थे...पूरी मुम्बई जग रही थी.
बाद में मुझे पता चला ...पूरा हिन्दुस्तान जग रहा था.
हम लोग चुपचाप बैठे रहे. एक बेंच पर.
पास में ही लोगों की एक लाइन थी. चुपचाप लोग...सहमे बेजान से..धीमे धीमे अन्दर जा रहे थे.
मैं और जुबेदा दोनों उधर देख रहे थे...
हम दोनों को मालूम था ये लाइन क्यों है लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी बोले.
आखिर जुबेदा ही बोली..देखें...
मैं कुछ देर बैठा रहा फिर हलके से उठा और कतार में लग गया. जुबेदा भी पीछे आके खड़ी हो गयी.
धीमे धीमे कतार के साथ बढ़ते हम मार्चुअरी में पहुंचे..
बच्चे, आदमी औरतें तीनो की अलग अलग...
हम लोग बच्चो वाली लाइन में लग गए...
ये है...एक आदमी चादर हटाता और देखने वाला या ना में सर हिलाता या वहीँ धम्म से बैठ जाता...
कमरे से कुछ लोग थोड़े सुकून से निकल रहे थे और कुछ बेजार रोते...
समीना उनमें नहीं थी.
लेकिन ये सुकून की बात नहीं थी.
बाडीज दो और जगह पे थी.
समीना वहां भी नहीं थी.
कुछ लोगों ने हमें बताया की कुछ ज्यादा इंजर्ड को जसलोक भी ले गए हैं...
हम वहां भी गए...वहां भी पता नहीं चला...
लौटते हुए सुबह हो रही थी और हाजी अली की दरगाह पड़ी.
भोर की चादर उठा के सुबह निकल रही थी. सूरज की पहली किरण हाजी अली पे पड़ रही थी.
यहं भी हो ले...मैंने जुबेदा..से कहा..
वो सिर्फ इतना बोली...बाबा बचायेंगे कुछ नहीं होगा समीना को...
हम लोग बिना बोले बहोत देर तक दरगाह में बैठे रहे.
बाहर निकल कर मैंने जुबेदा से पुछा...कोई फोटो है समीना की . उसने अपने पर्स से एक मुड़ी तुड़ी पिक्चर निकली.
हाजी अली के सामने एक बड़ी जूस की दूकान है, उसी के पास मैंने उस फोटो को इनलार्ज करा के उस का जिराक्स कराया, छोटे पोस्टर की तरह,२०-२५ कापी.
और थोड़ी देर में हम लोग वापस स्टेशन पर थे.
स्टेशन पर अभी भी कल की रात के निशाँ बाकी थे. इधर उधर फैले सामान, छूटी हुयी चप्पलें, कहीं जगह फर्श पर तमाम कोशिशों के बावजूद ना छुट रहे खून के धब्बे, दीवालों और खम्भों पे गोलियों के निशान...
मिडिया वाले, पुलिस वाले और रेलवे के लोग जगह जगह जमा थे.
बगल में लोकल प्लेटफार्म पर पहली लोकल आने वाली थी.
वह गुब्बारा अभी भी हवा में तैर रहा था.
मैंने जगह जगह वो समीना की फोटो लगाई, नीचे उसका नाम और अपना फोन नंबर लिखा. हम लोगों की तरह कई लोग हाथ में फोटुयें लिए घूम रहे थे.
जुबेदा नीली साडी पहने एक सफाई वाली से कुछ बातें कर रही थी. वो उसे तेज तेज बोल कर, इशारे से कुछ समझा रही थी.
जब मैं वहां पहुंचा तो उसने बताया की रेलवे के स्टाफ के जो इंजर्ड लोग थे , उन्हें रेलवे के हास्पिटल में ले जाया गया था. हो सकता है वो लोग समीना को भी ले गए हों.
कुछ देर में हम लोग भायखला के सेन्ट्रल रेलवे के हास्पिटल में थे.
समीना वहां थी.
कुछ ही देर पहले वह आई सी यु से डिस्चार्ज हुयी थी. उस के बगल के बेड पे आर पी ऍफ़ के कांस्टेबल राम शरण यादव थे.
उन्हें मैं कैसे भूल सकता था.
रात में मैं जब जुबेदा के साथ दुबका हुआ था, वो सामने से एक पुरानी राइफल से गोली चला रहे थे. और जब गोली ख़तम हो गयी तो उन्होंने दूसरे से सिपाही से लोडेड बन्दूक मांगी और गोली चलानी जारी रखी.
आज सुबह स्टेशन पर भी उन की चर्चा थी.
हम लोगों को देख के समीना से ज्यादा वो खुश हुए और जुबेदा से बोले,
"आप समीना की अम्मा हो.'
जुबेदा के होंठ बंद थे लेकिन नाम आँखों से उसने सर हिलाया.
" आपकी बिटिया बड़ी बहादुर है, एकदम ठीक हो..." वो बोले.
मुझे मालूम था की उनके बाएं हाथ का ऐम्प्युटेशन होना है...
वो समीना की ओर देख के मुस्कराए और समीना उन की ओर
समीना ने बताया की जैसे ही गोली चलनी शुरू हुयी, वो हाल में थी. तभी ये अंकल सामने आ गए और उन्होंने अपने पीछे समीना को छिपा लिया.
बीच बीच में वो उसे एक हाथ से फर्श पर चिपक कर लेटे रहने का इशारा करते.
समीना बोली की उसने आतंकवादी अंकल को भी देखा था.
वो दूर थे और क्योंकि यहाँ से ये अंकल गोली लगातार चला रहे थे वो इधर नहीं आये.
जब गोली बंद होने के बाद लोगों को अस्पताल ले जा रहे थे तो इन्होने कहा की पहले इस बिटिया को ले चलो और लोग उसको भी हास्पिटल ले आये.
डाकटर ने मुझे बताया की वैसे तो इसे सिर्फ स्पलिंटर लगे हैं लेकिन वो पैर की हड्डी के पास है, हो सकता है आपरेशन से काम चल जाय और हो सकता है...
और जब मैंने जुबेदा को बताया तो वो रात भर के बाद...पहली बार फफक कर रोने लगी...बिना रुके जोर जोर से...सारी रात का बाँध जैसे अभी टूटा हो...
अगर कुछ हो गया, अगर पैर ...कहाँ बियाह होगा लड़की का ...बाबा बचाओ बाबा...
जब वो थोड़ी शांत हुयी तो मैंने उससे पुछा की वो बार बार किस बाबा को याद कर रही है.
जुबेदा ने मुझे गुस्से से देखा...बनारस के हो और बाबा को पूछ रहे ही...अरे और कौन अपने देवघर के...बैजनाथ बाबा...समीना उन का आशीर्वाद है...उस पर बाबा का हाथ है कुछ नहीं होगा...
पीछे से किसी ने कहा की यहाँ पे माहिम में एक चर्च है...वहां जाने से ..सब ठीक हो जाता है. जुबेदा ने मना किया, वो बोली नहीं बाबा सब ठीक कर देंगे ...आप कहीं मत जाओ..
लेकिन मैं गया.
जब मैं लौट के आया तो समीना के बेड के पास जुबेदा खुश खुश बैठी थी. मैंने नीचे कैंटीन से चाय बिस्किट लाया था. खाते हुए वो बोली,
" देखो हम कह रहे थे ना की बाबा का किरपा है इसपे..."
पता ये चला की जो एक्सपर्ट डाकटर आये थे उन्होंने एक्सरे प्लेट्स देखीं और कहा की वो पैर बचा लेंगे...शाम को आपरेशन है ...नर्स ने बताया की ग्राफ्टिंग होगी..तीन चार बोतल खून लगेगा.
उस दिन मैंने देखा खून का कोई मजहब, कोई प्रान्त, कोई जात नहीं होती.
बाहर खून देने वालों की लाइन लगी थी.
आपरेशन सक्सेसफुल रहा.
दो रात मैं जगा...वहीँ समीना के बेड के बगल में.
उस के घर के लोगों के आने के अगले दिन मैं गया...और उसके अगले दिन समीना डिस्चार्ज हो गयी...अपने पैरों पर चलकर...
मैंने ये बात किसी को नहीं बतायी थी. घर पे मैंने सिर्फ ये बताया की मैं अपने एक दोस्त के यहाँ रुक गया था और हालत थोड़ी ठीक होने के बाद वहां से चला.
जुबेदा से अभी भी बात चीत होती है.
बहूत रात तक मुझे नींद नहीं आती थी.बस सपने में हवा में लटका गुबार, प्लेटफार्म पे पड़ी चप्पलें और बिखरा हुआ खून दिखता था.
मैं अपनी यादों से बहोत कोशिश कर उस रात को रगड़ रगड़ कर साफ करता था ...लेकिन प्लेटफार्म के कुछ जिद्दी खून के धब्बों की तरह...वो नहीं मिटती थीं.
मुझे गुस्सा भी बहोत आता था ...सब पर..यहाँ तक की जो लोग कैंडल ले के मार्च करते थे उन पर भी ..एक इम्पोटेंट एंगर...
फिर मुझे किसी ने समझाया...शायद हाजी अली में किसी बुजुर्ग ने...बेटा इस गुस्से को बूझने मत दो...थोड़ी आग बचा कर रखो और उस से अपनी पूरी देह को मन को तपा तपा के तेग में, तलवार में बदल दो...जिससे अगर कभी ऐसा मौका दुबारा आये ...तो तुम उठ खड़े हो अपनी पूरी शिद्दत से...जिसे फिर किसी नन्ही आखों को खून, गोली मौत न देखना नसीब हो...
और वो बात आज तक मेरे जेहन में है...
रगों में दौड़ने फिरने के हम नहीं कायल
जो आँख से न उतरे वो लहू क्या...
ग़ालिब का ये शेर भी उसी बुजुर्ग ने सुनाया था और लहू से ही ये मेरे सीने पे लिख गया था.
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करन ने उन लोगों को अलकापुरी में एक शापिंग माल के सामने ड्राप कर दिया था .
उन दोनों ने माल में कुछ देर विंडो शापिंग की , रीत ने गुड्डी और हीरो ...आनंद को एस एम् एस किये दो तीन ..लेकिन लगता है वो दोनों अभी होली में लगे हुए थे . और वहीँ एक चेंजिग रूम में , अपने झोले वाले पर्स से कुछ हरबे हथियार रीत ने मीनल को दिए ...पीपर स्प्रे , टेजर गन ...बनारस से वो सबके दो सेट ले आयी थी .
मीनल ने भी एक बड़ा सा प्रेस का कार्ड निकाल के रीत के टॉप पे लगा दिया ...और निकलते हुए दोनों ने दो गॉगल्स और बेसबॉल कैप ले के लगा लिए .
मीनल को सब रस्ते गली कूचे पता थे ...बड़ोदा में होली का असर कम ही रहता है ...दूकाने पूरी तरह खुली थी ...
रीत स्कूटी पे पीछे बैठी सोच रही ..
अगर कहीं उन का मिशन फेल होता है तो बस अब से पांच छह घंटे में ...कर्फ्यू का सन्नाटा ..चीख पुकार ..दौड़ती हुयी एम्बुलेन्स ...गूंजते सायरन ...वो सोच भी नहीं सकती थी ....वो झेल चुकी थी ...खो चुकी थी अपना सब कुछ ...ऑलमोस्ट सब कुछ ...
वो तो माँ कि कृपा थी कि करन ...जिंदगी के उस पार से वापस आया ...रीत ने बनारस की जंग जीती थी ...अब तो करन भी साथ है ...जो उसके साथ हुआ वो किसी और के साथ ना हो ...
और वो स्कूटी के पीछे बैठी बैठी ध्यान मग्न हो गयी ...वापस बनारस ...काशी के सारे भैरव ..अष्ट विद्या ...माँ का आशीर्वाद ...सब कुछ स्मरण किया सब का आह्वान ...काशी कि बेटी थी वो ...
और जब उसने आँखे खोली ...उस के सारे रोयें खड़े थे ...एक नयी ऊर्जा का संचार हो रहा था ...उसकी सारी इन्द्रियां सारी संवेदनाये एक नए स्तर पर पहुँच गयी थीं ...उसकी छठी इन्द्रिय जागृत हो गयी थी ..उसकी भुजाएं फड़क रही थीं ...
और तब तक स्कूटी रुकी ..
वो सिक्योरिटी के आउटर पेरीमीटर पे पहुँच गए थे ...पुलिस बैरिकेड पे वो रोक लिए गए
वहीँ से एक सड़क रिफायनरी की ओर और दूसरी रेलवे यार्ड कि ओर जाती थी ...
चेक में तमाशा पूरा था ...मेटल डिटेक्टर , गाडी के नीचे शीशा ...स्निफर डॉग्स ...हैण्ड हेल्ड डिटेक्टर से स्कूटी
तक चेक की ...लेकिन ...धन्नो के माथे पे लिखे प्रेस और उन दोनों के प्रेस कार्ड ने पूरा साथ दिया ...
और वो लोग करछिया यार्ड की ओर निकल पड़े ...रिफायनरी वाले रोड पे तो वास्तव में पंछी पर नहीं मार सकता था .
और उसी समय ...हीरो का मेसेज आया ...वो अपने कंप्यूटर पे है और अब कंटिन्युअस कांटेक्ट में रहेगा ..
रीत से रहा नहीं गया उसने दो चार मोटी मोटी गालियां उसे मेसेज कर दिन ...खेल चुके होली अपने मायकेवालियों के साथ ...मजा आया अपनी बहनों के मम्मे दबाकर ..
... करछिया यार्ड ...
रीत ने कभी इतनी सारी रेलवे लाइने नहीं देखी थी ...तीस चालीस तो रही होंगी .
उस ने मैप आने के पहले देखा था ...लेकिन सामने नजर आने की बात ही और है .
लाइनों के साथ साथ , कम से कम चार पांच सौ माल गाडी के डब्बे , उनमें से ज्यादातर टैंक वैगन , जो पेट्रोल , डीजल , नेप्था और एल पीजी ले जाने के काम आते हैं . उसके अलावा खुले हुए डिब्बे भी थे जिनमे कोयला भरा हुआ था , वो ज्यादातर इम्पोर्टेड कोल था जो अनेक पावरहाउस के लिए जा रहा था .
अच्छी बात ये थी की मीनल को इस यार्ड के बारे में काफी जानकारी थी ...
बल्कि तीन चार बार वो यहाँ आ चुकी थी इसलिए यहाँ काम करने वालों से भी उसकी अच्छी जान पहचान थी . वह उसको सीधे चीफ यार्ड मास्टर के पास ले गयी वहाँ से वो उसे कंट्रोल टावर में ले गए , जो यार्ड में सबसे ऊँची बिल्डिंग थी।
उन्होंने वहाँ से उन दोनों कि दिखाया कि ये अहमदाबाद बड़ोदा के रास्ते में है लेकिन ये स्टेशन रास्ते में नहीं पड़ता . इसका सम्बन्ध दो स्टेशनो से है , रनौली और बाजवा ...और ये गुजरात रिफायनरी के साथ आई पी सी एल , गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर प्लांट ऐसे कई कारखानो से है . गुजरात रिफायनरी का उत्पादन करीब १ ३ मिलियन टन है और इसका लगभग आधा हिस्सा रेल से ही देश के अनेक भागों में जाता है .
उसी तरह बंद डिब्बे , खाद के लदान के लिए जाते हैं .
एक रेक टैंक वैगन का जा रहा था , जिसे यार्ड मास्टर ने बताया कि वो रि फायनरी में जा रहा है .
कुछ लाइने एकदम काली हो गयी थी , मीनल ने बताया कि ये ब्लैक आयल के डिब्बो के लिए है। और उस के बगल में बड़ोदा -अहमदाबाद में लाइन थी , जहाँ से हर दस पन्दरह मिनट में ट्रेने गुजर रही थी .
कुछ लाइनो में वैगन को इंजन इधर उधर ले जा रहे थे ...उन्हें समझाया गया कि ये शंटिंग हो रही है .
रीत जिस इलाके में 'वाई ' काम करता था ...उसे जानने को उत्सुक थी ...और मीनल ने उसकी बात समझ ली .
. उसने यार्ड मास्टर से कहा कि जहाँ वैगन इक्जामिन होते हैं ...वो लाइने कहा हैं .
उसने दूसरी ओर दिखाया जहाँ दो टैंक रेक खड़े थे और कई लोग काम कर रहे थे . उसने बोला कि ये दो रेक पे काम चल रहा है ..एक कि लोडिंग एक घंटे बाद शुरू होनी है और दूसरे कि डेढ़ घंटे बाद ...उसने आगे कि कुछ लाइने दिखायी तो मीनल उसकी बात काट के बोली ...
"हाँ वो उस जगह हो आयी है एक सिक लाइन है जहाँ वैगन का रिपेयर होता है और उसके पहले स्टीम क्लीनिंग प्लांट है जहाँ स्टीम से वैगन साफ किये जाते है जिससे उसमें कुछ पेट्रोल न बचा बचा रहे ."
रीत का छठा सेन्स जागृत था और उसे उस इलाके में चलने को कह रहा था .
वहाँ से मीनल और रीत जहाँ पेट्रोल के टैंक वैगन एक्जामिन हो रहे थे उधर के लिए चल दीं .
दो लाइनों पे पेट्रोल टैंक वैगन रखे हुए थे। एक के बगल में दस पंद्रह आदमी, दो दो के ग्रुप में कुछ देख रहे थे ,मरम्मत थे।
मीनल और रीत उसी के बगल में रही थीं और मीनल उस के बारे में रीत रही थी।
दो बार पहले यहाँ वो यही देखने आ चुकी थी। रीत ने भी मेंटेनेंस मैन्युअल पढ़ा था , लेकिन आज देख कर और मीनल से बात कर सारी बातें एकदम साफ हो रही थी।
तभी मीनल को देख के कोई खड़ा हो गया , पचास पचपन के रहे होंगे। उनके साथ एक और लड़का भी थी जिसके हाथ में पलास , पेचकस और एक कोई चीज थी।
मीनल ने उन्हें नमस्ते बात करने लगी। तभी उसे रीत कि याद आयी और उसने बोला,
'अरे मैं तो भूल ही गयी थी आप ही के शहर की बनारस कि हैं ये, मेरे साथ अखबार में नौकरी करती हैं। '
अब तो उनके आँख में एक नयी चमक आगयी , तुरन्त बोले।
" अरे बिटिया कहाँ क हउ …बनारस में ?"
" सिगरा क, अउर आप,… " रीत के भी आँखों में वैसी ही चमक थी।
अब दोनों लोग भोजपुरी में चालू हो गए थे,
सच में परदेश में अपनी बोली तुरंत जोड़ देती है,…
' भूलनपुर जानेलु, ' उन्होंने पूछा।
" अरे काह नहीं उहे, डी ऐल डब्लू के पास न," रीत बोली
' हाँ हमार घर उन्ही स्टेशनवा के पासै हौ। " वो बोले।
फिर तो खेत खलिहान की सब बातें चालू हो गयी।
वो भी पक्की भोजपुरी में,
… अचानक उन्होंने पुछा, अरे बनारस का होली तो बहुत जबरदंग होला… ता तू इंहा अं होली के दिन ?
" का करीं नौकरी , " रीत बुरा सा उदास मुंह बना के बोला।
वो भी उदास होके बोले ,
" इहै बात त हौ, छुट्टी नहीं मिली, दो महीने पहले रिजर्वेशन कराये थे , अब फेमली हम लोगों भेज दिए हैं गाँव में भौजी बहुत नाराज हैं बरस बरस का त्यौहार"
तब तक उनके साथ लड़का था उसके हाथ हंसुली ऐसी कोई चीज , रीत के पैर के पास पटरी पे गिरी।
रीत ने झुक के उठाने कि कोशिश की तो लगा उसमें चुम्बक सा कुछ है , जोर लगा के ही पटरी से वो अलग हुयी।
मीनल ने पूछा ये क्या चीज है,… पहले कभी नहीं देखी तो वो लड़का बोला,
"सारी मुसीबत कि जड़,… अभी बड़े साहब अरे वही हेड टी एक्स आर, हम लोगो थमा दिए हैं। कह रहे हैं बॉटम वाल्व कि बड़ी शिकायत आ रही थी ता हेड आफिस से आर्डर आया है इसे बाटम वाल्व में लगाओ, वैसे आज आदमी कम है और ऊपर से ये नया काम। "
मीनल ने रीत को आँख से इशारा किया, हेड टी एक्स आर , वही स्लीपर वाई है।
रीत का दिमाग वैसे भी चाचा चौधरी से तेज चलता है अब वो और तेज चलने लगा।
और उधर वो असिस्टेंट और उनके सीनियर साथ साथ बोल रहे थे,
" ई कौनो ट्रायल होना है उस लिए बाटम वाल्व खोल के ओकरे अंदर फिट करना पड रहा है। ई एकदम वाल्व के अंदर जा के चिपक जाता है। ''
"एक रेक हम लोग कर चुके, जांचो भी , और इस को फिर भी करो और आज फिटर भी कम है , अब ये रेक कर रहे हैं और शाम होते होते एक और ख़तम करना है, सिक लाइन का भी आदमी लगा दिए हैं तब भी ....
हम लोग चार लगा चुके है दो अउर लगाना है "
मीनल ने उनकी बात काट के पूछा , क्या सब वैगन पे लगेगा , तो असिस्टेंट फिटर ने बताया ,
" नहीं , आल्टरनेट टैंक वैगन में लगाना है। " और उसने एक मुड़ा तुड़ा कागज भी दिखाया।
रीत ने ध्यान से देखा , और उसे जोर का झटका लगा।
वह वो बाटम वाल्व में लगने वाली चीज को लेकर उसे थोड़ा हट के ध्यान से देखने लगी।
उसे महसूस हुआ ,…ग़ड्बड
बल्की महा गड़बड़
पहली गड़बड़ तो ये कागज ही था।
अगर हेडक्वार्टर से कोई कागज़ आएगा भी , तो इस तरह सारे फिटर को नहीं बांटा जाएगा बल्कि , टी एक्स आर आफिस में रहता और वहीँ से सारे शिफ्ट के इंचार्ज को नोट कराया जाता। ये जरुर इस तरह इस लिए दिया गया है कि हेड क्वार्टर के नाम पे कोई सवाल ना करे।
और फिर होली कि छुट्टी के कारण किसी आफिसर के आने और इसे देखने की सम्भावना नहीं के बराबर है।
दूसरी गड़बड़ ये है कि अगर कोई ट्रायल होना होता और वैगन में कुछ रिट्रोफिटमेंट करना होता , तो ये वर्कशाप में होता जहाँ पी ओ एच ( पिरियाडीक ओवर हॉल ) के लिएय वैगन जाते हैं।
टैंक वैगन्स का पीओएच तो बड़ौदा में ही , प्रताप नगर में होता है , तो बात ये, ये काम यहाँ क्यों ?
तीसरी बात ,मीनल ने उसे समझाया था , और वो बाकी वैगनों में देख भी रही थी कि , पेट्रोल टैंक के वैगन में जांच करते समय , वैगन की मरम्मत नहीं करते।
उनके ऊपर सिर्फ चाक से क्रास का निशान बना देते हैं और एक शंटिंग इंजिन , शं टिंग कर के उन वैगनों को अलग कर देता है और उसके बदले में फिट वैगन लगा देते हैं।
और जब रेक पूरा हो जाता है तो लोडिंग के लिए उसे रिफायनरी के अंदर भेजा जाता है। वैगनों कि रिपेयर नहीं करने का कारण ये है कि वहाँ पे पेट्रोल कि फ्यूम होती है और हर वैगन में कुछ न कुछ पेट्रोल का स्लज बचा होता है , ख़ास तौर से वाल्व में , जिसे खोल के तेल निकाला जाता है। एक्सप्लोसिव एक्ट के तहत , वहाँ वेल्डिंग एकदम मना है , क्योंकि वेल्डिंग कि चिनगारी से आग लग सकती है।
यहाँ तक की हैमर कि चोट से भी स्पार्क निकल सकता है , इसलिए जिस वैगन में कोई मरम्मत का काम है , उसे सिक लाइन में ही ले जातें हैं। वहाँ दो तीन बार स्टीम क्लीनिंग कर के सारा पेट्रोल , स्लज निकाल देते हैं।
फिर वहाँ पर वेल्डिंग या बाकी रिपेयर होता है। ऐसी हालत में अगर वैगन में कुछ फिट करना था तो सिक लाइन में ले जाना चाहिए था। यहाँ फिट करने का मतलब नहीं है।
दाल में कुछ काला है.
नहीं पूरी दाल ही काली है।
और फिर चौथी बात , आज ही क्यों? आज होली के चक्कर में स्टाफ कम है तो ये एक्स्ट्रा काम क्यों ? और अगर ट्रायल करना है तो एक साथ तीन तीन रेकों में , और रीत का दिल तेजी से धक् धक् कर रहा था।
कहीं ये वो मिसिंग लिंक यही तो नहीं।
टाइमिंग एकदम मैच कर रही है, और 'वाई ' कि शिफ्ट भी है, उसके दिल ने सोचा करन को मेसेज भेज दे।
लेकिन दिमाग ने मना कर दिया।
कहीं ते कोई डिकाय या डाइवर्जन तो नहीं , किसी को मीनल के बारे में पता चल गया हो और उसने ये डाइवर्जन बनाया हो आर असली हमला किसी और तरीके से हो और वो लोग इसी में उलझे रह जायेंगे।
या ये भी हो सकता है ये कोई जेनुइन ट्रायल हो, फिर उसकी हंसी उड़ेगी, और टाइम भी कितना कम है
उसने मुड़ के देखा। मीनल अभी भी उन दोनों को बात में उलझाये थी।
वो और आगे गयी , जहां से कोई उसे देख न रहा हो।
आँखे बंद की , गहरी सांस ली और अपनी सारी शक्तियों को संगृहीत किया।
दो पल वो वैसे ही थी , फिर आँखे बंद किये उसने उस पुर्जे पे ऊँगली फिरानी शुरू की ,
उसकी उँगलियों में आँखे उग आयी थीं।
और उसे मिल गया , छोटे छोटे पांच छह छेद उसने फिर हाथ फेरा , और उन छेदों के उपर हाथ से रगड़ा , कुछ खुरदुरा सा लगा, और पास कुछ उभरा ,…
आँखे बंद उन छेदो के पास कि जगह को नाक से सुंघा , कुछ समझ में में नहीं आया ,… फिर उसे याद आया आर डी एक्स और टी एन टी का मिला जुला मिश्रण,
रीत ने हाथ से उसका अंदाज से तौला पौन किलो तो कम से कम होगा, फिर एक बार उसने उसे आँख बंद किये सहलाकर देखा।
छोटे छोटे बटन दो, अब उसने आँख खोल कर उस जगह को ध्यान से देखा , लाल और हरे बटन , जल्दी नहीं नजर आते।
फिर उसने आँख खोल कर उन छेदों को देखा , उसे अपने लम्बे नाख़ून से कुरेदा,… और नाक के पास लगाकर तीन चार बार खूब गहरी सांस ली
अब उसका शक्क आलमोस्ट पक्का हो गया.
सड़े बादाम सी महक, एक बार फिर उसने सूंघा ,
आर डी एक्स, टी एन टी के साथ आई एम् एक्स 1 0 1 मिला है और कुछ जिलेटिन सा आई एम् एक्स के चलते थोड़े बहुत झटके या फिट करते समय होने वाले प्रेशर से ये एक्सप्लोड नहीं करेगा और इसी लिए इसमें पावरफुल मैग्नेट भी है , जिससे जिसे वो वाल्व के अंदर चिपक जाए ज्यादा फिट ना करना पड़े और वो लाल हरे बटन डिटोनेटर होंगे ,
वो असिस्टेंट फिटर रीत से वो वाल्व में लगाने के लिए मांगने आया और उसने दे दिया।
रीत और मीनल झुक के देख रही थी कि वो कैसे लगता है।
रीत ने नोटिस किया कि मैग्नेटिक होने से वो आसानी से सेट हो गया।
रीत ने मीनल से आगे चलने का इशारा किया। अब वो जल्द से जल्द 'वाई ' से मिलना चाहती थी.
तब तक उस असिस्टेंट फिटर ने आवाज लगायी ,
" अभी चार वैगन में लगाना बाकी है , "
उसके सीनियर ने जिससे रीत अभी भोजपुरी में बात कर रही थी , उससे बोला ,
" अरे उ रेकवा के ओह पार है जाके ले आओ चार, आधे घंटे में शंटिग इन्जन आ जाएगा इसको भी प्लेस करने। जल्दी करो। "
वो फिटर दो वैगन के बीच पार कर चला गया।
मीनल ने रीत की ओर इशारे से देखा। और रीत समझ गयी।
" वाई " इस शिफ्ट का इंचार्ज , हेड टी एक आर , सस्पेकटेड स्लीपर , जो इन लोगो को ये डिवाइस दे रहा था , रेक के उस पार खड़ा था. शायद बाकी लोगो को जल्दी जल्दी बोल रहा हो,
रीत को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। टेंशन से उसकी देह काँप रही थी , कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
उसे लग रहा था कि जो डिवाइस कुछ देर पहले उसके हाथ में थी , वही बॉम्ब है जो टैंक वैगन के बाटम वाल्व में लग रहे हैं।
और एक बार बॉटम वाल्व के अन्दर फिट हो जाने के बाद , बाहर से कुछ नजर नहीं आता। अगर कोई वैगन का एक्सपर्ट भी देखेगा तो ये नहीं कह सकता कि वैगन में कोई चीज जोड़ी गयी है ,
और वैगन में आप मेटल डिटेकटर इस्तेमाल नहीं कर सकते , पूरा वैगन ही लोहे का है।
यहाँ तक स्निफर डॉग्स भी कुछ नहीं सूंघ सकते थे क्योंकि वैगन के चारो और पेट्रोल के स्लज कि बेहद तेज महक आती थी।
क्या करे करे ,....
उसके बगल में जो रेक खड़ा था जल्द ही उसमे बीस बॉम्ब लग जायंगे।
और दूसरी साइड में में भी बीस बॉम्ब लगने शुरू हो गए होंगे होंगे।
रीत ने रिफायनरी कि साइडिंग की ओर देखा , जहाँ एक रेक उन लोगो ने टावर से जाते देखा था , अब उसका गार्ड का डिब्बा दिख रहा था यानी दो चार मिनट में वो रिफायनरी के अंदर होगा ,
और उसमे बीस वैगन में बॉम्ब लग चुके थे,…
क्या करे ,…क्या करे,… कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
क्या करे , कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
और एक फ़िल्म की तरह , अतीत के भयावह दृश्य उसकी आँख के सामने घूम रहे थे. वह दुःख जो उसने झेला था , वह जो उसकी धमनियों , शिराओ में घूमते रक्त का हिस्सा बन गया है। कितनी मुश्किल से उस अतीत से वो उबर पाती है।
दिन फागुन के ही थे , वो भी बनारस के। करन आया था , लेकिन उस दिन रीत छोड़ने स्टेशन नहीं गयी थी। अपने पेरेंट्स के साथ उसे मंदिर जाना था.
सात मार्च मंगलवार ,
अखबार में अगले दिन हेडलाइन थी
दो बॉम्ब ब्लास्ट , २८ लोग मरे , १०० से ऊपर घायल।
कम से कम दस लोगों के शव मंदिर में पड़े , मरने वालों में आठ महिलायें, तीन लड़कियां।
अट्ठारह से बीस लोगों के स्टेशन पे मरने कि आशंका।
लेकिन अखबार हर त्रासदी को एक अंक , एक संख्या बना देते हैं।
किसी ने ये नहीं लिखा , की जब रीत घर लौटी तो अकेली थी। वो अपने माता पिता को मॉर्चुरी में छोड़ आयी थी।
कोई नहीं था। करन के माता पिता स्टेशन पर पड़े थे , क्षत विक्षत। उन्हें भी रीत ने ही पहचाना। और उस दिन तो लगा था करन भी अपने माता पिता के साथ चला गया है।
और जब करन लौटा तो उसे लगा कि कि वो काल कि दीवाल फाड़ के वापस आया है।
और उसके बाद , दुबारा फिर जब वो घाट पे थी तभी बॉम्ब विस्फोट , एक तीन साल की बच्ची गयी।
और तब रीत ने फैसला किया , घुस के मारना होगा। इस राक्षस के मुंह में हाथ डाल के उसके दांत तोड्ने होंगे।
और आज फिर वही हालत।
वह सामने रिफायनरी देख रही थी।
अगर ये ट्रेन में लगे हुए बॉम्ब चल गए , पूरी रिफायनरी आग में तो जायेगी ही उसके साथ , कितनी और फैक्ट्रियां।
बगल में ही बी पी सी एल का गैस बाटलिंग प्लांट था , वहाँ तो आग पहुंचेगी ही और फिर जो धमाके होंगे , … आस पास कि बस्तियां। रीत जैसी कितनी लड़कियां अपने माता पिता खो देंगी। हजारों लोग ,
कुछ करना होगा कुछ करना होगा
लेकिन करे क्या , अगर एक भी गलत चाल रीत ने चल दी तो दुश्मनो कि शह और उसकी मात निश्चित ,
शक्ति दो शक्ति दो , वो एक पल आँख बंद कर ध्यान लगा रही थी और फिर उसने तय कर लिया
रीत ने फुसफुसा को मीनल को मोटी मोटी बातें बतायीं , साथ साथ में उसने अपनी स्पीकर और इयर पीस आन कर दी , ये सीधे गुड्डी के होने वाली ससुराल से जुडा था , अपना 'हीरो' आनंद ,
उसकी बात अब सुन रहा था , मीनल के साथ।
पहले उसने सोचा की जो बैंड उसके हाथ में करन ने बाँधा था , उसमें लगी रेड अलर्ट वाली बटन दबा दे , और करन को बुला ले ,
फिर वो ठिठक गयी ,
अगर कहीं जरा सा भी अंदाज हो गया तो , वो 'वाई ' कुछ भी कर सकता है।
रीत और मीनल जिन टैंक वैगन के पास खडी है उनमे बॉम्ब लग चुके है और अगर उसने रिमोट की बटन दबा दी तो,…
और एक और खतरा , यहाँ अगर यार्ड में भी एक्सप्लोजन हुआ और इन सब टैंक्स में थोडा थोडा बचा हुआ पेट्रोल है तो , फिर ये आग कही रिफायनरी तक पहुँच गयी , रिफायनरी से लोड किये हुए टैंक वैगन भी यहाँ खड़े होंगे अगर उनमे चिंगारी लग गयी ,…
रिफायनरी और यार्ड के बीच सिर्फ एक छोटी सी सड़क और दीवाल ही तो है,…
,
रीत कि निगाह फिर रिफायनरी की ओर गयी और उसे याद आया , एक रेक वहाँ आलरेडी पहुँच चूका है , बीस बम लगे हैं ,
अगर ,… अगर उस ने ,…उस का कोई साथी वहाँ हुआ और उसे सिर्फ मोबाइल से अलर्ट कर दिया , और उसने वहाँ रिमोट दबा दिया तो सब ख़तम ,
वह उधेड़ बुन में पड़ी थी ,
तभी उसको इयर पीस पे आनंद कि आवाज सुनायी पड़ी ,
" मैं हूँ ना,.... "
और उसको अपने सवाल का जवाब मिल गया ,
ठेठ बनारसी जवाब.
रास्ता एक ही था , टेक द बुल बाई हार्न।
रीत ने सोच लिया था , जो कुछ है उसे ही करना था , और मीनल को।
सबसे पहले उस 'वाई ' को न्यूट्रलाइज करना था , उसे एलिमिनेट करना था , वो भी इस तरह की ना तो वो किसी को इन्फार्म कर पाये , और ना ही खुद कोई ऐक्शन कर पाये।
दो प्रेस की टॉप , जींस धारी लड़कियों पे किसे शक होगा , और उसके कुछ ही शक होने के पहले गंगा पार हो जानी चाहिए थी।
रीत ने मीनल का हाथ दबाया , जवाब में मीनल ने रीत का।
प्लान पक्का।
तोड़ दे दुश्मन की नली ,…
वो दोनों रेकके बगल में आगे पढ़े ,
अब बगल के रेक में भी काम शुरू हो गया था।
रीत समझ गयी कि ट्रायल के नाम पे उस में भी बाटम वाल्व में वही डिवाइसेज लगायी जा रही हैं।
उसे अभी भी साफ नहीं था कि वो कैसे डिटोनेट होंगे , लेकिन ये बात साफ थी इन्ही के जरिये हमला होना था।
वो दोनों आराम से रेक के दूसरी ओर जा रही थीं।
तभी एक आवाज सुनायी पड़ी , जल्दी करो , जल्दी करो स्पेशल बोनस मिलेगा , अगर एक घंटे में दोनों रेक एक्जामिन हो गए , जल्दी।
मीनल ने रीत को आँख के इशारे से बताया , वही है।
अभी वो दिख नहीं रहा था , हाँ आवाज उधर से ही आ रही थी , जिधर वो दोनों जा रही थीं , रेक के दूसरे छोर से
और थोडी देर में वो दिखने लगा , उसके हाथ में एक बड़ा सा रेगजीन का बैग था। उस के साथ दो लोग और थे , फिटर। उसको उसने बैग से निकाल कर चार चार डिवाइस दी और बोला , बस जल्दी काम ख़तम करो।
और अब उसने पहली बार मीनल और रीत को देखा। और रीत ने मोबाइल पे बात के बहाने उसकी उसकी पिक्चर कैद कर ली।
वो उन दोनों को ही देख रहा था।
और जैसे हो वो दोनों पास आयीं , वो जोर सेगुर्राया ,
" कौन हो तुम दोनों , यहाँ कहाँ टहल रही हो जाओ यहाँ से। "
रीत ने मीनल का हाथ दबा कर इशारा किया , और अनदेखा कर आगे बढ़ गयीं।
उसने फिर पीछे से टोंका , और अबकी दोनों दूर रूक गयीं।
रीत कि स्ट्रेटेजी थी , उसे रेक से थोड़ी दूर लाने की जहाँ से बाकी काम कर रहे लोग उन्हें ना देख पाएं।
अब वो उनके पीछे पीछे आया और बोला ,
"कौन हो तुम दोनों , यहाँ क्या कर रही हो। "
"मैं प्रेस से हूँ और ये भी, ...." अब मीनल ने पहल की और अपना प्रेस कार्ड बढ़ाया।
उसके कुछ बोलने के पहले के पहले मीनल ने फिर बोला ,
" जब आपके यहाँ एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट ख़राब हो गया था ,ब्लैक आयल बारिश में बह के बगल के खेतों में चला गया था , याद है "
'हाँ, हाँ,… " अब क़ुछ ठंडा हॊता हुआ वो बोला।
" मैंने ही कवर किया था और रेलवे के सपोर्ट में रिपोर्टिंग कि थी , "मीनल बोली.
अब वो शांत हो गया।
रीत अभी थोडी और दूर जा के खडी हो गयी।
मीनल बोले जा रही थी ,
" अभी कुछ पहले भी मैं आयी थी , मजदूर संघ के मिस्टर पठान के साथ , उनको तो आप जानते होंगे ना, "
उनको कौन नहीं जानता था , पूरे डिवीजन में उसकी तूती बोलती थी।
मीनल चालु थी , " और आपके डी आर एम् मिस्टर कुमार उनका भी मैंने इंटरव्यू लिया था। "
अब वो आश्वस्त हो गया था , लेकिन बस चाहता था कि ये दोनों किसी तरह कटें यहाँ से।
उधर रीत ने जंग का मैदान तलाश लिया था।
किसी भी लड़ाई में पहला कदम यही है कि मैदान आपके अनुकूल हो और उसके चारों ओर की जानकारी आपको अच्छी तरह हो।
इस जगह पे रिपयेर वाले स्टाफ कहीं से दिख नहीं रहे थे।
दूसरे रिफायनरी कि ओर से वाली सड़क का गेट बहोत पास था और सड़क वहाँ तक आ आरही थी। उसने फ्रेंडशिप ऐसे अपने कलाई पे बंधे बैंड का पीला बटन दबा दिया।
उससे अब करन का डायरेक्ट कांटेक्ट स्टैब्लिश हो गया। उस बैंड का स्पेशल ऐप मोबाइल में था , उसके जी पी एस पे अब साफ था जहाँ करन था , वहाँ से यहाँ क्या है और पहुँचने का समय चार मिनट दिखा रहा था।
रीत अब तैयार थी।
मीनल अब तक उसे बातों में उलझाए थी , जब कि वाई चाहता था कि जल्द से जल्द उसे फुटाए।
मीनल ने उससे बोला कि बस वो उसे उससे दो चार बाइट लेना चाहती है , सिर्फ इस बात को हाइलाइट करने के लिए कि जब लोग होली कि छुट्टी मना रहे हैं तब भी आप लोग लगन से काम कर रहे हैं। बस वो जो मेरी असिस्टेंट खड़ी है न दो मिनट लगेगा वहीँ ,
वो घबडाया , "नहीं कोई फ़ोटो वोटो नहीं , हमारे यहाँ परमिटेड नहीं है। "
मीनल ने उसे समझाया , " नहीं हम कोई इलेक्ट्रानिक मिडिया वाले नहीं है बस वो अभी सीख रही है न , तो मैं सवाल करुँगी , वो जवाब नोट करेगी।
और मीनल चलती हुयी रीत के पास आ गई और पीछे पीछे वो,…
मीनल और रीत इस तरह खड़ी थीं की यार्ड में से कोई भी देखता , वही दोनों दिखती और वो उन दोनों के बीच , छिपा , ढंका।
सवाल मीनल ने शुरू किया और रीत वाई के पीछे खड़ी थी।
मीनल ने कहा आप छुट्टी के दिन भी भी इतने मेहनत से काम कर रहे हैं।
वाई ने बोला जी , लेकिन उसकी निगाहें इधर उधर घूम रही थी , और हाथ में वो रेग्जीन वाला बैग बहुत कस के पकड़े था। वाही जिसमें से वो डिवाइसेज निकाल के लोगों को दे रहा था लगाने के लिए।
मीनल ने अगला सवाल किया , लेकिन आप किस देश के लिए काम कर रहे हैं।
अब वो चौंका , गुस्से में बोला।
" मतलब ,...."
" मतलब , ये आप वैगन में बम क्यों लगा रहे हैं , " मीनल ने बोला।
जवाब उसके चाक़ू ने दिया , जिस फुर्ती से उसने चाक़ू से मीनल पे हमला किया , रीत मान गयी उसे।
लेकिन उतनी ही फुर्ती से मीनल का पेपर स्प्रे चला , वो सबसे ज्यादा पावरफुल स्प्रे था जिसमे आसाम कि मशहूर भूत जोलकिया चिली का इस्तेमाल किया गया था।
साथ ही रीत के दोनों चले उसके घुटनो के जोड़ पे,
नतीजा वही हुआ जो होना था , वो जमीन पे और चाक़ू ने सिर्फ मीनल के टॉप को हाथ के पास से चीर दिया था और उसे हलकी खरोच लगी थी।
रीत ने साथ में ही अपने कलाई में बंधे बैंड पे रेड बैंड दबा दिया और उसी के साथ अपनी टेजर गन से गिरे हुए वाई के बाडी से सटा के दो शाट मार दिए।
अब वो आधे एक घंटे के लिए बेकार था।
मीनल ने जमीन पे गिरा वाई का मोबाईल उठा के अपने पर्स के हवाले किया और रीत ने अपने झोलेनुमा लेडीज पर्स में उसका वो रेग्जीन का बैग , जिसमें वो डिवाइसेज थीं।
इस सब में उन दोनों को एक मिनट से ज्यादा नहीं लगा।
उसको उकसाना इस लिए जरुरी था जिससे कन्फर्म हो जाए कि वो दुश्मन का एजेंट है, और दूसरे गुस्से में वो अपना कंट्रोल खो देगा और उसे न्यूट्रलाइज करना ज्यादा आसान होगा।
और वही हुआ ,
तभी रीत ने अपनी पेरीफेरल विजन से देखा उसे कोई देख रहा है.
और सतर्क हो गयी।
उसने मीनल को भी इशारा किया।
रीत ने झुक कर 'वाई ' के गले के पास की एक एक नस दबा दी। सिर्फ दस सेकेण्ड के लिए ,…
और उसका असर ये हुआ कि अब वो किसी तरह एक घंटे के पहले होश में नहीं आने वाला था।
उससे भी ज्यादा ये हुआ कि अब उस के सारे सिम्पटम हार्ट अटैक के थे , पल्स स्लो हो गयी थी , ब्लड प्रेशर कम होगया था। कोई डाकटर भी बिना ई सी जी किये ये नहीं था कि , इसे हार्ट अटैक नहीं हुआ।
तब तक वही हुआ जिसका रीत को डर था.
ढेर सारे काम करने वाले इकट्ठे हो गए , मारो मारो करते ,
और पीछे वही आदमी था जिसे रीत ने पेरीफेरल विजन से देखा था , वो सामने नहीं आ रहा था , लेकिन लोगों को उकसा रहा था।
" यही दोनों है , क्या किया तुम दोनों ने मारा है इन्हे,"
मोर्चा मीनल ने फिर सम्हाला।
"तुम लोग समझते क्यूँ नहीं , इन्हे हार्ट अटैक हुआ है , तुरंत हास्पिट्ल ले जाना जरुरी है , ...." वो बोली।
" हास्पिटल ले चलना है तो रेलवे हास्पिट्ल ले चलना है , प्रतापनगर। " एक बोला।
रीत अभी भी झुकी उसकी पल्स देख रही थी। उसने कनखियो से देखा , वही आदमी अभी ही भीड़ को उकसा रहा था।
वो उठ के खड़ी हुयी और बोली ,
" मैंने रिफायनरी कि एम्बुलेंस को फोन कर दिया है वो अभी आ रही होगी। "
उसने उस बैंड के सहारे जब रेड अलर्ट किया था तभी करन को बोल दिया था कि वो रिफायनरी के एम्बुलेंस से आये।
" अरे रिफायनरी वाले कभी एम्बुलेंस नहीं भेजंगे , पहले इनको उठाओ आफिस में ले चलो , " एक कोई और चिल्लाया।
यही रीत नहीं चाहती थी। एक बार अगर वाई को वो उठा ले आते तो क्या होता पता नहीं। उसे वाई जिन्दा चाहिए था। वो जेड का हश्र बनारस में देख चुकी। आई बी और पुलिस वाले देखते रह गए और भारी भीड़ में उसे गोदौलिया में ख़तम कर दिया।
रीत ने फिर करन को फोन लगाया। करन ने बोला वो एम्बुलेंस में निकल गया है बस दो तीन मिनट में पहुँच रहा है।
लेकिन दो तीन मिनट भी मुश्किल पड रहे थे.
सहायता आयी लेकिन अप्रत्याशित जगह से ,
वही , जिनसे रीत भोजपुरी में सम्भाषण कर रही थी , और उनके साथ उनका असिस्टेंट फिटर , दो चार लोग और ,
लेकिन जैसे ही उन्होंने रीत को देखा उनकी भाव भंगिमा , मुख मुद्रा सब बदल गयी।
रीत के पास आके वो बोले , " क्या हुआ बिटिया ,"
रीत धीमे धीमे विस्तार से समझाया , और अब सब सुन रहे थे।
कैसे मीनल और वो दोनों उनसे बात कर रहे थे , कि उन्होंने सीने में तेज दर्द की शिकायत की।
मीनल ने अपनी बोतल से उन्हें पानी भी पिलाया , लेकिन दर्द बहोत तेज था इसलिए दोनों ने मिल कर उन्हें लिटा दिया। रीत ने झुक कर नाड़ी देखी तो पल्स बहुत धीमी थी , इसलिए उसने तुरंत रिफायनरी के हास्पिटल में फोन लगाया , जहाँ के एक डाकटर उनके परिचित हैं। मौके कि बात है कि वो मिल गए।
वो अभी तुरंत एम्बुलेंस ले के आ रहे हैं। उनकी भाई लाल अमिन हास्पिटल से बात हो गयी है , वहाँ भी वो लोग तैयार होंगे , इन्हे तुरंत हास्पिटल ले जाना बहुत जरुरी है।
लोगों का रुख बदलने लगा। वो खुद झुके और उन्होंने नाड़ी देखी।
नाड़ी का पता मुश्किल से चल रहा था।
नाड़ी तो एक दम डूब रही है , चिंता में उन्होंने सब से कहा। ' काहें तू लोग रेलवे हास्पिटल के जिदिया रहे थे , ई तो कहो ई दोनों थीं जान बच गयी उन की ई तुरंते एम्बुलेंस बुला दीं। "
तब तक ऐम्बुलेंस के सायरन की आवाज भी सुनायी पड़ने लगी।
दो आर पी एफ वालों के पास गए और यार्ड का गेट भी खुलवा दिया।
वो आदमी जो लोगों को भड़काने में लगा था , अब नहीं दिख रहा था।
तब तक ऐम्बुलेंस आ गयी और ऐम्बुलेंस से करन उतरा , एक डाक्टर कि ड्रेस में , और पीछे से चार स्ट्रेचर बियरर,…
रीत समझ रही थी जैसे करन डाक्टर नहीं था , वैसे वो स्ट्रेचर बियरर नहीं थे बल्कि स्पेशल फोर्स के थे.
और तभी रीत को फिर वो दिखा , वो आगे बढ़ा उठाने में सहायता करने के लिए।
लेकिन अबकी करन ने उसे डांटा , " हार्ट पेशेंट है सब लोग नहीं हैंडल कर सकते , सब लोग हटिये दूर हटिये " और स्ट्रेचर बियरर ने उसे उठा के अंदर डाल दिया।
करन ने रीत से बोला ,
" असलं में ऐम्बुलेंस का ड्राइवर नहीं मिल रहा था इसलिए मैं खुद ही ड्राइव कर के आया हूँ , यहाँ से हम सीधे भाईलाल ले जायेंगे , तुरंत ऐंजियो प्लास्टी करनी पड़ेगी। "
सब लोग अब तारीफ कि नजर से रीत की ओर देख रहे थे।
तब तक वो फिर नजर आया , और कुछ ढूंढने लगा " यहाँ इनका एक बैग था"
रीत समझ गयी वो किस बैग की बात कर रहा था।
अब तो करन आ गया था रीत को किस बात का डर , उसने जोर से उसे डांटा , " जरा सी देर होने से इनके जान जा सकती है और तुम्हे बैग कि पड़ी है। "
रीत ने करन से पुछा ,
" डाक्टर साहेब , हम लोगों की बाइक भी गेट के पास है , आपके रास्ते में पड़ेगी अगर आप हम दोनों को वहाँ ड्राप कर देते , बज गया है और हम दोनों को,…"
उसकी बात काट के बहोत सीरियस आवाज में करन बोला ,
"जल्दी बैठो "
और बाकी इकठ्ठा लोगो से उसने कहा कि आप में से जो लोग आना चाहते हों कल भाईलाल में आ जाइयेगा , आज तो ये आई सी यु में ही रहेंगे और हम ने रेलवे हास्पिट्ल को भी बोल दिया है वहाँ से भी एक डाक्टर पहुँच रहे हैं , चिंता की कोई बात नहीं है। '
ऐम्बुलेंस यार्ड से पल भर में बाहर हो गयी।
अब रीत और मीनल मुस्करायीं और दोनों ने जोर से हाई फाइव किया।
मुर्गा पिंजड़े में था।
रीत ने करन को सारी बातें समझा दी , किस डिवाइस कसी तरह बाटम वाल्व में लगे हैं और एक रेक रिफायनरी में आलरेडी प्लेस हो गया है।
दो रेक में यार्ड में वो लगा रहे थे और वो भी कुछ देर में रिफायनरी में पहुँच जाएंग। रीत ने अपने झोले नुमा पर्स में से निकाल के वो बैग भी दे दिया , जिसमें कुछ डिवाइसेज रखी थीं
। फोरेंसिक और बॉम्ब डिस्पोजल वाले जो रिफायनरी में बने कंट्रोल रूम में थे , उसकी जांच कर लेते जिससे उन्हें बॉम्ब की मेकेनिज्म समझने में आसानी होती।
रीत ने ये भी बता दिया कि ये करीब एक घंटे बेहोश रहेगा।
तब तक वो वहाँ पहुँच गए जहाँ बाइक थी। उतरने के पहले , रीत को कुछ याद आया
" हाँ एक का पूरे जबड़े का एक एक्स रे तुरंत निकलवा लेना , मैं थोड़ी देर में काल करुँगी। "
वो दोनों उतर के बाइक पे सवार हो गयीं।
ऐम्बुलेंस फिर रिफायनरी में बने कंट्रोल रूम की ओर मुड़ पड़ी।
रीत के इयर पीस पे आनंद का बार बार मेसेज आरहा था , आधे घंटे में प्रताप नगर पहुँचो रेलवे के कंट्रोल रूम में।
रास्ते में कोई ढाबा सा दिखा दिखा ,एकदम सूनसान टाइप , और रीत पीछे से चिल्लाई ,
मोड़ मोड़ इधर रोक यार
और अंदर घुस के धम्म से बैठ गयी और रीत ने लम्बी सांस लेते हुए कहा ,
" अरे यार भगवान ने ये लड़के क्यों बनाये और बनाये तो भेजे में थोड़ी सी अक्कल डाल देते। "
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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